राम ने अंगद को लंका क्यों भेजा था? - raam ne angad ko lanka kyon bheja tha?

अंगद रामायण का एक पात्र, पंचकन्या में से एक तारा तथा किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र और सुग्रीव का भतीजा, रावण की लंका को ध्वस्त करने वाली राम सेना का एक प्रमुख योद्धा था। बाली की मृत्यु के उपरांत सुग्रीव किष्किंधा का राजा और अंगद युवराज बना। तारा तथा अंगद अपने दूत-कर्म के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए। राम ने उनको रावण के पास दूत बनाकर भेजा था। वहां की राजसभा का कोई भी योद्धा उनका पैर तक नहीं डिगा सका।

अंगद संबंधी प्राचीन आख्यानों में केवल वाल्मीकि रामायण ही प्रमाण है। यद्यपि वाल्मीकि के अंगद में हनुमान के समान बल, साहस, बुद्धि और विवेक है परंतु उनमें हनुमान जैसी हृदय की सरलता और पवित्रता नहीं है।

सीता शोध में विफल होने पर जब वानर प्राण दंड की संभावना से भयभीत होकर विद्रोह करने पर तत्पर दिखाई पड़ते हैं तब अंगद भी विचलित हो जाते हैं। यदि वे अंततोगत्वा कर्तव्य पथ पर दृढ़ रहते हैं तो इसका कारण हनुमान के विरोध की आशंका ही है।

ऐसे में प्रभु श्रीराम की नजर अंगद पर जा टिकी। प्रभु श्रीराम ने अंगद से कहा कि हे अंगद! रावण के द्वार जाओ। कुछ सुलह हो जाए, उनके और हमारे विचारों में एकता आ जाए, जाओ तुम उनको शिक्षा दो। ताकी युद्ध ना हो।...अंगद ने भी प्रभु श्रीराम के द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को बखूबी संभाला।

जब अंगद रावण की सभा में पहुंचे तो वहां नाना प्रकार के वैज्ञानिक भी विराजमान थे, वण और उनके सभी पुत्र विराजमान थे। रावण ने भारी सभा में अंगद का अपमान किया तो अंगद ने भी रावण को खूब खरी खोटी सुनाई जिसके चलते रावण आगबबूला हो गया। रावण ने कहा कि यह क्या उच्चारण कर रहा है? यह कटु उच्चारण कर रहा है। इस मूर्ख वानर को पकड़ लो।

तब अंगद ने कहा कि मैं प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूं, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस पग को यदि कोई एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर देगा तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाऊंगा। अंगद ने प्राण की क्रिया की और उनका शरीर विशाल एवं बलिष्‍ठ बन गया। तब उन्होंने भूमि पर अपना पैर स्थिर कर दिया।

राजसभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया।

सरल भाषा में अंत में रावण जब खुद अंगद के पांव उठाने आया तो अंगद ने कहा कि मेरे पांव क्यों पकड़ते हो पकड़ना है तो मेरे स्वामी राम के चरण पकड़ लो वह दयालु और शरणागतवत्सल हैं। उनकी शरण में जाओ तो प्राण बच जाएंगे अन्यथा युद्घ में बंधु-बांधवों समेत मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। यह सुनकर रावण ने अपनी इज्जत बचाने में ही अपनी भलाई समझी।

जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥

कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥

सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥

तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥2॥

गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है। उक्त चौपाई में उन्हीं चौदह गुणों की चर्चा की गई है।

दरअसल, हनुमान, जामवंत और अंगद तीनों ही प्राण विद्या में पारंगत थे। इस प्राण विद्या के बल पर ही वे जो चाहे कर सकते थे। अंगद जब रावण की सभा में गए तो उन्होंने इसी प्राण विद्या के बल पर अपना शरीर बलिष्ठ और पैरों को इतना दृढ़ कर लिया था कि उसे हिलाना किसी के भी बस की बात नहीं थी। यह प्राणा विद्या का ही कमाल था।

श्रीराम द्वारा अंगद के पिता का वध करने बाद भी अंगद राम की सेना में कैसे?

देशकालौ भजस्वाद्य क्षममाण: प्रियाप्रिये।

सुखदु:खसह: काले सुग्रीववशगो भव।।-रामायण

अंगद के पिता बालि का प्रभु श्रीराम ने वध कर दिया था। जब श्रीराम ने बालि को बाण मारा तो वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा था। इस अवस्था में जब पुत्र अंगद उसके पास आया तब बालि ने उसे ज्ञान की मुख्यत: तीन बातें बताई थीं। पहली देश काल और परिस्थितियों को समझो। दूसरी किसके साथ कब, कहां और कैसा व्यवहार करें, इसका सही निर्णय लेना चाहिए और तीसरी पसंद-नापसंद, सुख-दु:ख को सहन करना चाहिए और क्षमाभाव के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए। बालि ने अपने पुत्र अंगद से ये बातें ध्यान रखते हुए कहा कि अब से तुम सुग्रीव के साथ रहो।

अंगद को ही क्यों भेजा दूत बनाकर?

जब श्रीराम जी लंका पहुंच गए तब उन्होंने रावण के पास अपना दूत भेजने का विचार किया। सभा में सभी ने प्रस्ताव किया कि हनुमानजी को ही दूत बनाकर भेजना चाहिए। लेकिन राम जी ने यह कहा कि अगर रावण के पास फिर से हनुमान जी को भेजा गया तो यह संदेश जाएगा कि राम की सेना में अकेले हनुमान ही महावीर हैं। इसलिए किसी अन्य व्यक्ति को दूत बनाकर भेजा जाना चहिए जो हनुमान की तरह पराक्रमी और बुद्धिमान हो। ऐसे में प्रभु श्री राम की नजर अंगद पर जा टिकी। अंगद ने भी प्रभु श्री राम के द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को बखूबी संभाला।

युद्ध करने के पूर्व प्रभु श्रीराम ने अंगद को रावण की सभा में अपना दूत बनाकर सुलह करने के लिए भेजा था। प्रभु श्रीराम ने अंगद से कहा कि हे अंगद! रावण के द्वार जाओ। कुछ सुलह हो जाए, उनके और हमारे विचारों में एकता आ जाए, जाओ तुम उनको शिक्षा दो।

जब अंगद रावण की सभा में पहुंचे तो वहां नाना प्रकार के वैज्ञानिक भी विराजमान थे, वण और उनके सभी पुत्र विराजमान थे। रावण ने कहा कि आओ! तुम्हारा आगमन कैसे हुआ? अंगद ने कहा कि प्रभु मैं इसलिए आया हूं कि राम और तुम्हारे दोनों के विचारों में एकता आ जाए। तुम्हारे यहां संस्कृति के प्रसार में अभाव आ गया है, अब मैं उस अभाव को शांत करने आया हूं। चरित्र की स्थापना करना राजा का कर्त्तव्य होता है, तुम्हारे राष्ट्र में चरित्र हीनता आ गई है, तुम्हारा राष्ट्र उत्तम प्रतीत नहीं हो रहा है इसलिए मैं आज यहां आया हूं। रावण ने कहा कि यह तो तुम्हारा विचार यथार्थ है परन्तु मेरे यहां क्या सूक्ष्मता है?

अब अंगद बोले तुम्हारे यहां चरित्र की सूक्ष्मता है। राजा के राष्ट्र में जब चरित्र नहीं होता तो संस्कृति का विनाश हो जाता है। संस्कृति का विनाश नहीं होना चाहिए, संस्कृति का उत्थान करना है। संस्कृति यही कहती है कि मानव के आचार व्यव्हार को सुन्दर बनाया जाए, महत्ता में लाया जाए, एक दूसरे की पुत्री की रक्षा होनी चाहिए। वह राजा के राष्ट्र की पद्धति कहलाती है।

रावण ने पूछा क्या मेरे राष्ट्र में विज्ञान नहीं? अंगद बोले कि हे रावण! तुम्हारे राष्ट्र में विज्ञान है परन्तु विज्ञान का क्या बनता है? एक मंगल की यात्रा कर रहा है परन्तु मंगल की यात्रा का क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में अग्निकांड हो रहे हैं। हे रावण! तुम सूर्य मंडल की यात्रा कर रहे हो, उस सूर्य की यात्रा करने से क्या बनेगा, जब तुम्हारे राष्ट्र में एक कन्या का जीवन सुरक्षित नहीं। तुम्हारे राष्ट्र का क्या बनेगा?

रावण ने कहा कि यह तुम क्या उच्चारण कर रहे हो, तुम अपने पिता की परंपरा शांत कर गए हो। अंगद ने कहा कदापि नहीं, में इसलिए आया हूं कि तुम्हारे राष्ट्र और अयोध्या दोनों का समन्वय हो जाए। इस पर रावण मौन हो गया। नरायान्तक बोले कि भगवन! इसको विचारा जाए, यह दूत है, यह क्या कहता है? अंगद बोले यदि भगवन! राम से तुम अपने विचारों का समन्वय कर लोगे तो राम माता सीता को लेकर चले जाएंगे।

रावण ने कहा कि यह क्या उच्चारण कर रहा है? मैं धृष्ट नहीं हूं। अंगद बोले यही धृष्टता है संसार में, किसी दूसरे की कन्या को हरण करके लाना एक महान धृष्टता है। तुम्हारी यह धृष्टता है कि राजा होकर भी परस्त्रीगामी बन गए हो। जो राजा किसी स्त्री का अपमान करता है उस राजा के राष्ट्र में अग्निकाण्ड हो जाते हैं।

तब अंगद ने अपना पैर जमा दिया

रावण ने कहा कि यह कटु उच्चारण कर रहा है। अंगद ने कहा कि मैं तुम्हें प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूं, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस पग को यदि कोई एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर देगा तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाऊंगा। अंगद ने प्राण की क्रिया की और उनका शरीर विशाल एवं बलिष्‍ठ बन गया। तब उन्होंने भूमि पर अपना पैर स्थिर कर दिया।

राजसभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया।

सरल भाषा में अंत में रावण जब खुद अंगद के पांव उठाने आया तो अंगद ने कहा कि मेरे पांव क्यों पकड़ते हो पकड़ना है तो मेरे स्वामी राम के चरण पकड़ लो वह दयालु और शरणागतवत्सल हैं। उनकी शरण में जाओ तो प्राण बच जाएंगे अन्यथा युद्घ में बंधु-बांधवों समेत मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। यह सुनकर रावण ने अपनी इज्जत बचाने में ही अपनी भलाई समझी।

जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥

कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥

सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥

तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥2॥

गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है। उक्त चौपाई में उन्हीं चौदह गुणों की चर्चा की गई है।

राम ने अंगद को का क्यों भेजा?

राम जी ने कहा कि क्यों न महाबलशाली बालि के पुत्र कुमार अंगद को दूत बनाकर भेजा जाए। यह पराक्रमी और बुद्घिमान भी हैं। इनके जाने से रावण की सेना का मनोबल कमजोर होगा क्योंकि उन्हें लगेगा कि राम की सेना में अकेले हनुमान ही नहीं कई पराक्रमी मौजूद हैं। अंगद ने रामचन्द्र जी के विश्वास को बनाए रखा।

राम ने अंगद को रावण के दरबार में क्यों भेजा?

रामायण में सीता की खोज करते हुए श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ लंका पहुंच गए थे। श्रीराम रावण से युद्ध टालना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक अंतिम प्रयास और किया। श्रीराम ने अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजा, ताकि रावण सीता को लौटा दे और युद्ध टल सके।

युद्ध प्रारंभ होने से पहले राम ने अंगद को कहाँ भेजा?

अनिरुद्ध जोशी राम की सेना में सुग्रीव के साथ वानर राज बालि और अप्सरा तारा का पुत्र अंगद भी था। राम और रावण युद्ध के पूर्व भगवान श्रीराम ने अंगद को अपना दूत बनाकर लंका भेजा था।

अंगद किसका अवतार है?

अंगद किसका पुत्र था - रामायण के अनुसार अंगद महाबली किष्कीन्धा के इंद्र पुत्र बानर राज बाली तथा पंच कन्याओं में से एक तारा का पुत्र तथा। बाली और तारा को बहुत मुश्किलों के पश्चात् ही अंगद पुत्र रूप में प्राप्त हुआ था। अंगद रामायण और राम - रावण के युद्ध का एक प्रमुख पात्र भी था।