अधिगम के कुल कितने सिद्धांत है? - adhigam ke kul kitane siddhaant hai?

विषयसूची

  • 1 तत्परता के नियम से आप क्या समझते हैं?
  • 2 आंशिक क्रिया का नियम क्या है?
  • 3 थार्नडाइक के सीखने के नियम कौन कौन से हैं?
  • 4 गहने ने अधिगम के कितने प्रकार दिए?

तत्परता के नियम से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंतत्परता का नियम– जब हम किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार या तत्पर होते हैं, तो हम उसे शीघ्र सीख लेते हैं। किसी समस्या को हल करने के लिए प्रयत्नशील होना तत्परता कहलाती है। यदि बच्चे में गणित के प्रश्न हल करने की इच्छा है, तो तत्परता के कारण वह उनको अधिक शीघ्रता और कुशलता से करता है।

थार्नडाइक के कितने नियम हैं?

इसे सुनेंरोकेंइस सिद्धान्त के अनुसार, जो व्यक्ति उद्दीपकों और प्रतिक्रियाओं में जितने अधिक सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, उतना ही अधिक बुद्धिमान वह हो जाता है। इस सिद्धान्त के आधार पर थार्नडाइक ने सीखने के तीन मुख्य नियम प्रतिपादित किये-तत्परता का नियम, अभ्यास का नियम, प्रभाव या परिणाम का नियम।

थार्नडाइक ने सीखने के सिद्धांत के अंतर्गत कितने नियमों की चर्चा की हैI?

इसे सुनेंरोकें1- थार्नडाइक का ततपरता का नियम इस नियम के अनुसार यदि बच्चा किसी काम को सीखने के प्रति तत्पर है तो वो उस काम को जल्दी सीख जाएगा। इसके उलट अगर वो तत्पर नही है तो उसे सीखने में कठिनाई आएगी। अर्थात यदि बच्चे की किसी कार्य मे रुचि है तो वो आराम से सीख जाएगा और सुखद अनुभव करेगा। पर यदि रुचि नही है तो नही सीख पायेगा।

आंशिक क्रिया का नियम क्या है?

इसे सुनेंरोकें3- आंशिक क्रिया का नियम अर्थात पूरे कार्य को एक साथ सीखने से अच्छा उस कार्य को अंशो में विभाजित करके सीखा जाए। कार्य को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर उसे सीखना, उस कार्य को आसान बना देता है। यही थार्नडाइक के आंशिक क्रिया का नियम है।

अधिगम के कुल कितने सिद्धांत है?

इसे सुनेंरोकेंThorndike) ने सीखने के कुछ नियम बताएं हैं जिनको प्रयोग से अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है। उन्होंने सीखने के तीन मुख्य नियम एवं पाँच गौण नियम प्रतिपादित किए हैं।

अधिगम के कितने प्रकार है?

मनोवैज्ञानिक उसुबेल के अनुसार अधिगम के प्रकार

  • अभिग्रहण सीखना।
  • 2.अन्वेषण सीखना
  • रटकर सीखना
  • (1) सांकेतिक सीखना (Signal learning)
  • (2) उद्दीपन-अनुक्रिया सीखना (Stimulus-Response learning)
  • (3) सरल श्रृंखला का सीखना (Learning of simple chaining)
  • (4) शाब्दिक साहचर्य सीखना (Verbal association learning)

थार्नडाइक के सीखने के नियम कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंइस सिद्धान्त के आधार पर थार्नडाइक ने सीखने के तीन मुख्य नियम प्रतिपादित किये-तत्परता का नियम, अभ्यास का नियम, प्रभाव या परिणाम का नियम।

अधिगम के प्रमुख सिद्धांत कौन कौन से हैं?

अधिगम के सिद्धांत Theory Of Learning in hindi

  • उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धांत
  • अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत
  • क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत (R-S Theory)
  • गेस्टाल्ट सिद्धांत/ सूझ या अंतर्दृष्टि सिद्धांत
  • जीन पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत
  • संवेदी पेशी अवस्था
  • पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
  • मूर्त संक्रियात्मक अवस्था

अधिगम के कौन कौन से सिद्धांत है?

अधिगम (सीखने) के सिद्धांत – Theories (Principles) of Learning

  • प्रयत्न और भूल का सिद्धांत
  • सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धांत
  • ऑपरेन्ट कन्डीशनिंग या स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबन्धन
  • अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत
  • अनुकरण का सिद्धांत

गहने ने अधिगम के कितने प्रकार दिए?

इसे सुनेंरोकेंगेने ने दो प्रकार के श्रृंखला अधिगम की व्याख्या की हैं। पहली हैं शाब्दिक श्रंृखला अधिगम तथा दूसरा अशाब्दिक श्रंृखला अधिगम।

अभिवृत्यात्मक अधिगम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअभिवृत्यात्मक दृष्टिकोण अधिगम- दृष्टिकोण और मूल्य मानव व्यवहार द्वारासीखे जाते हैं या अर्जित किए जाते हैं। इनका विकास अपने समूह के साथ संबंधों के विकास के दौरान होता है इस प्रकार के अधिगम के परिणाम स्वरूप संवेग , स्थाई भाव तथा आत्मानुभूति आदि सीखे जाते हैं।

अधिगम के सोपान कितने है?

इसे सुनेंरोकेंगैग्ने ने सीखने को आठ वर्गो में वर्गीकृत करते हुए उन्हें एक अधिगम सोपानिकी के रुप में प्रस्तुत किया। इस अधिगम सोपानिकी के आठ वर्गों में एक स्वस्पष्ट अंतर्निहित क्रम निहित है तथा अगला क्रम पिछले क्रम से उच्चतर अथवा जटिलतर होता जाता है।

अधिगम के कुल कितने सिद्धांत है? - adhigam ke kul kitane siddhaant hai?
अधिगम अंतरण एवं अधिगम पठार

अधिगम अंतरण 

अधिगमएक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो कुछ हम आज सीखते है उसको भविष्य में कहीं न कहीं प्रयुक्त करते है। प्रारंभ में हम भाषा सीखते है तथा उस भाषा के ज्ञान के आधार पर विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

इस प्रकार एक परिस्थिति में सीखे गए ज्ञान या कौशल का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना ही अधिगम अंतरण या अधिगम-स्थानांतरण कहलाता है।

उदाहरण- कोई व्यक्ति साईकल चलाने के अनुभव को मोटरसाइकिल चलाने में उपयोग करता है तो यह अधिगम अंतरण है

परिभाषाएं

-हिलगार्ड एवं एटकिन्सन के अनुसार, "अधिगम स्थानान्तरण में एक क्रिया का प्रभाव दूसरी क्रिया पर पड़ता है।
-कॉलसनिक के अनुसार, "अधिगम-अंतरण पहली परिस्थिति से प्राप्त ज्ञान, कौशल, आदत, अभियोग्यता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना है।"
-गुथरी एवं पावर्स के अनुसार, “अधिगम-अंतरण से अभिप्राय व्यवहार के विस्तार तथा विनियोग से है।"

 अधिगमअंतरण के प्रकार

1. सकारात्मक या धनात्मक अधिगम अंतरण: इस प्रकार

के अधिगम अंतरण में एक विषय का ज्ञान दूसरे विषय का ज्ञान प्राप्त में सहायता पहुंचाता है। उदाहणार्थ-जिस व्यक्ति को गणित का ज्ञान है और वह विज्ञान सीखना चाहता है तो उसका गणित का ज्ञान उसे विज्ञान सीखने में मदद करेगा यही सकारात्मक अधिगम-अंतरण है। 

2. नकारात्मक या ऋणात्मक अधिगम अंतरण : जब

पहले प्राप्त किया गया ज्ञान या कौशल नये ज्ञान या कौशल में बाधा उत्पन्न करे तो इस प्रकार के अधिगमअंतरण को नकारात्मक या ऋणात्मक अधिगम अंतरण कहा जाता है। उदाहरणार्थ : उर्दु भाषा का ज्ञान प्राप्त व्यक्ति को हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने में बाधा या अवरोध का सामना करना पड़ता है। यही नकारात्मक अधिगम अंतरण है। 

3. शून्य अधिगम अंतरण: इस प्रकार के अधिगम अंतरण

मे एक विषय का ज्ञान न तो दूसरे विषय में सहायक होता है और न ही बाधा या अवरोध उत्पन्न करता है।

उदाहरणार्थ-चित्रकारी कौशल  सीखने के बाद सिलाई कौशल  सीखना न तो सहायक है नहीं बाध्यकारी।

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 1. क्षैतिज अन्तरण : जब किसी एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव अथवा प्रशिक्षण का उपयोग व्यक्ति के द्वारा उसी प्रकार की लगभग समान परिस्थिति में किया जाता है तो इसे अधिगम का क्षैतिज अन्तरण कहते हैं । उदाहरणार्थ   -गणित  केकिसी सूत्रों वाले प्रश्नों को हल करने का अभ्यास उसी तरह के अन्य प्रश्नों को हल करने में प्रयुक्त होता है।

2. उर्ध्व अन्तरण  : जब किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, अनुभव अथवा प्रशिक्षण का उपयोग व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य भिन्न प्रकार की अथवा उच्च स्तर की परिस्थितियों में किया जाता है तब इसे अधिगम को उर्ध्व अन्तरण कहते हैं। जैसे साइकिल चलाने वाले व्यक्ति द्वारा मोटरसाइकिल चलाना सीखते समय उसके पूर्व अनुभवों का उर्ध्व अन्तरण होता है। 

3. द्विपार्श्विक अन्तरण : मानव शरीर को दो भागों-दांया भाग तथा बायाँ भाग में बाँटा जा सकता है। जब मानव शरीर के एक भाग को दिए गए प्रशिक्षण का अन्तरण दूसरे भाग में हो जाता है तो इसे द्विपार्श्विक अन्तरण कहते हैं। जैसे दांये हाथ से लिखने की योग्यता का लाभ जब व्यक्ति बांये हाथ से लिखना सीखने में करता है तो इसे द्विपार्श्विक अन्तरण कहेंगे। | 

अधिगम अंतरण के सिद्धांत 

1. मानसिक शक्तियों के औपचारिक अनुशासन का सिद्धांत

2. समान तत्त्वों का सिद्धांत

प्रतिपादक -थार्नडाईक

3.द्वितात्विक सिद्धांत

प्रतिपादक-स्पियरमैन

4.सामान्यीकरण का सिद्धांत

प्रतिपादक-एच जड

5.अव्यववादी सिद्धांत

प्रतिपादक- कोहलर,कोफ्का,वर्दीमर

6.मूल्यों के अभिज्ञान का सिद्धांत

प्रतिपादक-विलियम बागले

अधिगम स्थानान्तरण के शिक्षण में उपयोग

शिक्षक को शिक्षण कार्य से पूर्व यह ज्ञात होना चाहिए कि विद्यार्थी पूर्व से ही क्या जानते हैं। ताकि वह उस ज्ञान अधवा कौशल का उपयोग अध्यापन में कर सके और विद्यार्थियों को अधिगम में सहायता मिल सके। 

पाठ्यचर्या निर्माण करते समय सहसंबंध पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाना चाहिए अर्थात दो या दो से अधिक विषयों में कुछ विषयवस्तु समान हो ताकि जो भी विषय बाद में पढ़ाया जावे उसके लिए पूर्व के विषय की विषय-वस्तु अभिप्रेरणा का कार्य करे। 

विद्यार्थियों को जो भी नियम एवं सिद्धांत पढ़ाए जाएँ तब उन्हें उनका अलग-अलग क्षेत्र में कैसा उपयोग किया जा सकता है, यह भी बताया जा सकता है जिससे वे सामान्यीकरण के द्वारा स्थानांतरण कर सकें। 

विषयों की उपलब्धियों के मध्य संबंध ज्ञात कर उन्हें पाठ्यचर्या में शामिल किया जा सकता है ताकि विद्यार्थी स्थानांतरण का अधिकतम उपयोग कर सकें।

विषय वस्तु में पूर्व ज्ञान का उपयोग कर नवीन प्रकरण अच्छी तरह समझाया जा सकता है।

अधिगम वक्र एवं अधिगम पठार

अधिगम वक्र का अर्थ 

व्यक्ति की सीखने की गति हर समय एक समान नहीं होती। सीखने की गति में हर समय अंतर पाया जाता है। कभी यह गति तेजी से होती है और कभी मंदगति से। इस प्रकार सीखने की गति को एक ग्राफ पेपर पर अंकित किया जाय तो एक रेखा बन जाती है उसे अधिगम वक्र कहते हैं।

गेट्स तथा अन्य -"अधिगम का वक्र सीखने की क्रिया से होने वाली गति और प्रगति को व्यक्त करता है।" 

चार्ल्स स्किनर -"अधिगम का वक्र किसी दी हुई क्रिया में उन्नति या अवनति का ब्यौरा है।"

अधिगम वक्र

1. सरल रेखीय वक्र 

2. उन्नतोदर वक्र 

3. नतोदर वक्र 

4. मिश्रित वक्र 

1.सरल रेखीय वक्र:सीखने की क्रिया सदैव एक समान नहीं होती है। इसमें प्रगति सदैव नहीं रहती। अतः सीखने में

2.उन्नतोदर वक्र (आणात्मक त्वरित वक्र):- प्रारंभ में सीखने की गति तीव्र गति से होती है और बाद में प्रगति की गति मंद हो जाती है। इस चाप का अंतिम भाग पठार की आकृति का होता है। शारीरिक कौशल के सीखने में प्रायः इस प्रकार के वक्र बनते हैं। इसे ऋणात्मक त्वरित वक्र भी कहते हैं।

3.नतोदर वक्र (धनात्मक त्वरित वक्र):- इस वक्र में सीखने की गति पहले बहुत मंद होती है। अभ्यास के कारण विषय वस्तु सरल हो जाती है। इस कारण सीखने की गति में प्रगति होती है। इसे धनात्मक त्वरित वक्र कहते हैं।

4.मिश्रित वक्र :- यह वक्र उन्नतोदर और नतोदार वक्र

का मिश्रण है। प्रायः इसके बीच-बीच में पठार भी बनते हैं। प्रारंभ में सीखने की गति मंद, मध्यमभाग में तीव्र और अंतिम भाग में पुनः मंद होती है। इसे "S" आकारीय वक्र भी कहते हैं।

सीखने का पठार 

सीखने का पठार का अर्थ 

सीखने की गति एक समान नहीं होती है। सीखना प्रारंभ करने के कुछ समय पश्चात सीखने की प्रगति बिलकुल रुक जाती है इस स्थिति को पठार कहते हैं।

उदाहरण के लिए एक व्यक्ति टाइप करना सीखता है, पहले उसे कठिन लगता है। इस कारण सीखने की गति मंद रहती है। अभ्यास के कारण वह टाइप करना सीख लेता है। निरंतर अभ्यास के कारण सीखने की गति बढ़ती है। कुछ समय बाद (अभ्यास के बावजूद भी) सीखने की गति में रुकावट हो सकती है। इस कारण की रुकावट को पठार कहते हैं।

अधिगम पठार के कारण

सीखने की सामग्री पर रुचि न होना। जब आदतों में परिवर्तन होता है, तब भी पठार बनते हैं। सीखनेवाला एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचता है तब भी पठार बनता है। सीखने की विषयवस्तु कठिन हो।।

सीखने की अनुचित विधि के कारण भी पठार बनते हैं।  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक न होने पर भी पठार बनते हैं। सीखने की परिस्थिति या मनोदशा के कारण भी पठार बनते हैं।

अधिगम पठारों का समाधान 

सीखनेवाले को अतिरिक्त उत्तेजना या प्रेरणा देकर। 

सीखने की सामग्री की रुचि में वृद्धि द्वारा।

सीखने की विधि में परिवर्तन करके। 

शारीरिक दुर्बलता को दूर करके।

आदतों में परिवर्तन किया जाय। 

वातावरण परिवर्तन के द्वारा भी पठारों का निराकरण

किया जा सकता है। 

सामग्री को अधिक गहराई से समझकर।

अधिगम के सिद्धांत कितने प्रकार के हैं?

अधिगम के सिद्धांत Theory Of Learning in hindi.
उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धांत.
अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत.
क्रिया प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत (R-S Theory).
गेस्टाल्ट सिद्धांत/ सूझ या अंतर्दृष्टि सिद्धांत.
जीन पियाजे का संज्ञानात्मक सिद्धांत.

अधिगम के दो सिद्धांत कौन कौन से हैं?

अधिगम (सीखने) के सिद्धांत – Theories (Principles) of Learning.
प्रयत्न और भूल का सिद्धांत.
सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धांत.
ऑपरेन्ट कन्डीशनिंग या स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबन्धन.
अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत.
अनुकरण का सिद्धांत.

अधिगम के मुख्य सिद्धांत क्या है?

थॉर्नडाइक के अधिगम के सिद्धांत को प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत (Theory of Trial and Error) तथा सबन्धवाद के नाम से जाना जाता है। थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए एक प्रयोग किया । जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए तत्पर रहता है और उसे वह कार्य करने दिया जाता है, तो इससे उसमें संतोष होता है।

थार्नडाइक ने कुल कितने सिद्धांत दिए?

Thorndike) ने सीखने के कुछ नियम बताएं हैं जिनको प्रयोग से अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है। उन्होंने सीखने के तीन मुख्य नियम एवं पाँच गौण नियम प्रतिपादित किए हैं।