Show रंगीन दुनिया अंग्रेज इतने गोरे क्यों होते हैं? आप भी जानिए
सोर्चेसौ सालों पहले भारत में ब्रिटिश राज हुआ करता था. हम अंग्रेजों को उनकी गोरी चमड़ी से ही जानते थे. मगर एक रिसर्च में खुलासा
हुआ है कि ब्रिटेन के लोग गोरे नहीं, बल्कि काले थे. आप हमेशा से ही गोरे अंग्रेजों की थ्योरी पढ़ते आए हैं, जिसमें आपको गोरी चमड़ी और नीली आंखों वालों उन अंग्रेजों के बारे में बताया गया, जो इंग्लैड से आए थे. मगर एक रिसर्च से खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन का पहला व्यक्ति काली चमड़ी वाला था. यह बात एक डीएनए टेस्ट में सामने आई है. गोरे और काले – हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां रंग को बहुत महत्व दिया जाता है। यहां पर गोरे और काले में भेद करने का रिवाज़ है। अगर आपको लगता है कि सिर्फ भारत में ही गोरे और काले रंग के आधार पर भेद किया जाता है तो आप गलत हैं। अमेरिका जैसे शक्लिशाली देशों में भी काले रंग के लोगों को हीनता की दृष्टि से देखा जाता है और उन्हें बराबरी का दर्जा देने में लोगों को हिचक महसूस होती है। दुनिया में चेहरे के साथ लोगों की त्वचा का रंग भी अलग होता है। जैसे अफ्रीका में रहने वाले लोगों की त्वचा का रंग काला होता है और अमेरिका जैसे ठंडे देशों के लोगों की त्वचा का रंग गोरा होता है। भारत और एशियाई देशों में अधिकतर लोगों का रंग गेहुंआ होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी त्वचा के रंग में इतना अंतर क्यों होता है कि कोई बहुत ज्यादा गोरा हो जाता है और कोई बहुत ही ज्यादा काला। आइए जानते हैं कि हम गोरे और काले क्यों होते है। क्या है रंग अलग होने का कारण मनुष्य का रंग उसकी त्वचा में उपस्थित एक रंगीन पदार्थ पर निर्भर करता है जिसे पिगमेंट कहा जाता है। जब सूर्य के प्रकाश में उपस्थित पराबैंगनी किरणें हमारे शरीर पर पड़ती हैं तो शरीर के ऊत्तकों द्वारा अधिक मेलानिन बनने लगता है। शरीर के द्वारा अधिक मेलानिन बनने की वजह से शरीर का रंग काला या गेहुंआ हो जाता है जबकि ठंडे स्थानों पर रहने वाले लोगों के शरीर में मेलानिन की मात्रा कम पाई जाती है। इसके फलस्वरूप उनकी त्वचा का रंग गोरा होता है। यही वजह है कि लोगों की त्वचा का रंग अलग-अलग जगहों पर भिन्न होता है। अफ्रीका जैसे देशों का तापमान बहुत गर्म रहता है इसलिए वहां रहने वाले लोगों का रंग काला रहता है। वहीं अमेरिका जैसे देशों का तापमान बहुत ठंडा रहता है, वहां पर गर्मी बहुत ही कम पड़ती है इसलिए वहां पर रहने वाले लोगों का रंग गोरा रहता है। भारत की बात करें तो यहां पर कोई गोरा है, कोई काला तो किसी का रंग गेहुआ है। वैसे यहां ज्यादातर लोगों को रंग गेहुंआ ही होता है लेकिन अगर स्थानों की बात करें तो देश में पहाड़ी इलाकों जैसे हिमाचल और उत्तराखंड में रहने वाले भारतीयों का रंग गोरा होता है जबकि केरल और कर्नाटक आदि जैसे शहरों में बहुत गर्मी पड़ती है और इसलिए वहां के लोगों का रंग काला होता है। भारत में एक ही जैसे रंग के लोग बहुत कम देखने को मिलेंगें। इस बात से पता चलता है कि हमारी त्वचा का रंग जहां हम रहते हैं उस स्थान पर निर्भर करता है। इस सबके बावजूद आप कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन समाज से रंगभेद खत्म नहीं किया जा सकता है। इन वजहों से हम गोरे और काले होते है – आम लोगों को ही नहीं बल्कि सिलेब्रिटीज़ और बॉलीवुड एक्ट्रेसेस तक को रंग की वजह से काफी कुछ झेलना पड़ा है। खुद प्रियंका चोपड़ा ने बताया था कि उनके साथ भी रंग की वजह से भेद हुआ था और ये सब उनके साथ अपने देश के साथ-साथ विदेश में भी हुआ था। रंग से ज्यादा इंसान की सीरत मायने रखती है और हमे उसे पर ही ध्यान देना चाहिए।
सूरत गुजरात से सगीर अहमद जानना चाहते हैं कि अफ़्रीकी लोगों का रंग काला क्यों होता है जबकि यूरोपीय लोग गोरे होते हैं. आज आनुवांशिकी विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि मानव के जीनोम का नक्शा तैयार हो चुका है जिससे विभिन्न नस्लों के बारे में जो भी मिथक थे वो दूर हो गए हैं. अब यह साबित हो चुका है कि किसी एक व्यक्ति का डीएनए 99.9 प्रतिशत दूसरे व्यक्ति जैसा ही होता है, चाहे वे दोनों अलग-अलग जाति के ही क्यों न हों. बाक़ी 0.1 प्रतिशत में जो विविधता है वही एक व्यक्ति को दूसरे से अलग करती है. इस तथ्य के आधार पर जीव-विज्ञानी कहते हैं कि आज का मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले रहने वाले होमो सेपियन्स का वंशज है. यानी हम सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे. अफ़्रीका बहुत गर्म प्रदेश है. सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचने में काला रंग बड़ी मदद करता है. त्वचा का रंग मैलेनिन नामक एक रसायन से निर्धारित होता है. मैलेनिन की मात्रा के अधिक होने से त्वचा का रंग काला हो जाता है. काला रंग फ़ोलेट नामक विटामिन बी को भी नष्ट होने से बचाता है. काली त्वचा सूर्य की तेज़ किरणों को भीतर जाने से रोकती है जिससे विटामिन डी3 का उत्पादन प्रभावित होता है. लेकिन जब मानव ठंडे प्रदेशों की ओर बढ़ा तो विटामिन डी3 की कमी से उसकी त्वचा का रंग हल्का पड़ने लगा. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि तेरह हज़ार साल पहले तक यूरोपीय लोगों का रंग गहरा हुआ करता था वो धीरे-धीरे गोरे हुए. ग्राम राजन, गया बिहार से साधु साव सज्जन पूछते हैं कि एशिया की सबसे बड़ी नदी कौन सी है. एशिया की सबसे बड़ी नदी है यैंग्त्से. इसका आधुनिक चीनी नाम है चांग जिआंग जिसका मतलब हुआ लंबी नदी. यह चीन के शिंघियाई प्रांत के ग्लेशियर से निकलकर कोई 6380 किलोमीटर की यात्रा तय करके शंघाई में पूर्वी चीन सागर में समा जाती है. तलचर, अंगुल उड़ीसा से ज्योतिरंजन बिस्वाल यह जानना चाहते हैं कि हार्वी निकल्स क्या है. ज्योतिरंजन जी हार्वी निकल्स विलास वस्तुओं का एक अंतर्राष्ट्रीय स्टोर है जिसकी शाखाएं ब्रिटेन के कई बड़े शहरों से लेकर, दुबई, रियाद, सउदी अरब, हॉंग कॉंग और चीन में भी हैं. यहां दुनिया के सबसे नामी गिरामी ब्रैंड के कपड़े, सौन्दर्य प्रसाधन की चीज़ें, घर की साज सज्जा का सामान और खाने पीने का सामान मिलता है. इसकी शुरुआत 1813 में लंदन के मशहूर नाइट्सब्रिज इलाक़े में एक छोटी सी कपड़ों की दुकान से हुई थी. ब्लैक होल क्या होता है. ये सवाल किया है भुवनेश्वर उड़ीसा से सिद्धार्थ और सुपौल बिहार से सत्येंद्र कुमार ने.
ब्लैक होल अंतरिक्ष में ऐसा क्षेत्र होता है जिसके द्रव्यमान का घनत्व इतना बढ़ जाता है कि आस-पास का कोई भी पिंड उसके गुरुत्वाकर्षण से बच नहीं पाता, प्रकाश भी नहीं और इसलिए वह दिखाई नहीं देता. जब किसी बड़े तारे का पूरा का पूरा ईंधन जल चुकता है तो उसमें एक ज़बरदस्त विस्फोट होता है जिसे सुपरनोवा कहते हैं. विस्फोट के बाद जो पदार्थ बचता है वह धीरे धीरे सिमटना शुरू होता है और बहुत ही घने पिंड का रूप ले लेता है जिसे न्यूट्रॉन स्टार कहते हैं. अगर न्यूट्रॉन स्टार बहुत विशाल है तो गुरुत्वाकर्षण का दबाव इतना होगा कि वह अपने ही बोझ से सिमटता चला जाएगा और इतना घना हो जाएगा कि ब्लैक होल बन जाएगा और दिखाई नहीं देगा. सवाल ये उठता है कि जब ब्लैक होल दिखाई ही नहीं देता, तो ये कैसे कहा जा सकता है कि यह ब्लैक होल है. इसके कुछ प्रमाण हैं. एक तो जब भी कोई पिंड या पदार्थ ब्लैक होल के नज़दीक पहुंचता है तो उसकी तरफ़ खिंचता चला जाता है. इस प्रक्रिया में वह लाख़ों डिग्री के तापमान पर जलता है और फिर ग़ायब हो जाता है जो इस बात का प्रमाण है कि वह ब्लैक होल में समा गया. एक और प्रमाण ये है कि जहां ब्लैक होल होता है उसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के आस पास मौजूद तारे उसका चक्कर लगाते रहते हैं. इनकी गति को देखकर खगोलज्ञ ब्लैक होल की स्थिति और उसके आकार का अनुमान लगा सकते हैं. ग्राम नेगुरा बान सिंह, ज़िला मिर्ज़ापुर से ब्रजेश कोटहा और प्रमिला कोटहा पूछते हैं कि रेखांकित बैंक ड्राफ़्ट क्या होता है. रेखांकित और ग़ैर रेखांकित ड्राफ़्ट में क्या अंतर है और रेखांकित करने का सही तरीक़ा क्या है. चैक या डिमांड ड्राफ़्ट में बाईं तरफ़ या कभी कभी बीच में दो समानान्तर रेखाएं खिंची रहती हैं. इन्हीं को रेखांकित चैक या डिमांड ड्राफ़्ट कहते हैं. इनमें नॉन नैगोशिएबिल या अकाउन्ट पेयी भी लिखा रहता है. इससे वह सामान्य चैक या डिमान्ड ड्राफ़्ट के मुक़ाबले अधिक सुरक्षित हो जाता है क्योंकि बैंक उसी अकाउन्ट में वो पैसे जमा करता हैं जिसके लिए वह बनाया गया है. रेखांकित करने का सही तरीक़ा है चैक या डिमांड ड्राफ़्ट की बाईं तरफ़ समानांतर रेखाएं खींचना और उसमें अकाउन्ट पेयी या नॉन नैगोशिएबिल लिखना और साथ ही पेयी के बराबर में लिखा बियरर शब्द काट दिया जाए. इंदौर मध्य प्रदेश से अंशुल जोशी पूछते हैं कि भोजन को हज़म करने में कितना समय लगता है. जब भोजन हमारे पेट में पहुंचता है तो वहां कई तरह के पाचक रस आकर मिलते हैं और उसका मंथन शुरु होता है. उसमें से प्रोटीन, शर्करा और चर्बी अलग होती है. फिर हमारे जिगर से निकला रस चर्बी को पचाता है. पेट से यह भोजन छोटी आंतों में पहुंचता है जहां आंतों की दीवारें पोषक तत्वों को सोख लेती हैं. इस प्रक्रिया में कोई 6 से 8 घंटे लगते हैं. उसके बाद यह भोजन बड़ी आंतो में पहुंचता है जहां पाचन क्रिया जारी रहती है. जो कुछ नहीं पच पाया उसे हमारे शरीर से निकलने में कोई 24 घंटे लगते हैं. वैस पाचन इस बात पर निर्भर करता है कि आपने क्या खाया है. मांस को हज़म करने और आंतों से बाहर निकलने में दो तीन दिन लग जाते हैं जबकि सब्ज़ियों और फलों को कोई 12 घंटे लगते हैं. खगड़िया बिहार से पूर्णिमा शर्मा पूछती हैं कि काला नमक काला क्यों होता है. पूर्णिमा जी काला नमक काला नहीं बल्कि हल्के बैंगनी रंग का होता है. यह खनिज नमक है जिसमें गंधक की महक आती है. बहुत से भारतीय खानों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेदिक दवाओं में भी इसका प्रयोग किया जाता है. क्योंकि यह पाचक है, पेट की गैस और अम्लचूल को शान्त करता है और जिन लोगों को उच्च रक्तचाप की शिकायत होती है उनके लिए सादा नमक से बेहतर है. भारत की लोनार झील के बारे में जानकारी मांगी है दीपक दिनकर किरोटे ने. महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के बुल्दाना ज़िले में एक शहर है लोनार. और इस शहर की विशेषता है कि यहां एक झील है जो माना जाता है कि कोई 40 हज़ार साल पहले एक उल्कापिंड के पृथ्वी पर आकर गिरने से बनी. इसके किनारों पर बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में कई मंदिर बनाए गए लेकिन अब सभी खंडहर हो चुके हैं. विदेश के लोग गोरे क्यों होते हैं?सिर्फ अंग्रेज ही नहीं, ठंडे इलाकों में रहने वाले सभी लोग गोरे होते हैं। इस गोरेपन का सम्बन्ध सूरज की किरणों से है। भूमध्य रेखा से करीब 40 डिग्री उत्तर और 40 डिग्री दक्षिण तक, सूरज की किरणों का धरती पर सीधा प्रभाव पड़ने के कारण धूप में ज्यादा तेजी होती है।
गोरे लोग कौन से देश में पाए जाते हैं?योरोप के लगभग सभी देशों के लोग, साथ ही रूस, अमेरिका के योरोपियन मूल के लोग व अन्य कई देशों जैसे दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि के शुद्ध योरोपियन मूल के लोग गोरी चमड़ी के होते हैं। वैसे अफ्रीका के अलावा लगभग अन्य सभी देशों में कई लोग पूरी तरह गोरी चमड़ी के पाए जाते हैं।
क्या काला आदमी गोरा हो सकता है?हमारे शरीर में मेलेनिन की मात्रा त्वचा का रंग निर्धारित करती है। ये मात्रा हमारी रेस , माता पिता व रिश्तेदारों के रंग से भी प्रभावित होती है। इसके अलावा धूप और अल्ट्रावायलेट किरणों के दुष्प्रभाव से रंग गहरा हो सकता है। गोरेपन के क्रीम मेलेनिन के कोशिकाओं को नष्ट करती हैं या मेलेनिन का बनना काम कर देतीहै।।
केरल के लोग काले क्यों होते हैं?यह काला रंग त्वचा को सूर्य की किरणों में जलने से बचाता है। इसलिए जो लोग अधिक गर्म स्थान पर रहते हैं उनके शरीर में मैलेनिन अधिक मात्रा में बनता है और उनका रंग अधिक काला हो जाता है। अफ्रिका और वेस्टइंडीज गरम स्थान हैं और वहां सूर्य की किरणें बारह महीने सीधी पड़ती हैं , इसलिए वहां के लोगों का रंग अधिक काला होता है।
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