दादू गावै सुरति सौं, बाणी बाजै ताल ।यहु मन नाचै प्रेम सौं, आगैं दीनदयाल ।। - daadoo gaavai surati saun, baanee baajai taal .yahu man naachai prem saun, aagain deenadayaal ..

मध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा 11वी हिंदी

माखण मन पाहण भया, माया रस पीया ।

पाहण मन माखण भया, राम रस लीया ।।

जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम ।

दादू महल बारीक है, द्वै कूँ नाहीं ठाम ।।

दादू गावै सुरति सौं, बाणी बाजै ताल ।

यहु मन नाचै प्रेम सौं, आगैं दीनदयाल ।।

जे पहुँचे ते कहि गये, तिनकी एकै बात ।

सबै साधौं का एकमत, बिच के बारह बाट ।।

दादू पाती प्रेम की, बिरला बाँचै कोइ ।

बेद पुरान पुस्तक पढ़ै, प्रेम बिना क्या होइ ।।

कागद काले करि मुए, केते बेद पुरान ।

एकै अाखर पीव का, दादू पढ़ै सुजान ।।

दादू मेरा बैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोइ ।

मैं ही मुझकौं मारता, मैं मरजीवा होइ ।।

जे तैं छाड़े हाथ थैं, ते डूबे संसार ।।

काहै कौं दुख दीजिये, साईं है सब माहिं ।

दादू एकै आत्मा, दूजा कोई नाहिं ।।

दादू इस संसार मैं, ये दोइ रतन अमोल ।

इक साईं इक संतजन, इनका मोल न तोल ।।

मध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा 11वी हिंदी

दादू गावै सुरति सौं, बाणी बाजै ताल ।यहु मन नाचै प्रेम सौं, आगैं दीनदयाल ।। - daadoo gaavai surati saun, baanee baajai taal .yahu man naachai prem saun, aagain deenadayaal ..

मध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा शब्दार्थ ः

  1. पाहण = पत्थर 
  2. मरजीवा = जीवित होते हुए भी मरा हुआ, वैरागी
  3. सुरति = याद, 
  4. स्मरण करतार = सृष्टिकर्ता
  5. बाँचे = पढ़ना 
  6. रख्या = रक्षा करना

कवि परिचय -

  1.  संत दादू दयाल का जन्म १544 को अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ। आपके गुरु का नाम बुड्ढन था। 
  2. प्रारंभिक दिन अहमदाबाद में व्यतीत करने के पश्चात साँभर (राजस्थान) में आपने जिस संप्रदाय की स्थापना की, वह आगे चलकर ‘दादू पंथ’ के नाम से विख्यात हुआ। 
  3. सामाजिक कुरीतियाँ, अंधविश्वास संबंधी मिथ्याचार का विरोध साखी तथा पदों का मुख्य विषय है। आपने कबीर की भाँति अपने उपास्य को निर्गुण और निराकार माना है। 
  4. हिंदी साहित्य के निर्गुण भक्ति संप्रदाय में कबीर के बाद आपका स्थान अन्यतम है। संत दादू दयाल की मृत्यु १६०३ में हुई। प्रमुख कृतियाँ ः ‘अनभैवाणी’, ‘कायाबेलि’ आदि ।

काव्य प्रकार -

  1.  ‘साखी’ साक्षी का अपभ्रंश है जो वस्तुत: दोहा छंद में ही लिखी जाती है । साखी का अर्थ है - साक्ष्य, प्रत्यक्ष ज्ञान ।
  2. नीति, ज्ञानोपदेश और संसार का व्यावहारिक ज्ञान देने वाले छंद साखी नाम से प्रसिद्ध हुए । 
  3. निर्गुण संत संप्रदाय का अधिकांश साहित्य साखी में ही लिखा गया है जिसमें गुरुभक्ति और ज्ञान उपदेशों का समावेश है ।नाथ परंपरा में गुरु वचन ही साखी कहलाने लगे । 
  4. सूफी कवियों द्‌वारा भी इस छंद का प्रयोग किया गया है ।

काव्य परिचय -

 प्रस्तुत साखी में संत कवि ने गुरु महिमा का वर्णन किया है। ईश्वर को पूजने के लिए कहीं बाहर जाने की 

आवश्यकता नहीं है। ईश्वर तो मन के भीतर ही है। नामस्मरण से पत्थर हृदय भी मक्खन-सा मुलायम बन जाता है । प्रेम का 

एक अक्षर पढ़ने वाले और समझने वाले ही ज्ञानी होते हैं। मनुष्य को उसका अहंकार ही मारता है, दूसरा कोई 

नहीं। अहंकार का त्याग करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। जिसकी रक्षा ईश्वर करता है, वही इस भवसागर को पार कर 

सकता है। ईश्वर एक है, वह सभी मनुष्यों में समान रूप से बसता है । अत: सबको समान मानना चाहिए।

मध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा 11वी हिंदी