बच्चों के कुल कितने अधिकार है और कौन कौन से हैं? - bachchon ke kul kitane adhikaar hai aur kaun kaun se hain?

हमारे देश में शुरु से ही पुरुषों को कुछ विशेष अधिकार दिये गए हैं। समय के साथ यह अधिकार कानूनी तौरपर पर भी मान्य होते गए। पिता की संपत्ति में बेटे को दिया जाने वाला अधिकार ऐसा ही एक अधिकार है। भारतीय हिंदू परिवार में पहले विरासत में मिली संपत्ति पर केवल बेटे का अधिकार होता था। लेकिन, महिलाओं के लिए संपत्ति तथा विरासत से जुड़े कानूनों (Laws for Women in India) में हाल ही में कुछ बदलाव किये गए हैं। महिलाओं से जुड़े हिंदू विरासत कानूनों में किये गए इन बदलावों से बेटियों तथा पत्नियों को कुछ राहत मिली है। हालांकि, महिलाओं के लिए इस्लामी कानून हिंदू कानूनों से थोड़े अलग तथा कठोर हैं।  

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हालाँकि, प्रत्येक धर्म के अपने-अपने नियम होते हैं। संपत्ति से जुड़े कुछ कानून हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, तथा हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 है। इसके अलावा, मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट 1937 तथा भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 भी इसी से संबंधित कानून है। यहां हम इसे हिंदू कानून, मुस्लिम कानून और ईसाई कानून कहा है। हिंदू कानून हिंदुओं, जैन, बौद्ध व सिखों पर लागू होता है। इस ब्लॉग से आपको महिलाओं से संबंधित विरासत कानूनों तथा पैतृक संपत्ति पर उनके अधिकारों को समझने में मदद मिलेगी। 

संपत्ति कानून महिलाओं (Laws for Women in India) के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं, यह समझने के लिए हमने नीचे एक उदाहरण दिया है। 

महिलाओं के लिए बने संपत्ति कानून उनके जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं? 

अनीता नाम की महिला शादी कर लेती है और अपने पति के साथ अपने ऑफिसियल क्वार्टर में रहने लगती है। उसके सास-ससुर कुछ साल पहले बनाए गए घर में अलग रहते हैं। शादी के दो साल बाद, अनीता के पति की वसीयत लिखे बिना या अपनी संपत्ति हासिल किए बिना मृत्यु हो जाती है। अनीता को अपना ऑफिसियल क्वार्टर खाली करना पड़ता है। वह अपने सास-ससुर के साथ रहना चाहती है लेकिन वो इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। वह अपने माता-पिता के घर जाती है, लेकिन उसका भाई उसे साथ रखने के लिए राजी नहीं होता है। इस बीच बिना वसीयत लिखे उसके पिता की मृत्यु हो जाती है, अनीता का भाई पैतृक संपत्ति में अपने परिवार के साथ रहता है। अब अनीता कहाँ रहने जा सकती है? क्या वह संपत्ति पर अपना दावा कर सकती है?

 इसका जवाब जानने के लिए आइए महिलाओं के लिए बने संपत्ति कानूनों (Laws for Women in India) को समझते हैं।

हिंदू कानून के तहत महिलाओं के लिए संपत्ति और विरासत कानून

महिलाओं के लिए संपत्ति कानूनों (Laws for Women in India) में पहले की तुलना में काफी बदलाव आया है। आजादी तथा संविधान बनने के बाद से कई संशोधन किये गए, तथा महिलाओं को पुरुषों के बराबर का अधिकर दिया गया है। अभी हमारे देश में हिंदू धर्म की महिलाओं के लिए लागू विरासत कानून (Inheritance Laws for Women) नीचे बताए गए हैं।

बेटी को संपत्ति में अधिकार

बेटी का अपने भाई-बहनों की तरह ही माता-पिता (पिता की और साथ ही माता की) की संपत्ति पर समान अधिकार है। उसका माता-पिता संपत्ति में भाइयों के समान ही अधिकार है। विवाहित बेटी अगर विधवा, तलाकशुदा या पति द्वारा छोड़े जाने पर माता-पिता के घर में रहने का हक मांग कर सकती है। वयस्क होने पर बेटी का ऐसी किसी भी संपत्ति पर पूरा अधिकार होता है जो उसे उपहार में दी जाती है या वसीयत में दी जाती है।

पत्नी को संपत्ति में अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार, विवाहित महिला का अपनी निजी संपत्ति पर पूरा अधिकार होता है जिसे वह अपनी इच्छा के अनुसार बेच या उपहार में दे सकती है। हिंदू अविभाजित परिवार के मामले में वह अपने पति तथा उसके परिवार से रहने के लिए जगह, किसी तरह की मदद तथा अन्य खर्चें के लिए पैसे मिलने की हकदार होती है। पति और अपने बच्चों के बीच अपनी संपत्ति को बंटाने के मामले में, उसे भी दूसरों के बराबर हिस्सा मिलता है। और पति की मृत्यु के मामले में, वह अपने, अपने बच्चों तथा उसकी मां के बीच विभाजित पति की संपत्ति में बराबर के हिस्से की हकदार होती है।

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माँ को संपत्ति में अधिकार

माँ को भी अपने मृत बेटे की संपत्ति में उतना ही हिस्सा विरासत में मिलता है, जितना उसकी पत्नी और बच्चों को मिलता है। अगर पिता की मृत्यु के बाद बच्चे परिवार की संपत्ति को विभाजित करते हैं, तो माँ भी अपने प्रत्येक बच्चे के समान ही संपत्ति में हकदार होती है। वह अपने बच्चों से आश्रय तथा भरण-पोषण की भी हकदार होती है। उसका उसकी संपत्ति पर उसका पूरा अधिकार होता है तथा वह जिस तरह से चाहे उसका इस्तेमाल कर सकती है। हालाँकि, उसकी मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसके सभी बच्चों को समान रूप से विरासत में मिलती है। 

बहन को संपत्ति में अधिकार

बहन अपने मृत भाई की संपत्ति पर दावा केवल तभी कर सकती है जब उसकी - माँ, पत्नी व बच्चे जैसे कोई वारिस न हो।

बहू को संपत्ति में अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में महिलाओं से संबंधित विरासत कानूनों में बहू को बहुत कम अधिकार दिये गए हैं। सास-ससुर की संपत्ति पर बहू का अधिकार नहीं होता है - चाहे वह पैतृक हो या सास-ससुर की खुद की। वह केवल पति की विरासत के अनुसार ही ऐसी संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकती है।

तलाकशुदा महिला के संपत्ति पर अधिकार

तलाकशुदा महिला निर्वाह व खर्चें की मांग कर सकती है लेकिन उसका पूर्व पति की संपत्ति पर अधिका नहीं होता है। अगर संपत्ति पति के नाम पर पंजीकृत है, तो कानून उसे मालिक के तौरपर मान्यता देता है। अगर संपत्ति दोनों ने मिलकर खरीदी है, तो पत्नी को खरीद में अपना योगदान साबित करना होगा। इसके पश्चात्. वह महिलाओं के लिए संपत्ति कानूनों के अनुसार, ऐसी संपत्ति में अपने योगदान जितना ही हिस्से की हकदार होगी। औपचारिक तलाक के बिना अलग होने की स्थिति में, पत्नी तथा बच्चे पुरुष की संपत्ति पर हकदार हैं चाहे उसने पुनर्विवाह किया हो या नहीं।

पुनर्विवाहित विधवा के संपत्ति में अधिकार 

विधवा को पति की संपत्ति में अन्य वारिस जैसे की उसकी माँ तथा बच्चों के बराबर ही हिस्सा मिलता है। 1856 के हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के अनुसार, पुनर्विवाहित विधवा पत्नी के मामले में, उसको पूर्व पति की संपत्ति पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए। लेकिन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 24 के अनुसार, अगर विधवा संपत्ति के बंटवारे के समय अविवाहित है तथा बहुत समय बाद शादी करती है, तो वह संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार होती है।

दूसरी पत्नी का संपत्ति में अधिकार

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (The Hindu Marriage Act 1955) में बहुविवाह को अवैध माना गया है तथा व्यक्ति की एक समय में एक से अधिक पत्नी नहीं हो सकती हैं। इसलिए, दूसरी शादी की वैधता यहाँ एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अगर पुरुष पत्नी की मृत्यु या तलाक के बाद पुनर्विवाह करता है, तो दूसरी पत्नी उसकी संपत्ति की वारिस होती है। अगर ऐसा नहीं है, तो दूसरी पत्नी मृत व्यक्ति की संपत्ति की हकदार नहीं है, हालांकि इस शादी से उसके बच्चे हों।

ईसाई कानून में महिलाओं के लिए संपत्ति तथा विरासत कानून 

आइए हम ईसाई कानून में महिलाओं के लिए बने विरासत कानूनों को समझें, जो यहूदियों तथा पारसियों पर भी लागू है।

बेटी का संपत्ति में अधिकार

बेटी को भाई-बहनों के साथ माता-पिता दोनों की संपत्ति में समान हिस्सा विरासत में मिलेगा। वह शादी होने तक अपने माता-पिता से रहने के लिए जगह तथा खर्चें से सकती है। उसके बाद, इसकी जिम्मेदारी पति की होती है। जब तक वह नाबालिग है, उसके पिता उसके अभिभावक रहते हैं। कानूनी रूप से वयस्क होने के बाद, उसकी निजी संपत्ति पर उसका पूरा अधिकार है।

पत्नी का संपत्ति में अधिकार

पत्नी के रूप में, महिला पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होती है। अगर पति ऐसा नहीं करता है, तो वह इस आधार पर तलाक की अर्जी दे सकती है। ईसाई धर्म की महिलाओं के विरासत कानूनों (Laws for Women in India) के अनुसार, विधवा महिला पति की संपत्ति के एक तिहाई हिस्से की हकदार होती है, जबकि शेष हिस्सा मृतक पति के बच्चों के बीच समान रूप से विभाजित हो जाती है। संतान न होने पर उसे आधी संपत्ति मिलती है। पत्नी को अपने मृत पति से न्यूनतम 5000 रुपये विरासत में मिलने चाहिए। 

माँ का संपत्ति में अधिकार

ईसाई धर्म की महिलाओं से संबंधित संपत्ति कानून (Laws for Women in India) मां को बच्चों की आश्रित नहीं मानते हैं। माँ के रूप में, महिला भरण-पोषण के पात्र नहीं है। लेकिन अगर मृत बच्चा अविवाहित है तथा उसका कोई बच्चा नही है, तो मां एक चौथाई संपत्ति की हकदार होती है।

महिलाओं से संबंधित उत्तराधिकार कानून यदि वे तलाकशुदा, पुनर्विवाहित विधवा तथा दूसरी पत्नी हैं, तो हिंदू कानूनों के समान ही रहेंगे।

मुस्लिम / इस्लामी कानून के तहत महिलाओं से संबंधित संपत्ति और विरासत कानून

इस कानून में शरिया नियम का पालन किया जाता है तथा इसमें अन्य धर्मों की तुलना में अलग-अलग नियम हैं। 

बेटी का संपत्ति में अधिकार

मान्यता के अनुसार, स्त्री का महत्व पुरुष की तुलना में आधा होता है। इसलिए महिलाओं से संबंधित विरासत कानून (Laws for Women in India) में बेटियों को बेटों से आधा हिस्सा मिलता है। लेकिन महिला का अपनी संपत्ति पर पूरा अधिकार होता है तथा वह अपनी इच्छा से किसी भी तरह इसका इस्तेमाल कर सकती है। बेटियों को माता-पिता के घर में शादी तक और विधवा होने/तलाक के बाद भी रहने का अधिकार है यदि उसके कोई/नाबालिग बच्चे नहीं हैं। जब बच्चे इतने बड़े हो जाते हैं कि वे अपनी मां की देखभाल कर सकें, तो उसकी जिम्मेदारी बच्चों की हो जाती है। 

पत्नी का संपत्ति में अधिकार

शरिया में महिलाओं से संबंधित संपत्ति कानूनों (Laws for Women in India)  के अनुसार, विवाहित महिला को अपनी संपत्ति व अन्य चीजों पर पूरा अधिकार प्राप्त होता है। वह अपने पति से भरण-पोषण, तलाक के बाद उचित व्यवस्था और शादी के दौरान तय की गई 'मेहर' राशि पाने की हकदार होती है। पति की मृत्यु के मामले में और एकमात्र पत्नी होने के नाते, अगर कोई संतान नहीं है, तो उसे अपनी संपत्ति का एक-चौथाई हिस्सा मिलता; और अगर उनकी शादी से बच्चे हैं, तो ⅛वां हिस्सा मिलता है। अगर मृत पति की एक से अधिक पत्नियाँ हों, तो प्रत्येक पत्नी का अधिकार और भी कम हो जाता है। अगर कोई अन्य हिस्सेदार नहीं है, तो पति द्वारा वसीयत किये जाने पर पत्नी का हिस्सा बढ़ सकता है।

माँ का संपत्ति में अधिकार

विधवा या तलाकशुदा मां अपने बच्चों से भरण-पोषण तथा अपने मृत बच्चे की संपत्ति का छठवें हिस्से की विरासत की हकदार है। उसकी अपनी संपत्ति मुस्लिम कानून के दिशानिर्देशों के अनुसार विभाजित की जाती है।

महिलाओं से संबंधित मुस्लिम विरासत कानूनों (Laws for Women in India) के अनुसार, तलाकशुदा महिला को उसकी 'मेहर' राशि मिलती है और वह अपने पति व उसके परिवार से संबंधित नहीं रहती है। उसे मृतक पूर्व पति की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता है। यही बात पुनर्विवाहित विधवा के मामले में भी लागू है यानि मृत पति की किसी भी संपत्ति पर वह दावा नहीं कर सकती है। मुस्लिम कानूनों के तहत दूसरी पत्नी कानूनी पत्नी होती है और उसके पास पहली या तीसरी पत्नी के समान अधिकार होते हैं।

महिलाओं से संबंधित संपत्ति कानूनों पर कुछ महत्वपूर्ण बातें

आइए अब अनीता के भरण-पोषण तथा विरासत की समस्या का जवाब तलाशते हैं। अनीता अपने सास-ससुर की संपत्ति की हकदार नहीं है तथा अगर वे आश्रय देने से इनकार करते हैं, तो अनीता को यह मानना होगा। लेकिन अनीता अपने पिता की संपत्ति से विरासत की हकदार है। चूंकि उसके पिता की मृत्यु वसीयत लिखे बिना हुई थी, इसलिए संपत्ति को अनीता, उसके भाई और उसकी मां के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए। इस तरह अनीता को अपने पिता की संपत्ति का कुछ हिस्सा मिल सकता है तथा शायद घर में रहने की अनुमति भी। इसके अलावा, वह अपने मृत पति के फाइनेंस, बीमा व ऑफिसियल क्लेम की भी जांच कर सकती है कि क्या उन्होंने उसे नॉमिनी बनाया है या नहीं। पैसे की आवश्यकता होने पर यह उसके बहुत काम आ सकता है। 

महिलाओं से संबंधित संपत्ति कानूनों (Laws for Women in India) में संशोधन तथा विभिन्न निर्णयों में बदलाव से महिलाओं के कानूनी अधिकारों में कुछ बदलाव सामने आए हैं। यह जरुरी है कि आपकों विरासत कानूनों के अंतर्गत दिये गए अपने कानूनी अधिकार मालूम हो, ताकि आप अपना हक पा सकें।

बच्चों के कौन कौन से अधिकार होते हैं?

जानिए बच्चों के कौन कौन से अधिकार हैं?.
बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006. ... .
भारत में बच्चों से संबंधित सबसे अधिक वाद-विवाद वाला अधिनियम “बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 हैl इस अधिनियम में इस बात का उल्लेख किया गया है कि बच्चे कहाँ और कैसे काम कर सकते हैं और कहाँ वे काम नहीं कर सकते हैंl. ... .
शिक्षा का अधिकार.

भारत के 6 मौलिक अधिकार कौन कौन से हैं?

मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण.
समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।.
स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।.
शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।.
धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।.
सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32..

प्रत्येक बच्चे के पास क्या अधिकार हैं?

प्रत्येक बच्चे को जीने का अधिकार है और देखभाल का अधिकार है. माना जाता है कि बच्चे का विकास परिवार के साथ ही हो पाता है इसलिए परिवार के साथ रहने का उसे अधिकार है. उसे अच्छे स्वास्थ्य और बेहतर शिक्षा का अधिकार है. हर बच्चे को आर्थिक और शारीरिक शोषण से बचने का अधिकार है.

कानूनी अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?

कानूनी अधिकार दो प्रकार के होते हैं....
सामाजिक अधिकार.
राजनीतिक अधिकार.