बच्चों के पेट में इन्फेक्शन क्यों होता है? - bachchon ke pet mein inphekshan kyon hota hai?

In this article

  • पेट में इनफेक्शन या गैस्ट्रोएंटेराइटिस क्या है?
  • शिशुओं में पेट के इनफेक्शन या गैस्ट्रोएंटेराइटिस के क्या कारण होते हैं?
  • मुझे शिशु के पेट के संक्रमण का उपचार कैसे करना चाहिए?
  • शिशु को गैस्ट्रोएंटेराइटिस होने पर डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए?
  • बच्चे को पेट के इनफेक्शन से बचाने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

पेट में इंफेक्शन जिसे अंग्रेजी में स्टमक फ्लू गैस्ट्रोएंटेराइटिस कहा जाता है, पाचन तंत्र की परत में सूजन की वजह से होता है। यदि आपके शिशु को दस्त (डायरिया) है या वह उल्टी कर रहा है, तो हो सकता है उसे गैस्ट्रोएंटेराइटिस हो।

इस लेख में आप पेट में इनफेक्शन के लक्षणों के बारे में जानें, साथ ही जानें कि डॉक्टर के पास कब जाए और कब यह एक आपात स्थिति है।

पेट में इनफेक्शन या गैस्ट्रोएंटेराइटिस क्या है?

पेट में इनफेक्शन को स्टमक फ्लू, गैस्ट्रोएंटेराइटिस या जठरांत्रशोथ कहा जाता है। इसे 'डी और वी' नाम से भी जाना जाता है, जो कि डायरिया (दस्त) और वॉमिटिंग (उल्टी) के संक्षिप्त शब्द हैंं। गैस्ट्रोएंटेराइटिस संक्रमणों के एक समूह का नाम है, जिससे निम्न लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं:

  • पेट में दर्द
  • पानी जैसा पतला मल, दिन में कम से कम तीन बार (डायरिया)
  • उल्टी
  • बुखार
  • ठंड व कंपकंपी लगना और दर्द होना
  • भूख कम लगना    

अधिकांश शिशुओं और बच्चों को साल में कम से कम एक बार तो पेट में गड़बड़ होती ही है। इसकी वजह से दस्त और कई बार उल्टी भी हो सकती है। यह आमतौर पर केवल कुछ ही दिन रहता है और अक्सर चिंता का विषय नहीं होता।

हालांकि, कुछ मामलों में यह बीमारी एक हफ्ते या इससे भी लंबे समय तक बनी रह सकती है। पर्याप्त तरल पदार्थ और प्यारभरी देखभाल से अधिकांश बच्चे जल्द ही सामान्य हो जाते हैं

शिशुओं में पेट के इनफेक्शन या गैस्ट्रोएंटेराइटिस के क्या कारण होते हैं?

विषाणु अधिकांशत: इसकी वजह होते हैं और सबसे आम है रोटावायरस। यह विषाणु आसानी से फैलता है और दूसरे लोगों के संपर्क में आने से भी हो सकता है।

आपके शिशु ने शायद विषाणु से संक्रमित भोजन खाया होगा या विषाणु से संक्रमित व्यक्ति के कप या बर्तनों का इस्तेमाल किया होगा। शिशु को यह बीमारी मल से दूषित किसी चीज को छूने और फिर वही हाथ मुंह में लेने से भी हो सकती है।

अन्य मामलों में इसका कारण भोजन विषाक्तता पैदा करने वाले जीवाणु भी हो सकते हैं, जैसे कि साल्मोनेला, शिगेला, स्टेफिलोकोकस, कैंपिलोबेक्टर या ई. कोली। जिआरडिया या क्रिप्टोस्पोरिडियम जैसे परजीवी भी गैस्ट्रोएंटेराइटिस की वजह हो सकते हैं।

कुछ बच्चों को फ्लू होने पर भी डायरिया व उल्टी हो सकती है। यदि आपके बच्चे के लक्षणों की भी यही वजह है, तो गैस्ट्रोएंटेराइटिस के संकेतों के साथ-साथ आपके शिशु को निम्न लक्षण भी हो सकते हैं:

  • बुखार
  • श्वास संबंधी लक्षण जैसे कि खांसी या गले में खराश
  • ठंड  व कंपकंपी लगना और थकान
  • नाक बहना
  • सिरदर्द
  • शरीर और जोड़ों में दर्द

लक्षण आमतौर पर विषाणु के संपर्क में आने के चार से 48 घंटों के भीतर दिखाई देने लगते हैं और सामान्यत: कुछ दिनों तक बने रहते हैं। गंभीर मामलों में ये लक्षण सात दिनों या इससे भी अधिक समय के लिए रह सकते हैं। अनन्य स्तनपान (एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग) करने वाले शिशुओं को गैस्ट्रोएंटेराइटिस होने की संभावना फॉर्मूला दूध पीने वाले या ठोस आहार खाने वाले शिशुओं की तुलना में कम होती है।

मुझे शिशु के पेट के संक्रमण का उपचार कैसे करना चाहिए?

पेट में गड़बड़ी होने पर खूब सारा तरल पदार्थ लेना सबसे महत्वपूर्ण है। यदि शिशु को गैस्ट्रोएंटेराइटिस है, तो उसके शरीर में पानी की कमी होने का खतरा रहता है। जब तक शिशु जलनियोजित बना रहेगा, वह इनफेक्शन से लड़ सकेगा।

यदि आपका शिशु स्तनपान करता है, तो उसे बार-बार स्तनदूध पीने दें। स्तनदूध उसे जलनियोजित रहने में मदद करेगा। साथ ही इसमें रोगप्रतिकारक (एंटीबॉडीज) होते हैं, तो इनफेक्शन से लड़ने में मदद करते हैं। जब शिशु बेहतर महसूस करे और उसे भूख लगे, तो उसे सामान्य आहार दिया जा सकता है।

यदि आपका शिशु छह महीने का है, तो उसे जलनियोजित रखने के लिए आप निम्न चीजें दे सकती हैं:

  • पानी
  • ओरल रीहाइड्रेशन सोल्यूशन (ओआरएस)
  • नारियल पानी
  • छाछ
  • पानी मिलाकर पतला किया गया अनार या सेब का रस
  • चावल का पानी (कांजी)
  • नींबू पानी
  • लस्सी

शिशु को गैस्ट्रोएंटेराइटिस होने पर डॉक्टर से कब संपर्क करना चाहिए?

जब भी आपको लगे कि शिशु की तबियत ठीक नहीं है, तो हमेशा उसके डॉक्टर से बात करनी चाहिए। खासकर यदि शिशु की उम्र छह महीने से कम हो। यदि आपका शिशु बहुत अधिक उल्टी कर रहा है और साथ में डायरिया भी है, तो डॉक्टर उसे ओआरएस का घोल देने की सलाह दे सकते हैं। यह घोल पूरे दिन छोटे-छोटे घूंट में उसे पिलाती रहें, ताकि वह जलनियोजित रहे।

डॉक्टर शिशु की उम्र और वजन के आधार पर बताएंगे कि उसे कितनी मात्रा में यह घोल पीना है। साफ, उबालकर ठंडे किए गए पानी से यह घोल तैयार करें और पैकेट पर दिए गए निर्देशों का पालन करें। यदि डॉक्टर निर्जलीकरण के स्तर को लेकर चिंतित हैं, तो आपके शिशु को अस्पताल में भर्ती भी किया जा सकता है। उसे जलनियोजित करने के लिए ड्रिप लगाई जा सकती है।

निम्न स्थितियों में बच्चे को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं:

  • शिशु निर्जलीकृत हो रहा है
  • उसे 101 डिग्री फेहरनहाइट से ज्यादा बुखार है
  • दो दिन से भी ज्यादा समय से उल्टी कर रहा है
  • उसके मल में खून आ रहा है
  • उसके पेट में सूजन है और पेट कड़ा हो रहा है
  • वह दिन में 10 या इससे ज्यादा बार मलत्याग कर रहा है
  • उसे हरी (पित्त वाली) उल्टी हो रही है

निर्जलीकरण के संकेतों में शामिल हैं:

  • शिशु आमतौर पर अस्वस्थ सा लगे
  • सामान्य से कम गीली नैपी या डाइपर
  • अत्याधिक नींद आना, थकान, सुस्ती या शक्तिहीन महसूस होना
  • चिड़चिड़ा होना
  • त्वचा पर झुर्रीयां और आखें धंसना
  • धंसे हुए कलांतराल (शिशु के सिर के ऊपर नरम स्थान)
  • सांसे तेज चलना
  • गहरा पीला और दुर्गंध वाला पेशाब
  • रुखी त्वचा, होंठ या मुंह
  • बिना आंसुओं के या थोड़े-बहुत आंसुओं के साथ रोना

यदि आपके शिशु के हाथ-पैर ठंडे और फीके  रंग के लग रहे हों, तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। यह शरीर में पानी की कमी होने का सबसे विलंबित लक्षण है और संकेत है कि शिशु की स्थिति बिगड़ रही है और वह शॉक में चला गया है। यदि ऐसा हो, तो बच्चे को अस्पताल में ड्रिप चढ़ाई जाएगी।

बच्चे को पेट के इनफेक्शन से बचाने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

रोटोवायरस का टीका शिशुओं और बच्चों को डायरिया के कुछ प्रकार से सुरक्षा प्रदान कर सकता है। यह टीका लगवाना अनिवार्य है।

बच्चे को इस टीके की दो से तीन खुराकें दी जानी चाहिए, हालांकि ये खुराक इस्तेमाल किए जा रहे टीके पर निर्भर करती हैं। आदर्शत: यह नीचे बताई अवधि पर लगना चाहिए:

  • पहला टीका छह सप्ताह पर
  • दूसरा टीका 10 सप्ताह पर
  • तीसरा टीका 14 सप्ताह पर

ध्यान में रखें छह सप्ताह से कम और चार महीनों से ज्यादा उम्र के शिशुओं को इस टीके की पहली खुराक नहीं दी जा सकती। यदि आप शिशु को यह टीका नहीं लगवा पाई हैं, तो इस बारे में शिशु के डॉक्टर से बात करें।

हमेशा ही सुनिश्चित करें कि आप और आपके परिवार के सदस्य अपने हाथों को साफ रखें। बार-बार हाथ धोते रहने से शिशु तक कीटाणु पहुंचने का खतरा कम हो जाता है। शिशु को दूध पिलाने या खाना खिलाने से पहले अपने हाथ हमेशा साबुन और गर्म पानी से धोएं। इसके अलावा नीचे दिए गए कामों के बाद भी अपने हाथ धोएं:

  • शौचालय के इस्तेमाल के बाद
  • बागबानी के बाद
  • ससब्जियों को छूने या ​काटने के बाद
  • बिना पके मांस को छूने के बाद
  • पालतू जानवरों को छूने के बाद
  • डाइपर या लंगोट बदलने के बाद
  • बड़े बच्चों को शौचालय में मदद करने के बाद

यह नियम बना लें कि बड़े बच्चों को शिशु के साथ खेलने, उसके खिलौनों, बोतलों या दूध पिलाने की अन्य चीजों को छूने से पहले अपने हाथ अच्छी तरह धोने होंगे।

जब शिशु बैठना और घुटनों के बल चलना शुरु कर देता है, तो वे फर्श पर पड़ी चीजों को उठाकर मुंह में डाल सकते हैं। तब वे हर तरह के कीटाणुओं और कीड़ों के संपर्क में आते हैं। अच्छी बात है कि इस समय तक आपके शिशु की प्रतिरक्षण प्रणाली भी पूर्ण विकसित होना शुरु हो जाती है। यह प्रकृति का एक शानदार तरीका है!

आप यह भी सुनिश्चित कर सकती हैं, कि:

  • आपका शिशु साफ फर्श पर खेले।
  • उसके खिलौने साफ हों।
  • चप्पल, जूते और पालतू जानवरों के बर्तन उसकी पहुंच से दूर हों।
  • उसके हाथ बार-बार धुलें, खासकर कि भोजन करने से पहले।

यदि आपके घर में आया शिशु की देखभाल करती है, तो सुनिश्चित करें कि वह भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखे। उसे रोजाना नहाना चाहिए, उसके नाखून कटे होने चाहिए। साथ ही शिशु को छूने से पहले और शौचालय का इस्तेमाल करने के बाद हर बार उसे अपने हाथ धोने चाहिए।

शिशु के बर्तनों, कप, गिलास, कटोरी और अन्य चीजों को अलग रखें। शिशु के साथ भोजन या अन्य निजी चीजें जैसे कि तौलिया, कपड़े और रुमाल साझा न करें, खासकर यदि परिवार में किसी को इनफेक्शन है तो।

पीने के लिए हमेशा उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी लें। यदि आप शिशु के लिए फॉर्मूला दूध तैयार कर रही हैं, तो इसके लिए उबालकर ठंडा किया हुआ और उचित ढंग से स्टोर किया गया पानी ही इस्तेमाल करें।

ध्यान रखें कि उबालकर ठंंडा किए गए पानी को एयरटाइट बोतल में रखा जाए, ताकि यह दूषित न हो सके। सुनिश्चित करें कि जिन बोतलों में पानी स्टोर करके रखा जाता है, उन्हें नियमित तौर पर धोया जाए। साथ ही खाना बनाने और अन्य तैयारी में भी साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

यदि आपके घर में पालतू जानवर हैं, तो वे शौच के लिए प्रशिक्षित होने चाहिए ताकि घर में इधर-उधर गंदगी न करें। यदि आपके पालतू जानवर की तबियत ठीक न हो या उसे डायरिया हो तो उसे शिशु के कमरे से दूर रखें। उसे शिशु की कॉट या पलंग पर न चढ़ने दें और शिशु की चीजें उसकी पहुंच से दूर रखें।

यह लेख अंग्रेजी में पढ़ें!

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बच्चे के पेट में इन्फेक्शन हो तो क्या करना चाहिए?

बच्चे को काफी मात्रा में सादा पानी, नारियल पानी, पतली छाछ या ओरल रिहाइड्रेशन तरल पदार्थ दिए जाने चाहिए। हर बच्चे को दूध पसंद नहीं होता इसलिए इसे छोड़ दीजिए, आप इसकी जगह प्रोबायोटिक से भरपूर दही दे सकते हैं। अगर आपके बच्चे को उल्टियां हो रही हैं, तो हर 4-5 मिनट में एक चम्मच तरल देने से मदद मिलेगी।

पेट का इन्फेक्शन कितने दिनों में ठीक होता है?

आंत में इन्फेक्शन का इलाज यदि पेट का दर्द ज्यादा बढ़ गया है तो डॉक्टर के पास जाना न भूलें। क्योंकि आंत के इन्फेक्शन को ठीक होने में थोड़ा ज्यादा समय भी लग सकता है। वहीं यदि आप दवा को सही समय में खा लेते हैं तो 2-3 दिन के भीतर ही दर्द से आपको आराम मिल सकता है। और इन्फेक्शन भी ठीक होने लग जाता है।

पेट में इंफेक्शन होने के क्या कारण है?

पेट के संक्रमण के प्रमुख कारण अनियमित दिनचर्या व गलत खान-पान हैं। ऐसा देखा गया है कि लोग पेट साफ करने के लिए किसी न किसी दवा का प्रयोग खुद से करते रहते हैं, जबकि बिना डॉक्टर की सलाह के इसके प्रयोग से परहेज करना चाहिए। फिजिशियन डॉ.

पेट में इन्फेक्शन की दवा कौन सी है?

3- हल्दी को भी पेट के इंफेक्शन में कारगर माना गया है। इसके लिए एक चम्मच हल्दी में 2 चम्मच शहद मिलाकर मिक्स करें और उसे रोजाना खाएं। शहद और हल्दी का मिश्रण बनाकर उसे स्टोर करके भी रखा जा सकता है। इसके लिए 2 चम्मच हल्दी में 5-6 चम्मच शहद मिलाएं और फिर उसे एक डिब्बे में रख दें।