वस्तु पर लगाए गए बल के कारण आकार में कमी को क्या कहते हैं - vastu par lagae gae bal ke kaaran aakaar mein kamee ko kya kahate hain

जब हम किसी चीज को ऊपर फेंकते है तो वह नीचे क्यो आ जाती है. कभी सोचा है आपने इस बारे में. गुरुत्वाकर्षण का बल उस चीज को नीचे खीच लेता है. तो आखिर यह गुरुत्वाकर्षण है क्या? यह कैसे पैदा होता है? इसी तरह के रोचक सवालों को जानने के लिए पढ़ते है गुरुत्वाकर्षण के बारे में:

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (newton's law of gravitation): किन्हीं दो पिंडो के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल पिंडो के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है.
माना दो पिंड जिनका द्रव्यमान m1 एवं m2 है, एक दूसरे से R दूरी पर स्थ‍ित है, तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण बल, F = G  m1m2/R^2 होता है. जहां G एक नियतांक है, जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक कहते हैं और जिसका मान 6.67 X 10^-11 Nm^2 / kg^2 होता है.

गुरुत्व (gravity): न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिंडो के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है. यदि इनमें से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस आकर्षण बल को गुरुत्व कहते हैं. यानी कि, गुरुत्व वह आकर्षण बल है, जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खींचती है. इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होती है, उसे गुरुत्व जनित त्वरण (g) कहते हैं, जिनका मान 9.8 m/s^2 होता है.
गुरुत्व जनित त्वरण (g) वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है.

g के मान में परिवर्तन:
i) पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है.
ii) 'g' का मान महत्तम पृथ्वी के ध्रुव (pole) पर होता है.
iii) 'g' का मान न्यूनतम विषुवत रेखा (equator) पर होता है.
iv) पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ने पर 'g' का मान कम हो जाता है.
v) पृथ्वी की घूर्णन गति घटने पर 'g' का मान बढ़ जाता है.

नोट: यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुनी अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी हुई वस्तु का भार शून्य हो जाएगा.

लिफ्ट में पिंड का भार (weight of a body in lift):
i) जब लिफ्ट ऊपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है.  
ii) जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिंड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है.
iii) जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है, तो लिफ्ट में स्थित पिंड के भार में कोई परिवर्तन प्रतीत नही होता.
iv)
यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिंड की भांति नीचे गिरती है. ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिंड का भार शून्य होता है. यही भारहीनता की स्थति है.
v) यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिंड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा.

ग्रहो की गति संबंधित केप्लर का नियम:
i)
प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (eliiptical) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिंदु पर स्थति होता है.
ii) प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग (areal velocity) नियत रहता है. इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है, तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है, तो उसका वेग कम हो जाता है.
iii) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल (T) कहते है. परिक्रमण काल का वर्ग (T^2) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी (r) के घन (r^3) के अनुक्रमानुपाती होता है. यानी कि T^2 ∝ r^3

यानी कि सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण काल भी अधिक होता है. उदाहरण: सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्रमण काल 88 दिन है, जबकि दूरस्थ ग्रह वरुण (neptune) का परिक्रमण काल 165 वर्ष है.

नोट: आईएयु (I.A.U.) ने यम (PLUTO) के ग्रह की श्रेणी से निकाल दिया है इसलिए अब दूरस्थ ग्रह वरुण है.

उपग्रह (satellite): किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं. जैसे चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है.

उपग्रह की कक्षीय चाल (orbital speed of  satellite):
i) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से उंचाई पर निर्भर करती है. उपग्रह पृथ्वी तल से जितना दूर होगा, उतनी ही उसकी चल कम होगी.
ii) उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है. एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी.
नोट: पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किमी./ सेकंड होती है.

उपग्रह का परिक्रमण काल (orbital speed of a satellite): उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं
अतः परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि/कक्षीय चाल
i) उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊंचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना दूर होगा उतना ही अधिक उसका परिक्रमण काल होता है.
ii) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नही करता है.
नोट: पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह पर परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है.

भू-स्थायी उपग्रह (geo-stationary satellite):
ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के अक्ष के लंबवत तल में पश्चिम से पूर्व की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल (24 घंटे) के बराबर होता है, भू-स्थायी उपग्रह कहलाता है. यह उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36000 किमी. की ऊंचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है. भू-तुल्यकालिक (geosynchronous) कक्षा में संचार उपग्रह स्थापित करने की संभावना सबसे पहले ऑथर सी क्लार्क ने व्यक्त की थी.

पलायन वेग (escape velocity):

पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड की पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है, पृथ्वी पर वापिस नहीं आता. पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2 km/s है यानी कि पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.2 km/s या उससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी तल पर वापिस नहीं आएगी.

उपग्रह के लिए कक्षीय वेग Vo = √gRe तथा पृथ्वी तल से पलायन वेग Ve = √2gRe' अतः Ve = √2Vo यानी कि पलायन वेग कक्षीय वेग का √2 (यानी कि 41%) बढ़ा दिया जाए तो वह उपग्रह अपनी कक्षा को छोड़कर पलायन कर जाएगा.