2 में कुल कितनी मात्रा होती है? - 2 mein kul kitanee maatra hotee hai?


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सॉल्व्ड पेपर (23 फरवरी 2014)

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'दोहा ' में कितनी मात्राएँ होत...

'दोहा ' में कितनी मात्राएँ होती है ?

लिखित उत्तर

चौबीस छब्बीस अट्ठाइस तीस

Answer : A

Solution : दोहा एक अर्ध सममात्रिक छन्द है इस छन्द के प्रथम व तृतीय चरण में 13 -13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11 -11 मात्राएँ होती है। कुल मिलकर इसमें 24 मात्राएँ होती है।

उत्तर

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2 में कुल कितनी मात्रा होती है? - 2 mein kul kitanee maatra hotee hai?

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दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों प्रथम तथा तृतीय में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों द्वितीय तथा चतुर्थ में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (।ऽ।) टालते है, लेकिन इस की आवश्यकता नहीं है। 'बड़ा हुआ तो' पंक्ति का आरम्भ ज-गण सlक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात् अन्त में लघु होता है।

उदाहरण-

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।पंथी को छाया नहीं, फल लागैं अति दूर।।मुरली वाले मोहना, मुरली नेक बजाय।तेरी मुरली मन हरे, घर अँगना न सुहाय॥

हेमचन्द्र के मतानुसार दोहा-छन्द के लक्षण हैं - समे द्वादश ओजे चतुर्दश दोहक: समपाद के अन्तिम स्थान पर स्थित लघु वर्ण को हेमचन्द्र गुरु-वर्ण का मापन देता है। 'अत्र समपादान्ते गुरुद्वयमित्याम्नाय:' यह सूत्र विषद किया है।

बड़ा[संपादित करें]

दोही दोहे का ही एक प्रकार है। इसके विषम चरणों में १३-१३ एवं सम चरणों में ११-११ मात्राऐं होती है। उदाहरण- बड़ा हुआ तो क्या हुआ,जैसे पेड़ खजूर।

      पंथी को छाया नहीं,फल लागैं अति दूर।।

दोहे के प्रकार[संपादित करें]

दोहे के मुख्य 23 प्रकार हैं:- 1.भ्रमर, 2.सुभ्रमर, 3.शरभ, 4.श्येन, 5.मण्डूक, 6.मर्कट, 7.करभ, 8.नर, 9.हंस, 10.गयंद, 11.पयोधर, 12.बल, 13.पान, 14.त्रिकल 15.कच्छप, 16.मच्छ, 17.शार्दूल, 18.अहिवर, 19.व्याल, 20.विडाल, 21.उदर, 22.श्वान, 23.सर्प।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • 07/sanskar.drsumansharma.april0 7.htm दोहे के भेद[मृत कड़ियाँ] (सृजन गाथा)
  • kavita.hindyugm.com/2008/12/pratham-path-1-doha-likhana-seekhen.html पाठ १ : दोहा गाथा सनातन (हिन्द युग्म)

मात्रा

वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। छंद में मात्राओं की गिनती ज़रूरी है ।मात्राएँ दो प्रकार की होती हैं:

लघु मात्राएँ

  • गिनती: 1 मात्रा
  • चिन्ह: । या 1
  • उच्चारण: ह्रस्व [Hrasva / Short sounding letter]

दीर्घ मात्राएँ

  • गिनती: 2 मात्राएँ
  • चिन्ह: S या 2
  • उच्चारण: गुरु / दीर्घ  [Deergh / long sounding letters]

संक्षेप में मात्रा गणना के सूत्र:

  1. मात्रा केवल स्वर की गिनी जाती है।
  2. बिना स्वर के कोई उच्चारण नहीं होता अतः जो भी अक्षर देखें उसमेँ लगे हुए स्वर पर दृष्टि डालें।
  3. स्वर यदि लघु है तो मात्रा लघु होगी अर्थात् 1 और यदि दीर्घ है तो 2
  4. हिन्दी में प्लुत (3) नहीं है।

अक्षर = व्यंजन + स्वर

स्वर = अ – अः

  • लघु स्वर = एक मात्रा = , इ, उ + चन्द्र बिन्दु वाले स्वर
  • दीर्घ स्वर = दो मात्राएँ = , ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः

व्यंजन = क – ज्ञ

  • लघु व्यंजन = एक मात्रा:
    •  [क + अ],
    • कि [क + इ],
    • कु [क + उ] और
    • कृ [क + ऋ]
  • दीर्घ व्यंजन = दो मात्राएँ:
    • का [क + आ],
    • की [क + ई],
    • कू [क + ऊ],
    • के [क + ए],
    • कै [क + ऐ],
    • को [क + ओ],
    • कौ [क + औ],
    • कं [क + अं],
    • कः [क + अः]

विशेष ध्यान दें: 

  1. अनुस्वार और विसर्ग जिस अक्षर पर लगते हैं उसकी मात्राएँ दो हो जाती हैं। जैसे कि अंश, हंस, वंश, कंस में अं हं, वं, कं = दीर्घ = 2 मात्राएँ
  2. जिन अक्षरों के साथ र की मात्रा मिश्रित है वे भी लघु ही रहते हैं जैसे कि प्र, क्र, श्र आदि ।
  3. अनुनासिक यानि अर्ध-चन्द्र-बिंदु के प्रयोग वाले शब्द: ऊपर की मात्रा वाले वर्णों की कोई मात्रा नहीं गिनी जाती, जैसे कि:  
    • शब्द अँगना = अ की एक मात्रा ही रहेगी
    • शब्द आँगन = आ की दो मात्राएँ ही रहेंगी
    • शब्द हँस, विहँस, हँसना, आँख, पाँखी, चाँदी आदि
  4. थोड़े अभ्यास के बाद के उच्चारण मात्र से मात्राओं का अनुमान लगाया जा सकता है।
  5. आधी और तीन मात्राएँ आम तौर पर प्रयोग में नहीं लाई जातीं । इसीलिए स्वरहीन या शून्य वर्ण की गिनती अलग तरह से होती है।

अर्ध व्यंजन की मात्रा गणना

अर्ध व्यंजन को एक मात्रिक माना जाता है परन्तु यह स्वतंत्र लघु नहीं होता। उसे पहले या बाद वाले वर्ण  के साथ संयुक्त कर दीर्घ यानि 2 मात्रा गिनी जाती हैं:

  • यदि अर्ध व्यंजन बाद वाले वर्ण के साथ संयुक्त हो तो = दीर्घ = 2 मात्राएँ जैसे कि:
    • शब्द प्यार में प्या = 2 मात्राएँ
    • शब्द त्याग में त्या = 2 मात्राएँ
    • शब्द म्लान में म्ला = 2 मात्राएँ
    • शब्द स्नान में स्ना= 2 मात्राएँ
  • यदि अर्ध व्यंजन के पूर्व का अक्षर लघु मात्रिक है तो दोनों मिल कर दीर्घ हो जाते हैं जैसे कि:
    • शब्द सत्य सत् = [1+1 = 2], य = 1 अर्थात सत्य = 2-1
    • शब्द कर्म – 2-1
    • शब्द हत्या – 2-2
    • शब्द अनुचित्य – 1-1-2-1
    • शब्द मृत्यु – 2-1
    • अपवाद: जहाँ अर्ध व्यंजन के पूर्व लघु मात्रिक अक्षर हो परन्तु उस पर अर्ध व्यंजन का भार न पड़ रहा हो तो पूर्व का लघु मात्रिक वर्ण दीर्घ नहीं होता। उदाहरण – कन्हैया – 1-2-2 में न् के पूर्व क है फिर भी यह दीर्घ नहीं होगा क्योकि उस पर न् का भार नहीं पड़ रहा है।
  • यदि अर्ध व्यंजन के पूर्व का अक्षर दीर्घ मात्रिक है तो लघु की मात्रा लुप्त हो जाती है जैसे कि:
    • शब्द आत्मा – आत् / मा = 2-2
    • शब्द महात्मा – म / हात् / मा 1-2-2
    • एक ही शब्द में दोनों प्रकार देखें – शब्द धर्मात्मा – धर् / मात् / मा  2-2-2   
  • यदि अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तो भी यही नियम पालन होता है अर्थात अर्ध व्यंजन की मात्रा लुप्त हो जाती है जैसे कि:
    • शब्द स्नान = 2-1

संयुक्ताक्षर की मात्रा गणना

संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ, द्ध, द्व आदि जो दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं।

  1. संयुक्ताक्षर में चाहे जितने व्यंजन लगे हों गणना स्वर की ही की जायेगी जैसे:
    • शब्द ‘प्रथम’ में ‘प्र’ [प्र + अ] = एक मात्रा
    • शब्द ‘प्रातः’ में ‘प्रा’ [प्र + आ] = दो मात्राएँ
    • शब्द ‘अगस्त्य’ में ‘स्त्य’ = य [य + अ] = एक मात्रा
    • शब्द ‘आगस्त्येय’ में ‘स्त्ये’ = ये [य + ए] = दो मात्राएँ
  2. संयुक्ताक्षर के पूर्व यदि कोई लघु अक्षर है तो दोनों मिल कर उसकी मात्रा दीर्घ हो जाती है जैसे:
    • शब्द ‘उपग्रह’ में संयुक्ताक्षर ‘ग्र’ की एक मात्रा होगी और पूर्व लघु ‘प’ की दो मात्राएँ हो जाएँगी।
    • शब्द पत्र – 2-1,
    • शब्द वक्र – 2-1,
    • शब्द यक्ष = 2-1,
    • शब्द कक्ष – 2-1,
    • शब्द यज्ञ – 2-1,
    • शब्द शुद्ध – 2-1,
    • शब्द क्रुद्ध – 2-1
    • शब्द गोत्र – 2-1,
  3. संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ ही रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं जैसे: 
    • शब्द प्रज्ञा – 2-2
    • शब्द राजाज्ञा – 2-2-2 
  4. संयुक्ताक्षर के पूर्व यदि कोई दीर्घ अक्षर है, तो वे स्वयं भी दीर्घ ही रहते हैं जैसे:
    • शब्द ‘प्रान्त’ में संयुक्ताक्षर ‘प्रा’ की मात्राएँ दो हैं जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा।
  5. ह के पूर्व कोई व्यंजन जुड़ कर सयुंक्ताक्षर बनाये तो प्रायः उसका पूर्ववर्ती लघु वर्ण दीर्घ नहीं होता। जैसे:
    • शब्द ‘तुम्हारा’ में तु = एक मात्रा ही रहेगी।
    • शब्द ‘कन्हाई’ में ‘क’ = एक मात्रा ही रहेगी किन्तु
    • शब्द ‘नन्हें’ में ‘न’ = दो मात्राएँ हो जाएँगी
  6. संयुक्ताक्षर उच्चारण सम्बन्धी समस्या: बहुत बार संयुक्ताक्षर के उच्चारण के कारण मात्रा की गणना में समस्या या गलती होती हैं जैसे निम्न शब्दों पर ध्यान दें तो:
    • शब्द ‘उपन्यास’:
      • इसके शुद्ध उच्चारण होता है ‘उप् न्न्यास’ – यहाँ, ‘न’ का द्वित्त्व हो रहा है। अतः प्रायः संयुक्ताक्षर के पूर्व जब कोई लघु वर्ण होता है तो लघु वर्ण को समय या पहचान देने के लिए वहाँ रुकते हैं।
      • इस प्रक्रिया में अगले व्यंजन पर द्वित्व हो जाता है। यदि ऐसा न करें तो ‘उपन्यास’ का उच्चारण ‘उप्न्यास’ जैसा हो जाएगा जो अशुद्ध है।
    • शब्द नन्हें:
      • उच्चारण हो रहा है ‘नन् न्हें’ यहाँ ‘न’ का द्वित्व, दो मात्राएँ का कारण होता है।
      • चूंकि यह क्रिया ‘न’ के बाद हो रही है इसलिए ‘न’ की दो मात्रा हो जाएँगी।
    • शब्द ‘समस्या’:
      • उच्चारण है सम्-सस-या – यह अंतर इतना सूख्ष्म होता है कि हम ध्यान नहीं दे पाते।
    • शब्द ‘प्राप्त’ में सयुंक्ताक्षर से पूर्ण दीर्घ मात्रा है अतः कोई अंतर नहीं होता।
    • शब्द ‘तृप्त’ में पहले वाले ‘त’ की दो मात्राएँ होंगी।
    • ’ह’ के साथ विशेषता का कारण है कि सभी वर्गों के (कवर्गादि) द्वीतीय और चतुर्थ वर्ण क्रमशः प्रथम एवं तृतीय वर्ण के ‘ह’ के योग से बनते हैं। जैसे क्+ह = ख। इसे संघोषीकरण कहते हैं। इस रीति से जब किसी व्यंजन के बाद ‘ह’ आता है तो यही सघोषीकरण जैसा प्रभाव उत्पन्न होता जिससे वह संयुक्ताक्षर होते हुए भी व्यवहार में शुद्ध वर्ण जैसा लगने लगता है। इसीलिए तुम्हारे में ‘तु’ की एक मात्रा हो जाती है। लेकिन जहाँ ऐसा प्रभाव उत्पन्न नहीं होता वहाँ यह नियम लागू नहीं होगा जैसे ‘कुल्हड़’ में ‘कु’ की दो मात्राएँ हैं लेकिन ‘कुल्हाड़ी’ में ‘कु’ की एक मात्रा हो जाएगी।
    • अंत में यह बात भी ध्यान में रखना जरूरी है कि हर नियम में अपवाद भी होते हैं। शुद्ध उच्चारण पर ध्यान दें तो मात्रा संबंधी त्रुटि नहीं होती। 

महत्वपूर्ण: 

  1. चन्र्दबिन्दु से मात्रा में कोई अंतर नहीं आता। जैसे:
    • अँगना = अ की एक मात्रा ही रहेगी
    • आँगन = आ की दो मात्राएँ ही रहेंगी
  2. वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। आप थोड़े अभ्यास से शब्द के उच्चारण मात्र से मात्राओं का अनुमान लगा सकते हैं।

गीत-गतिरूप (लिंक) की सहायता से आप कविताओं में मात्रा को ऑनलाइन गिन सकते हैं और यदि कविता की दो पंक्तियों के बीच कुल मात्राओं में कुछ फर्क नजर आए, तो उनमें सुधार कर सकते हैं

दोहा में कुल कितनी मात्राएँ होती हैं ?`?

दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों प्रथम तथा तृतीय में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों द्वितीय तथा चतुर्थ में ११-११ मात्राएँ होती हैं

मात्राएं कितनी होती है?

हिन्दी में 11 मात्राएँ होती हैं। अ ,आ ,इ ,ई उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ ,ओ और औ।

मात्रा कैसे गिनी जाती है?

मात्रा केवल स्वर की गिनी जाती है। बिना स्वर के कोई उच्चारण नहीं होता अतः जो भी अक्षर देखें उसमेँ लगे हुए स्वर पर दृष्टि डालें। स्वर यदि लघु है तो मात्रा लघु होगी अर्थात् 1 और यदि दीर्घ है तो 2। हिन्दी में प्लुत (3) नहीं है।

दोहा छंद में कितनी मात्राएँ होती हैं 14 26 24?

Solution : दोहा एक अर्ध सममात्रिक छन्द है इस छन्द के प्रथम व तृतीय चरण में 13 -13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11 -11 मात्राएँ होती है। कुल मिलकर इसमें 24 मात्राएँ होती है