मध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा 11वी हिंदीमाखण मन पाहण भया, माया रस पीया । Show पाहण मन माखण भया, राम रस लीया ।। जहाँ राम तहँ मैं नहीं, मैं तहँ नाहीं राम । दादू महल बारीक है, द्वै कूँ नाहीं ठाम ।। दादू गावै सुरति सौं, बाणी बाजै ताल । यहु मन नाचै प्रेम सौं, आगैं दीनदयाल ।। जे पहुँचे ते कहि गये, तिनकी एकै बात । सबै साधौं का एकमत, बिच के बारह बाट ।। दादू पाती प्रेम की, बिरला बाँचै कोइ । बेद पुरान पुस्तक पढ़ै, प्रेम बिना क्या होइ ।। कागद काले करि मुए, केते बेद पुरान । एकै अाखर पीव का, दादू पढ़ै सुजान ।। दादू मेरा बैरी मैं मुवा, मुझे न मारै कोइ । मैं ही मुझकौं मारता, मैं मरजीवा होइ ।। जे तैं छाड़े हाथ थैं, ते डूबे संसार ।। काहै कौं दुख दीजिये, साईं है सब माहिं । दादू एकै आत्मा, दूजा कोई नाहिं ।। दादू इस संसार मैं, ये दोइ रतन अमोल । इक साईं इक संतजन, इनका मोल न तोल ।। मध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा 11वी हिंदीमध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा शब्दार्थ ः
कवि परिचय -
काव्य प्रकार -
काव्य परिचय -प्रस्तुत साखी में संत कवि ने गुरु महिमा का वर्णन किया है। ईश्वर को पूजने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर तो मन के भीतर ही है। नामस्मरण से पत्थर हृदय भी मक्खन-सा मुलायम बन जाता है । प्रेम का एक अक्षर पढ़ने वाले और समझने वाले ही ज्ञानी होते हैं। मनुष्य को उसका अहंकार ही मारता है, दूसरा कोई नहीं। अहंकार का त्याग करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। जिसकी रक्षा ईश्वर करता है, वही इस भवसागर को पार कर सकता है। ईश्वर एक है, वह सभी मनुष्यों में समान रूप से बसता है । अत: सबको समान मानना चाहिए। मध्ययुगीन काव्य भक्ति महिमा 11वी हिंदी |