भूमध्य रेखा में कोरिओलिस बल शून्य क्यों होता है? - bhoomadhy rekha mein koriolis bal shoony kyon hota hai?

अब देखते हैं उन महत्वपूर्ण कारणों को, जो पवन के क्षैतिज रूप से चलने के लिए उत्तरदायी हैं, या पवन की दिशा और गति को प्रभावित करते हैं-

(1) कोरिओलिस बल (Coriolis force)

कोरिओलिस बल वह अदृश्य बल है जो वस्तुओं को विक्षेपित करता हुआ प्रतीत होता है (Coriolis force is the invisible force that appears to deflect the objects.)

सरल शब्दों में, कोरिओलिस प्रभाव पृथ्वी के चारों ओर लंबी दूरी की यात्रा करने वाली चीजों को एक सीधी रेखा के बजाय एक वक्र पर गतिमान (Move at a curve) करता हुआ दिखाई देता है.

कोई भी चीज जब घूमती है, तो एक झटका लगता है या एक बल उत्पन्न होता है, जिसे ही कोरियोलिस बल कहते हैं. इसे ‘फेरेल का नियम’ भी कहते हैं.

जैसे आप किसी गोल-गोल घूमते हुए चक्के पर बैठकर सामने की तरफ बॉल फेंकिए और देखिये कि बॉल किस स्पीड से किस तरफ जा रही है.

जैसे नीचे चित्र में एक दोस्त पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर खड़े होकर अपने दूसरे दोस्त के पास गेंद फेंकता है, जो भूमध्य रेखा पर खड़ा है. पृथ्वी के घूमने के कारण दूसरा दोस्त उस गेंद को कैच नहीं कर पाएगा, क्योंकि वह गेंद दूसरे दोस्त के पास जाने की बजाय पश्चिम दिशा की तरफ कहीं पर गिरेगी.

भूमध्य रेखा में कोरिओलिस बल शून्य क्यों होता है? - bhoomadhy rekha mein koriolis bal shoony kyon hota hai?
भूमध्य रेखा में कोरिओलिस बल शून्य क्यों होता है? - bhoomadhy rekha mein koriolis bal shoony kyon hota hai?

पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना हवा की दिशा को प्रभावित करता है और इस बल को कोरिओलिस बल कहा जाता है. कोरिओलिस प्रभाव केवल हवा की दिशा को प्रभावित करता है.

जब पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, तो हवाओं को भी एक झटका लगता है. इस झटके के कारण वायु की दिशा में विक्षेप या विचलन (Deflection) हो जाता है. वायु की दिशा को विक्षेपित करने वाले इसी बल को कोरिओलिस बल कहते हैं. या पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगाए गए बल को कोरिओलिस बल के रूप में जाना जाता है.

Deflect – मोड़ना, हटाना, झुकाना
विक्षेप का मतलब होता है- फेंकना या झटका देना
विचलन का अर्थ होता है- अपने पथ से हट जाना

तो कोरिओलिस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी ओर, और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर विक्षेपित (Deflect) हो जाती हैं.

पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, तो कोरिओलिस बल उत्तर-दक्षिण की ओर कार्य करता है.

यह नियम स्थायी पवनों, छोटे चक्रवातों और प्रतिचक्रवातों पर लागू होता है. इस नियम का प्रभाव महासागरीय धाराओं, ज्वारीय गतियों (समुद्री लहरों का ऊपर उठना), रॉकेटों आदि पर भी देखा जाता है. मौसम में बदलाव, चक्रवात और व्यापारिक हवाएँ, कोरिओलिस प्रभाव के प्रभाव के उदाहरण हैं.

कोरिओलिस बल की तीव्रता पवनों की स्पीड और अक्षाशों के अनुसार बदलती रहती है. यानी जब पवनों की स्पीड ज्यादा होती है, तो विक्षेपण भी ज्यादा होता है.

भूमध्य रेखा या विषुवत रेखा से ध्रुवों की तरफ जाने पर विक्षेपण की दर बढ़ती जाती है.

भूमध्य रेखा पर कोरिओलिस बल शून्य होता है और ध्रुवों पर सबसे ज्यादा होता है.

भूमध्य रेखा पर कोरिओलिस बल शून्य होने के कारण वहां पवनों का विक्षेपण नहीं होता है, और इसी कारण भूमध्य रेखा पर उष्णकटिबंधीय चक्रवात नहीं आते हैं.

अपकेन्द्रीय बल (Centripetal force)

अपकेन्द्रीय बल (Centripetal force) वह बल होता है, जिसके कारण किसी गतिशील वस्तु (Moving object) में, केंद्र से दूर भागने की प्रवृत्ति होती है.

पृथ्वी ध्रुवों की तुलना में भूमध्य रेखा पर तेजी से घूमती है.

पृथ्वी जब अपने अक्ष पर घूमती है या घूर्णन करती है, तो भूमध्य वृत्त पर सबसे तेज गति होती है और सबसे कम गति ध्रुवों पर होती है

पृथ्वी भूमध्य रेखा पर चौड़ी होने के कारण भूमध्यरेखीय क्षेत्र लगभग 1,600 किलोमीटर प्रति घंटे से दौड़ लगाते हैं. ध्रुवों पर, पृथ्वी 0.00008 किलोमीटर प्रति घंटे की दर से घूमती है.

तो भूमध्य वृत्त पर तेज गति के कारण एक अपकेंद्रीय बल काम करता है, जिससे हवाएं ऊपर उठती हैं या इस स्थान को छोड़कर चली जाती हैं, जिससे यह क्षेत्र निम्न वायुदाब (Low air pressure) का क्षेत्र बन जाता है.

(2) घर्षण बल (Frictional force)

घर्षण का अर्थ है- रगड़ने की क्रिया या रगड़

जब हम धरती पर रखी किसी वस्तु को धक्का देते हैं, तो भले ही हम उस वस्तु को खुद से न रोकें, फिर भी वह वस्तु कुछ दूर तक खिसककर धीरे-धीरे अपने आप रुक जाती है. यानी उस वस्तु पर कोई बल अपने आप काम कर रहा है. यही बल घर्षण बल (Frictional force) कहलाता है.

सतह पर यह बल बढ़ जाता है. अगर सतह चिकनी है, तो दोनों वस्तुओं के बीच घर्षण बल कम हो जाता है (यानी चीजें आसानी से खिसकती हैं), जबकि खुरदरी सतह पर घर्षण बल बढ़ता है (यानी चीजें आसानी से नहीं खिसकती या रगड़ती हैं).

पवन पर घर्षण बल

सतह पर वायु घर्षण का अनुभव करती है. धरातल पर बहने वाली पवनों पर भी घर्षण बल काम करता है, जो पवनों की गति (स्पीड) और दिशा को प्रभावित करता है. घर्षण बल के कारण पवन की स्पीड में कमी आती है. घर्षण बल धरातल पर अधिकतम और समुद्र की सतह पर न्यूनतम होता है.

धरातल पर बहने वाली पवनों पर घर्षण बल ज्यादा काम करता है, इसलिए धरातल पर पवनों का वेग या स्पीड कम होती है. जबकि समुद्री सतह पर चलने वाली पवनों पर घर्षण बल कम होता है, इसलिए समुद्री सतह पर पवनों की स्पीड ज्यादा होती है.

ऊँचाई के साथ घर्षण का प्रभाव कम होता जाता है. घर्षण बल का प्रभाव आमतौर पर 1-3 किमी की ऊंचाई तक फैला होता है.

धरातल से लगभग 1000 मीटर तक की ऊँचाई वाले भाग को घर्षण स्तर कहा जाता है. इसके ऊपर वायुमंडल में घर्षण बल का प्रभाव शून्य के बराबर हो जाता है.

(3) दाब प्रवणता (Pressure Gradient)

हवा हमेशा उच्च दाब से निम्न दाब की ओर चलती है.

अगर दो स्थानों के वायुदाब में अंतर है, तो इससे पवनों की दिशा और गति में बदलाव होता है.

देखिये-
जब सूर्य की तेज किरणों के कारण सागर के ऊपर चलने वाली हवाएं गर्म हो जाती हैं, तो वे हवाएं गर्म होकर तेजी से ऊपर उठने लगती हैं और अपने पीछे एक कम दबाव का क्षेत्र (Area of ​​Low Pressure) छोड़ जाती हैं (यानी यहां वायुदाब कम हो जाता है). हवा के ऊपर उठ जाने के कारण वहां एक खालीपन पैदा हो जाता है. इस खाली जगह को भरने के लिए आसपास की ठंडी हवाएं तेजी से दौड़कर आती हैं. यह चक्र चलता रहता है.

तो, वायुदाब में अंतर एक बल उत्पन्न करता है, जिसे वायुदाब प्रवणता कहते हैं. या

वायुदाब में अंतर के कारण उत्पन्न हुए बल को वायुदाब प्रवणता बल कहते हैं.

दो स्थानों के बीच वायुदाब में परिवर्तन की दर वायुदाब प्रवणता (Pressure Gradient) कहलाती है.

वायुदाब प्रवणता पवन के प्रवाह का प्राथमिक कारण है.

दाब प्रवणता जितना अधिक होगी (यानी वायुदाब में अंतर जितना ज्यादा होगा), पवनों का वेग उतना ही ज्यादा होगा और पवनों की दिशा उतनी ही ज्यादा विक्षेपित (Deflection) होगी.


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