1 जठराग्नि का स्रोत, भोजन को पकाने-पचाने वाली पाचन ग्रंथि, पेंक्रियाज को ही 'अग्नाशय' कहते हैं। यह छोटी आंत से घिरा रहता है। Show 2 पेंक्रियाज दो तरह के रस स्रावित करता है- पाचक रस व पावक रस। पाचक (अग्नि) रस (पेंक्रियाटिक जूस) पेंक्रियाटिक डक्ट में स्रावित होता है और पावक रस सीधा रक्त में। पाचक रस बनाने वाले ग्लैंड्स होते हैं, जिनका मुंह डक्ट में खुलता है, जबकि पावक रस (इंसुलिन आदि) विशिष्ट कोशिकाओं के छोटे-छोटे आईलेट्स से सीधा रक्त में ही अवशोषित होता है। 3 पाचक रस में स्रावित ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन, लाइपेज व अमाइलेज नामक एंजाइम्स, भोजन में प्रोटीन, वसा व शर्करा को पकाने-पचाने का अहम कार्य करते हैं, इसीलिए इसे 'जठराग्नि' भी कहते हैं। 4 शरीर में तात्कालिक ऊर्जा ग्लूकोज को जलाकर मिलती है। कोशिकाओं को ग्लूकोज उपलब्धि और उपयोग के लिए इंसुलिन की जरूरत होती है, जो पेंक्रियाज के पावक रस से स्रावित होकर रक्त के माध्यम से संपूर्ण शरीर में पहुंचता है। 5 पावक रस के अन्य एंजाइम्स ग्लूकोगोन, सोमेटोस्टेटिन सहायक एंजाइम्स होते हैं, जो रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करते हैं। इंसुलिन शारीरिक ऊर्जा का स्रोत होती है। इंसुलिन की कमी से ही डायबिटीज होता है। 6 इंसुलिन की अधिकता से (इंसुलिन बनाने वाली आइलेट कोशिकाओं के ट्यूमर के कारण) या अन्य किसी कारण से रक्त में ग्लूकोज की कमी से हाइपोग्लाइसीमिया होता है। हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण गंभीर होते हैं। इसमें रोगी को खूब पसीना आता है, घबराहट होती है, मृत्यु का भय सताने लगता है आदि। यह समस्याएं न हों, इसके लिए आइलेट कोशिकाएं ग्लूकोगोन नामक एंजाइम स्रावित करती हैं, जो ग्लूकोज की कमी होने पर लिवर में संगृहित ग्लाइकोनोजन को ग्लूकोज में बदलकर रक्त में संगृहित कर देता है। 7 मांसाहारियों में पेंक्रियाज का पाचक रस जब सब कुछ पचा जाता है, तो फिर खुद पेंक्रियाज कैसे अछूता रह जाता है? कैसे वह गलने से बच जाता है? प्रोटीन को गलाने वाले एंजाइम्स ट्रिप्सिन और काइमोट्रिप्सिन पेंक्रियाज में ट्रिप्सिनोजन और काइमोट्रिप्सिनोजन नामक असक्रिय फॉर्म से स्रावित होते हैं। आंत में पित्त के संपर्क में आने के बाद ही वे सक्रिय हो पाते हैं। (ये जानकारी डॉ. गोपाल काबरा ने विशेष बातचीत में दी है) सब्सक्राइब करे youtube चैनल वसा का पाचन किसके द्वारा होता है , आमाशय में भोजन का पाचन कैसे होता है , प्रोटीन का पाचन कहाँ होता है , वसा , सेल्युलोज , कार्बोहाइड्रेट ? पाचन एवं अवशोषण , जल का अवशोषण किस अंग में होता है ? पाचन की कार्यिकी
(physiology of digestion in hindi) : पाचन की क्रिया को निम्नलिखित आठ चरणों में समझा जा सकता है – (i) मुखगुहा में पाचन : मुखगुहा में स्टार्च का पाचन होता है , जो
कुल भोजन का 5% और कार्बोहाइड्रेट का 20-30% होता है। (ii) आमाशय में पाचन : यहाँ प्रोटीन का पाचन होता है। (iii) छोटी आंत में पाचन : भोजन के तीनो अवयवों (कार्बोहाइड्रेटस , प्रोटीन और वसा) का
पाचन विभिन्न एन्जाइम्स (जो कि अग्नाशय और आंत्रीय ग्रंथियों के द्वारा स्त्रावित होते है। ) की सहायता से छोटी आंत में होता है। 5. अवशोषण : भोजन को ग्रहण करने और पचाने की क्रिया में प्रथम 2 क्रियायें है। ये भौतिक क्रियाएं आहारनाल में होती है। तीसरी क्रिया में पचे हुए पोषक तत्वों को आहारनाल की दिवार से रक्त में अवशोषित कर लिया जाता है। (i) मुख में अवशोषण : मुख द्वारा कोई अवशोषण नहीं होता है लेकिन कुछ औषधियां जो जीभ के निचे घुल जाती है , म्यूकस
मेम्ब्रेन के द्वारा अवशोषित हो जाती है। उदाहरण – आइसो प्रिनेलिन , ग्लिस्रोल ट्राईनाइट्रेट। (ii) आमाशय में अवशोषण : अमाशय में बहुत नियंत्रित और कम मात्रा में अवशोषित होता है। यहाँ पर जल , ग्लूकोज और एल्कोहल का अवशोषण होता है। ये पदार्थ वीनस सर्कुलेशन में आमाशय की भित्ति द्वारा अवशोषित हो जाते है। आयरन का अवशोषण तो छोटी आंत में होता है परन्तु उसको एचसीएल की उपस्थिति में आमाशय में भोजन के साथ घोला जाता है। (iii) छोटी आंत में अवशोषण : छोटी आंत
मुख्य अवशोषण स्थल है। कुल पचे हुए भोजन का 90% का अवशोषण छोटी आंत में हो जाता है। आहारनाल में भोजन का अवशोषण निम्न दो मार्गों से होता है – हिपैटिक पोर्टल सिस्टम की शिराओं द्वारा जो सीधे यकृत में खुलती है और आंत की लिम्फैटिक वाहिकाओं द्वारा जो लिम्फैटिक सिस्टम और थोरेसिक डक्ट द्वारा सीधे रक्त में खुलती है। कार्बोहाइड्रेट का अवशोषण : कार्बोहाइड्रेट के पाचन के फलस्वरूप बने मोनोसैकेराइड्स मुख्यतः हैक्सोज के रूप में (ग्लूकोज , फ्रक्टोज , मैनोज और गैलेक्टोज) आंत से अवशोषित होकर वीनस पोर्टल सिस्टम के रक्त में पहुँच जाते है। अमीनो अम्ल और प्रोटीन का अवशोषण : भोजन में लिए गए प्रोटीन पूर्णतया पच कर एमिनो अम्ल और अन्य अंत: उत्पाद के रूप में एक्टिव ट्रांसपोर्ट द्वारा अवशोषित होकर पोर्टल रक्त में पहुँचते है। अधिक मात्रा में उपस्थित एमीनो अम्ल को यकृत कोशिकाओं द्वारा पोर्टल रक्त से निकाल दिया जाता है , जो डिएमिनेटेड होकर अमोनिया और कीटों अम्ल में परिवर्तित हो जाते है। अमोनिया को यूरिया में रूपांतरित करके रक्त के माध्यम से किडनी द्वारा बहिर्स्त्रावित कर दिया जाता है जबकि कीटों अम्ल को ग्लूकोज अथवा पायरूविक अम्ल में परिवर्तित करके ऊर्जा उत्पादन में या संचित भोजन (वसा अथवा ग्लाइकोजन) के रूपमे उपयोग किया जाता है। वसा का अवशोषण : भोजन में उपस्थित वसा का पाचन आंत में उपस्थित पैन्क्रियाटिक लाइपेज के द्वारा होता है। वसा के पाचन के फलस्वरूप ग्लिस्रोल , वसा अम्ल और मोनोएसिलग्लिसरोल निर्मित होते है , वसा पाचन के अंतिम उत्पाद जैसे – माइसेल , वसीय अम्ल तथा ग्लिसरोल छोटी आंत की म्यूकोसा कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है। लैक्टियल्स के द्वारा वसा सिस्टर्ना काइनी में पहुँचता है जहाँ से यह थोरैसिक डक्ट द्वारा बायीं ब्रैकियोसिफैलिक शिरा में होता हुआ रक्त में प्रवेश कर जाता है। आंत से थोरैसिक डक्ट में पहुँचा लिम्फ वसा की अधिकता के कारण दुधिया दिखाई देता है इसे काइल कहते है। इस रास्ते से वसीय अम्ल और ग्लिसरोल रक्त प्रवाह से होते हुए यकृत में पहुँच जाते है। यकृत में इन्हें पहचान कर मानव वसा में परिवर्तित कर दिया जाता है। विटामिन्स का अवशोषण : जल में घुलनशील विटामिन जैसे विटामिन B कॉम्प्लेक्स (विटामिन B12 के अलावा) और विटामिन C आंत के विलाई से परासरण द्वारा रक्त में पहुँच जाते है। वसा में घुलनशील विटामिन A , D , E और K माइसेल में घुल कर आंत की म्यूकोसा कोशिकाओं में सरल विसरण द्वारा प्रवेश कर जाते है। वसा में घुलनशील विटामिन्स का अवशोषण बाइल की अनुपस्थिति में कम मात्रा में होता है। (iv) बड़ी आंत में अवशोषण : बिना पचे हुए भोजन में से लगभग 100 से 200 मिली लीटर जल का अवशोषण कोलन में हो जाता है। यह शरीर के जल स्तर को नियमित करती है। जल के अलावा यहाँ पर कुछ लवण और विटामिन्स का भी अवशोषण होता है। आंत में पाए जाने वाले सहजीवी बैक्टीरिया (ई. कोलाई) निष्क्रिय विटामिन्स को सक्रीय कर देते है (अर्थात विटामिन्स का संश्लेषण – जैसे विटामिन B कॉम्पलेक्स और विटामिन K का संश्लेषण ) जिनसे इनको अवशोषित किया जा सके।
स्यूडोरूमिनेट अथवा कॉप्रोफैगी : जन्तु अपने मल को खा लेते है ताकि उसमे शेष बची अपचित सेल्युलोज को पुनः पचाया जा सके और भोजन का पूर्णतया सदुपयोग किया जा सके। यह व्यवहार कॉप्रोफेगी कहलाता है। उदाहरण : खरगोश। टेबल : पाचन की क्रियाविधि का सारांश , स्तनीयों में मुख्य आमाशयी आंत्रीय एन्जाइम्स
टेबल : स्तनधारियों में पाए जाने वाले गैस्ट्रोइन्टेसटाइनल हार्मोन
आमाशय से कौन सा रस स्रावित होता है?आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आंशिक रूप से पचे भोजन (अम्लान्न) को भेजने से पहले, अबाध पेशी ऐंठन के माध्यम से भोजन के पाचन में सहायता के लिए प्रोटीन-पाचक प्रकिण्व(एन्ज़ाइम) और तेज़ अम्लों को स्रावित करता है (जो ग्रासनलीय पुरःसरण के ज़रिए भेजा जाता है).
आमाशय में पाचक रस की क्या भूमिका है?पाचक रस में HCl अम्ल पाया जाता है। गैस्ट्रिक HCl अम्लीय माध्यम प्रदान करता है, जो गैस्ट्रिक खमीर पेप्सिन को सक्रिय करता है। यह सक्रिय होकर भोजन में पाए जाने वाले विभिन्न कीटाणुओं को मारता है।
पेट में पाचक रसों का स्राव कैसे नियंत्रित होता है बताइए हिंदी?इसी प्रकार जठर और आंत्रिक स्राव भी तंत्रिका संकेतों से उद्दीप्त होते हैं। आहार नाल के विभिन्न भागों की पेशियों की सक्रियता भी स्थानीय एवं केंद्रीय तंत्रिकीय क्रियाओं द्वारा नियमित होती हैं। हार्मोनल नियंत्रण के अंतर्गत, जठर और यांत्रिक म्यूकोसा से निकलने वाले हार्मोन पाचक रसों के स्राव को नियंत्रित करते हैं।
आमाशय में पाए जाने वाले एंजाइम कौन कौन से हैं?अमाशय में पेप्सिन नामक एंजाइम पाया जाता है।
|