वैश्य जाति की सूची – बनिया जाति में कितने गोत्र होते हैं, बनिया कितने प्रकार के होते हैं, गुप्ता का गोत्र क्या है, वैश्य में कौन कौन सी जाति आती हैं, वैश्य जाति की सूची UP, बनिया जाति की सूची, वैश्य समाज की उपजातियां, वैश्य गोत्र, शूद्र जाति की सूची, वैश्य का मतलब, वैश्य जाति की सूची in english, वैश्य समाज के महापुरुष, अखिल भारतीय वैश्य एकता परिषद के पदाधिकारियों ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंप कर वैश्य समाज के उपवर्गो को जो
पिछड़ी जाति में आते हैं उनके प्रमाणपत्र ओबीसी के जारी कराने की मांग की है। परिषद के जिलाध्यक्ष लक्ष्मण स्वरूप अग्रवाल, युवा प्रदेश महामंत्री रामशरण गुप्ता, कृष्ण मुरारी गुप्ता, मनीष पोरवाल, अनन्त प्रताप अग्रवाल, सर्वेश गुप्ता सहित अनेक लोगों ने उल्लेख किया कि वैश्य समाज के उपवर्ग कलाल, कलार, कलवार, शिवहरे, गुलहरे, पोरवाल, जायसवाल को प्रदेश सरकार ने वर्ष 2000 में पिछड़ी जाति का दर्जा दिया था। उन्होंने कहा कि पिछड़ा वर्ग की अनुमन्य सूची में क्रम संख्या 1 से 78 तक उप्र में जितनी भी छोटी बड़ी जातियां पिछड़ी जाति में आती है उन सभी जातियों का विस्तृत उल्लेख जैसे अहीर, काछी, कहार, नाई, तेली, कुर्मी, गुर्जर आदि किया गया है। प्रविष्ठ 79 में वैश्य समाज के उपवर्ग गुप्ता (शिवहरे, गुलहरे, पोरवाल, जायसवाल) लिखते हैं, इनको कलाल, कलार, कलवार के अंतर्गत शामिल किया गया है। वर्ष 2000 से इसी आधार पर वैश्य समाज के उक्त उपवर्गो को पिछड़ी जाति का मानकर पूरे प्रदेश में पिछड़ी जाति के जाति प्रमाणपत्र जारी किये जा रहे हैं। वर्ष 2010-11 में पंचायत चुनाव में कुछ लोगों ने जो चुनाव हार गये गलत तथ्य प्रस्तुत कर वैश्य समाज के उक्त उपवर्गो को पिछड़ा वर्ग में न मानते हुए झूठी शिकायत की, ताकि पिछड़ी जाति के अंतर्गत जीते वैश्य उपवर्ग के लोगों के चुनाव रद हो जायें और दोबारा चुनाव हों। इसी के चलते इटावा जनपद के दो प्रधानों कामेत के प्रधान राम कुमार गुप्ता तथा गुहानी के प्रधान राजेश कुमार गुप्ता के खिलाफ चुनाव हारे प्रत्याशियों ने झूठी शिकायत दर्ज करायी और इसकी जांच प्रक्रिया अमल में लायी गयी। उक्त प्रधानों ने पिछड़ी जाति का होने के लिए कई साक्ष्य प्रस्तुत किए जैसे तहसील द्वारा जारी जाति प्रमाणपत्र, अपने रिश्तेदारों के जो विभिन्न जनपदों-प्रदेशों में रहते हैं, के पिछड़ी जाति के जाति प्रमाणपत्र, गांव क्षेत्र के लोगों के शपथ पत्र, अखिल भारतीय वैश्य एकता परिषद, इटावा के संरक्षक एवं संस्थापक सदस्य का प्रमाणपत्र आदि प्रस्तुत किये हैं। उन्होंने उक्त जातियों को ओबीसी प्रमाणपत्र जारी कराने की मांग की है। उत्पत्ति ‘वैश्य’ शब्द वैदिक ‘विश्’ से निकला है अर्थ की दृष्टि से ‘वैश्य’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका मूल अर्थ “बसना” होता है। मनु के ‘मनुस्मृति’ के अनुसार वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर यानि पेट से हुई है। जबकि कुछ अन्य विचारों के अनुसार ब्रह्मा जी से पैदा होने वाले ब्राह्मण, विष्णु से पैदा होने वाले वैश्य, शंकर से पैदा होने वाले क्षत्रिय कहलाए; इसलिये आज भी ब्राह्मण अपनी माता सरस्वती, वैश्य लक्ष्मी, क्षत्रिय माँ दुर्गे की पूजा करते है। पारंपरिक कर्तव्यएक वैश्य – ऐतिहासिक रूप से, वैश्य अपने पारंपरिक पशुचारण , व्यापार और वाणिज्य के अलावा अन्य भूमिकाओं में शामिल रहे हैं। इतिहासकार राम शरण शर्मा के अनुसार , गुप्त साम्राज्य एक वैश्य वंश था जो “दमनकारी शासकों के खिलाफ प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट हो सकता है”। क्या आप में ‘बनिया बुद्धि’ है आपने पैसे कमाए हैं आप मेहनती हैं क्या आपके बच्चों को अच्छे संस्कार मिले हैं अगर इन सारे सवालों के जवाब ‘हां’ में हैं, तो आप आधे बनिया हैं। पूरा बनिया बनने के लिए आपको दान भी देना होगा, जो वैश्य वर्ण का एक अहम कर्तव्य है। लेकिन ज़्यादातर बनिया यहीं पर आकर अधूरे हो जाते हैं, फिर चाहे वे मित्तल-अंबानी
हों या यूपी-बिहार, मप्र-छत्तीसगढ़ के वैश्य। अँग्रेज़ी अखबार ‘मिंट’ में कुछ अरसा पहले एक दिलचस्प खबर छपी थी, जिसके आँकड़ों पर आप बहुत सारा गर्व कर सकते हैं और ज़रा-सी शर्म भी। ‘मिंट’ के मुताबिक, फोर्ब्स मैग्जीन द्वारा बनाई गई महा-अरबपतियों की वैश्विक सूची के 1,210 लोगों में से 55 भारतीय थे और इन 55 में से लगभग आधे, यानी 26 उद्योगपति बनिया थे। तात्कालिक सूची के अनुसार इनमें से हर बनिया के पास एक अरब डॉलर (5,000 करोड़ रु.) या उससे अधिक की संपत्ति थी। कई के पास तो इससे कई गुना दौलत थी। सूची के अनुसार, तब देश के पांच सर्वाधिक धनाढ्यों में चार स्थानों पर बनिया थे1. लक्ष्मीनिवास मित्तल, ‘बनिया बुद्धि’ नामक उपमा चतुराई का पर्याय है।
बनिया समाज तुलनात्मक रूप से सभ्य, शांत और संस्कारित माना जाता है, जो आमतौर पर अपने काम से मतलब रखता है और व्यर्थ के पचड़ों में नहीं पड़ता। कुल मिलाकर यह सद्गुणों के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन इसी समाज की कंजूसी को लेकर इतने लतीफ़े बने हैं कि उनका संकलन अच्छे-खासे विश्वकोष से कम भारी नहीं होगा। Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने वैश्य जाति की सूची के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं। यह भी पढ़ें:- अब बिना टिकट के भी कर सकते हैं ट्रेन से सफर, लेकिन पहले जान लें इन खास नियमों के बारे मेंअगर हमारे द्वारा बताई गई जानकारी अच्छी लगी हो तो आपने दोस्तों को जरुर शेयर करे tripfunda.in आप सभी का आभार परघट करता है {धन्यवाद} वैश्य में कौन कौन आते हैं?'वैश्य' भारत में हिन्दुओं की जाति व्यवस्था में चार वर्णों में से एक है। किसान, पशुपालक और व्यापारी समुदाय इस वर्ण में शामिल हैं।
वैश्य की उत्पत्ति कैसे हुई?इस वर्ग में मुख्य रूप से भारतीय समाज के किसान, पशुपालक, और व्यापारी समुदाय शामिल हैं। 'वैश्य' शब्द वैदिक 'विश्' से निकला है। अर्थ की दृष्टि से 'वैश्य' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है, जिसका मूल अर्थ “बसना” होता है। मनु के 'मनुस्मृति' के अनुसार वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर यानि पेट से हुई है।
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र कौन है?हिन्दू वर्ण व्यवस्था. क्षत्रिय: शासक, योद्धा, सैनिक और प्रशासक।. ब्राह्मण: पुजारी, विद्वान और शिक्षक, भिछुक ,इंजीनियर और डॉक्टर. वैश्य: कृषिविद , व्यापारी।. शूद्र: सेवा प्रदाता , पशुपालक, चर्मकार।. सबसे शुद्ध जाति कौन सी है?जातियों की संख्या
और ब्लूमफील्ड का मत है कि ब्राह्मणों में ही दो हजार से अधिक भेद हैं। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार, जो जातिगणना की दृष्टि से अधिक शुद्ध मानी जाती है, भारत में उनकी संख्या 2378 है। डॉ॰ जी. एस.
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