भिंडी को छत्तीसगढ़ी में क्या कहते हैं? - bhindee ko chhatteesagadhee mein kya kahate hain?

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छत्तीसगढ़ में टमाटर को पताल और बंगाला कहा जाता है वही खरबूज को बंगला कहा जाता है भिंडी को रन के लिए कहा जाता है नींबू के लिंबू का तालिम बाबू कहा जाता है और बैगन को घटा कहा जाता है

chattisgarh me tamatar ko patal aur bangala kaha jata hai wahi kharbuja ko bangla kaha jata hai bhindi ko run ke liye kaha jata hai nimbu ke limbu ka talim babu kaha jata hai aur baigan ko ghata kaha jata hai

छत्तीसगढ़ में टमाटर को पताल और बंगाला कहा जाता है वही खरबूज को बंगला कहा जाता है भिंडी को

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भिंडी को छत्तीसगढ़ी में क्या कहते हैं? - bhindee ko chhatteesagadhee mein kya kahate hain?
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छत्तीसगढ़ी भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में बोली जाने वाली भाषा है। यह हिन्दी के अत्यन्त निकट है और इसकी लिपि देवनागरी है। छत्तीसगढ़ी का अपना समृद्ध साहित्य व व्याकरण है।

छत्तीसगढ़ी २ करोड़ लोगों की मातृभाषा है। यह पूर्वी हिन्दी की प्रमुख बोली है और छत्तीसगढ़ राज्य की प्रमुख भाषा है। राज्य की ८२.५६ प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में तथा शहरी क्षेत्रों में केवल १७ प्रतिशत लोग रहते हैं। यह निर्विवाद सत्य है कि छत्तीसगढ़ का अधिकतर जीवन छत्तीसगढ़ी के सहारे गतिमान है। यह अलग बात है कि गिने-चुने शहरों के कार्य-व्यापार राष्ट्रभाषा हिन्दी व उर्दू, पंजाबी, उड़िया, मराठी, गुजराती, बाँग्ला, तेलुगु, सिन्धी आदि भाषा में एवं आदिवासी क्षेत्रों में हलबी, भतरी, मुरिया, माडिया, पहाड़ी कोरवा, उराँव आदि बोलियो के सहारे ही संपर्क होता है। इस सबके बावजूद छत्तीसगढ़ी ही ऐसी भाषा है जो समूचे राज्य में बोली, व समझी जाती है। एक दूसरे के दिल को छू लेने वाली यह छत्तीसगढ़ी एक तरह से छत्तीसगढ़ राज्य की संपर्क भाषा है। वस्तुतः छत्तीसगढ़ राज्य के नामकरण के पीछे उसकी भाषिक विशेषता भी है।

छत्तीसगढ़ी की प्राचीनता[संपादित करें]

सन् ८७५ ईस्वी में बिलासपुर जिले के रतनपुर में चेदिवंशीय राजा कल्लोल का राज्य था। तत्पश्चात एक सहस्र वर्ष तक यहाँ हैहयवंशी नरेशों का राजकाज आरम्भ हुआ। कनिंघम (१८८५) के अनुसार उस समय का “दक्षिण कोसल” ही “महाकोसल” था और यही “बृहत् छत्तीसगढ़” था, जिस में उड़ीसा, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के कुछ जिले, अर्थात् सुन्दरगढ़, संबलपुर, बलाँगीर, बौदफुलवनी, कालाहाँड़ी, कोरापुट (वर्तमान ओड़िसा में), भंडारा, चंद्रपुर, शहडोल, मंडला, बालाघाट (वर्तमान मध्य प्रदेश में) शामिल थे। उत्तर में स्थित अयोध्या राज्य कोशल राज्य कहलाया जहाँ की बोली अवधी है। दक्षिण कौशल में अवधी की ही सहोदरा छत्तीसगढ़ी कहलाई। हैहयवंशियों ने इस अंचल में इसका प्रचार कार्य प्रारम्भ किया जो यहाँ पर राजकीय प्रभुत्व वाली सिद्ध हुई। इससे वे बोलियाँ बिखर कर पहाड़ी एवं वन्याञ्चलों में सिमट कर रह गई और इन्हीं क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ी का प्राचीन रूप स्थिर होने लगा।

छत्तीसगढ़ी के प्रारम्भिक लिखित रूप के बारे में कहा जाता है कि वह १७०३ ईस्वी के दन्तेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर के मैथिल पण्डित भगवान मिश्र द्वारा लिखित शिलालेख में है।

श्री प्यारेलाल गुप्त अपनी पुस्तक " प्राचीन छत्तीसगढ़" में बड़े ही रोचकता से लिखते है - " छत्तीसगढ़ी भाषा अर्धमागधी की दुहिता एवं अवधी की सहोदरा है " (पृ २१ प्रकाशक रविशंकर विश्वविद्यालय, १९७३)। " छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से आज से लगभग १०८० वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था।"

डॉ॰ भोलानाथ तिवारी, अपनी पुस्तक " हिन्दी भाषा" में लिखते है - " छत्तीसगढ़ी भाषा भाषियों की संख्या अवधी की अपेक्षा कहीं अधिक है और इस दृष्टि से यह बोली के स्तर के ऊपर उठकर भाषा का स्वरुप प्राप्त करती है।"

भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। इसीलिये भाषा और साहित्य साथ-साथ पनपते है। परन्तु हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रूप में नहीं हुई है। अनेक लेखकों का मत है कि इसका कारण यह है कि अतीत में यहाँ के लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी के प्रति ज़रा उदासीन रहे।

इसीलिए छत्तीसगढ़ी भाषा में जो साहित्य रचा गया, वह करीब एक हज़ार साल से हुआ है।

अनेक साहित्यको ने इस एक हजार वर्ष को इस प्रकार विभाजित किया है :

  • (१) गाथा युग (सन् १००० से १५०० ई. तक)
  • (२) भक्ति युग - मध्य काल (सन् १५०० से १९०० ई. तक)
  • (३) आधुनिक युग (सन् १९०० से आज तक)

ये विभाजन साहित्यिक प्रवृत्तियों के अनुसार किया गया है यद्यपि प्यारेलाल गुप्त जी का कहना ठीक है कि - " साहित्य का प्रवाह अखण्डित और अव्याहत होता है।" श्री प्यारेलाल गुप्त जी ने बड़े सुन्दर अन्दाज़ से आगे कहते है - " तथापि विशिष्ट युग की प्रवृत्तियाँ साहित्य के वक्ष पर अपने चरण-चिह्म भी छोड़ती है : प्रवृत्यानुरुप नामकरण को देखकर यह नहीं सोचना चाहिए कि किसी युग में किसी विशिष्ट प्रवृत्तियों से युक्त साहित्य की रचना ही की जाती थी। तथा अन्य प्रकार की रचनाओं की उस युग में एकान्त अभाव था।"

यह विभाजन किसी प्रवृत्ति की सापेक्षिक अधिकता को देखकर किया गया है। एक और उल्लेखनीय बत यह है कि दूसरे आर्यभाषाओं के जैसे छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है।

छत्तीसगढ़ी में भिंडी को क्या बोलते हैं?

अम्मट का अर्थ क्या है। भिंडी के लिए छत्तीसगढ़ी में शब्द है।

धन्यवाद को छत्तीसगढ़ी भाषा में क्या कहते हैं?

धन्यवाद माने आभार व्यक्त करई। छत्तीसगढ़ी म कोनो हमर बर हने बुता करथे त सिरिफ आभार भर व्यक्त नइ करन, संग म वोला सुभकामना घलो देथन। वोला कहिथन- बने करे जी, भगवान तोर भला करय या तोर भला होय, तोर जस होय आदि आदि।

छत्तीसगढ़ में नमस्ते को क्या बोलते हैं?

अभिवादन : 🔸(उम्र में बड़े रिश्तेदार या अन्य) प्रणाम, नमस्कार – पाँव परत हौं, पा लागी! 🔸(आशीर्वाद )खुश रहो, आयुष्मान, जीते रहो – खुसी रहौ, जियत रहौ ,अम्मर रहौ । 🔸प्रणाम (चाचा, मामा, नाना, अन्य संबंधी) - पा लागी कका, ममा, नना,फूफू आदि ।

छत्तीसगढ़ी को हिंदी में क्या कहते हैं?

[सं-स्त्री.] - छत्तीसगढ़ की बोली। [वि.] छत्तीसगढ़ का रहने वाला।