अंतर स्पष्ट कीजिए माया रस राम रस - antar spasht keejie maaya ras raam ras

  • पाठ १ : प्रेरणा
  • पाठ २ : लघुकथाएँ
  • पाठ ३ : पंद्रह अगस्त
  • पाठ ४ : मेरा भला करने वालों से बचाएँ
  • पाठ ५ : मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा
  • पाठ ५ : मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला

आकलन

सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए :

(अ) (१) अंतर स्पष्ट कीजिए -

अंतर स्पष्ट कीजिए माया रस राम रस - antar spasht keejie maaya ras raam ras

(२) लिखिए -

‘मैं ही मुझको मारता’ से तात्पर्य………
उत्तर: कवि के अनुसार अहंकार एक ऐसा दुर्गुण है, जो मेरे अंदर ही पनपता है। यह किसी और को नहीं, अपितु मुझे ही मारता है अर्थात तकलीफ देता है। इसके कारण ही मैं गलत फैसले लेकर जीवन में परेशानियों को न्योता देता हूँ।

(आ ) सहसंबंध जोड़कर अर्थपूर्ण वाक्य बनाइए -

अंतर स्पष्ट कीजिए माया रस राम रस - antar spasht keejie maaya ras raam ras

काव्य सौंदर्य

२. (अ)  “जिनकी रख्या तूँ करें ते उबरे करतार”, इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ संत दादू दयाल जी द्वारा रचित ‘मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा कविता से ली गई है। यहाँ संत जी ने भक्ति की महिमा व प्रेम की महत्ता का अनुपम वर्णन किया है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से संत जी ने ईश्वर की महिमा का बखान किया है। वे कहते हैं कि जिनकी रक्षा स्वयं ईश्वर करते हैं, उनका उद्धार निश्चित है। उन्हें संसार में किसी का भय नहीं रहता है। अत: सभी को ईश्वर की शरण में जाने वाली राह को अपनाना चाहिए।

(आ) ‘ संत दादू के मतानुसार ईश्वर सबमें हैं ‘, इस आशय को व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ दूँढकर उनका भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: काहै कौं दुख दीजिए, साईं है सब माहिं। दादू एके आत्मा, दूजा कोई नाहिं।
प्रस्तुत पंक्तियाँ संत दादू दयाल जी द्वारा रचित ‘मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा’ कविता से ली गई हैं। यहाँ संत जी ने भक्ति की महिमा व प्रेम की महत्ता का अनुपम वर्णन किया है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से संत जी ने दूसरों को पीड़ा न देने की सीख दी है। वे कहते हैं कि ईश्वर सभी जीवों में निवास करते हैं, इसलिए किसी को दुख देना अर्थात ईश्वर को दुख देने के समान है। आत्मा ईश्वर का ही रूप है और सभी आत्माएँ एक ही हैं। इस कारण संसार में किसी भी जीव को दुख देने से बचने का सदैव प्रयास करना चाहिए।

अभिव्यक्ति

३. (अ) “अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है’, इस उक्ति पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अहंकार मनुष्य का एक बहुत बड़ा अवगुण है। यह बुद्धि को कुंठित कर देता है। अहंकारी मनुष्य अपने सामने दूसरों को हीन समझता है। आत्ममुग्धता व अहंकार के कारण उसकी वैचारिक क्षमता भी बहुत बुरी तरह प्रभावित होती है। ऐसे में वह सच्चाई को कभी स्वीकार नहीं कर सकता है। सही-गलत का फैसला करना भी उसके लिए मुश्किल हो जाता है। वह जो भी करता है, उसे वही सही लगता है। इसी भ्रम में वह अक्सर गलत फैसले ले लेता है, जिसका कभी-कभी बहुत बड़ा खामियाजा उसे भुगतना पड़ता है। इस अहंकार के कारण वह अंततः: स्वयं का ही दुश्मन बन जाता है। अत: मनुष्य को अहंकारी नहीं, बल्कि विनम्र बनना चाहिए।

(आ) ‘प्रेम और स्नेह मनुष्य जीवन का आधार है’, इस संदर्भ में अपना मत लिखिए।
उत्तर: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में लोगों के साथ रहता है। यह समाज संबंधों का जाल है। इस समाज का हर प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर है। हर इंसान को यहाँ कभी-न-कभी एक-दूसरे की जरूरत जरूर पड़ती है। प्रेम व स्नेह से रहते हुए हर मनुष्य समाज में सहयोग प्राप्त कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति समाज में प्रेम से रहता है, तो लोगों का व्यवहार भी उसके प्रति वैसा ही होगा। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति नफरत और क्रोध का व्यवहार दूसरों के साथ करता है, तो लोग भी उसके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे। अत: यह कहा जा सकता है कि प्रेम और स्नेह मनुष्य जीवन का आधार है। इसके बिना मनुष्य का जीवनयापन इतना सरल व सुलभ नहीं होगा।

रसास्वादन

४. ईश्वर भक्ति तथा प्रेम के आधार पर साखी के प्रथम छह पदों का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर: संत दादू दयाल जी दवारा लिखित ‘भक्ति महिमा’ कविता “संत दादू दयाल ग्रंथावली’ नामक रचना का एक छोटा-सा अंश है। कवि ने यहाँ गुरु का सम्मान करने, ईश्वर की भक्ति करने, अहंकार का त्याग करने व सभी जीवों से प्रेम करने जैसे महत्त्वपूर्ण संदेश दिए हैं। मनुष्य को माया का त्याग कर ईश्वर की भक्ति में मन लगाना चाहिए। जिस मन में अहंकार रहता है, उसमें ईश्वर का निवास नहीं हो सकता है। इस संसार में अहंकार से बड़ा मनुष्य का कोई और शत्रु नहीं है। अत: ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अहंकार का त्याग करना होगा। मुक्ति का एकमात्र मार्ग ईश्वर की भक्ति है। जिसकी रक्षा ईश्वर करते हैं, उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता है। जो व्यक्ति प्रेम की भाषा समझ गया और सभी से प्रेम करने लगा वह सभी विद्वानों से श्रेष्ठ बन जाता है। ईश्वर सभी जीवों में रहते हैं, इसलिए किसी को कष्ट नहीं देना चाहिए। इस संसार में ईश्वर और संतजन यही दो अनमोल रतन हैं। अत: इनकी सेवा व भक्ति में स्वयं को समर्पित कर देना चाहिए। प्रस्तुत साखियाँ दोहा छंद में लिखी गई हैं। इनमें देशज शब्दों का प्रयोग बहुत ही अधिक किया गया है। इसके फलस्वरूप यह कविता बहुत अधिक प्रभावी और व्यापक बन गई है। कविता में लयात्मक शब्दों के प्रयोग कविता गेय व श्रवणीय बन गई है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

५. जानकारी दीजिए:

(अ) निर्गुण शाखा के संत कवि-
उत्तर: संत कबीरदास, गुरु नानक, संत दादू दयाल, संत रैदास, संत सुंदरदास, संत मलूकदास आदि।
(आ) संत दादू के साहित्यिक जीवन का मुख्य लक्ष्य-
उत्तर: लोगों को सच्ची ईश्वर भक्ति के बारे में सम॒झाना और सामाजिक बुराइयों का विरोध कर समाज को सही राह दिखाना ।

६. निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए:

(१) बाबु साहब ईश्वर के लिए मुझ पे दया कीजिए।
उत्तर: बाबू साहब ईश्वर के लिए मुझ पर दया कीजिए।
(२) उसे तो मछुवे पर दया करना चाहिए था।
उत्तर: उसे तो मछुवे पर दया करनी चाहिए थी।
(३) उसे तुम्हारे शक्ती पर विश्वास हो गया।
उत्तर: उसे तुम्हारी शक्ति पर विश्वास हो गया।
(४) वह निर्भीक व्यक्ती देश में सुधार करता घूमता था।
उत्तर: वह निर्भीक व्यक्ति देश में सुधार करता घूमता था।
(५) मल्लिका ने देखी तो आँखे फटी रह गया।
उत्तर: मल्लिका ने देखा तो आँखें फटी रह गईं।
(६) यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मार्च पर भारा अप्रैल लग जायेगी।
उत्तर: यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मार्च पर भारी अप्रैल लग जाएगा।
(७) हमारा तो सबसे प्रीती है।
उत्तर: हमारी तो सबसे प्रीति है।
(८) तुम जूठे साबित होगा।
उत्तर: तुम झूठे साबित होगे।
(९) तूम ने दीपक जेब में क्यों रख लिया ?
उत्तर: तुमने दीपक जेब में क्यों रख लिए ?
(१०) इसकी काम आएगा।
उत्तर: इसके काम आएँगी।