भारत की जलवायु को निर्धारित करने वाले कारक कौन से हैं? - bhaarat kee jalavaayu ko nirdhaarit karane vaale kaarak kaun se hain?

(i) अक्षांशीय स्थिति- भारत की जलवायु को प्रभावित करने में देश की अक्षांशीय स्थिति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है। कर्क रेखा इसके मध्य से होकर गुजरती है। भारत की इस विशिष्ट स्थिति के कारण इसके दक्षिणी भाग में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु तथा उत्तरी भाग में महाद्वीपीय जलवायु पायी जाती है।

(ii) समुद्र से दूरी- कर्क रेखा भारत को उष्ण और उपोष्ण दो कटिबन्धों में बाँटती है, लेकिन भारत के तापमान के वितरण पर समुद्र से दूरी का प्रभाव स्पष्ट देखा जाता है। भारत के उत्तरी मैदान में विषम जलवायु होने का यही कारण है।

(iii) भू-रचना- यहाँ की भू-रचना न केवल तापमान वरन् वर्षा को भी प्रभावित करती है। देश के उत्तरी भाग में पूर्व से पश्चिम तक फैला हुआ हिमालय पर्वत शीत ऋतु में उत्तर से आने वाली अत्यन्त ठण्डी हवाओं को रोककर भारत को शीत लहर से बचाता है। यह पर्वत मानसून पवनों को रोककर वर्षा में मदद करता है।

(iv) जल और स्थल का वितरण- भारतीय प्रायद्वीप के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। भारत उत्तर में एशिया महाद्वीप से जुड़ा हुआ है। यहाँ के जल और स्थल की पवनें ही मानसून पवनें हैं, जो भारत की जलवायु को अधिक प्रभावित करती हैं।

(v) ऊपरी वायुमण्डल में चलने वाली जेट स्ट्रीम पवनें- भारतीय उच्च महाद्वीप के ऊपरी वायुमण्डल में चलने वाली जेट स्ट्रीम पवनों की भी भारत की जलवायु दशाओं के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इन जेट स्ट्रीम पवनों की प्रकृति पर ही ग्रीष्मकालीन मानसून निर्भर करता है।

(vi) मानसूनी पवनें- मानसूनी पवनें हमारे देश में ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चला करती हैं। मानसून पवनों के इस परिवर्तन के साथ भारत में मौसम और ऋतुओं का भी परिवर्तन हो जाता है।

1    भारत की जलवायु को मुख्य रूप से तीन कारक प्रभावित करते हैं। ये हैं-

⦁    अक्षांश,
⦁    ऊँचाई,
⦁    वायुदाब एवं पवनें।

2    भारत में मानसूनी जलवायु होने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं

⦁    मानसूनी जलवायु में मौसम के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होता है।
⦁    भारत की जलवायु में भी पवनें गर्मी में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

3    भारत में सबसे अधिक दैनिक तापमान भारत के मरुस्थल में होता है क्योंकि रेत शीघ्र गर्म होने से दिन में तापमान अधिक होता है।

4    मालाबार तट पर दक्षिण-पश्चिमी पवनों के कारण वर्षा होती है।

5    क्षोभमंडल की ऊपरी परत में पश्चिम से पूर्व की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाली तीव्रगामी वायु धाराओं को जेट प्रवाह कहते हैं। पश्चिमी जेट प्रवाह के मार्ग में हिमालय तथा तिब्बत के पठार अवरोधक का काम करते हैं।

इस प्रकार यह प्रवाह दो भागों में बँट जाता है-
⦁    उत्तरी जेट प्रवाह
⦁    दक्षिणी जेट प्रवाह।

उत्तरी जेट प्रवाह हिमालय के उत्तर में तथा दक्षिणी जेट प्रवाह हिमालय के दक्षिण में बहता है। जेट की दक्षिणी शाखा हमारे देश की जलवायु को प्रभावित करती है। जेट प्रवाह शीतकालीन चक्रवातों को भारत तक पहुँचाने में सहायक होते हैं। भारत की मानसून पवनों की दिशा को निर्धारित करने में जेट प्रवाह प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं।

6    मानसून अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘मौसम’ है। मानसूनी जलवायु में मौसम के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन आ जाता है-गर्मी में समुद्र से स्थल की ओर सर्दी में स्थल से समुद्र की ओर। मानसून में विराम का अर्थ है वह शुष्क समय जिसमें वर्षा नहीं होती।

7    विभिन्न अक्षाशों में स्थित होने एवं उच्चावच लक्षणों के कारण भारत की मौसम संबंधी परिस्थितियों में बहुत अधिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। किन्तु ये भिन्नताएँ मानसून के कारण कम हो जाती हैं क्योंकि मानसून पूरे भारत में बहती हैं। सम्पूर्ण भारतीय भूदृश्य, इसके जीव तथा वनस्पति, इसका कृषि-चक्र, मानव-जीवन तथा उनके त्योहार-उत्सव, सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं।मानसून के आगमन का पूरे देश में भरपूर स्वागत होता है।

भारत में मानसून के आगमन का स्वागत करने के लिए विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। मानसून झुलसाती गर्मी से राहत प्रदान करती है। मानसून वर्षा कृषि क्रियाकलापों के लिए पानी उपलब्ध कराती है। वायु प्रवाह में ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन एवं इससे जुड़ी मौसम संबंधी परिस्थितियाँ ऋतुओं का एक लयबद्ध चक्र उपलब्ध कराती हैं जो पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधती है। ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं एवं सम्पूर्ण देश को एकसूत्र में बाँधती हैं। नदी घाटियाँ जो इन जलों को संवहन करती हैं, उन्हें भी एक नदी घाटी इकाई का नाम दिया जाता है। भारत के लोगों का सम्पूर्ण जीवन मानसून के इर्द-गिर्द घूमता है। इसलिए मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला समझा जाता है।

उपर्युक्त समस्त कारक मिलकर भारत की जलवायु का निर्धारण करते हैं। इन सभी कारकों को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जा सकता है।

  • स्थिति तथा उच्चावच सम्बन्धी कारक
  • वायुदाब तथा पवन सम्बन्धी कारक

स्थित तथा उच्चावच सम्बन्धी कारकों के अंतर्गत निम्नलिखित कारक समाहित हैं।

भारत की भूमि का विस्तार

भारत की मुख्य भूमि का अक्षांशीय तथा देशांतरीय विस्तार लगभग समान है। कर्क रेखा भारत के लगभग मध्य भाग से होकर गुजरती है। इस प्रकार भारत का कर्क रेखा के उत्तर में स्थित भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में तथा कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबन्ध में पड़ता है।

भारतीय मानसून की प्रकृति

इस प्रकार भारत का उष्ण कटिबंधीय भाग भू-मध्य रेखा के निकट होने के कारण यहाँ वर्ष भर उच्च तापमान और कम दैनिक व वार्षिक तापान्तर रहता है। जबकि भारत का शीतोष्ण कटिबंधीय भाग भू-मध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक व वार्षिक तापान्तर तथा जलवायु में अधिक विविधता प्रदर्शित करता है। इस प्रकार भारत की अक्षांशीय तथा देशांतरीय स्थिति भारत की जलवायु को प्रभावित करती है।

हिमालय पर्वत की उपस्थिति

भारत की जलवायु को निर्धारित में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्रीष्मकाल में हिमालय दक्षिण पश्चिमी मानसूनी हवाओं को रोककर देश में पर्याप्त वर्षा कराता है, जबकि शीतकाल में साइबेरिया की ठंडी हवाओं को रोककर देश को अपेक्षाकृत गर्म रखता है।

जल तथा स्थल में तापमान की असमानता

भारत तीन ओर से महासागरीय जल से घिरा हुआ है। स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है। जल और स्थल के इस विभेदी तापन के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित हो जाते हैं। वायुदाब में यह भिन्नता मानसूनी पवनों के उत्क्रमण का कारण बनती है।

भारत के अंदरूनी प्रदेशों की समुद्र तट से दूरी

लम्बी तटीय रेखा तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पायी जाती है। जबकि भारत के अंदरूनी भाग समुद्र के समकारी प्रभाव से वंचित रह जाते हैं। अतः इन भागों में विषम जलवायु पायी जाती है।

समुद्र तल से ऊंचाई

ऊंचाई के साथ तापमान घटता है। इस कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होते हैं। जैसे- आगरा और दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं। किंतु जनवरी माह में आगरा का तापमान 16℃ जबकि दार्जिलिंग का 4℃ होता है।

मृदा किसे कहते हैं?

उच्चावच

भारत का भौतिक स्वरूप तापमान, वायुदाब, पवनों की गति, पवनों की दिशा आदि को प्रभावित करता है। जैसे- जून और जुलाई के बीच पश्चिमी घाट तथा असम के पवन अभिमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं। जबकि इसी दौरान पश्चिमी घाट से लगा दक्षिणी पठार पवन विमुखी स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

मध्य तथा पश्चिम एशिया की पवनें

शीत ऋतु में भारत का मौसम मध्य तथा पश्चिम एशिया में वायुदाब के वितरण से प्रभावित होता है। मध्य एशिया के उच्च वायुदाब केन्द्र से बाहर की ओर चलने वाली धरातलीय पवनें भारत में शुष्क महाद्वीपीय पवनों के रूप में पहुँचती हैं। ये महाद्वीपीय पवनें उत्तर-पश्चिमी भारत में व्यापारिक पवनों के सम्पर्क में आती हैं।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

Solution : भारत की जलवायु को मुख्य रूप से तीन कारक प्रभावित करते हैं। ये हैं अक्षांश, ऊँचाई, वायुदाब एवं पवनें।

जलवायु को निर्धारित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक.
स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार (Position and Latitudinal Extent).
समुद्र से दूरी (Distance From The Sea).
उत्तर पर्वतीय श्रेणियाँ (Northern Mountain Ranges).
स्थलाकृति (Topography).
मानसून पवनें (Monsoon Winds) ... .
ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation).

निम्नलिखित में से कौन जलवायु का कारक है?

स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार,समुद्र से दूरी, समुद्री धाराएं, पर्वत मालाओं की स्थिति, भूमि की ढाल, मिट्टी की प्रकृति इत्यादि जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक है।

जलवायु कारक क्या है?

ये जलवायु कारक निम्नानुसार हैं: ऊंचाई और अक्षांश, इलाके का झुकाव, पानी, महासागर की धाराएं, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, वायुमंडलीय दबाव, बादल, हवा और सौर विकिरण। जैसा कि आप देख सकते हैं, कई जलवायु कारक हैं और उनके मूल्य लगातार बदल सकते हैं। ये सभी कारक एक या दूसरे तरीके से हस्तक्षेप करते हैं।