Solution : (i) देवसेना स्कंदगुप्त को चाहती थी, परंतु स्कंदगुप्त माल्वा के धनकुबेर की कन्या विजया से प्रेम करता था। (ii) हूणों के आक्रमण से देवसेना के परिवर के सभी-लोगों को वीरगति प्राप्त हुई। (iii) देवसेना नितांत अकेली पड़ गई और उसे भीख माँगकर अपना गुजारा करना पड़ा। (iv) उसे अपने आस-पास सबकी प्यासी निगाहों का सामना भी करना पड़ा। (v) वह विषम परिस्थितियों से जुझती हुई जीवन भर संघर्ष करती रही। उसका पूरा जीवन वेदना से परिपूर्ण ही रहा। (vi) इस प्रकार देवसेन को मिले असीम दुखों के कारण ही उसके मन में निराशा या हार की भावना आ गई। Show
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है। काव्यांशआह! वेदना मिली विदाई! मैंने भ्रम-वश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। छलछल थे संध्या के श्रमकण, आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण। मेरी यात्रा पर लेती थीं- नीरवता अनंत अँगड़ाई। शब्दार्थवेदना – अनुभूति, ज्ञान, पीड़ा ( प्रस्तुत कविता के लिए उपयुक्त अर्थ- पीड़ा, कष्ट) व्याख्यास्कंदगुप्त का प्रणय निवेदन ठुकराने के बाद देवसेना अपने हृदय की पीड़ा को अभिव्यक्त करती है। वह अपने जीवन के भावी सुखों से विदा लेती है, अर्थात् स्कंदगुप्त के प्रेम में जो भी स्वप्न देवसेना ने देखे थे; स्कंदगुप्त से जुड़ीं जो उम्मीदें, आशाएँ और आकांक्षाएँ अपने हृदय में रखी थीं, आज उन सबसे विदा ले रही है। इस विदाई से हृदय को कष्ट हो रहा है, लेकिन
देवसेना स्कंदगुप्त के प्रति अपने प्रेम और उन सपनों को भ्रम वश इकट्ठा किया हुआ कह कर उन्हें वापस लुटा रही है। काव्यांशश्रमित स्वप्न की मधुमाया में, गहन-विपिन की तरु-छाया में, पथिक उनींदी श्रुति में किसने- यह विहाग की तान उठाई। लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी, रही बचाए फिरती कबकी। मेरी आशा आह! बावली, तूने खो दी सकल कमाई। शब्दार्थश्रमित – थका हुआ व्याख्यादेवसेना कहती है, जैसे घने जंगल से गुजरता कोई राहगीर थक कर किसी पेड़ की छाया में सो जाए और आधी नींद में उसे विहाग की तान सुनाई दे, वैसे ही जीवन संघर्षों से थकी देवसेना के लिए स्कंदगुप्त का प्रणय निवेदन है। उसे पता है, यह उसके जीवन की वास्तविकता नहीं है, स्वप्न है, भ्रम है। काव्यांशचढ़कर मेरे जीवन-रथ पर, प्रलय चल रहा अपने पथ पर। मैंने निज दुर्बल पद-बल पर, उससे हारी-होड़ लगाई। लौटा लो यह अपनी थाती मेरी करुणा हा-हा खाती विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे शब्दार्थप्रलय – विनाश, आपदा, मुसीबत व्याख्यादेवसेना अपने जीवन के दुखों को याद करते हुए कहती है कि उसके जीवन रूपी रथ पर तो जैसे प्रलय ही सवार है। अर्थात्
उसे कभी भी दुखों, कष्टों और मुसीबतों से छुटकारा नहीं मिला। परिजनों की मृत्यु, राष्ट्र की पराजय, प्रेम में विफलता, लोगों की गंदी नज़रें – क्या कुछ नहीं सहा देवसेना ने। देवसेना यह जानते हुए भी कि प्रलय से ठानी इस लड़ाई में उसकी हार निश्चित है, हार मानने को तैयार नहीं है। वह अपने कमजोर पैरों की ताकत के साथ तब तक लड़ते रहना चाहती है, जब तक साँसें चल रही हैं। देवसेना का गीत : सारांशदेवसेना गुप्त वंश के कुमार
स्कंदगुप्त से प्रेम करती है, लेकिन जब वह स्कंदगुप्त को नगर सेठ की पुत्री विजया की ओर आकर्षित देखती है तो अपने कदम पीछे हटा लेती है। हूणों के विरुद्ध आक्रमण में देवसेना के परिजनों की मृत्यु हो जाती है और देवसेना पर्णदत्त के साथ आश्रम में रहने और भिक्षा द्वारा जीवन यापन के लिए विवश हो जाती है।
देवसेना स्कंदगुप्त को अकर्मण्य नहीं बनाना चाहती। वह नहीं चाहती कि देवसेना के प्रेम के कारण स्कंदगुप्त अपने उद्देश्यों को भूल जाए-
स्कंदगुप्त के प्रणय निवेदन को ठुकराने के पश्चात देवसेना अपने हृदय की पीड़ा को वाणी देती है-
देवसेना का गीत : प्रश्नोत्तरप्रश्न 1: “मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई”‐ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। उत्तर- स्कंदगुप्त के प्रेम को अस्वीकार करने के बाद देवसेना अपने उन सपनों से भी विदा लेती है, जो उसने स्कंदगुप्त के प्रेम में देखे थे। उन उम्मीदों और आकांक्षाओं को खत्म कर देना चाहती है, जो उसने स्कंदगुप्त से मिलने की आशा में इकट्ठा कर रखी थीं। देवसेना को लगता है कि यह सब उसका भ्रम मात्र था। अपनी गलतफ़हमी में ही उसने ये सपने देखे थे। इसलिए स्कंदगुप्त को वापस लौटाने के साथ ही उसने इन सपनों और उम्मीदों को भी लुटा दिया। प्रश्न 2: कवि ने आशा को बावली क्यों कहा है? उत्तर- आशा कई बार व्यक्ति के जीने का सहारा होती है, लेकिन कई बार आशा व्यक्ति को झूठे सपने दिखाती है। प्रेम में डूबा व्यक्ति मिलने की आशा में सपने बुनता है, उम्मीदों के महल खड़ा करता है। वह किसी तर्क को नहीं मानता, अपने दिमाग की भी नहीं सुनता। इसलिए कवि ने आशा को बावली कहा है। प्रश्न 3: “मैंने निज दुर्बल….. होड़ लगाई” इन पंक्तियों में ‘दुर्बल पद बल’ और ‘हारी होड़’ में निहित व्यंजना स्पष्ट कीजिए। उत्तर- ‘दुर्बल पद बल’ आशय देवसेना की सीमित ताकत से है। जिन मुसीबतों से देवसेना घिरी है, उनके मुकाबले उसकी ताकत अत्यंत कम है। ‘हारी होड़ पंक्ति’ देवसेना की दृढ़ता को व्यंजित करता है। देवसेना जानती है कि उसे जीवन की इन मुसीबतों से हारना ही होगा, वह अपनी सीमित और कम ताकत के दम पर इनका मुकाबला नहीं कर सकती, लेकिन वह जीते जी हार मानने को तैयार नहीं। वह यह हारा हुआ मुकाबला भी पूरी ताकत के साथ लड़ना चाहती है। प्रश्न 4: काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए- (क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ……… तान उठाई। (ख) लौटा लो …………………….. लाज गँवाई। उत्तर- (क) भाव: जीवन के संघर्षों से थकी देवसेना को स्कंदगुप्त का प्रेम निवेदन ऐसा लगता है, जैसे घने जंगल में पेड़ की छाया में थक कर सोये किसी पथिक के कानों में विहाग राग की तान सुनाई दे रही हो और उसके जगते ही यह स्वप्न टूट जाए। देवसेना को स्कंदगुप्त का निवेदन भी ऐसा ही भ्रम लगता है। (ख) भाव: इन पंक्तियों में देवसेना की निराशा के साथ-साथ अपने प्रेम को हमेशा के लिए भूल जाने की उसकी दृढ़ता भी व्यंजित होती है। वह इस प्रेम को लौटा देना चाहती है क्योंकि इसको सँभालना अब उसके लिए संभव नहीं है। इस प्रेम के कारण उसके मन के भाव जिन्हें उसने सबसे छिपा रखा था, प्रकट हो गए। देश की स्थिति भी उसे प्रेम में आगे बढ़ने से रोक रही है। उसे लगता है की स्कंदगुप्त उसके प्रेम में अकर्मण्य हो गया तो राष्ट्र का उद्धार नहीं होगा। इसीलिए वह अपने प्रेम से सदा के लिए विदा लेती है। शिल्प: हा-हा – पुनरुक्ति, तत्सम शब्दावली, करुण रस, प्रश्न 5: देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं? उत्तर: देवसेना स्कंदगुप्त से प्रेम करती थी, लेकिन वह उस समय विजया की ओर आकर्षित था। देवसेना का पूरा परिवार हूणों के विरुद्ध संघर्ष में वीर गति को प्राप्त हुआ। स्वयं उसे सड़कों पर भीख माँगने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस प्रकार प्रेम में विफलता, राष्ट्र की पराजय, परिजनों की मृत्यु आदि देवसेना की हार या निराशा का कारण बनते हैं। कवि/लेखक परिचयजयशंकर प्रसाद का जन्म काशी में 1889 ईस्वी में हुआ। आठवीं तक विद्यालयी शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने स्वाध्याय (Self Study) के द्वारा संस्कृत, पालि, अंग्रेज़ी और उर्दू भाषा के साहित्य का गहन अध्ययन किया।
साहित्य के अतिरिक्त उन्होंने इतिहास, दर्शन शास्त्र और धर्म शास्त्रों का भी अध्ययन किया। देवसेना की वेदना का मूल कारण क्या था?देवसेना जो मालवा की राजकुमारी है उसका पूरा परिवार हूणों के हमले में वीरगति को प्राप्त होता है। वह रूपवती / सुंदर थी लोग उसे तृष्णा भरी नजरों से देखते थे , लोग उससे विवाह करना चाहते थे , किंतु वह स्कंदगुप्त से प्यार करती थी , किंतु स्कंदगुप्त धन कुबेर की कन्या विजया से प्रेम करता था।
देवसेना का गीत कविता में देवसेना की वेदना का मूल कारण क्या है?देवसेना अपने जीवन के अंतिम दिनों में एक गीत के माध्यम से अपनी वेदना को प्रकट करती है तथा अपनी प्रेम की अभिलाषा पर अफ़सोस जाहिर करती है। व्याख्या :- देवसेना जीवन भर स्कंदगुप्त से प्रेम करती रही, किन्तु स्कंदगुप्त मालवा की कन्या (विजया) का सपना देखता रहा। अब जीवन के आखरी दिनों में स्कंदगुप्त उससे विवाह करना चाहता है।
देवसेना अपनी किस थाती को लौटा देना चाहती है और क्यों?गीत की व्याख्याः-
देवसेना इस गीत में कह रही है कि आज मैं वेदना से भरे इस हृदय से सुखद जीवन की कल्पनाओं से विदाई ले रही हूँ। स्कन्दगुप्त के प्रेम में मेरी अभिलाषा रूपी प्राप्त भिक्षा को वापस भिक्षा के रूप में ही लौटा रही हूँ।
देवसेना ने क्या प्रतिज्ञा ली थी?भाई की मृत्यु के पश्चात देवसेना ने भाई के स्वप्न को पूरा करने के लिए राष्ट्रसेवा की प्रतिज्ञा ली थी।
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