वर्णिक छंद varnik chhand Show
वर्णिक छन्द में वर्णों की संख्या निश्चित और नियमित होती है । इनमें मात्राओं की संख्या निश्चित व नियमित हो आवश्यक नहीं है । गणों के आधार पर इनके लक्षणों को पुष्ट किया जाता है । यति का स्थान निर्धारित होता हैं । वर्णिक छन्द के दो भेद माने गये हैं साधारण 1 से 26 वर्ण तक के छन्द साधारण छन्द कहलाते हैं । दण्डक 26 से अधिक वर्ण वाले दण्डक कहलाते हैं । प्रमुख वर्णिक छंदकवित्त (मनहरण) छंदयह मुक्तक छंद है । इसमें वर्णों की गिनती की जाती है । इसमें आठ चरण तथा चरणान्त गुरु होता है । इसमें कुल वर्ण 31 व 8-8-8-7 या 16-15 वर्णों पर यति होती है । उदाहरण पात भरी सहरी सकल सुत बारे - बारे , केवट की जाति कुछ वेद न पढ़ाइहौं । मेरो परिवार सब याहि लागि राजा जू हौं, दीन वित्त-हीन कैसे दूसरी गढ़ाइहौं ? गौतम की घरनी ज्यौं तरनी तरेगी मेरी , प्रभु सो निषाद ह्वै के बात न बढ़ाइहौं । तुलसी के ईस राम ! रावरे सौं साँची कहौं , बिना पग धोये नाथ ! नाव न चढ़ाइहौं ।। बरन बरन तरु फूले उपवन बन , सोई चतुरंग संग दल लहियत हैं । बंदी जिमि बोलत बिरद बीर कोकिल हैं , गुंजत मधुप गन गुन गहियत हैं । आवै आस - पास पुहुपन की सुबास सोई , सौंधे के सुगंध माँझ सने रहियत हैं । सोभा कौं समाज , सेनापति सुख - साज , आज , आवत बसंत रितुराज कहियत हैं ।। बिरह बिथा की कथा अकथ अथाह महा कहत बनै न जौ प्रवीन सुकवीनि सौं । कहै ' रतनाकर ' बुझावन लगै ज्यों कान्ह ऊधौ कौं कहन हेतु व्रज जुव तीनि सौं । गहबरि आयौ गरौ भभरि अचानक त्यौं प्रेम पर्यो चपल चुचाइ पुतरीनि सौं । नैकु कही बैननि अनेक कही नैननि सौं रही सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनि सौं । सवैया छंदयह वर्णिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 22 वर्णो से लेकर 28 वर्णों तक के सवैया छन्द होते है । इसके लगभग 11 भेद हैं । सवैया के भेद
कुल वर्ण 22 । सात भगण अन्त में एक गुरु । उदाहरण ‘राम कौ काम कहा?’ ‘रिपु जीतहिं’ ‘कौन कबै रिपु जीत्यौ कहाँ?’ ‘बालि बली’, ‘छल सों’, ‘भृगुनंदन गर्व हर्यो’, ‘द्विज दीन महा।।’ ‘दीन सो क्यौं? छिति छत्र हत्यौ बिन प्राणानि हैहयराज कियो।’ ‘हैहय कौन?’ ‘वहै, बिसारी? जिन खेलत ही तुम्हैं बाँधि लियो’।।
कुल वर्ण 23 । सात भगण अन्त में दो गुरु । उदाहरण या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिह , पुर को तजि डारौं , आठहुँ सिद्धि नदी निधि को सुख नंद की गाय चराय बिसारौं । रसखान कहैं इन नैनन ते ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं , कोटिन हूँ , कलधौत के धाम करील की कुंजन ऊपर बारौं ।।
कुल वर्ण 23 । प्रत्येक चरण में 7 जगण अन्त में एक लघु एक गुरु । उदाहरण हिये वनमाल रसाल घरे , सिरे मोर किरीट महा लसिबो , कसे कटि पीत - पटी , लकुटी कर , आनन पै मुरली रसिबो । कालिंदी के तीर खड़े बलबीर अहीरन बाँह गये हँसिबो , सदा हमरे हिय मंदिर में यह बानक सों करिये बसिबो ।।
कुल वर्ण 23 । सात भगण , अन्त में एक गुरु तथा एक लघु । उदाहरण भासत ग्वाल सखी गन में हरि राजत तारन में जिमि चन्द , नित्य नयो रचि रास मुद्रा बज मे हरि खेलत आनंद कन्द । या छबि काज भये ब्रज बासि चकोर पुनीत लखै नंद नन्द , धन्य वही नर नार नारि सराहत या छवि काटत जो भव फन्द ।।
कुल वर्ण 24 । प्रत्येक चरण में 8 भगण । उदाहरण मानुस हों तो वही रसखानि , बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारिन , जो पसु ही तो कहा बसु मेरो , चरी नित नंद की धेनु मझारिन । पाहन हौं तो वही गिरि को जु भयो कर पत्र पुरंदर धारनि , जो खग ही तो बसेरो करी मिलि , कालिदि कूल कंदब की डारनि ।।
कुल वर्ण 24 । प्रत्येक चरण में 8 सगण । उदाहरण इसके अनुरूप कहै किसको , यह देश सुदेश समुन्नत है । समझे सुरलोक समान उसे , उनका अनुमान असंगत है । कवि कोविद - वृन्द बखान रहे , सबका अनुभूत यही मत है । उपमान विहीन रचा विधि ने , बस भारत के सम भारत है ।
कुल वर्ण 24 । प्रत्येक चरण में 7 भगण और एक रगण । उदाहरण भासत रूद्रज ध्यानिन में पुनि सार सुतीजस बानिन ठानिये , नारद ज्ञानिन पानिन गंग सुरानिन में विकटोरिय मानिये । दानिन में जस कर्ण बड़े तस भारत अम्ब भली उर आनिये , बेटन के दुख मेटन में कबहु अरसात नहीं पुर जानिये ।।
कुल वर्ण 25 । प्रत्येक चरण में 8 सगण अन्त में एक गुरु । उदाहरण सुख - शान्ति रहे सब ओर सदा , अविवेक तथा अघ पास न आवें । गुण - शील तथा बल - बुद्धि बढ़ें , हठ - दैर - विरोध घटे मिट जावें । सब उन्नति के पथ में विचरे रति पूर्ण परस्पर पुण्य कमावें । दृढ़ निश्चय और निरामय होकर निर्भय जीवन में जय पावें ।।
कुल वर्ण 25 । प्रत्येक चरण में 8 सगण अन्त में एक लघु । उदाहरण सबसों लघुआपहिं नियजू यह धर्म सनातन जान सुजान । जबहिं सुनती अस आनि दसै . उर संपति सर्व विराजत आन । प्रभु व्याप रहयो सचराचर में तजि बैर सुभक्ति सजौ मतिमान । नित चम पदै अरविंदन को मकरंद पियो सुमिलिंद समान ।।
कुल वर्ण 25 । प्रत्येक चरण में 8 जगण अन्त में एक लघु । उदाहरण जुयोग लवंग लतानि लयो तब सूझ परे न कछू घर बाहर । अरे मन चंचल नेक विचार नहीं यह सार असार सरासर । भजौ रघुनन्दन पाच निकंदन श्री जग बंदन नित्य हियाधर । तजौ कुमती धरिये सुमति शुभ रामहि राम रटौ निसि बासर ।।
कुल वर्ण 26 । प्रत्येक चरण में 8 सगण और अन्त में दो लघु वर्ण । उदाहरण सबसों ललुआ मिलिके रहिये मन जीवन वन मूरि सुनौ मनमोहन इनि बोधि खयाय पियाय सखा सँग जाहु कहै मृदु सौं वन जोहन धरि मात रजायसु सोस हरि नित यामुन कच्छ फिर सह गोपन यहि भाँति हरी जसुदा उपदेसहि माषत नेह लहैं सुख सों धन ।। द्रुत विलम्बित छंदइसमें चार चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण , भगण ,भगण रगण आते हैं । सूत्र – द्रुतविलम्बित होत न भा भ रा उदाहरण दिवस का अवसान समीप था , गगन था कुछ लोहित हो चला । तरुशिखा पर थी अब राजति , कमलिनी कुल वल्लभ की प्रभा ।। गगन मण्डल में रज छा गई , दश दिशा बहु शब्दमयी हुई । विशद गोकुल के प्रति मेह में , बह चला वर स्रोत विनोद का ।। मालिनी छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 15 वर्ण तथा 8-7 वर्णों पर यति होती है । प्रत्येक चरण में दो नगण , एक मगण , दो यगण होते हैं । सूत्र – न न म य य मालिनी भोगिलोके उदाहरण प्रिय पति वह मेरा , प्राण प्यारा कहाँ है ? दुख जलनिधि में डूबी , का सहारा कहाँ है ? लख मुख जिसका मैं , आज लौं जी सकी हूँ । वह हृदय हमारा नैन तारा कहाँ है ? वंशस्थ छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण , तगण , जगण , रगण व चरणान्त में लघु-गुरु होते हैं । सूत्र – ज तो तू वंशस्थ मुदिरितं ज रो उदाहरण दिनान्त था , थे दीननाथ डूबते , सधेनु आते गृह ग्वाल-बाल थे , दिगन्त में गोरज थी समुत्थिता , विषाण नाना बजते सधेनु थे । मुकुंद चाहे वसुदेव पुत्र हों , कुमार होवें अथवा ब्रजेश के । बिके उन्हीं के कर सर्वनेत्र हैं , बसे हुए हैं मन-नेत्र में वही ।। शिखरिणी छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण में क्रमशः यगण , मगण , नगण , सगण , भगण एवं चरणान्त में लघु-गुरु वर्ण होते हैं । सूत्र – य म न स भ ला गा शिखरिणी उदाहरण अनूठी आभा से , सरस सुषमा से सुरस से बना तो देती थी बहु गुणमयी भू विपिन की निराले फूलों की , विविध दलवाली अनुपमा जड़ी बूटी नाना , बहु फलवती थी विलसती ।। शार्दुल विक्रीडित छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं । यति 12, 7 वर्णों पर होती है । प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, और अंत में गुरु वर्ण होते हैं । उदाहरण सायंकाल हवा समुद्र-तट की आरोग्यकारी यहाँ। प्रायः शिक्षित सभ्य लोग नित ही जाते इसी से वहाँ।। बैठे हास्य-विनोद-मोद करते सानंद वे दो घड़ी। सो शोभा उस दृश्य की ह्रदय को है तृप्ति देती बड़ी।। मंदाक्रांता छंदसमवर्ण छंद है । चार चरण , प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं । यति 4-6-7 पर होती है । प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण , भगण , नगण , तगण , तगण तथा चरणान्त में दो गुरु होते हैं । उदाहरण तारे डूबे, तम टल गया, छा गई व्योम-लाली । पक्षी बोले, तमचर, जगे, ज्योति फैली दिशा में ।। शाखा डोली तरु निचय की, कंज फूले सरों के । धीरे-धीरे दिनकर कढ़े, तामसी रात बीती ।। सूखी जाती , मलिन लतिका , जो धरा में पड़ी हो तो तू पंखों , निकट उसको , श्याम के ला गिराना यों सीधे तू प्रगट करना , प्रीति से वंचिता हो मेरा होना , अति मलिन औ , सूखते नित्य जाना इंद्रवजा छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 11 वर्ण तथा 5-11 / 6-11 पर यति होती है । प्रत्येक चरण में क्रमशः दो तगण एक जगण व दो गुरु वर्ण होते हैं । उदाहरण धन्या महि में शक राजधानी । माया सशुद्धोधन धन्य धन्या । धन्या कथा श्री धन जन्म की जो । धन्या बनाती कवि कीर्ति को भी । तूही बसा है मन में हमारे । तू ही रमा है इस विश्र्व में भी ।। तेरी छटा है मनमुग्धकारी । पापापहारी भवतापहारी ।। उपेंद्रवज्रा छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण , तगण , जगण व दो गुरु होते हैं । उदाहरण अनेक ब्रह्मादि न अंत पायो । अनेकधा वेदन गीत गायो ।। तिन्हें न रामानुज बन्धु पायो । सुनो सुधि केवल ब्रह्म मानों ।। बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै । परन्तु पूर्वापर सोच लीजै ।। बिना विचारे यदि काम होगा । कभी न अच्छा परिणाम होगा ।। उपजातिप्रत्येक चरण में 11 वर्ण , इन्द्रवज्रा व उपेन्द्रवज्रा के योग से निर्मित मिश्रित छंद है । उदाहरण संसार है एक अरण्य भारी । हुए जहाँ है हम मार्गचारी । जो कर्म रूपी न कुठार होगा । तो कोन निष्कंटक भार होगा ।। भुजंग प्रयात छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं । प्रत्येक चरण में क्रमशः चार यगण होते हैं । उदाहरण बनाती रसोई सभी को खिलाती इसी काम से आज मैं तृप्ति पाती रहा किन्तु मेरे लिए एक रोना खिलाऊँ किसे मैं अलोना सलोना अरी व्यर्थ है व्यंजनों की बड़ाई । हटा थाल तू क्यों इसे साथ लाई ।। वही पार है जो बिना भूख भावै । बता किंतु तू ही उसे कौन खावै ।। अरिल्ल छंदचार चरण , प्रत्येक चरण में 16 वर्ण होते हैं । चरणान्त में यगण या दो लघु वर्ण होते हैं , परन्तु जगण का निषेध है । उदाहरण ईश्वर ही है सब सुखदाता भक्तों का वह सब विधि त्राता । इसीलिए भव मोह छोड़कर रहो उसी से नेह जोड़कर ।। वर्णिक छंद में कितने गुण होते हैं?2. जिस छंद रचना में प्रत्येक चरण में २६ से अधिक वर्ण होते हैं , उसे दण्डक वर्णिक छंद कहा जाता है ।
वर्णिक छंद के कुल कितने भेद होते हैं?यह वर्णिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । प्रत्येक चरण में 22 वर्णो से लेकर 28 वर्णों तक के सवैया छन्द होते है । इसके लगभग 11 भेद हैं ।
वर्णिक छंद में कितनी मात्राएं होती हैं?इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। तुक पहले चरण की दूसरे चरण से और तीसरे चरण की चौथे चरण से मिलती है। इसका अंत गुरु लघु (SI) से होता है।
वर्णिक छंद क्या होता है?वर्णिक छंद उसे कहा जाता है जिसके प्रत्येक चरण में वर्णों का क्रम तथा वर्णों की संख्या नियत रहती है। जब लघु गुरु का क्रम और उनकी संख्या निश्चित है तो मात्रा स्वयंमेव सुनिश्चित है। वर्णिक छंद की रचना में उस के वर्णों के क्रम का सम्यक ज्ञान और पद के मध्य की यति या यतियों का ज्ञान होना ही पर्याप्त है।
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