सर्रा बीमारी का लक्षण क्या है? - sarra beemaaree ka lakshan kya hai?

सर्रा बीमारी का लक्षण क्या है? - sarra beemaaree ka lakshan kya hai?

पशु संदेश, 29th October 2018

डा प्रियंका

सर्रा पशुओं की एक घातक बीमारी है। इसे ट्रिपैनोसोमिएसिस,अफ्रीकन निंद्रा रोग,  पेठारोग, दुबला रोग, पुराना रोग, तिब्रसा और गुजरात मे नृत्य मक्खी नो रॉग, चक्रनो रॉग के नाम से भी जाना जाता है।ऊटं मे इस बिमारी का कोर्स 3 साल का होने के कारण इसे तिबरसा भी कहा जाताहै।इस रोग मे पशु को अतितीव्र बुखार के साथ- साथ अधांपन भी हो जाता है।यह रोग भारत,आस्ट्रेलिया व अफ्रीका देशों में देखने को मिलता है। 

कारण: यह रोग एक रक्त परजीवी (प्रोटोजोआ) ‘ट्रिपैनोसोमा’ के कारण उत्पन्न होता है।यह विभिन्न प्रकार की मक्खियों जैसेसी-सी (Tse-Tse), टेबेनस और स्टोमोक्सिस के काटने से एक पशु से दूसरे पशु मे फैलता है।

प्रभावितपशु: यह रोग गाय, भैंस, अश्व, भेड़, बकरी, कुत्ता, ऊंट व हाथी में देखने को मिलता है।

लक्षण: 

तेज बुखार या सामान्य से कम तापमान, तेज उत्तेजना, सिर को दीवार या जमीन आदि से दबाना, कांपना या थर्रथरना, छटपटाना या मूर्छित सा होना, पेशाब बार-बार व थोड़ा-थोड़ा करना, मुंह से लार बहना/टपकना, जुगाली न करना, खाना-पीना छोड़ देना।गोलाई में चक्कर लगाना, गले मे बंधी हुई रस्सी या जंजीर को खींच कर रखना, गिरजाने पर उठ न पाना या बैठ जाने पर उठ न पाना, लगातार कमजोर होते जाना, खांसी करना। 14-21 दिनों में मृत्यु या कभी-कभी ऐसे लक्षण रोगी पशु मे 2-4 महीने तक भी देखे गये हैं।

कुछ पशुओं में आँखें लाल हो जाती हैं।कई पशुओं में खाना-पीना ठीक-ठाक होता है लेकिन दिन-प्रति-दिन कमजोर होते चले जाते हैं।ऐसे पशुओं में आँख की पुतलीयाँ सफेद एवं पीली होनी शुरू हो जाती हैं और आँख की नेत्र श्लेष्मा (conjunctivae) पर लाल रंग के धब्बे पड़ने शुरू हो जाते हैं।ऐसे पशुओं में बुखार कभी हो जाता है व अपने आपही ठीक भी हो जाता है व उनका खून पतला हो जाता है।कुछ पशुओं में शरीर के नीचले हिस्सों (जैसे कि टांगें, गला, छाती (brisket) पेट के नीचले हिस्से) में सूजन आ जाती है।कई बार पशु में दौरा पडने पर तेज कंपकपाहट होती है, पशु अचानक गिर जाता है और कुछ समय मे ही पशु की म्रत्यु तक हो जाती है।यदि ऐसे पशुओं का ईलाज नही होता है तो उनकी मृत्यु हो जाती है।

मऊ : पशुपालक सावधान! मौसम में हो रहे बदलाव से आपके पशु को सर्रा रोग हो सकता है। कंपकपी के साथ पशु गिरने लगे और नाक से लार आने लगे तो समझ लीजिए सर्रा का प्रभाव हो चुका है। इसलिए जल्दी करें, त्वरित इलाज न करने की दशा में चौबीस घंटे के भीतर अपने पशु से हाथ धो बैठेंगे। गंदगी के बीच प्रोटोजुअल वायरस के कारण फैलने वाला यह रोग तेजी से पशु को अपनी चपेट में ले लेता है। आंशिक लापरवाही भी घातक हो सकती है।

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सावधानी व उपचार

पशु चिकित्सा केंद्र डुमरांव के चिकित्सक डॉ. सतीश कुमार सिंह ने कहा कि मौसम बदलाव के साथ सर्रा पशुओं में तेजी से फैलता है। इस रोग का कोई टीका नहीं बना है। इसलिए रोग के प्राथमिक लक्षण दिखते ही तत्काल पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। ट्राइक्वीन इंजेक्शन जरूर लगाना चाहिए। इससे छह माह तक पशु को सर्रा नहीं हो सकता है। डेक्सट्राल 100 एमएल दोनों समय पशु को देना चाहिए। दिन में तीन बार पशु को ताजा पानी पिलाएं। पशु को धूप व लू से बचाएं।

पशु चिकित्सा केंद्र ताजोपुर के डॉ. मारकंडेय यादव ने कहा कि पशुओं के स्थान की नियमित सफाई के साथ चूने का छिड़काव करना रोग से बचाव का प्राथमिक उपचार है। पशु को गुड़ खिलाने के साथ गुड़ देने से रोग में राहत मिलती है। पशु के सिर के ऊपर तीन घंटे बाद ठंडा पानी गिराने से इस रोग में लाभ मिलता है।

सर्रा रोग (Surra) मेरुडण्ड वाले प्राणियों को लगने वाला रोग है। यदि इसका इलाज नहीं किया गया तो पशु मर सकता है। यह रोग ट्राईपैनसो-इवेनसाई (Trypanosoma evansi) नामक परजीवी के कारण होता है। यह प्रोटोजोवा पशु के रक्त में प्रवेश कर जाता है जिससे ज्वर, कमजोरी, सुस्ती, वजन कम होना और खून की कमी हो जाती है। कुछ पशु चक्कर काटने लगते हैं। इस बीमारी के चलते पशुओं में तेज बुखार, थरथराहट, आंख से दिखना बंद हो जाता है। पशु दांत किटकिटाता है। जल्दी जल्दी पेशाब करता है। पेट फूल जाता है और गिर कर मर जाता है। नर पशुओं के अण्डकोष में सूजन आ जाती है। मादा पशुओ में गर्भपात की समस्या आती है। यह रोग मुख्यतः ऊंट या ऊँटनी में देखा जाता है। ऊंट का कूबड़ धीरे धीरे नष्ट होने लगता है। खून चुचने वेल मक्खीओ (गोभक्षी) द्वारा फैलता है।

  • पशु चिकित्सा विज्ञान सर्रा रोग में देहाती उपचार के अनुसार जानवर को महूआ के फूली दारू भी दिया जाता है।

ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को सर्वप्रथम ग्रिफिथ इवांस ने 1885 ई में पंजाब के डेरा ईस्माइल खान जिला (अभी पाकिस्तान मे अवस्थित है) में घोडों एवं ऊटों के खून में देखा था।

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ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी
  • यह परजीवी बहुत सारे पशुओं जैसे-घोड़ा, कुत्ता, ऊँट, भैंस, गाय, हाथी, सुअर, बिल्ली चूहा, खरगोष, बाघ, हाथी, हिरन, सियार, चितल, लोमड़ी आदि को प्रभावित करता है। लेकिन ऊँट, घोड़ा एवं कुत्ता में सर्रा बहुत गंभीर रोग के रूप में प्रकट होता है। भैंस में इस रोग का प्रकोप गाय की अपेक्षा अधिक होता हैं।
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सर्रा रोग से प्रभावित होने वाले पशु

रोग की व्यापिकता
यह पशुओं के उत्पादकता कम करने वाला तथा प्राणघातक रोग हैं, जो बरसात के समय तथा बरसात के बाद 2-3 महीनों में अधिक देखने को मिलता है क्योंकि इस मौसम में रोग फैलाने वाले उत्तरदायी मक्खियों जैसे- टेबेनस (मुख्य रूप से) आदि की संख्या में अत्याधिक बढ़ोत्तरी हो जाती है।

रोग का प्रसार

  • यह रोग, रोग-ग्रस्त पशु से स्वस्थ पशु में खून चूसने या काटने वाले मक्खी जैसे- टेबेनस (मुख्यतः), स्टोमोक्सिस, लाइपरोसिया आदि के द्वारा यांत्रिक रूप से फैलता है।
  • जब टेबेनस मक्खी, सर्रा संक्रमित पशु से खून चुसता है तो ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को अपने मुँह में ले लेती है । यह परजीवी 10-15 मिनट तक मक्खी के मुँह में जिन्दा रहता है।
  • टेबेनस मक्खी के थोड़ी-थोड़ी देर के अन्तराल पर काटने की प्रवृत्ति, ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को सफलतापूर्वक एक पशु से दूसरे पशु के शरीर में पहुँँचाने में मददगार साबित होता है।
  • कुत्तों एवं मांसहारी जंगली पशुओं (बाघ आदि) में सर्रा रोग का फैलाव ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई संक्रमित ताजा मांस के खाने से भी होता है।
  • टेबेनस मक्खी को भारत में अधिकतर क्षेत्रों के लोग ‘डांस’ मक्खी के नाम से ज्यादा जानते है।

और देखें :  पशुओं के पाचन संबंधी विकार: कारण एवं निवारण

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टेबेनस मक्खी

रोग का लक्षण

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गाय-भैंस: सर्रा रोग अति तीव्र, अल्पतीव्र, तीव्र तथा दीर्घकालिक प्रकार का होता है। आमतौर पर गाय-भैंस के शरीर में इस रक्त परजीवी के रहने पर भी कोई बाहरी लक्षण नहीं दिखाई पड़ता है। इस रोग में गाय-भैंस में दिखाई पड़ने वाले मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:

  • प्रभावित पशु में रूक-रूक कर बुखार आना, बार-बार पेशाब करना, खून की कमी, पशु द्वारा गोल-गोल चक्कर लगाना, सिर को दीवार या किसी कड़ी वस्तु से टकराना।
  • खाना-पीना कम कर देना, आँख एवं नाक से पानी गिरने लगना एवं मुँह से भी लार गिरने लगना।
  • प्रभावित पशु का धीरे-धीरे अत्याधिक दुर्बल एवं कमजोर होते चला जाना।
  • सक्रमित दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन में बहुत ज्यादा कमी हो जाना ।
  • संक्रमित पशुओं का पिछला धड़ लकवा-ग्रस्त हो जाना।
  • प्रभावित पशु की प्रजनन-क्षमता में कमी एवं गर्भित पशुओं में गर्भपात होने की पूरी संभावना रहना।

घोडा: सर्रा रोग से संक्रमित घोंड़ें का समय पर उचित चिकित्सा नही होने पर संक्रमित घोंड़ों का कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों में मृत्यु हो जाती है, जो ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई प्रजाति के प्रचण्डता (विरूलेन्स) पर निर्भर करता है । रूक-रूक कर बुखार आना, दुर्बलता, पैर एवं शरीर के निचले हिस्सों में जलीय त्वचा षोथ (सूजन) अर्थात इडीमा का हो जाना, गर्दन एवं शरीर के पार्श्व क्षेत्रों में पित्ती के जैसा उभार (अर्टिकेरियल प्लैक) हो जाना आदि लक्षण प्रकट होता है।

ऊँट: इस रोग का तीव्र या चिरकालिक रूप ऊँट में पाया जाता है, जिसका उपचार न होने पर प्रभावित ऊँट की मृत्यु भी हो जाती है । चिरकालिक सर्रा में संक्रमण लगभग तीन साल तक रहता है जिसके कारण सर्रा रोग को ऊँट में टिर्बसा भी कहा जाता है। बुखार, प्रगतिशील दुर्बलता, कमजोरी, खून की कमी (एनीमिया), शरीर के निर्भर भागों मे जलीय त्वचा शोथ, गर्भपात आदि लक्षण सर्रा संक्रमित ऊँट में दिखाई पड़ता हैं।

कुत्ता: सर्रा रोग से संक्रमित कुत्ता के कंठनली में जलीय त्वचा शोथ (इडीमा) हो जाता है, जिसके कारण संक्रमित कुत्ता का आवाज रैबीज रोग के समान हो जाता है । इसके अलावे नेत्रपटल अस्पष्टता (काॅर्नियल ओपेसिटी) भी होता है जिसमें आँख नीले रंग का हो जाता है।

और देखें :  पशु प्रेम एवं पशु कल्याण का सामाजिक जीवन में महत्व

रोग की पहचान

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  • लक्षणों (रूक-रूक कर बुखार आना, दुर्बलता, सिर को दीवार या किसी कड़ी वस्तु से टकराना आदि) के आधार पर।
  • कांच के स्लाइड पर रोग-ग्रस्त पशु के रक्त के आलेप को जिम्सा या लीशमैन से रंगकर सूक्ष्मदर्षी की सहायता से देखने पर धागे या पत्ते के आकार का ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई नामक प्रोटोजोआ रक्त-प्लाज्मा में दिखाई पड़ता है । इस जाँच हेतु रक्त प्रायः पशु कान के शिरा (वेन) से शरीर के तापक्रम अधिक होने पर अर्थात बुखार के समय किटाणुरहित स्टेरलाइजड सुई से ही निकालना चाहिए।
  •  रोग के अति तीव्र एवं तीव्र अवस्था मे संक्रमित पशु का एक बूँद खून कांच के स्लाइड पर लेकर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने पर धागे के आकार ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी जीवित एवं चलते हुए दिखाई देता है।
सर्रा बीमारी का लक्षण क्या है? - sarra beemaaree ka lakshan kya hai?
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रक्तप्लाज्मा में उपस्थित ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई
  • पशु के शरीर के अन्दर छिपे हुए ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी को पता लगाने में पशु संरोपण विधी में अल्बिनो चूहों का प्रयोग किया जाता है।
  • उपरोक्त जांच विधि के अलावे, आधुनिक आणविक विधी जैसे- पाॅलिमेरेज चेन रिएक्शन (पी.सी.आर.) के द्वारा इस रोग का पता लगाया जाता है। इस विधी का प्रयोग कर सर्रा के दीर्घकालिक अवस्था का भी पता लगाया जा सकता है क्योंकि दीर्घकालिक अवस्था वाले सर्रा रोग में शरीर के बाहृय शिरा (परिधीय शिरा) में ट्रिपेनोसोमा इवेन्साई परजीवी के मिलने की संभावना कम रहती हैं ।

रोग का उपचार

  • ट्रिपेनोसोमियोसिस (सर्रा) रोग के उपचार हेतु क्यूनापाइरामीन सल्फेट 1.5 ग्राम तथा क्यूनापाइरामीन क्लोराइड 1.0 ग्राम (ट्राइक्वीन-2.5 ग्राम) औषधि लेकर 15 मि.ली डिसटिल्ड जल में घोल बनाकर चमड़े के अन्दर सुई द्वारा आधी मात्रा गर्दन में एवं आधी मात्रा शरीर के पिछले हिस्से में पशुचिकित्सक की देख-रेख में देने से लाभदायक सिद्ध होता है।
  • सर्रा रोग से प्रभावित पशु के शरीर में ग्लुकोज की अत्याधिक कमी हो जाती है जिसकी पूर्ति हेतु डेक्सट्रोज स्लाईन (25 प्रतिशत) का प्रयोग पशुचिकित्सक की सलाह के अनुसार करना फायदेमंद होता है।
  • इसके अलावे डायमिनाजीन एसीचुरेट 7 मिलिग्राम प्रति किलोगा्रम पशु शरीर भार पर या आइसोमेटामिडियम क्लोराइड 0.5 मिलिग्राम प्रति किलोगा्रम पशु शरीर भार पर या मेलारसोमिन हाइड्रोक्लोराइड या टारटर इमेटिक औषधि का प्रयोग भी इस रोग में कारगर साबित होता है ।

और देखें :  लगभग सवा 4 लाख पशुओं में लगेगा गलघोंटू-एकटंगिया रोग का टीका

बचाव

  • सर्रा रोग का कोई टीका अभी तक नही बना है । अतः इस रोग से बचाव हेतू क्यूनापाइरामीन क्लोराइड औषधि या आइसोमेटामिडियम क्लोराइड का प्रयोग कर किया जा सकता है जिसके प्रयोग से पशु को लगभग 4 महीनो तक सर्रा रोग नही हो पाता है।
  • सर्रा रोग फैलानेवाले मक्खियों जैसे टेबेनस आदि की संख्या को नियंत्रित करके भी इस रोग के संक्रमण को कम किया जा सकता है। मक्खियों की संख्या को नियंत्रण, कीटनाशक का छिड़काव समयानुसार पशु आवास के अन्दर एवं आस-पास करके, पशु के मल को समुचित निस्तारण करके, पशु आवास के आस-पास जल-जमाव रोककर, मक्खी पकड़नेवाले उपकरणों आदि के द्वारा किया जा सकता है।

The content of the articles are accurate and true to the best of the author’s knowledge. It is not meant to substitute for diagnosis, prognosis, treatment, prescription, or formal and individualized advice from a veterinary medical professional. Animals exhibiting signs and symptoms of distress should be seen by a veterinarian immediately.

लेखक

  • सर्रा बीमारी का लक्षण क्या है? - sarra beemaaree ka lakshan kya hai?
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    डॉ. अजीत कुमार

    विभागाघ्यक्ष, परजीवी विज्ञान विभाग, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पटना, बिहार, भारत

    सर्रा बीमारी का इलाज क्या है?

    ट्राइक्वीन इंजेक्शन जरूर लगाना चाहिए। इससे छह माह तक पशु को सर्रा नहीं हो सकता है। डेक्सट्राल 100 एमएल दोनों समय पशु को देना चाहिए। दिन में तीन बार पशु को ताजा पानी पिलाएं।

    सर्रा रोग कैसे होता है?

    अशोक कुमार तिवारी ने बताया कि सर्रा रोग पशुओं में डास मक्खी के काटने से होता है। यह रक्त परजीवी मक्खी है। एक पशु से दूसरे पशुओं में रोग को फैलाता है। यह रोग गाय, भैंस, घोड़ा, भेड़, बकरी, कुत्ता, ऊंट और हाथी में होता है।

    सर्रा रोग के लक्षण क्या है?

    लक्षण: तेज बुखार या सामान्य से कम तापमान, तेज उत्तेजना सिर को दीवार या जमीन आदि पर दबाना, कांपना या थरथराना, छटपटाना या मुर्छित सा होना, पेशाब बार-बार व थोड़ा-थोड़ा करना, मुंह से लार बहना/टपकना, जुगाली न करना, खाना-पीना छोड़ देना/ गोलाई में चक्कर लगाना, गले में बंधी हुई रस्सी या जंजीर को खींच कर रखना, गिर जाने पर उठ न ...

    पशु को बुखार होने पर क्या करें?

    पशुओं को बुखार आने पर पशु को अधिक से अधिक ताजा पानी पीने को देना चाहिए। मीठा सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 15 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, सैलीसिलिक एसिड 15 ग्राम, 500 मिली. पोटैशियम नाइट्रेट, 30 ग्राम चिरायता का महीन चूर्ण और गुड़ 100 ग्राम लगभग 200 ग्राम पानी में घोल कर गाय या भैंस को 8 से 10 घंटे के अंतर पर पिलाना चाहिए।