धरती में कौन सा बल होता है? - dharatee mein kaun sa bal hota hai?

कृष्ण दे रखा है किस बल के कारण चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर गति करती है उसमें बताना ठीक है तो हम जानते हैं दोस्तों कि चंद्रमा क्या करती दोस्तों पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाती है ठीक है यहां पर अगर देखे हम दोस्तों की यहां पर हमारा पृथ्वी है अगर ठीक है सेंटर पर हमारा पृथ्वी अगर हम देखें ठीक है दोस्तों यहां पर अगर हम हमने देखा दोस्तों की पृथ्वी है अब पृथ्वी के चारों और क्या हो रहा दोस्तों चंद्रमा जो है यहां पर चंद्रमा ठीक है अब चंद्रमा क्या कर रही है दोस्तों पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रही है ठीक है तब होता क्या दोस्तों हम जानते हैं अगर चंद्रमा के अंदर मानस माल है मैं पृथ्वी जमाना कैप्टन लिया है हम जानते हैं जब कोई वस्तु क्या होती है दोस्तों किसी दूरी पर हो ठीक है कोई भी वस्तु क्या हो दोस्तों किसी दूरी पर हो ठीक है मानते हो दूरी और है ठीक है तो इस पर जो लगने वाला बल होता है दोस्तों व क्या होता है इन के जवानों के

गुणनफल के अनुक्रमानुपाती या बीच की दूरी के वर्क अमित कुमार पार्टी होता है और यह जो जी होता है कैपिटल जी क्या कहलाता हमारा गुप्ता कृष्ण नितांत ठीक है दोस्तों और यहां पर जो यह बाल होता है हमेशा आकर्षण बालोतरा और इसमें होता क्या है कि एक वस्तु या एक ब्राह्मण का प्रिंट दूसरे धर्म की प्रिंट को अपनी ओर खींचता दोस्तों ठीक है और इसे हम बोलते दोस्तों ग्रुप पर आकर्षण वाला भी इस केस में क्या होता है दोस्तों की माना कि चंद्रमा क्या कर रही दोस्तों अभी आपस में विवेक से चैट कर रही है ठीक है लेकिन अब यह दोनों देखिए इन दोनों का कोई ना कोई धर्म है जो कुछ ना कुछ दूरी पर है जिस पर एक बलकार करता है दोस्तों जिसे हम बोलते हैं गुरुत्वाकर्षण बल ठीक है अब पृथ्वी क्या करती चंद्रमा को अपनी ओर गति कस्टमर से खींच रही होती है ठीक है कौन से फल से दोस्तों गुरुत्वाकर्षण बल ऐप जीरा लिखे तो प्रतिकर्षण बल से अपनी ओर खींचती है ताकि हम जानते हैं दोस्तों की जब कोई वस्तु क्यों दोस्तों यह किसी वस्तु में क्या हो यह कांसेप्ट दोस्तों की व्यक्ति लंबा दिशा में अगर बल्ले लगे ठीक है दोस्त

अगर यदि वे किस दिशा में है उसकी लंबा दिशा में क्या लग रहा था उसको बल लग रहा है ठीक है तू बस तू क्या दोस्त वृद्धि गति करने लगती है ठीक है यहां पर हमने देखा कि क्वेश्चन तमारा किस बल के कारण चंद्रमा पृथ्वी के चारों गति करता है तो बवाल हो जाएगा दोस्तों गुरुत्वाकर्षण बल ठीक है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही क्या कर रहे दो चार और गति कर पा रहा था कैंसिल हो जाएगा दोस्तों गुरुत्वाकर्षण बल ठीक है इसी बल के कारण क्या हो रहा दोस्तों चंदवा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगती और जो इसके चंद्रमा के बीच की दिशा के लंबवत या बल कार्य करता है इसी कारण से यह प्रतिकृति कर पाता है थैंक यू दोस्तों

हवा से फिल इन द ब्लैंक्स द क्वेश्चन ऐसे बोल रहा है कि किसी बच्चों किसी वस्तु पर पृथ्वी द्वारा लगाया गया कृष्ण बल को हम देश बल कहते हैं लेकिन करें किसी वस्तु पर पृथ्वी द्वारा लगाए गए आकर्षण बल को क्या कहते हैं तो हम उसको क्या कहते हैं वह आकर्षण बल कहते हैं क्या कहते हैं उसे गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण बल ठीक कहते मुझे गुर्दा संबंधी कुरजा का सिंबल क्या होता है मान लीजिए कि यह पूछा था कि आपकी ठीक है यहां से आपने क्या करें कोई चीज ऊपर की तरह क्या करें ताकि ठीक है वही पत्थर के ऊपर तो सीखा तो क्या हुआ थोड़ी देर बाद क्या हो जाएगा वह नीचे गिरना चालू हो जाएगा ठीक है आपने यहां से फेंका उसको और वह कुछ देर बाद क्यों लेंगे नहीं तो दिन में चालू हो जाएगा तो यह वापस नीचे क्यों डर लग जाता है हमसे कि

जमीनी चले उसका मतलब क्या हुआ जो कोई न केवल करें करेगी तू बल कौन सी होगी गुरुत्वाकर्षण बल की कौन सी बोलोगी गुरुत्वाकर्षण गुरुत्वाकर्षण बल होती ठीक है अब्दुल कुर्ता का संभल कर दो आपके जोशी फलोदी होता क्या होता है जो उसका दर्द जो भी बाप है कि उसका द्रव्यमान गुना जो जो उसमें जो एक सैलरी दो तो रण होगा गुरुत्वाकर्षण इस दौरान आएगा आपका उसका मान होता है ठीक है और जो उसकी एस आई मात्रक होती है उसके एस आई मात्रक होती है वह क्या होती है गुरुत्वाकर्षण बल का सी मात्रक क्या होती है वह जो बल्कि ऐसी माताओं को भी वही गुप्ताकाशी बल्कि ऐसे मत रखो क्या होगी न्यूटन न्यूटन होगी और फोन ऑफिस से डबरा में एमजी से दिखाते हैं ठीक है ना अगर आप कोई भी आपको पर कोई वस्तु है जो जो उस पर जोक रितु आकर्षण वाला बताओ किसके और होगा जी के बराबर होगा ठीक है एम जी को गुरता कमल जो लग रहा उसका से बाहर होगा वह एमजी के बराबर होगा हमें हमें क्या मर जाएंगे गुरुत्व बल कहते हैं क्या

करें कुर्ती में बल कहते हैं आकाश अमल को करते हुए कहते हैं कि आपका ठीक है उत्तर जाएगा

धरती में कौन सा बल होता है? - dharatee mein kaun sa bal hota hai?

नासा (NASA) के ग्रेस (GRACE) मिशन द्वारा मापा गया धरती का गुरुत्व

पृथ्वी के सतह के निकट किसी पिण्ड के इकाई द्रव्यमान पर लगने वाला पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का गुरुत्व कहलाता है। इसे g के रूप में निरूपित किया जाता है। यदि कोई पिण्ड धरती के सतह के निकट गुरुत्वाकरण बल के अतिरिरिक्त किसी अन्य बल की अनुपस्थिति में स्वतंत्र रूप से गति कर रही हो तो उसका त्वरण g के बराबर होगा। इसका मान लगभग 9.81 m/s2होता है। (ध्यान रहे कि G एक अलग है; यह गुरूत्वीय नियतांक है।) g का मान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है।

g को त्वरण की भातिं भी समझा जा सकता है। यदि कोई पिंड पृथ्वी से ऊपर ले जाकर छोड़ा जाय और उस पर किसी प्रकार का अन्य बल कार्य न करे तो वह सीधा पृथ्वी की ओर गिरता है और उसका वेग एक नियत क्रम से बढ़ता जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण किसी पिंड में उत्पन्न होने वाली वेगवृद्धि या त्वरण को गुरूत्वजनित त्वरण कहते हैं। इसे अंग्रेजी अक्षर g द्वारा व्यक्त किया जाता है। ऊपर कहा जा चुका है कि इसे किसी स्थान पर गुरूत्व की तीव्रता भी कहते हैं।

पृथ्वी के केन्द्र से दूरी के अनुसार g के मान में परिवर्तन[संपादित करें]

गुरूत्वजनित त्वरण अर्थात g का मान पृथ्वी के केंद्र से दूरी के अनुसार घटता बढ़ता है, अर्थात इस दूरी के बढ़ने पर यह घटता है और दूरी घटने पर बढ़ता है। इसलिए समुद्रतल पर इसका मान अधिक तथा पहाड़ों पर कम होता है। इसी प्रकार भूमध्य रेखा पर इसका मान ध्रुवों की अपेक्षा कम होता है, क्योंकि पृथ्वी ध्रुवों पर कुछ चिपटी है जिसके कारण पृथ्वी के केंद्र से ध्रुवों की दूरी भूमध्यरेखा की अपेक्षा कम है।

समुद्रतल पर g0 का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्राप्त किया जा सकता है:

g0 = 978.049 (1 + 0.0052884 Sin2 f - 0.0000059 Sin22f)

सें.मी. प्रति सें. प्रति सें.; जहाँ f उस स्थान का अक्षांश (latitude) है।

यदि कोई स्थान समुद्रतल से h ऊँचाई पर हो तो वहां g का मान अर्थात g h. निकटतम मान तक निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:

gh = (g0 - .0003086 h) cm. sec. sec.

सामान्यतया पृथ्वीतल पर g का मान अक्षांशों के अनुसार ९७८ और ९८३.२ सेंमी./से. से. अथवा ३२.०९ और ३२.२६ फुट/से. से. के बीच मे रहता है। ये मान समुद्रतलों पर होते हैं। g का मात्रक सेमी/सेकण्ड2 होता हैं |पृथ्वी तल से ऊंचाई पर जाने पर g का मान घटता है

विश्व के विभिन्न शहरों में गुरुत्व जनित त्वरण का मान[संपादित करें]

अम्सटर्डम 9.813 m/s² इस्तानबुल 9.808 m/s² पेरिस 9.809 m/s²
एथेंस 9.807 m/s² हवाना 9.788 m/s² रियो डी जेनेरियो 9.788 m/s²
आकलैण्ड 9.799 m/s² हेल्सिंकी 9.819 m/s² रोम 9.803 m/s²
बैंकाक 9.783 m/s² कुवैत 9.793 m/s² सैन फ्रांसिस्को 9.800 m/s²
ब्रसेल्स 9.811 m/s² लिस्बन 9.801 m/s² सिंगापुर 9.781 m/s²
Buenos Aires 9.797 m/s² लन्दन 9.812 m/s² स्टॉकहोम 9.818 m/s²
कोलकाता 9.788 m/s² लॉस एंजेल्स 9.796 m/s² सिडनी 9.797 m/s²
केप टाउन 9.796 m/s² मैड्रिड 9.800 m/s² तैपेयी (Taipei) 9.790 m/s²
शिकागो 9.803 m/s² मनीला 9.784 m/s² टोक्यो 9.798 m/s²
कोपेनहैगन 9.815 m/s² मैक्सिको सिटी 9.779 m/s² वैंकुवर (Vancouver) 9.809 m/s²
निकोसिया 9.797 m/s² न्यू यॉर्क नगर 9.802 m/s² वाशिंगटन डीसी 9.801 m/s²
जाकर्ता 9.781 m/s² ओस्लो 9.819 m/s² वेलिंगटन 9.803 m/s²
फ्रैंकफुर्त 9.810 m/s² ओटावा 9.806 m/s² ज्युरिक 9.807 m/s²

g का मान ज्ञात करने की विधियाँ[संपादित करें]

g का मान ज्ञात करने की विधियों को दो कोटियों में विभक्त कर सकते हैं:

(अ) प्रत्यक्ष विधि और

(ब) दोलक विधि।

प्रत्यक्ष विधि[संपादित करें]

इस विधि में किसी पिंड को निश्चित ऊँचाई से गिराया जाता है और समान अवधि में उसके द्वारा पार की हुई दूरियाँ नाप ली जाती हैं। इससे g के मान की गणना की जाती है। इस विधि का प्रयोग ऐटवुड की मशीन (Atwood’s Machine) में किया जाता है। इसमें दो संहतियाँ m1 और m2 जिनमें परस्पर अत्यंत सूक्ष्म अंतर होता है, एक तागे द्वारा जुड़ी होती हैं जो एक घिरनी (Pulley) पर से होकर गुजरती है। यदि m2 अपेक्षाकृत भारी हो तो यह नीचे उतरने लगेगी और m1 ऊपर चढने लगेगी। यदि s दूरी पर कर चुकने पर उसका वेग v हो जाए और त्वरण f हो तो न्यूटन के गतिनियम के अनुसार

v‍^2 = 2 f s

त्वरण f का मान निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:

f = m1 + m2 g r^2 / (I + (m1 + m2) r^2)

यहाँ I केंद्र के चारो ओर घिरनी का अवस्थितत्व घूर्ण है तथा r घिरनी का अर्धव्यास है।

अत: इस विधि में घिरनी के घर्षण तथा वायु के प्रतिरोध इत्यादि का कोई विचार नहीं किया जाता, इसलिये इसके द्वारा प्राप्त g के मान में पर्याप्त त्रुटि रहती है। इन कारणों से इस विधि का अनुसरण सामान्यत: नहीं किया जाता है।

लोलक की विधि (Method of Pendulums)[संपादित करें]

इस विधि में एक लोलक को उसकी मध्यमान स्थिति के दोनों ओर दोलन कराकर आवर्तकाल T ज्ञात किया जाता है। यदि निलंबन बिंदु (point of suspension) से लेकर लोलक के गुरुत्वकेंद्र तक की दूरी ल (I) हो और यह मान लिया जाय कि लोलक का संपूर्ण भार उसके गुरूत्वकेंद्र पर ही संघनित हो तो दोलनकाल (आवर्तकाल) T और गुरूत्व की त्व्रीाता g पर परस्पर निम्नलिखित सूत्र द्वारा संबंधित होते हैं:

T = 2 p ÖI/g

या, g = 4p 2 I/T2

इस विधि में यह ध्यान रखा जाता है कि लोलक का दोलन विस्तार या आयाम (amplitude) ४० से अधिक न हो, अन्यथा सूत्र में निम्नलिखित संशोधन करना पड़ेगा :

T = 2 (1+ 1/4 Sin2 q/2 + 9/64 Sin4 q/2 + ¼) Ö1 / g

यहाँ q आयाम हैं।

g का अधिक सटीक मान ज्ञात करने के लिये एक दृढ़ पिंड को लोलक के रूप में लिया जाता है जो क्षैतिज़ क्षुरधार (knife edge) पर दोलन करता है। यदि गुरुत्वकेंद्र से क्षुरधार की दूरी I हो और k उसके गुरुत्वकेंद्र से होकर जानेवाली तथा क्षुरधार के समांतर अक्ष के चारों ओर विघूर्णन त्रिज्या (radius of gyration) हो तो सूत्र

g = 4 p 2 (k^2 + I^2) / IT^2

द्वारा g का मान अधिक ठीक ठीक ज्ञात किया जा सकता है। ऐसे लोलक को यौगिक लोलक (compound pendulum) कहा जाता है।

यदि यौगिक लोलक में I के भिन्न-भिन्न मानों के लिए आवर्तकाल T के पाठ लिए जायँ तथा I और T के बीच एक लेखाचित्र प्राप्त किया जाय तो लोलक के सिरे से नापने पर लंबाई का मान ज्यों ज्यों बढ़ता है, दोलनकाल घटता जाता है, किंतु न्यूनतम मान न तक पहुँचने के उपरांत पुन: बढ़ने लगता है (देखें चित्र ५)। लोलक के मध्यबिंदु के निकट पहँुचने पर दोलनकाल बड़ी द्रुत गति से अनंत मान की ओर अग्रसर होता है।

केटर (Capt. Henry Kater, सन्‌ १८१८) ने g का अधिक सटीक मान ज्ञात करने के लिये ऐसा लोलक लिया जो छड़ के रूप में था और जिसके मध्यबिंदु के दोनों ओर एक क्षुरधार था। दोनों क्षुरधारों से लटकाए जाने पर लालक का आवर्तकाल एक ही आता था। इसी छड़ में असमान संहतिवाले दो धातुखंड भी लगे थे। एक की संहति दूसरे से काफी अधिक थी। भारी संहति को समंजित करके दोनों क्षुरधारों पर लोलक के आवर्तकाल लगभग समान किए जा सकते थे और हलकी संहति को समंजित करके दोनों आवर्तकालों के बीच के अंतर को और भी कम किया जा सकता था। यदि T1और T2 क्रमश: दोनों क्षुरधारों से दोलन कराने पर आवर्तकाल हों और I1 तथा I2 उन क्षुरधारों की छड़ के गुरुत्वकेंद्र से दूरियाँ हों तो बेसेल (Bessel) के अनुसार

4 p 2/g = T12+T22/I1+I2 + T12-T22/I1-I2

इसमें I1 + I2 को ठीक ठीक नापा जा सकता है और अंतिम पद अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण त्याज्य है। अत: यह सूत्र g का ठीक ठीक मान दे सकता है।

प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए :

(१) आयाम या दोलनविस्तार कम हो,

(२) वायु के प्रतिरोध तथा वायु के घर्षण से लोलक की गति को यथासंभव कम से कम प्रभावित रखने की चेष्टा करनी चाहिए,

(३) लोलक का आलंब (support) ऐसा चुनना चाहिए कि वह लोलक के भार के कारण लचक न जाए तथा

(४) प्रयोग की अवधि भर कमरे का ताप अधिक न बदले, अन्यथा लोलक के प्रसार के कारण लंबाई I में अंतर आ जायगा।

धरती के गुरुत्व की अन्य आकाशीय पिण्डों के गुरुत्व से तुलना[संपादित करें]

आकाशीय पिण्ड पृथ्वी के
गुरुत्व का गुणक
m/s²
सूर्य 27.90 274.1
बुध (Mercury) 0.3770 3.703
शुक्र (Venus) 0.9032 8.872
पृथ्वी 1 (by definition) 9.8226[1]
चन्द्रमा 0.1655 1.625
मंगल (Mars) 0.3895 3.728
वृहस्पति (Jupiter) 2.640 25.93
शनि (Saturn) 1.139 11.19
अरुण (Uranus) 0.917 9.01
वरुण (Neptune) 1.148 11.28
यम (Pluto) 0.0621 0.610

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र
  • गुरुत्वाकर्षण
  • न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. This value excludes the adjustment for centrifugal force due to Earth’s rotation and is therefore greater than the 9.8 m/s² value of standard gravity.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • GRACE - Gravity Recovery and Climate Experiment

पृथ्वी में कौन सा बल होता है?

Detailed Solution. सही उत्तर गुरुत्वाकर्षण है। गुरुत्वाकर्षण वह बल है जिसके द्वारा कोई ग्रह या अन्य पिंड वस्तुओं को अपने केंद्र की ओर खींचता है। गुरुत्वाकर्षण बल सूर्य के चारों ओर सभी ग्रहों को अपनी कक्षा में रखता है।

पृथ्वी और चंद्रमा के बीच कौन सा बल काम करता है?

अभिकेन्द्र बल चंद्रमा और पृथ्वी के बीच कार्य करता है। सार्वभौमिक गुरुत्वाकर्षण का नियम: इसके अनुसार सभी निकाय एक दूसरे को एक बल के साथ आकर्षित करते हैं जो दो निकायों के द्रव्यमान के समान आनुपातिक है और उनके केंद्रों को अलग करने वाली दूरी के वर्ग के विलोम आनुपातिक है।

गुरुत्वाकर्षण बल कहाँ लगता है?

वस्तुओं के बीच यह आकर्षण बल गुरुत्वाकर्षण बल कहलाता है। विश्व का प्रत्येक पिंड प्रत्येक अन्य पिंड को एक बल से आकर्षित करता है, जो दोनों पिंडों के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों पिंडों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में लगता है।

G का क्या अर्थ है?

पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण, जिसे g द्वारा निरूपित किया जाता है, उस त्वरण को संदर्भित करता है, जिसे पृथ्वी अपनी सतह पर या उसके पास की वस्तुओं को प्रदान करती है। एसआई इकाइयों में इस त्वरण को प्रति वर्ग मीटर (प्रतीकों में, मी/से2) या न्यूटन प्रति किलोग्राम (एन/किग्रा) में बराबर मापा जाता है।