बिहू के पहले दिन को क्या कहते हैं? - bihoo ke pahale din ko kya kahate hain?

भारत के सभी राज्य के कुछ अपने त्योहार भी है जो सिर्फ उन्ही राज्य में मनाए जाते हैं। बिहू भारत के असम राज्य में मनाया जाने वाला त्यौहार है। तीनों प्रकार के बिहूओं का सांस्कृतिक, सामाजिक तथा आर्थिक महत्त्व है । बोहाग बिहू सभी में सबसे लोकप्रिय है और वसंत ऋतु के आगमन के निशान हैं। पारंपरिक लोक गीत और नृत्य इस त्योहार का मुख्य आकर्षण हैं। बोहाग बिहू अप्रैल में, अक्टूबर में कटी बीहु और हर साल जनवरी माह में माघ बीहू मनाया जाता है। हर अवसर का अपना महत्व है सांस्कृतिक परंपराएं दुनिया भर में त्योहार को बहुत ही मनोरंजक और लोकप्रिय बनाती हैं। बिहू असम के लोगों की भावना से जुड़ा हुआ पर्व है और असम की एकता का प्रतीक है।

असम में तीन तरह के बिहू मनाए जाते हैं, जो तीन ऋतुओं के प्रतीक हैं। पहला बिहू जिसे बोहाग बिहू (Bohag Bihu) या रंगोली बिहू (Rongali Bihu) कहते हैं, अप्रैल में चैत्र या बैसाख में मनाया जाता है। यह असम का एक मुख्य पर्व भी है। दुसरे बिहू को काति बिहू (Kati Bihu) या कंगाली बिहू (Kongali Bihu) कहा जाता है। यह कार्तिक महीने (अक्तूबर) में मनाया जाता है। इसके बाद मनाया जाता है माघ बिहू या भोगली बिहू (Bhogali Bihu) (यह मकर संक्रांति, 14 जनवरी) को मनाया जाता है।


बोहाग बिहू (Bohag Bihu)

यह बैसाख महीने का संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू होता है। रोंगाली बिहू असमिया नए साल के रूप में मनाया जाता है। असम के अलाव भारतीय उपमहाद्वीप, पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य क्षेत्रों में जो हिंदू कैलेंडर और बौद्ध कैलेंडर का पालन करते हैं, वहां भी इसे नव वर्ष की तरह मनाया जाता है।

यह बिहू सात दिनो तक चलता है। इसी दौरान सात दिन के अंदर 101 तरह के हरी पत्तियों वाला साग खाने की भी रीति है। सात दिनों को छोट बिहू (Chot Bihu), गोरु बिहू (Goru Bihu), मनु बिहू (Manuh Bihu), कुटुम बिहू (Kutum Bihu), सेन्ही बिहू (Senehi Bihu), मेला बिहू (Mela Bihu) और चेरा बिहू (Chera Bihu) के रूप में जाना जाता है।

गोरु बिहू (Goru Bihu)  - गाय बिहू कहा जाता है। इस दिन लोग सुबह अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं। गायों को नहलाने के लिए रात में ही भिगो कर रखी गई कलई दाल और कच्ची हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। उसके बाद वहीं पर उन्हें लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है। दिन लोग दिन में चावल नहीं खाते, केवल दही चिवड़ा ही खाते हैं।


बिहू नाच:

बिहू के अवसर पर संक्रांति के दिन से बिहू नाच होता है इसमें 20-25 की मंडली होती है जिसमें युवक एवं युवतियां साथ-साथ ढोल, पेपा, गगना, ताल, बांसुरी इत्यादि के साथ अपने पारंपरिक परिधान में एक साथ बिहू नाच करते हैं।


काति बिहू (Kati Bihu) 

धान लगाने के बाद जब धान की फसल में अन्न लगना शुरू होता है उस समय नए तरह के कीड़े धान की फसल को नष्ट कर देते हैं। इससे बचाने के लिए कार्तिक महीने की संक्रांति के दिन में शुरू होता है काति बिहू।

इस बिहू को काति इसलिए कहा गया है कि उस समय फसल हरी-भरी नहीं होती है इसलिए इस बिहू को काति बिहू मतलब कंगाली बिहू कहा जाता है। संक्रांति के दिन में आंगन में तुलसी का पौधे लगाया जाता है और इसमें प्रसाद चढ़ा कर दीया जलाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि खेती ठीक से रखें।

किसान के पास धन नहीं होता, इसीलिए यह महाभोज या उल्लास का पर्व न होकर प्रार्थना व ध्यान का दिन होता है। जिस वजह से इसे "कंगाली–बिहू" भी कहते हैं।


भोगली बिहू (Bhogali Bihu)

माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस बिहू का नाम भोगाली इसलिए रखा गया है कि इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है।

संक्रांति के पहले दिन को उरूका बोला जाता है और उसी रात को गांव के लोग मिलकर खेती की जमीन पर खर के मेजी बनाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोज करते हैं। उसमें कलाई की दाल खाना जरूरी होता है। और रात में आग जलाकर लोग रात भर जागते रहते हैं और सुबह सूर्य उगने से पहले नदी, तालाब या किसी कुंड में स्नान करते हैं। स्नान के बाद खर से बने हुए मेजी को जला कर ताप लेने का रिवाज है।  

14 अप्रैल से ​बोहाग बिहू पर्व की शुरुआत हो चुकी है. ये पर्व पूरे एक सप्ताह तक मनाया जाता है. इस पर्व से असम में नव वर्ष का प्रारंभ होता है. इस दिन से फसल की कटाई, शादी-ब्याह के शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो जाती है.

बिहू (Bihu) असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों का प्रमुख त्योहार है जो साल में तीन बार मनाया जाता है. जनवरी महीने के मध्य में भोगाली बि​हू मनाया जाता है, इसे माघ बिहू भी कहते हैं. अप्रैल के मध्य में बोहाग बिहू (Bohag Bihu) मनाया जाता है जो रोंगाली बिहू या हतबिहू के नाम से भी प्रचलित है. इसके अलावा तीसरी बार ये पर्व अक्टूबर के मध्य में मनाया जाता है, जिसे कंगाली या काती बिहू के नाम से जाना जाता है. लेकिन बोहाग बिहू से असम में नव वर्ष (New Year of Assam) का प्रारंभ माना जाता है. ये त्योहार फसलों का त्योहार है ​और किसानों को समर्पित माना जाता है. बोहाग बिहू का पर्व 14 अप्रैल से शुरू हो चुका है. ये त्योहार एक हफ्ते तक मनाया जाता है. जानिए इस पर्व से जुड़ी खास बातें.

चैत्र की संक्रान्ति से शुरु होता है उत्सव

बिहू का उत्सव चैत्र के महीने की संक्रान्ति से शुरु हो जाता है. इस दिन के साथ ही फसल की कटाई, शादी-ब्याह के शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो जाती है. बिहू के पहले दिन गाय पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन सुबह-सुबह गायों को नदी में ले जाकर उन्हें कलई दाल और कच्ची हल्दी से नहलाते हैं. ये चीजें एक रात पहले से ही भिगोकर रख दी जाती हैं. उसके बाद गायों को लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है. माना जाता है कि इससे गाय सालभर कुशलतापूर्वक रहती हैं और परिवार में सुख समृद्धि निवास करती है.

कई कार्यक्रमों का होता है आयोजन

विषु पर्व पर किसान अपनी फसलों की कटाई करते हैं और ईश्वर से भविष्य में फसलों की अच्छी पैदावार की कामना करते हैं. इसके बाद इस मौसम की पहली फसल को अपने देवता शबराई को अर्पित करते हैं. इस एक हफ्ते के बीच कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. यहां की महिलाएं और पुरुष ढोल, बांसुरी, पेपा, ताल की थाप पर पारंपरिक परिधान पहनकर यहां का पारंपरिक बिहू नृत्य करते हैं. मान्यता है कि बिहू पर्व के दौरान ढोल बजाने से आसमान में बादल आ जाते हैं, जिससे बारिश शुरू हो जाती है और खेती अच्छी होती है. असम में इस दौरान ज्यादातर विवाह संपन्न होते हैं.

बनाए जाते हैं लजीज व्यंजन

इस खास मौके पर लजीज व्यंजन भी बनाए जाते हैं. बोहाग बिहू के मौके पर असम के लोगों के बीच दही और चिवड़ा खाने की प्रथा है. इसके अलावा नारियल, चावल, तिल, दूध का इस्तेमाल करके लजीज पकवान बनाए जाते हैं. इस दौरान यहां पर लोगों के ​आपसी मेलजोल का सिलसिला भी चलता है. लोग मच्छी पीतिका, बेंगेना खार, घिला पीठा जैसे व्यंजन मुख्य बनाते हैं और लोगों को खिलाते हैं.

बिहू त्योहार के पहले दिन को क्या कहते हैं?

1. भोगाली या माघ बिहू के पहले दिन को उरुका कहते हैं

भोगली बिहू कब मनाया जाता है?

*भोगाली बिहू मनाते हैं मकर संक्रांति के आसपास पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू मनाते हैं, जो कि जनवरी माह के मध्य में अर्थात मकर संक्रांति के आसपास आता है। इस माघ को बिहू या संक्रांति भी कहते हैं।

बिहू एक वर्ष में कितनी बार मनाया जाता है?

वर्ष में तीन बार बिहू मनाया जाता है। पहला " कंगाली” बिहू है । यह आश्विन मास की सक्रांति के दिन मनाया जाता है

बिहू शब्द का अर्थ क्या है?

बिहु शब्द दिमासा लोगों की भाषा से ली गई है जो की प्राचीन काल से एक कृषि समुदाय है। उनकी सर्वोच्च देवता ब्राई शिबराई या पिता शिबराई हैं। मौसम की पहली फसल अपनी शांति और समृद्धि की कामना करते हुए ब्राई शिबराई के नाम पर अर्पित किया जाता हैं। तो 'बि' मतलब 'पुछना' और 'शु' मतलब पृथ्वी में 'शांति और समृद्धि' हैं।