विश्व में सबसे ज्यादा अनाज कौन से देश में होता है? - vishv mein sabase jyaada anaaj kaun se desh mein hota hai?

दुनिया में सरकार समर्थित परिवार नियोजन लागू करने वाला पहला देश । विश्व का सबसे बड़ा डाक नेटवर्क भारत में है । सर्वाधिक पशुधन आबादी । दूध का सबसे बड़ा उत्पादक । दुनिया में बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक सोने के आभूषण का सबसे बड़ा उपभोक्ता। जूट का सबसे बड़ा उत्पादक । अदरक का सबसे बड़ा उत्पादक । केले का सबसे बड़ा उत्पादक । अरंडी के बीजों का सबसे बड़ा उत्पादक । आमों का सबसे बड़ा उत्पादक । प्याज का सबसे बड़ा उत्पादक । पपीते का सबसे बड़ा उत्पादक । दाल का सबसे बड़ा उत्पादक । नींबू और मौसम्बी का सबसे बड़ा उत्पादक । चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, चाय उत्पादन मे पहला स्थान चीन का है । गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, गन्ना उत्पादन मे पहला स्थान ब्राज़िल का है । गेहूँ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, गेहुँ उत्पादन मे पहला स्थान चीन का है । आलू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, आलू उत्पादन मे पहला स्थान चीन का है । लहसुन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, पहला स्थान चीन का है । चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, पहला स्थान चीन का है । मूंगफली का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, पहला स्थान चीन का है । रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, पहला स्थान चीन का है । संतरे का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, पहला स्थान ब्राजील का है| तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, पहला स्थान चीन का है । विश्व मे सबसे ज्यादा कृषि योग्य भूमि संयुक्त राज्य अमेरिका में है जिसके बाद भारत का स्थान है । भारत उर्वरक का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है । भारत में थोरियम का सबसे बड़ा भंडार हैं । यह भारत के केरल राज्य में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। नोट : कृषि जानकारी खाद्य एवं कृषि संगठन की वेबसाइट पर उपलब्ध ताजा आंकड़ों के अनुसार है।

गेहूं ( वैज्ञानिक नाम : Triticum aestivum),[1] विश्व की प्रमुख खाद्यान्न फसल है जिसकी खेती विश्व भर में की जाती है। विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली अन्य फसलों मे मक्का के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली फसल है, धान का स्थान गेहूं के ठीक बाद तीसरे स्थान पर आता है। वैज्ञानिक दृष्टि से गेहूँ घास कुल का पौधा है[2] और मध्य पूर्व के लेवांत क्षेत्र का देशज है।

गेहूं के दाने और दानों को पीस कर प्राप्त हुआ आटा रोटी, डबलरोटी (ब्रेड), कुकीज, केक, दलिया, पास्ता, रस, सिवईं, नूडल्स आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।[3] गेहूं का किण्वन कर बियर[4], शराब, वोद्का[5] और जैवईंधन[6] बनाया जाता है। गेहूं की एक सीमित मात्रा मे पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है और इसके भूसे को पशुओं के चारे या छत/छप्पर के लिए निर्माण सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।[7][8]

हालांकि दुनिया भर मे आहार प्रोटीन और खाद्य आपूर्ति का अधिकांश गेहूं द्वारा पूरा किया जाता है, लेकिन गेहूं मे पाये जाने वाले एक प्रोटीन ग्लूटेन के कारण विश्व का 100 से 200 लोगों में से एक व्यक्ति पेट के रोगों से ग्रस्त है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की इस प्रोटीन के प्रति हुई प्रतिक्रिया का परिणाम है। (संयुक्त राज्य अमेरिका के आंकड़ों के आधार पर)[9][10][11]

गेहूँ (ट्रिटिकम जाति) विश्वव्यापी महत्व की फसल है। यह फसल नानाविध वातावरणों में उगाई जाती है। यह लाखों लोगों का मुख्य खाद्य है। विश्व में कुल कृष्य भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है यद्यपि एशिया में मुख्य रूप से धान की खेती की जाती है, तो भी गेहूँ विश्व के सभी प्रायद्वीपों में उगाया जाता है। यह विश्व की बढ़ती जनसंख्या के लिए लगभग २० प्रतिशत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। वर्ष २००७-०८ में विश्वव्यापी गेहूँ उत्पादन ६२.२२ करोड़ टन तक पहुँच गया था। चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विशालतम उत्पादक है। गेहूँ खाद्यान्न फसलों के बीच विशिष्ट स्थान रखता है। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन गेहूँ के दो मुख्य घटक हैं। गेहूँ में औसतन ११-१२ प्रतिशत प्रोटीन होता हैं। गेहूँ मुख्यत: विश्व के दो मौसमों, यानी शीत एवं वसंत ऋतुओं में उगाया जाता है। शीतकालीन गेहूँ ठंडे देशों, जैसे यूरोप, सं॰ रा॰ अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस राज्य संघ आदि में उगाया जाता है जबकि वसंतकालीन गेहूँ एशिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक हिस्से में उगाया जाता है। वसंतकालीन गेहूँ १२०-१३० दिनों में परिपक्व हो जाता है जबकि शीतकालीन गेहूँ पकने के लिए २४०-३०० दिन लेता है। इस कारण शीतकालीन गेहूँ की उत्पादकता वंसतकालीन गेहूँ की तुलना में अधिक होती है। गेहूँ की फसल के बीज वाले भाग को बाली या दंगी कहते हैं।

गुणवत्ता को ध्यान में रखकर गेहूँ को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है: मृदु गेहूँ एवं कठोर गेहूँ।

ट्रिटिकम ऐस्टिवम (रोटी गेहूँ) मृदु गेहूँ होता है और ट्रिटिकम डयूरम कठोर गेहूँ होता है।

भारत में मुख्य रूप से ट्रिटिकम की तीन जातियों जैसे ऐस्टिवम, डयूरम एवं डाइकोकम की खेती की जाती है। इन जातियों द्वारा सन्निकट सस्यगत क्शेत्र क्रमश: ९५, ४ एवं १ प्रतिशत है। ट्रिटिकम ऐस्टिवम की खेती देश के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि डयूरम की खेती पंजाब एवं मध्य भारत में और डाइकोकम की खेती कर्नाटक में की जाती है।

गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्में[संपादित करें]

गेहूँ से निर्मित विभिन्न उत्पाद

अच्छी फसल लेने के लिए गेहूं की किस्मों का सही चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। विभिन्न अनुकूल क्षेत्रों में समय पर, तथा प्रतिकूल जलवायु, व भूमि की परिस्थितियों में, पक कर तैयार होने वाली, अधिक उपज देने वाली व प्रकाशन प्रभावहीन किस्में उपलब्ध हैं। उनमें से अनेक रतुआरोधी हैं। यद्यपि `कल्याण सोना' लगातार रोग ग्रहणशील बनता चला जा रहा है, लेकिन तब भी समय पर बुआई और सूखे वाले क्षेत्रों में जहां कि रतुआ नहीं लगता, अच्छी प्रकार उगाया जाता है। अब `सोनालिका' आमतौर पर रतुआ से मुक्त है और उन सभी क्षेत्रों के लिए उपयोगी है, जहां किसान अल्पकालिक (अगेती) किस्म उगाना पसन्द करते हैं। द्विगुणी बौनी किस्म `अर्जुन' सभी रतुओं की रोधी है और मध्यम उपजाऊ भूमि की परिस्थितियों में समय पर बुआई के लिए अत्यन्त उपयोगी है, परन्तु करनल बंटा की बीमारी को शीघ्र ग्रहण करने के कारण इसकी खेती, पहाड़ी पट्टियों पर नहीं की जा सकती। `जनक' ब्राऊन रतुआ रोधी किस्म है। इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी उगाने की सिफारिश की गई है। `प्रताप' पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वर्षा वाले क्षेत्रों में मध्यम उपजाऊ भूमि की परिस्थितियों में अच्छी प्रकार उगाया जाता है। `शेरा' ने मध्य भारत व कोटा और राजस्थान के उदयपुर मंडल में पिछेती, अधिक उपजाऊ भूमि की परिस्थितियों में, उपज का अच्छा प्रदर्शन किया है।

`राज ९११' मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र और दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में सामान्य बुआई व सिंचित और अच्छी उपजाऊ भूमि की परिस्थिति में उगाना उचित है। `मालविका बसन्ती' बौनी किस्म महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश की अच्छी सिंचाई व उपजाऊ भूमि की परिस्थितियों के लिए अच्छी है। `यू पी २१५' महाराष्ट्र और दिल्ली में उगाई जा रही है। `मोती' भी लगातार प्रचलन में आ रही है। यद्यपि दूसरे स्थानों पर इसको भुलाया जा रहा है। पिछले कई वर्षों से `डबल्यू जी-३५७' ने बहुत बड़े क्षेत्र में कल्याण सोना व पी वी-१८ का स्थान ले लिया है। भिन्न-भिन्न राज्यों में अपनी महत्वपूर्ण स्थानीय किस्में भी उपलब्ध हैं। अच्छी किस्मों की अब कमी नहीं हैं। किसान अपने अनुभव के आधार पर, स्थानीय प्रसार कार्यकर्ता की सहायता से, अच्छी व अधिक पैदावार वाली किस्में चुन लेता है। अच्छी पैदावार के लिए अच्छे बीज की आवश्यकता होती है और इस बारे में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता।

भूमि का चुनाव: गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए मटियार दुमट भूमि सबसे अच्छी रहती है, किन्तु यदि पौधों को सन्तुलित मात्रा में खुराक देने वाली पर्याप्त खाद दी जाए व सिंचाई आदि की व्यवस्था अच्छी हो तो हलकी भूमि से भी पैदावार ली जा सकती है। क्षारीय एवं खारी भूमि गेहूं की खेती के लिए अच्छी नहीं होती है। जिस भूमि में पानी भर जाता हो, वहां भी गेहूं की खेती नहीं करनी चाहिए।

खेत की मिट्टी को बारीक और भुरभुरी करने के लिए गहरी जुताई करनी चाहिए। बुआई से पहले की जाने वाली परेट (सिंचाई) से पूर्व तवेदार हल (डिस्क हैरो) से जोतकर पटेला चला कर, मिट्टी को समतल कर लेना चाहिए। बुआई से पहले २५ कि। ग्रा। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से १० प्रतिशत बी। एच। सी। मिला देने से फसल को दीमक और गुझई के आक्रमण से बचाया जा सकता है। यदि बुआई से पहले खेत में नमी नहीं है तो एक समान अंकुरण के लिए सिंचाई आवश्यक है।

विभिन्न देशों में गेहूँ उत्पादन[संपादित करें]

गेहूँ की कटाई करती हुइ एक महिला, रायसेन जिला, मध्य प्रदेश

गेहूँ उत्पादन का इतिहास[संपादित करें]

गेहूँ बहुत पहले से विश्व की एक महत्वपूर्ण फसल रही है। इसकी उत्पत्ति के सुनिश्चित समय एवं स्थान के बारे में सही सूचना उपलब्ध नहीं है। जिस गेहूं की खेती की जाती है उस गेहूँ के प्रजनक माने जाने वाले जंगली गेहूँ एवं घासों का वितरण इस विश्वास की पुश्टि करता है कि गेहूँ दक्षिण-पूर्वी एशिया में उत्पन्न हुआ था। प्रागैतिहासिक काल में यूनान, फारस, टर्की एवं मिस्र में गेहूँ की कुछ जातियों की खेती की जाती थी। भारत में, मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाइयों से प्राप्त प्रमाण सूचित करते हैं कि यहाँ गेहूँ की खेती 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले प्रारम्भ हुई थी।[14]

भारत में भी गेहूँ का उपयोग हजारों वर्षों से हो रहा है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से पता चला कि साढ़े चार हजार साल पहले सिंधु घाटी की सभ्यता में गेहूं की खेती हो रही थी। तब तक हमने गेहूं के भंडारण की भी क्षमता प्राप्त कर ली थी। वहां पुरातात्विक खुदाई में 169 फीट लंबा और 135 फीट चौड़ा जो अनाज भंडारगृह मिला, उसमें गेहूं के अवशेष मिले। इसका अर्थ यह है कि रोम में 300 ईसा पूर्व गेहूं के जो जीवाश्म मिले हैं, उससे भी दो हजार वर्ष पहले सिंधु घाटी में गेहूं की उन्नत खेती हो रही थी।

सिंधु घाटी सभ्यता में गेहूं और जौ की खेती के और भी बहुत प्रमाण हैं। केवल गेहूं के जरिए ही भारत दुनिया को बता सकता है कि सभ्यता के विकास में हमारी भूमिका क्या रही है और गेहूं की खेती में हम कच्चे खिलाड़ी नहीं, हमें इसका लंबा अनुभव है।[15]

सबसे ज्यादा अनाज कौन से देश में पाया जाता है?

इन्वेस्टोपीडिया डॉट कॉम के अनुसार चीन बहुत आराम से इस सूची में नंबर वन है. वो दुनिया में सबसे ज्यादा अनाज, सब्जियां और फल पैदा करता है. चीन में खुद उसकी पैदावार की सबसे ज्यादा खपत है बल्कि बड़ा आयातक भी है.

विश्व का सबसे बड़ा अनाज उत्पादक देश कौन सा है?

अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक देश अनाज उत्पादन के मामले में चीन सबसे आगे हैं। चीन 582,660,863 टन प्रति वर्ष उत्पादन मात्रा के साथ दुनिया का सबसे बड़ा अनाज उत्पादक है। चीन के बाद अमेरिका 475,983,881 टन वार्षिक उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर आता है।

कृषि में सबसे आगे कौन सा देश है?

ब्राजील अग्रणी कृषि देशों में से एक है। ब्राजील में कुल भूमि का लगभग 41% पर खेती होती है। ब्राजील में 2.1 बिलियन एकड़ की भूमि है और खेती के लिए लगभग 867.4 मिलियन एकड़ भूमि खेती योग्य है। देश में शकरकंद, मक्का, मूंगफली, तंबाकू, और कई अन्य फसलों की खेती होती है।

भारत के पास कितना अनाज है?

वहीं, कई जनउपयोगी योजनाओं के तहत देश की अभी सालाना जरूरत 5 से 6 करोड़ टन अनाज की होती है। साथ ही भारत 2019-20 में 29.2 करोड़ टन अनाज का उत्पादन करने वाला है। उन्होंने कहा कि जहां तक गेहूं और चावल की बात है तो देश को चिंता करने की बिल्कुल जरूरत नहीं है।