दिव्यांग व्यक्ति की मदद कैसे करें? - divyaang vyakti kee madad kaise karen?

Published on: 3 December 2021, 17:16 pm IST

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डिसेबिलिटी (Disability) एक सच्चाई है, जिसे कई समाजों और संस्कृतियों द्वारा अलग-अलग रूप में देखा गया है। अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस (International Day of Persons with Disabilities) , जो हर साल 3 दिसंबर को मनाया जाता है, का उद्देश्य जीवन और विकास के सभी क्षेत्रों में पीडब्ल्यूडी (PWD) के अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देना है। इसका उद्देश्य राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू पर विचार करते हुए दिव्यांग व्यक्तियों के दैनिक जीवन में स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी है।

तो, आइए जानते हैं की वास्तव में शारीरिक अक्षमता है क्या ?

शारीरिक अक्षमता कोई बीमारी नही है, यह एक शारीरिक स्थिति है। हां लेकिन बीमारी के दीर्घकालिक प्रभाव से शारीरिक अक्षमता हो सकती है। यह जन्म से उपस्थित हो सकता है, युवा और सक्रिय जीवन के वर्षों के दौरान या बुढ़ापे के दौरान भी यह हो सकती है।

शरीर की यह स्थिति दिखने वाली और अदृश्य भी हो सकती है। यह कुछ समय के लिए जैसे  फ्रैक्चर और कुछ हफ्तों तक सक्रिय गतिविधि में अक्षमता भी हो सकती है। असल में शारीरिक अक्षमता की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। यह एक बहुआयामी, जटिल, गतिशील और विवादित कांसेप्ट है।

एक नजर शारीरिक अक्षमता के विभिन्न मॉडल पर 

 शारीरिक अक्षमता को समझने के लिए आपको इसके विभिन्न मॉडल्स को जानना चाहिए

मेडिकल मॉडल ( Medical model ) 

यह मॉडल मानता है कि शारीरिक अक्षमता सीधे किसी बीमारी, चोट, या शारीरिक प्रणालियों में कुछ डी-रेगुलेशन ( D- Regulation )  के कारण होती है, जिसके लिए उपचार की आवश्यकता होती है। यह पर्यावरण और सामाजिक बाधाओं की महत्वपूर्ण भूमिकाओं को ध्यान में नहीं रखता है।

सोशल मॉडल  ( Social Model ) 

यह मॉडल नकारात्मक दृष्टिकोणों और समाज द्वारा बहिष्कृत (जानबूझकर या अनजाने में) की पहचान करता है, जो दिव्यांग व्यक्तियों की जीवन शैली में बाधा डालता है। यह मॉडल इस धारणा को बढ़ावा देता है कि शारीरिक, संवेदी, बौद्धिक, या मनोवैज्ञानिक कारक व्यक्तिगत कार्यात्मक सीमा या भागीदारी प्रतिबंध का कारण बन सकते हैं। 

ये तब तक अक्षमता का कारण नहीं बनते हैं, जब तक कि समाज उनके व्यक्तिगत मतभेदों की परवाह किए बिना लोगों को शामिल करने में विफल रहता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)के अनुसार, दुनिया में 15 प्रतिशत लोग किसी न किसी तरह की शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त हैं, यानी दुनिया भर में लगभग 100 करोड़ लोग। भारत में, 2011 की जनगणना के अनुसार, 121 करोड़ आबादी में से, लगभग 2.68 करोड़ व्यक्ति दिव्यांग हैं, जो कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत है। दिव्यांग व्यक्तियों को हर दिन जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वे विशेष रूप से कोविड -19 के परिणामों पर विचार करने के बाद एक गंभीर चुनौती हैं।

फिजियोथेरेपिस्ट (physiotherapist) उन लोगों की मदद करने में भी एक विशिष्ट भूमिका निभाते हैंचित्र : शटरस्टॉक

आप कैसे कर सकती हैं उनकी मदद?

अपने परिवार या आसपास के किसी दिव्यांग व्यक्ति की मदद न केवल जागरूकता पैदा करने/समस्याओं/मुद्दों पर बात करने और उन्हें ठीक करने के द्वारा किया जा सकता है। साथ ही उनकी भागीदारी, समानता सुनिश्चित करने के साथ-साथ कानूनी सुरक्षा प्रदान करके भी मदद की जा सकती है।

हमारा प्राइमरी हेल्थकेयर सिस्टम (primary healthcare system) भी इसमें एक बड़ी भूमिका निभाता है। यह कमजोरियों की शीघ्र पहचान और बुनियादी उपचार प्रदान करने, शारीरिक, व्यावसायिक और कई थेरेपीज, प्रोस्थेटिक्स और ऑर्थोटिक्स जैसी विशिष्ट सेवाओं के लिए रेफरल और यदि आवश्यक सुधारात्मक सर्जरी जैसी पहलों से जुड़ा हुआ है।

फिजियोथेरेपिस्ट (physiotherapist) उन लोगों की मदद करने में भी एक विशिष्ट भूमिका निभाते हैं। जो जन्मजात या जीवन के शुरुआती दिनों में शारीरिक अक्षमता के शिकार हो गए हैं। फिजियोथेरेपिस्ट उनकी कठिनाई दूर करने में मदद कर कर सकते हैं।

पुनर्वास/पुनर्वास प्रोटोकॉल (Rehabilitation/Rehabilitation Protocol) व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार तैयार किया गया है। यह हानि और कार्यात्मक आवश्यकताओं के लिए विशिष्ट है। इसमें एकल या एकाधिक अभ्यास और हस्तक्षेप शामिल हैं, साथ ही चोट/ शारीरिक अक्षमता के सभी चरणों को ध्यान में रखा जाता है 

 साक्ष्य से पता चलता है कि स्वास्थ्य स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला में विशिष्ट व्यायाम प्रोटोकॉल – विच्छेदन, स्ट्रोक, सेरेब्रल पाल्सी, सिस्टिक फाइब्रोसिस, बुजुर्ग लोगों में कमजोरी, घुटने और कूल्हे में पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस, हृदय रोग और दिल की सर्जरी, दुर्घटना के बाद फ्रैक्चर, कम पीठ  दर्द – ने जोड़ों की ताकत, सहनशक्ति और लचीलेपन को बढ़ाने में योगदान दिया है।

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विकलांगों की मदद करना नैतिक जिम्मेदारी

जागरण संवाद केंद्र, राजौरी : विकलांगों को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उनकी जितनी मदद हो सके, करनी चाहिए। विकलांगों की मदद करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है। इसके लिए अधिक से अधिक लोगों को जागरूक होना होगा। ऐसे कार्यो में बच्चों की एक अहम भूमिका है।

विश्व विकलांगता दिवस पर ब्वॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल से विद्यार्थियों ने रैली निकालकर लोगों को विकलांगों की मदद के लिए जागरूक किया। रैली सीईओ कार्यालय में संपन्न हुई। इस रैली को जिला आयुक्त हेमंत कुमार ने झंडी दिखा कर रवाना किया। इस अवसर पर एएसपी राजौरी शिव कुमार सिंह चौहान के साथ-साथ शिक्षा विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे। जिला आयुक्त हेमंत कुमार ने कहा कि विकलांग व्यक्ति को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। उसकी जितनी मदद हो सके, करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई विकलांग सड़क को पार करने के लिए किनारे खड़ा है तो लोग उसे देखकर आगे निकल जाते हैं। ऐसा नहीं करना चाहिए। विकलांग व्यक्ति को सड़क पार करवाना चाहिए। इस संबंध में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक होना होगा। ऐसे कार्यो में बच्चों की एक अहम भूमिका है। वह अपने परिवार के सदस्यों को जागरूक करने के साथ-साथ अपने आस-पास के लोगों को भी जागरूक करें।

एएसपी शिव कुमार सिंह चौहान ने कहा कि विकलांग लोगों की मदद से कुछ नहीं घटता है। अगर किसी विकलांग को मदद की जरूरत है तो सभी को आगे आना चाहिए। उसकी हर संभव मदद करनी चाहिए। इस अवसर पर मुख्य शिक्षा अधिकारी चौधरी लाल हुसैन के अलावा अन्य अधिकारी भी मौजूद थे।

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हम विकलांग लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं?

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दिव्यांग व्यक्ति से बात करके आपको उनकी क्या कठिनाइयां समझ आए हैं बताइए?

दिव्यांग व्यक्तियों के समुदाय के लिए यह एक परस्पर संवाद मंच है जो सम्मिलित डोमेन मे सामूहिक अधिगम प्रक्रिया में संलग्न है। इससे लोगों को अपने क्षेत्र से संबन्धित जानकारी, अधिगम और सूचनाएँ बांटने में मदद मिलेगी। दिव्यांगता वार समुदाय सक्रिय रूप से इस मंच पर अपने कल्याण और पुनर्वास के लिए संपर्क कर सकते हैं

भारत में दिव्यांगों के अधिकार क्या है?

यह एशियाई एवं प्रशांत क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता की उद्घोषणा को कार्यान्वित करता है और उनकी शिक्षा, उनके रोजगार, बाधारहित परिवेश का सृजन, सामाजिक सुरक्षा, इत्यादि का प्रावधान करता है।

हमें दिव्यांग बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और क्यों?

दिव्यांग बच्चों के साथ सामान्य बच्चों की तरह व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्हें दैनिक जीवन कौशल सिखाएं। सभी अभिभावक दिव्यांग बच्चों के प्रमाणपत्र बन जाने के बाद किसी भ्रम की स्थिति में न रहें। दिव्यांग बच्चों के प्रति सुरक्षित दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है।