MP Board Class 12th Physics Important Questions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ युक्तियाँ तथा सरल परिपथStudents can also download MP Board 12th Model Papers to help you to revise the complete Syllabus and score more marks in your examinations. Show
अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ युक्तियाँ तथा सरल अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरअर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ युक्तियाँ तथा सरल विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. ठोसों में ऊर्जा बैण्ड (Energy Bands in Solids)-प्रत्येक पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना होता है। प्रत्येक परमाणु के केन्द्रीय भाग में धनावेशित नाभिक होता है जिसके चारों ओर ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन कुछ निश्चित कक्षाओं में परिक्रमण करते रहते हैं। इस प्रकार किसी पृथक्कृत परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के विविक्त (discrete) एवं सुस्पष्ट ऊर्जा-स्तर होते हैं। जब विभिन्न परमाणु एक-दूसरे के अत्यधिक निकट आकर ठोस की रचना करते हैं तब इन परमाणुओं की बाह्य कक्षाएँ एक-दूसरे को ढक लेती हैं। इन कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन की गति नाभिक-नाभिक, इलेक्ट्रॉन-नाभिक तथा इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन के बीच होने वाली अन्योन्य क्रियाओं के कारण, किसी पृथक्कृत परमाणु में इलेक्ट्रॉन की गति से भिन्न होती है। इस स्थिति में परमाणुओं के ऊर्जा-स्तरों में विक्षोभ उत्पन्न हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक. ऊर्जा-स्तर अनेक ऊर्जा-स्तरों में विभक्त हो जाता है जिनमें ऊर्जा का सतत परिवर्तन होता रहता है। ये ऊर्जा-स्तर एक-दूसरे के अत्यधिक निकट होने के कारण बैण्ड का रूप ले लेते हैं, जिन्हें ऊर्जा बैण्ड (energy band) कहते हैं। वह ऊर्जा बैण्ड जिसमें संयोजक इलेक्ट्रॉनों (valence electrons) के ऊर्जा-स्तर उपस्थित होते हैं, संयोजी बैण्ड (valence band) कहलाता है। वह ऊर्जा-बैण्ड जिसमें चालक इलेक्ट्रॉनों (conduction electrons) के ऊर्जा-स्तर उपस्थित होते हैं, चालन बैण्ड (conduction band) कहलाता है। सामान्यत: चालन बैण्ड रिक्त होता है। संयोजी बैण्ड तथा चालन बैण्ड के बीच रिक्ति होती है, जिसे वर्जित ऊर्जा अन्तराल (forbidden energy gap) कहते हैं। इस रिक्ति में कभी कोई इलेक्ट्रॉन उपस्थित नहीं रहता है। सिलिकन में ऊर्जा बैण्डों का निर्माण (Formation of Energy Bands in Silicon)-सिलिकन का परमाणु क्रमांक 14 है, अतः इसकी बाह्य कक्षा में 4 इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा इसके सभी कोशों एवं उपकोशों में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2,2s2,2p6,3s23p2 होता है। स्तर 1s,2s, 2p, 3p पूर्णतः भरे होते हैं जबकि स्तर 3p जिसमें अधिकतम 6 इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं, में केवल 2 इलेक्ट्रॉन होते हैं। सिलिकन (Si) के N परमाणु वाले क्रिस्टल की बाह्य कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या 4N होगी। किसी एक परमाणु की बाह्यतम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है। अत: N परमाणुओं के उपस्थित 4N संयोजी इलेक्ट्रॉनों के लिए उपलब्ध ऊर्जा-स्तर 8N होंगे। ये 8N ऊर्जा-स्तर क्रिस्टल में उपस्थित परमाणुओं के बीच की दूरी (7) के आधार पर कोई सतत बैण्ड बना सकते हैं अथवा इनका विभिन्न बैण्डों में समूहन हो . सकता है जिसे आगे स्पष्ट किया गया है 1. जब r =r3 >> r0 अर्थात् अन्तरपरमाण्विक दूरी (r), क्रिस्टल जालक दूरी r0 से बहुत अधिक हो तो क्रिस्टल जालक में उपस्थित प्रत्येक परमाणु पृथक्कृत परमाणु की भाँति व्यवहार करता है, अत: प्रत्येक परमाणु के विविक्त एवं सुस्पष्ट ऊर्जा-स्तर होते हैं, जिन्हें चित्र-14.17 में परस्पर समान्तर रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया गया है। 2. जब r =r2 >ro तब परमाणुओं के संयोजी इलेक्ट्रॉनों के मध्य अन्त:क्रिया (interaction) प्रभावी हो जाने के कारण 3s व 3p उपकोश अत्यधिक निकट स्थित दो ऊर्जा-स्तरों में विभक्त हो जाते हैं, जिनके बीच का ऊर्जा अन्तराल पहले की अपेक्षा कम होता है। अन्तरपरमाण्विक दूरी r के और घटने पर 3s व 3p स्तरों से सम्बद्ध ऊर्जा बैण्डों का फैलाव बढ़ता है तथा इनके बीच का ऊर्जा अन्तराल घटता है। 3. जब r = r1 > r0 तब 3s व 3p बैण्डों में अतिव्यापन (overlapping) के
कारण उनके बीच ऊर्जा-अन्तराल समाप्त हो जाता है तथा सभी 8N स्तर अर्थात् 3 8 से सम्बद्ध 2N ऊर्जा-स्तर तथा 3p से सम्बद्ध 6N ऊर्जा-स्तर अब सतत रूप से वितरित होते हैं। 8N ऊर्जा-स्तरों में से 4N ऊर्जा-स्तर पूर्णतया भरे हुए तथा 4N ऊर्जा-स्तर रिक्त होते हैं। 4. जब r = ro अर्थात् अन्तरपरमाण्विक दूरी (r), क्रिस्टल जालक दूरी r0 के बराबर हो तो पूर्णतया भरे हुए तथा रिक्त ऊर्जा-स्तर एक ऊर्जा अन्तराल से परस्पर पृथक्कृत हो जाते हैं। यह ऊर्जा अन्तराल वर्जित ऊर्जा अन्तराल (forbidden energy gap) कहलाता है। निचला पूर्णतया भरा हुआ ऊर्जा बैण्ड जिसमें केवल संयोजी इलेक्ट्रॉन रह सकते हैं, संयोजी बैण्ड (valence band) कहलाता है तथा ऊपरी रिक्त ऊर्जा बैण्ड जिसमें चालक इलेक्ट्रॉन रहते हैं, चालन बैण्ड (conduction band) कहलाता है। प्रश्न 2. ऊर्जा बैण्ड के आधार पर ठोसों (चालक, अचालक व अर्द्धचालकों में) का वर्गीकरण (Classification of Solids (in Conductors, Insulators and Semiconductors) on the Basis of Energy Bands)-ठोसों का उनके संयोजी बैण्ड एवं चालन बैण्ड के बीच वर्जित ऊर्जा अन्तराल के आधार पर चालक, अचालक एवं अर्द्धचालकों में वर्गीकरण किया जा सकता है। 1. चालक (Conductors)-चालक वे पदार्थ होते हैं जिनमें चालक इलेक्ट्रॉनों की पर्याप्त संख्या पायी जाती है तथा उनमें
धारा प्रवाह सरलता से हो जाता है। उदाहरण-चाँदी, ताँबा, ऐलुमिनियम आदि। ऊर्जा बैण्ड संरचना के अनुसार चालक वे पदार्थ होते हैं जिनके चालन बैण्ड इलेक्ट्रॉनों से आंशिक रूप से भरे होते हैं तथा इनके संयोजी बैण्ड एवं चालन बैण्ड या तो परस्पर अतिव्यापित (overlapped) होते हैं या उनके बीच वर्जित ऊर्जा अन्तराल लगभग नगण्य होता है (चित्र-14.18)। 2. अचालक (Insulators)-अचालक वे पदार्थ होते हैं जिनमें चालक इलेक्ट्रॉन लगभग नगण्य संख्या में पाए जाते हैं, अत: इनमें धारा का प्रवाह नहीं होता है। उदाहरण-लकड़ी, ऐबोनाइट, काँच आदि। ऊर्जा बैण्ड संरचना के आधार पर अचालक वे पदार्थ होते हैं जिनके संयोजी बैण्ड पूर्णतः भरे हुए तथा चालन बैण्ड पूर्णतः रिक्त होते हैं तथा उनके बीच वर्जित ऊर्जा अन्तराल बहुत अधिक (Eg > 3 ev) होता है (चित्र-14.19)। 3. अर्द्धचालक (Semiconductors)-अर्द्धचालक वे पदार्थ होते हैं जिनकी चालकता चालकों से कम तथा अचालकों से अधिक होती है। उदाहरण–जर्मेनियम, सिलिकन, कार्बन आदि। ऊर्जा बैण्ड संरचना के आधार पर अर्द्धचालक वे पदार्थ होते हैं जिनके संयोजी बैण्ड पूर्ण रूप से भरे हुए होते हैं तथा चालन बैण्ड पूर्णत: रिक्त होते हैं परन्तु चालन बैण्ड एवं संयोजी बैण्ड के बीच वर्जित ऊर्जा अन्तराल बहुत कम (Eg ≈ 1 ev) होता है (चित्र-14.20)। परम शून्य ताप (OK) पर अर्द्धचालकों का चालन बैण्ड पूर्णतया रिक्त होता है, अतः परम शून्य ताप पर अर्द्धचालक एक अचालक की भाँति व्यवहार करता है। जैसे-जैसे अर्द्धचालक का ताप बढ़ता है, वर्जित ऊर्जा अन्तराल घटता जाता है तथा संयोजी बैण्ड से कुछ इलेक्ट्रॉन चालन बैण्ड में पहुँच जाते हैं, जिसके फलस्वरूप अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है। इस प्रकार अर्द्धचालकों की चालकता ताप बढ़ाने पर बढ़ती है। अतः अर्द्धचालकों का प्रतिरोध ताप गुणांक (α) ऋणात्मक होता है। प्रश्न 3. 2. बाह्य अर्द्धचालक (Extrinsic Semiconductors)-निज अर्द्धचालकों की वैद्युत चालकता बहुत कम होती है परन्तु यदि उसमें संयोजकता 5 अथवा 3 वाले किसी पदार्थ की अल्प मात्रा अपद्रव्य (impurity) के रूप में मिला दी जाए तो अर्द्धचालक की चालकता बहुत अधिक बढ़ जाती है। अपद्रव्य मिलाने की यह क्रिया अपमिश्रण (doping) कहलाती है तथा अपद्रव्य मिले ऐसे अर्द्धचालक को बाह्य अर्द्धचालक कहते हैं। बाह्य अर्द्धचालक दो प्रकार के होते हैं-(a) n-टाइप अर्द्धचालक, (b) pटाइप अर्द्धचालक निज अर्द्धचालकों में वैद्युत चालन (Electric Conduction in Intrinsic Semiconductors)-जर्मेनियम (Ge32) तथा सिलिकन (Si14) की संयोजकता 4 है। अत: Ge (अथवा Si) के पत्येक परमाणु में 4 संयोजक इलेक्ट्रॉन होते हैं। ये इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक तथा उससे दृढ़तापूर्वक बँधे आन्तरिक इलेक्ट्रॉनों के एक आन्तरिक क्रोड जिस पर +4 e आवेश होता है, के चारों ओर होते हैं। जर्मेनियम क्रिस्टल में प्रत्येक परमाणु एक सम चतुष्फलक के किसी भी कोने पर स्थित होते हैं (चित्र-14.21)। परमाणु के चारों संयोजक इलेक्ट्रॉन, निकटवर्ती चार अन्य परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों में से एक-एक के साथ भागीदार होकर सहसंयोजक बन्धों (covalent bonds) की रचना करते हैं।
इन बन्धों के कारण ही पड़ोसी परमाणुओं के बीच बन्धन बल उत्पन्न होता है। इस प्रकार परम शून्य ताप (0 K) पर शुद्ध जर्मेनियम क्रिस्टल में सभी संयोजक इलेक्ट्रॉन क्रोड के साथ दृढ़तापूर्वक बँधे होते हैं, अतः धारा चालन के लिए कोई मुक्त .. इलेक्ट्रॉन नहीं रहता है। सामान्य ताप पर ऊष्मीय विक्षोभ के कारण कुछ संयोजक बन्ध टूट जाते हैं, जिनके कारण कुछ इलेक्ट्रॉन धारा चालन के लिए मुक्त हो जाते हैं, ये इलेक्ट्रॉन मुक्त इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं। क्रिस्टल को गर्म करने पर, अधिकाधिक इलेक्ट्रॉन मुक्त होने लगते हैं, जिससे
क्रिस्टल की चालकता बढ़ने लगती है। वैद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में ये मुक्त इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल जालक के अन्दर गैस के अणुओं की भाँति अनियमित गति करते रहते हैं। जब क्रिस्टल पर वैद्युत क्षेत्र लगाया जाता है तो ये मुक्त इलेक्ट्रॉन वैद्युत क्षेत्र के विपरीत दिशा में यादृच्छिक गतियाँ करते हैं जिससे उनमें वैद्युत क्षेत्र के विपरीत दिशा में धारा बहती है। साधारण ताप पर जर्मेनियम के 109 परमाणुओं में से केवल एक सहसंयोजक बन्ध टूटता है इसलिए निज अर्द्धचालकों की चालकता बहुत कम होती है, जिसके कारण इनका कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं हो सकता है। जब जर्मेनियम के क्रिस्टल जालक में कोई सहसंयोजक बन्ध टूटकर इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है तो उस परमाणु में एक इलेक्ट्रॉन की कमी हो जाती है। परमाणु में इलेक्ट्रॉन के मूल स्थान पर उत्पन्न यह रिक्ति ‘कोटर’ (hole) कहलाती. है। क्रिस्टल जालक में ऊष्मीय विक्षोभ के कारण जब किसी अन्य परमाणु का सहसंयोजक बन्ध इस कोटर के निकट आता है तो पहला परमाणु इस परमाणु के सहसंयोजक बन्ध से एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर इस रिक्ति को पूरा कर लेता है। अब इलेक्ट्रॉन की रिक्ति अर्थात् कोटर दूसरे परमाणु पर उत्पन्न हो जाता है। यह प्रक्रिया क्रिस्टल जालक में निरन्तर चलती रहती है और कोटर एक परमाणु से दूसरे परमाणु पर स्थानान्तरित होता रहता है। वैद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में क्रिस्टल जालक में कोटर की गति यादृच्छिक (random) होती है। जब क्रिस्टल पर वैद्युत क्षेत्र लगाया जाता है तो ये कोटर यादृच्छिक गति के साथ-साथ वैद्युत क्षेत्र की दिशा में गति करते हैं जिसके परिणामस्वरूप क्रिस्टल में वैद्युत क्षेत्र की दिशा में वैद्युत धारा बहती है। इस प्रकार निज अर्द्धचालक क्रिस्टल में मुक्त इलेक्ट्रॉनों एवं कोटरों दोनों के कारण वैद्युत धारा बहती है। किसी निश्चित ताप पर निज अर्द्धचालक में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की सान्द्रता ne तथा कोटरों की सान्द्रता n परस्पर बराबर होती है। प्रश्न 4. इस प्रकार शुद्ध जर्मेनियम में अपद्रव्य मिलाने से मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है. अर्थात् क्रिस्टल की चालकता बढ़ जाती है। इस प्रकार के अपद्रव्य मिले जर्मेनियम क्रिस्टल को n-टाइप अर्द्धचालक कहते हैं, क्योंकि इसमें आवेश वाहक (मुक्त इलेक्ट्रॉन) ऋणात्मक होते हैं। अपद्रव्य परमाणुओं को दाता (donor) परमाणु कहते हैं, क्योंकि ये क्रिस्टल को चालक इलेक्ट्रॉन प्रदान करते हैं। उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि n-टाइप अर्द्धचालक क्रिस्टल में चलनशील आवेश वाहक (ऋणात्मक) इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा इतनी ही संख्या में स्थिर (धनात्मक दाता) (donor) आयन होते हैं (चित्र-14.23)। इस प्रकार सम्पूर्ण क्रिस्टल उदासीन ही रहता है। (b) p-टाइप अर्द्धचालक (p-type Semiconductor)-जब शुद्ध जर्मेनियम (अथवा सिलिकन) क्रिस्टल में 3 संयोजकता वाले अपद्रव्य परमाणु, जैसे ऐलुमिनियम (अथवा बोरॉन) अल्प मात्रा में मिलाए जाते हैं तो प्रत्येक अपद्रव्य परमाणु के तीन संयोजक इलेक्ट्रॉन, जर्मेनियम के तीन निकटतम परमाणुओं के एक-एक संयोजक इलेक्ट्रॉन के साथ मिलकर सहसंयोजक बन्ध बना लेते हैं तथा जर्मेनियम का एक संयोजक इलेक्ट्रॉन बन्ध नहीं बना पाता है, अत: क्रिस्टल में अपद्रव्य परमाणु के एक ओर रिक्त स्थान रह जाता है जिसे कोटर (hole) कहते हैं (चित्र-14.24)। वैद्युत क्षेत्र लगाने पर, इस कोटर में पड़ोसी परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन आ जाता है, जिससे पड़ोसी परमाणु में एक स्थान रिक्त होकर कोटर बन जाता है। इस प्रकार क्रिस्टल में कोटर एक स्थान से दूसरे स्थान तक की गति कर सकता है। इसकी गति की दिशा इलेक्ट्रॉन की गति की दिशा के विपरीत होती है। इस प्रकार कोटर एक धनावेशित कण के समान है, अत: अपद्रव्य मिले जर्मेनियम क्रिस्टल को p-टाइप अर्द्धचालक कहते हैं, क्योंकि इसमें आवेश वाहक (कोटर) धनात्मक होते हैं।
अपद्रव्य परमाणुओं को ग्राही (acceptor) परमाणु कहते हैं, क्योंकि ये शुद्ध अर्द्धचालक से इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करते हैं। उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि p-टाइप अर्द्धचालक क्रिस्टल में चलनशील (धनात्मक) कोटर होते हैं तथा इतनी ही संख्या में स्थिर (ऋणात्मक) ग्राही आयन होते हैं (चित्र-14.25), परन्तु p-टाइप अर्द्धचालकों में कोटरों की गतिशीलता n-टाइप अर्द्धचालकों में इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता की तुलना में कम होती है। प्रश्न 5. विभव प्राचीर अथवा p-n सन्धि पर अवक्षय परत का बनना-जैसे ही p-n सन्धि बनती है, ऊष्मीय विक्षोभ के कारण सन्धि के आर-पार आवेश वाहकों का विसरण प्रारम्भ हो जाता है। n-टाइप क्रिस्टल से कुछ इलेक्ट्रॉन p-टाइप क्रिस्टल में तथा p-टाइप क्रिस्टल से कुछ कोटर n-टाइप क्रिस्टल में विसरित हो जाते हैं। विसरण के बाद, ये आवेश वाहक अपने-अपने पूरकों से मिलकर परस्पर उदासीन हो जाते हैं। इस प्रकार सन्धि के समीप n-क्षेत्र में
धनावेशित दाताओं की अधिकता तथा p-क्षेत्र में ऋणावेशित ग्राहियों की अधिकता हो जाती है (चित्र-14.27)। इससे सन्धि पर एक आन्तरिक वैद्युत क्षेत्र E; स्थापित हो जाता है जो धन n-क्षेत्र से, ऋण p-क्षेत्र की ओर दिष्ट होता है। कुछ समय पश्चात् यह क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि आवेश वाहकों का और आगे विसरण रुक जाता है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन क्षेत्र के विपरीत दिशा में चलते हैं तथा कोटर क्षेत्र की दिशा में चलते हैं, अत: वैद्युत क्षेत्र Ei इन्हें चलने से रोक देता है। इस प्रकार सन्धि के दोनों ओर एक बहुत पतली परत बन जाती है, जिसमें आवेश वाहक नहीं रहते हैं। इस परत को अवक्षय परत (depletion layer) कहते हैं। इसकी मोटाई 10-6 मीटर कोटि की होती है। इस अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न वैद्युत वाहक बल को सम्पर्क विभव अथवा विभव प्राचीर कहते हैं। सम्पर्क विभव सन्धि के ताप पर निर्भर करता है तथा इसका मान 0.1 से लेकर 0.5 वोल्ट के बीच होता है। सन्धि डायोड का प्रतीक चित्र-14.28 में प्रदर्शित किया गया है। इसमें p को ऐनोड तथा n को कैथोड कहते हैं। p-n सन्धि डायोड में वैद्युत धारा का प्रवाह-किसी बाह्य बैटरी की अनुपस्थिति में सन्धि डायोड में कोई धारा नहीं बहती है [चित्र-14.28 (a)]| जब इस सन्धि के सिरों को किसी बैटरी के ध्रुवों से जोड़कर इस पर कोई वोल्टता लगाई जाती है तो इसमें वैद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है। p-n सन्धि डायोड पर बैटरी को दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है- 1. अग्र अभिनत (Forward Bias)-“जब p-n सन्धि डायोड के p-टाइप क्रिस्टल को बाह्य बैटरी के धन सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के ऋण सिरे से जोड़ते हैं तो यह सन्धि अग्र अभिनत या फॉरवर्ड बायस कहलाती है” [चित्र-14.28 (a)]। इस दशा में pn सन्धि डायोड · में p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर एक बाह्य वैद्युत क्षेत्र E स्थापित हो जाता है। यह क्षेत्र आन्तरिक वैद्युत क्षेत्र E; से कहीं अधिक शक्तिशाली होता है। इस प्रकार सन्धि डायोड में वैद्युत क्षेत्र E के कारण कोटर क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर वैद्युत क्षेत्र E की दिशा में चलने लगते हैं जबकि इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र से p क्षेत्र की ओर वैद्युत क्षेत्र E की विपरीत दिशा में चलने लगते हैं। सन्धि के समीप पहुँचकर ये कोटर तथा . इलेक्ट्रॉन परस्पर संयोग करके विलुप्त हो जाते हैं। प्रत्येक इलेक्ट्रॉन कोटर संयोग के लिए pक्षेत्र में बैटरी के धन सिरे के समीप एक सहसंयोजक बन्ध टूट जाता है। इससे उत्पन्न कोटर तो सन्धि की ओर चलने लगता है जबकि इलेक्ट्रॉन संयोजक तार में से होकर बैटरी के धन सिरे में प्रवेश कर जाता है। ठीक इसी क्षण बैटरी के ऋण सिरे से एक इलेक्ट्रॉन निकलकर n-क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है तथा सन्धि के समीप इलेक्ट्रॉन-कोटर संयोग प्रक्रिया में लुप्त इलेक्ट्रॉन का स्थान ले लेता है। इस
प्रकार p-n सन्धि डायोड में बहुसंख्यक आवेश वाहकों की गति के कारण उच्च वैद्युत धारा बहने लगती है। इस उच्च वैद्युत धारा को ही अग्र धारा कहते हैं। इस उच्च धारा के अतिरिक्त अल्पसंख्यक वाहकों की गति के कारण भी एक अल्प उत्क्रम धारा बहती है। परन्तु यह लगभग नगण्य होती है [चित्र-14.28 (b)]। इस प्रकार बाह्य परिपथ में केवल इलेक्ट्रॉनों की गति के कारण ही धारा बहती है। कोटर चूँकि अग्र अभिनत में आरोपित वैद्युत क्षेत्र E आन्तरिक वैद्युत क्षेत्र E1 से अधिक शक्तिशाली होता है। इस कारण बहुसंख्यक आवेश वाहक (pक्षेत्र में कोटर तथा n-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन) सन्धि की ओर आकर्षित होते हैं जिसके कारण. अवक्षय परत की मोटाई कम हो जाती है। इसीलिए अग्र अभिनत सन्धि डायोड का धारा प्रवाह के लिए प्रतिरोध कम होता है। चित्र-14.28 में p-n सन्धि पर आरोपित अग्र वोल्टेज तथा अग्र धारा के बीच खींचा गया ग्राफ प्रदर्शित है। प्रारम्भ में जर्मेनियम के लिए 0.3 वोल्ट पर विरोधी विभव प्राचीर के कारण धारा लगभग शून्य रहती है। आरोपित वोल्टेज के बढ़ाने पर, धारा बहुत धीरे-धीरे एवं अरैखिक रूप से तब तक बढ़ती है जब तक कि आरोपित वोल्टेज, विभव प्राचीर से अधिक नहीं हो जाती है [चित्र-14.28 (b) में OA भाग]। जब आरोपित वोल्टेज को और बढ़ाया जाता है तो धारा रैखिक रूप में आगे बढ़ती है (AB भाग)। यदि रेखा AB को पीछे की ओर बढ़ाया जाए तो यह वोल्टेज अक्ष को विभव प्राचीर वोल्टेज पर काटती है। 2. उत्क्रम अभिनत (Reverse Bias)-“जब p-n सन्धि डायोड के
p-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के ऋण सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के धन सिरे से जोड़ते हैं तो यह सन्धि उत्क्रम अभिनत या रिवर्स बायस कहलाती है” [चित्र-14.29 (a)]। इस दशा में p-n सन्धि डायोड में n से p की ओर एक बाह्य वैद्युत क्षेत्र E उत्पन्न हो जाता है, जो आन्तरिक वैद्युत क्षेत्र E; की सहायता करता है। अत: p-क्षेत्र के कोटर बैटरी के ऋण सिरे की ओर तथा n-क्षेत्र के इलेक्ट्रॉन बैटरी के धन सिरे की ओर आकर्षित होकर p-n सन्धि से दूर हो जाते हैं, जिसके कारण धारा प्रवाह पूर्णत: बन्द हो जाता है। जब p-n सन्धि उत्क्रम अभिनत होती है तो बहुत क्षीण उत्क्रम धारा परिपथ में बहती है, क्योंकि p तथा n-क्षेत्रों में ऊष्मीय विक्षोभ के कारण क्रमश: कुछ इलेक्ट्रॉन तथा कुछ कोटर विद्यमान रहते हैं. इनको अल्पसंख्यक वाहक कहते हैं। उत्क्रम अभिनत में ये बहुसंख्यक वाहकों की गति का विरोध करते हैं, परन्तु अल्पसंख्यक वाहकों को सन्धि के आर-पार जाने में सहायता करते हैं, जिस कारण बहुत क्षीण उत्क्रम धारा परिपथ में बहने लगती है [चित्र-14.29 (b)]। इस प्रकार उत्क्रम वोल्टेज (V) तथा उत्क्रम धारा (I) के बीच खींचा गया ग्राफ p-n. सन्धि डायोड का उत्क्रम अभिनत अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है। इससे स्पष्ट है कि उत्क्रम वोल्टेज बढ़ाने पर, उत्क्रम धारा प्रारम्भ में लगभग स्थिर रहती है, परन्तु वोल्टेज बहुत अधिक होने पर, सन्धि के निकट सहसंयोजक बन्ध टूट जाते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्म अधिक संख्या में मुक्त हो जाते हैं, इस कारण उत्क्रम धारा एकदम बहुत बढ़ जाती है। इस स्थिति को ऐवेलांश भंजन (avalanche breakdown) कहते हैं। प्रश्न 6. जिस प्रत्यावर्ती वोल्टता को दिष्टीकृत करना होता है अर्थात् निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज को एक उच्चायी ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक कुण्डली (P) के सिरों
के बीच लगा देते हैं। सन्धि डायोड के pक्षेत्र को ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली S के एक सिरे A से जोड़ देते हैं तथा n-क्षेत्र को एक लोड प्रतिरोध RL के सिरे C से जोड़ देते हैं। लोड प्रतिरोध RL का दूसरा सिरा D द्वितीयक कुण्डली के दूसरे सिरे B से जोड़ देते हैं। निर्गत दिष्ट वोल्टेज (या विभव) को लोड प्रतिरोध RL के सिरों पर प्राप्त किया जाता है। कार्य-विधि-निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पहले आधे चक्र में, जब द्वितीयक कुण्डली का A सिरा B सिरे के सापेक्ष धनात्मक है (अर्थात् सन्धि डायोड का p-क्षेत्र धनात्मक तथा n-क्षेत्र ऋणात्मक विभव पर होता है) तो p-nसन्धि डायोड अग्र अभिनत होता है, अत: इसमें से होकर धारा प्रवाहित होती है। इस प्रकार से लोड प्रतिरोध RL में धारा C से D की ओर बहती है। इसके विपरीत निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के दूसरे आधे चक्र में, जब द्वितीयक कुण्डली का A सिरा B सिरे के सापेक्ष ऋणात्मक है (अथवा सन्धि डायोड का p-क्षेत्र ऋणात्मक तथा n-क्षेत्र धनात्मक विभव पर होता है) तो p-n सन्धि डायोड उत्क्रम अभिनत होता है। इस दशा में लोड प्रतिरोध RL में धारा शून्य होती है। इस प्रकार निर्गत धारा केवल निवेशी वोल्टता के पहले आधे चक्रों में प्रवाहित होती है शेष आधे चक्र कट जाते हैं। चित्र-14.30 (b) के निचले भाग में धारा का तरंग रूप दिखाया गया है जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर (अर्थात् थोड़ी-थोड़ी देर में) धारा के एकदिशीय स्पन्द प्रदर्शित हैं। इस प्रकार p-n सन्धि डायोड अर्द्ध-तरंग दिष्टकारी की भाँति कार्य करता है। प्रश्न 7. जिस प्रत्यावर्ती वोल्टता का दिष्टकरण करना होता है (अर्थात् निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज) उसे एक ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक कुण्डली P के सिरों के बीच जोड़ते हैं। ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली के A व B सिरों को दो p-n सन्धि डायोडों के p क्षेत्रों से जोड़ते हैं तथा n-सिरों को परस्पर जोड़कर इनके उभयनिष्ठ बिन्दु M तथा द्वितीयक कुण्डली S1S2 के केन्द्रीय अंश निष्कासित बिन्दु (central tapping point) T के बीच एक लोड प्रतिरोध RL जोड़ देते हैं। निर्गत दिष्ट
वोल्टेज को बाह्य. प्रतिरोध RL के सिरों पर प्राप्त किया जाता है। कार्य-विधि-निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पहले आधे चक्र में, जब द्वितीयक कुण्डली का A सिरा मध्य-बिन्दु T के सापेक्ष धनात्मक तथा B सिरा मध्य-बिन्दु T के सापेक्ष ऋणात्मक होता है तो सन्धि डायोड D1 अग्र अभिनत हो जाता है और इसमें धारा प्रवाहित होने लगती है, जबकि इस समय सन्धि डायोड D2 उत्क्रम अभिनत होता है और इसमें धारा नहीं बहती है। सन्धि डायोड D1 से धारा, लोड प्रतिरोध RL में C से D की ओर बहती है, जिससे निर्गत विभव प्राप्त होता है। निवेशी वोल्टेज के अगले आधे चक्र में, जब ट्रांसफॉर्मर का A सिरा T के सापेक्ष ऋणात्मक तथा B सिरा धनात्मक होता है तो इस समय सन्धि डायोड D1 उत्क्रम अभिनत हो जाता है और इसमें धारा नहीं बहती है, जबकि इस समय सन्धि डायोड D2 अग्र अभिनत हो जाता है और उसमें धारा प्रवाहित होने लगती है। डायोड D2 से धारा, लोड प्रतिरोध RL में पुन: C से D की ओर बहती है, जिससे निर्गत विभव प्राप्त होता है। इस प्रकार निवेशी विभव के पूर्ण चक्र के लिए बाह्य प्रतिरोध R7 में धारा C से D की ओर प्रवाहित होती है अर्थात् लोड प्रतिरोध में प्रवाहित धारा दिष्ट धारा है। यह निर्गत धारा एकदिशीय स्पन्दों के रूप में होती है, जिसे समकारी फिल्टरों के द्वारा लगभग स्थायी धारा के.रूप में बदला जा सकता है। प्रश्न 8. प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) सेल एक ऐसी युक्ति है जो अभिनत बैटरी से प्राप्त वैद्युत ऊर्जा को विकिरण ऊर्जा में परिवर्तित करती है। LED का प्रतीक चिह्न तथा परिपथ आरेख चित्र-14.32 में प्रदर्शित किया गया है। LED बनाने के लिए गैलियम आर्सेनाइड (GaAs),
गैलियम फॉस्फाइड (GaP), गैलियम आर्सेनाइड फॉस्फाइड (GaAsP) आदि पदार्थ प्रयुक्त किये जाते हैं। LED के p-क्षेत्र को अभिनत बैटरी के धन सिरे से तथा n-क्षेत्र को बैटरी के ऋण सिरे से सम्बन्धित किया जाता है। परिपथ में एक धारा सीमक (current limiting) प्रतिरोध R लगाते हैं जो LED में प्रवाहित धारा को सुरक्षित सीमा से बढ़ जाने पर क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। hv उत्सर्जित विकिरण (दृश्य अथवा अदृश्य) की ऊर्जा है। कार्यविधि (Working)-जब LED को अग्र-अभिनत किया जाता है तो n-क्षेत्र के बहुसंख्यक आवेश वाहक अर्थात् इलेक्ट्रॉन तथा p-क्षेत्र के बहुसंख्यक आवेश वाहक अर्थात् कोटर सन्धि की ओर गति करते हैं तथा सन्धि क्षेत्र में परस्पर संयोजित हो जाते हैं। संयोजन की इस क्रिया में मुक्त हुई ऊर्जा, वैद्युतचुम्बकीय तरंगों के रूप में सन्धि पर उत्पन्न हो जाती है। ऐसे वैद्युतचुम्बकीय फोटॉन जिनकी ऊर्जा LED के पदार्थ के वर्जित ऊर्जा अन्तराल (forbidden energy gap) के बराबर या उससे कम होती है, LED की सन्धि से बाहर प्रकाश के रूप में आ जाती है। जैसे-जैसे अग्र धारा का मान बढ़ता है LED से उत्सर्जित प्रकाश की तीव्रता भी बढ़ती जाती है और अन्ततः अपना महत्तम मान प्राप्त कर लेती है। यदि अग्र धारा का मान और अधिक बढ़ाएँ तो उत्सर्जित प्रकाश की तीव्रता पुनः घटने लगती है, अत: LED की अभिनति इस प्रकार समायोजित की जाती है कि वह अधिकतम प्रकाश उत्सर्जित करे अर्थात् उसकी दक्षता (efficiency) महत्तम हो। LED के अभिलक्षण (Characteristics of LED)-LED अवस्था । का वोल्टता-धारा (V-I)
अभिलाक्षणिक वक्र, किसी सामान्य p-n. अग्र धारा सन्धि डायोड की भाँति ही होता है, जिसे चित्र-14.33 में प्रदर्शित किया गया है। वक्र में Vf, LED की आन्तरिक अवरोध वोल्टता को प्रदर्शित करता है जिसका मान बैटरी की उस वोल्टता के बराबर होता है जिस पर या जिससे अधिक वोल्टता पर LED में सुचारु रूप से धारा का प्रवाह होता है। अतः वक्र में क्षेत्र-I LED की अक्रियाशील अवस्था (non-active state) को तथा क्षेत्र-II, LED की क्रियाशील अवस्था (active state) को प्रदर्शित करता है। LED की परम्परागत प्रदीप्त लैम्पों से तुलना (Comparison of LED’s with Common Incandescent Lamps)-
LED के उपयोग (Uses of LED)-इसके निम्नलिखित उपयोग हैं
प्रश्न 9. रचना- फोटो डायोड का निर्माण करने हेतु एक p-n सन्धि को, जिसका p-क्षेत्र बहुत पतला व पारदर्शी हो, एक काँच अथवा प्लास्टिक के आवरण में इस प्रकार रखा जाता है कि सन्धि के ऊपरी भाग पर प्रकाश सरलतापूर्वक पहुँच जाए। आवरण में प्रयुक्त प्लास्टिक के शेष भागों पर काला पेन्ट कर देते हैं। कार्यविधि-फोटो डायोड का विद्युतीय परिपथ चित्र-14.34 में प्रदर्शित है। जब p-n सन्धि पर बिना प्रकाश डाले पर्याप्त वोल्टेज (0.1 वोल्ट) लगाकर उत्क्रम अभिनत किया जाता है तो सन्धि के दोनों ओर के अल्पसंख्यक वाहक सन्धि को पार कर जाते हैं, जिसके कारण एक संतृप्त परन्तु लघु धारा (कुछ µA की) का प्रवाह आरम्भ हो जाता है। इस धारा को अदीप्त धारा (dark current) कहते हैं। इस धारा की दिशा सन्धि पर क्षेत्र n से p की ओर होती है। यदि p-n सन्धि पर इतनी ऊर्जा का प्रकाश डाला जाए जिसका परिमाण सन्धि के निषिद्ध ऊर्जा अन्तराल Eg से अधिक (hv > Eg) हो तो, सन्धि के समीप अल्पसंख्यक वाहकों का घनत्व बढ़ जाता है। सन्धि के उत्क्रम अभिनत होने के कारण जब ये वाहक सन्धि को
पार करते हैं तो ये सन्धि पर उत्पन्न धारा की प्रबलता को बढ़ा देते हैं। इस कारण परिपथ की कुल धारा का मान बढ़ जाता है, इस धारा को प्रकाश धारा कहते हैं। फोटो डायोड की सन्धि को प्रदीप्त करने के बाद सन्धि पर पहले से ही मौजूद संतृप्त धारा के मान में हुए परिवर्तन को ज्ञात करके सन्धि पर आपतित प्रकाश की तीव्रता की गणना कर ली जाती है। इस प्रकार यह डायोड प्रकाश संसूचक (light detector) की भाँति कार्य कक्षाएँ। उपयोग
प्रश्न 10. कार्य-विधि- सौर सेल बनाने के लिए सिलिकन अर्द्धचालक (Eg = 1.2 ev) तथा गैलियम आर्सेनाइड अर्द्धचालक (GaAs, Eg ≈1:53 ev) का प्रयोग किया जाता है क्योंकि सौर-विकिरण की अधिकतम ऊर्जा लगभग 1.5 ev कोटि की होती है। गैलियम आर्सेनाइड की फोटॉन अवशोषण क्षमता (अवशोषण गुणांक) लगभग 104 प्रति सेमी अति उच्च होती है। अत: यह सौर सेल बनाने के लिए सिलिकन की तुलना में श्रेष्ठ है। जब सूर्य का प्रकाश सौर सेल पर आपतित होता है तो यह p-टाइप क्षेत्र को पार कर p-n सन्धि पर पहुँच जाता है, जहाँ पर यह सहसंयोजी बन्धों को तोड़कर इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्म उत्पन्न कर देता है। अवक्षय परत में n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर विद्यमान वैद्युत क्षेत्र E; के कारण p-क्षेत्र में उत्पन्न इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्म के इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र की ओर गति करते हैं और शेष बचे कोटर p-क्षेत्र में रह जाते हैं। n-क्षेत्र में उत्पन्न इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्म के कोटर वैद्युत क्षेत्र E; के कारण p क्षेत्र की ओर गति करते हैं और शेष बचे इलेक्ट्रॉन n क्षेत्र में रह जाते हैं। इस प्रकार p-क्षेत्र में अतिरिक्त कोटर एवं n-क्षेत्र में अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनों के कारण यह युक्ति एक बैटरी की भाँति व्यवहार करती है। एक सौर सेल से लगभग 0.4 वोल्ट से 0.5 वोल्ट पर लगभग 60 मिलीऐम्पियर धारा प्राप्त होती है। अतः व्यावहारिक उपयोग के लिए अनेक सौर सेलों को एक विशेष श्रेणीक्रम एवं समान्तर-क्रम संयोजन में व्यवस्थित कर. प्रयुक्त करते हैं। सौर सेलों के संयोजन से बनी यह युक्ति सोलर पैनल (solar panel) कहलाती है। सौर सेल के उपयोग (Uses of Solar Cell)- 2. सौर सेलों से बने सोलर पैनलों का प्रयोग सोलर वाटर हीटर के रूप में किया जाता है। 3. कृत्रिम उपग्रहों में लगी बैटरियों के आवेशन के लिए सोलर पैनलों का उपयोग किया जाता है। प्रश्न 11. जेनर डायोड में p-n सन्धि डायोड के अधिक अपमिश्रित होने के कारण p-क्षेत्र में ग्राही तथा n-क्षेत्र में दाता अशुद्धियों के उच्च घनत्व के कारण अवक्षय परत की चौड़ाई बहुत कम (लगभग 1 µm) हो जाती है जिसके फलस्वरूप बाह्य बैटरी द्वारा आरोपित सूक्ष्म उत्क्रम वोल्टता (5 वोल्ट) के संगत सन्धि क्षेत्र में वैद्युत क्षेत्र बहुत अधिक हो जाता है। यह प्रबल वैद्युत क्षेत्र संयोजी बैण्ड में उपस्थित इलेक्ट्रॉन को चालन बैण्ड में जाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा दे देता है। यह इलेक्ट्रॉन अवक्षय परत से होकर n-क्षेत्र की ओर गति करता है। ये इलेक्ट्रॉन ही भंजन के समय उच्च धारा के लिए उत्तरदायी होते हैं। उच्च वैद्युत क्षेत्र के कारण इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जित होना आन्तरिक क्षेत्रीय उत्सर्जन अथवा क्षेत्रीय आयनन कहलाता है। एक निश्चित उत्क्रम वोल्टता (Vz) के पश्चात् उत्क्रम धारा Iz का मान वोल्टता परिवर्तन के सापेक्ष बहुत तेजी से बढ़ता है। यह निश्चित उत्क्रम वोल्टता, जेनर वोल्टेज (zener voltage) कहलाता है तथा पश्च धारा का अनियन्त्रित रूप से तेजी से बढ़ना जेनर भंजन (zener breakdown) कहलाता है। जेनर डायोड का धारा-वोल्टता अभिलाक्षणिक वक्र- जेनर डायोड की धारा-वोल्टता अभिलक्षण का विद्युत परिपथ आरेख चित्र-14.36 (b) में प्रदर्शित है। सर्वप्रथम कुंजी K को लगाकर धारा नियन्त्रक Rh की सपी कुंजी J को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं कि इसके समान्तर क्रम में जुड़े वोल्टमीटर V का पाठ्यांक न्यूनतम हो जाए। इस स्थिति में वोल्टमीटर V तथा मिलीमीटर mA का पाठ्यांक नोट कर लेते हैं। पश्च वोल्टता को धीरे-धीरे बढ़ाकर उसके संगत वोल्टमीटर V तथा मिलीअमीटर (mA) के पाठ्यांक नोट कर लेते हैं। इस पश्च वोल्टता को तब
तक बढ़ाते जाते हैं जब तक कि मिलीअमीटर mA के पाठ्यांकों में अचानक से वृद्धि न हो जाए। जिस क्षण ऐसा होता है उस क्षण वोल्टमीटर का पाठ्यांक जेनर भंजक वोल्टता Vz को. निरूपित करेगा। पश्च वोल्टता Vz को थोड़ा सा बढ़ाकर, उसके संगत पश्च धारा के मानों को नोट कर लेते हैं। इन पाठ्यांकों की सहायता धारा i व वोल्टता में ग्राफ खींचते है। यही ग्राफ जेनर डायोड का धारा वोल्टता अभिलक्षण ग्राफ कहलाता है [चित्र-14.36(c)]] जेनर डायोड से प्रवाहित होने वाली धारा में अत्यधिक परिवर्तन होने पर भी जेनर वोल्टता नियत रहती है। इसी गुण के कारण जेनर डायोड को दिष्ट वोल्टता नियन्त्रक (dc voltage regulator) के रूप में प्रयोग किया जाता है। जेनर डायोड वोल्टता नियन्त्रक के रूप में (Zener Diode as Voltage Stabilizer)- जेनर डायोड को वोल्टता नियन्त्रक के रूप में प्रयुक्त करने के लिए आवश्यक परिपथ को चित्र-14.37 में प्रदर्शित किया गया है। जेनर डायोड पर एक स्पन्दित दिष्ट वोल्टता Vinput को श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोध R से होते हुए जेनर डायोड से इस प्रकार संयोजित करते हैं कि जेनर डायोड उत्क्रम अभिनत हो। जब निवेशी वोल्टता में वृद्धि होती है तो जेनर डायोड तथा प्रतिरोध R से प्रवाहित होने वाली धारा में वृद्धि हो जाती है। यदि जेनर डायोड के सिरों पर वोल्टता Vinput का मान जेनर डायोड के जेनर वोल्टता (Vz) से अधिक है तो डायोड भंजन स्थिति में होता है तथा जेनर डायोड की जेनर वोल्टता नियत रहती है, अत: जेनर डायोड के सिरों पर वोल्टता में कोई परिवर्तन हुए बिना ही R के सिरों पर वोल्टता में वृद्धि हो जाती है। इसी प्रकार जब निवेशी वोल्टता घटती है तो जेनर डायोड व प्रतिरोध R से प्रवाहित होने वाली धारा में कमी हो जाती है। अब जेनर डायोड के सिरों पर वोल्टता में कोई परिवर्तन हुए बिना ही R के सिरों पर वोल्टता में कमी हो जाती है। इस पर निवेशी वोल्टता के बढ़ने या घटने पर जेनर डायोड के सिरों पर वोल्टता में कोई परिवर्तन हुए बिना प्रतिरोध R के सिरों पर वोल्टता में वृद्धि अथवा कमी हो जाती है। इस प्रकार जेनर डायोड वोल्टता नियन्त्रक के रूप में कार्य करता है। प्रश्न 12.
1. P-n-p ट्रांजिस्टर की रचना-इसमें n-टाइप अर्द्धचालक की एक बहुत पतली परत
को दो p-टाइप अर्द्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबाकर रखते हैं [चित्र-14.38 (a)]। इस बहुत पतली n परत को आधार (base) तथा इसके बाएँ व दाएँ क्रिस्टलों को क्रमशः उत्सर्जक (emitter) व संग्राहक (collector) कहते हैं। इन्हें क्रमश: B, E तथा C से प्रदर्शित करते हैं। उत्सर्जक को आधार के सापेक्ष, धन विभव तथा संग्राहक को आधार के सापेक्ष, ऋण विभव दिया जाता है। इस प्रकार बायीं ओर की.उत्सर्जक आधार (p-n) संधि अग्र अभिनत (अल्प प्रतिरोध वाली) है तथा दायीं ओर की आधार संग्राहक (n-p) संधि उत्क्रम अभिनत
(उच्च प्रतिरोध वाली) है। इसका प्रतीक चित्र-14.38 (b) में दिखाया गया है, जिसमें बाण की दिशा वैद्युत धारा की दिशा (कोटरों के चलने की दिशा) को प्रदर्शित करती है। p-n-p ट्रांजिस्टर की कार्य-विधि- चित्र-14.39 में p-n-p ट्रांजिस्टर का उभयनिष्ठ आधार परिपथ दिखाया. गया है। इसके दोनों p-क्षेत्रों में आवेश वाहक (धन) कोटर होते हैं, जबकि n-क्षेत्र में आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसमें बायीं ओर की उत्सर्जक-आधार (p-n) सन्धि को बैटरी से थोड़ा-सा अग्र अभिनत विभव VEB देते हैं, जबकि दायीं ओर की आधार-संग्राहक (n-p) सन्धि को बैटरी से बड़ा उत्क्रम अभिनत विभव VCB देते हैं। उत्सर्जक-आधार
(p-n) सन्धि के अग्र अभिनत होने के कारण, p-क्षेत्र में उपस्थित कोटर आधार की ओर गति करते हैं, जबकि n-क्षेत्र में उपस्थित इलेक्ट्रॉन p-क्षेत्र (उत्सर्जक) की ओर गति करते हैं। चूँकि आधार बहुत पतला है इस कारण इसमें प्रवेश करने वाले अधिकतर कोटर (लगभग 98%) इसे पार करके संग्राहक C तक पहुँच जाते हैं, जबकि उनमें से बहुत कम (लगभग 2%) आधार में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से संयोग करते हैं। जैसे ही कोई कोटर इलेक्ट्रॉन से संयोग करता है वैसे ही उत्सर्जक में बैटरी के धन ध्रुव के निकट एक सहसंयोजक बन्ध टूट जाता है। बन्ध टूटने से उत्पन्न इलेक्ट्रॉन बैटरी के धन ध्रुव से बैटरी में प्रवेश कर जाता है। ठीक इसी क्षण एक नया इलेक्ट्रॉन बैटरी VEB के ऋण सिरे से निकलकर आधार B में प्रवेश करता है। ठीक इसी क्षण एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक E में से निकलकर बैटरी VEB के धन सिरे पर पहुँचता है। इस कारण उत्सर्जक E में एक कोटर उत्पन्न हो जाता है, जो आधार की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है। इस प्रकार आधार उत्सर्जक परिपथ में एक क्षीण आधार धारा (IB) बहने लगती है। जो कोटर संग्राहक में प्रवेश कर जाते हैं, वे उत्क्रम अभिनत के कारण टर्मिनल C पर पहुँच जाते हैं। जैसे ही कोई कोटर टर्मिनल C पर पहुँचता है, बैटरी VCB के ऋण सिरे से एक
इलेक्ट्रॉन आकर उसे उदासीन कर देता है, पुनः ठीक इसी क्षण एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक E से निकलकर बैटरी VEB के धन सिरे पर पहुँच जाता है। इस कारण उत्सर्जक में एक कोटर उत्पन्न हो जाता है जो आधार की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है। इस प्रकार संग्राहक उत्सर्जक परिपथ में सग्राहक धारा Ic बहने लगती है। आधार टर्मिनल B से चलने वाली धारा को आधार धारा IB तथा संग्राहक टर्मिनल C से बाहर जाने वाली धारा को संग्राहक धारा IC कहते हैं। धाराएँ IB तथा IC मिलकर
उत्सर्जक E में प्रवेश करती हैं, अतः इसे उत्सर्जक धारा IE कहते हैं। आधार के बहुत पतला होने के कारण आधार में संयोजित होने वाले कोटर-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत कम होती है। इस कारण लगभग सभी कोटर, जो उत्सर्जक से आधार में प्रवेश करते हैं, संग्राहक तक पहुँच जाते हैं इसलिए संग्राहक धारा Ic, उत्सर्जक धारा IE से कुछ ही कम होती है। प्रश्न 13. n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि-n-p-n ट्रांजिस्टर का उभयनिष्ठ आधार परिपथ [चित्र-14.41] में दिखाया गया है। इसके दोनों n-क्षेत्रों में आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं, जबकि मध्य के पतले p-क्षेत्र में आवेश वाहक (धन) कोटर होते हैं। इसमें बायीं ओर के उत्सर्जक आधार (n-p) सन्धि को बैटरी से थोड़ा-सा अग्र अभिनत विभव VBE दिया जाता है, जबकि दायीं ओर की आधार संग्राहक (p-n) सन्धि को बैटरी से बड़ा उत्क्रम अभिनत विभव VBc दिया जाता है। उत्सर्जक-आधार (p-n) सन्धि के अग्र अभिनत होने के कारण, उत्सर्जक , आधार उत्सर्जक (n-क्षेत्र) में उपस्थित इलेक्ट्रॉन आधार की ओर गति करते हैं, जबकि आधार (p-क्षेत्र से) कोटर उत्सर्जक की ओर गति करते हैं। चूँकि आधार बहुत पतला है। इस कारण इसमें प्रवेश करने वाले अधिकतर इलेक्ट्रॉन (लगभग 98%), इसे पार करके संग्राहक C तक पहुँच जाते हैं जबकि उनमें से बहुत कम (लगभग 2%) आधार में | उपस्थित कोटरों से संयोग करते हैं। जैसे ही कोई इलेक्ट्रॉन कोटर से संयोग करता है वैसे ही बैटरी VEB के धन सिरे के निकट आधार में एक सहसंयोजक बन्ध टूट जाता है। बन्ध टूटने से आधार में उत्पन्न इलेक्ट्रॉन टर्मिनल B से बैटरी VEB के धन सिरे से बैटरी में प्रवेश करता है। ठीक इसी क्षण एक इलेक्ट्रॉन बैटरी VEB के ऋण सिरे से निकलकर टर्मिनल E के द्वारा उत्सर्जक में प्रवेश करता है। आधार से. एक इलेक्ट्रॉन के बैटरी VEB में प्रवेश करने पर आधार में एक कोटर उत्पन्न हो जाता है जो संयोग के कारण नष्ट हुए कोटर की क्षतिपूर्ति करता है। इस प्रकार आधार उत्सर्जक परिपथ में आधार धारा (IB) बहने लगती है। जो इलेक्ट्रॉन संग्राहक में प्रवेश कर जाते हैं, वे उत्क्रम अभिनत के कारण टर्मिनल C पर पहुँच जाते हैं। जैसे ही कोई इलेक्ट्रॉन टर्मिनल C को छोड़कर बैटरी VBC के धन सिरे में प्रवेश करता है, वैसे ही बैटरी VBE के ऋण सिरे से एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में प्रवेश करता है। इस प्रकार संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ में धारा बहने लगती है। आधार टर्मिनल B में प्रवेश करने वाली क्षीण धारा को आधार धारा IB तथा संग्राहक
टर्मिनल C में प्रवेश करने वाली संग्राहक धारा Ic मिलकर उत्सर्जक टर्मिनल E से निकलती हैं, अत: इसे उत्सर्जक धारा IE कहते हैं। इस प्रकार n-p-n ट्रांजिस्टर के अन्दर तथा बाह्य परिपथ में धारा प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है। प्रश्न 14. 2. उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास-इस विन्यास में उत्सर्जक टर्मिनल (E) को निर्गत तथा निवेशी परिपथों के मध्य उभयनिष्ठ करके भू-सम्पर्कित कर देते हैं [चित्र-14.42 (b)]। 3. उभयनिष्ठ संग्राहक विन्यास–इस विन्यास में संग्राहक टर्मिनल (C) को निर्गत तथा निवेशी परिपथों के मध्य उभयनिष्ठ करके भू-सम्पर्कित कर देते हैं [चित्र-14.42 (c)]| प्रश्न 15.
उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में ट्रांजिस्टर के अभिलाक्षणिक वक्र (Characteristic Curves of a Transistor in Common Emitter Configuration)-किसी n-p-n ट्रांजिस्टर के उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास को चित्र-14.43 में प्रदर्शित किया गया है। इस विन्यास में आधार-उत्सर्जक परिपथ को निम्न विभव बैटरी VBB की सहायता से अग्र अभिनत तथा
संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ को उच्च विभव बैटरी Vcc की सहायता से उत्क्रम अभिनत करते हैं। इस विन्यास में संग्राहक टर्मिनल का विभव सर्वाधिक, उत्सर्जक टर्मिनल का विभव सबसे कम तथा आधार टर्मिनल का विभव इन दोनों टर्मिनलों के विभवों के मध्य होना चाहिए। इस विन्यास में निवेशी (input) आधार तथा उत्सर्जक के बीच लगाते हैं तथा निर्गत (output) संग्राहक व उत्सर्जक के बीच प्राप्त होता है। निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र (Input Characteristics Curve)- ट्रांजिस्टर के उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में आधार-उत्सर्जक वोल्टता (VBE) में परिवर्तन के संगत आधार धारा (IB) में परिवर्तन होना निवेशी अभिलाक्षणिक कहलाता है। उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में नियत संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता के लिए आधार धारा (IB) तथा आधार-उत्सर्जक वोल्टता (VBE) के बीच खींचा गया वक्र, निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है। इसके लिए संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता (VBE ) को 1 वोल्ट पर नियत रखकर आधार-उत्सर्जक वोल्टता (VBE) को धीरे-धीरे बढ़ाते हुए उनके संगत आधार धारा (IB) का मान पढ़ते हैं। इस प्रकार IB तथा VBE के बीच खींचा गया वक्र, निवेशी अभिलाक्षणिक वक्र है। इसी प्रकार अन्य वक्र VCE को 10 वोल्ट पर स्थिर रखकर प्राप्त किया जा सकता है (चित्र-14.44)। निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र (Output Characteristics Curve)-ट ्रांजिस्टर के उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता (VCE) में परिवर्तन के साथ संग्राहक धारा (IC) में परिवर्तन होना निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है तथा नियत आधार धारा । (IB) के लिए. संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता (VCE) तथा संग्राहक धारा (Ic) के बीच खींचा गया वक्र, निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र कहलाता है। आधार-उत्सर्जक
वोल्टता (VBE) में सूक्ष्म वृद्धि करने पर उत्सर्जक क्षेत्र से कोटर धारा तथा आधार क्षेत्र से इलेक्ट्रॉन धारा दोनों में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप आधार धारा IB तथा संग्राहक धारा IC में अनुपातिक रूप से वद्धि हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि आधार धारा IB में वृद्धि होने पर संग्राहक धारा IC में भी वृद्धि हो जाती है। आधार धारा को 10 µA मान पर नियत रखते हुए संग्राहक-उत्सर्जकं वोल्टता को धीरे-धीरे बढ़ाते हए संगत संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता
(VCE) (वोल्ट में) संग्राहक धारा का मान पढ़ते हैं। इस प्रकार संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टता तथा संग्राहक धारा के बीच प्राप्त वक्र ही निर्गत अभिलाक्षणिक वक्र है। इसी प्रकार अन्य वक्र आधार धारा को 20 µA, 30 µA,… आदि मानों पर स्थिर रखकर प्राप्त किए जा सकते हैं [चित्र-14.45]। प्रश्न 16.
P-n-p ट्रांजिस्टर उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक की भाँति (p-n-p Transistor as Common Emitter Amplifier)-चित्र-14.46 में p-n-p ट्रांजिस्टर प्रवर्धक का उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ प्रदर्शित है। यहाँ उत्सर्जक E के सापेक्ष, आधार ऋणात्मक है तथा उत्सर्जक E व आधार B दोनों के सापेक्ष, संग्राहक ऋणात्मक हैं। उत्सर्जक टर्मिनल उभयनिष्ठ होने के साथ-साथ भू-सम्पर्कित है। इसमें निवेशी सिग्नल को आधार B पर लगाया जाता है और निर्गत सिग्नल को संग्राहक C पर प्राप्त किया जाता है। चूँकि
ट्रांजिस्टर में क्षीण आधार धारा के संगत प्रबल संग्राहक धारा प्राप्त होती है, अतः निवेशी सिग्नल को आधार पर लगाने से आधार धारा में अल्प परिवर्तन, संग्राहक धारा में बहुत अधिक परिवर्तन कर देता है। इस प्रकार इस परिपथ से पर्याप्त ‘धारा प्रवर्धन’ प्राप्त होता है, जबकि उभयनिष्ठ आधार परिपथ में धारा की हानि होती है। p-n-p ट्रांजिस्टर उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक के लाभ-p-n-p ट्रांजिस्टर उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक से प्राप्त विभिन्न लाभ निम्नलिखित हैं 1. ac धारा लाभ (ac Current Gain)-“एक नियत संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज पर, संग्राहक धारा में परिवर्तन Δlc तथा इसके संगत आधार धारा में परिवर्तन ΔIB के अनुपात को ट्रांजिस्टर का ac धारा लाभ कहते हैं।” इसे ‘β’ से प्रदर्शित करते हैं। सामान्यत: β का मान 20 से 200 तक होता है। 2. ac वोल्टेज लाभ (ac Voltage Gain)-“निर्गत वोल्टेज में परिवर्तन तथा निवेशी वोल्टेज में परिवर्तन के अनुपात को वोल्टेज लाभ अथवा वोल्टेज प्रवर्धन कहते हैं।” इसे ‘Av‘ से प्रदर्शित करते हैं। 3. ac शक्ति लाभ (ac Power gain)-“वोल्टेज लाभ तथा धारा लाभ के गुणनफल को शक्ति लाभ कहते हैं।” इसे ‘AP‘ से प्रदर्शित करते हैं। 4. कला सम्बन्ध (Phase Relationship) उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक में, निर्गत वोल्टेज सिग्नल तथा निवेशी वोल्टेज सिग्नल विपरीत कलाओं में होते हैं, अर्थात् इनके बीच 180° का कलान्तर होता है। n-p-n ट्रांजिस्टर उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक की भाँति (n-p-n Transistor as a Common Emitter Amplifier)-चित्र-14.47 में n-p-n ट्रांजिस्टर प्रवर्धक का उभयनिष्ठ उत्सर्जक परिपथ प्रदर्शित है। इसमें आधार B, उत्सर्जक E के सापेक्ष धनात्मक है तथा संग्राहक C, उत्सर्जक E तथा आधार B दोनों के सापेक्ष धनात्मक है। उत्सर्जक टर्मिनल उभयनिष्ठ होने के साथ-साथ भू-सम्पर्कित है। इसमें निवेशी सिग्नल को आधार B पर लगाया जाता है तथा निर्गत सिग्नल को संग्राहक C पर प्राप्त किया जाता है। चूँकि । ट्रांजिस्टर में क्षीण आधार धारा के संगत प्रबल संग्राहक धारा 8 प्राप्त होती है। अत: निवेशी सिग्नल को आधार पर लगाने से आधार धारा में अल्प परिवर्तन संग्राहक धारा में बहुत बड़ा परिवर्तन कर देता है। इस प्रकार इस परिपथ में पर्याप्त धारा प्रवर्धन, प्राप्त होता है, जबकि उभयनिष्ठ आधार परिपथ में धारा की हानि होती है। प्रश्न 17. ट्रांजिस्टर एक दोलित्र की भाँति (Transistor as an E परिपथ Oscillator)-दोलित्र एक धनात्मक पुनर्भरण
(feedback) के साथ स्वयं पोषित ट्रांजिस्टर प्रवर्धक होता है (चित्र-14.48)। ट्रांजिस्टर दोलित्र के तीन प्रमुख भाग होते हैं 1. टैंक परिपथ (Tank Circuit)-यह परिपथ एक प्रेरकत्व (L) तथा धारिता (C) का समान्तर क्रम संयोजन होता है। यह परिपथ \(f=\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\) आवृत्ति के अवमन्दित वैद्युत दोलन उत्पन्न करता है। 2. ट्रांजिस्टर प्रवर्धक (Transistor Amplifier)-टैंक परिपथ से प्राप्त वैद्युत दोलनों की ट्रांजिस्टर प्रवर्धक पर निवेशी के रूप में आरोपित कर देते हैं, जिससे निर्गत के रूप में प्रवर्धित दोलन प्राप्त होते हैं। 3. पुनर्भरण परिपथ (Feedback Circuit)-ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के निर्गत का एक भाग टैंक परिपथ को निवेशी सिग्नल की कला में लौटा देते हैं जो टैंक परिपथ में होने वाली ऊर्जा-हानि की पूर्ति करता है। यह क्रिया धनात्मक पुनर्भरण (positive feedback) कहलाती है। धनात्मक पुनर्भरण के परिणामस्वरूप नियम आयाम के वैद्युत दोलन प्राप्त होते हैं। परिपथ आरेख- ट्रांजिस्टर को दोलित्र के रूप में प्रयुक्त करने के लिए एक p-n-p ट्रांजिस्टर को उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में चित्र-14.49 में प्रदर्शित किया गया है। चित्र में L1C1
एक टैंक परिपथ तथा L2 एक पुनर्भरण कुंडली है। संधारित्र C2 दोलन के सिरा निम्न प्रतिघात पथ प्रदान करता है। ट्रांजिस्टर का आवश्यक अभिनति श्रेणीक्रम में जुड़े दो प्रतिरोधों R1 व R2 की सहायता से दी जाती है। ट्रांजिस्टर सन्धि के ताप को RE, उत्सर्जक प्रतिरोध से नियन्त्रित करते हैं। प्रवर्धित संकेतों का आधार-उत्सर्जक परिपथ में ऋणात्मक पुनर्भरण रोकने के लिए संधारित्र CE को प्रयुक्त किया जाता है। बैटरी Vcc के द्वारा पूरे परिपथ को
DC शक्ति दी जाती है तथा परिपथ में उत्पन्न दोलनों को प्रेरण कुंडली L3 के सिरों पर प्राप्त किया जाता है। कार्यविधि-जैसे ही कुंजी K को जोड़ते हैं वैसे ही टैंक परिपथ के संधारित्र C1 को आवेशन प्रारम्भ हो जाता है। जब यह संधारित्र पूर्ण आवेशित हो जाता है तो प्रेरण कुंडली L1 इसे अनावेशित करना प्रारम्भ कर देती है। इसके फलस्वरूप L1C1 टैंक परिपथ में अवमन्दित दोलन उत्पन्न होने लगते हैं। ये दोलन पुनर्भरण कुंडली L2 में L1C1, टैंक परिपथ के समान आवृत्ति का एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न कर देते हैं। पुनर्भरण कुंडली L2 में उत्पन्न विद्युत वाहक बल का परिमाण कुंडली में फेरों की संख्या तथा इस कुंडली का प्रेरण कुंडली L1 के सापेक्ष कपलिंग पर निर्भर करता है। अब पुनर्भरण कुंडली L2 के सिरों पर उत्पन्न इस विभवान्तर को ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के आधार व उत्सर्जक (B-E) टर्मिनलों के बीच लगा देते हैं। इस प्रकार यह प्रवर्धित होकर पुनर्भरण की प्रक्रिया द्वारा टैंक परिपथ L1C1 को पुन: प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार परिपथ बिना अवमन्दित हुए दोलन करता रहता है। इसके दोलनों की आवृत्ति \(f=\frac{1}{2 \pi \sqrt{L_{1} C_{1}}}\) की जाती है। प्रश्न 18. आधार-उत्सर्जक परिपथ में, VBB = IBRB + VBE …(1) संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ में, Vcc = Ic Rc + VCE अथवा VCE = Vcc – IcRc …..(2) यदि आधार-उत्सर्जक परिपथ में लगाया गया निवेशी विभव Vi हो तब VBB = Vi तथा निर्गत विभव V0 हो तब VCE = V0 अत: समीकरण (1) व (2) से, Vi = I BRB + VBE …….(3) तथा V0 = VCC – ICRC ……(4) सिलिकन ट्रांजिस्टर के लिए विभव प्राचीर 0.6 वोल्ट होता है। अत: सिलिकन ट्रांजिस्टर के लिए 1. जब Vi < 0.6 वोल्ट है, अर्थात् निवेशी विभव ट्रांजिस्टर के विभव प्राचीर से कम हो परिपथ में कोई संग्राहक धारा नहीं बहती है अर्थात् IC = 0 अत: V0 = VCC यह स्थिति ट्रांजिस्टर की संस्तब्ध अथवा अंतक अवस्था (cut off state) कहलाती है। इस स्थिति में ट्रांजिस्टर से होकर कोई धारा नहीं बहती है, अतः ट्रांजिस्टर एक खुले स्विच (OFF Switch) की भाँति कार्य करता है। 2. जब 1.0 वोल्ट >Vi > 0.6 वोल्ट है अर्थात् निवेशी विभव, विभव प्राचीर से अधिक परन्तु 1.0 वोल्ट से कम हो तो परिपथ में संग्राहक धारा बहती है। निवेशी विभव के 0.6 वोल्ट आगे धीरे-धीरे बहने पर संग्राहक धारा IC सरल रेखीय रूप में बढ़ती है जिसके परिणामस्वरूप निर्गत वोल्टता V0 भी सरल रेखीय रूप से घटती है। यह स्थिति ट्रांजिस्टर की सक्रिय अवस्था (active state) कहलाती है। 3. जब Vi > 1.0 वोल्ट है अर्थात् निवेशी विभव 1.0 वोल्ट से अधिक हो तो Vi में वृद्धि के साथ V0 अरेखीय रूप में घटता है परन्तु शून्य कभी नहीं होता है। इस स्थिति में संग्राहक धारा अधिकतम हो जाती है तथा यह स्थिति ट्रांजिस्टर की संतृप्त अवस्था (saturation state) कहलाती है। निवेशी वोल्टता (Vi) के साथ निर्गत वोल्टता (V0) के इन सभी क्षेत्रों में परिवर्तन को चित्र-14.51 में प्रदर्शित किया गया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जब तक निवेशी वोल्टता (Vi) कम है (0.6 वोल्ट से कम) तब तक परिपथ में निर्गत वोल्टता (V0) अधिकतम है तथा संग्राहक धारा (IC)
शून्य है। अत: ट्रांजिस्टर अपनी संस्तब्ध अवस्था में है। अतः ट्रांजिस्टर खुले स्विच की भाँति कार्य करता है। जब निवेशी वोल्टता (Vi) उच्च (1.0 वोल्ट से अधिक) है तब संग्राहक धारा अधिकतम अथवा नियत होती है तथा निर्गत वोल्टता (V0) लगभग शून्य होती है। इस प्रकार कोई लघु निवेशी वोल्टता, उच्च निर्गत वोल्टता प्रदान कर ट्रांजिस्टर का स्विच खुला (OFF) कर देती है जबकि उच्च निवेशी वोल्टता, लघु निर्गत वोल्टता प्रदान कर ट्रांजिस्टर का स्विच बन्द (ON) कर देती है। ट्रांजिस्टर को स्विच के रूप में प्रयुक्त करते समय परिपथ इस प्रकार से बनाए जाते हैं कि ट्रांजिस्टर कभी भी अपनी सक्रिय अवस्था में न हो। प्रश्न 19. डिजिटल परिपथ (Digital Circuits)-“ऐसा वैद्युत परिपथ जिस पर आरोपित वोल्टेज अथवा जिसमें प्रवाहित धारा केवल दो मान (शून्य तथा कोई निश्चित मान) ग्रहण कर सकती है, डिजिटल परिपथ कहलाता है’ तथा “उस वोल्टेज अथवा धारा को जो केवल दो मान ग्रहण कर सकती है, डिजिटल सिग्नल कहते हैं।” चित्र-14.53 में एक डिजिटल सिग्नल को प्रदर्शित किया गया है, जिसमें वोल्टेज केवल दो मान 0 वोल्ट अथवा +5 वोल्ट ग्रहण कर सकती है। अडिजिटल परिपथों में द्विआधारी संख्या पद्धति (binary number system) प्रयुक्त की जाती है, जिसमें डिजिटल सिग्नल के दो मान 0 तथा 1 से प्रदर्शित किए जाते हैं। इस परिपथ का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों, कम्प्यूटरों, धुलाई की मशीनों, टी० वी० आदि में किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिक स्विच भी डिजीटल युक्ति है जिसमें दो अवस्थाएँ ON अथवा OFF होती हैं। डिजिटल परिपथों के लाभ (Advantages of Digital Circuits)- ऐनालोग परिपथों की तुलना में डिजिटल परिपथों के निम्नलिखित लाभ होते हैं
प्रश्न 20.
सत्यता सारणी (Truth Table)-किसी लॉजिक गेट का एक अथवा एक से अधिक निवेशी सिग्नल तथा केवल एक निर्गत सिग्नल होता है। किसी लॉजिक गेट के सभी सम्भव निवेशी संयोगों (input combinations) तथा उनके संगत निर्गतों को प्रदर्शित करने वाली सारणी, उस लॉजिक गेट की सत्यता सारणी कहलाती है। बूलियन व्यंजक (Boolean Expression)—प्रत्येक लॉजिक गेट का एक तर्कयुक्त प्रतीक (Logical symbol) . होता है। जॉर्ज बूल (George Boole) ने सन् 1854 ई० में एक भिन्न प्रकार का बीजगणित विकसित किया जिसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल परिपथों को सरल रूप देने में किया जाता है। यह बीजगणित ऐसे तर्कसंगत कथनों (logical statements) पर आधारित है जिनके केवल दो अर्थ अथवा मान हो सकते हैं-सत्य (true) मान अथवा असत्य (false) मान। ये तर्कसंगत कथन बूलियन चर (Boolean variables) कहलाते हैं। बूलियन चर के सत्य मान को द्विआधारी (binary) अंक ” से तथा असत्य मान को द्विआधारी अंक ‘0’ से प्रदर्शित करते हैं। अत: एक ऐसा व्यंजक जो दो बूलियन चरों के ऐसे संयोग को प्रदर्शित करता है जिससे एक नया बूलियन चर प्राप्त होता है, बूलियन व्यंजक कहलाता है जैसे यदि एक बूलियन चर A तथा दूसरा बूलियन चर B है तो Y = A. B तथा Y = A+ B आदि बूलियन व्यंजक हैं। प्रश्न 21. 2. AND संक्रिया (AND Operation)-बूलियन बीजगणित में AND संक्रिया को गुणन चिन्ह (.) से प्रदर्शित किया जाता है। इसका बूलियन व्यंजक A. B = Y होता है तथा इसे ‘A AND B equals Y’ पढ़ा जाता है, जहाँ A तथा B निवेशी सिग्नल तथा Y निर्गत सिग्नल है। इसमें दो निवेशियों A तथा B को, व्यंजक के अनुसार संयुक्त करके निर्गत Y प्राप्त होता है। 3. NOT संक्रिया (NOT operation)-बूलियन बीजगणित में NOT संक्रिया को चर राशि के ऊपर बार चिह्न (-) लगाकर प्रदर्शित किया जाता है। इसका बूलियन व्यंजक \(\overline{\boldsymbol{A}}\) = Y होता है तथा इसे ‘NOT A equals Y’ पढ़ा जाता है, जहाँ A निवेशी सिग्नल तथा Y निर्गत सिग्नल है। NOT संक्रिया को ऋणक्रमण (negation) अथवा उत्क्रमण (inversion) भी कहते हैं। इसमें केवल एक निवेशी (input) होता है तथा इससे उत्पन्न निर्गत (output) निवेशी का ऋणक्रमण होता है। प्रश्न 22. OR गेट की क्रिया पद्धति को चित्र-14.54 (b) में प्रदर्शित वैद्युत परिपथ की सहायता से समझा जा सकता है। इस परिपथ में एक बैटरी, एक बल्ब व दो स्विचों के समान्तर संयोजन को श्रेणीक्रम में जोड़ा गया है। स्पष्ट है कि स्विचों के खुले अथवा बन्द होने का परिणाम हमें बल्ब में देखने को मिलता है, अतः दोनों स्विच A, B निवेशी टर्मिनल हैं तथा बल्ब Y निर्गत टर्मिनल है। जब कोई स्विच बन्द (ON) होता है अर्थात् धारा को गुजरने देता है तो उसकी अवस्था को बाइनरी अंक 1 से प्रदर्शित किया जाता है तथा जब कोई स्विच खुला (OFF) होता है अर्थात् धारा के प्रवाह को रोक देता है तो उसकी अवस्था को बाइनरी अंक 0 से प्रदर्शित किया जाता है। इसी प्रकार जब बल्ब जला होता है तो उसकी अवस्था Y = 1 होगी जबकि बल्ब के बुझे होने पर उसकी अवस्था Y = 0 होगी। परिपथ से स्पष्ट है कि यदि
इस प्रकार इस परिपथ का निर्गम Y = 1 होता है, जबकि कम-से-कम एक निवेश 1 है, अत: इस परिपथ के निर्गम और निवेश में OR गेट के समान सम्बन्ध हैं, इसलिए यह OR गेट का तुल्य परिपथ है। OR गेट प्राप्त करना (Realisation of OR Gate)-इस गेट को दो p-n सन्धि डायोडों को चित्र-14.55 के अनुसार प्रयोग करके प्राप्त किया जा सकता है। इस परिपथ में एक +5 वोल्ट की बैटरी का ऋण सिरा भू-सम्पर्कित रखा गया है, जो 0 स्थिति को तथा धन सिरा (+5 वोल्ट) 1 स्थिति को प्रदर्शित करता है। सत्यता सारणी के अनुसार निवेश के चार सम्भव संयोजन हैं जिन्हें बारी-बारी से आगे समझाया गया है। 1. प्रथम स्थिति, A = 0, B= 0-यदि दोनों निवेश शून्य हैं अर्थात् दोनों डायोडों के सिरों A तथा B को भू-सम्पर्कित रखा जाए (अर्थात् A = B = 0) तो दोनों में से कोई भी डायोड अग्र अभिनत नहीं होगा; अतः प्रतिरोध R में कोई धारा नहीं बहेगी तथा निर्गत विभव Y शून्य होगा (अर्थात् Y = 0)। 2.
द्वितीय स्थिति, A = 1, B = 0–यदि B को भू-सम्पर्कित करें (B = 0) तथा A को बैटरी के धन सिरे से जोड़ें तो A पर +5 वोल्ट का विभव होगा अर्थात् (A = 1), तब डायोड D1 अग्र अभिनत होगा, जबकि डायोड D2 पश्च अभिनत होगा। D1 से धारा प्रवाहित होगी तथा अग्र अभिनति के कारण D1 का प्रतिरोध लगभग नगण्य होगा। प्रतिरोध R में धारा प्रवाहित होने के कारण इसके सिरों के बीच 5 वोल्ट का विभवान्तर होगा; 3. तृतीय स्थिति, A = 0, B = 1-यह स्थिति A को भू-सम्पर्कित करके तथा B को बैटरी के धन सिरे से जोड़कर प्राप्त होगी। इस स्थिति में केवल डायोड D2 से धारा प्रवाहित होगी। द्वितीय स्थिति के समान ही इस स्थिति में भी निर्गत विभव 5 वोल्ट होगा (अर्थात् Y = 1)। . 4. चतुर्थ स्थिति, A = 1,B = 1–यह स्थिति A तथा B दोनों को
बैटरी के धन सिरे से जोड़ने पर प्राप्त होती है। इस स्थिति में दोनों डायोड D1 तथा D2 अग्र अभिनत होते है; अत: बैटरी से चलने वाली धारा अब D1 व D2 में बँट जाती है तथा पुन: संयुक्त होकर प्रतिरोध R से होकर गुजरती है। R के सिरों के बीच पुन: 5 वोल्ट का विभवान्तर उत्पन्न होता है; अत: निर्गत विभव पुन : +5 वोल्ट होगा, (अर्थात् Y = 1) प्रश्न 23. AND गेट की क्रिया-पद्धति को चित्र-14.57 (b) में प्रदर्शित वैद्युत परिपथ की सहायता से समझा जा सकता है। इस परिपथ में एक बैटरी, एक बल्ब व दो स्विचों A तथा B को श्रेणीक्रम में जोड़ा गया है। दोनों स्विच निवेश का निर्माण करते हैं, जबकि बल्ब निर्गम Y को प्रदर्शित करेगा। जब कोई स्विच बन्द (ON) होगा तो उसकी स्थिति 1 होगी तथा खुले (OFF) होने पर स्थिति 0 होगी। 3. A = 0, B= 1, स्विच A खुला (OFF ) तथा स्विच B बन्द (ON) है तो बल्ब बुझा रहेगा अर्थात् Y = 0 4. A = 1, B = 1, दोनों स्विच बन्द (ON) हैं तो बल्ब जल जाएगा अर्थात् Y = 1 इस गेट का निर्गम Y = 1 (उच्च) केवल तभी होता है जबकि इसके सभी निवेश 1 (उच्च) हों। यही AND गेट की विशेषता है। AND गेट प्राप्त करना (Realisation of AND Gate)-इस गेट को दो p-n सन्धि डायोडों का चित्र-14.58 के अनुसार प्रयोग करके प्राप्त । किया जा सकता है। इस परिपथ में एक +
5 वोल्ट की दो बैटरियों का ऋण सिरा भू-सम्पर्कित रखा गया है। प्रथम बैटरी का भू-सम्पर्कित सिरा 0 25V स्थिति को धन सिरा (+ 5 वोल्ट) स्थिति को प्रदर्शित करता है। सत्यता सारणी के अनुसार निवेश के चार सम्भव संयोजन हैं, जिन्हें बारी-बारी से 03 पृथ्वी नीचे समझाया गया है। 1. प्रथम स्थिति, A = 0,B= 0–यह स्थिति A तथा B दोनों निवेश टर्मिनलों को भू-सम्पर्कित करने पर प्राप्त होती है। इस स्थिति में दोनों डायोड अग्र अभिनत होंगे तथा दोनों से धारा प्रवाहित होगी किन्तु अग्र अभिनति में दोनों का प्रतिरोध शून्य होगा; अतः प्रत्येक डायोड का विभवान्तर शून्य होगा, अत: Y पर निर्गत विभव भी शून्य होगा। 2. द्वितीय स्थिति, A = 1,B = 0 -यह स्थिति A को 5 वोल्ट की बैटरी के धन सिरे से जोड़कर तथा B को भू-सम्पर्कित करने पर प्राप्त होती है। इस स्थिति में A पर +5 वोल्ट का विभव (उच्च स्थिति A = 1) तथा B पर 0 विभव (निम्न स्थिति B = 0) है। इस स्थिति में केवल डायोड D2 अग्र अभिनत है, अत: केवल इसी में धारा प्रवाहित होती है। अग्र अभिनति के कारण इसका प्रतिरोध शून्य होगा, अतः इसके सिरों के बीच विभवान्तर शून्य होगा अर्थात् Y पर निर्गत विभव शून्य होगा
(Y = 0 निम्न स्थिति)। 3. तृतीय स्थिति, A = 0,B = 1–यह स्थिति द्वितीय स्थिति के विपरीत है। इस स्थिति में केवल डायोड D1 में धारा प्रवाहित होती है D2 में नहीं। इस स्थिति में भी Y पर निर्गत विभव शून्य है अर्थात् Y = 0 (निम्न स्थिति)। 4. चतुर्थ स्थिति, A = B = 1- यह स्थिति A तथा B दोनों को 5 वोल्ट की बैटरी के धन सिरे से जोड़ने पर प्राप्त होती है। इस स्थिति में A तथा B दोनों पर + 5
वोल्ट का विभव होता है अर्थात् A = B = 1 (उच्च स्थिति)। इस स्थिति में दोनों डायोड D1 व D2, में से कोई भी अग्र अभिनत नहीं है, अत: किसी में भी धारा प्रवाहित नहीं होती। इस स्थिति में Y पर उपलब्ध विभव प्रतिरोध R से जुड़ी बैटरी के धन सिरे के विभव +5 वोल्ट के बराबर होगा अर्थात् Y = 1 (उच्च स्थिति)। प्रश्न 24. NOT गेट की क्रिया पद्धति को चित्र-14.60 (b) में प्रदर्शित वैद्युत परिपथ की सहायता से समझा जा सकता है। इस परिपथ में एक बल्ब Y को एक बैटरी के श्रेणीक्रम में जोड़ा गया है तथा एक स्विच A को बल्ब के समान्तर क्रम मे जोड़ा गया है। स्पष्ट है कि स्विच A को खोलने अथवा बन्द करने का प्रभाव बल्ब Y पर देखने को मिलता है । अर्थात् स्विच A निवेश तथा बल्ब Y निर्गत है। जब स्विच A खुला (OFF ) अर्थात् A = 0 होता है तो बल्ब में धारा. प्रवाहित होती रहती है। अत: बल्ब जला रहता है अर्थात् निर्गम Y = 1 होता है। इसके विपरीत जब स्विच A को बन्द (ON) कर देते हैं अर्थात् जब A = 1 होता है तो बैटरी लघुपथित (short circuit) हो जाती है, जिससे बैटरी के सिरों का विभवान्तर शून्य हो जाता है। अत: बल्ब में धारा शून्य हो जाती है अर्थात् बल्ब बुझ जाता है, जिससे Y = 0 हो जाता है। अतः इस परिपथ में हम पाते हैं कि यदि निवेश A = 0 है तो निर्गम Y = 1 NOT
गेट प्राप्त करना (Realisation of NOT Gate)-इस गेट को n-p-n ट्रांजिस्टर की सहायता से चित्र-14.61 के अनुसार परिपथ तैयार करके प्राप्त किया जा सकता है। ट्रांजिस्टर के आधार B को एक प्रतिरोध RB के द्वारा निवेशी टर्मिनल A से जोड़कर उत्सर्जक E को भू-सम्पर्कित कर देते हैं। संग्राहक को एक अन्य प्रतिरोध Rc तथा 5 वोल्ट की बैटरी के द्वारा भू-सम्पर्कित कर देते हैं। निर्गत Y संग्राहक C का पृथ्वी के सापेक्ष वोल्टेज है। सत्यता सारणी के अनुसार निवेश के लिए केवल दो सम्भावनाएँ हैं जिनके संगत निर्गमों को बारी-बारी से नीचे समझाया गया है 1. प्रथम स्थिति, A=0-यह स्थिति A को भू-सम्पर्कित करके प्राप्त होती है। इस स्थिति में A पर निवेशी विभव शून्य है (निम्न स्थिति A = 0), अत: उत्सर्जक आधार सन्धि अग्र अभिनति में नहीं है, अत: इस स्थिति में ट्रांजिस्टर में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती। इस स्थिति में बैटरी E2 खुले परिपथ पर है, अत: Y पर उपलब्ध विभव
E2 के वैद्युत वाहक बल (5 वोल्ट) के बराबर होगा अर्थात् Y = 1 होगा। 2. द्वितीय स्थिति, A= 1–यह स्थिति A को बैटरी E, के धन सिरे से जोड़ने पर प्राप्त होती है। इस स्थिति में A पर निवेशी विभव +5 वोल्ट होगा (अर्थात् A = 1); अत: उत्सर्जक-आधार सन्धि अग्र अभिनत होगी। ट्रांजिस्टर में उच्च उत्सर्जक धारा प्रवाहित होगी, जिसका अधिकांश भाग संग्राहक से गुजरेगा, इसलिए Rc के सिरों के बीच लगभग 5 वोल्ट का विभवान्तर उत्पन्न हो जाएगा, अत: Y पर उपलब्ध विभव E2 के वैद्युत वाहक बल तथा Rc के विभवान्तर के परिणामी के बराबर होगा। चूँकि RC में धारा संग्राहक टर्मिनल से बाहर निकलती है, अत: RC के सिरों के बीच विभवान्तर बैटरी E2 के वैद्युत वाहक बल के विपरीत दिशा में होगा, इसलिए Rc के Y से जुड़े सिरे पर उपलब्ध विभव शून्य होगा अर्थात् Y = 0 (निम्न स्थिति)। प्रश्न 25. NOR गेट -NOR गेट को OR गेट तथा NOT गेट के संयोजन से प्राप्त किया जाता है। यदि OR गेट के निर्गत टर्मिनल Y’ को NOT गेट के निवेशी टर्मिनल से जोड़ दें [चित्र-14.63 (a)] तो यह पूर्ण संयोजन NOR गेट कहलाता है, NOR गेट का लॉजिक प्रतीक चित्र-14.63 (b) में प्रदर्शित है। NOR गेट का बूलियन व्यंजक \(\overline{A+B}=Y\) है तथा इसे ‘A OR B negated equals Y’ पढ़ा जाता है। NOR गेट की सत्यता सारणी OR तथा NOT गेटों की सत्यता सारणियों को तर्कसंगत संयोजित करके प्राप्त की जा सकती है चित्र-14.64 (a) व (b)। इसके लिए प्रदर्शित परिपथ में दो स्विच A व B एक लघु प्रतिरोध, एक बैटरी तथा एक बल्ब Y को चित्र-14.65 के अनुसार जोड़ते हैं। जब दोनों स्विच खुले हैं अर्थात् A = 0, B= 0 तो बल्ब Y जलता । है। जब स्विच A खुला है तथा स्विच B बन्द है अर्थात् A = 0, B= 1 तो बल्ब Y बुझ जाता है। जब स्विच A बन्द है तथा स्विच B खुला है अर्थात् A = 1, B= 0 तो बल्ब Y बुझ जाता है। जब दोनों स्विच बन्द हैं अर्थात् A = 1, B= 1 तो बल्ब Y बुझा रहता है। NOR गेट का निर्गत तरंग रूप NAND गेट-NAND गेट को AND गेट तथा NOT गेट के संयोजन से प्राप्त किया जाता है। यदि AND गेट के निर्गत टर्मिनल Y’ को NOT गेट के निवेशी टर्मिनल से जोड़ दें [चित्र-14.67(a)] तो यह पूर्ण संयोजन NAND गेट कहलाता है। इसका लॉजिक प्रतीक [चित्र-14.67 (b)] में प्रदर्शित है। NAND गेट का बूलियन व्यंजक \(\overline{A \cdot B}=Y\) है तथा इसे ‘A AND B negated equals Y ‘ पढ़ा जाता है। NAND गेट की सत्यता सारणी AND तथा NOT गेटों की सत्यता सारणियों को तर्कसंगत संयोजित करके प्राप्त की जा सकती है चित्र-14.68 इसके लिए प्रदर्शित परिपथ में दो स्विच A व B एक लघु प्रतिरोध R, एक बैटरी तथा एक बल्ब Y को चित्र-14.70 के अनुसार जोड़ते हैं। जब दोनों स्विच A व B खुले हैं अर्थात् A = 0, B= 0 तो बल्ब Y जलता है। जब केवल स्विच A खुला है अर्थात् A = 0, B= 1 है तो बल्ब Y जल जाता है। जब स्विच A व B दोनों बन्द हैं अर्थात् A = 1, B= 1 तो बल्ब Y बुझा रहता है। प्रश्न 26. प्रश्न 27. यहाँ \(\mathrm{Y}_{1}=\overline{\mathrm{A} . \mathrm{B}}\) तथा \(\mathrm{Y}=\overline{\mathrm{Y}_{1}}=\overline{\mathrm{A} \cdot \mathrm{B}}=\mathrm{A} \cdot \mathrm{B}\) सत्यता सारणी : 2. NAND गेट से OR गेट की प्राप्ति यहाँ Y1= \(\overline{\mathbf{A}}\) तथा Y2 = \(\overline{\mathbf{B}}\) तथा \(\mathrm{Y}=\overline{\mathrm{Y}_{1} \cdot \mathrm{Y}_{2}}=\overline{\overline{\mathrm{A}} \cdot \overline{\mathrm{B}}}=\overline{\overline{\mathrm{A}}}+\overline{\overline{\mathrm{B}}}=\mathrm{A}+\mathrm{B}\) इस प्रकार NAND गेटों का उपर्युक्त संयोजन OR गेट की भाँति कार्य करता है। अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ युक्तियाँ तथा सरल लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. बहुसंख्यक आवेश वाहकों के अतिरिक्त n-टाइप तथा pटाइप अर्द्धचालकों के भीतर ऊष्मीय विक्षोभ से उत्पन्न कुछ इलेक्ट्रॉन व कोटर उपस्थित रहते हैं जिनकी उत्पत्ति सामान्य ताप पर कुछ सहसंयोजक बन्धों के टूटने से होती है अल्पसंख्यक वाहक कहलाते हैं। n-टाइप क्रिस्टल में अल्प कोटरों में तथा pटाइप क्रिस्टल में अल्प इलेक्ट्रॉनों को अल्पसंख्यक वाहक कहते हैं। प्रश्न 13. हल : [चित्र-14.73 (a)] में दोनों सन्धि डायोड अग्र अभिनत हैं। अतः परिपथ में धारा बहेगी। प्रतिरोध R में प्रवाहित धारा (i) = \(\frac { V }{ R }\) = \(\frac { 30 }{ 30 }\) = 0.1 ऐम्पियर। [चित्र-14.73 (b)] में दोनों सन्धि डायोड उत्क्रम अभिनत हैं। अत: परिपथ में कोई धारा नहीं बहेगी। ∴ प्रतिरोध R में प्रवाहित धारा = शून्य। प्रश्न 14. आधार-संग्राहक सन्धि को उत्क्रम अभिनत करने से आधार से विसरित होने वाले सभी आवेश वाहक संग्राहक में पहुँच जाते हैं और प्रबल संग्राहक धारा प्राप्त होती है। यदि आधार-संग्राहक सन्धि को भी अग्र अभिनत कर दिया जाए तो उत्सर्जक से आने वाले आवेश वाहक संग्राहक तक नहीं पहुंचेंगे तथा ट्रांजिस्टर दो अलग-अलग परिपथों (उत्सर्जक-आधार परिपथ तथा संग्राहक-आधार परिपथ) के रूप में कार्य करेगा। प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20.
प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. AND गेट-यह एक ऐसा गेट है जिसमें दो अथवा दो से अधिक निवेशी चर A व B होते हैं तथा एक निर्गत चर Y होता है चित्र-14.74 (b) में दो निवेशों A तथा B वाले AND गेट का प्रतीक प्रदर्शित किया गया है जिसका निर्गम Y है। इसका बूलियन व्यंजक A. B= Y होता है। इसे ‘A AND B equals Y’ पढ़ा जाता है। NOT गेट-यह एक ऐसा गेट है जिसमें एक निवेशी चर A तथा एक ही निर्गत चर Y होता है। इस गेट का निर्गम 1 उच्च होता यदि और केवल यदि इसका निवेश निम्न हो। चित्र-14.74 (c) में NOT गेट का प्रतीक प्रदर्शित किया गया है जिसका निवेश A तथा निर्गत Y है। इसका बूलियन व्यंजक \(\bar{A}\) = Y होता है। इसे ‘NOT A equals Y’ पढ़ा जाता है। प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. हल प्रथम चित्र-14.76 (a) OR गेट है जिसके बूलियन व्यंजक A+ B= y1 A = 1, B= 0 रखने पर, y1 = 1 द्वितीय चित्र-14.76 (b) AND गेट है जिसके बूलियन व्यंजक A. B= y2 में A = 1, B= 0 रखने पर, y2 = 0. प्रश्न 28. हल : दिए गए परिपथ का बूलियन व्यंजक Y = A . B (Y equals negated of A and B) सत्यता सारणी: प्रश्न 29. हल : दिए गए परिपथ में, Y’ =\(\overline{\mathrm{A}+\mathrm{B}}\) तथा Y = Y’ = \(\overline{\mathrm{Y}^{\prime}}=\overline{\overline{\mathrm{A}+\mathrm{B}}}\) या Y = A+ B अत: दिया गया परिपथ OR गेट की तरह कार्य करता है। प्रश्न 30. (ii) A = 1, \(\bar{A}\) = 0 तथा B= 1, \(\bar{B}\) = 0 . प्रश्न 31.
हल :
प्रश्न 32. उत्तर : 1. 2. बूलियन व्यंजक Y = A. B.C 3. सत्यता सारणी। प्रश्न 33. हल : OR गेट तथा NAND गेट के निर्गत तरंग प्रतिरूप चित्र-14.82 में B प्रदर्शित है प्रश्न 34. उत्तर : NAND गेट का निर्गत तरंग रूप चित्र-14.84 में प्रदर्शित है अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ युक्तियाँ तथा सरल अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12.
प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. चित्र-14.86 : p.n सन्धि डायोड़ का पश्चदिशिक परिपथ। प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. अथवा p-n-p तथा n-p-n ट्रांजिस्टर के नामांकित प्रतीक चिह्न बनाइए। [2007, 08, 10, 12, 14, 16] उत्तर : (a) p-n-p ट्रांजिस्टर चित्र-14.88(a) तथा (b) n-p-n ट्रांजिस्टर चित्र-14.88(b)। प्रश्न 33.
उत्तर : प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. प्रश्न 56. प्रश्न 57. प्रश्न 58. प्रश्न 59. हल : यहाँ y’ = \(\overline{\mathrm{A}+\mathrm{B}}\) तथा Y= \(\overline{\mathbf{Y}}^{\prime}\) अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ युक्तियाँ तथा सरल आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. दिया गया p-n सन्धि डायोड उत्क्रम अभिनति में है, अत: इसका प्रतिरोध अनन्त होगा तथा उस शाखा में कोई धारा नहीं बहेगी। ∴ अमीटर A1 से मापी गई वैद्युत धारा I1 = 0 अमीटर A2 से मापी गई वैद्युत धारा I2 = \(\frac { V }{ R }\) = \(\frac { 2 }{ 5 }\)= 0.4 ऐम्पियर। प्रश्न 14. परिपथ के सिरों पर विभवान्तर = 5 – (-1) = 6 वोल्ट परिपथ में प्रवाहित धारा I = \(\frac { V }{ R }\) = \(\frac { 6 }{ 300 }\)= 0.02 ऐम्पियर। प्रश्न 15. हल : प्रथम AND गेट तथा द्वितीय NOT गेट है, अतः यह NAND गेट होगा। इसका बूलियन व्यंजक Y’=A. B. C है प्रश्न 16. हल : प्रथम OR गेट तथा द्वितीय NOT गेट है। अत: यह NOR गेट है। इसका बूलियन व्यंजक Y’= A+ B+ C प्रश्न 17. 1. लॉजिक गेट का नाम तथा सत्यता सारणी लिखिए। उत्तर : 1. दिया गया लॉजिक गेट AND गेट है। AND गेट की सत्यता सारणी 2. अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ युक्तियाँ तथा सरल बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर • निम्नलिखित प्रश्नों के चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन कीजिए 1. Pटाइप का अर्द्धचालक बनाने के लिए शुद्ध जर्मेनियम में मिलाया जाने वाला अपद्रव्य है- [2003, 11,17] 2. n-टाइप का अर्द्धचालक बनाने के लिए शुद्ध सिलिकन में जो
अपद्रव्य मिलाया जाता है, वह है [2004] 3. n-टाइप का अर्द्धचालक वैद्युत से होता है[2005] 4. एक p-टाइप अर्द्धचालक होता है [2018] 5. n-टाइप के
अर्द्धचालक में वैद्युत चालन का कारण है [2005, 16] 6. n-टाइप अर्द्धचालक में आवेश वाहक होते हैं [2005, 06, 08, 11] 7. p-टाइप का अर्द्धचालक बनता है [2007] 8. p-टाइप
चालक प्राप्त करने के लिए जर्मेनियम में थोड़ा अपद्रव्य मिलाया जाता। अपद्रव्य की संयोजकता है- [2018] 9. Pटाइप के अर्द्धचालक में आवेश वाहक होते हैं 10. अर्द्धचालकों में
वैद्युत चालन होता है[2010, 17] 11. अर्द्धचालकों की चालकता [2017] 12. कोटर (छिद्र) अधिसंख्य आवेश वाहक होते हैं[2017] 13. n-टाइप के अर्द्धचालक में अल्पसंख्यक आवेश वाहक होते हैं [2010] 14. किसी जर्मेनियम क्रिस्टलों को pटाइप अर्द्धचालक में परिवर्तित करने के लिए अपद्रव्य तत्व की संयोजकता है [2012] 15. परम शून्य ताप पर शुद्ध जर्मेनियम का क्रिस्टल व्यवहार करता है [2010, 12, 13] 16. शुद्ध सिलिकन के n-टाइप अर्द्धचालक बनाने के लिए इसमें अपद्रव्य पदार्थ मिलाते हैं [2014] 17. शुद्ध जर्मेनियम में कौन-सा अपद्रव्य परमाणु मिश्रित कर दें कि यह एक Pटाइप अर्द्धचालक हो जाए 18. निम्न में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है? [2018] 19. चालन एवं संयोजी बैण्डों की ऊर्जाओं में अन्तर [2018] 20. तीन पदार्थों के ऊर्जा बैण्ड चित्र-14.104 में दिए गए हैं,
जहाँ V संयोजी बैण्ड तथा Cचालन बैन्ड हैं। ये पदार्थ क्रमशः हैं [2014] | (a) चालक, अर्द्धचालक, कुचालक (b) अर्द्धचालक, कुचालक, चालक (c) कुचालक, चालक, अर्द्धचालक (d) अर्द्धचालक, चालक, कुचालक। उत्तर : (d) अर्द्धचालक, चालक, कुचालक। 21. एक अर्द्धचालक डायोड के p-सिरे को भू-सम्पर्कित किया गया है तथा n-सिरे पर-2 वोल्ट का विभव लगाया गया है। डायोड में [2004] 22. pn सन्धि डायोड के
अवक्षय परत में होते हैं [2007, 12, 17] 23. p-n सन्धि डायोड में उत्क्रम संतृप्त धारा का कारण है, केवल [2009] 24. एक अर्द्धचालक डायोड में विभव प्राचीर विरोध करता है, मात्र [2009] 25. जर्मेनियम डायोड का प्राचीर विभव लगभग है[2009] 26. सिलिकन डायोड में सन्धि विभव का मान होता है [2008] 27. ट्रांजिस्टर मूल रूप से एक [2003, 06] 28. n-p-n ट्रांजिस्टर का परिपथ प्रतीक है [2006] उत्तर : 29. एक ट्रांजिस्टर में [2013] 30. एक
n-p-n ट्रांजिस्टर में संग्राहक धारा 10 मिलीऐम्पियर है। यदि इलेक्ट्रॉनों में से 90% संग्राहक पर पहुँचते हैं तो[2013] 31. धारा लाभ β = 19 वाले ट्रांजिस्टर की उभयनिष्ठ उत्सर्जक व्यवस्था में यदि आधार धारा में 0.4 मिलीऐम्पियर का परिवर्तन किया जाए तो संग्राही धारा में परिवर्तन होगा 32. एक ट्रांजिस्टर के आधार धारा में 25 µA का परिवर्तन करने पर संग्राहक धारा में 0.55 मिलीऐम्पियर का परिवर्तन होता है। β (ac) का मान होगा [2009] 33. एक ट्रांजिस्टर के उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक के लिए शक्ति प्रवर्धन AP तथा वोल्टेज प्रवर्धन AV हो,
तो धारा प्रवर्धन होगा [2018] 34. 35. एक n-p-n ट्रांजिस्टर में संग्राहक धारा 24 mA है। यदि
संग्राहक की ओर 80% इलेक्ट्रॉन पहुँचते हों तो आधार धारा [2014] 36. डिजिटल निकाय जिस संख्या पद्धति पर कार्य करते हैं, वह है 37. डिजिटल परिपथ कार्य करता है-. 38. दी गई सत्यता सारणी किस गेट की है [2004, 09, 10] | 39. AND गेट में उच्च (1) निर्गत प्राप्त करने के लिए निवेशी A व B होने चाहिए [2004, 05, 11] (a) A= 0, B= 0 (b) A = 1, B= 0 (c) A = 0, B= 1 (d) A = 1, B = 1. उत्तर : (d) A = 1, B = 1. 40. दिया गया लॉजिक प्रतीक निरूपित करता है [2004, 06] (a) AND गेट (b) OR गेट (c) NAND गेट (d) NOT गेट। उत्तर : (d) NOT गेट। 41. निवेशियों A तथा B के लिए निर्गत C का बूलियन व्यंजक A+ B = C से दिया गया है। इस समीकरण के संगत गेट होगा [2004, 05, 06] 42. दो निवेश A तथा B वाले OR गेट का निर्गत शून्य
होने के लिए आवश्यक है कि [2011] 43. दिया गया लॉजिक प्रतीक निरूपित करता है [2005, 06] (a) AND गेट (b) NAND गेट (c) OR गेट (d) NOT गेट। उत्तर : (c) OR गेट 44. दिया गया लॉजिक प्रतीक निरूपित करता है [2005, 06] (a) AND (b) OR (c) NOT (d) इनमें से कोई नहीं। उत्तर : (a) AND 45. बूलियन व्यंजक Y = \(A \bar{B}+B \bar{A}\) दिया गया है। यदि A = 1 तथा B = 1 हो तो Y का मान होगा [2006, 11, 12] 46. OR गेट में एक निवेशी ‘0’ तथा दूसरा ‘1’ है। निर्गत होगा [2006] 47. दी गई सत्यता सारणी किस गेट की है [2008, 09, 10, 11] (a) OR गेट की (b) NOT गेट की (c) NOR गेट की (d) AND गेट की। उत्तर : (a) OR गेट की 48. दो निवेशी टर्मिनलों वाले OR गेट का निर्गत केवल तब 0 होता है, जब [2013, 16] 49. AND गेट में एक निवेशी 0 तथा दूसरा 1 है। निर्गत होगा 50. चित्र-14.108 में प्रदर्शित गेटों के संयोजन से, निर्गत Y = 1प्राप्त करने के लिए [2015, 16] (a) A = 1, B= 0, C = 1 (b) A = 1, B= 1, C= 0 (c) A = 0, B= 1, C = 0 (d) A= 1, B= 0, C = 0. उत्तर : (a) A = 1, B= 0, C = 1 51. दिए गए लॉजिक गेटों के संयोजन का बूलियन व्यंजक है (a)Y = A + \(\bar{B}\) (b) Y = \(\overline{A+B}\) (c) Y = \(\bar{A}\) + \(\bar{B}\) (d) Y = \(\bar{A}\) + B. उत्तर : (d) Y = \(\bar{A}\) + B. 52. चित्र-14.110 में प्रदर्शित लॉजिक निकाय निरूपित करता है- [2016] (a) NAND गेट (b) OR गेट (c) AND गेट (d) NOT गेट। चित्र-14.110 उत्तर : (b) OR गेट MP Board Class 12th Physics Important QuestionsMP Board Class 12th Physics Important Questions Chapter 2 स्थिरवैद्युत विभव तथा धारितास्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरप्रश्न 1. माना रेखा OA पर, बिन्दु O से x मीटर की दूरी पर कोई बिन्दु B है, जिस पर परीक्षण आवेश +qp
स्थित है। .. कूलॉम के नियमानुसार बिन्दु आवेश + q के कारण, परीक्षण आवेश +qo पर लगने वाला वैद्युत बल वैद्युत विभव-वैद्युत क्षेत्र में, किसी धन परीक्षण आवेश (+ qo) को अनन्त से किसी बिन्दु तक लाने में किए गए कार्य (W) तथा परीक्षण आवेश के अनुपात को उस बिन्दु पर वैद्युत विभव कहते हैं। इसे ‘V’ से प्रदर्शित करते हैं। वैद्युत विभव V = \(\frac{W}{q_{0}}\) इसका मात्रक ‘जूल/कूलॉम’ या ‘वोल्ट’ है। यह एक
अदिश राशि हैं। प्रश्न 2. प्रश्न 3. चूँकि वैद्युत विभव एक अदिश राशि है; अत: वैद्युत द्विध्रुव के कारण बिन्दु P पर परिणामी वैद्युत विभव v; दोनों विभवों V, तथा V, के बीजगणितीय योग (चिह्न सहित) के बराबर होगा। अतः बिन्दु P पर परिणामी वैद्युत विभव परन्तु 2 ql = p (वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण) रखने पर, V \(V=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0} K} \frac{p}{\left(r^{2}-l^{2}\right)}\) वोल्ट यदि l का मान r के सापेक्ष बहुत कम हो (l <<r) तो l2 का मान r2 की तुलना में नगण्य माना जा सकता है। अत: वैद्युत द्विध्रुव के कारण बिन्दु P पर वैद्युत विभव \(V=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0} K} \frac{p}{r^{2}}\) वोल्ट यदि माध्यम वायु अथवा निर्वात हो तो K = 1; अत: वैद्युत द्विध्रुव के कारण बिन्दु P पर वैद्युत विभव \(V=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0} K} \frac{p}{r^{2}}\) वोल्ट। प्रश्न 4. अतः वैद्युत द्विध्रुव के कारण निरक्षीय स्थिति में किसी बिन्दु पर वैद्युत विभव शून्य होता है (वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता शून्य नहीं होती है)। प्रश्न 5. Δ OMA तथा Δ ONB mem , OM = ON = I cosθ अतः AP = MP = (r – l cos θ) तथा BN = NP = (r + l cos तथा) प्रश्न 6. q2 का मान समीकरण (1) में रखने पर, प्रश्न 7. अतः विभव प्रवणता \(\frac{(V-\Delta V)-V}{(x+\Delta x)-x}=-\frac{\Delta V}{\Delta x}\) वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता तथा विभव प्रवणता में सम्बन्ध (Relation between Intensity of Electric Field and Potential Gradient)—माना वैद्युत क्षेत्र E में, परीक्षण धन आवेश +qo को बिन्दु B से बिन्दु A तक लाया जाता है तथा इस परीक्षण आवेश +qo पर एक वैद्युत बल F वैद्युत क्षेत्र E की दिशा में कार्य करता है। अतः F=qo x E ……………(1) माना परीक्षण आवेश +qo को बिन्दु B से बिन्दु A तक ले जाने में बाह्य कर्ता द्वारा वैद्युत बल F के विरुद्ध किया गया कार्य ΔW है तो समीकरण (2) तथा समीकरण (3) की तुलना करने पर, – E x Δx = ΔV अतः वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E=-\frac{\Delta V}{\Delta x} वोल्ट/मीटर ΔV/Δx को ही विभव प्रवणता कहते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता, ऋणात्मक विभव प्रवणता के बराबर होती है। यहाँ पर ऋण चिह्न यह प्रदर्शित करता है कि वैद्युत क्षेत्र की दिशा में वैद्युत विभव का मान घटता है। प्रश्न 8. माना एक इलेक्ट्रॉन जिस पर आवेश – e तथा द्रव्यमान m है जो X-अक्ष के अनुदिश गतिमान है तथा v वेग से वैद्युत क्षेत्र E में प्रवेश करता है। चूँकि वैद्युत क्षेत्र Y-अक्ष की ऋणात्मक दिशा में नीचे की ओर है; अत: इलेक्ट्रॉन पर Y-अक्ष के अनुदिश लगने वाला बल F = eE. ‘इलेक्ट्रॉन पर X-अक्ष के अनुदिश कोई बल कार्य नहीं करेगा। यह समीकरण y = cx2 के समरूप है तथा परवलय निरूपित करती है। अत: वैद्युत क्षेत्र में अभिलम्बवत् प्रवेश करने वाले आवेशित इलेक्ट्रॉन का गमन-पथ परवलयाकार होता है। (ii) जब इलेक्ट्रॉन का प्रारम्भिक वेग वैद्युत क्षेत्र की दिशा के अनुदिश है-इस स्थिति में वैद्युत क्षेत्र द्वारा उत्पन्न त्वरण अथवा मन्दन इलेक्ट्रॉन के प्रारम्भिक वेग की ही दिशा में होता है; अत: आवेशित इलेक्ट्रॉन का गमन-पथ ऋजुरेखीय होता है। प्रश्न 9. दो वैद्युत आवेशों से बने निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा का व्यंजक-माना एक आवेश निकाय AB दो बिन्दु आवेशों + q1 व + q2 से मिलकर बना है जो कि एक-दूसरे से । दूरी पर निर्वात अथवा वायु में स्थित हैं (चित्र 2.26)। माना +q2 आवेश, बिन्दु B पर न होकर अनन्त पर स्थित है, तब आवेश + q1 के कारण बिन्दु B पर वैद्युत विभव की परिभाषानुसार आवेश +q2 को अनन्त से बिन्दु B तक लाने में किया गया कार्य W = आवेश × बिन्दु B का विभव यह कार्य W ही +q1 व +q2 से बने वैद्युत निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा U है। अत: निकाय (q1 + q2) की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा \(U=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q_{1} q_{2}}{r}\) जल। ……….(2) यदि दोनों आवेश समान प्रकार के हों तो वे एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करेंगे; अत: उन्हें एक-दूसरे के समीप लाने में क्षेत्र के विरुद्ध कार्य करना पड़ेगा; अत: ऐसे निकाय की ऊर्जा धनात्मक होगी। इसके विपरीत विजातीय आवेशों को परस्पर समीप लाकर निकाय की रचना करने में, कार्य क्षेत्र के द्वारा किया जाएगा; अत: ऐसे निकाय की ऊर्जा ऋणात्मक होगी; अत: ऊर्जा का चिह्न सहित मान ज्ञात करने के लिए उपयुक्त सूत्र (2) में q1 व q2 के मान चिह्नसहित रखने चाहिए। प्रश्न 10. t = pE sinθ वैद्युत द्विध्रुव AB को इस स्थिति से आगे अल्पांश कोण dθ द्वारा घुमाने में वैद्युत क्षेत्र के विरुद्ध कृत कार्य dw = बल-युग्म का आघूर्ण x कोणीय विस्थापन = t x dθ = pE sin θ x dθ अत: वैद्युत द्विध्रुव को प्रारम्भिक स्थिति θ = θ1 से अन्तिम स्थिति θ = θ2 तक घुमाने में कृत कार्य यदि प्रारम्भ में वैद्युत द्विध्रुव बाह्य क्षेत्र की दिशा में अनुरेखित है अर्थात् θ1 = 0°, तब वैद्युत द्विध्रुव को θ कोण से घुमाने में कृत कार्य W = pE (cos 0° – cosθ) [∵ θ2= θ] अतः W = pE(1 – cos θ) विशेष स्थितियाँ-1. यदि θ = 90° है अर्थात् वैद्युत द्विध्रुव को क्षेत्र की दिशा से 90° घुमाया जाए तो W = pE (1 – cos 90°) = pE (1 – 0)= PE . 2. यदि θ = 180° है अर्थात् वैद्युत द्विध्रुव को क्षेत्र की दिशा से 180° घुमाया जाए तो W = pE (1 – cos 180°) = pE [1 – (-1)] = 2pE. प्रश्न 11. माना AB वैद्युत द्विध्रुव + q तथा -q आवेशों से मिलकर बना है जिनके बीच की दूरी 2l है। इस वैद्युत द्विध्रुव को अनन्त से किसी एकसमान वैद्युत क्षेत्र E में इस प्रकार लाया जाता है कि वैद्युत द्विध्रुव के आघूर्ण p की दिशा सदैव वैद्युत क्षेत्र E की दिशा के समान्तर रहे (चित्र-2.28)। वैद्युत क्षेत्र E के कारण + q आवेश पर बल F = qE क्षेत्र की दिशा में तथा -q आवेश पर बल F = qE क्षेत्र की विपरीत दिशा में लगता है; अत: वैद्युत द्विध्रुव को अनन्त से वैद्युत क्षेत्र में लाने के लिए +q आवेश पर बाह्य कर्ता द्वारा कार्य किया जाएगा, जबकि -q आवेश पर स्वयं वैद्युत क्षेत्र कार्य करेगा। वैद्युत द्विध्रुव को अनन्त से वैद्युत क्षेत्र के भीतर लाने में -q आवेश; + q आवेश से 2l दूरी अधिक चलता है। इस कारण -q आवेश पर वैद्युत क्षेत्र द्वारा किया गया कार्य अधिक होगा तथा इसका मान ऋणात्मक होगा; अत: वैद्युत द्विध्रुव को अनन्त से वैद्युत क्षेत्र के भीतर लाने में वैद्युत क्षेत्र द्वारा किया गया नैट कार्य W1= आवेश (-q) पर बल.x आवेश द्वारा चली गई अतिरिक्त दूरी (AB) = – qE x 2l = – pE जहाँ q x 2l =p वैद्युत द्विध्रुव-आघूर्ण है। यह कार्य ही वैद्युत क्षेत्र में क्षेत्र के समान्तर रखे वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा है। इसे ‘U0‘ से प्रदर्शित करते हैं। अतः Uo = – pE वैद्युत द्विध्रुव की इस स्थिति को स्थायी सन्तुलन (stable equilibrium) की स्थिति कहते हैं। यदि वैद्युत द्विध्रुव को वैद्युत क्षेत्र के भीतर θ कोण से घुमाएँ तो वैद्युत द्विध्रुव पर किया गया कार्य W2 = pE (1 – cos θ) इसके कारण वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा बढ़ जाएगी; अत: θ कोण की स्थिति में वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा . Uθ = Uo + W2 = – pE + pE (1 – cos θ) = – pE cos θ यह वैद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा का व्यापक समीकरण है। विशेष स्थितियाँ-1. यदि θ = 0° है अर्थात् वैद्युत द्विध्रुव, वैद्युत क्षेत्र की दिशा में है, तब स्थितिज ऊर्जा Uo = – pE इस स्थिति में वैद्युत द्विध्रुव स्थायी सन्तुलन (stable equilibrium) में होगा; अत: स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होगी। 2. यदि θ = 90° है अर्थात् वैद्युत द्विध्रुव, वैद्युत क्षेत्र E के लम्बवत् है, तब स्थितिज ऊर्जा U90°= – pE cos 90° = 0 अर्थात् यदि वैद्युत द्विध्रुव को वैद्युत क्षेत्र E के लम्बवत् रखकर अनन्त से लाएँ तो वैद्युत द्विध्रुव पर कोई कार्य नहीं करना पड़ेगा। 3. यदि θ = 180° है अर्थात् वैद्युत द्विध्रुव को स्थायी सन्तुलन से 180° घुमाने पर स्थितिज ऊर्जा U180° = – pE cos 180° = + pE इस स्थिति में, वैद्युत द्विध्रुव अस्थायी सन्तुलन (unstable equilibrium) में होगा। प्रश्न 12. विशेष स्थितियाँ-1. चालक की स्थितिज ऊर्जा सदैव धनात्मक होती है चाहे चालक को धन आवेश देकर आवेशित किया जाए अथवा ऋण आवेश देकर। 2. यदि आवेशित चालक के सम्पूर्ण आवेश को किसी चालक तार अथवा प्रतिरोध में प्रवाहित करके इसे निरावेशित कर दिया जाए तो उसकी सम्पूर्ण वैद्युत स्थितिज ऊर्जा चालक तार में ऊष्मा में बदल जाती है। प्रश्न 13. माना दोनों चालक एक-दूसरे से पर्याप्त दूरी पर हैं तथा जोड़ने वाले चालक तार की वैद्युत धारिता नगण्य है। चूँकि q1= C1V1 तथा q2 = C2V2 अतः चालकों पर कुल आवेश q = q1 + q2 = C1V1 + C2V2 ………………(1) माना चालकों को तार द्वारा जोड़ने के बाद उन पर आवेश क्रमशः q1‘ व q2‘ तथा दोनों का उभयनिष्ठ विभव V हो जाता है, तब प्रथम च (क पर आवेश q’1 = C1V ………………(2) तथा दूसरे चालक पर आवेश q’2 = C2V ………………(3) समीकरण (2) को समीकरण (3) से भाग देने पर, \(\frac{q_{1}^{\prime}}{q_{2}^{\prime}}=\frac{C_{1} V}{C_{2} V}=\frac{C_{1}}{C_{2}}\) अर्थात् दो आवेशित चालकों को परस्पर जोड़ने पर, चालकों पर आवेश का पुनर्वितरण उनकी धारिताओं के अनुपात में होता है। अब संयोजन पर कुल आवेशq = q’1 + q’2 = q1 + q2 अथवा C1V + C2V = C1V2 +C2V2 अथवा V(C1 + C2) = C1V1 + C2V2 अतः उभयनिष्ठ विभव \(V=\frac{C_{1} V_{1}+C_{2} V_{2}}{C_{1}+C_{2}}=\frac{q_{1}+q_{2}}{C_{1}+C_{2}}\) ………….(4) स्थानान्तरित आवेश की मात्रा (Quantity of Transferred Charge)-चूँकि चालकों को परस्पर जोड़ने से पहले, चालक A पर आवेश q1 है तथा चालक तार द्वारा जोड़ने के पश्चात् इस पर आवेश q’1 रह जाता है। अत: चालक A से चालक B पर स्थानान्तरित आवेश की मात्रा (ii) आवेशों के पुनर्वितरण में ऊर्जा का ह्रास (Loss of Energy in Redistribution of
Charges)—आवेशों के पुनर्वितरण की प्रक्रिया में जब आवेश चालक तार में प्रवाहित होता है तो इस क्रिया में कुछ कार्य किया जाता है। यह कार्य ऊष्मा के रूप में क्षय होता है। इस प्रकार दोनों चालकों के आवेश की कुल मात्रा तो वही रहती है, परन्तु चालकों की कुल स्थितिज ऊर्जा कम हो जाती है। जोड़ने से पूर्व इस समीकरण में C1 व C2 दोनों धनात्मक हैं तथा (V1~V2)2 पूर्ण वर्ग होने के कारण एक धनात्मक संख्या है; अत: ∆U = (U – U’) भी धनात्मक संख्या है। यह तभी सम्भव है जबकि U’ प्रश्न 14. समीकरण (2) से स्पष्ट है कि समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है – 1. प्लेटों के क्षेत्रफल A पर – C ∝ A अर्थात् धारिता प्लेटों के क्षेत्रफल के अनुक्रमानुपाती होती है; अत: संधारित्र की धारिता बढ़ाने के लिए प्लेटों का क्षेत्रफल A अधिक होना चाहिए अर्थात् प्लेटें बड़े क्षेत्रफल की लेनी चाहिए। 2. प्लेटों के बीच की दूरी d पर-C ∝ 1/d अर्थात् धारिता प्लेटों के बीच की दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है; अतः संधारित्र की धारिता बढ़ाने के लिए प्लेटों के बीच की दूरी d कम होनी चाहिए अर्थात् प्लेटें एक-दूसरे के समीप रखनी चाहिए। 3. प्लेटों के बीच के माध्यम पर-C ∝ K अर्थात् धारिता माध्यम के परावैद्युतांक के अनुक्रमानुपाती होती है; अतः संधारित्र की धारिता बढ़ाने के लिए प्लेटों के बीच ऐसा माध्यम अर्थात् पदार्थ रखना चाहिए जिसका परावैद्युतांक (K) अधिक हो। समान्तर प्लेट वायु संधारित्र की धारिता–यदि प्लेटों के बीच निर्वात (अथवा वायु ) हो अर्थात् K = 1 तो संधारित्र की धारिता \(C_{0}=\frac{\varepsilon_{0} A}{d}\)फैरड संधारित्र की धारिता के पद में परावैद्युतांक की परिभाषा–जब समान्तर प्लेट संधारित्र की प्लेटों के बीच परावैद्युत माध्यम भरा है तो संधारित्र की धारिता \(C_{0}=\frac{K\varepsilon_{0} A}{d}\) जब समान्तर प्लेट संधारित्र की प्लेटों के बीच वायु अथवा निर्वात है तो संधारित्र की धारिता \(C_{0}=\frac{\varepsilon_{0} A}{d}\) अत: \(\frac{C}{C_{0}}=\frac{K \varepsilon_{0} A / d}{\varepsilon_{0} A / d}=K\) अथवा C = KC0 अत: यदि प्लेटों के बीच निर्वात के स्थान पर परावैद्युत माध्यम हो तो संधारित्र की धारिता K गुना बढ़ जाएगी। अतः “किसी माध्यम का परावैद्युतांक (dielectric constant) उस माध्यम से युक्त संधारित्र की धारिता तथा उसी आकार के निर्वात अथवा वायु. संधारित्र की धारिता के अनुपात के बराबर होता है (अर्थात् K = C/C0) प्रश्न
15. चूँकि K का मान सदैव 1 से अधिक होता है; अतः प्लेटों के बीच प्रभावी दूरी d से कुछ कम हो जाती है, जिससे संधारित्र की धारिता बढ़ जाती है। विशेष स्थितियाँ-1. यदि प्लेटों के बीच पूरे स्थान में परावैद्युतांक भरा हो (अर्थात् t = d) तो 2. यदि प्लेटों के बीच पूरे स्थान में वायु अथवा निर्वात हो (अर्थात् t = 0) तो 3. यदि प्लेटों के बीच 1 मोटाई की धातु की पट्टी हो (K = ∞) तो 4. यदि प्लेटों के बीच K1, K2, K3,…., Kn
परावैद्युतांकों की पट्टियाँ रखी हों, जिनकी मोटाइयाँ क्रमशः t1 , t2 , t3, ….. , tn हों तो 5. यदि प्लेटों के बीच पूरे स्थान में परावैद्युत की पट्टियाँ भरी हों तो d = t1
+ t2 + t3 + …. + tn प्रश्न 16. जब किसी वैद्युत स्रोत द्वारा संधारित्र C1की पहली प्लेट को +q आवेश देते हैं। प्रेरण द्वारा इसकी दूसरी प्लेट पर -q आवेश उत्पन्न हो जाता है तथा इस प्लेट का स्वतन्त्र आवेश + q; दूसरे संधारित्र C2 की पहली प्लेट पर चला जाता है और संधारित्र C2 की दूसरी प्लेट पर -q आवेश उत्पन्न हो जाता है। अतः “श्रेणीक्रम में जुड़े संधारित्रों की तुल्य धारिता का व्युत्क्रम, उन संधारित्रों की अलग-अलग धारिताओं के व्युत्क्रमों के योग के बराबर होता है।” वास्तव में तुल्य धारिता का मान श्रेणीक्रम में जुड़े सबसे कम धारिता वाले संधारित्र की धारिता से भी कम होता है। श्रेणीक्रम में जडे संधारित्रों के लिए-1. सभी संधारित्रों पर आवेश की मात्रा समान रहती है। 2. संयोजन के सिरों के बीच आरोपित कुल विभवान्तर, अलग-अलग संधारित्रों की प्लेटों के बीच उत्पन्न विभवान्तर के योग के बराबर होता है अर्थात् V = V1 + V2 +V3 इसीलिए श्रेणीक्रम संयोग का प्रयोग तब करते हैं, जबकि किसी ऊँचे वोल्टेज को (जिसे अकेला संधारित्र सहन न कर सके), अनेक संधारित्रों पर विभाजित करना होता है। 3. इस संयोजन में न्यूनतम धारिता वाले संधारित्र की प्लेटों के बीच विभवान्तर अधिकतम होता है। प्रश्न 17. समान्तर क्रम में (In Parallel) जुड़े संधारित्र-माना तीन संधारित्रों को, जिनकी धारिताएँ C1,C2 व C3 हैं, समान्तर क्रम में बिन्दु A व B के बीच जोड़ा गया है। इसमें सभी संधारित्रों की पहली प्लेटों को एक बिन्दु A से तथा दूसरी प्लेटों को दूसरे बिन्दु B से जोड़ते हैं और बिन्दु B को पृथ्वी से जोड़ देते हैं। यदि किसी वैद्युत स्रोत द्वारा बिन्दु A को + q आवेश दिया जाता है तो यह आवेश तीनों संधारित्रों पर उनकी धारिताओं के अनुपात में बँट जाता है। प्रेरण की क्रिया से संधारित्रों की दूसरी प्लेटों के अन्दर वाले तलों पर बराबर व विपरीत ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है तथा बाहरी तलों पर उत्पन्न धन आवेश पृथ्वी से आने वाले इलेक्ट्रॉनों द्वारा निरावेशित हो जाता है। चूँकि तीनों संधारित्र बिन्दुओं A व B के बीच जुड़े हैं; अत: प्रत्येक संधारित्र की प्लेटों के बीच विभवान्तर समान होगा। माना यह विभवान्तर V है तथा संधारित्रों पर आवेश क्रमश: q1; q2व q3 हैं, तब q1 = C1V, q2 = C2V तथा q3 = C3V तीनों संधारित्रों पर कुल आवेश q= q1 + q2 + q3 = C1V + C2V + C3V = V (C1 + C2+ C3)………..(1) यदि इन तीनों संधारित्रों के स्थान पर एक ऐसा संधारित्र लगाया जाए जिसे 4 आवेश देने पर उसकी प्लेटों के बीच विभवान्तर V हो जाए, तो वह तुल्य संधारित्र होगा। यदि इस संधारित्र की धारिता C हो तो समीकरण (1) व समीकरण (2) की तुलना करने पर, VC = V(C1 + C2 + C3) अतः C = C1 + C2 + C3 अत: “समान्तर क्रम में जुड़े संधारित्रों की तुल्य धारिता, उन संधारित्रों की अलग-अलग धारिताओं के योग के बराबर होती है।” इस प्रकार संधारित्रों को जोड़कर धारिता बढ़ाई जा सकती है। समान्तर क्रम में जुड़े संधारित्रों के लिए – 1. सभी संधारित्रों की प्लेटों के बीच विभवान्तर (V) समान रहता है। 2. संधारित्रों के निकाय का कुल आवेश, उनके अलग-अलग आवेशों के योग के बराबर होता है। अर्थात् q= q1 + q2 + q3 संधारित्रों पर अलग-अलग आवेश, उनकी धारिताओं के अनुपात में होता है। 4. समान्तर-संयोजन का प्रयोग तब करते हैं, जबकि कम विभव पर अधिक धारिता की आवश्यकता होती है। प्रश्न 18. अत: आवेशित संधारित्र की ऊर्जा उसकी प्लेटों के बीच स्थित माध्यम में उत्पन्न वैद्युत क्षेत्र में रहती है। प्रश्न 19. प्रश्न 20. (i) किसी खोखले चालक को दिया गया आवेश केवल उसके बाहरी पृष्ठ पर विद्यमान रहता है तथा एकसमान रूप से वितरित रहता है। (ii) किसी आवेशित चालक से वायु में वैद्युत विसर्जन उसके तीक्ष्ण नुकीले सिरों (sharp points) से प्राथमिकता से होता है। तीक्ष्ण नुकीले सिरों का क्षेत्रफल बहुत कम होने के कारण वहाँ आवेश पृष्ठ घनत्व बहुत अधिक होता है, जिस कारण उनसे वायु में आवेश का क्षरण होने लगता है। . कार्यविधि (Working)-जब चालक (कंघे) C1 को अति उच्च विभव (HTS) दिया जाता है तो तीक्ष्ण बिन्दुओं की क्रिया के फलस्वरूप यह अपने चारों ओर के स्थान में आयन उत्पन्न करता है। धन-आयनों व चालक (कंघे)
C1 के बीच प्रतिकर्षण के कारण ये धन-आयन गति करती बैल्ट पर चले जाते हैं। गतिमान बैल्ट द्वारा ये आयन ऊपर ले जाए जाते हैं। चालक (कंघे) C2 के तीक्ष्ण सिरे बैल्ट को ठीक छूते हैं। इस प्रकार चालक(कंघा) C2 बैल्ट के धन आवेश को एकत्रित करता है। यह धन-आवेश शीघ्र ही गोले S के बाहरी पृष्ठ पर स्थानान्तरित हो जाता है। चूंकि बैल्ट घूमती रहती है। अत: यह धन आवेश को ऊपर की ओर ले जाती है जो चालक (कंघे) C2 द्वारा एकत्रित कर लिया जाता है तथा गोले S के बाहरी पृष्ठ पर
स्थानान्तरित हो जाता है। इस प्रकार गोले S का बाहरी पृष्ठ निरन्तर धन आवेश प्राप्त करता है तथा इसका विभव अति उच्च हो जाता है। जब गोले S का विभव बहुत अधिक (लगभग 3 x 106 वोल्ट/मीटर) हो जाता है, तो निकटवर्ती वायु की परावैद्युत तीव्रता (dielectric strength) टूट जाती है तथा आवेश का निकटवर्ती वायु में क्षरण (leakage) हो जाता है। अधिकतम विभव की स्थिति में आवेश के क्षरण होने की दर गोले पर स्थानान्तरित आवेश की दर के बराबर हो जाती है। गोले से आवेश का क्षरण रोकने के लिए, जनित्र को स्टील के आवरण से घिरे एक टैंक में रखा जाता है जिसमें उच्च दाब LED पर नाइट्रोजन अथवा मेथेन गैस भरी होती है। वान डे ग्राफ जनित्र धन आवेशित कणों को अति उच्च वेग तक त्वरित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. इसमें x = 1 मीटर, y = 0 मीटर, 2 = 2 मीटर रखने पर, बिन्दु (1 मीटर, 0 मीटर, 2 मीटर) पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E = -8 x 1 = -8 वोल्ट/मीटर। ऋण चिह्न यह प्रदर्शित करता है कि वैद्युत क्षेत्र ऋण X-अक्ष की ओर दिष्ट है। प्रश्न 15. हल : दिया है, d = 2 मिमी = 2 x 10-3 मीटर, VA = +10,000 वोल्ट, VB = 0, E = ? सूत्र \(E=\frac{V_{A}-V_{B}}{d}\) प्लेटों के बीच वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता \(E=\frac{10,000-0}{2 \times 10^{-3}}=5 \times 10^{6}\) वोल्ट/मीटर। प्रश्न 16. (ii) स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि = 2qV जूल। प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. हल : सूत्र V = iR से, VAB = 2 × 2 + 3+ 2 × 1- 2 + 2 × 1 , = 9 वोल्ट। प्रश्न 20. प्रश्न 21.
प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. (ii) जोड़ने से पहले कुल आवेश q = q1 + q2 = C1V1 + C2V2| चूँकि जोड़ने पर दोनों का विभव समान हो जाता है; अत: एक का विभव बढ़ेगा तथा दूसरे का घटेगा। इसलिए जोड़ने के बाद कुल आवेश चूँकि जोड़ने से पहले तथा बाद में कुल आवेश वही रहता है। प्रश्न 30. प्रश्न 31. दिए गए परिपथ में प्लेटें 1 व 2 एक संधारित्र तथा प्लेटें 3 व 4 दूसरा संधारित्र बनाती हैं। इनके तुल्य परिपथ संलग्न चित्रों (2.38) में प्रदर्शित हैं। स्पष्ट है कि दोनों संधारित्र समान्तरक्रम में जुड़े हैं। प्रत्येक संधारित्र की धारिता C1 = C2 = \(\frac{\varepsilon_{0} A}{d}\) प्रश्न 32. हल : यह तीन संधारित्रों (1, 2); (2, 3) व (3, 4) का समान्तर संयोजन है। प्लेट 2, पहले व दूसरे संधारित्रों की दूसरी उभयनिष्ठ प्लेट है तथा प्लेट 3, दूसरे व तीसरे संधारित्रों की पहली उभयनिष्ठ प्लेट है। अतः बिन्दुओं A व B के बीच तुल्य धारिता C = C1 + C2 + C3 \(=\frac{\varepsilon_{0} A}{d}+\frac{\varepsilon_{0} A}{d}+\frac{\varepsilon_{0} A}{d}=\frac{3 \varepsilon_{0} A}{d}\) फैरड प्रश्न 33. अत: निकाय की धारिता बढ़ जाएगी। प्रश्न 34. प्रश्न 35. पृष्ठ आवेश घनत्व छोटे गोले (जिसकी त्रिज्या R2 है) पर अधिक होगा। प्रश्न
36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. उत्तर : दिए गए ग्राफ से स्पष्ट है कि U ∝ 1/C संधारित्र में संचित कुल ऊर्जा \(\frac{1}{2} \frac{q^{2}}{C}\) U व C के बीच ग्राफ अतिपरवलय है। यदि q नियत है तो U ∝ 1/C अत: संधारित्र की प्लेटों पर आवेश (q) नियत है। प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. यदि वायु की परावैद्युत सामर्थ्य 3.0 x 106 वोल्ट/मीटर हो तो दर्शाइए कि वान डे ग्राफ जनित्र के 0.1 मीटर त्रिज्या वाले गोले का विभव 3.0 x 105 वोल्ट से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। [2018] उत्तर : किसी माध्यम का परावैद्युत सामर्थ्य, वैद्युत क्षेत्र का वह अधिकतम मान है जो वह अपना परावैद्युत भंजन हुए बिना सहन कर सकता है। अतः Emax = 3.0 x 106 वोल्ट/मीटर, r = 0.1 मीटर गोले के पृष्ठ पर वैद्युत क्षेत्र, \(E=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{q}{r^{2}}\) गोले के पृष्ठ पर वैद्युत विभव, \(V=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{r}\) ∴ \(\frac{E}{V}=\frac{1}{r}\) या V= E.r या Vmax = Emax.r = 3.0 x 106 x 0.1 = 3.0 x 105 वोल्ट। अतः वान डे ग्राफ जनित्र के गोले का विभव 3.0 x 105 वोल्ट से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. चित्र 2.42 में प्रदर्शित गोलीय पृष्ठ S1 व S1 धन बिन्दु आवेश के समविभव पृष्ठ हैं। प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. ये दोनों मात्रक वैद्यत क्षेत्र की तीव्रता के हैं। प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. प्रश्न 56. प्रश्न 57. प्रश्न 58. प्रश्न 59. प्रश्न 60. प्रश्न 61. प्रश्न 62. प्रश्न 63. प्रश्न 64. प्रश्न 65. प्रश्न 66. प्रश्न 67. प्रश्न 68. प्रश्न 69. प्रश्न 70. प्रश्न 71. प्रश्न
72. प्रश्न 73. प्रश्न 74. स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. इस प्रकार आवेशों को मिलाने वाली रेखा पर +q से -2q की ओर, +q से d 13 दूरी पर वैद्युत विभव शून्य है। यदि आवेशों को मिलाने वाले रेखा पर आवेशों के बाहर x दूरी पर वैद्युत विभव शून्य है, तो CLASSROOM EXPERIENCE प्रश्न 6. (i) Step 1. माना + q आवेश से x सेमी दूरी पर वैद्युत विभव शून्य होगा। सूत्र V = 9 x 109 q/r से, Step 2. अतः = 25 सेमी की दूरी पर दोनों आवेशों के बीच में वैद्युत विभव शून्य होगा। (ii) Step 3
माना +q आवेश से बायीं ओर × सेमी पर वैद्युत क्षेत्र शून्य होगा; अत: Step 4. अत: +q आवेश से बाहर की ओर x = 136.6 सेमी की दूरी पर वैद्युत क्षेत्र शून्य होगा। प्रश्न 7. चित्र-2.45 से दोनों आवेशों से समान दूरी r1 = r2 = 3 मीटर पर वैद्युत विभव प्रश्न 8. प्रश्न 9. हल : EXTRA SHOTS
बिन्दुओं A व C पर स्थित आवेशों के कारण बिन्दु O पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता इसी प्रकार बिन्दुओं B व D पर स्थित आवेशों के कारण बिन्दु O पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता अतः बिन्दु O पर परिणामी वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (ii) चारों कोनों पर स्थित आवेशों के कारण बिन्दु O पर परिणामी वैद्युत विभव परन्तु A0 = CO = BO = DO; अतः V0 = 0 शून्य। (iii) चारों कोनों पर स्थित
आवेशों के कारण बिन्दु E पर परिणामी वैद्युत विभव अत: बिन्दु O तथा बिन्दु E के बीच वैद्युत विभवान्तर ∆V = V0 – VE = 0 (शून्य) अतः 1.0 कूलॉम आवेश को बिन्दु O से बिन्दु E तक ले जाने में किया गया कार्य w= q × ∆V = 1.0 कूलॉम × 0 वोल्ट = 0 (शून्य) अर्थात् 1.0 कूलॉम के आवेश को बिन्दु 0 से बिन्दु E तक ले जाने में किसी ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होगी। प्रश्न 10. अत: 2 कूलॉम बिन्दु आवेश पर वैद्युत बल F = qE = 2 × 10 = 20 न्यूटन। CLASSROOM EXPERIENCE प्रश्न 11. Step 4. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. अत: मध्य-बिन्दु पर परिणामी वैद्युत विभव V = V1 + V2 = 0 प्रश्न
15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. = 3:84 × 10-14 जूल। प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. निकाय की स्थितिज ऊर्जा प्रश्न 27. P एक ऐसा बिन्दु है जो दोनों आवेशों से समान दूरी 20 सेमी पर है; अत: A तथा B आवेशों के कारण बिन्दु P पर परिणामी वैद्युत विभव एक अन्य समान परिमाण के आवेश को बिन्दु O से बिन्दु P तक ले जाने में वैद्युत क्षेत्र के विरुद्ध किया गया कार्य W = q × (Vp – Vo ) = 2.0 × 10-7 × (18 – 36) × 103 जूल = -2.0 × 18 x 10-4 =-3.6 × 10-3 जूल। ऋण चिह्न प्रदर्शित करता है कि कार्य वैद्युत क्षेत्र द्वारा किया गया है। अतः अभीष्ट कार्य W = 3.6 × 10-3 जूल। प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. (ii) (iii) प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. = 6.0 × 1011 इलेक्ट्रॉनों की कमी। प्रश्न 41. प्रश्न 42. धातु के दो आवेशित गोलों की त्रिज्याएँ 5 सेमी तथा 10 सेमी हैं। दोनों पर अलग-अलग 75 μC का आवेश है। किसी चालक तार द्वारा दोनों गोलों को जोड़ दिया जाता है। गणना कीजिए- (i) जोड़ने के पश्चात् गोलों का उभयनिष्ठ विभव, (ii) प्रत्येक गोले पर आवेश की मात्रा, (iii) तार में से होकर स्थानान्तरित आवेश की मात्रा तथा (iv) जोड़ने के बाद ऊर्जा में ह्रास (क्षय)। [2004, 05] हल : दिया है, R1 = 5 सेमी = 5 × 10-2 मीटर, R2 = 10 सेमी = 10 × 10-2 मीटर,q1 = q2 = 75 μC = 75 × 10-6 कूलॉम (i) दोनों गोलों को जोड़ने पर उभयनिष्ठ विभव (ii) पहले गोले पर नया आवेश q’1 = C1V = \(\frac{5}{9}\) ×
10-11 × 9.0 × 106 = 50 μC. (iii) तार में होकर स्थानान्तरित आवेश की मात्रा = 75 – 50 = 25 μC छोटे गोले से। प्रश्न 43. प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. प्रश्न 56. प्रश्न 57. ज्ञात कीजिए-(i) प्रत्येक संधारित्र का आवेश, (ii) परिपथ की समतुल्य धारिता। – [2018] हल : (i) संधारित्र C1 व C2 परस्पर श्रेणीक्रम में हैं। अत: इनकी तुल्य धारिता, (ii) संधारित्र C’ व C3 परस्पर समान्तर क्रम में हैं। प्रश्न 58. इस संधारित्र की भीतरी प्लेट 1000 वोल्ट पर है; अत: बाहरी प्लेट (1000 – 600) = 400 वोल्ट पर होगी। ∵ दूसरे संधारित्र की भीतरी प्लेट पहले संधारित्र की बाहरी प्लेट से जुड़ी है। अत: दूसरे संधारित्र की भीतरी प्लेट भी 400 वोल्ट पर होगी। प्रश्न 59. (ii) प्रश्न 60. प्रश्न 61. (iii) प्रश्न 62. प्रश्न 63. इस ऊर्जा का ऊष्मा के रूप में ह्रास होगा। प्रश्न 64. प्रश्न 65. प्रश्न 66. एक 8 माइक्रोफैरड के संधारित्र का विभवान्तर 20 वोल्ट से बढ़कर 25 वोल्ट कर देने पर उसकी स्थितिज ऊर्जा में हुई वृद्धि की गणना कीजिए। [2018]] हल : दिया है, C = 8 माइक्रोफैरड = 8 × 10-6 फैरड, V1 = 20 वोल्ट, V2 = 25 वोल्ट संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि ΔU = \(\frac{1}{2} C V_{2}^{2}-\frac{1}{2} C V_{1}^{2}\) = \(\frac{1}{2}\) C(V22 – V12 = \(\frac{1}{2}\) × 8 × 10-6 [(25)2 – (20)2] = 4 × 10-6 [625 – 400] = 4 × 10-6 × 225 = 9.0 × 10-4 जूल। प्रश्न 67. प्रश्न 68. प्रश्न 69. प्रश्न 70. प्रश्न 71. ∴ C1C2 = 24 × 6 = 144 सूत्र (C1 – C2)2 = (C1+C2)2 – 4 C1C2 से, (C1 – C2)2 = (24)2-4 × 144 = 576 – 576 = 0 अतः C1 = C2 अतः दोनों संधारित्रों की धारिताएँ C1 = C2 = 12 μF. प्रश्न 72. हल : दिए गए चित्र को निम्न रूप में व्यवस्थित करने पर 2 μF, 3 μF व 6 μF समान्तर क्रम में हैं। अतः तुल्य धारिता C1 = 2+ 3+ 6 = 11 μF 4 μF व 5μF समान्तर-क्रम में हैं। अत: तुल्य धारिता । C2 = 4+ 5 = 9 μF 8 μF, 11 μF व 9 μF श्रेणीक्रम में हैं। अतः तुल्य धारिता प्रश्न 73. हल : (i) 2 μF व 3 μF के संधारित्र श्रेणीक्रम में हैं, अत: इनकी तुल्य धारिता C1 = \(\frac{2 \times 3}{2+3}\) = 1.2 μF 1.8uF व 1.2uF समान्तर क्रम में हैं, अत: इनकी तुल्य धारिता C2 = 1.8+ 1.2 = 3 μF अब 3 μF व 6μF के संधारित्र श्रेणीक्रम में हैं; अत: A व B के बीच तुल्य धारिता C = \(\frac{3 \times 6}{3+6}\) = 2 μF (ii) सम्पूर्ण निकाय पर आवेश Q = CV = 2μF × 150 = 300 μC प्रश्न 74. हल : (i) दो संधारित्रों को श्रेणीक्रम में जोड़कर तीसरा संधारित्र इनके साथ समान्तरक्रम में जोड़ने पर [चित्र-2.55], चित्र-2.55 अतः तुल्य धारिता C = 1.5+ 3 = 4.5 μF (ii) तीनों संधारित्रों को समान्तर-क्रम में जोड़ने पर [चित्र-2.55] प्रश्न 75. हल : संधारित्र C1 व C2 परस्पर श्रेणीक्रम में हैं। प्रश्न 76. हल : 6 μF व 1 μF श्रेणीक्रम में हैं, अतः तुल्य धारिता प्रश्न 77. हल : बिन्दु E व F के बीच संधारित्र C2, C3 तथा C4 परस्पर श्रेणीक्रम में हैं। संधारित्रों C2,C3 तथा C4 पर समान आवेश q = C’V = 2 × 100 = 200μC C व D के मध्य विभवान्तर, V = \(\frac{q}{C_{3}}=\frac{200}{6}\) वोल्ट = 33. 3 वोल्ट। प्रश्न 78. हल; 4 μF व 6 μF के संधारित्रों के आवेशित हो जाने पर इनमें कोई धारा नहीं बहेगी; अत: 4 μF व 6 μF कार्य नहीं करेंगे। 4Ω, 5Ω व 1Ω श्रेणीक्रम में हैं; अत: इनका तुल्य प्रतिरोध R = 4+ 5 + 1 = 10Ω 4Ω, 5Ω व 1Ω में बहने वाली धारा 4Ω व 5Ω श्रेणीक्रम में हैं; अत: इनका तुल्य प्रतिरोध R= 4 + 5 = 9Ω 9Ω के सिरों के बीच विभवान्तर V = iR = 2 × 9 = 18 वोल्ट 4 μF व 6 μF श्रेणीक्रम में हैं; अत: इनकी तुल्य धारिता अतः 4 μF व 6 μF के संधारित्रों पर संचित आवेश q= CV = 2.4 × 18 = 43.2 μC. प्रश्न 79. हल : संधारित्र के आवेशित हो जाने पर इसमें कोई धारा नहीं बहेगी; अत: 2 μF कार्य नहीं करेगा। 2Ω, 3Ω व 5Ω श्रेणीक्रम में हैं; अत: इनका तुल्य प्रतिरोध R= 2 + 3 + 5 = 10Ω परिपथ का विभवान्तर V = iR = 2 × 10 = 20 वोल्ट अतः संधारित्र में संचित ऊर्जा U = \(\frac { 1 }{ 2 }\) CV2 =\(\frac { 1 }{ 2 }\) × 2 x 10-6 × (20)2 = 4 × 10-4 जूल। प्रश्न 80. हल : 5 μF व 5 μF श्रेणीक्रम में हैं; अत: इनकी तुल्य धारिता 2.5 μF व 1 μF समान्तर क्रम में हैं; अत: इनकी तुल्य धारिता C2 = 1+ 2.5 = 3.5 μF 3.5μF व 3.5 μF श्रेणीक्रम में हैं; अत: A व B के बीच तुल्य धारिता अतः संधारित्रों पर आवेश q= CV = 1.75 × 10-6 × 1500 = 2625 × 10-6 कूलॉम ∵ B पृथ्वी से जुड़ा है; अत: VB = 0 वोल्ट अतः . बिन्दु P पर विभव VP = VB + 750 = 0+ 750 = 750 वोल्ट। प्रश्न 81. हल : संयोजन के सिरों पर विभवान्तर = 90 – 0 = 90 वोल्ट संधारित्र C1, C2 व C3 परस्पर श्रेणीक्रम में हैं। अत: इनकी तुल्य धारिता, प्रश्न 82. हल : चित्र-2.66 (a) में प्रत्येक संधारित्र की प्रथम प्लेट A बिन्दु से तथा द्वितीय प्लेट B बिन्दु से जुड़ी है। इस प्रकार तीनों संधारित्र समान्तर-क्रम में हैं चित्र-2.66 (b)। अतः इनकी तुल्य धारिता C = 3 + 4 + 5 = 12 μF. प्रश्न 83. हल: सर्वप्रथम चित्र-2.67 (a) को चित्र-2.67 (b) के अनुसार प्रतिस्थापित करते हैं; अतः दिया गया परिपथ एक व्हीटस्टोन सेतु की व्यवस्था है। भुजाओं MN व NO की धारिताओं का अनुपात तथा भुजाओं MP व PO की धारिताओं का अनुपात समान है; अतः सेतु सन्तुलित है। प्रत्येक श्रेणी की संयोजन की धारिता प्रश्न 84. हल : सर्वप्रथम परिपथ-2.68 (a) को चित्र 2.64 (b) की भाँति व्यवस्थित करते हैं जो कि एक व्हीटस्टोन सेतु है। अत: 8 μF पर कोई आवेश संचित नहीं होगा। AC व CB के मध्य 3 μF व 6 μF श्रेणीक्रम में हैं तथा AD व DB के मध्य 3 μF व 6 μF श्रेणीक्रम में हैं। प्रश्न 85. हल : (i) 6 μF व 12 μF श्रेणीक्रम में हैं। अत: इनकी तुल्य धारिता C1= \frac{6 \times 12}{6+12} = 4 μF 4 μF व 10 μF समान्तर क्रम में हैं। अत: इनकी तुल्य धारिता C = 4+ 10 = 14 μF (ii) 10 μF में संचित ऊर्जा U = = \(\frac { 1 }{ 2 }\)C’V2 प्रश्न 86. हल : (i) 200pF व 200pF श्रेणीक्रम में हैं; अत: इनकी तुल्य धारिता 100pF व 100pF समान्तर क्रम में हैं। अत: इनकी तुल्य धारिता C” ‘ = 100 + 100 = 200pF 200pF श्रेणीक्रम में हैं; अत: A व B के बीच तुल्य धारिता (ii)
संयोजन पर कुल आवेश q = CV = 100 × 200 = 20000 pC (iii) प्रश्न 87. हल : दिया है, K1 = 3, K2 = 6, εoA/d = 2 μF (i) जब संधारित्र समान्तर क्रम में हैं तो क्षेत्रफल A/2 होगा। अतः प्रथम स्थिति में संधारित्र की तुल्य धारिता CI = C1+C2 = 3 + 6 = 9 μF (ii) श्रेणीक्रम में दूरी d/2 होगी; अत: प्रश्न 88. हल : माना समान्तर प्लेट संधारित्र की प्लेटों का क्षेत्रफल A तथा उनके बीच की दूरी d है। स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर निम्नलिखित प्रश्नों के चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन कीजिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. इस निकाय की तुल्य धारिता होगी [2018] (a) 4πεor1r2/r1 – r2 (b) 4πεo1 + r2 (c) 4πεor1 (d) 4πεor2 उत्तर : (b) 4πεo1 + r2 प्रश्न 23. प्रश्न 24. (a) 4 μF (b) 3/4 μF (c) 4/3 μF (d) 1/2 μF. उत्तर : (c) 4/3 μF प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. (a) 3μF (b) 6μF (c) 9μF (d) 12 μF. उत्तर : (b) 6μF प्रश्न 28. (a) \(\frac{2}{3} \mu \mathrm{F}\) (b) \(\frac{3}{2} \mu \mathrm{F}\) (c) \(\frac{11}{3} \mu \mathrm{F}\) (d) 1 µF उत्तर : (b) \(\frac{3}{2} \mu \mathrm{F}\) प्रश्न 29. प्रश्न 30. (a) 4 µF (b) \(\frac{12}{7} \mu \mathrm{F}\) (c) \(\frac{1}{4} \mu \mathrm{F}\) (d) \(\frac{7}{12} \mu \mathrm{F}\) उत्तर : (a) 4 µF प्रश्न 31. प्रश्न
32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. (a) 4 μF (b) 2.5 μF (c) 2 μF (d) 0.25 μF. उत्तर : (b) 2.5 μF MP Board Class 12th Physics Important QuestionsMP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 15 संचार व्यवस्थासंचार व्यवस्था अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरसंचार व्यवस्था विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. संचार व्यवस्था के अवयव (Elements of a Communication System)-संचार व्यवस्था किसी भी प्रकृति की हो, इसके तीन प्रमुख अवयव होते हैं-
1. प्रेषित्र (Transmitter)- इसे सम्प्रेषण चैनल भी कहते हैं क्योंकि यह मूल सन्देश (जैसे—भाषण, सूचना) सिग्नल को एक उचित सिग्नल में बदलता है। जब कोई वक्ता व श्रोता के बीच की दूरी बहुत अधिक होती है तो तारें (केबिल्स) सम्प्रेषण चैनल का कार्य नहीं कर पाती हैं। इस स्थिति में पहले ध्वनि को माइक्रोफोन द्वारा विद्युत सिग्नलों में बदलते हैं तथा इनकी शक्ति को ऐम्पिलीफायर द्वारा बढ़ाकर इनको रेडियो आवृत्ति की वाहक तरंगों के साथ मॉडुलित करके ऐन्टिना द्वारा विद्युतचुम्बकीय तरंगों के रूप में अन्तरिक्ष में प्रेषित कर देते हैं। 2. संचार माध्यम (Communication Channel)- संचार माध्यम ऐसा भौतिक माध्यम (अथवा मुक्त आकाश) है जिसके द्वारा प्रेषित्र से भेजी गई विद्युतचुम्बकीय तरंगों के रूप में सूचना अथवा भाषण अभिग्राही के ऐन्टिना पर पहुँचती है, संचार माध्यम कहलाता है। यह तारों का एक युग्म अर्थात् केबिल तथा बेतार अर्थात् मुक्त आकाश में से कुछ भी हो सकता है। 3. अभिग्राही (Receiver)- अभिग्राही प्रेषित्र द्वारा भेजे गए परिवर्तित सिग्नल को वास्तविक सिग्नल में बदलता है। इस प्रक्रिया को विमॉडुलन (demodulation) अथवा डिमॉडुलन कहते हैं। जब अभिग्राही के ऐन्टिना पर मॉडुलित तरंगें पहुँचती हैं तो वहाँ पर पहले श्रव्य तरंगों को अलग कर लेते हैं फिर इन्हें प्रवर्धित कर लाउडस्पीकर को भेज देते हैं। यहाँ पर इन्हें पुन: ध्वनि तरंगों में परिवर्तित कर देते हैं। संचार व्यवस्था का नामांकित आरेख चित्र-15.3 में प्रदर्शित है प्रश्न 2. 1. ट्रान्सड्यूसर (Transducer)- ट्रान्सड्यूसर वह युक्ति है जो ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में परिवर्तित कर देती है। इलेक्ट्रॉनिक संचार व्यवस्थाओं में प्रायः ऐसी युक्तियाँ प्रयुक्त होती हैं जिनका निवेश (input) अथवा निर्गत (output) विद्युतीय रूप में होता है। विद्युतीय ट्रान्सड्यूसर एक ऐसी युक्ति है जो कुछ भौतिक चरों जैसे दाब, विस्थापन, बल, ताप आदि को अपने निर्गत (output) पर विद्युतीय सिग्नल में रूपान्तरित कर देती है। 2. सिग्नल (Signal)- प्रेषण के लिए उपयुक्त विद्युत रूप में रूपान्तरित सूचना को सिग्नल या संकेत कहते हैं। सिग्नल अनुरूप (analog) अथवा अंकीय (digital) प्रकार का हो सकता है। अनुरूप सिग्नल में वोल्टता तथा धारा निरन्तर परिवर्तित होते हैं जो अनिवार्यतः समय के एकल मान वाले फलन होते हैं। टेलीविजन के ध्वनि तथा दृश्य सिग्नल, अनुरूप सिग्नल होते हैं। अंकीय सिग्नल में वोल्टता तथा धारा क्रमवार विविक्त मान प्राप्त करते हैं। अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी में मुख्य रूप से द्विआधारी पद्धति (binary system) प्रयुक्त होती है जिसमें किसी सिग्नल के केवल दो स्तर होते हैं। वोल्टता-धारा के निम्न स्तर को ‘0’ से तथा वोल्टता-धारा के उच्च स्तर को ‘1’ से प्रदर्शित किया जाता है। 3. शोर (Noise)- शोर का अर्थ है अवांछनीय सिग्नल जो किसी संचार व्यवस्था में सन्देश सिग्नलों के प्रेषण तथा अभिग्रहण में व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है। 4. प्रेषित्र (प्रेषी) (Transmitter)- प्रेषित्र वह युक्ति है जो सूचनाओं के विद्युत सिग्नलों.को संसाधित कर वाहक तरंगों (carrier waves) पर अध्यारोपण के पश्चात् उसे संचार माध्यम से होकर प्रेषण तथा अभिग्राही पर अभिग्रहण के लिए उपयुक्त बनाती है। 5. अभिग्राही (Receiver)- अभिग्राही वह युक्ति है जो संचार माध्यम के निर्गत (output) पर प्राप्त सिग्नल से वांछनीय सन्देश सिग्नलों को प्राप्त करता है। 6. क्षीणता (Attenuation)- संचार माध्यम से संचरण के समय सिग्नल की प्रबलता में क्षति होने की प्रक्रिया क्षीणता कहलाती है। 7.प्रवर्धन (Amplification)- किसी इलेक्ट्रॉनिक परिपथ द्वारा सिग्नल की प्रबलता बढ़ाने की प्रक्रिया प्रवर्धन कहलाती है। संचार व्यवस्था में क्षीणता के कारण होने वाले क्षय की क्षतिपूर्ति के लिए प्रवर्धन आवश्यक है। 8. परास (Range)- प्रेषित्र तथा अभिग्राही के सिरों के बीच की वह अधिकतम दूरी है जहाँ तक सिग्नल को उसकी पर्याप्त प्रबलता के साथ अथवा मॉडुलेशन से प्राप्त किया जा सकता है, परास कहलाती है। 9. बैण्ड-चौड़ाई (Bandwidth)- बैण्ड-चौड़ाई से तात्पर्य उस आवृत्ति परास से है जिस पर कोई उपकरण कार्य करता है अथवा सिग्नल में उपस्थित तरंगों की आवृत्ति-परास को बैण्ड-चौड़ाई कहते हैं। 10. मॉडुलन अथवा मॉडुलेशन (Modulation)- निम्न आवृत्ति की विद्युतचुम्बकीय तरंगों को बहुत अधिक दूरियों तक प्रेषित नहीं किया जा सकता है। इसीलिए प्रेषित्र पर, निम्न आवृत्ति की विद्युतचुम्बकीय तरंगों को उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों पर अध्यारोपित कराया जाता है। इस प्रक्रिया को मॉडुलन अथवा मॉडुलेशन कहते हैं। 11. विमॉडुलन अथवा डिमॉडुलेशन (Demodulation)- वह प्रक्रिया जिसमें अभिग्राही से प्राप्त मॉडुलित तरंगों में से मूल विद्युतचुम्बकीय तरंगों को अलग किया जाता है, उन्हें विमॉडुलन अथवा डिमॉडुलेशन कहते हैं। 12. पुनरावर्तक (Repeater)- पुनरावर्तक अभिग्राही तथा प्रेषित्र का संयोजन होता है। पुनरावर्तक का उपयोग किसी संचार व्यवस्था का परास बढ़ाने के लिए किया जाता है। पुनरावर्तक प्रेषित से सिग्नल प्राप्त करके उसे प्रवर्धित करता है तथा उसे अभिग्राही को पुनः प्रेषित कर देता है। प्रश्न 3. 1. वाक् सिग्नल (Speech Signals)-ध्वनि तरंगों की आवृत्ति का श्रव्य परिसर 20 हर्ट्स से 20 किलोहर्ट्स तक है। वाक् सिग्नलों के लिए उपयुक्त आवृत्ति परास 300 हर्ट्स से 3100 हर्ट्स है। अत: वाक् सिग्नलों के व्यापारिक टेलीफोन संचार के लिए बैण्ड-चौड़ाई 3100 हर्ट्स – 300 हर्ट्स = 2800 हर्ट्स है। वाद्य यन्त्र उच्च आवृत्तियों के स्वर उत्पन्न करते हैं, अत: संगीत के प्रेषण के लिए बैण्ड-चौड़ाई लगभग 20 किलोहर्ट्स होती है। 2. टी० वी० सिग्नल (T.V. Signals)-दृश्यों के प्रसारण (प्रेषण) के लिए वीडियो सिग्नलों को 4.2 मेगाहर्टस बैण्ड-चौड़ाई की आवश्यकता होती है। T.V. सिग्नलों में दृश्य तथा श्रव्य दोनों अवयव होते हैं तथा उनके प्रेषण के लिए प्रायः 6 मेगाहर्ट्स बैण्ड-चौड़ाई आवंटित की जाती है। विभिन्न सिग्नलों के आवृत्ति परास तथा बैण्ड-चौड़ाई सारणी-1 में दिए गए हैं प्रश्न 4. 1. तारें (Wires)-माध्यम के रूप में समाक्षी केबिल (coaxial cable) व्यापक रूप से प्रयुक्त किया जाता है जो सामान्यत: 18 गीगाहर्ट्स आवृत्ति से नीचे कार्य करता है तथा जिसके लिए बैण्ड-चौड़ाई लगभग 750 मेगाहर्ट्स है। 2. मुक्त आकाश (Free Space)-संचार माध्यम के रूप में मुक्त आकाश से रेडियो तरंगों का विस्तृत आवृत्ति परास संचरित होता है। रेडियो तरंगों
के विभिन्न आवृत्ति परिसर को अलग-अलग सेवाएँ प्रदान करने के लिए आवंटित किया गया है जिन्हें सारणी-2 में प्रदर्शित किया गया है। प्रश्न 5. 1. क्षोभमण्डल (Troposphere)-इस भाग का विस्तार पृथ्वी तल से 10 किमी की ऊँचाई तक होता है। इस क्षेत्र में पृथ्वी तल से ऊँचाई के साथ ताप 15°C से -50°C तक घटता है। हमारे पर्यावरण को प्रभावित करने वाली अधिकांश मौसमी घटनाएँ इसी क्षेत्र में उत्पन्न होती हैं। 2. समतापमण्डल (Stratosphere)-इस भाग का विस्तार पृथ्वी तल से 10 किमी से 50 किमी तक होता है। यह भाग धूल रहित, जल-वाष्प रहित होता है। इस भाग में ऊपर की ओर चलने पर ताप – 50°C से बढ़कर 10°C तक हो जाता है तथा वायु का घनत्व घटकर पृथ्वी तल पर घनत्व की तुलना में 10-3 हो जाता है। समतापमण्डल में पृथ्वी तल से 30 किमी से लेकर 50 किमी तक के भाग को ओजोन परत (ozone layer) कहते हैं। यह परत सूर्य से आने वाले अधिकांश पराबैंगनी विकिरणों का अवशोषण कर लेता है और इस प्रकार पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है। 3. मध्यमण्डल (Mesosphere)-इस भाग का विस्तार पृथ्वी तल से 50 किमी ऊँचाई से 80 किमी ऊँचाई तक होता है। इस भाग में ऊपर की ओर जाने पर ताप एकसमान रूप से 10°C से घटकर -90°C हो जाता है तथा वायु का घनत्व घटकर पृथ्वी तल पर घनत्व की तुलना में 10-3 से 10- हो जाता है। यह क्षेत्र उच्च आवृत्ति (H.F.) की विद्युतचुम्बकीय तरंगों के एक भाग को अवशोषित कर शेष भाग को अपने में से होकर पृथ्वी की ओर आने देता है। 4. आयनमण्डल (Ionosphere)-इस भाग का विस्तार पृथ्वी तल से 80 किमी ऊँचाई से 400 किमी ऊँचाई तक होता है। इस भाग में ऊपर की ओर जाने पर ताप एकसमान रूप से -93°C से 427°C तक बढ़ता है तथा वायु का घनत्व पृथ्वी तल पर घनत्व की तुलना में 10-5 से घटकर 10-10 गुना रह जाता है। आयनमण्डल के इस भाग को तापमण्डल (thermosphere) कहते हैं। सूर्य से आने वाली पराबैंगनी तथा X-किरणें इस भाग में आयनन (ionisation) उत्पन्न करती हैं, इसी कारण इस भाग में अधिकांशत: मुक्त इलेक्ट्रॉन व धन आयन होते हैं। इसी कारण इस भाग को आयनमण्डल कहते हैं। पृथ्वी तल से लगभग 110 किमी की ऊँचाई पर इलेक्ट्रॉनों की सान्द्रता बहुत अधिक हो जाती है तथा इसका विस्तार लगभग 150 किमी तक ऊपर की ओर होता है, इस परत को E परत अथवा कैनेली हैवीसाइड परत (Kennelly-Heaviside Layer) कहते हैं। इसके पश्चात् पृथ्वी तल से 250 किमी की ऊँचाई तक इलेक्ट्रॉनों की सान्द्रता काफी घट जाती है। इसके ऊपर इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षाकृत अधिक सान्द्रता की एक ओर परत होती है, जिसे F-परत अथवा एपल्टन परत (Appleton layer) कहते हैं। आयनमण्डल की E तथा F परतों
से रेडियो तरंगों का परावर्तन होता है। वह अधिकतम आवृत्ति जो आयनमण्डल द्वारा परावर्तित हो सकती है, क्रान्तिक आवृत्ति (critical frequency) कहलाती है, इसे ‘fc‘ से प्रदर्शित करते हैं। प्रश्न 6. 1. भू-तरंग संचरण (Ground Wave Propagation)- वह रेडियो तरंग जो पृथ्वी के पृष्ठ के अनुदिश एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक गमन करती हैं, भू-तरंग (ground wave) कहलाती हैं। किसी भी सिग्नल को उच्च दक्षता से विकिरित करने के लिए ऐन्टिना का न्यूनतम आकार सिग्नल की तरंगदैर्घ्य (2) का एक चौथाई (214) होना चाहिए। विद्युतचुम्बकीय तरंगें (रेडियो तरंगें) जिनकी आवृत्ति 500 किलोहर्ट्स से 1500 किलोहर्ट्स तक होती है का संचरण प्रेषित्र से अभिग्राही तक पृथ्वी तल के समीप वायुमण्डल में पृथ्वी सतह की चालकता के कारण समान्तर होता है। भू-तरंगें गमन करते समय पृथ्वी पर आवेश प्रेरित करती हैं, जो तरंग के साथ आगे बढ़ता है तथा पृथ्वी की सतह पर प्रेरित धारा उत्पन्न करता है। प्रेरित धाराओं के प्रवाह के कारण इन तरंगों की प्रबलता क्षीण होती जाती है। पृथ्वी के समीप संचरित तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में ध्रुवित होती हैं, अत: इनका विद्युत क्षेत्र पृथ्वी तल के समान्तर होता है, जिसका अवशोषण, पृथ्वी तल के प्रतिरोध तथा वस्तुओं द्वारा विवर्तन होने के कारण बहुत अधिक होता है। विवर्तन के कारण ही तरंगों के आगे बढ़ने के साथ उनका झुकाव कोण बढ़ता जाता है और कुछ दूरी तय करने के बाद तरंग नीचे आ जाती है तथा समाप्त हो जाती है। अत: ये बहुत दूरी तक संचरित नहीं होती है। अधिक आवृत्ति की तरंगों का अवशोषण अधिक होने के कारण, अधिक आवृत्ति की रेडियो तरंगों का संचरण इस विधि में नहीं होता है। भू-तरंग संचरण का परास रेडियो तरंगों की आवृत्ति तथा प्रेषित्र की शक्ति पर निर्भर करता है। 2. व्योम तरंग संचरण (Sky Wave Propagation)-वे रेडियो तरंगें जिनका संचरण वायुमण्डल में आयनमण्डल की उपस्थिति के कारण होता है, व्योम तरंगें कहलाती हैं। व्योम तरंगों (sky waves) की आवृत्ति 3 मेगाहर्ट्स से 30 मेगाहर्ट्स तक होती है। ये तरंगें वायुमण्डल के आयनमण्डल द्वारा परावर्तित हो जाती हैं तथा इनसे उच्च आवृत्ति की विद्युतचुम्बकीय तरंगें आयनमण्डल को भेदकर पलायन कर जाती हैं। इनका प्रेषित्र ऐन्टिना द्वारा वायुमण्डल में प्रसारण होता है तथा वायुमण्डल के आयनमण्डल द्वारा पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होने के बाद ये अभिग्राही ऐन्टिना में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न करती हैं। व्योम तरंग संचरण उच्च आवृत्तियों की लम्बी दूरी तक (4000 किमी तक) संचरित करने के उपयोग में लायी जाती है। 3. आकाश तरंग अथवा क्षोभमण्डलीय संचरण (Space Wave or Tropospheric Propagation)- आकाश तरंगों की आवृत्ति 40 मेगाहर्टस से 300 मेगाहर्टस होती है। आकाश तरंगें प्रेषित्र ऐन्टिना से सीधे, पृथ्वी तल से परावर्तन के पश्चात् अथवा क्षोभमण्डल (troposphere) से परावर्तन के पश्चात् अभिग्राही ऐन्टिना तक पहुँचती है। इसलिए इनके संचरण को क्षोभमण्डलीय संचरण (tropospheric propagation) भी कहते हैं। आकाश तरंग संचरण में परा उच्च आवृत्ति (UHF), अति उच्च आवृत्ति (VHF) तथा माइक्रोवेव (microwave) तरंगों का उपयोग किया जाता है। उच्च आवृत्ति का संचरण भू-तरंग तथा व्योम तरंग के द्वारा नहीं हो सकता है क्योंकि पृथ्वी की सतह पर बहुत कम दूरी तय करने पर अति उच्च आवृत्ति तथा परा उच्च आवृत्ति की तरंगें पूर्णत: अवशोषित हो जाती हैं तथा ये तरंगें आयनमण्डल से परावर्तित नहीं होतीं वरन् उससे पारगमित हो जाती हैं। आकाश तरंग संचरण दृष्टि रेखा संचार (Line of Sight distance, LOS) तथा पृथ्वी की वक्रता (curvature of the earth) द्वारा सीमित होता है। इन तरंगों का संचरण निम्न दो प्रकार से किया जा सकता है-
(a)
प्रेषित्र ऐन्टिना की पृथ्वी से ऊँचाई (h) तथा पृथ्वी पर उसके परास (d) में सम्बन्ध [Relation between Height of Transmitting Antenna from Earth (h) and its Range on Earth (d)]-माना प्रेषित्र ऐन्टिना (T) की पृथ्वी से ऊँचाई h है तथा पृथ्वी का केन्द्र 0 व त्रिज्या R है। पृथ्वी की वक्रता के कारण पृथ्वी सतह के बिन्दुओं A व B से दूर सिग्नल प्राप्त नहीं किए जा सकते। यहाँ AT व BT क्रमशः बिन्दुओं A व B पर स्पर्श रेखाएँ हैं। माना d ऐन्टिना के आधार से पृथ्वी की दूरी है जहाँ तक सिग्नल प्राप्त होते हैं। d वह दूरी है जहाँ तक प्रेषित्र ऐन्टिना से पृथ्वी पर सिग्नल पहुँचता है। यह प्रेषित्र ऐन्टिना की ऊँचाई h पर निर्भर करता है
अर्थात् ऊँचाई h अधिक होने पर अधिक तथा कम होने पर कम होता है। . A वह क्षेत्रफल है, जहाँ तक ऐन्टिना द्वारा प्रेषित टी०वी० प्रसारण देखा जा सकता है (b) प्रेषित्र ऐन्टिना की ऊँचाई (ht) तथा अभिग्राही ऐन्टिना की ऊँचाई (hR) हो तो इनके मध्य संचरण दृष्टि रेखा (Line of Sight distance, LOS) की अधिकतम दूरी-40 मेगाह से अधिक
आवृत्तियों पर संचार केवल दृष्टि रेखीय (LOS-Line of Sight) द्वारा ही सम्भव है। LOS प्रकृति का संचार चित्र-15.4 में दर्शाया गया है, जिसमें पृथ्वी की वक्रता के कारण सीधी तरंगें किसी बिन्दु P पर अवरोधित हो जाती हैं, यदि सिग्नल को क्षैतिज से आगे (दृष्टि बाधित क्षेत्र में) प्राप्त करना है तो अभिग्राही ऐन्टिना की ऊँचाई hR अधिक रखनी होगी जिससे वह LOS तरंगों को प्राप्त कर सके। यदि प्रेषक ऐन्टिना की ऊँचाई hT,उससे क्षितिज बिन्दु P की दूरी dT तथा अभिग्राही ऐन्टिना की ऊँचाई hR,
उससे क्षितिज बिन्दु P की दूरी dR हो (चित्र-15.5) तथा दोनों ऐन्टिनाओं के बीच की अधिकतम दृष्टि रेखा की दूरी dM हो, तो प्रश्न 7. संचार निकाय में सन्देश सिग्नल श्रव्य आवृत्ति परास (20 हर्ट्स से 20000 हर्ट्स) के होते हैं। प्रेषित करने से पूर्व इनकों . माइक्रोफोन द्वारा विद्युत सिग्नल में परिवर्तित किया जाता है जिनका आवृत्ति परास भी इतना ही होता है। इन तरंगों को लम्बी दूरी तक प्रसारित नहीं किया जा सकता है इनके निम्नलिखित कारण हैं 1. ऐन्टिना का आकार (Size of Antenna)- किसी सन्देश सिग्नल को प्रेषित करने के लिए ऐन्टिना की आवश्यकता होती है। किसी सिग्नल को प्रसारित करने के लिए ऐन्टिना की लम्बाई सिग्नल की तरंगदैर्घ्य की कोटि की न्यूनतम 21 4 होनी चाहिए। श्रव्य तरंगों की आवृत्ति परास 20 हर्ट्स से 20 किलोहर्ट्स होती है जिनके लिए न्यूनतम तरंगदैर्घ्य λ = \(\frac { c}{ v }\) मीटर=15000 मीटर है। अतः श्रव्य तरंगों को ऐन्टिना से प्रेषित करने के लिए उसकी न्यूनतम लम्बाई \(\frac { 15000 }{ 4 }\) मीटर के
क्रम की होनी चाहिए, परन्तु इतनी लम्बाई का ऐन्टिना बनाना व्यावहारिक नहीं है। अत: श्रव्य तरंगों को ऐन्टिना से प्रसारित नहीं किया जा सकता है। यदि इन तरंगों को उच्च आवृत्ति (लगभग 106 हर्ट्स) की वाहक तरंगों पर अध्यारोपित कर दिया जाए तब आवश्यक ऐन्टिना की न्यूनतम लम्बाई \(\frac{\lambda}{4}=\frac{3 \times 10^{8}}{4 \times 10^{6}}\) मीटर होगी जोकि व्यावहारिक है। 2. ऐन्टिना द्वारा प्रभावी
शक्ति विकिरण (Effective Power Radiation by Antenna)-किसी / लम्बाई के रेखीय ऐन्टिना द्वारा विकिरित शक्ति P तरंगदैर्घ्य 2 के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है, अर्थात् 3. विभिन्न प्रेषित्रों से प्राप्त सिग्नलों का मिश्रण (Mixing of Signals obtained from Different Transmitters)-जब एकसाथ कई आधार बैण्ड सिग्नल प्रेषित किए जाते हैं तो वे परस्पर मिश्रित हो जाते हैं जिनमें विभेद करना सरल नहीं होता है। अत: इस कठिनाई को दूर करने के लिए निम्न आवृत्तिं सिग्नलों को उच्च आवृत्ति की तरंगों के साथ मॉडुलित कर प्रेषित किया जाता है तथा प्रत्येक प्रसारण स्टेशन को एक अलग आवृत्ति बैण्ड आवंटित कर देते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि निम्न आवृत्ति के सन्देश सिग्नलों को प्रेषित करने से पूर्व उनका उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों के साथ मॉडुलेशन आवश्यक होता है। प्रश्न 8. 1. आयाम मॉडुलन (Amplitude Modulation)- जब उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों के आयाम को निम्न आवृत्ति के श्रव्य सिग्नलों के संगत आयामों के अनुरूप परिवर्तित किया जाता है तो उनके परस्पर अध्यारोपण की प्रक्रिया आयाम मॉडुलन कहलाती है। भारत में अधिकांश रेडियो प्रसारण तथा टेलीविजन प्रसारण में वीडियो संकेतों को आयाम मॉडुलित तरंगों द्वारा प्रसारित किया जाता है। आयाम मॉडुलक का परिपथ आरेख चित्र-16.6 में प्रदर्शित है। 2. आवृत्ति मॉडुलन (Frequency Modulation)- जब उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों की आवृत्ति को श्रव्य संकेतों के संगत आयामों के अनुरूप परिवर्तित किया जाता तो उनके परस्पर अध्यारोपण की प्रक्रिया आवृत्ति मॉडुलन कहलाती है। भारत में कुछ रेडियो स्टेशनों से तथा टेलीविजन प्रसारण में ध्वनि संकेतों को आवृत्ति मॉडुलित कर प्रसारित किया जाता है। 3. कला मॉडुलन (Phase Modulation)- जब उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगों की कला (phase) को श्रव्य तरंगों के संगत आयामों के अनुरूप परिवर्तित किया जाता है तो उनके परस्पर अध्यारोपण की प्रक्रिया कला मॉडुलन कहलाती है। प्रश्न 9. जहाँ mα \(\frac{E_{m}}{E_{c}}\) मॉडुलन गुणांक (modulation factor) अथवा मॉडुलन सूचकांक (modulation index) अथवा मॉडुलन की गहराई (depth of modulation) अथवा मॉडुलन की मात्रा (degree of modulation) कहलाता है। यह मॉडुलित तरंग का समीकरण है तथा इसके वोल्टेज स्वरूप को चित्र-15.6 में प्रदर्शित किया गया है। इस प्रकार आयाम मॉडुलित तरंग में तीन घटक तरंगें उपस्थित हैं इस प्रकार स्पष्ट है कि मॉडुलित तरंग में मूल वाहक तरंग की आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है। है तो दो अन्य आवृत्तियों (fc-fm)तथा (fc+fm) की तरंगें उत्पन्न होती है। इन आवृत्तियों को पार्श्व बैण्ड आवृत्तियाँ (side band frequency) कहते हैं। (fc-fm) को निम्न पार्श्व बैण्ड आवृत्ति (Lower Side Band Frequency अर्थात् LSB) तथा (fc+fm) को उच्च पार्श्व बैण्ड आवृत्ति (Upper Side Band Frequency अर्थात् USB) कहते हैं। आयाम मॉडुलित तरंग का आवृत्ति स्पेक्ट्रम (Frequency Spectrum of Amplitude Modulated Wave)-आयाम मॉडुलित तरंग का आवृत्ति स्पेक्ट्रम चित्र-15.7 में प्रदर्शित किया गया है। जिससे स्पष्ट है कि मॉडुलित तरंग वाहक तरंग की आवृत्ति fc के दोनों ओर समान आवृत्ति अन्तराल fm पर स्थित है। आयाम मॉडुलित तरंग की बैण्ड-चौड़ाई = (fc+fm-fc-fm)= 2fm अतः आयाम मॉडुलित तरंग की बैण्ड-चौड़ाई सूचना सिग्नल (मॉडुलक सिग्नल) की आवृत्ति की दोगुनी होती है। प्रश्न 10. आयाम मॉडुलित तरंगों का उत्पादन (Production of Amplitude Modulation)- आयाम मॉडुलित तरंग के उत्पादन के लिए संयोजन को चित्र-15.8 में प्रदर्शित किया गया है। यह परिपथ n-p-n ट्रांजिस्टर वाहक तरंगों के लिए उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक की भाँति कार्य करता है। इस परिपथ में वाहक तरंग को आधार B पर लगाया जाता है जोकि संधारित्र C से होकर जाता है। इस प्रकार संधारित्र C केवल AC घटकों को ही जाने देता है। इसके आधार पर मॉडुलक सिग्नल em = Em sinωmt को इस प्रकार लगाया जाता है कि आधार बायस वोल्टेज के साथ मॉडुलक सिग्नल भी निवेशित हो। इस प्रकार आधार वोल्टता स्थिर नहीं,रहती बल्कि यह मॉडुलक सिग्नल के तात्कालिक मान के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। अतः आधार उत्सर्जक के बीच निवेशी वोल्टता, मॉडुलक सिग्नल के
अनुसार परिवर्तित होती है जिसके कारण निर्गत वोल्टता भी उसी के अनुसार प्रवर्धित होती है। इस प्रकार निर्गम में आयाम मॉडुलित तरंग प्राप्त हो जाती है। प्रश्न 11.
आयाम मॉडुलित तरंग के लिए डायोड संसूचक- p-n सन्धि डायोड संसूचक सामान्यतया विमॉडुलन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसका परिपथ चित्र-15.9 में प्रदर्शित है। इसके निवेशी परिपथ में स्वप्रेरकत्व L तथा परिवर्ती संधारित्र C परस्पर समान्तर क्रम में संयोजित होते हैं। इस परिपथ को स्वसरित परिपथ (tuned circuit) कहते हैं। ग्राही ऐन्टिना पर आने वाली विभिन्न रेडियो सिग्नलों में से वांछित रेडियो आवृत्ति सिग्नल को संधारित्र C को समायोजित करके अनुनाद के आधार पर चयन कर लिया जाता है। p-n सन्धि डायोड इस सिग्नल का दिष्टकरण कर देता है। इस दिष्टकारी सिग्नल को उच्च प्रतिरोध के
लोड प्रतिरोध R, तथा उपमार्गी संधारित्र CB (bypass condenser) के समान्तर-क्रम संयोजन पर लगाया जाता है। संधारित्र का प्रतिघात \(\left(X_{C}=\frac{1}{2 \pi f C_{B}}\right)\) उच्च आवृत्तियों के लिए कम तथा निम्न आवृत्तियों के लिए अधिक होता है। अतः संधारित्र का प्रतिघात वाहक तरंगों के लिए कम व श्रव्य तरंगों के लिए अधिक होता है। अत: उच्च आवृत्ति की वाहक रेडियो तरंगों के अवयव उपमार्गी संधारित्र से गुजरकर पृथ्वी में चले जाते हैं तथा निम्न आवृत्ति की श्रव्य तरंगों के अवयव लोड प्रतिरोध (RL) के
सिरों पर प्राप्त हो जाते हैं। यह श्रव्य तरंगें हैडफोन में धारा भेजते हैं जिनके संगत मूल श्रव्य सिग्नल उत्पन्न होते हैं। संसूचन के लिए आवश्यक प्रतिबन्ध- फिल्टर परिपथ से जुड़े संधारित्र की धारिता इतनी होनी चाहिए कि (1) जब रेडियो आवृत्ति fc के लिए, प्रतिघात \(\left(x_{C}=\frac{1}{2 \pi f_{c} C_{B}}\right)\) प्रतिरोध RL की तुलना में बहुत कम हो, अर्थात् xc << RL अथवा \(\frac{1}{2 \pi f_{c} C_{B}}<<R_{L}\). (2) जब श्रव्य आवृत्ति fm के लिए, प्रतिघात, प्रतिरोध RL की तुलना में बहुत अधिक हो, संचार व्यवस्था लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18.
प्रश्न 19. प्रश्न 20. सिद्ध कीजिए कि आकाश तरंगों के संचरण हेतु एक टी०वी० प्रेषी ऐन्टिना जो पृथ्वी तल से ऊँचाई पर है, का प्रसारण परास \(d=\sqrt{2 R h}\) है, जहाँ R पृथ्वी की त्रिज्या है। [2015] संचार व्यवस्था अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2.
उत्तर
प्रश्न 3. उत्तर X-सूचना स्रोत, Y-चैनल। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न
8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26.
प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. संचार व्यवस्था आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7.
हल 2. तरंग की तरंगदैर्घ्य λ = \(\frac{c}{f_{c}}=\frac{3 \times 10^{8}}{6.37 \times 10^{5}}\) = 471 मीटर प्रश्न 8.
हल 2. fc= 2×105 हर्ट्स = 200 kHz प्रश्न 9.
हल
प्रश्न 10. ∴ मॉडुलन प्रतिशत = 0.5 x 100 = 50%. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रतिशत मॉडुलन = 0.6 x 100 = 60% अथवा मॉडलेशन गणांक (mα) = \(\frac{E_{\max }-E_{\min }}{E_{\max }+E_{\min }}\) = \(\frac { 800-200 }{ 800+200 }\) = \(\frac { 600 }{ 1000 }\) =0.6 प्रतिशत मॉडुलन = 0.6 × 100 = 60%. प्रश्न 16. संचार व्यवस्था बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर • निम्नलिखित प्रश्नों के चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन कीजिए 1. उच्च आवृत्ति तरंगों पर सन्देश सिग्नल के
अध्यारोपण की प्रक्रिया कहलाती है [2016] 2. किसी रेखीय ऐन्टिना द्वारा विकिरित शक्ति तरंगदैर्घ्य पर किस प्रकार निर्भर करती है [2014] 3. सन्देश सिग्नल को किसी ऐन्टिना द्वारा प्रेषित करने के लिए उसकी न्यूनतम लम्बाई होनी चाहिए 4. एक ऐन्टिना एक अनुनादी परिपथ की भाँति कार्य तभी करता है जबकि उसकी लम्बाई ( λ = तरंगदैर्घ्य ) हो 5. टी०वी० प्रसारण के लिए प्रयुक्त आवृत्ति परास होता है 6. वाहक तरंग की आवृत्ति fm के साथ श्रव्य तरंग आवृत्ति fm के आयाम मॉडुलेशन से प्राप्त बैण्ड-चौड़ाई का मान होगा [2015] 7. आयाम मॉडुलित तरंग में मॉडुलन सूचकांक है 8. आयाम मॉडुलेशन तरंग निम्न के योग के समतुल्य है [2014] 9. रेडियो तरंग के प्रसारण के लिए मॉडुलन है [2014] 10. 3 x 108 हर्ट्स आवृत्ति की वाहक तरंगों के लिए द्विधुवी ऐन्टिना की लम्बाई होनी चाहिए [2014] . 11. यदि संप्रेषी ऐन्टिना की ऊँचाई h तथा अभिग्राही ऐन्टिना की ऊँचाई h2 है तो दृष्टिरेखीय (LOS) संचरण विधि में संतोषजनक संचरण के लिए दोनों ऐन्टिनों के बीच की अधिकतम दूरी होती है। (पृथ्वी की त्रिज्या R है)- [2016] 12.
200 किलोहर्ट्स की वाहक आवृत्ति और 10 किलोहर्ट्स के मॉडुलन संकेत के लिए आयाम मॉडुलित (AM) सिग्नल की बैण्ड-चौड़ाई होगी [2016] 13. 10 किलोहर्ट्स आवृत्ति तथा 10 वोल्ट शिखर वोल्टता के संदेश सिग्नल का उपयोग किसी 1 मेगाहर्ट्स आवृत्ति तथा 14. व्योम तरंगों द्वारा क्षितिज से पार संचार के लिए निम्न में से कौन-सी आवृत्ति उपयुक्त होगी [2018] 15. UHF परिसर की आवृत्तियों का प्रसारण प्रायः किस प्रकार
की तरंगों द्वारा होता है [2018] 16. आयन मण्डल से निम्न में से कौन-सी आवृत्ति परावर्तित हो सकती है [2018] MP Board Class 12th Physics Important QuestionsMP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृतिविकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तरप्रश्न 1. (a) यदि किसी फोटॉन की आवृत्ति ν है तो (b) ∵ X-किरणें प्रकाश के वेग से चलती हैं, = 0.0414 नैनोमीटर। प्रश्न 2. (a) आइन्स्टीन के सूत्र से, (b) यदि निरोधी विभव V0 है तो (c) यदि इलेक्ट्रॉनों की महत्तम चाल υ max है तो ∴ इलेक्ट्रॉनों की महत्तम चाल \(v_{\max }=\sqrt{\frac{2 \times 5.4 \times 10^{-20}}{9.1 \times 10^{-31}}}\) (∵ m= इलेक्ट्रॉनों का द्रव्यमान) = 3.44 × 105 मीटर/सेकण्ड। प्रश्न 3. = 1.5 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट। प्रश्न 4. (a) प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा E = \(\frac { hc }{ λ }\) = 1.05 × 10-27 किग्रा-मीटर/सेकण्ड। (b) माना लक्ष्य पर प्रति सेकण्ड n फोटॉन पहुँचते हैं, तब \(=\frac{9.42 \times 10^{-3}}{3.14 \times 10^{-19}}=3 \times 10^{16}\) (c) हाइड्रोजन परमाणु का द्रव्यमान प्रश्न 5. पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने वाला सूर्य-प्रकाश का ऊर्जा-अभिवाह (फ्लक्स) 1.388 × 103 वाट/मीटर है। लगभग कितने फोटॉन प्रति वर्ग मीटर प्रति सेकण्ड पृथ्वी पर आपतित होते हैं? यह मान लें कि सूर्य-प्रकाश में फोटॉन का औसत तरंगदैर्घ्य 550 नैनोमीटर है। प्रश्न 6. ∴आइन्स्टीन के प्रकाश-विद्युत समीकरण से, \(e V_{0}=h\left(v-v_{0}\right) \quad \Rightarrow \quad V_{0}=\frac{h}{e}\left(v-v_{0}\right)\) अतः अन्तक वोल्टता-आवृत्ति वक्र का ढाल m = \(\frac { h}{ e }\) परन्तु दिया है, m = 4.12 × 10-15 वोल्ट-सेकण्ड अत: \(\frac { h}{ e }\) = 4.12 × 10-15 वोल्ट-सेकण्ड ∴ प्लांक नियतांक h = e × 4.12 × 10-15 =1.6 × 10-19 × (4.12 × 10-15) h = 6.59 × 10-34 जूल-सेकण्ड। प्रश्न 7. (b) माना गोले को फोटॉन प्रदान करने की दर n प्रति सेकण्ड है। = \(\frac{100}{3.38 \times 10^{-19}}\) = 3 × 1020 फोटॉन/सेकण्ड। प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. (b) इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध
दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य प्रश्न 13. (b) p= mυ से, (c) इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य प्रश्न 14. (a) माना इलेक्ट्रॉन की अभीष्ट ऊर्जा E1 है, तब (b) खण्ड (a) की भाँति, न्यूट्रॉन की ऊर्जा प्रश्न 15. (b) दिया है : m = 0.060 किग्रा, υ = 1.0 मीटर/सेकण्ड-1 (c) दिया है, m = 1.0 x 10-9 किग्रा, υ = 2.2 मीटर/सेकण्ड प्रश्न 16. (a) सूत्र λ = \(\frac { h}{ p }\) = से, p = \(\frac { h }{ λ }\) (b) फोटॉन की ऊर्जा E = \(\frac { hc }{ λ }\) = pc . (c) इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा \(E=\frac{p^{2}}{2 m}=\frac{\left(6.62 \times 10^{-25}\right)^{2}}{2 \times 9.1 \times 10^{-31}}\) प्रश्न 17. (b) दिया है, T = 300 K, k = 1.38 × 10-23 जूल-K-1 प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. = 13.26 × 106 मीटर/सेकण्ड ∴ इलेक्ट्रॉनों की चाल υ ≈ 1.33 × 107 मीटर/सेकण्ड। (b) पुन: इलेक्ट्रॉन की चाल υ = \(=\sqrt{2 \times \frac{e}{m} \times V}\) [∵V= 10 मेगावोल्ट = 10 x 106 V] ∴ इलेक्ट्रॉन की चाल υ = 0.9988 × c = 0.9988 × 3 × 108 = 2.99 × 108 मीटर/सेकण्ड। प्रश्न 21. अथवा r= 22.7 सेमी। (b) यहाँ इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
\(\frac { 1 }{ 2 }\)mυ2 = 20 मिलियन इलेक्ट्रॉन-वोल्ट इलेक्ट्रॉन की चाल v = 2.65 × 109 मीटर/सेकण्ड ∵ इलेक्ट्रॉन की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल से अधिक है। अत: पथ की त्रिज्या का परिकलन करने के लिए सामान्य सूत्र का प्रयोग नहीं किया जा सकता अपितु आपेक्षिकीय यान्त्रिकी का प्रयोग करना होगा। अतः त्रिज्या के सूत्र \(r=\frac{m_{0} v}{e B}\) में m के स्थान पर इलेक्ट्रॉन का गतिज द्रव्यमान रखना होगा। यहाँ इलेक्ट्रॉन गतिज द्रव्यमान \(m=\frac{m_{0}}{\sqrt{\left(1-v^{2} / c^{2}\right)}}\) ∴ \(r=\frac{m_{0}}{\sqrt{\left(1-v^{2} / c^{2}\right)}} \times \frac{v}{e B}=\frac{1}{\sqrt{\left(1-v^{2} / c^{2}\right)}}\left(\frac{m_{0}}{e} \times \frac{v}{B}\right)\) उक्त सूत्र से पथ की त्रिज्या की गणना की जा सकती है। प्रश्न 22. = 1.73 × 1011 कलॉम/किग्रा। प्रश्न 23. (b) माना लक्ष्य से टकराने वाले इलेक्ट्रॉनों को उक्त ऊर्जा प्रदान करने के लिए त्वरक विभव V की आवश्यकता प्रश्न 24. प्रश्न 25. हम देख सकते हैं कि 10 किलोवाट सामर्थ्य के प्रेषी द्वारा प्रति सेकण्ड उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या काफी अधिक है। अतः फोटॉनों की अलग-अलग ऊर्जा की उपेक्षा करके रेडियो तरंगों की कुल ऊर्जा को सतत माना जा सकता है। (b) श्वेत प्रकाश की औसत आवृत्ति ν = 6 × 1014 हर्ट्स प्रश्न 26. प्रश्न 27. ∴ अभीष्ट निरोधी विभव V2 = V1 + 0.97 = 1.51 वोल्ट। प्रश्न 28. अब दिए गए आँकड़े निम्न प्रकार हैं1 ν1 = 8.2 × 1014 हर्ट्स ν2 = 7.4 × 1014 हर्ट्स ν3 = 6.9 × 1014 हर्ट्स ν4 = 5.5 × 1014 हर्ट्स ν5= 4.3 × 1014 हर्ट्स Vo1 = 1.28 वोल्ट उपर्युक्त आँकड़ों के आधार पर ν तथा V0 के बीच खींचा गया ग्राफ निम्नांकित चित्र में प्रदर्शित है। उक्त ग्राफ से स्पष्ट है कि प्रथम चार बिन्दु एक सरल रेखा में हैं तथा ‘, देहली आवृत्ति νo = 5.0 × 1014 हर्ट्स ∵ पाँचवें बिन्दु के लिए, ν5 < νo अतः इस दशा में इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन रोकने हेतु निरोधी विभव की आवश्यकता नहीं होती। (a) ग्राफ का ढाल \(\frac{\Delta V_{0}}{\Delta v}=\frac{V_{A}-V_{B}}{v_{A}-v_{B}}\) ∴ प्लांक नियतांक h = e × ग्राफ का ढाल (b) ग्राफ से देहली आवृत्ति νo = 5 × 1014 हर्ट्स। प्रश्न 29. यदि लेसर को 1 मीटर के स्थान पर 50 सेमी दूरी पर रख दें तो भी उक्त परिणाम में कोई अन्तर नहीं आएगा, क्योंकि लेसर को समीप रखने पर धातु पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता तो बढ़ जाएगी, परन्तु एक फोटॉन से सम्बद्ध ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होगा। प्रश्न 30. ∵ 5 परतों में परमाणुओं की संख्या n= 5 × 2 × 1016 = 1017 ∵ सोडियम के एक परमाणु में एक चालन इलेक्ट्रॉन होता है, अत: इन n परमाणुओं में n चालन इलेक्ट्रॉन होंगे। सेल पर प्रति सेकण्ड आपतित प्रकाशिक ऊर्जा = I × A = 10-5 × 2 × 10-4 = 2 × 10-9 वाट ∵ कुल ऊर्जा सोडियम की पाँच परतों द्वारा अवशोषित होती है, अत: तरंग सिद्धान्त के अनुसार यह ऊर्जा पाँच परतों के n इलेक्ट्रॉनों में समान रूप से बँट जाती है। ∴ एक इलेक्ट्रॉन को प्रति सेकण्ड प्राप्त होने वाली ऊर्जा = 2 × 10-26 जूल/सेकण्ड ∵ कार्य-फलन Φ0 = 2 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट = 2 × 1.6 × 10-19 जूल अर्थात् 1 इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित कराने के लिए आवश्यक ऊर्जा = 3.2 × 10-19 जूल ∴ किसी इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित होने में लगा समय t = पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त करने में लगा समय उत्तर का निहितार्थ- इस उत्तर से स्पष्ट है कि प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश विद्युत-उत्सर्जन की घटना में एक इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित होने में लगने वाला समय बहुत अधिक है जो कि इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन में लगे प्रेक्षित समय (लगभग 10-9 सेकण्ड) से मेल नहीं खाता। इससे स्पष्ट है कि प्रकाश का तरंग सिद्धान्त प्रकाश विद्युत उत्सर्जन की व्याख्या नहीं कर सकता। प्रश्न 31. (b) दिया है, कमरे का तापमान T = 27 + 273 = 300K ∴ न्यूट्रॉन का संवेग p= mnυ =\(\sqrt{3 m_{n} k T}\) अत: न्यूट्रॉन की दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य = 1.45 A स्पष्ट है कि 27°C के न्यूट्रॉन की दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य, क्रिस्टलों में अन्तरापरमाण्विक दूरी के साथ तुलनीय है। अत: यह न्यूट्रॉन क्रिस्टल विवर्तन प्रयोग के लिए उपयुक्त है। इससे स्पष्ट है कि न्यूट्रॉनों को क्रिस्टल विवर्तन प्रयोगों में उपयोग में लाने के लिए उन्हें वातावरण के साथ तापीकृत करना चाहिए। प्रश्न 33. ∴ इलेक्ट्रॉन की दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य λe = \(\frac { h}{ p }\) जबकि पीले प्रकाश की तरंगदैर्घ्य λy = 5900 A ∵ किसी प्रकाशिक यन्त्र की विभेदन क्षमता \(\propto \frac{1}{\lambda}\) प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता 0.05481 अर्थात् इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता, प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता की 105 गुनी होती है। प्रश्न 34. अत: रेखीय त्वरित्र से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा 109 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट (अथवा बिलियन इलेक्ट्रॉन वोल्ट) की कोटि की है। प्रश्न 35. = 0.7274 ≈ 0.73A. यहाँ गैस का दाब P = 1.01 × 105 पास्कल · तथा T = 300 K = 3.4 × 10-9 मीटर = 34 A. इससे स्पष्ट है कि परमाणुओं के बीच की दूरी, दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य से लगभग 50 गुनी बड़ी है। प्रश्न 36. प्रश्न 37. परन्तु λ का मान जहाँ भौतिक महत्त्व का है, ” के मान (और इसलिए कला चाल
A का मान) का कोई भौतिक महत्त्व नहीं है। क्यों? (b) इलेक्ट्रॉन की गति समीकरणों eV= \(\frac { 1 }{ 2 }\) mv2, eE = ma तथा evB= \(\frac{m v^{2}}{r}\) द्वारा निर्धारित होती है। इनमें से प्रत्येक में e तथा m दोनों एक साथ आए हैं। इससे स्पष्ट है कि इलेक्ट्रॉन की गति के लिए e अथवा m पर अकेले-अकेले विचार करने के स्थान पर \(\frac { e }{ m }\) पर विचार किया जाता है। (c) सामान्य दाब पर गैसों में विसर्जन के कारण उत्पन्न आयन कुछ ही दूरी तय करने तक गैस के अन्य अणुओं से टकराकर उदासीन हो जाते हैं और इस कारण सामान्य दाब पर गैसों में विद्युत चालन नहीं हो पाता। इसके विपरीत अत्यन्त निम्न दाब पर गैस में अणुओं की संख्या बहुत कम रह जाती है। इस कारण उत्पन्न आयन अन्य अणुओं से टकराने से पूर्व ही विपरीत इलेक्ट्रॉड तक पहुँच जाते हैं। (d) कार्य-फलन से, धातु में उच्चतम ऊर्जा स्तर अथवा चालन बैण्ड में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा का ज्ञान होता है। परन्तु प्रकाश विद्युत उत्सर्जन में इलेक्ट्रॉन अलग-अलग ऊर्जा स्तरों से निकल कर आते हैं। अत: उत्सर्जन के बाद उनके पास भिन्न-भिन्न ऊर्जाएँ होती हैं। (e) किसी द्रव्य कण की ऊर्जा का निरपेक्ष मान (न कि संवेग) एक निरपेक्ष स्थिरांक के अधीन स्वेच्छ होता है। यही कारण है कि द्रव्य तरंगों से सम्बद्ध तरंगदैर्घ्य λ का ही भौतिक महत्त्व होता है न कि आवृत्ति ν का। इसी कारण कला वेग νλ. का भी कोई भौतिक महत्त्व नहीं होता। विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar LO Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हलविकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न
4. विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. हल (i) पदार्थ B के लिए देहली आवृत्ति (νo) का मान पदार्थ A से अधिक है। अत: पदार्थ B का कार्य-फलन (W = hνo) अधिक होगा। (ii) दिए गए ग्राफ का ढलान = \(\frac { h }{ e }\) MP Board Class 12th Physics SolutionsMP Board Class 12th Physics Important Questions Chapter 1 वैद्युत आवेश तथा क्षेत्रवैद्युत आवेश तथा क्षेत्र अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरवैद्युत आवेश तथा क्षेत्र विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. बिन्दु P की आवेश +q से दूरी (r – l) और आवेश -q से दूरी (r + l) है। यदि इनके संगत तीव्रताएँ क्रमश: E1 व E2 हों तो +q आवेश के कारण बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E 1 = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0} K} \frac{q}{(r-l)^{2}}\) (A →P दिशा में) -q आवेश के कारण बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E2 = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0} K} \frac{q}{(r+l)^{2}}\) (P →B दिशा में) E1 व E2 एक ही रेखा के अनुदिश विपरीत दिशाओं में कार्यरत हैं तथा E1 का मान E2 से अधिक है; अत: बिन्दु P पर परिणामी तीव्रता E इन दोनों तीव्रताओं के
अन्तर के बराबर तथा \(\overrightarrow{\mathrm{E}}_{1}\) की दिशा में होगी। यदि l का मान r की अपेक्षा बहुत कम हो (1 <<r) तो l2 का मान r2 की तुलना में नगण्य माना जा सकता है; अत: वैद्युत द्विध्रुव के कारण बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता यदि वैद्युत द्विध्रुव निर्वात (अथवा वायु) में रखा है, तब निर्वात अथवा वायु के लिए K = 1, अतः वैद्युत द्विध्रुव के कारण बिन्दु
P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता प्रश्न 2. समकोण ∆ AOP तथा ∆ BOP से, चूँकि E1 व E2 के मान परस्पर बराबर हैं, परन्तु दिशाएँ भिन्न हैं; अत:
E1 व E2 को AB के समान्तर तथा लम्बवत् घटकों में वियोजित करने पर AB के लम्बवत् घटक E1 sin θ व E2 sin θ बराबर व विपरीत होने के कारण एक-दूसरे को निरस्त (cancel) कर देंगे, जबकि AB के समान्तर घटक E1 cos θ व E2 cos θ एक ही दिशा में होने के कारण जुड़ जाएँगे चित्र 1.24 (b)]; अत: बिन्दु P पर वैद्युत द्विध्रुव के कारण परिणामी वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता यदि l का मान 7 की अपेक्षा बहुत कम हो (1 <<r) तो 12 का मान 2 की तुलना में नगण्य माना जा सकता है; अत: वैद्युत द्विध्रुव
के कारण बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता प्रश्न 3. अत: ∆q आवेश के कारण बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ∆E = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{\Delta q}{r^{2}}\) वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ∆ E को वलय की अक्ष के अनुदिश तथा लम्बवत् घटकों में वियोजित करने पर लम्बवत् । घटक ∆ E sin θ एक-दूसरे के विपरीत दिशा में होने के कारण निरस्त हो जाएँगे, जबकि अनुदिश घटक ∆ E cosθ एक ही दिशा में होने के कारण जुड़ जाएँगे। अत: पूरी वलय के कारण बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E की दिशा 0 से P की ओर होगी। विशेष स्थितियाँ-1. यदि बिन्दु P वलय के केन्द्र पर स्थित है तो x = 0; अतः वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E = 0. 2. यदि बिन्दु P वलय के केन्द्र से बहुत दूर स्थित है अर्थात् x >> a इस स्थिति में उपर्युक्त सूत्र में x2 की तुलना में a2 को नगण्य माना जा सकता है। अतः वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता \(E=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{x^{2}}\) न्यूटन/कूलॉम। वलय की अक्ष पर वैद्युत क्षेत्र की अधिकतम तीव्रता की स्थिति – वलय की अक्ष पर वैद्युत क्षेत्र की अधिकतम तीव्रता E, उस बिन्दु पर अधिकतम होगी जिसके लिए \(\frac{d E}{d x}=0\)
होगा। अत: x = ± a/√2 अर्थात् वलय की अक्ष पर, वलय के केन्द्र के दोनों ओर केन्द्र से a/√2 दूरी पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता अधिकतम होगी। प्रश्न 4. परन्तु बन्द पृष्ठ A से बद्ध कुल वैद्युत फ्लक्स \(\phi_{E}=\oint \overrightarrow{\mathrm{E}} \cdot d \overrightarrow{\mathrm{A}}\) जहाँ ε0 निर्वात अथवा वायु की वैद्युतशीलता है। यह गाउस प्रमेय का समाकल रूप है। उपपत्ति – माना कोई बिन्दु आवेश + q, किसी बन्द पृष्ठ A के भीतर किसी बिन्दु O पर स्थित है। माना पृष्ठ A पर कोई बिन्दु P है जिसकी बिन्दु O से दूरी r है। माना पृष्ठ A पर बिन्दु P के चारों ओर एक अल्पांश क्षेत्रफल dA है जिसके संगत क्षेत्रफल वेक्टर d \(\overrightarrow{\mathrm{A}}\) है जिसकी दिशा बिन्दु P पर अल्पांश क्षेत्रफल dA के बाहर की ओर खींचे गए अभिलम्ब के अनुदिश है (चित्र 1.26)। माना बिन्दु O पर रखे बिन्दु आवेश + q के कारण बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) है जिसका परिमाण \(E=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q}{r^{2}}\) …(1) जिसकी दिशा त्रिज्य रेखा OP के अनुदिश है। यदि वैद्युत वेक्टर \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) तथा क्षेत्रफल वेक्टर d \overrightarrow{\mathrm{A}} के बीच कोण θ है तो अल्पांश क्षेत्रफल dA से गुजरने वाला बाहर की ओर दिष्ट वैद्युत फ्लक्स \(d \phi_{E}=\overrightarrow{\mathrm{E}} \cdot d \overrightarrow{\mathrm{A}}=E d A \cos \theta\) समीकरण (1) से E का मान रखने पर, जहाँ dω अल्पांश क्षेत्रफल dA द्वारा बिन्दु O पर अन्तरित घन कोण है। यही गाउस का प्रमेय है। माना एक बिन्दु आवेश +q, किसी बन्द पृष्ठ A से बाहर बिन्दु O पर स्थित है। आवेश q को शीर्ष लेकर एक
अत्यन्त सूक्ष्म घन कोण dω का शंक्वाकार क्षेत्र बनाते हैं जो बन्द पृष्ठ से चित्र-1.27 के अनुसार दो स्थानों से होकर गुजरता है तथा पृष्ठ पर क्रमश: dA1 व dA 2क्षेत्रफल काटता है। आवेश +q के कारण dω कोण से होकर गुजरने वाला वैद्युत फ्लक्स dΦ= q/e इस प्रकार किसी बन्द पृष्ठ से बाहर स्थित आवेश के कारण बन्द पृष्ठ से गुजरने वाला कुल वैद्युत फ्लक्स शून्य होता है। इससे स्पष्ट है कि यदि बन्द पृष्ठ से कोई आवेश परिबद्ध (घिरा हुआ) नहीं है. तो बन्द पृष्ठ से बद्ध वैद्युत फ्लक्स शून्य होगा। प्रश्न 5. गाउस के नियम से कूलॉम के नियम की प्राप्ति – एक बिन्दु आवेश q को केन्द्र मानकर उसके चारों ओर r त्रिज्या का गोलीय गाउसीय पृष्ठ लेते हैं। गाउसीय पृष्ठ पर एक सूक्ष्म क्षेत्रफल अवयव dA लेते हैं, जिस पर वैद्युत क्षेत्र \(\overrightarrow{\mathrm{E}} व क्षेत्रफल सदिश d \overrightarrow{\mathrm{A}}\) दोनों की दिशा समान,
त्रिज्यत: बाहर की ओर है। यदि q आवेश से r दूरी पर परीक्षण आवेश q0 स्थित हो तब उस पर कार्यरत बल, \(F=q_{0} E=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q q_{0}}{r^{2}}\) या \(F \propto \frac{q q_{0}}{r^{2}}\) यही कूलॉम का नियम है। प्रश्न 6. इसके लिए हम बिन्दु P से जाने वाले, त्रिज्या r तथा l लम्बाई के लम्बवृत्तीय बेलनाकार , पृष्ठ की कल्पना करते हैं, जिसकी अक्ष तार की अक्ष के साथ सम्पाती है। यह बेलनाकार । पृष्ठ, गाउसियन पृष्ठ की भाँति कार्य करेगा। चूँकि इस बेलन के वक्र पृष्ठ का प्रत्येक बिन्दु तार से समान दूरी पर है; अतः सममिति के कारण वक्र पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र परिमाण में समान तथा उस बिन्दु पर त्रिज्यतः बाहर की ओर दिष्ट होगा। यदि वक्र पृष्ठ पर स्थित बिन्दु P पर कोई क्षेत्रफल वेक्टर \(d
\overrightarrow{\mathrm{A}}\) लिया जाए तो उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) तथा क्षेत्रफल वेक्टर d \(\overrightarrow{\mathrm{A}}\) एक ही दिशा में होंगे अर्थात् इनके बीच कोण शून्य होगा। अत: वक्र पृष्ठ पर स्थित सभी बिन्दुओं के लिए वैद्युत फ्लक्स \(\phi_{P}=\overrightarrow{\mathrm{E}} \cdot d \overrightarrow{\mathrm{A}}=E d A \cos 0^{\circ}=E d A\) यदि बेलन के वृत्तीय पृष्ठ पर स्थित किसी बिन्दु M पर क्षेत्रफल वेक्टर \(d \overrightarrow{\mathrm{A}}\) हो तो इस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) तथा क्षेत्रफल वेक्टर \(d \overrightarrow{\mathrm{A}}\) परस्पर लम्बवत् होंगे (चित्र 2.29)। अत: वृत्तीय पृष्ठों के लिए वैद्युत फ्लक्स \(\phi_{M}=\overrightarrow{\mathrm{E}} \cdot d \overrightarrow{\mathrm{A}}=E d A \cos 90^{\circ}=0\) परन्तु गाउस प्रमेय से, ΦE = \(\frac{1}{\varepsilon_{0}}\) (बेलनाकार पृष्ठ के भीतर स्थित कुल आवेश). अत: आवेशित तार से r दूरी पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E=\(\frac{\lambda}{2 \pi \varepsilon_{0} r}=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{2 \lambda}{r}\) चूँकि तार धनावेशित है; अतः वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E की दिशा त्रिज्यत: बाहर की ओर वेक्टर \(\overrightarrow{\mathbf{r}}\) के अनुदिश होगी। यदि वेक्टर \overrightarrow{\mathbf{r}} की दिशा
में एकांक वेक्टर \(\begin{array}{l}{\wedge} \\ {\mathbf{I}^{*}}\end{array}\) है तो वेक्टर रूप में इस प्रकार रेखीय आवेश के कारण वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (E) रेखीय आवेश से बिन्दु की दूरी (r) के व्युत्क्रमानुपाती होती है। इसकी दिशा रेखीय आवेश के लम्बवत् बाहर की ओर होती है। दूरी r के साथ वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E में परिवर्तन का
आरेख प्रश्न 7. माना आवेशित तल से r दूरी पर कोई बिन्दु P है जहाँ । वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। माना चादर के दूसरी बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करने के लिए हम एक ऐसे बेलनाकार पृष्ठ की कल्पना करते हैं जिसकी क्योंकि चादर का विस्तार अनन्त है; अत: चादर के समीप सभी बिन्दुओं पर वैद्युत क्षेत्र की दिशा चादर के लम्बवत् बाहर की ओर दिष्ट (धनावेश के कारण) होगी; अत: बेलन के समतल पृष्ठ पर वैद्युत क्षेत्र की दिशा पृष्ठ के लम्बवत् अर्थात् संगत क्षेत्रफल वेक्टर d \(\overrightarrow{\mathrm{A}}\) की दिशा में होगी, जबकि बेलन के वक्र पृष्ठ पर वैद्युत क्षेत्र \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) की दिशा पृष्ठ के समान्तर (अक्ष के अनुदिश) अर्थात् संगत क्षेत्रफल वेक्टर d \(\overrightarrow{\mathrm{A}}^{\prime}\) के लम्बवत् होगी (चित्र 1.31)। अत: बेलन के समतल
पृष्ठ हेतु वैद्युत फ्लक्स अत: बेलनाकार गाउसियन पृष्ठ से गुजरने वाला कुल वैद्युत फ्लक्स परन्तु गौस प्रमेय से कई \(\phi_{E}=\frac{1}{\varepsilon_{0}}\) (गाउसियन पृष्ठ के भीतर स्थित कुल आवेश) चूँकि इस सूत्र में बिन्दु P की आवेशित चादर से दूरी नहीं है। इसका अर्थ है कि आवेशित समतल चादर के समीप सभी बिन्दुओं पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता एकसमान होती है।
प्रश्न 8. (i) गोलीय कोश के बाहर – माना गोलीय कोश का केन्द्र बिन्दु O पर है। इस कोश के केन्द्र O से r दूरी पर कोश से बाहर (r > R) स्थित किसी बिन्दु P पर वैद्युत
क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है। इसके
लिए हम बिन्दु P से जाने वाला त्रिज्या r का संकेन्द्रीय गोलीय पृष्ठ खींचते हैं (चित्र 1.32)। इस गोलीय पृष्ठ को ‘गाउसियन पृष्ठ’ कहते हैं। इस पृष्ठ माना बिन्दु P पर वैद्युत क्षेत्र वेक्टर \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) है, जो क्षेत्रफल वेक्टर d \(\overrightarrow{\mathrm{A}}\) के समान्तर बाहर की ओर दिष्ट है अर्थात् इनके बीच कोण शून्य है। यह किसी बिन्दु आवेश q के कारण उससे r दूरी पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E के सूत्र के समान है; अतः समान रूप से आवेशित गोलीय कोश बाह्य बिन्दुओं के लिए ऐसे व्यवहार करती है जैसे कि उसका सम्पूर्ण आवेश उसके केन्द्र पर स्थित हो। पुन: चूँकि आवेश + q, गोलीय कोश के सम्पूर्ण पृष्ठ 4πR2 पर समान रूप से वितरित है। (ii) गोलीय कोश के पृष्ठ पर-यदि हमें गोलीय कोश के पृष्ठ पर अर्थात् कोश के केन्द्र से R दूरी पर वैद्युत . क्षेत्र ज्ञात करना है तो इस बार गाउसियन पृष्ठ की त्रिज्या r = R लेनी होगी, तब समीकरण (2) में r = R रखने पर, वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (iii) गोलीय कोश के भीतर-माना गोलीय कोश के भीतर उसके केन्द्र से r (r < R) दूरी पर कोई बिन्दु P है जिस पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात
करनी है। इसके लिए हम बिन्दु O को केन्द्र मानकर, बिन्दु P से जाने वाला एक गोलीय पृष्ठ खींचते हैं, जो गाउसियन पृष्ठ कहलाएगा। (चित्र 1.33) से स्पष्ट है कि इस दशा में गाउसियन पृष्ठ पूर्णतः गोलीय कोश के भीतर है; अतः गाउसियन पृष्ठ के भीतर उपस्थित आवेश की मात्रा शून्य होगी। तब गाउस प्रमेय से, Φ E = q/ ε0 = 0 [∵q = 0] वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न
7. प्रश्न 8. इस प्रकार \(\overrightarrow{\mathrm{F}}_{21}=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q_{1} q_{2}}{r_{12}^{3}} \overrightarrow{\mathrm{r}}_{12}\) कूलॉम के नियम के सदिश स्वरूप से ज्ञात होता है कि दो बिन्दु आवेशों के बीच कार्यरत वैद्युत बल, केन्द्रीय बल है। अतः यह बल दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश, एक-दूसरे पर बराबर एवं परस्पर विपरीत दिशा में कार्य करता है। प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न
14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. सम्पूर्ण बेलन से गुजरने वाला वैद्युत फ्लक्स चूँकि बाएँ फलक पर \(\overrightarrow{\mathbf{E}} व \overrightarrow{d A}\) के बीच कोण 180°, दाएँ फलक पर कोण शून्य तथा वक्र पृष्ठ पर कोण 90° है। अतः बेलन से गुजरने वाला वैद्युत फ्लक्स शून्य होगा। प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न
4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. EXTRA SHOTS प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. CLASSROOM EXPERIENCE : Step 2. Step 3. Step 4. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. ∴ ताँबे के 10 ग्राम में परमाणुओं की संख्या = \(\frac{6.022 \times 10^{23} \times 10}{63.5}\)= 9.48 x 1022 ∵ ताँबे के एक गोले के प्रति 106
परमाणुओं से स्थानान्तरित इलेक्ट्रॉन = 1 = 2.071 x 108 न्यूटन। प्रश्न 18. स्पर्श कराने के पश्चात् दोनों पर (q1 + q2)/2 कूलॉम आवेश हो जाएगा। अथवा (q1 + q2) = ± 2 x 2.0 x 10-6 = ± 4.0 x 10-6कूलॉम ………….(1) सूत्र (q1 – q2)2 = (q1 + q2)2 – 4q1q2 से, = 16.0 x 10-12 – 4 x 3.0 x 10-12 = 4.0 x 10-12 अतः (q1 – q2) = ± 2.0 x 10-6 कूलॉम………………………….(2) समीकरण (1) व समीकरण (2) को हल करने पर, q1 = ± 3.0 x 10-6 कूलॉम तथा q2= + 1.0 x 10-6 कूलॉम। प्रश्न 19. प्रत्येक गोली का द्रव्यमान m = 10 ग्राम = 10-2 किग्रा। सन्तुलन की स्थिति में गोलियों (A व B) के बीच की दूरी AB= 5.0 सेमी = 0.05 मीटर। धागे की लम्बाई OA = OB = 120 सेमी = 1.2 मीटर गोलियों के बीच वैद्युत प्रतिकर्षण बल प्रत्येक गोली तीन बलों के अन्तर्गत सन्तुलन
में है। क्योंकि AC, OA व OC की तुलना में बहुत छोटा
है; अत: OC व OA लगभग समान होंगे; अत: OC के स्थान पर OA लेने पर, वर्गमूल लेने पर, प्रत्येक गोली पर आवेश q= ± 2. 38 x 10-8 कूलॉम है। प्रश्न 20. imag 0 COMMON ERRORS : प्रश्न 21. तीनों आवेशों के निकाय के सन्तुलन में होने पर, बिन्दु A पर स्थित आवेश q पर कार्यरत परिणामी बल शून्य होगा। अतः प्रश्न 22. माना आवेशों के बीच +4q आवेश से x दूरी पर तीसरा आवेश q’ रखने पर सम्पूर्ण निकाय सन्तुलन में रहता है अर्थात् आवेश q पर दोनों बिन्दु आवेशों द्वारा लगाए गए बल परिमाण में परस्पर बराबर व दिशा में विपरीत हैं, अतः आवेश +q के सन्तुलन के लिए, आवेश +4q द्वारा आवेश +q पर लगाया गया वैद्युत बल (F)+ आवेश q’ द्वारा आवेश +q पर लगाया गया वैद्युत बल = 0 सन्तुलन की जाँच – यदि आवेश q’ को बायीं ओर थोड़ा-सा विस्थापित कर दें, तब उस पर +4q आवेश द्वारा लगाया गया बल F1 दूरी कम हो जाने के कारण बढ़ जाएगा जबकि +q आवेश द्वारा लगाया गया बल F2 , दूरी बढ़ जाने के कारण कम हो जाएगा। अतः आवेश q’ पर एक परिणामी बल (F1 – F2 ) बायीं ओर कार्य करेगा जिसके प्रभाव में ‘ आवेश + 4g आवेश की ओर गति करेगा। इस प्रकार आवेश q’ की प्रवृत्ति अपनी मूल स्थिति प्राप्त करने की नहीं है, अतः आवेशों का सन्तुलन अस्थायी है। प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. दोनों आवेशों से 1 मीटर की दूरी पर स्थित बिन्दु दोनों आवेशों के बीच की दूरी का मध्य-बिन्दु होगा (चित्र 1.42)। + 3μC आवेश के कारण वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता -2 μC आवेश के कारण वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता चूँकि E1 तथा E2 एक ही दिशा में हैं; अत: दोनों आवेशों के कारण परिणामी वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता प्रश्न 31. प्रश्न 32. माना छोटे आवेश अर्थात् q1 = (20/3) x 10-19 कूलॉम से बाहर की ओर x मीटर की दूरी पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता शून्य है (चित्र 1.44)। तब इस बिन्दु की दूसरे आवेश q2 = -10 x 10-19 कूलॉम से दूरी (x + 0.04) मीटर होगी। अतः धन आवेश से 0.178 मीटर की दूरी पर बाहर की ओर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता शून्य होगी। प्रश्न 33. शीर्ष D पर रखे आवेश q पर, शीर्ष C पर रखे आवेश q के कारण प्रतिकर्षण शीर्ष D पर रखे आवेश q पर, शीर्ष B पर रखे आवेश q के कारण प्रतिकर्षण बल अत: बिन्दु D पर रखे आवेश पर परिणामी प्रतिकर्षण बल प्रश्न 34. प्रश्न 35. हल : माना +q से बायीं ओर x सेमी पर वैद्युत क्षेत्र शून्य होगा (चित्र-1.46); चित्र-1.46 अत: सूत्र E = 9 x 109 q/r2 से, अतः +q आवेश से बाहर की ओर x = 136.6 सेमी की दूरी पर वैद्युत क्षेत्र शून्य होगा। CLASSROOM EXPERIENCE : प्रश्न 36. Step 2. Step 3. Step 4. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. = 1.8 x 10-5 कूलॉम-मीटर। प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न
44. इसी प्रकार C पर स्थित -q आवेश A पर स्थित दूसरे +q आवेश के . साथ मिलकर एक अन्य वैद्युत द्विध्रुव बनाता है; अतः इसका वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण p2 = q.a (CA दिशा में) चूँकि p1 तथा p2 की दिशाओं के बीच का कोण 60° है; अत: p1 व p2 का परिणामी वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण अत: परिणामी वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण. p= q.a√3 कूलॉम-मीटर। चूँकि p1 तथा p2 परस्पर समान हैं; अत: इनका परिणामी इनके बीच के कोण को अर्द्धित करेगा अर्थात् परिणामी वैद्युत आघूर्ण ∠BAC के अर्द्धक के अनुदिश होगा। प्रश्न 45. प्रश्न 46. हल : चित्र-1.52 से, sin 60° = \(\frac{l / 2}{r}\) अथवा \(\frac{\sqrt{3}}{2}=\frac{l / 2}{r}\) अत: r = \(\frac{l}{2} \times \frac{2}{\sqrt{3}}\) अथवा \(r^{2}=\frac{l^{2}}{3}\) सूत्र \(F=\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \frac{q_{1} q_{2}}{r^{2}}\) से आधार के बायीं ओर के आवेश + q द्वारा आवेश +Q पर प्रतिकर्षण बल आधार के दूसरे आवेश + q द्वारा आवेश + Q पर प्रतिकर्षण बल शीर्ष आवेश – q द्वारा आवेश + Q पर आकर्षण बल ∴ F1 व F2 के बीच कोण 120° है तथा F1 = F2 प्रश्न 47. प्रश्न 48. प्रश्न 49. प्रश्न 50. प्रश्न 51. प्रश्न 52. प्रश्न 53. प्रश्न 54. प्रश्न 55. प्रश्न 56. वैद्युत फ्लक्स केवल X-अक्ष के लम्बवत् तथा दाएँ पृष्ठ से परिबद्ध होगा। Φबायी = EA cos 180° = 2 x.a2(-1) = 2 x 0 x a2(-1)= 0 (∵ x = 0) Φदायी = EA cos 0° = 2 x .a2 (1) = 2 x a x a3 = 2a3 (∵ x = a) कुल वैद्युत फ्लक्सΦकुल = 0+ 2a3 = 2 a3 वोल्ट-मीटर। सूत्र \(\phi=\frac{q}{\varepsilon_{0}}\) से, आवेश q = \(\phi=\frac{q}{\varepsilon_{0}}\) eoकूलॉम। प्रश्न 57. प्रश्न 58. प्रश्न 59. प्रश्न 60. = 1.8 x 104 न्यूटन/कूलॉम। प्रश्न 61. प्रश्न 62. प्रश्न 63. प्रश्न 64. प्रश्न 65. प्रश्न 66. प्रश्न 67. (iii) आवेशित कोश के बाहर, कोश के केन्द्र से दूरी r (> R) पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता प्रश्न 68. चूँकि छोटा गोला बड़े गोले के भीतर स्थित है; अत: बड़े गोले के आवेश q2 के कारण छोटे गोले पर वैद्युत क्षेत्र E = 0; अतः छोटे गोले की सतह पर वैद्युत आवेश तथा क्षेत्र बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर निम्नलिखित प्रश्नों के चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन कीजिए प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. उतर : (b) वोल्ट-मीटर प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. (a) 1 : 1 (b) 1 : 2 (c) 2 : 1 (d) 1 : 4. उतर : (a) 1 : 1 प्रश्न 35. MP Board Class 12th Physics Important QuestionsMP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 10 तरंग-प्रकाशिकीतरंग-प्रकाशिकी NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तरप्रश्न 1. (a) ∵ एक ही माध्यम में गति करते समय तरंग की तरंगदैर्घ्य, आवृत्ति तथा चाल में कोई परिवर्तन नहीं होता, (b) यदि जल में अपवर्तित प्रकाश की
तरंगदैर्घ्य λω तथा चाल । है तो प्रश्न 2. प्रश्न 3. (b) हाँ, चूँकि किसी माध्यम का अपवर्तनांक, प्रकाश की तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करता है तथा माध्यम में प्रकाश की चाल v =
\(\frac{c}{n}\) = [ अर्थात् v = \(\frac{c}{v}\)] होती है। अत: काँच में प्रकाश की चाल स्पष्टतया तरंगदैर्घ्य अर्थात् रंग पर निर्भर करती है। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. (b) माना λ1 = 650 नैनोमीटर व λ2 = 520 नैनोमीटर प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. परन्तु प्रयोग द्वारा न्यूटन की इस भविष्यवाणी की पुष्टि नहीं हो पाई अपितु इसके विपरीत प्रयोग द्वारा यह ज्ञात हुआ कि सघन माध्यम में प्रकाश की चाल विरल माध्यम की तुलना में कम होती है। इससे न्यूटन के कणिका सिद्धान्त को अमान्य करार दिया गया और
हाइगेन्स के तरंगिका सिद्धान्त को मान्यता मिल गई। प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. दूसरी ओर ध्वनि तरंगों को चलने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है, इसलिए भले ही चाहे उक्त दोनों स्थितियों में प्रेक्षक तथा स्रोत के बीच समान आपेक्षिक गति होने के कारण ये स्थितियाँ समान प्रतीत होती हैं परन्तु वे समान नहीं हैं। ऐसा इस कारण से है कि दोनों दशाओं में प्रेक्षक का माध्यम के सापेक्ष वेग भिन्न-भिन्न है, अत: उक्त दोनों दशाओं में सुनी गई ध्वनि की आभासी आवृत्तियाँ समान नहीं हो सकती। यदि किसी माध्यम में प्रकाश की गति की बात की जाए तो पुनः दोनों स्थितियाँ अलग-अलग हो जाएँगी चूंकि दोनों स्थितियों में प्रेक्षक का माध्यम के सापेक्ष वेग भिन्न-भिन्न होगा। अत: इस दशा में प्रेक्षक द्वारा ग्रहण किए गए प्रकाश की आवृत्ति के भिन्न डॉप्लर सूत्रों की अपेक्षा की जानी चाहिए। प्रश्न 16. प्रश्न 17. झिरी की चौड़ाई अत: झिरी की चौड़ाई दोगुनी करने पर, केन्द्रीय विवर्तन बैण्ड की चौड़ाई आधी रह जाएगी, जबकि तीव्रता चार गुनी (∵ तीव्रता ∝ झिरों का क्षेत्रफल) हो जाएगी। (b) द्विझिरी प्रयोग में व्यतिकरण पैटर्न की फ्रिज एकल झिरी विवर्तन पैटर्न की फ्रिन्जों के साथ अध्यारोपित होती हैं। (c) वृत्तीय अवरोध के किनारों से विवर्तित तरंगें जब वस्तु की छाया के मध्य-बिन्दु पर मिलती हैं तो वहाँ पथान्तर शून्य होने के कारण परस्पर संपोषी व्यतिकरण करती हैं, अतः वहाँ चमकदार बिन्दु दिखाई पड़ता है। (d) ∵ दीवार की ऊँचाई 10 मीटर, ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य की कोटि की है, अतः यह ध्वनि तरंगों में पर्याप्त विवर्तन उत्पन्न करती है और एक विद्यार्थी की ध्वनि दीवार से विवर्तित होकर दूसरे विद्यार्थी तक पहुँच जाती है। वहीं प्रकाश की तरंगदैर्घ्य, दीवार की ऊँचाई की तुलना में अत्यन्त सूक्ष्म है, अत: दीवार प्रकाश तरंगों में पर्याप्त विवर्तन उत्पन्न नहीं कर पाती। इसी कारण विद्यार्थी एक-दूसरे को नहीं देख पाते। (e) सामान्यत: प्रकाशिक यन्त्रों में प्रयुक्त लेन्सों के द्वारकों का साइज प्रकाश की तरंगदैर्घ्य की तुलना में काफी बड़ा होता है; अत: इन यन्त्रों द्वारा बने प्रतिबिम्बों में विवर्तन का प्रभाव नगण्य ही रहता है। यही कारण है कि प्रतिबिम्बों की स्थिति तथा अन्य गुणों को समझने के लिए प्राय: किरण प्रकाशिकी का ही प्रयोग किया जाता है। प्रश्न 18. अर्थात् ZF = 20 किमी = 20 × 103 मीटर, a = 50 मीटर सूत्र ZF = \(\frac{a^{2}}{\lambda}\) से, λ = \(\frac{a^{2}}{Z_{F}}\) अधिकतम तरंगदैर्घ्य λ = \(\frac{50 \times 50}{20 \times 10^{3}}\) मीटर = 12.5 सेमी। प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. तरंग-प्रकाशिकी NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हलतरंग-प्रकाशिकी बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. (a) एक विशिष्ट अभिविन्यास के लिए पोलेरॉइड से देखने पर अँधेरा दिखाई देगा (b) पोलेरॉइड से देखे जाने वाले प्रकाश की तीव्रता घूर्णन पर निर्भर नहीं होती । (c) पोलेरॉइड से देखे जाने वाली प्रकाश की तीव्रता पोलेरॉइड के दो अभिविन्यासों के लिए न्यूनतम होगी लेकिन शून्य नहीं होगी (d) पोलेरॉइड से देखने पर प्रकाश की तीव्रता पोलेरॉइड के चार अभिविन्यासों के लिए न्यूनतम होगी। उत्तर : (c) पोलेरॉइड से देखे जाने वाली प्रकाश की तीव्रता पोलेरॉइड के दो अभिविन्यासों के लिए न्यूनतम होगी लेकिन शून्य नहीं होगी प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (a) दूसरे परदे पर कोई व्यतिकरण पैटर्न नहीं होगा किन्तु वह प्रकाशित होगा (b) दूसरा परदा पूर्ण रूप से अदीप्त होगा (c) दूसरे परदे पर एक एकल दीप्त बिन्दु होगा (d) दूसरे परदे पर एक नियमित द्विझिरी पैटर्न होगा। उत्तर : (d) दूसरे परदे पर एक नियमित द्विझिरी पैटर्न होगा। तरंग-प्रकाशिकी अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. तरंग-प्रकाशिकी आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. MP Board Class 12th Physics SolutionsMP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 9 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तरप्रश्न 1. प्रश्न 2. किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यन्त्र |481 प्रश्न 3. प्रश्न 4. हल : चित्र 9.1 (a) से, वायु से काँच में अपवर्तन हेतु i = 60°, r = 35° ∴ \(a n_{g}=\frac{\sin 60^{\circ}}{\sin 35^{\circ}}=\frac{0.866}{0.574}=1.51\) चित्र 9.1 (b) से, वायु से जल में अपवर्तन हेतु i = 60, r= 47° ∴ \(a n_{w}=\frac{\sin 60^{\circ}}{\sin 47^{\circ}}=\frac{0.866}{0.656}=1.32\) चित्र 9.1 (c) से, जल से काँच में अपवर्तन हेतु i = 45°, r = ? \(w n_{g}=\frac{\sin 45^{\circ}}{\sin r} ⇒ \sin \dot{r}=\frac{\sin 45^{\circ}}{w^{n} g}\) ∵ \(\frac{1.51}{1.32}=1.14=w^{n} g=\frac{a^{n} g}{a^{n} w}\) प्रश्न 5. माना वृत्तीय पृष्ठ की त्रिज्या r है, तब tan ic = \(\frac{r}{h}\) ⇒ r=h tan ic ∴ वृत्त की त्रिज्या r= h tan ic = 0.80 × 1.13 = 0.904 मीटर [∵ tan 48.6° = 1.13] ∴ पृष्ठीय क्षेत्र = πr2 = 3.14 × (0.904)2 = 2.566 ≈ 2.6 मीटर2। प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. हल : (a) स्पष्ट है कि इस स्थिति में बिन्दु P लेन्स के लिए आभासी वस्तु (बिम्ब) है। ∴ u = + 12 सेमी (लेन्स के दायीं ओर है), f= + 20 सेमी ∴लेन्स के सूत्र \(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\) से, अतः \(\frac{1}{v}=\frac{1}{f}+\frac{1}{u}=\frac{1}{20}+\frac{1}{12}=\frac{3+5}{60}=\frac{8}{60}\) ⇒ v = \(\frac{60}{8}\) = 7.5 सेमी अत: प्रकाश पुंज लेन्स के पीछे (दाहिनी ओर) लेन्स से 7.5 सेमी दूरी पर अभिसरित होगा। (b) इस स्थिति में, f= – 16 सेमी प्रश्न 9. अतः प्रतिबिम्ब 1.8 सेमी लम्बा आभासी तथा सीधा होगा, जो लेन्स के बायीं ओर उससे 8.4 सेमी की दूरी पर बनेगा। जैसे-जैसे बिम्ब लेन्स से दूरी हटती है, (u → ∞) वैसे-वैसे प्रतिबिम्ब फोकस के समीप खिसकता जाता है (v → f)। प्रश्न 10. प्रश्न 11. अतः अभिदृश्यक द्वारा बने प्रतिबिम्ब की नेत्रिका से दूरी = 5 सेमी ∴ इसकी अभिदृश्यक से दूरी = 15 – 5 = 10 सेमी (दायीं ओर) [∵ लेन्सों के बीच दूरी = 15 सेमी] ∴ अभिदृश्यक हेतु v0= + 10 सेमी, f 0= 2.0 सेमी अतः बिम्ब को अभिदृश्यक के सामने 2.5 सेमी दूरी पर रखना होगा। इस स्थिति में सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता M ∴ \(M=\frac{v_{o}}{\left|u_{o}\right|}\left(1+\frac{D}{f_{e}}\right)=\frac{10}{2.5}\left(1+\frac{25}{6.25}\right)=4 \times(1+4)=20\) (b) इस स्थिति में, ve = ∞ ∴ अभिदृश्यक द्वारा बने प्रतिबिम्ब की नेत्रिका से दूरी = 6.25 सेमी अतः वस्तु को अभिदृश्यक के सामने 2.59 सेमी दूरी पर रखना होगा। आवर्धन क्षमता \(M=\frac{v_{o}}{\left|u_{o}\right|} \times \frac{D}{f_{e}}=\frac{8.75}{2.59} \times \frac{25}{6.25}=13.5\) प्रश्न 12. ∴ व्यक्ति का निकट बिन्दु 25 सेमी है तथा व्यक्ति बिम्ब को स्पष्ट फोकसित कर लेता है, इसका यह अर्थ है कि अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बनता है। अत: ve = – 25 सेमी, D = 25 सेमी प्रश्न 13. प्रश्न 14. (b) दिया है, चन्द्रमा का व्यास h =
3.48 × 106 मीटर ∴ अभिदृश्यक द्वारा बने प्रतिबिम्ब का व्यास = 13.73 सेमी। प्रश्न 15. अवतल दर्पण के लिए f ऋणात्मक होता है जबकि u सभी दर्पणों के लिए ऋणात्मक है; अत: उक्त सूत्र से u व f को चिह्न सहित रखने पर, इससे स्पष्ट है कि v का मान ऋणात्मक है अर्थात् प्रतिबिम्ब दर्पण के सामने बनता है; अत: वास्तविक है। अर्थात् प्रतिबिम्ब 2f से दूर बनेगा। (b) भाग (a) से,
\(v=\frac{u f}{u-f}\) इससे स्पष्ट है कि v धनात्मक है अर्थात् प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे की ओर बनता है। अतः आभासी है। इस प्रकार उत्तल दर्पण सदैव आभासी प्रतिबिम्ब बनाता है, जो बिम्ब की स्थिति पर निर्भर नहीं करता। (c) पुनः भाग (b) के परिणाम से, \(v=\frac{u f}{u+f}\) ∵ रेखीय आवर्धन 1 से कम है; अत: स्पष्ट है कि प्रतिबिम्ब का आकार सदैव बिम्ब के आकार से छोटा है। ∵ बिम्ब ध्रुव तथा फोकस के बीच स्थित है; अत: 0 0 \(v=\frac{u f}{f-u}\) धनात्मक है। \(m=\frac{v}{u}\) ⇒ (∵f – u < f) ∵ आवर्धन 1 से अधिक है, अर्थात् प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु के आकार से बड़ा है। प्रश्न 16. अतः पिन 5 सेमी ऊपर उठी दिखाई देगी अर्थात् नेत्र से 45 सेमी गहराई पर दिखाई देगी। छोटे अपवर्तन कोणों के लिए उत्तर गुटके की अवस्थिति पर निर्भर नहीं करता। प्रश्न 17. हल : (a) बाह्य आवरण का अपवर्तनांक n1 = 1.44, तन्तु काँच का अपवर्तनांक n2= 1.68 बाह्य आवरण के सापेक्ष तन्तु काँच का अपवर्तनांक \(_{1} n_{2}=\frac{n_{2}}{n_{1}}=\frac{1.68}{1.44}=1.167\) ∵ n2 > n1 अत: तन्तु काँच, बाह्य आवरण के सापेक्ष सघन है। अतः यदि कोई किरण तन्तु काँच में चलती हुई, सीमा पृष्ठ पर क्रान्तिक कोण i. से बड़े कोण पर आपतित होती है तो वह काँच में पूर्णतः परावर्तित हो जाएगी। अत: पूर्ण आन्तरिक परावर्तन हेतु आपतन कोण i ऐसा होना चाहिए कि i> 59° (b) इस स्थिति में तन्तु काँच के बाहर का माध्यम वायु होगा। प्रश्न 18. (b) जब किसी दर्पण से परावर्तन अथवा लेन्स से अपवर्तन के
पश्चात् किरणें अपसरित होती हैं तो प्रतिबिम्ब को आभासी कहा जाता है। इस प्रतिबिम्ब को परदे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता। यदि इन अपसारी किरणों के मार्ग में कोई अन्य दर्पण अथवा लेन्स रखकर इन्हें किसी बिन्दु पर अभिसरित किया जा सकता तो वहाँ वास्तविक प्रतिबिम्ब बनेगा जिसे परदे पर प्राप्त किया जा सकता है। नेत्र लेन्स वास्तव में यही कार्य करता है। यह आभासी प्रतिबिम्ब बनाने वाली अपसारी किरणों को रेटिना पर अभिसरित कर देता है, जहाँ वास्तविक प्रतिबिम्ब बन जाता है। अतः इसमें कोई विरोधाभास नहीं है [देखें
चित्र-9.5 (b)]। (c) चूँकि इस दशा में अपवर्तन वायु (विरल माध्यम) से पानी (सघन माध्यम) में होता है। अतः झील में डूबे हुए गोताखोर को मछुआरे की लम्बाई अधिक प्रतीत होगी। प्रश्न 19. उक्त समीकरण v के वास्तविक मान देगा यदि B2 ≥ 4AC या (-3)2 ≥ 4 × 3f या 9 ≥ 12f ⇒ [latex]f \leq \frac{9}{12}=\frac{3}{4}[/latex] ∴ लेन्स की अधिकतम फोकस दूरी fmax = \(\frac{3}{4}\) मीटर = 75 सेमी। प्रश्न 20. ⇒ 90f = (90 – u) u या u2 – 90u + 90f = 0 ……………………….(1) चूँकि लेन्स दो स्थितियों में वस्तु का प्रतिबिम्ब परदे पर बनाता है तथा दो स्थितियों के बीच की दूरी 20 सेमी है; अत: समीकरण (1) में u में दो मूल (माना u1 व u2) होंगे जिनका अन्तर 20 सेमी होगा। अर्थात् (u1 – u2)2 = (20)2 = 400 समीकरण (1) से, u1 + u2 = 90 ⇒ u1u2= 90f ∴(u1 – u2)2 = (u1 + u2)2 – 4u1u2 ⇒ 400 = (90)2 – 4 × 90f ⇒ 360f = 8100 – 400 = 7700 ∴ फोकस दूरी \(f=\frac{7700}{360}\) = 21.38 ≈ 21.4 सेमी। अन्य विधि-विस्थापन विधि के सूत्र से, \(f=\frac{a^{2}-d^{2}}{4 a}\) यहाँ a = बिम्ब तथा प्रतिबिम्ब के बीच की दूरी = 90 सेमी d = लेन्स की दो स्थितियों के बीच की दूरी = 20 सेमी ∴ फोकस दरी\(f=\frac{(90)^{2}-(20)^{2}}{4 \times 90}=\frac{8100-400}{360}=\frac{7700}{360}\) = 21.4 सेमी। प्रश्न 21. u = – ∞ ∴ \(\frac{1}{v}-\frac{1}{-\infty}=\frac{1}{f_{1}}\) ⇒ v = f1 = + 30 सेमी अर्थात् उत्तल लेन्स इन किरणों को 30 सेमी की दूरी पर बिन्दु I पर मिलाता है। बिन्दु I1 अवतल लेन्स के लिए आभासी बिम्ब है। ∴ अवतल लेन्स हेतु, u = (30- 8) = + 22 सेमी ⇒ v = – 220 सेमी अर्थात् अन्तिम प्रतिबिम्ब, अवतल लेन्स के बाईं ओर इससे 220 सेमी दूर बनता है। इस प्रतिबिम्ब की लेन्सों के केन्द्र से दूरी 220 – \(\frac{8}{2}\) =216 सेमी है। अर्थात् अवतल लेन्स की ओर से देखने पर यह किरण पुंज लेन्सों के केन्द्र से 216 सेमी बाईं ओर स्थित बिन्दु से अपसरित प्रतीत होता है। इस प्रकार यदि इस युग्म की फोकस दूरी अर्थपूर्ण है तो यह फोकस दूरी – 216 सेमी होनी चाहिए। दूसरी दशा में कल्पना कीजिए कि समान्तर किरण पुंज दाईं ओर से चलता हुआ पहले अवतल लेन्स पर आपतित होता है। ∴ अवतल लेन्स हेतु u = – ∞ ∴ \(\frac{1}{v}-\frac{1}{-\infty}=\frac{1}{-20}\) ⇒ v = – 20 सेमी अर्थात् अवतल लेन्स से अपवर्तन के कारण ये किरणें उसके पीछे 20 सेमी दूरी पर स्थित बिन्दु से आती प्रतीत होती हैं। यह बिन्दु उत्तल लेन्स हेतु आभासी बिम्ब का कार्य करेगा। ∴ उत्तल लेन्स हेतु u = – (20 + 8) = – 28 अर्थात् उत्तल लेन्स की ओर से देखने पर किरणें इससे पीछे की ओर 420 सेमी दूरी पर स्थित बिन्दु से आती प्रतीत होती हैं। इस बिन्दु की निकाय के केन्द्र से दूरी 420 – \(\frac{8}{2}\) = 416 सेमी है। ∴ निकाय की फोकस दूरी – 416 सेमी होनी चाहिए। इस प्रकार हम देखते हैं कि इस निकाय की फोकस दूरी आपतित किरण पुंज की दिशा पर निर्भर करती हैं; अत: यह फोकस दूरी किसी भी रूप में उपयोगी नहीं है। (b) उत्तल लेन्स हेतु U1 = – 40 सेमी, f1 = + 30 सेमी, h = 1.5 सेमी ∴ अवतल लेन्स हेतु u2 = + (v1 – 8)= +
112 सेमी ∴ तन्त्र द्वारा उत्पन्न आवर्धन m = m1 × m2 = \(\frac{v_{1}}{u_{1}} \times \frac{v_{2}}{u_{2}}=\frac{+120}{-40} \times \frac{-560 / 23}{112}\) m = \(\frac{15}{23}\) = 0.652 m =\( \frac{h^{\prime}}{h}\) से, h’ = h × m = 1.5 × 0.652 = 0.98 सेमी अत:” प्रतिबिम्ब का आकार = 0.98 सेमी। प्रश्न 22. A= 60°, ang = 1.524 चित्र से, 90° – r +90° – θ + 60° = 180° (∆ABC में) r = 60° – θ यदि θ = ic हो तो r = 60° – ic जबकि \(\sin i_{c}=\frac{1}{a^{n} g}=\frac{1}{1.524}=0.656\) ⇒ ic = sin-1(0.656) = 41 अतः r = 60° – 41° = 19° अतः बिन्दु B पर अपवर्तन हेतु \(a n_{g}=\frac{\sin i}{\sin r}\) ⇒ sin i = ang × sin r या sin i = 1.524 × sin 19° = 0.5 = \(\frac { 1 }{ 2 }\) =sin 30°. अतः i= 30° दूसरे फलक से पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए आवश्यक है कि किरण इस फलक पर क्रान्तिक कोण icसे बड़े कोण पर गिरे। ∵ r = 60° – θ तथा θ = ic के लिए, r = 19°, i = 30° ∴ θ > ic के लिए, r < 19° = i< 30° अत: दूसरे फलक से पूर्ण आन्तरिक परावर्तन हेतु आपतन कोण i < 30° प्रश्न 23. प्रश्न 24. परन्तु कॉर्निया की अभिसरण क्षमता + 40D नियत है, ∴ नेत्र लेन्स की अधिकतम अभिसरण क्षमता P1‘ = P’ – P2 = 64- 40 = + 24 D [∵ P’ = P’1 + P2] अत: नेत्र लेन्स की अभिसरण परास + 20D से + 24 D के बीच है। प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. पुनः अधिकतम दूरी वह दूरी होगी, जबकि लेन्स वस्तु का प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनाएगा। इसके लिए v = ∞. ∴ \(\frac{1}{v}-\frac{1}{u}=\frac{1}{f}\) ⇒ \(\frac{1}{\infty}-\frac{1}{u}=\frac{1}{5}\) ⇒ u = – 5 सेमी अतः निकटतम दूरी = 4\(\frac{1}{2}\) सेमी तथा अधिकतम दूरी = 5 सेमी। (b) अधिकतम कोणीय आवर्धन mmax = 1 + \(\frac{D}{f}\) = 1 + \(\frac{25}{5}\) = 6 प्रश्न 29. ⇒ 10 = \(\frac{h^{\prime}}{h}\) ⇒ h’ = 10h = 10 × 1 मिमी = 1 सेमी :: ∴ प्रतिबिम्ब के प्रत्येक वर्ग का क्षेत्रफल = h’ × h’ = 1 सेमी2। (b) लेन्स का कोणीय आवर्धन (आवर्धन क्षमता) \(m=\frac{D}{f}=\frac{25}{10}=2.5\) प्रश्न 30. (b) इस दशा में आवर्धन का परिमाण = \(\frac{v}{u}=\frac{25}{7.14}=3.5\) (c) आवर्धन क्षमता = \(\frac{D}{u}=\frac{25}{7.14}=3.5\) हाँ, इस दशा में दोनों राशियाँ बराबर हैं। ऐसा इसलिए सम्भव हुआ है क्योंकि अन्तिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बना है। प्रश्न 31. ∴ वस्तु को लेन्स से 6 सेमी दूरी पर रखना होगा। इस स्थिति में आभासी प्रतिबिम्ब नेत्र के निकट बिन्दु से भी पहले बनेगा; अतः उसे स्पष्ट देख पाना सम्भव नहीं होगा। प्रश्न 32. (c) एक-तो अत्यन्त कम फोकस दूरी के लेन्सों (मोटे लेन्सों) को बनाने की प्रक्रिया आसान नहीं है, दूसरे फोकस दूरी घटने के साथ लेन्सों में विपथन का दोष बढ़ने लगता है। इससे उनके द्वारा बने प्रतिबिम्ब अस्पष्ट हो जाते हैं। व्यवहार में किसी एकल उत्तल लेन्स द्वारा 3 से अधिक आवर्धन प्राप्त करना सम्भव नहीं है परन्तु विपथन के दोष से मुक्त लेन्स द्वारा कहीं अधिक आवर्धन (लगभग 10) प्राप्त किया जा सकता है। (d) सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक का आवर्धन \(\frac{v_{o}}{\left|u_{o}\right|}=\frac{1}{\left(\frac{\left|u_{o}\right|}{f_{o}}-1\right)}\) होता है। इससे स्पष्ट है कि इस आवर्धन को बढ़ाने के लिए | u0| का मान f0 से कुछ अधिक होना चाहिए। परन्तु सूक्ष्मदर्शी समीप की वस्तुओं को देखने के लिए प्रयोग किया जाता है जो अभिदृश्यक के समीप रखी जाती हैं। अतः इन वस्तुओं के लिए | u0 | का मान कम होता है, इसलिए
f0 का मान और भी कम रखना पड़ता है। (e) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में वस्तु से चलने वाला प्रकाश अभिदृश्यक से गुजरने के बाद नेत्रिका से गुजरकर आँख तक पहुँचता है। वस्तु का प्रतिबिम्ब स्पष्ट देखने के लिए आवश्यक है कि वस्तु से चलने वाला अधिकतम प्रकाश नेत्र में पहुँचे। वस्तु से चलने वाले प्रकाश को अधिकतम मात्रा में ग्रहण करने के लिए ही नेत्र को नेत्रिका से अत्यल्प दूरी पर रखा जाता है। यह अत्यल्प दूरी यन्त्र की संरचना पर निर्भर करती है तथा उस पर लिखी गई होती है। प्रश्न 33. ∴ सूक्ष्मदर्शी की लम्बाई L = v0+ ue = 7.5 + 4.17 ⇒ L= 11.67 सेमी अतः वस्तु को अभिदृश्यक से 1.5 सेमी की दूरी पर रखना चाहिए तथा नेत्रिका की अभिदृश्यक से दूरी 11.67 सेमी रखनी चाहिए। प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. हल : प्रथम दर्पण हेतु, u =∞ ,f0= – \(\frac{R_{2}}{2}\) = -110 मिमी अभिदृश्यक दर्पण सूत्र \(\frac{1}{v}+\frac{1}{\infty}=\frac{1}{-110}\) से \(\frac{1}{v}+\frac{1}{\infty}=\frac{1}{-110}\) ⇒ v = – 110 मिमी इस दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब दर्पण के सामने उससे 110 मिमी दूरी पर बनता है। ∴ दर्पणों के बीच की दूरी = 20 मिमी ∴ इस प्रतिबिम्ब की दूसरे दर्पण से दूरी = 110 – 20 = 90 मिमी प्रथम दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब दूसरे दर्पण के लिए आभासी वस्तु का कार्य करेगा। ∴ दूसरे दर्पण हेतु u = – 90 सेमी*, f’= – \(\frac{R_{2}}{2}\) = – 70 मिमी** *अभिदृश्यक द्वारा प्रतिबिम्ब उसके सामने 110 सेमी की दूरी पर बनता है अर्थात् यह प्रतिबिम्ब दूसरे दर्पण के बाईं ओर 90 सेमी पर बनता है, अत: u ऋणात्मक लिया गया है। अत: अन्तिम प्रतिबिम्ब दूसरे दर्पण के पीछे की ओर (वस्तु की ही दिशा में) इस दर्पण से 315 मिमी की दूरी पर बनता है। प्रश्न 37. हल : जब दर्पण में θ = 3.5° का विक्षेप उत्पन्न होता है, तब प्रकाश किरण दोगुने कोण (अर्थात् 20 = 2 × 3.5° = 7°) से घूमती है। अत: R = 1.5 मीटर दूरी पर रखे परदे पर प्रकाश चिह्न का विस्थापन d = R × 2θ (∵ चाप = कोण x त्रिज्या) ⇒ d = 1.5 × \(\frac{7^{\circ} \times \pi}{180^{\circ}}\) = 0.184 मीटर = 18.4 मीटर। प्रश्न 38. यह स्पष्ट है कि दर्पण की अनुपस्थिति में लेन्स से अपवर्तित किरणें अनन्त पर मिलती हैं। .. ∴ काँच के लेन्स हेतु, u = – 30 सेमी, v = ∞ माना फोकस दूरी = f1 ∴ लेन्स की फोकस दूरी f1 = 30 सेमी यदि इसके प्रत्येक तल की वक्रता त्रिज्या R है, तब R1 = + R, R2 = – R, n= 1.5 द्रव के साथ प्रयोग करते समय इस स्थिति में काँच के लेन्स तथा समतल दर्पण के बीच एक द्रव का लेन्स भी बना है। माना इस द्रव लेन्स की फोकस दूरी f2 है, तब स्पष्ट है कि द्रव लेन्स के प्रथम तल की वक्रता त्रिज्या काँच लेन्स के वक्र तल की वक्रता-त्रिज्या के बराबर है। ∴ द्रव लेन्स हेतु R1= – 30 सेमी, R2 = ∞ ∴ द्रव का अपवर्तनांक n = 1.33 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हलकिरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. उत्तर : (b) 2 किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. माना μ3 अपवर्तनांक के द्रव से देखने पर बिन्दु O की आभासी स्थिति O2 तथा आभासी गहराई h2 है। अतः माना वायु से देखने पर बिन्दु O की आभासी स्थिति O3 तथा आभासी गहराई h’ है। किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. उत्तर : अतः sin c = \(\frac{1}{\mu}\) जहाँ μ द्रव का अपवर्तनांक है। चित्र से, \(\tan c=\frac{d / 2}{h}\) या \(\frac{d}{2}\) = h tan c = \(h\frac{1}{\sqrt{\left(\mu^{2}-1\right)}}\) या \(d=\frac{2 h}{\sqrt{\left(\mu^{2}-1\right)}}\) किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. MP Board Class 12th Physics SolutionsMP Board Class 12th Physics Solutions Chapter 12 परमाणुपरमाणु NCERT पाठ्यपुस्तक के अध्याय में पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तरप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. = 5.6 × 1014 हर्ट्स। प्रश्न 5. ⇒ E = – K1 या – 13.6 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट = – K1 (∴ दिया है, E = – 13.6 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट) ∴ इस अवस्था में इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा K1 = 13.6 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट तथा स्थितिज ऊर्जा U1 = – 2K1 ⇒ U1 = – 27.2 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट। प्रश्न 6. प्रश्न 7. (b)
nवें ऊर्जा स्तर में इलेक्ट्रॉन की कक्षीय अवधि प्रश्न 8. प्रश्न 9. अतः हाइड्रोजन परमाणु इलेक्ट्रॉन से ऊर्जा प्राप्त करके n = 2 अथवा n= 3 वें ऊर्जा स्तर में जा सकता है (उससे ऊपर नहीं)। अब वें ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तरों में लौटता हुआ परमाणु फोटॉन उत्सर्जित करेगा। इस उत्सर्जन के दौरान कुल तीन संक्रमण सम्भव हैं (देखें चित्र)। इन संक्रमणों में सम्भव ऊर्जा परिवर्तन क्रमश: ΔE31, ΔE32 व ΔE21 हैं। जहाँ ΔE31 = ΔE13 = 12.09 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट = 12.09-1.6 × 10-19 जूल ΔE32 = E3 – E2 = 1.89 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट = 1.89 × 1.6-10-19 जूल ΔE21 = ΔE12 = 10.2 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट = 10.2 × 1.6 × 10-19 जूल अत: उत्सर्जित तरंगदैर्घ्य निम्नलिखित हैं लाइमन श्रेणी λ31 = 103 नैनोमीटर, λ21 = 122 नैनोमीटर तथा बामर श्रेणी λ32 = 656 नैनोमीटर। प्रश्न 10. प्रश्न 11. (b) टॉमसन मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित पश्च प्रकीर्णन की प्रायिकता, रदरफोर्ड मॉडल द्वारा पूर्वानुमानित मान की तुलना में अत्यन्त कम है। (c) t पर रैखिक निर्भरता यह प्रदर्शित करती है कि प्रकीर्णन मुख्यतः एकल संघट्ट के कारण होता है। मोटाई t के बढ़ने के साथ लक्ष्य स्वर्ण नाभिकों की संख्या रैखिक रूप से बढ़ती है, अतः -कणों के, स्वर्ण नाभिक से एकल संघट्ट की सम्भावना रैखिक रूप से बढ़ती है। (d) टॉमसन मॉडल में परमाणु का सम्पूर्ण धनावेश परमाणु में समान रूप से वितरित है, अत: एकल संघट्ट a-कण को अल्प कोणों से विक्षेपित कर पाता है। अतः इस मॉडल में औसत प्रकीर्णन कोण का परिकलन, बहुप्रकीर्णन के आधार पर ही किया जा सकता है। दूसरी ओर रदरफोर्ड मॉडल में प्रकीर्णन एकल संघट्ट के कारण होता है, अतः बहुप्रकीर्णन की उपेक्षा की जा सकती है। प्रश्न
12. इस प्रकार समीकरण (2) व (3) की तुलना करने पर हम देखते हैं कि यदि हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन के बीच स्थिर. विद्युत बल \(\left(\frac{e \times e}{4 \pi \varepsilon_{0} r^{2}}\right)\) के स्थान पर गुरुत्वीय बल \(\left(G \frac{m_{p} \times m_{e}}{r^{2}}\right)\) कार्यरत हो तो प्रथम बोर कक्षा की त्रिज्या ज्ञात करने के r1 में \(\left(\frac{e^{2}}{4 \pi^{2} \varepsilon_{0} r^{2}}\right)\) के स्थान पर \(\left(\frac{G m_{p} \times m_{e}}{r^{2}}\right)\) रखना चाहिए। ∵ G = 6.67 × 10-11 न्यूटन-मीटर2/किग्रा2 mp = 1.67 × 10-27 किग्रा h = 6.62 × 10-34 जूल-सेकण्ड, me = 9.1 × 10-31 किग्रा समीकरण (2) में उपर्युक्त मान रखने पर, \(r_{1}=\frac{1}{9.1 \times 10^{-31}} \times\left(\frac{6.62 \times 10^{-34}}{2 \times 3.14}\right)^{2} \times \frac{1}{6.67 \times 10^{-11} \times 1.67 \times 10^{-27} \times 9.1 \times 10^{-31}}\) = 1.21 × 1029 मीटर। प्रश्न 13. ∴ कक्षा में इलेक्ट्रॉन की क्लासिकी घूर्णन आवृत्ति अत: समीकरण (2) एवं (3) से स्पष्ट है कि n के उच्च मानों हेतु nवीं कक्षा में इलेक्ट्रॉन की क्लासिकी पूर्णन आवत्ति, हाइड्रोजन परमाणु द्वारा nवें ऊर्जा स्तर से (n – 1)वें ऊर्जा स्तर में जाने के दौरान उत्सर्जित विकिरण की आवृत्ति के बराबर होती है। प्रश्न 14. (b) आप पाएंगे कि (a) में प्राप्त लम्बाई परमाण्वीय विमाओं के परिमाण की कोटि से काफी छोटी है। इसके अतिरिक्त इसमें c सम्मिलित है। परन्तु परमाणुओं की ऊर्जा अधिकतर अनापेक्षिकीय क्षेत्र (non-relativistic domain) में है जहाँ की कोई अपेक्षित भूमिका नहीं है। इसी तर्क ने बोर
कोcका परित्याग कर सही परमाण्वीय साइज को प्राप्त करने के लिए कुछ अन्य देखने के लिए प्रेरित किया। इस समय प्लांक नियतांक का कहीं और पहले ही आविर्भाव हो चुका था। बोर की सूक्ष्मदृष्टि ने पहचाना कि h, me और e के प्रयोग से ही सही परमाणु साइज प्राप्त होगा। अतः h, me और eसे ही लम्बाई की विमा वाली किसी राशि की रचना कीजिए और पुष्टि कीजिए कि इसका संख्यात्मक मान, वास्तव में सही परिमाण की कोटि का है। दोनों पक्षों में विमाओं की तुलना करने पर, y + u = 0 …..(1) z + 3u = 1 ….(2) x – z – 4u = 0 ….. (3) x- 2u = 0 ….. (4) समीकरण (2) व (3) को जोड़ने पर, x – u = 1 …..(5) समीकरण (5) में से (4) को घटाने पर, u = 1 तब y= – u = – 1, z = – 2, x = 2 अतः लम्बाई की विमा वाली अभीष्ट राशि निम्नलिखित है- या L= 2.81 × 10-15 मीटर। स्पष्ट है कि यह दूरी परमाणु के साइज की तुलना में लगभग 10 गुनी छोटी है। (b) पुन: h का विमीय सूत्र [ML2T-1 है। दोनों पक्षों में विमाओं की तुलना करने पर, y + z + u= 0 …(1) 2z + 3u=1 …(2) x – z – 4u = 0 …(3) x – 2u …(4) समीकरण (4) में से (3) को घटाने पर, z + 2u=0 समीकरण (5) को दो से गुणा करके समीकरण (2) में से घटाने पर, यही अभीष्ट राशि है जिसकी विमा लम्बाई की विमा के समान है। उक्त सूत्र में मान रखने पर, जो कि स्पष्टतया परमाणु के आमाप की कोटि की है। प्रश्न 15. ⇒ U= – 2K ∴ कुल ऊर्जा E = U + K ⇒ E=- K या – 3.4 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट = – K [∵ दिया है, E = – 3.4इलेक्ट्रॉन-वोल्ट] ∴ इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा K= 3.4 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट। (b) स्थितिज ऊर्जा U = – 2K ⇒ U = – 6.8 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट।। (c) यदि स्थितिज ऊर्जा के शून्य को बदल दिया जाए तो इलेक्ट्रॉन की स्थितिज ऊर्जा तथा कुल ऊर्जा बदल जाएगी जबकि गतिज ऊर्जा अपरिवर्तित रहेगी। प्रश्न 16. प्रश्न 17. परन्तु इलेक्ट्रॉन की प्रथम कक्षा की त्रिज्या re = 0.53Ā = 0.53 × 10-10 मीटर म्यूऑन की प्रथम कक्षा की त्रिज्या rμ = \(\frac { 1 }{ 207 }\) × 0.53 × 10-10 ⇒ rμ= 2.56 × 10-13 मीटर। पुनः प्रथम कक्षा में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा Ee = \(-\frac{1}{2} \times \frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{e^{2}}{r_{e}}\) तथा प्रथम कक्षा में म्यूऑन की ऊर्जा Eμ = \(-\frac{1}{2} \cdot \frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{e^{2}}{r_{\mu}}\) ∴ प्रथम कक्षा में हाइड्रोजन इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा Ee = – 13.6 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट ∵ प्रथम कक्षा में म्यूऑन की ऊर्जा Eμ = 207 × (- 13.6 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट) = – 2815.2 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट = – 2.82 किलोइलेक्ट्रॉन-वोल्ट। परमाणु NCERT भौतिक विज्ञान प्रश्न प्रदर्शिका (Physics Exemplar LO Problems) पुस्तक से चयनित महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के हलपरमाणु बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. परमाणु अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. परमाणु आंकिक प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. कोणीय संवेग संरक्षित रहने पर, . MP Board Class 12th Physics SolutionsMP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 13 उद्यमिता विकासउद्यमिता विकास Important Questionsउद्यमिता विकास वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न
2.
उत्तर:
प्रश्न 3.
उत्तर:
प्रश्न 4.
उत्तर:
प्रश्न 5. उत्तर:
उद्यमिता विकास अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. 1. ज्ञान आधारित व्यवहार- उद्यमिता ज्ञान पर आधारित क्रिया है। उद्यमिता बिना ज्ञान के अर्जित नहीं होती है एवं बिना अनुभव के उद्यमिता का कोई व्यवहार नहीं होता है। 2. सृजनात्मक क्रिया- उद्यमिता की प्रकृति रचनात्मक होती है। व्यवसाय प्रवर्तन संगठन एवं प्रबन्ध में सदैव रचनात्मक, चिन्तन द्वारा कार्य, संस्कृति एवं गुणवत्ता वृद्धि का सतत् सार्थक प्रयास किया जाता है। प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. 1. स्टेनले वेन्स के शब्दों के अनुसार, “कोई भी भावना अथवा इच्छा जो किसी व्यक्ति के संकल्प को इस प्रकार अनुकूलित करती है कि वह व्यक्ति कार्य को प्रेरित हो जाये, उसे अभिप्रेरण कहते हैं।” 2. डी.ई. मैकफर लैण्ड के शब्दों के अनुसार, “अभिप्रेरण उस रीति को निर्दिष्ट करती है जिसमें संवेगों, उद्देश्यों, इच्छाओं, आकांक्षाओं, प्रयासों या आवश्यकताओं को मानवीय आचरण के निर्देशन, नियंत्रण एवं स्पष्टीकरण के लिए प्रयोग में लाया जाता है अर्थात् अभिप्रेरण मनुष्य के अन्दर पैदा होती है, बाहर नहीं।” प्रश्न 10. MP Board Class 12 Business Studies Important QuestionsMP Board Class 12th General Hindi अपठित बोधMP Board Class 12 General Hindi अपठित गद्यांशअपठित रचना से तात्पर्य बिना पढ़े पद्यांश और गद्यांश से है। अपठितांश बहुधा निर्धारित है और प्रचलित पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त किसी भी पुस्तक से प्रश्न-पत्र में दिया जाता है। ऐसे अपठित गद्यांशों और पद्यांशों से छात्रों की योग्यता और अध्ययनशीलता का परिचय मिलता है। अपठित अंश की व्याख्या अथवा संक्षेपण करने से यह भी पता चलता है कि विद्यार्थी में भाषा पर कितना अधिकार है और उसकी अभिव्यंजना शक्ति कितनी है। अपठित अवतरण 1. हम नाम के आस्तिक हैं, हर बात में ईश्वर का तिरस्कार करके ही हमने आस्तिक की ऊँची उपाधि पाई है। ईश्वर का एक नाम दीनबन्धु है। यदि हम वास्तव में आस्तिक हैं, ईश्वर भक्त हैं, तो हमारा यह पहला धर्म है कि दीनों को प्रेम से गले लगाएँ, उनकी सहायता करें, उनकी सेवा-सुश्रूषा करें तभी न दीनबन्धु ईश्वर हम पर प्रसन्न होगा। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त
शीर्षक बताइए। 2. हमारे समस्त आचरण में संयम की आवश्यकता है। हमें अपने विचारों और आवेगों को भी संयम की वल्गा से रोकना चाहिए। गाँधीजी के देश में यह बताने की आवश्यकता नहीं कि सत्य के लिए दण्ड भोगना समाज का हितकर कार्य है। परन्तु संयम और विवेक से ही यह स्थिर किया जा सकता है कि कौन-सा कार्य नीति संयम है। संयम और विवेक ही इस समय हमें उबार सकता है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 3. कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। वह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैर में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-रात अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त
शीर्षक बताइए। 4. भारत आधुनिक युग के विश्व-जीवन में अन्य राष्ट्रों का समभागी होकर . भी उनसे भिन्न है। राष्ट्र केवल सीमाओं और जनसंख्या के समच्चय का नाम नहीं है। उनके साथ परिस्थितियों के एक विशिष्ट आपात और एक विशिष्ट इतिहास का योग होता है। राष्ट्र एक व्यक्ति के सदृश्य ही है। जिन परिस्थितियों और ऐतिहासिक मकरंद : हिंदी सामान्य प्रतिक्रियाओं से भारत गुजरा है वे अपना स्वतन्त्र स्वरूप रखती हैं। उनके अनुरूप हमारी चेतना और व्यापक जीवन परिवेदना का निर्माण हुआ है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 5. दूर के ढोल सुहावने होते हैं क्योंकि उनकी कर्कशता दूर तक नहीं पहुँचती। जब ढोल के पास बैठे हुए लोगों के कान के पर्दे फटते रहते हैं, तब दूर किसी नदी के तट पर संध्या समय, किसी दूसरे के कान में वही शब्द मधुरता का संचार कर देते हैं। ढोल के उन्हीं शब्दों को सुनकर वह अपने हृदय में किसी के विवाहोत्सव का चित्र अंकित कर लेता है। कोलाहल से पूर्ण घर के एक कोने में बैठी हुई किसी लज्जाशील नववधू की कल्पना वह अपने मन में कर लेता है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 6. उदारता का अभिप्राय केवल निःसंकोच भाव से किसी को धन दे डालना ही नहीं वरन् दूसरों के प्रति उदार भाव रखना भी है। उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों का आदर करता है और समाज में सेवक-भाव से रहता है। यह न समझो कि केवल धन से उदारता हो सकती है। सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाए। धन की उदारता के साथ सबसे बड़ी एक और उदारता की आवश्यकता यह है कि उपकृत के प्रति किसी प्रकार का एहसान न जताया जाए। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 7. हमें स्वराज्य तो मिल गया, परन्तु सराज्य अभी हमारे लिए एक सखद स्वप्न ही है। इसका प्रधान कारण यह है कि देश को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से कठोर परिश्रम करना हमने अब तक नहीं सीखा। श्रम का महत्त्व और मूल्य हम जानते ही नहीं। हम अब भी आराम तलब हैं। हमे हाथों से यथेष्ट काम करना रुचता ही नहीं। हाथों से काम करने को हम हीन लक्षण समझते हैं। हम कम से कम काम द्वारा जीविका चाहते हैं। हम यही सोचते रहते हैं किसी तरह काम से बचा जाए। यह दूषित मनोवृत्ति राष्ट्र की आत्मा में आ बैठी है और वहाँ से हटती नहीं। यदि हम इससे मुक्त नहीं होते तो देश आगे बढ़ नहीं सकता। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 8. मनुष्य को स्वयं पर गर्व है। वह स्वयं को जगदीश्वर की अत्युत्तम तथा सर्वश्रेष्ठ कृति समझता है। वह अपने व्यक्तित्व को चिरस्थायी बनाना चाहता है। मनुष्य जाति का इतिहास क्या है? उसके सारे प्रयत्नों का केवल एक ही उद्देश्य है। चिरकाल से मनुष्य यही प्रयत्न कर रहा है कि किसी प्रकार वह उस अप्राप्य अमृत को प्राप्त करे जिसे पीकर वह अमर हो जाए। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 9. जो साहित्य मुर्दे को भी जिन्दा करने वाली संजीवन औषधि का भण्डार है, जो साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्पीड़ितों के मस्तक को उन्नत करने वाला है, उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो जाति नहीं करती वह अज्ञानांधकार की गर्त में पड़ी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है। अतएव समर्थ होकर भी जो मनुष्य इतने महत्त्वशाली साहित्य की सेवा और श्रीवृद्धि नहीं करता अथवा उससे अनुराग नहीं रखता वह समाज-द्रोही है, वह देश-द्रोही है, वह जाति-द्रोही है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 10. शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को मनुष्य बनाना, उनमें आत्मनिर्भरता की भावना भरना तथा देशवासियों का चरित्र-निर्माण करना होता है। परन्तु वर्तमान शिक्षा प्रणाली से इस प्रकार का कोई लाभ नहीं हो रहा है। इसे उदर-पूर्ति का साधन मात्र कह सकते हैं। परन्तु यह भी पूर्णतया नहीं, क्योंकि जब भी प्रतिवर्ष विद्यालयों से हजारों नवयुवक डिग्री प्राप्त करके निकलते हैं और उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती। इस कारण बेकारी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 11. सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध हो तो मनुष्य दूसरों के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत-से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके। कोई मनुष्य किसी दुष्ट के नित्य दो-चार प्रहार सहता है। यदि उसमें क्रोध का विकास नहीं हुआ है तो वह केवल आह-ऊँह करेगा, जिसका उस दुष्ट पर कोई प्रभाव नहीं। उस दुष्ट के हृदय में विवेक, दया आदि उत्पन्न करने में बहुत समय लगेगा। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 12. जन का प्रवाह अनन्त होता है। सहस्रों वर्षों से भूमि के साथ राष्ट्रीय जन ने तादात्म्य प्राप्त किया है। जब तक सूर्य की रश्मियाँ नित्य प्रातःकाल भुवन को अमृत से भर देती हैं, तब तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है। इतिहास के अनेक . उतार-चढ़ाव पार करने के बाद भी राष्ट्र निवासी जन नई उठती लहरों से आगे बढ़ने के लिए आज भी अजर-अमर हैं। जन का सततवाही जीवन नदी के प्रवाह की तरह है, जिसमें कर्म और ा के द्वारा उत्थान के अनेक घाटों का निर्माण होता है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 13. दंडकोप का ही एक विधान है। राजदंड राजकोप है, जहाँ कोप लोककोप और लोककोप धर्मकोप है, जहाँ राजकोप धर्मकोप से एकदम भिन्न दिखाई पड़े वहाँ उसे राजकोप न समझकर कुछ विशेष मनुष्यों का कोप समझना चाहिए। ऐसा कोप राजकोप के महत्त्व और पवित्रता का अधिकारी नहीं हो सकता। उसका सम्मान जनता अपने लिए आवश्यक नहीं समझती। (क)
इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 14. विकृत भोजन से जैसे शरीर रुग्ण होकर बिगड़ जाता है उसी तरह विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है। मस्तिष्क का बलवान (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 15. हमारा एक जातीय व्यक्तित्व है। वेश-भूषा, रहन-सहन और शक्ल-सूरत में भेद होते हुए भी भारतवासी अपने जातीय व्यक्तित्व से पहचान लिए जाते हैं। वह व्यक्तित्व हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन-मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत आदि में अभिव्यक्त होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है। वह हमारी एकता का मूल सूत्र है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 16. कश्मीर का नाम लेते ही हृदय में जो आनन्द की लहरें उठने लगती हैं उसकी नम दलदलभरी भूमि किसने सौंदर्य में रंगी? किसने झेलम के तटवर्ती आकाश की सुरभि को बोझिल वाय से मदहोश किया? किसने उसके केसर की फैली क्यारियों में जादू की मिट्टी डाली? (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 17. “यह संसार एक पुलिया है, इसके ऊपर से निकल जा, किन्तु इस पर घर बनाने का विचार मन में न ला। जो यहाँ एक घंटाभर भी ठहरने का इरादा करेगा, वह चिरकाल तक यहाँ ठहरने को उत्सुक हो जाएगा। सांसारिक जीवन तो एक घड़ी भर का ही है, उसे ईश्वर-स्मरण तथा भगवद् भक्ति में बिता। ईश्वरोपासना के अतिरिक्त सब कुछ व्यर्थ है, सब कुछ आसार है।” (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 18. सर्वोदय शब्द का अर्थ सबका उदय, सबका उत्कर्ष तथा सबका विकास है। यह सिद्धान्त भारत का पुरातन आदर्श माना गया है। महात्मा गाँधी के मतानुसार सर्वोदय का अर्थ आदर्श समाज व्यवस्था है। किसी भी व्यक्ति या समूह का दमन, शोषण या विनाश से नहीं किया जाएगा। इस समाज-व्यवस्था में सब बराबर के सदस्य होंगे। सबको उनके परिश्रम की पैदावार में हिस्सा मिलेगा। बलवान दुर्बलों की रक्षा करेंगे और उनके संरक्षक का काम करेंगे तथा प्रत्येक सदस्य सबके कल्याण का ध्यान रखेगा। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 19. पुस्तकों का हम सबको बहुत ऋणी होना चाहिए। मनुष्य जाति ने आज तक जितना भी ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त किया है, जो भी अन्वेषण और आविष्कार किए हैं, वे सब इनमें संचित हैं। इनसे हम हर प्रकार का ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये अध्यापक हमको बिना दंड प्रकार के, बिना कुटिल शब्द कहे अथवा क्रोध किए और बिना शुल्क लिए ही शिक्षा दे सकते हैं। यदि हम इनके सन्निकट जाएँ तो वे सोते अथवा अन्य किसी कार्य में संलग्न न मिलेंगे। यदि हम जिज्ञासु हैं और इनसे प्रश्न करते हैं तो यह हमसे कुछ परोक्ष न रखेंगे। यदि हम इनके यथार्थ रूप को न समझे तो ये भुनभुना नहीं जाएँगे और यदि हम अज्ञानी हैं तो हमारी मूर्खता पर हँसेंगे नहीं। इसलिए बुद्धि तथा ज्ञान से पूर्ण पुस्तकालय संसार की बहुमूल्य वस्तु है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 20. दार्शनिक कहते हैं, जीवन एक बुदबुदा है। भ्रमण करती हुई आत्मा को ठहरने की एक धर्मशाला-मात्र है। वे यह भी कहते हैं कि हम जीवन का संग तथा वियोग क्या है? प्रवाह में साथ ही बढ़ते हुए लकड़ी के टुकड़ों का साथ और विलग होने के समान है। परन्तु क्या ये विचार एक संतृप्त हृदय को शांत कर सकते हैं? क्या ये भावनाएँ चिरकाल की विरहाग्नि में जलते हुए हृदय को सांत्वना प्रदान कर सकती हैं। सांसारिक जीवन की व्यवस्थाओं से दूर बैठा सांसारिक जीवन संग्राम का एक तटस्थ दर्शक भले कुछ भी कहे, किन्तु जीवन के इस भीषण संग्राम में युद्ध करते हुए सांसारिक घटनाओं के कठोर धपेड़े खाते हुए हृदयों की क्या दशा होतो है, वह एक भुक्तभोगी कह सकता है। (क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए। 21. मानव जाति के
लिए एक नए युग का सूत्रपात हो गया है। यह नया युग आणविक क्रांति का युग है। भविष्य में इतिहासकार इस युग को आणविक युग कहकर पुकारेंगे या सभ्यता के महाविनाश को बीभत्स और रोमांचकारी गाथा सुनने के लिए कोई इतिहासकार जीवन ही नहीं बचेगा। इसका निर्णय आज हमें समस्त मानव जाति को ही करना है, क्योंकि आज समस्त संसार का भविष्य खतरे में पड़ गया है। MP Board Class 12 General Hindi अपठित पद्यांशसच्चा कर्म सच्ची सेवा
सच्चा धरम। इनको न कोई प्यारे जाति और पंथ। चाहे हो पहाड़ चाहे गहरी हो खाई। जिसमें नहीं है देश-भक्ति का जुदून।
-कमलेश कुमार जैन ‘वसंत’
2. अपठित पद्यांश वन-उपवन पनप गए सब -संकलित
3. अपठित पद्यांश जय हे मातृभूमि कल्याणी -मधु चतुर्वेदी
3. अपठित पद्यांश निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- -मैथिलीशरण गुप्त
3. अपठित पद्यांश निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- -रामनरेश त्रिपाठी
MP Board Class 12th Hindi Solutions11 के पहले 25 गुणजों का माध्य क्या है?इस प्रकार, 1, 2, 3 और 6 संख्या 6 के विभाजक हैं।
11 के पहले 25 गुणजों का माध्य क्या है A 152 B 147 C 143 D 134?More Average Questions. Q1. 25 संख्याओं का औसत 48.2 है।
8 के प्रथम 30 गुणजों का औसत क्या है?140000. Check the AAI JE ATC answer key details here.
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