यहां यह बात भी समझानी जरूरी है कि निवेश का डाइवर्सिफिकेशन मात्र शेयरों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। निवेशकों को मात्र शेयरों में निवेश करने से भी जोखिम होती है। भले ही उसने अनेक प्रकार के शेयरों में निवेश किया हो। पूरा शेयर बाजार ही मंदी की चपेट में आ जाय तो क्या हो? निवेशकों को अपने असेट का भी डाइवर्सिफिकेशन रखना चाहिए। जिसे दूसरे शब्दों में असेट एलोकेशन भी कहा जाता है। सरल शब्दों में कहा जाय तो निवेशकों को शेयरों के बाद सोना, चांदी, प्रापर्टी, बैंक या कार्पोरेट डिपॉजिट, बांड्स, सरकारी बचत योजनाओं इत्यादि में भी निवेश करना चाहिए। ऐसा करने से उसकी संपूर्ण जोखिम का विभाजन हो जाता है और वह अपने पूरे निवेश को खोने से बच सकता है। Show
अनेक बार कंपनियों का फंडामेंटल तो मजबूत रहता है, परंतु बाजार का फंडामेंटल कमजोर रहने से शेयरों के भाव कम रह सकते हैं। निवेशकों को ऐसे समय में कंपनी के फंडामेंटल को अधिक महत्व देना चाहिए।
यह हुई शेयर के भाव में डिस्काउंट की बात। दूसरी तरफ शेयर बाजार में अनेक ऐसी घटनाएं एवं समाचार होते हैं जहां इस शब्द का उपयोग किया जाता है। किसी घटना के होने की संभावना मात्र से बाजार पर उसका असर पड़ जाये और वह घटना वास्तव में घटित होने पर उसका खास असर बाजार पर न पड़े तो कहा जाता है कि वह घटना डिस्काउंट हो गयी। उदाहरण के लिए रिजर्व बैंक की घोषणाएं होने की संभावना से ही बाजार पर उसका असर पड़ जाये और सचमुच घोषणा होने पर उसका कोई खास असर दिखायी न दे तो कहा जाता है कि रिजर्व बैंक की घोषणाएं डिस्काउंट हो गयी।
टेकओवर परस्पर आपसी सहमति से भी होता है तथा बाजार की व्यूहरचना के साथ चालाकी से भी किया जाता है जिसमें अनेक बार जिस कंपनी का टेकओवर किया जाता है उस कंपनी के मैनेजमेंट को अंधेरे में भी रखा जाता है। इस प्रकार के ``टेकओवर वार`` के अनेक किस्से कार्पोरेट इतिहास में दर्ज हैं। ऐसे टेकओवर को ``होस्टाइल टेकओवर`` कहा जाता है। इस विषय की जटिलता एवं शेयरधारकों की सुरक्षा एवं हितों के विभिन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सेबी ने टेकओवर रेग्युलेशन्स बनाया है और समय-समय पर आवश्यकतानुसार उसमें सुधार भी किया जाता है। निवेशकों को कार्पोरेट टेकओवर के किस्सों पर नजर रखनी चाहिए क्योंकि आगामी वर्षों में ऐसे किस्से बढ़ने की संभावना है। भारी प्रतिस्पर्धा में न टिक पाने वाली छोटी एवं मध्यम कद की कंपनियों को विशालकाय कंपनियां टेकओवर कर लें तो ऐसे में उन छोटी कंपनियों की किस्मत बदल जाती है, जिसका प्रभाव दोनों कंपनियों के शेयर भावों पर पड़ता है।
सन्दर्भ[स्रोत सम्पादित करें]बाहरी कड़ियाँ[स्रोत सम्पादित करें]शेयर की कीमत कम ज्यादा क्यों होती है?महंगाई बढ़ने का मतलब है कि वस्तुओं और सेवाओं के दाम बढ़ रहे हैं. इससे कंपनियों की आय और प्रॉफिट भी बढ़ता है जिससे कंपनियों के शेयरों की खरीदारी बढ़ती है और स्टॉक्स की कीमत भी ऊपर की ओर भागती है. जैसे-जैसे देश में जनसंख्या बढ़ती है कंपनियों के प्रोडक्ट्स के लिए बाजार भी बढ़ता जाता है.
किसी कंपनी का शेयर का भाव कैसे बढ़ता है?जब कोई कंपनी बाजार में खरीद के लिए नए शेयर जारी करती है, तो उनकी संख्या सीमित होती है। यदि बहुत सारे निवेशक इन शेयरों को खरीदने की कोशिश कर रहे हैं, और आपूर्ति कम है, तो इससे शेयरों की कीमत में वृद्धि होगी।
एक दिन पहले ही कैसे पता करें की किस शेयर का price ऊपर जा सकता है?NSE से Stock की Delivery Position चेक करें
अगर आप एक दिन पहले ही पता करना चाहते हैं कि कौन सा स्टॉक बढ़ेगा तो आपको NSE यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर Delivery positions को चेक करना है. Delivery positions देखने से आपको पता चलता है कि स्टॉक में कितने प्रतिशत (%) quantity trade हुई है.
शेयर खरीदने से पहले क्या देखना चाहिए?शेयर खरीदते समय क्या ध्यान रखें?. कंपनी का बिजनेस मॉडल समझने की कोशिश करें ... . कंपनी पर कर्ज ज्यादा नहीं होना चाहिए ... . बैलेंस शीट और फाइनेंसियल हेल्थ यानी फंडामेंटल देखें ... . चेक करो कि कंपनी कितनी पुरानी है ... . सर्किट लगने वाले शेयरों में निवेश नहीं करना चाहिए ... . कंपनी के जरूरी फाइनेंसियल रेश्यो जरूर देखें ... . मैनेजमेंट पर एक नजर जरूर डालें. |