विश्वासपात्र मित्र जीवन की औषधि है। Show जिस प्रकार औषधि मरणासन्न व्यक्ति को भी संकट से उबार लेती है सामान्य मित्र तो शायद नहीं किंतु उसी प्रकार एक विश्वास पात्र मित्र व्यक्ति को उसके जीवन- संकट से बाहर कर लेता है। विश्वासपात्र मित्र हमारा बड़ा हितेषी होता है, इसलिए वह हमारे जीवन में समय- समय पर पैदा होने वाली रूग्णताओं को दूर करने में, मार्ग की बाधाओं को हटाने में सहायता करता है। वह हमारी तब मदद करता है जब हम जीवन के किसी गहरे संकट से गुजर रहे होते हैं, वह तन- मन -धन से जुड़ता है और जीवन के संकट से उबारने लेता है। मित्र में हितेषी भाव होता है इसलिए वह हमारे जीवन के रोग को देखकर औषधि की तरह कटु सलाह भी देता है। वह हमारे दोस्तों को लेकर हमारा निंदक भी होता है ताकि हम निर्दोष बने। इसलिए एक विश्वासपात्र मित्र हमारे लिए एक अच्छी औषधि की भूमिका अदा कर हमारे जीवन को स्वस्थ रखता है। मेरे steemit दोस्तों के लिए समर्पित ***********English translation ********** Confidential friend is the medicine of life. Just as a person gets rid of the person from a crisis, even a person can not be a normal friend, but in the same way, a trusted person gets the person out of his life-crisis. A trustworthy friend is our greatest beneficial, so he helps in the removal of obstacles in the pathway, in removing the diseases that arise from time to time in our lives. He helps us when we are passing through a deep crisis of life, he connects with self-restraint and takes away from the crisis of life. Friend has a good sense, so he gives bitter advice like medicine by looking at the disease of our life. He is also condemned by our friends so that we become innocent. That's why a confidant friend keeps our life healthy by playing the role of a good medicine for us. Thank you very much for reading the post I wrote. Links to Previous Post ICSE Hindi Previous Year Question Paper 2015 Solved for Class 10
SECTION – A [40 Marks] Question 1. Answer: “विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है।” मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर ही वह अपनी भावनाओं तथा विचारों का आदान-प्रदान करता है। प्रत्येक मनुष्य को परिवार के सदस्यों के अलावा एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जिससे वह अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को बाँट सके। जिस प्रकार हमारी आँखों की मित्रता हमारी पलकों से होती है जरा सी विपत्ति आने पर तुरंत बन्द हो जाती हैं व आँखों को सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसी प्रकार सच्चा मित्र अपने विश्वास के कवच से अपने मित्र को सदैव सुरक्षित रखता है। जीवन की सरसता के लिए सच्चे मित्र की नितांत आवश्यकता होती है, क्योंकि सच्चा मित्र अपने व्यवहार से अपने मित्र के सुख-दुख का साथी होता है। सच ही कहा गया है कि ‘मित्रता जीवन का पाथेय है।’ सच्चा मित्र हमारे प्रति विश्वासपात्र बनकर हमें औषधि के समान लाभान्वित करता है। उस पर प्रत्येक परिस्थिति में निर्भर हुआ जा सकता है। हमारे जीवन में विश्वासपात्र मित्र का बहुत महत्व होता है। जब कभी जीवन की कटु-सत्यता के समक्ष हम अपना धैर्य खोने लगते हैं, हमारा आत्मविश्वास डगमगाने लगता है तो केवल हमारा सच्चा मित्र अपनी विश्वसनीयता से हमारे काम आता है। विश्वासपात्र मित्र अपने दुःख को चाहे वह पर्वत जैसा ही क्यों न हो ? रजकण जैसा समझता है व अपने मित्र के धूल के कण समान दुःख को भी पर्वत समान समझता हुआ उसका सहायक बन जाता है। वह सदा अपने बल व सामर्थ्य से अपने मित्र का हितैषी ही बनता है। मित्र का चुनाव करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि सच्चा मित्र वही है जो सुख-दुख में हमारा सहायक हो। समान विचारों वाला हो, व उसके व्यवहार का हमारे मन में सम्मान-भाव हो। विश्वासपात्र वही मित्र हो सकता है, जिसके मन में अपने मित्र के लिए सहानुभूति का भाव हो। हमारी पहचान मित्र के समान ही बन जाती है। वास्तव में सच्चा मित्र सही परामर्श और सहानुभूति प्रदान कर, बिना कहे ही अपने मित्र का हित-चिन्तक होता है। ‘कुपथ निवारि-सुपंथ चलावा’ का व्यवहार जिसने अपना रखा हो, ऐसा ही व्यक्ति हमारा विश्वासपात्र व सच्चा मित्र होता है। वह अपने साथी को सदा सही मार्ग का अनुसरण करने को प्रेरित करता है। सच्चे व विश्वासपात्र मित्र की यह पहचान है कि वह कभी अपने मित्र का पतन होते नहीं देख सकता। सदा अपने मित्र को गलत मार्ग पर जाने से रोकता है। मेरी समझ से ऐसे व्यक्ति को ही हमें चुनना चाहिए जिसकी मित्रता हमें प्रगति की राह पर ले जाए व पतन के गर्त से बचाए। मित्र अपने मित्र के सम्मान को बढ़ाने वाला होता है। जीवन पथ पर जब कभी निराशा व विपत्ति के बादल छा जाएँ तो हमारा मित्र ही आशा की किरण बन यथाशक्ति हमारी मदद करे। वह निःस्वार्थ भाव से सदा अपने मित्र का हित-चिन्तक बने। सच्चा मित्र वही बन सकता है जो अपने मित्र का विपत्ति में भी साथ नहीं छोड़ता। मित्र की परेशानियों को हमेशा दूर करने का प्रयास करता है। यही गुण मित्र के लिए आवश्यक होते हैं। हमारा उससे भावनात्मक सम्बन्ध जुड़ जाता है तथा इन गुणों से भरा व्यक्ति हमारा खास मित्र स्वतः ही बन जाता है। जीवन में मित्र की मित्रता बहत उपयोगी होती है। जिस प्रकार धार्मिक शिक्षाएँ हमें पाप से दूर रखती हैं वैसे ही एक सच्चा मित्र अपने मार्गदर्शन से हमें हर संकट में सहायक बन उबारता है। अतः हमें ऐसा ही हितचिंतक मित्र चुनना चाहिए। (ii) भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि को देवता के समान माना जाता
है।’ सभ्यता और संस्कृति के मूल्यों से ही किसी देश के मानव-समाज की अपनी अलग पहचान बनती है। संस्कृति स्वयं में एक सूक्ष्म व भावात्मक शब्द है, जिसका सम्बन्ध बाह्य आचारों से न होकर मानव-जीवन की आत्मा व भावनात्मक विचारों से हुआ करता है। जिस प्रकार एक गुलाब का फूल अपनी सुगन्ध से पृथक पहचान बनाता है वैसे ही हमारी संस्कृति की संसार में पृथक पहचान है। भारतीय संस्कृति में अतिथि को देवता’ के समान मानते हैं। हमारे यहाँ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ व ‘अतिथि देवो भव’ जैसे विचारों की प्रमुखता रही है। अनजान अपरिचित आगन्तुक भी यहाँ आकर अपनत्व पाता है। यही कारण है कि विदेशी हमारी धरती पर आने को हमेशा लालायित रहते हैं। हम भारतीय सदा अपने अतिथि को देव समान सम्मान देते रहे हैं। वर्तमान परिस्थितियों में हमारे आचार-विचारों में परिवर्तन आने लगा है। आज की भागमभाग की जीवन शैली ने हमारे विचारों में परिवर्तन के साथ आचरण भी बदल सा दिया है। पहले हर घर में आने वाले आगन्तुक अतिथि को खुशी-खुशी स्वागत-सत्कार से नवाजा जाता था आज अतिथि का आना एक जिम्मेदारी निभाने जैसा लगता है। न तो हम सभी के पास इतना समय होता है, न ही हम दूसरों की खुशियों व आराम की चिन्ता करते हैं। पहले लोगों के पास समय का अभाव नहीं होता था, महँगाई इतनी नहीं थी, जिम्मेदारियाँ कम होती थीं, छोटे परिवार नहीं होते थे तब अतिथि का आना एक खुशी का आभास कराता था। संयुक्त परिवार के कारण जिम्मेदारियाँ सभी मिलकर उठाते थे। आज बदलती जीवन शैली ने हमारी सोच व व्यवहार भी बदल कर रख दिया है। सत्य तो कड़वा होता ही है, इसी प्रकार देवता समान समझे जाने वाले ‘अतिथि’ अब बोझ ज्यादा बन जाते हैं। विशेषकर उस समय जब अचानक से आ धमकें व दूसरों को सूचित किए बिना चले आएं। अतिथि का आना तब और बोझ बन जाता है जब वह अपनी पसन्द-नापसन्द, अपना स्वभाव दूसरों के साथ सामन्जस्य करके नहीं बदलता। ऐसे लोग दूसरों के घर जाकर भी एक भार समान रहते हैं। एक अतिथि का सम्मान तभी किया जाता है जब वह दूसरों के घर जाकर सामंजस्य के साथ रहे व अपनी सुख-सुविधा की परिधि से बाहर आकर दूसरों की सुख-सुविधा के बारे में भी ध्यान रखे। दूसरों के आराम व सुविधाओं का ख्याल रखे व अपने व्यवहार से किसी को भी आहत न करे। (iii) स्वच्छता हम
सभी के लिए लाभदायक है स्वच्छ भारत ही स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकता है यह आज जन-जन पहचान चुका है। भारत को स्वच्छ बनाने की पहल स्वास्थ्य की ओर बढ़ता एक कदम ही है। यह प्रत्येक भारतीय का स्वप्न है। अगर हम अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखते हैं तो न केवल अच्छा कार्य करते हैं बल्कि इससे अपना स्वास्थ्य बेहतर बनाते हैं । स्वस्थ मन-मस्तिष्क व शरीर एक स्वच्छ वातावरण में और पोषित होते हैं। स्वच्छ भारत अभियान आज राष्ट्रीय स्तर का अभियान बन चुका है। इस अभियान के मूल में भी स्वास्थ्य की . बेहतरी का ही संकल्प रहा होगा। 2 अक्टूबर 2014 को हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने इस अभियान का प्रारम्भ गाँधीजी के विचारों से प्रेरित हो पूरे देश के समक्ष राजघाट से प्रारम्भ किया था। धीरे-धीरे इससे अनेकों राज्य जुड़ गए । जो इस बात का प्रतीक है कि स्वच्छता की आवश्यकता देश की बेहतर पहचान हेतु भी आवश्यक है। हमारे देश के प्रधानमंत्री को जब झाडू लेकर मैंने सड़क पर देखा तो मुझे भी प्रेरणा मिली कि मैं भी कोई कार्य इससे जुड़ कर करूँ। इसमें हम अगर अपने आसपास स्वच्छ वातावरण रखने का बीड़ा उठा लें तो पूरा देश स्वच्छ बन जाएगा। मैं स्वच्छ भारत अभियान में सहयोग देने हेतु कोई तीन कार्य करना पसन्द करूँ तो सबसे पहले इसकी शुरुआत अपने घर से करूँगा। मेरे घर के आस-पास रहने वाले लोग अपने घरों को साफ-सुथरा कर कूड़ा गला में फेंक देते हैं। मैं चाहता हूँ मेरी गली साफ-सुथरी रहे । मैं सभी के घर जाकर अनुरोध करूँगा कि घर के बाहर रखे … कूड़ेदान में कूड़ा डालें व ढक्कन बन्द रखें ताकि सफाई कर्मी के आने से पूर्व जानवरों द्वारा वह कूड़ा बिखेरा न जा सके। मेरा दूसरा कार्य जो मैं करना चाहता हूँ वह यह है कि विद्यालय में अपने मित्रों व साथियों को प्रेरित करूँगा . कि मध्यावकाश के समय, भोजन खाते समय कूड़ा कूड़ेदान में ही डालें। जो
लोग ऐसा नहीं करेंगे उनके लिए हम सभी मित्र मिलकर तालियाँ बजाएँगे जिससे स्नेहभाव से हम उन्हें उनकी गलती के प्रति जागरूक कर सकें। अपने इन मुख्य तीन प्रयासों से मैं अपने देश को स्वच्छ रखने में अपनी अहम भूमिका ही नहीं निभाऊँगा बल्कि लोगों को भी सामंजस्य भाव से ऐसा करने की प्रेरणा दूंगा क्योंकि हम सभी का ये छोटा सा प्रयास एक महा अभियान बन हमारे देशवासियों को स्वस्थ वातावरण प्रदान करेगा व साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश की छवि सुन्दर बन सकेगी तथा वास्तव में स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत बन सकेगा। । (iv) मन की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है। वेदों में मनुष्य के मन को सबसे अधिक शक्तिशाली स्वीकारा गया है। इसी मन के अगाध प्रवाह के वशीभूत होकर मानव कर्म करता है। मनोबल की सहायता से मनुष्य कठिन से कठिन । कार्य कर लेता है। वहीं दूसरी ओर मनुष्य का मनोबल टूटने पर वह बिना लड़े ही हार जाता है। महाभारत के युद्ध के र समय जब अर्जुन अपना मनोबल हारने लगे तो कृष्ण जी ने उन्हें गीता का उपदेश देकर मनोबल बढ़ाया था। यदि कृष्ण जी द्वारा यह प्रयास न किया जाता तो इस धर्म युद्ध के परिणाम कुछ और ही हो जाते। वास्तव में व्यक्ति पराजित उस समय ही होता है जब उसका मन पराजित हो जाता है। बात उस समय की है जब मैं बहुत छोटा था। मेरे घर में ‘सुन्दरी’ नाम की एक स्त्री घरेलू काम करने आया करती थी। वह पढ़ी लिखी नहीं थी परन्तु अपनी बेटी राधा को पढ़ाना चाहती थी। मेरी माताजी सुन्दरी की इस इच्छा को पूरा करने में सहयोग देना चाहती थीं इसलिए उन्होंने सुन्दरी से कहा कि वह अपनी चार साल की बेटी को अपने साथ ले आया करे। सुन्दरी का पति भी एक मजदूर था परन्तु वह पढ़ाई को बोझ समझता था। वह कहता था कि उसकी बेटी घर का काम सीख जाए बस हम गरीबों की जिन्दगी में यही सच्चाई है। परन्तु सुन्दरी इस विचार से – सहमत नहीं थी वह अपनी बेटी को एक भली, खुशहाल जिन्दगी देना चाहती थी। धीरे-धीरे सुन्दरी की बेटी ‘राधा’ हमारे घर आने लगी। मेरी माँ उसे पढ़ाया करती थीं। थोड़े दिनों के बाद राधा को मेरी माँ ने पास के सरकारी स्कूल में भर्ती करवा दिया। राधा अपनी मेहनत से अच्छी तरह पढ़ाई करती थी। अब वह कक्षा पाँच में आ चुकी थी। सुन्दरी ऐसे ही खुशी-खुशी उसे विद्यालय छोड़ आती खुद काम पर चली जाती। ऐसे ही समय बीतता रहा। एक दिन सुन्दरी व उसके पति अपने गाँव गए हुए थे राधा हमारे घर ही रह गयी। दुर्भाग्य से उस दिन एक बस दुर्घटना में दोनों चल बसे। मेरी माताजी के लिए यह अपार दुःख का समय था। राधा मेरे घर पर ही रहती रही। मेरी माताजी ने उसकी जिम्मेदारी माँ की तरह उठानी चाही पर राधा ने किसी का अहसान लिए बिना अपना जीवन गुजारने का मन बना लिया। उसने अब विद्यालय जाना छोड़ दिया था। अपनी माँ के घरेलू काम-काज. को करती व सांझ से देर रात तक पढ़ाई करती। इस वर्ष राधा ने हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षाएँ दी थीं। राधा अपनी माँ के सपने को साकार करना चाहती थी। वह दिन भर घर का काम करती व शाम से देर रात तक पढ़ा करती। मेरी माताजी यूँ तो उसका ध्यान रखती थीं पर वह उसके साहस व स्वाभिमान का भी सम्मान करती थीं। राधा ने अपनी मेहनत से परीक्षाएँ दी। जब परिणाम घोषित हुआ तो उस प्रान्त की वह सबसे होनहार छात्र निकली। उसे 98% अंक प्राप्त हुए थे। सरकार की ओर से उसे न केवल सम्मान पत्र प्राप्त हुआ बल्कि आगे की पढ़ाई करने का सुअवसर भी प्रदान किया गया। उसने पढ़ाई जारी रखी। मेरी माताजी के सहयोग व राधा के मनोबल से सुन्दरी का सपना पूरा हो गया था। काश आज सुन्दरी जीवित होती तो अपनी बेटी को देखकर फूली न समाती। राधा आज जो कुछ भी है वह केवल उसके मनोबल का ही परिणाम था। उसने दुर्गम परिस्थितियों में भी अपने मानसिक सम्बल को बनाए रखा व एक पुलिस अधिकारी के पद तक जा पहुँची। सच ही कहा गया है “सुख-दुख सब कहँ परत है, पौरुष तजहूँ न मीत। (v) चित्र प्रस्ताव हमारे देश के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर 2014 को राजघाट से इस स्वच्छ भारत अभियान का प्रारम्भ किया ताकि महात्मा गाँधी जी का स्वच्छता के प्रति किया गया प्रयास पूरा किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के इस अभियान के समर्थन में सांसद से लेकर आम आदमी भी जुड़ गया। भला क्यों न जुड़े ? स्वच्छ भारत-स्वस्थ भारत किसका स्वप्न न होगा ? इस अभियान के प्रारम्भ होते ही नेताओं की भीड़ आए दिन झाडू हाथ में लिए अपने समर्थकों के साथ किसी गली, किसी सड़क या चौराहों पर नजर आने लगी। इतना ही नहीं मनोनीत लोगों ने भी स्वच्छ भारत अभियान में अनेकों लोगों को जोड़ा। फिल्मी दुनिया के अनेकों सितारे भी इस अभियान में बम्बई की झोपड़ बस्ती में साफ-सफाई करते नजर आए। खेल जगत भी इससे अछूता न रहा। कभी सचिन तेंदुलकर कभी सानिया मिर्जा इस अभियान की गरिमा बढ़ाने लगे। ऐसा लगने लगा जैसे झाडू के भी दिन फिर गए हैं। ऐसा ही एक प्रयास मेरे विद्यालय में भी हम मित्रों ने किया। खेल के मैदान के पास जो गड्ढा था हमने वहाँ कूड़ा डालने का स्थान खोज लिया ताकि हर दिन इधर-उधर फैले ईंट-पत्थरों को हम उस गड्ढे में डालकर इसे भर देंगे। हमारा खेल का मैदान साफ सुथरा बन गया। साथ ही हमने एक समिति बनाई जो मध्य अवकाश के समय घूमघूम कर बच्चों को विद्यालय प्रांगण में गन्दगी न फैलाने के लिए प्रेरित करती है। कहीं भी एक कागज का टुकड़ा भी दिखाई नहीं देता। टॉफी-चॉकलेट खाकर कागज जमीन में कोई नहीं फेंकता। जगह-जगह पर कूड़ा डालने के लिए कूड़ेदान रख दिए गए हैं। ऐसा न करने पर आसपास खड़े छात्र तालियों बजा कर सम्मान देते हैं, ताकि गलती करने वाले को अपनी गलती का आभास हो। गाँधीवादी तरीके से स्वच्छता के प्रति किया जाने वाला यह प्रयास पूरे देश को अपनाना चाहिए। हमारा देश हमारा
ही है। हम जैसा स्वच्छ वातावरण अपने घर में बनाए रखते हैं वैसा ही स्वच्छ वातावरण देश में बनाना होगा। देश के प्रति सौन्दर्यानुभूति रखने का प्रयास करके हम एक नागरिक के रूप में देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं। यह अभियान हमारे प्रधानमंत्री जी ने प्रारम्भ करके हमें एक दिशा दे दी है जो हमारे देश के स्वरूप को बदल सकती है। हमारी छवि दूसरों की दृष्टि में पहले से ज्यादा उत्तम बन सकेगी, जहाँ अपने देश के प्रति निष्ठावान, समर्पित नागरिक रहते हैं। आइए हम सब इस स्वच्छ भारत अभियान का हिस्सा बनें व स्वस्थ भारत की ओर एक कदम बढ़ाएँ। Question 2. सेवा में, भवदीय दिनांक : 22.03.2015 (ii) भाई को पत्र 2/170 कमला नगर प्रिय अनुज रवि, तुम तो जानते हो शारीरिक स्वास्थ्य का मुख्य आधार खेल ही है। खेलने से हम न केवल स्वस्थ रहते हैं, बल्कि अनुशासित रहना, आज्ञापालन, साहस, आत्मविश्वास जैसे गुणों को भी सीखते हैं। खेल तो मानव जीवन की संजीवनी है। इतना ही नहीं खेल में हम हर परिस्थिति का समानता से सामना करना सीखते हैं। इसलिए तुम खेलों से मुंह मत मोड़ो। खेल
तो तुम्हें तरोताजा बनायेंगे जिससे तुम अच्छी तरह अपनी पढ़ाई कर सकोगे। तुम्हारा अग्रज पत्र भेजने का पता Question 3. “हाँ, वास्तव में ये धर्मात्मा हैं।” राजा ने कहा तथा सत्कारपूर्वक विदा किया। – इसके बाद दूसरा पुत्र एक कृशकाय ब्राह्मण को लेकर आया और राजा से बोला-“ये ब्राहमण देवता चारों धामों की यात्रा कर आए हैं, कोई तामसी
वृत्ति इन्हें छू नहीं गई है। इनसे बढ़कर कोई धर्मात्मा नहीं है।” राजा ने साधु को प्रणाम किया और कहा-“निश्चय ही ये एक उत्तम साधु हैं।” साधु महाराज राजा को आशीर्वाद देकर
विदा हुए। राजा ने कहा-“यह किसान ही सबसे बड़ा धर्मात्मा है।” राजा की बात सुनकर तीनों बड़े लड़के एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। राजा ने पुनः कहा-“तीर्थयात्रा करना, भगवत आराधना में लीन रहना, दान-पुण्य करना और जपतप करना भी धर्म है किन्तु बिना किसी स्वार्थ के किसी दीन-दुःखी और कष्ट में पड़े हुए प्राणी की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। जो परोपकार करता है, वही सबसे बड़ा धर्मात्मा है।” (ii) राजा के बड़े पुत्र की दृष्टि में एक महाजन सबसे बड़ा धर्मात्मा था। उसका मुख्य कारण था कि उस महाजन ने लाखों रुपयों का दान दिया था। अनेक मन्दिर व धर्मशालाएँ बनवायी थीं तथा साधु-सन्तों और ब्राह्मणों को भोजन कराने के उपरान्त ही वह भोजन करते थे। (iii) साधु राजा के तीसरे पुत्र के साथ आया था। उसका परिचय दिया गया कि ये साधु महाराज सप्ताह में केवल एक बार दूध पीकर रहते हैं। भयंकर सर्दी में जल में खड़े रहते हैं और गर्मी में पंचाग्नि तापते हैं। ये सबसे बड़े धर्मात्मा हैं। (iv) किसान को राजा के सामने राजा का सबसे छोटा पुत्र लेकर आया। वह किसान निर्धन था। राजा को उसके पुत्र ने बताया कि यह एक कुत्ते के शरीर पर लगे घाव को धो रहा था। पता नहीं कि यह धर्मात्मा है या नहीं। आप ही इससे पूछ लीजिए। राजा ने किसान को ही सबसे बड़ा धर्मात्मा इसलिए कहा क्योंकि वह धर्म जानता नहीं था परन्तु उसका पालन करता था। सेवाभाव व दानशीलता उसका व्यवहार था। राजा ने बिना किसी स्वार्थ के किसी दीन-दुखी की सेवा करने को सबसे बड़ा धर्म माना। किसान इसी धर्म का पालन करने वाला था। सच्चा परोपकारी था। सबसे बड़ा धर्मात्मा था। (v) प्रस्तुत गद्यांश हमें शिक्षा देता है कि तीर्थयात्रा करना, भगवत आराधना में लीन रहना, दान-पुण्य करना एवं जप-तप करना ही धर्म नहीं होता बल्कि बिना किसी स्वार्थ भाव से किसी दीन-दुखी की सेवा करना ही सच्चा धर्म है। हमें ऐसा ही परोपकारी जीवन जीना चाहिए। Question 4. (ii) पर्यायवाची शब्द (iii) शब्दों के विपरीत शब्द (iv) भाववाचक संज्ञा में परिवर्तन (v) मुहावरों का वाक्य प्रयोग (vi) कोष्ठक में दिए गए वाक्यों में निर्देशानुसार परिवर्तन – SECTION – B (40 Marks)
ICSE Class 10 Hindi Previous Years Question Papersविश्वासपात्र को जीवन की एक ओषधि क्यों कहा गया है?अच्छी मित्रता के अभाव में जीवन नीरस हो जाता है। इसलिए मानव जीवन में मित्रता की बहुत उपयोगिता है। जिस प्रकार धर्म और विवेक मनुष्य को पाप से बचाते हैं, उसी प्रकार एक विश्वासपात्र मित्र अपने मित्र को संकट के समय बचाता है। एक सच्चा मित्र अपने मित्र को कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग की तरफ ले जाता है।
विश्वासपात्र मित्र जीवन की औषधि है कैसे?सच्चामित्र हमारे लिए प्रेरणा देने वाला, सहायक और मार्गदर्शक बनकर हमें जीवन की सही राह की ओर ले जाने वाला होता है। निराशा के क्षणों में सच्चा मित्र हमारी हिम्मत बढ़ाने वाला होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तब वह हमारी हिम्मत बढ़ाता है।
विश्वासपात्र मित्र औषध के समान होता हैAnswer: Answer: जिस प्रकार औषधि शरीर को रोगों से मुक्त करती है और तरह - तरह की बीमारियों को दूर करके व्यक्ति को स्वास्थ्य प्रदान करती है । उसी प्रकार यदि जीवन में एक सच्चा या विश्वासपात्र मित्र हो तो वह व्यक्ति के जीवन की कठिनाई रूपी रोगो को दूर कर देता है ।
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