आर्थिक समानता क्या है भारत में आर्थिक असमानता के क्या कारण है? - aarthik samaanata kya hai bhaarat mein aarthik asamaanata ke kya kaaran hai?

आर्थिक असमानता अथवा आय तथा सम्पत्ति के असमान वितरण से अभिप्राय अर्थव्यवस्था उन परिस्थितियों से है, जिसमें कि राष्ट्र के कुछ लोगों की आय, राष्ट्र की औसत आय से बहुत अधिक तथा अधिकाश लोगों की आय, राष्ट्र की औसत आय से बहुत कम होती है। आय तथा सम्पत्ति के असमान द्वितरण की समस्या का सम्बन्ध मुख्य रूप से व्यक्तिगत आय के वितरण में विषमताओं से होता है। इससे अभिप्राय यह है कि कुछ व्यक्तियों की आय बहुत अधिक है जबकि अधिकतर लोगों की आय बहुत कम है।

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Contents

  • आर्थिक असमानता
  • आर्थिक असमानता के प्रभाव
  • भारत में आर्थिक असमानता के कारण
    • 1. जन्मजात योग्यताओं में अन्तर
    • 2. अवसरों की असमानता
    • 3. व्यावसायिक भिन्नता
    • 4. आर्थिक शोषण
    • 5. सम्पत्ति एवं भूस्वामित्व की भावना
    • 6. उत्तराधिकार
    • 7. शहरी क्षेत्र में सम्पत्ति का निजी स्वामित्व
    • 8. उत्तराधिकार के नियम
    • 9. व्यावसायिक प्रशिक्षण में असमानता
  • भारत में आर्थिक असमानताओं को दूर करने के उपाय
    • 1. भूमि सुधार
    • 2. रोजगार में वृद्धि
    • 3. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास
    • 4. जन कल्याण कार्यक्रमों में वृद्धि
    • 5. लघु तथा कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन
    • 6. जनसंख्या नियन्त्रण
    • 7. एकाधिकारी तथा प्रतिरोधात्मक व्यापारिक व्यवहार पर नियंत्रण
    • 8. मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण
    • 9. रोजगार तथा मजदूरी नीतियाँ
    • 10. सामाजिक सुधार
    • 11. ‘गरीबी हटाओ’ कार्यक्रमों का क्रियान्वयन
    • 12. कीमत तथा वितरण नीतियाँ

आर्थिक असमानता

आर्थिक असमानता व्यक्तियों के समूह, आबादी के समूहों या देशों के बीच आर्थिक अन्तर को दर्शाता है। आर्थिक असमानता कभी-कभी आय असमानता, धन असमानता या धन अंतर को प्रदर्शित करती है। अर्थशास्त्री इसके लिए धन, आय और उपभोग इन तीन मापो का प्रयोग करते हैं। आर्थिक असमानता, विभिन्न समाज, विभिन्न समय, आर्थिक योजनाओं और आर्थिक प्रणालियों के बीच परिवर्तित होती रहती है। दो देशों के मध्य राष्ट्रीय आय असमानता ज्ञात करने के लिए गिनी गुणांक का प्रयोग किया जाता है।

आर्थिक असमानता के प्रभाव

आर्थिक असमानता के प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. साधनों का कुनिर्धारण आय एवं सम्पत्ति के असमान वितरण का सबसे विपरीत प्रभाव यह है कि प्राकृतिक साधनों के कुनिर्धारण की पर्याप्त सम्भावना रहती है। इन साधनों को उत्पादक उपभोग से अनुत्पादक मार्गों की ओर मोड़ दिया जाता है। अतिलाभप्रद साधनों का व्यय अनावश्यक अर्थात विलासितापूर्ण वस्तुओं में कर दिया जाता है, जिससे आय की असमानताएँ और भी बढ़ जाती है।
  2. असमान अवसर – प्रायः अमीर लोग धन एवं साधनों की विशिष्टता के कारण सभी बेहतर अवसरों का प्रयोग कर लेते हैं, जबकि निर्धन श्रेणियों इनसे वंचित रह जाती है। फलतः गरीब लोगों पर अधिक विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  3. जीवन स्तर में अंतर आय और सम्पत्ति के वितरण में असमानता एक ही देश में दो श्रेणियों के जीवन स्तर में भारी अन्तर ला देती है। समृद्ध लोग सब प्रकार की विलासिताओं का आनन्द लेते हैं, जबकि अन्य लोगों को दो समय का भोजन भी नसीब नहीं होता है। अतः एक ही स्थान पर दो समुदायों के बीच जीवन स्तर का भारी अन्तर होता है।
  4. आर्थिक शक्तियों का केन्द्रीकरण – आय के असमान वितरण का एक अन्य गम्भीर परिणाम आर्थिक शक्तियों के प्रयोग द्वारा राजनैतिक शक्ति प्राप्त कर लेते है, क्योंकि इन बड़े व्यापारिक घरानो के यह है कि इससे आर्थिक शक्तियों का कुछ ही हाथों में केन्द्रीयकरण हो जाता है। समृद्ध लोग अपनी पास बड़ी मात्रा में आर्थिक साधन उपलब्ध होते हैं, जिस कारण वे केन्द्र एवं प्रान्तीय स्तर पर चुनाव जीतने में सफल होते हैं।
  5. भ्रष्टाचार, समृद्धि तथा आर्थिक शक्तियों भ्रष्टाचार को जन्म देती है तथा अधिक पन अन करने के लिए गलत ढंग अपनाये जाते है। अतः इससे कुप्रथाएं उत्पन्न होती है जोकि अनेक बुराइयों के लिये उत्तरदायी है।
  6. आय की असमानता होने के कारण निर्धन लोगों को शिक्षा तथा अन्य प्रशिक्षण के अवसर नहीं प्राप्त होते हैं। अतः उनका मानसिक एवं शारीरिक विकास ठीक ढंग से होता, जिससे कार्य की दक्षता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। उचित समझे तथा निपुणता के बिना प्रक्रिया में पूर्ण अदक्षता रहती है।
  7. निर्धनता तथा असुरक्षा की वृद्धि आय की समानता निर्धनता की और ले जाती है, जि असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है। केवल समृद्ध समाज ही समतावादी होने की क्षमता रखता है। एक समृद्ध समाज का समतावादी होना आवश्यक है। अन्यथा इसकी समृद्धि बेरोजगारी में बिखर जायगी।
  8. बेरोजगारी की समस्या आय और धन की असमानता देश को बेरोजगारी की समस्या को ओर ले जाती है, क्योंकि निर्धन लोगों को रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त नहीं होते हैं। सभी यह का समृद्ध समाज के भाग में आ जाते हैं।
आर्थिक समानता क्या है भारत में आर्थिक असमानता के क्या कारण है? - aarthik samaanata kya hai bhaarat mein aarthik asamaanata ke kya kaaran hai?
आर्थिक समानता क्या है भारत में आर्थिक असमानता के क्या कारण है? - aarthik samaanata kya hai bhaarat mein aarthik asamaanata ke kya kaaran hai?
आर्थिक असमानता

भारत में आर्थिक असमानता के कारण

भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानता के कई कारण है। वैयक्तिक आय में भिन्नता, योग्यता, अवसर, कुशलता एवं सम्पत्ति स्वामित्व पर निर्भर है. जबकि क्षेत्रीय विषमताएँ तो कई कारणों का सामूहिक परिणाम है। अतः भारत में आर्थिक असमानता के कारण निम्न हैं-

1. जन्मजात योग्यताओं में अन्तर

यह आर्थिक असमानता का एक प्रमुख कारण है। कुछ लोग दूसरो की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान, योग्य, परिश्रमी एवं कुशल होते हैं और ऐसे लोगों की आप कम बुद्धिमानो अयोग्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक ही होगी। आप आर्थिक असमानता के कारण Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

2. अवसरों की असमानता

व्यक्तियों के जन्मजात गुणों में समानता होते हुए भी उन व्यक्तियों को अधिक आय एवं सम्पत्ति प्राप्त होती है, जिन्हें अच्छा अवसर मिल जाता है। जिन लोगों को अवसर नहीं मिल पाता वे पिछड़ जाते हैं। जहाँ धनी वर्ग के सामान्य बुद्धि वाले बच्चे उचित अवसर मिलने से आर्थिक उन्नति कर जाते है, जबकि कुशाग्र बुद्धि वाले परिश्रमी एवं योग्य बच्चे अच्छे अवसर के अभाव में पिछड़ जाते हैं। यह कहा जाता है कि आधुनिक समाज में धन का वितरण अवसर के अनुसार होता है। एक निर्धन का पुत्र अपनी शक्ति एवं योग्यता से अवसर उत्पन्न कर सकता है, धनी व्यक्ति के पुत्र को अवसर स्वतः ही मिल जाता है।

3. व्यावसायिक भिन्नता

व्यावसायिक भिन्नता भी आय एवं सम्पत्ति की असमानता का एक प्रमुख कारण है, जहाँ फिल्मी अभिनेताओं को अपने व्यवसाय में इतनी ऊंची दर से आय प्राप्त होती है कि शिक्षक उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता है। जोखिमपूर्ण व्यवसायों से आय अधिक प्राप्त होती है, जबकि साधारण व्यवसायों में लाभ उतना ही कम मिलता है। पर निर्धन को योग्य होने पर भी सरलतापूर्वक अवसर नहीं मिलते।

4. आर्थिक शोषण

व्यक्तिगत लाभ एवं सम्पत्ति के स्वामित्व की लालसा व्यक्ति को मानव से दानव बना सकती है। यही भावना पूँजीपतियों द्वारा श्रमिकों का शोषण, उत्पादकों एवं व्यापारियों द्वारा उपभोक्ता का शोषण धनी व्यक्तियों द्वारा गरीबों का शोषण तथा सबलों द्वारा निर्बलों के शोषण की प्रवृत्ति समाज में धन एवं आय में अन्तराल पैदा करती है। भारत में शोषणकर्ताओं की आय शोषित के मुकाबले काफी अधिक है।

5. सम्पत्ति एवं भूस्वामित्व की भावना

जो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था है वहाँ सम्पत्ति एवं भू स्वामित्व की असमानता आर्थिक विषमता का मुख्य घटक है। यह आर्थिक असमानता को बढ़ाने के साथ साथ उसे स्थायी बनाती है क्योंकि वितरण का आधार व्यक्ति की कुशलता नहीं वरन साधनों की मात्रा से है, जितनी ही जिसके पास सम्पत्ति एव पूँजी अधिक होती है उसको राष्ट्रीय आय में उतना ही अधिक माग मिलता है। भारत में जागीरदारों, बड़े-बड़े भू-स्वामियों, उद्योगपतियों एवं सम्पत्ति-स्वामियों को राष्ट्रीय आय में भूमिहीनों, श्रमिको और सम्पत्तिहीनों से कहीं अधिक हिस्सा मिलता है, जो आर्थिक विषमता को बढ़ाता है।

6. उत्तराधिकार

भारत में प्रचलित उत्तराधिकार प्रथा से पैतृक सम्पत्ति पुश्त दर पुश्त विरासत के रूप में उत्तराधिकारियों को मिलती रहती है। धनी घर में जन्म लेने वाले बच्चे भाग्यशाली होते हैं और चोंदी की चम्मच मुँह में लेकर जन्म लेते हैं, जबकि निर्धन घर में जन्म लेने वाले बच्चों को गरीबी, ऋणग्रस्तता एवं मुखमरी विरासत में मिलती है। प्रो. टाजिग का कहना है कि “उत्तराधिकार प्रथा ही पूँजी तथा आय अर्जित करने वाली परिसम्पत्तियों की असमानताओं को स्थायित्व प्रदान करती है और धनी तथा निर्धनों के बीच गहरी खाई की व्याख्या करती है।”

7. शहरी क्षेत्र में सम्पत्ति का निजी स्वामित्व

शहरी क्षेत्र में उद्योगों, व्यापार, भूमि, मकानों, आदि सम्पत्ति पर निजी स्वामित्व पाया जाता है। कुछ लोगों के अधिकार में अधिकतर शहरी सम्पत्ति होती है। इसके विपरीत शहरों की अधिक जनसंख्या निर्धन होती है। शहरों में पूंजीपति उद्योग, व्यापार, यातायात तथा अन्य व्यवसायों में पूँजी का निवेश करके अधिक आय प्राप्त कर पाते है परन्तु शहरों का मध्यम तथा निर्धन वर्ग अपना जीवन निर्वाह भी बड़ी कठिनाई से कर पाता है। यद्यपि यह वर्ग अधिक • शिक्षित तथा योग्य होता है. परन्तु पूँजी की कमी के कारण इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार सम्भव नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप शहरी क्षेत्र में भी आय तथा सम्पत्ति के वितरण की असमानता बनी रहती है।

8. उत्तराधिकार के नियम

भारत में प्रचलित उत्तराधिकार के नियमों के फलस्वरूप भी आय तथा सम्पत्ति के वितरण की असमानता में वृद्धि हुयी है तथा यह स्थायी बन गयी है। उत्तराधिकार के नियमों के अनुसार किसी धनी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी सम्पत्ति उसकी सन्तान को मिलती है। इस प्रकार धनी व्यक्ति की सन्तान प्रारम्भ से ही धनी हो जाती है। आप आर्थिक असमानता Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

इसके विपरीत किसी निर्धन व्यक्ति की मृत्यु पर उसकी सन्तान को कोई सम्पत्ति प्राप्त नहीं होती तथा वह आरम्भ से ही निर्धन रहता है। वह अपने परिश्रम द्वारा ही अपनी आय तथा सम्पत्ति में वृद्धि करने का प्रयास कर सकता है, परन्तु इसकी सम्भावनाएँ बहुत कम होती है। अतः उत्तराधिकार के नियमों ने भारत में आय तथा सम्पत्ति के वितरण की असमानता को स्थायी बना दिया है।

9. व्यावसायिक प्रशिक्षण में असमानता

व्यावसायिक प्रशिक्षण में पायी जाने वाली असमानता भी आय की असमानता का एक प्रमुख कारण है। कुछ व्यवसायों जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, कम्पनी प्रबन्धक तथा वकील आदि की आय तथा अन्य व्यवसायों में लगे हुये लोगों की आय में बहुत अन्तर होता है तथा डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक व वकील आदि की आय बहुत ज्यादा होती है परन्तु इन कोर्सों को करना निर्धन व्यक्ति के बच्चों के लिए सामान्यतया सम्भव नहीं है। इन व्यावसायिक कोसों का प्रशिक्षण अधिकतर धनी वर्ग के बच्चे ही प्राप्त कर पाते हैं। इसके फलस्वरूप आय की असमानता बढ़ती जाती है।

आर्थिक समानता क्या है भारत में आर्थिक असमानता के क्या कारण है? - aarthik samaanata kya hai bhaarat mein aarthik asamaanata ke kya kaaran hai?
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भारत में आर्थिक असमानताओं को दूर करने के उपाय

भारत के संविधान में ही समानता का अधिकार है। आर्थिक असमानता में यथासम्भव कभी करना ही आर्थिक समानता का आदर्श है। भारतीय मिश्रित अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानताओं को यथासम्भव कम करने के लिए द्वि-दिशा आक्रमण (Two Pronged Attack) के उदार उपायों का सहारा लिया। जाता है, जहाँ एक ओर वैधानिक एवं प्रजातान्त्रिक तरीकों से धनी व्यक्तियों की आय और सम्पत्ति को कम किया जा रहा है।

वहाँ दूसरी ओर निर्धनों की आय, उत्पादन क्षमता, धनोपार्जन विधियों में वृद्धि की जा रही है। स्वतन्त्रता के पश्चात् से ही सरकार इस बात का प्रयत्न कर रही है कि देश में आय तथा आर्थिक असमानता को कम किया जाये। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकार द्वारा अपनायी गयी नीति की मुख्य विशेषताएँ या सरकार द्वारा अपनाये गये मुख्य उपाय निम्नलिखित हैं

1. भूमि सुधार

गाँवों में आय तथा सम्पत्ति की असमानता को कम करने के लिए भूमि सुधार किये गये है। भूमि सुधार सम्बन्धी नीति का मुख्य उद्देश्य भूमि स्वामित्व की असमानता में कमी लाना है। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आजादी के बाद जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गयी तथा जमींदारी की उच्चतम सीमा से अधिक भूमि का वितरण उस पर काश्त करने वाले काश्तकारों में कर दिया गया। कृषि भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारित करने के लिए कानून बनाये गये है।

सीमा से ऊपर की जमीन उनके स्वामित्वों से ली जा रही है। इस जमीन का वितरण उन लोगों में किया जा रहा है, जिनके पास बहुत थोड़ी जमीन है या जो भूमिहीन है, परन्तु भारत में भूमि सुधार की प्रगति बहुत धीमी रही है। भूमि सुधार के अधिकतर उद्देश्य अधिक सफल नहीं हो सके है।

2. रोजगार में वृद्धि

भारत में आर्थिक असमानता एवं गरीबी को मिटाने के लिए सरकार ने योजनाओं के अन्तर्गत पिछले 70 वर्षों में लगभग 26.5 करोड़ से अधिक अतिरिक्त लोगों को रोजगार दिया है। पहली योजना में 75 लाख अतिरिक्त लोगों को रोजगार दिया गया वहीं चौथी योजना में लगभग 170 लाख अतिरिक्त लोगों को रोजगार दिया गया। गरीबी हटाओ कार्यक्रम के अन्तर्गत भी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार तथा ग्रामीण भूमिहीन श्रमिक रोजगार गारन्टी योजना द्वारा रोजगार दिया जा रहा है।

जवाहर रोजगार योजना के तहत भी गरीबी रेखा के नीचे 4-6 करोड़ परिवारों को रोजगार दिया गया। आठवीं योजना में रोजगार के 3 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य बनाया गया। दसवी योजना में 5 करोड़ आर्थिक रोजगार का लक्ष्य बनाया गया।

3. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास

सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र का तेजी से विकास करने की नीति को अपनाया है। इस क्षेत्र के विकास के कई उद्देश्य आय तथा आर्थिक असमानता को कम करना है। बैंको के राष्ट्रीयकरण का भी एक मुख्य उद्देश्य यही है। इसके फलस्वरूप निजी लोगों के हाथ में धन तथा आय में केन्द्रीयकरण को रोकने तथा इस प्रकार समानता को बढ़ाने में मदद मिलेगी, किन्तु सरकार द्वारा जिस आदर्श की प्राप्ति हेतु सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार की नीति का अनुसरण किया गया उसमें असफलता की प्राप्ति हुई। अतः विवशतावश अब सार्वजनिक क्षेत्र की बजाय निजी क्षेत्र को विकसित किये जाने को अधिक महत्व प्रदान किया जा रहा है।

4. जन कल्याण कार्यक्रमों में वृद्धि

भारत में आर्थिक विषमताओं को कम करने के लिए जनकल्याण कार्यक्रमों में निरन्तर वृद्धि की गयी है ताकि गरीबों का आर्थिक स्तर ऊपर उठे। इस दिशा में समाज कल्याण विभाग द्वारा सहायता अनुदान, बेकारी भत्ता, चिकित्सा सुविधाएँ न्यायिक सहायता. निःशुल्क शिक्षा, 20 सूत्रीय कार्यक्रम द्वारा आय एवं रोजगार में वृद्धि महत्वपूर्ण रही है, किन्तु कुल व्यय जनसंख्या को देखते हुये नगण्य है, अतः स्थिति में विशेषकर सुधार नहीं हुआ है। आप आर्थिक असमानता Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

5. लघु तथा कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन

पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि में लघु तथा कुटीर – उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन देने की नीति को अपनाया गया है। इन उद्योगों को प्रोत्साहन देने से आय तथा सम्पत्ति के केन्द्रीयकरण को रोकने में सहायता प्राप्त होगी। इस नीति के फलस्वरूप बेरोजगार मजदूरों को रोजगार दिया जा सकेगा। इस प्रकार निर्धन लोगों की आय में वृद्धि होगी। इन सबके कारण आर्थिक असमानता कम होगी। कुटीर उद्योगों के विकास के फलस्वरूप निम्न आय वाले लोगों को अपनी आय में वृद्धि करने के अवसर प्राप्त हो सकेंगे।

6. जनसंख्या नियन्त्रण

गरीबों के अधिक बच्चे और कम आय आर्थिक असमानता को बढ़ाते हैं। अतः जनसंख्या पर नियन्तण के लिए देश में पिछले 70 सालों में 50100 करोड़ रुपये व्यय किये गये है और उसमें नसबन्दी, लूप तथा परिवार नियोजन पद्धतियों से लगभग 30 करोड़ बच्चों का जन्म रोका गया है। सातवीं योजना में भी परिवार नियोजन कार्यक्रमों को प्रोत्साहन दिया गया। भारत में जन्म दर घटकर सातवीं योजना के अन्त तक 30 प्रति हजार हो गयी और आठवी योजना में 23 से 25 प्रति हजार का लक्ष्य निर्धारित किया गया, किन्तु 2005 में जन्मदर 23.8 प्रति हजार रही है।

7. एकाधिकारी तथा प्रतिरोधात्मक व्यापारिक व्यवहार पर नियंत्रण

शहरी सम्पत्ति के केन्द्रीयकरण को रोकने के लिए सन 1969 में एकाधिकार तथा प्रतिरोधात्मक व्यापारिक अधिनियम पास किया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य आर्थिक शक्ति के केन्द्रीयकरण को रोकना है। सरकार ने इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए औद्योगिक लाइसेंस की नीति को भी अपनाया है। इस सम्बन्ध में हजारी समिति, दत्त समिति आदि की रिपोटों से ज्ञात होता है, ये सभी उपाय अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सके।

8. मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण

गरीबो को महंगाई की मार से बचने तथा मुद्रा स्फीति द्वारा साधनों का हस्तान्तरण गरीबों से अमीरों के हित में रोकने के लिए हीनार्थ प्रबन्धन एवं फिजूलखर्ची पर • नियन्त्रण किया जाना चाहिए। उत्पादक विनियोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यकता की वस्तुओं के लिए गल्ले की 4.6 लाख दुकाने खोली गयी है। अधिकतम मूल्यों पर नियन्त्रण रखा गया। है। मुनाफाखोरी एवं चोरबाजारी को नियन्त्रित किया गया है। आप आर्थिक असमानता Hindibag पर पढ़ रहे हैं।

9. रोजगार तथा मजदूरी नीतियाँ

देश की बेरोजगार जनता को रोजगार प्रदान करके भी आय की असमानता को कम किया जा सकता है। विभिन्न रोजगार योजनाओं के माध्यम से रोजगार के अधिक से अधिक अवसर बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। इस सम्बन्ध में अनेक विशेष योजनाओं जैसे – छोटे किसानों के विकास की एजेन्सी, सीमान्त किसान तथा कृषि श्रमिक एजेन्सी (MFALA), सूखा क्षेत्र कार्यक्रम, काम के बदले अनाज आदि को लागू किया गया है।

पाँचवी योजना में एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम तथा छठीं योजना में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम आरम्भ किये गये है। सातवी योजना में जवाहर रोजगार योजना आरम्भ की गयी थी। इन विभिन्न योजनाओं का आय तथा सम्पत्ति के वितरण पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है। अभी हाल में सरकार द्वारा आर्थिक असमानता कम करने हेतु पूर्व में घोषित कार्यक्रमों के स्थान पर नवीन कार्यक्रमों की घोषणा की है। इन कार्यक्रमों में प्रमुख सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, ग्राम स्वरोजगार योजना आदि प्रमुख हैं।

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आर्थिक असमानता

10. सामाजिक सुधार

प्रदर्शनात्मक प्रभाव से प्रेरित होकर गरीब लोग जब धनिकों की तरह फिजूलखर्ची करें तो आर्थिक विषमता में वृद्धि होती है। अतः सरकार मृत्यु भोज एवं विवाहोत्सवों के भारी व्यय पर रोक लगा रही है। बाल विवाह तथा दहेज की रोक के लिए अधिनियम पारित किये हैं, परन्तु इन पर प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।

11. ‘गरीबी हटाओ’ कार्यक्रमों का क्रियान्वयन

इस कार्यक्रम के अन्तर्गत समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (I.R.D.P.). राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (N.R.E.P.). ग्रामीण भूमिहीन श्रमिक रोजगार गारण्टी योजना (R.L.G.E.P.) तथा 20 सूत्रीय कार्यक्रम लागू करके देश में लगभग 4.5 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया गया है, जबकि सातवीं योजना में लगभग 6 करोड़ लोगो को गरीबी रेखा के ऊपर उठाने का लक्ष्य था। जवाहर रोजगार योजना के साथ अन्य योजनाओं से गरीबी मिटाने का प्रयास जारी है।

12. कीमत तथा वितरण नीतियाँ

आय की असमानता को कम करने के लिए कीमत तथा वितरण नीतियों को भी अपनाया गया है। उनका उद्देश्य समाज के निर्धन वर्ग को सहायता देना है। आवश्यकता की कई वस्तुओं जैसे चीनी, कपड़ा, कागज आदि के लिए सरकार ने दोहरी नीति अपनाई है। इसके फलस्वरूप निर्धन वर्ग को सम्पन्न वर्ग की तुलना में वस्तुएँ सस्ती प्राप्त होती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा निर्धन वर्ग को आवश्यकताओं की वस्तुएँ कम कीमत पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गयी है, परन्तु इस उपाय का आय तथा आर्थिक असमानता को दूर करने पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि देश में आर्थिक असमानता को कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं। पर देश में प्रजातान्त्रिक मिश्रित अर्थव्यवस्था में काला धन, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, रिश्वतखोरी प्रशासनिक अकुशलता, गरीबी निवारण की असफलता तथा राजनीतिक इच्छा-शक्ति के अभाव से आर्थिक विषमता घटने के बजाय बढ़ती जा रही है तथा आर्थिक असमानता की खाई निरन्तर चौड़ी होती जा रही है। अतः इन सामाजिक बुराइयों एवं आर्थिक विषमता के कारणों को जब तक प्रभावी ढंग से नियन्त्रित नहीं किया जाता, आर्थिक समानता की कल्पना एक राजनीतिक नारा बनकर रह जायेगी।

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