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Teri Kurmai Ho Gai ?₹110.00 ₹95.00 In stock ₹110.00 ₹95.00
Descriptionतेरी कुड़माई हो गई ‘तेरी कुड़माई हो गई ?’ एक मार्मिक प्रेम कहानी है जो स्त्री-विमर्श की दृष्टि से भी उत्कृष्ट है। गुलेरी जी की बहुचर्चित कहानी ‘उसने कहा था’ के एक प्रसिद्ध वाक्य ‘तेरी कुड़माई हो गई?’ को कहानी शीर्षक दिया गया है। इस कहानी की विशेषता यह है कि गुलेरी जी की कहानी जहाँ पर समाप्त होती है, उसके आगे यह कहानी शुरू होती है। इस कहानी की एक विशेषता यह है कि इस कहानी के नाम ‘उसने कहा था’ कहानी के ही हैं। नायक लहना की मौत के तीस साल बाद सूबेदारिन अपने अतीत का पुनरवलोकन कर रही है और स्वर्णिम स्मृतियों में जीने का प्रयास कर रही है। सुगठित कथाकार, मार्मिक संवाद और सुरम्य प्रकृति चित्रण से समन्वित पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है यह पुस्तक ‘तेरी कुड़माई हो गई?’ इस संग्रह की कहानियाँ निःसन्देह बेजोड़ हैं इनमें नदी की तरह सरस प्रवाह है। Additional information
शब्दों की कारीगरी से एक अद्भुत प्रेम कहानी कहानी बयान करने वाले चंद्रधर शर्मा की कहानी 'उसने कहा था' को 2014 में 100 साल पूरे हो रहे हैं. हिंदी साहित्य में सबसे पुरानी कहानी माने जाने वाली 'उसने कहा था' के संवाद आज भी दिलो-दिमाग पर छाए रहते हैं. यहां पढ़िए 1915 में चंद्रधर शर्मा गुलेरी की लिखी कहानी उसने कहा था. क्या मजाल है कि 'जी' और 'साहब' बिना सुने किसी को हटना पड़े. यह बात नहीं कि उनकी जीभ चलती नहीं, पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई, यदि कोई बुढ़िया बार-बार चितौनी देने पर भी लीक से नहीं हटती, तो उनकी बचनावली के ये नमूने हैं, 'हट जा जीणे जोगिए; हट जा करमा वालिए; हट जा पुतां प्यारिए; बच जा लम्बी वालिए।' समष्टि में इनके अर्थ हैं कि तू जीने योग्य है, तू भाग्योंवाली है, पुत्रों को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिये के नीचे आना चाहती है? बच जा. ऐसे बम्बूकार्टवालों के बीच में होकर एक लड़का और एक लड़की चौक की एक दुकान पर आ मिले. उसके बालों और इसके ढीले सुथने से जान पड़ता था कि दोनों सिक्ख हैं. वह अपने मामा के केश धोने के लिए दही लेने आया था और यह रसोई के लिए बड़ियां. दुकानदार एक परदेसी से गुंथ रहा था. जो सेर-भर गीले पापड़ों की गड्डी को गिने बिना हटता न था. इतने में दुकानदार निबटा और इनका सौदा देने लगा. सौदा लेकर दोनों साथ-साथ चले. कुछ दूर जा कर लड़के ने मुस्कराकार पूछा, "तेरी कुड़माई हो गई?" इस पर लड़की कुछ आंखें चढ़ा कर 'धत्' कह कर दौड़ गई, और लड़का मुंह देखता रह गया. दूसरे-तीसरे दिन सब्जीवाले के यहां फिर दूधवाले के यहां अकस्मात दोनों मिल जाते. महीना-भर यही हाल रहा.
दो-तीन बार लड़के ने फिर पूछा, 'तेरी कुड़माई हो गई?' और उत्तर में वही 'धत्' मिला. एक दिन जब फिर लड़के ने वैसे ही हंसी में चिढ़ाने के लिए पूछा तो लड़की, लड़के की संभावना के विरुद्ध बोली, "हां हो गई" लड़की भाग गई. लड़के ने घर की राह ली. रास्ते में एक लड़के को मोरी में ढकेल दिया. एक छावड़ीवाले की दिन-भर की कमाई खोई. एक कुत्ते पर पत्थर मारा और एक गोभीवाले के ठेले पर दूध उड़ेल दिया. सामने नहा कर आती हुई किसी वैष्णवी से टकरा कर अन्धे की उपाधि पाई. तब कहीं घर पहुंचा. "राम-राम, यह भी कोई लड़ाई है. दिन-रात खन्दकों में बैठे हडि्डयांअकड़ गईं. लुधियाना से दस गुना जाड़ा और मेंह और बर्फ ऊपर से. पिंडलियों तक कीचड़ में धंसे हुए हैं. जमीन कहीं दिखती नहीं. घंटे-दो-घंटे में कान के परदे फाड़नेवाले धमाके के साथ सारी खन्दक हिल जाती है और सौ-सौ गज धरती उछल पड़ती है. इस गैबी गोले से बचे तो कोई लड़े. नगरकोट का जलजला सुना था, यहां दिन में पचीस जलजले होते हैं. जो कहीं खन्दक से बाहर साफा या कुहनी निकल गई तो चटाक से गोली लगती है. न मालूम बेईमान मिट्टी में लेटे हुए हैं या घास की पत्तियों में छिपे रहते हैं.' "लहनासिंह और तीन दिन हैं. चार तो खन्दक में बिता ही दिए. परसों 'रिलीफ' आ जाएगी और फिर सात दिन की छुट्टी. अपने हाथों झटका करेंगे और पेट-भर खाकर सो रहेंगे. उसी फिरंगी मेम के बाग में..मखमल की सी हरी घास है. फल और दूध की वर्षा कर देती है. लाख कहते हैं, दाम नहीं लेती. कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो". "चार दिन तक पलक नहीं झपकी. बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही. मुझे तो संगीन चढ़ा कर मार्च का हुक्म मिल जाय. फिर सात जर्मनों को अकेला मार कर न लौटूं तो मुझे दरबार साहब की देहली पर मत्था टेकना नसीब न हो. पाजी कहीं के, कलों के घोड़े, संगीन देखते ही मुंह फाड़ देते हैं और पैर पकड़ने लगते हैं. यों अंधेरे में तीस-तीस मन का गोला फेंकते हैं. उस दिन धावा किया था. चार मील तक एक जर्मन नहीं छोड़ा था. पीछे जनरल ने हट जाने का कमान दिया, नहीं तो..." "नहीं तो सीधे बर्लिन पहुंच जाते! क्यों?" सूबेदार हजारसिंह ने मुस्कुराकर कहा, "लड़ाई के मामले जमादार या नायक के चलाए नहीं चलते. बड़े अफसर दूर की सोचते हैं. तीन सौ मील का सामना है. एक तरफ बढ़ गए तो क्या होगा?. 'सूबेदार जी, सच है' लहनसिंह बोला, "पर करें क्या? हडि्डयों-हडि्डयों में तो जाड़ा धंस गया है. सूर्य निकलता नहीं और खाई में दोनों तरफ से चम्बे की बावलियों के से सोते झर रहे हैं. एक धावा हो जाय, तो गरमी आ जाय.' "उदमी, उठ, सिगड़ी में कोले डाल. वजीरा, तुम चार जने बालटियां लेकर खाई का पानी बाहर फेंकों. महासिंह, शाम हो गई है, खाई के दरवाज़े का पहरा बदल ले.' यह कहते हुए सूबेदार सारी खन्दक में चक्कर लगाने लगे. वजीरासिंह पलटन का विदूषक था. बाल्टी में
गंदला पानी भर कर खाई के बाहर फेंकता हुआ बोला, "मैं पाधा बन गया हूं. करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण!" इस पर सब खिलखिला पड़े और उदासी के बादल फट गए. लहनासिंह ने दूसरी बाल्टी भर कर उसके हाथ में देकर कहा, "अपनी बाड़ी के खरबूजों में पानी दो. ऐसा खाद का पानी पंजाब-भर में नहीं मिलेगा". हां, देश क्या है, स्वर्ग है. मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस धुमा जमीन यहां मांग लूंगा और फलों के बूटे लगाऊंगा.' दिल्ली शहर तें पिशोर नुं जांदिए, कौन जानता था कि दाढ़ियावाले घरबारी सिख ऐसा लुच्चों का गीत गाएंगे. पर सारी खन्दक इस गीत से गूंज उठी और सिपाही फिर ताजे हो गए, मानों चार दिन से सोते और मौज ही करते रहे हों. दोपहर, रात गई है. अन्धेरा है. सन्नाटा छाया हुआ है. बोधासिंह खाली बिसकुटों के तीन टिनों पर अपने दोनों कम्बल बिछा कर और लहनासिंह के दो कम्बल और एक बरानकोट ओढ़ कर सो रहा है. लहनासिंह पहरे पर खड़ा हुआ है. एक आंख खाई के मुंह पर है और एक बोधासिंह के दुबले शरीर पर. बोधासिंह
कराहा. चुपचाप सब तैयार हो गए. बोधा भी कम्बल उतार कर चलने लगा. तब लहनासिंह ने उसे रोका. लहनासिंह आगे हुआ तो बोधा के बाप सूबेदार ने उंगली से बोधा की ओर इशारा किया. लहनासिंह समझ कर चुप हो गया. पीछे दस आदमी कौन रहें. इस पर बड़ी हुज्जत हुई. कोई रहना न चाहता था. समझा-बुझाकर सूबेदार ने मार्च किया. लपटन साहब लहना की सिगड़ी के पास मुंह फेर कर खड़े हो गए और जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाने लगे. दस मिनट बाद उन्होंने लहना की ओर हाथ बढ़ा कर कहा, "लो तुम भी पियो." आंख मारते-मारते लहनासिंह सब समझ गया. मुंह का भाव छिपा कर बोला, "लाओ साहब." हाथ आगे करते ही उसने सिगड़ी के उजाले में साहब का मुंह देखा. बाल देखे. तब उसका माथा ठनका. लपटन साहब के पटि्टयों वाले बाल एक दिन में ही कहां उड़ गए और उनकी जगह कैदियों से कटे बाल कहां से आ गए?" शायद साहब शराब पिए
हुए हैं और उन्हें बाल कटवाने का मौका मिल गया है? लहनासिंह ने जांचना चाहा. लपटन साहब पांच वर्ष से उसकी रेजिमेंट में थे. "होश में आओ. कयामत आई और लपटन साहब की वर्दी पहन कर आई है." बिजली की तरह दोनों हाथों से उल्टी बन्दूक को उठा कर लहनासिंह ने साहब की कुहनी पर तान कर दे मारा. धमाके के साथ साहब के हाथ से दियासलाई गिर पड़ी. लहनासिंह ने एक कुन्दा साहब की गर्दन पर मारा और साहब 'आंख! मीन गौट्ट' कहते हुए चित्त हो गए. लहनासिंह ने तीनों गोले बीन कर खन्दक के बाहर फेंके और साहब को घसीट कर सिगड़ी के पास लिटाया. जेबों की तलाशी ली. तीन-चार लिफ़ाफ़े और एक डायरी निकाल कर उन्हें अपनी जेब के हवाले किया. साहब की मूर्छा हटी. लहनासिंह हंस कर बोला, "क्यों लपटन साहब? मिजाज कैसा है? आज मैंने बहुत बातें सीखीं. यह सीखा कि सिख सिगरेट पीते हैं. यह सीखा कि जगाधरी के जिले में नील गायें होती हैं और उनके दो फुट चार इंच के सींग होते हैं. यह सीखा कि
मुसलमान खानसामा मूर्तियों पर जल चढ़ाते हैं. और लपटन साहब खोते पर चढ़ते हैं. पर यह तो कहो, ऐसी साफ उर्दू कहां से सीख आए? हमारे लपटन साहब तो बिन 'डेम' के पांच लफ्ज भी नहीं बोला करते थे" लहनासिंह कहता गया, "चालाक तो बड़े हो पर मांझे का लहना इतने बरस लपटन साहब के साथ रहा है. उसे चकमा देने के लिए चार आंखें चाहिए. तीन महीने हुए एक तुरकी मौलवी मेरे गांव आया था. औरतों को बच्चे होने के ताबीज बांटता था और बच्चों को दवाई देता था. चौधरी के बड़ के नीचे मंजा बिछा कर हुक्का पीता रहता था और कहता था कि जर्मनीवाले बड़े पंडित हैं. वेद पढ़-पढ़ कर उसमें से विमान चलाने की विद्या जान गए हैं. गौ को नहीं मारते. हिन्दुस्तान में आ जाएंगे तो गोहत्या बन्द कर देंगे. मंडी के बनियों को बहकाता कि डाकखाने से रुपया निकाल लो. सरकार का राज्य जानेवाला है. डाक-बाबू पोल्हूराम भी डर गया था. मैंने मुल्ला जी की दाढ़ी मूड़ दी थी और गांव से बाहर निकल कर कहा था कि जो मेरे गाँव में अब पैर रक्खा तो..." साहब की जेब
में से पिस्तौल चला और लहना की जांघ में गोली लगी. इधर लहना की हैनरी मार्टिन के दो फायरों ने साहब की कपाल-क्रिया कर दी. धड़ाका सुन कर सब दौड़ आए. इतने में सत्तर जर्मन चिल्लाकर खाई में घुस पड़े. सिक्खों
की बन्दूकों की बाढ़ ने पहले धावे को रोका. दूसरे को रोका. पर यहां थे आठ (लहनासिंह तक-तक कर मार रहा था, वह खड़ा था और बाकी लेटे हुए थे) और वे सत्तर. अपने मुर्दा भाइयों के शरीर पर चढ़ कर जर्मन आगे घुसे आते थे. थोड़े से मिनिटों में वे... एक किलकारी और... 'अकाल सिक्खाँ दी फौज आई! वाह गुरु जी दी फतह! वाह गुरु जी दा खालसा! सत श्री अकालपुरुख!!!' और लड़ाई ख़तम हो गई। तिरेसठ जर्मन या तो खेत रहे थे या कराह रहे थे। सिक्खों में पन्द्रह के प्राण गए। सूबेदार के दाहिने कन्धे में से गोली आरपार निकल गई। लहनासिंह की पसली में एक गोली लगी। उसने घाव को खन्दक की गीली मट्टी से पूर लिया और बाकी का साफा कस कर कमरबन्द की तरह लपेट लिया। किसी को ख़बर न हुई कि लहना को दूसरा घाव - भारी घाव लगा है. लड़ाई के समय चांद निकल आया था. ऐसा चांद, जिसके प्रकाश से संस्कृत-कवियों का दिया हुआ 'क्षयी' नाम सार्थक होता है और हवा ऐसी चल रही थी जैसी वाणभट्ट की भाषा में 'दन्तवीणोपदेशाचार्य' कहलाती. वजीरासिंह कह रहा था कि कैसे मन-मन भर फ्रांस की भूमि मेरे बूटों से चिपक रही थी, जब मैं दौड़ा-दौड़ा सूबेदार के पीछे गया था. सूबेदार लहनासिंह से सारा हाल सुन और कागजात पाकर वे उसकी तुरत-बुद्धि को सराह रहे थे और कह रहे थे कि तू न होता तो आज सब मारे जाते. इस लड़ाई की आवाज़ तीन मील दाहिनी ओर की खाई
वालों ने सुन ली थी. उन्होंने पीछे टेलीफोन कर दिया था. वहां से झटपट दो डॉक्टर और दो बीमार ढोने की गाडियां चलीं, जो कोई डेढ़ घण्टे के अन्दार-अन्दर आ पहुंची. फील्ड अस्पताल नज़दीक था. सुबह होते-होते वहां पहुंच जाएंगे. इसलिए मामूली पट्टी बांधकर एक गाड़ी में घायल लिटाए गए और दूसरी में लाशें रक्खी गईं. सूबेदार ने लहनासिंह की जांघ में पट्टी बंधवानी चाही. पर उसने यह कह कर टाल दिया कि थोड़ा घाव है सबेरे देखा जायेगा. बोधासिंह ज्वर में बर्रा रहा था. वह गाड़ी में लिटाया गया. लहना को छोड़ कर सूबेदार जाते नहीं
थे. यह देख लहना ने कहा, "तुम्हें बोधा की कसम है, और सूबेदारनी जी की सौगन्ध है जो इस गाड़ी में न चले जाओ". गाड़ियां चल पड़ी थीं. सूबेदार ने चढ़ते-चढ़ते लहना का हाथ पकड़ कर कहा, "तैने मेरे और बोधा के प्राण बचाये हैं. लिखना कैसा? साथ ही घर चलेंगे। अपनी सूबेदारनी को तू ही कह देना. उसने क्या कहा था?" मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ़ हो जाती है. जन्म-भर की घटनायें एक-एक करके सामने आती हैं. सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं. समय की
धुन्ध बिल्कुल उन पर से हट जाती है. लहनासिंह बारह वर्ष का है. अमृतसर में मामा के यहां आया हुआ है. दहीवाले के यहां, सब्जीवाले के यहां, हर कहीं, उसे एक आठ वर्ष की लड़की मिल जाती है. जब वह पूछता है, तेरी कुड़माई हो गई? तब 'धत्' कह कर वह भाग जाती है. एक दिन उसने वैसे ही पूछा, तो उसने कहा, "हां, कल हो गई, देखते नहीं यह रेशम के फूलोंवाला सालू'' सुनते ही लहनासिंह को दु:ख हुआ. क्रोध हुआ. क्यों हुआ? जब चलने लगे, तब सूबेदार बेढे में से निकल कर आया। बोला, "लहना,
सूबेदारनी तुमको जानती हैं, बुलाती हैं. जा मिल आ. लहनासिंह भीतर पहुंचा. सूबेदारनी मुझे जानती हैं? कब से? रेजिमेंट के क्वार्टरों में तो कभी सूबेदार के घर के लोग रहे नहीं. दरवाज़े पर जा कर 'मत्था टेकना' कहा. असीस सुनी. लहनासिंह चुप. स्वप्न चल रहा है. सूबेदारनी कह रही है, "मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया. एक काम कहती हूं. मेरे तो भाग फूट गए. सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में जमीन दी है, आज नमक-हलाली का मौका आया है. पर सरकार ने हम तीमियों की एक घंघरिया पल्टन क्यों न बना दी, जो मैं भी सूबेदार जी के साथ चली जाती? एक बेटा है. फौज में भर्ती हुए उसे एक ही बरस हुआ. उसके पीछे चार और हुए, पर एक भी नहीं जिया.' सूबेदारनी रोने लगी.''अब दोनों जाते हैं. मेरे भाग! तुम्हें याद है, एक दिन टाँगेवाले का घोड़ा दहीवाले की दुकान के पास बिगड़ गया था. तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे, आप घोड़े की लातों में चले गए थे, और मुझे उठा-कर दूकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था. ऐसे ही इन दोनों को बचाना. यह मेरी भिक्षा है. तुम्हारे आगे आंचल पसारती हूं.'' रोती-रोती सूबेदारनी ओबरी में चली गई. लहना भी आंसू पोंछता हुआ बाहर आया. ''वजीरासिंह, पानी पिला'' ... 'उसने कहा था.' कुछ दिन पीछे लोगों ने अख़बारों में पढ़ा... फ्रान्स और बेलजियम... 68 वीं सूची... मैदान में घावों से मरा... नं 77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह. तेरी कुड़माई हो गई क्या किस कहानी की पंक्ति है *?गुलेरी जी की बहुचर्चित कहानी 'उसने कहा था' के एक प्रसिद्ध वाक्य 'तेरी कुड़माई हो गई?
तेरी कुड़माई हो गई का अर्थ क्या है?तेरी तो कुड़माई हो गई' का क्या अर्थ है ? - Quora. "धत् ! तेरी तो कुड़माई हो गई" का क्या अर्थ है ? कुड़माई हो गयी यानी सगाई हो गयी।
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