ब्रिटिश रिसर्चरों ने जानवरों पर इसका प्रयोग करके देखा है और उसमें सफलता पाई है. वैज्ञानिकों ने एक ऐसी दवा को लेकर यह प्रयोग किया है जो पहले से मौजूद थी. जानवरों में इसे आजमाने पर उन्हें जहरीले सांप के जहर से जिंदा बचाने में सफलता मिली. Show
इस दवा में जो सक्रिय तत्व होता है वह ‘डाईमेर्काप्रॉल' कहलाता है. ब्रिटेन के लिवरपूल की इस रिसर्च टीम ने सांप के जहर के असर को काटने में इस तत्व से लैस दवा को टेस्ट किया. अब तक इस तत्व और इससे मिलते जुलते तत्व डीपीएमएस (2,3-डाईमेर्काप्टो-1-प्रोपेनसल्फोनिक एसिड) का इस्तेमाल उन मामलों में किया जाता था जहां किसी को आर्सेनिक या पारा जैसे हेवी मेटल का जहरीला असर हो गया हो. कैसे काटता है ये जहर को अब रिसर्चरों ने दिखाया है कि यही दोनों सक्रिय तत्व सांप के जहर को काटने में भी काम आ सकते हैं. इसका विचार सबसे पहले बायोकेमिस्ट और मॉलिकुलर बायोलॉजिस्ट लॉरा ओआना-अलबूलेस्कू ने पेश किया. लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में काम करने वाली यह रिसर्चर और उनकी टीम ऐसे सक्रिय तत्वों की तलाश में लगे थे जो शरीर में सांप के जहर के साथ काम करने वाले धातु के आयनों से जुड़ सकें. इसमें उन्होंने इन दोनों तत्वों को कारगर पाया. ‘डाईमेर्काप्रॉल' और डीपीएमएस दोनों सांप के जहर में मौजूद उन खास एंजाइमों के खिलाफ काम करते हैं, जिन्हें शरीर पर बुरा असर डालने वाला प्रभाव दिखाने के लिए जिंक आयनों की जरूरत होती है. इस तत्व से युक्त दवा ऐसे काम करती है कि वह शरीर में इन्हीं जिंक आयनों को बांध देती है. रिसर्चरों ने पहले इसे लैब में करके दिखाया और अपने परीक्षण के नतीजों को 6 मई, 2020 को ‘साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन' नामक जर्नल में प्रकाशित किया. वैज्ञानिकों ने डीपीएमएस का टेस्ट जानवरों पर भी किया और उसमें सफलता मिली. इसके लिए उन्होंने बेहद जहरीले वाइपर सांप की एक प्रजाति का जहर इस्तेमाल किया. उन्होंने पाया कि दवा की मदद से जहर के जानलेवा असर से शिकार को बचाया जा सकता है. सॉ-स्केल्ड वाइपर कहलाने वाला यह सांप अफ्रीका से लेकर मध्यपूर्व और एशिया तक में पाया जाता है. ब्रिटिश रिसर्च एजेंसी एसएसटीएम के आंकड़ों को देखें तो सांप के डसने से हर साल करीब 138,000 लोगों की जान चली जाती है और लगभग 400,000 लोगों की सेहत हमेशा हमेशा के लिए खराब हो जाती है. आसानी से मिलने वाली दवा सबसे अच्छी बात यह है कि डॉक्टर इस दवा को मुंह से खिलाकर भी सांप के जहर से छुटकारा दिला सकते हैं. अब तक डाईमेर्काप्रॉल जैसे तत्व वाली दवाएं केवल इंजेक्शन के माध्यम से दी जाती हैं जिसे मूंगफली के तेल में घोल कर एक तैलीय द्रव के रूप में तैयार किया जाता है. चूंकि इसे टैबलेट के रूप में लेना संभव होगा इसलिए इस दवा को सीधे लोगों तक भी पहुंचाया जा सकेगा जिन्हें सांप के काटने के बाद तुरंत अस्पताल में भर्ती करना संभव न हो. लिवरपूल के डॉक्टरों को यकीन है कि यह दवा प्राथमिक उपचार के तौर पर काम में लाई जा सकती है जिससे सांप के जहर के जानलेवा असर को रोक कर मरीज को तब तक जिंदा रखा जा सकता है जब तक उसे एंटीसीरम का डोज ना मिल जाए. यह दवा एंटीसीरम की जगह नहीं बल्कि उसके पहले इस्तेमाल की जानी चाहिए और यह ज्यादातर देशों में दवा के रूप में पहले से ही उपलब्ध भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सांप काटने से होने वाली मौतों और गंभीर नुकसान को 2020 तक आधा करने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को पाने में ऐसी दवाएं बहुत काम आ सकती हैं. __________________________ हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore अंग्रेज रम्फियस के अनुसार सर्पगंधा वही पौधा है जिसका सेवन कर नेवला विषैले सर्प द्वारा काटे जाने पर भी अपने प्राणों की रक्षा कर लेता है. उत्तराखंड में अब लोग इसकी खेती करने लगे हैं. कई किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं.सर्पगंधा की खेती कर रहे किसान Image Credit source: TV9 Digital भले ही, मेडिकल साइंस ने कितनी ही प्रगति क्यों न कर ली है, लेकिन प्राकृतिक इलाज की जगह कोई नहीं ले सकता. संभवत यही कारण है कि भारत में प्राचीन काल से ही कई बीमारियों के इलाज में जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जा रहा है. ऐसी ही एक आयुर्वेदिक औषधि है सर्पगंधा, जिसमें कई प्राकृतिक गुण छिपे हुए हैं. इसकी मदद से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के रोगों का इलाज संभव है. आयुर्वेदिक व परम्परागत चिकित्सा में सर्पदंश तथा कीटदंश के उपचार में इसे अत्यन्त ही लाभकारी बताया गया है. सर्पगंधा का वानस्पतिक नाम रावोल्फिया सर्पेन्टीना (Rauvolfia serpentina) है. यह पुष्पीय पौधों के द्विबीजपत्रीय कुल एपोसाइनेसी (Apocynaceae) का सदस्य है. अंग्रेजी में इसे सर्पेन्टीन (Serpentine) तथा स्नेक रूट (Snake root) नामों से जाना जाता है. सर्पगंधा इसका संस्कृत नाम है जबकि हिन्दी में इसके अनेक नाम जैसे- छोटा चाँद, धवलबरूआ, नकुलकन्द, नाकुलीकन्द, हरकाई चन्द्रा, रास्नाभेद हैं. सर्पगंधा का रूचिकर इतिहास है. इस पौधे का वर्णन चरक (1000-800 ई0पू0) ने संस्कृत नाम सर्पगंधा के तहत सर्पदंश तथा कीटदंश के उपचार हेतु लाभप्रद विषनाशक के रुप में किया है. सर्पगंधा से जुड़ी कथाएंसर्पगंधा से जुड़ी अनेक कथायें हैं. ऐसी ही एक कथा के अनुसार कोबरा सर्प (cobra snake) से युद्ध के पूर्व नेवला (mongoose) सर्पगंधा की पत्तियों को चूसकर ताकत प्राप्त करता है. दूसरी कथा के अनुसार सर्पदंश में सर्पगंधा की ताजा पीसी हुई पत्तियों को पांव के तलवे के नीचे लगाने से आराम मिलता है. एक अन्य कथा के अनुसार पागल व्यक्ति द्वारा सर्पगंधा की जड़ों के उपभोग से पागलपन से मुक्ति मिल जाती है. इसी कारण से भारत में सर्पगंधा को पागल-की-दवा के नाम से भी जाना जाता है. सर्पगंधा की महक से भाग जाते हैं सांपसर्पगंधा के नामकरण को लेकर भी विभिन्न मत हैं. एक ऐसे ही मत के अनुसार इस वनस्पति का नाम सर्पगंधा इसलिए पड़ा क्योंकि सर्प इस वनस्पति की गंध पाकर दूर भाग जाते हैं. दूसरे मत के अनुसार चूंकि सर्पगंधा की जड़े सर्प की तरह लम्बी तथा टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं इसलिए इसका नाम सर्पगंधा पड़ा है. लेकिन उक्त दोनों मत भ्रामक तथा तथ्यहीन हैं. पौधे का नाम सर्पगंधा इसलिए पड़ा है क्योंकि प्राचीन काल में विशेष तौर पर इसका उपयोग सर्पदंश के उपचार में विषनाशक के रुप में होता था. सत्रहवीं शताब्दी में फ्रेन्च वनस्पतिशास्त्री प्लूमियर्स (Plumiers) ने सर्पगंधा का जेनेरिक नाम राओल्फिया, सोलहवीं शताब्दी के आगस्बर्ग (Augsburg) जर्मनी के प्रख्यात फिजिशियन, वनस्पतिशास्त्री, यात्री तथा लेखक लियोनार्ड राओल्फ (Leonard Rauwolf) के सम्मान में दिया था. सांप के विष के प्रभाव को करता है कमअंग्रेज रम्फियस (Rumphius) ने सर्पगंधा के विषय में लिखा है कि भारत तथा जावा (इण्डोनेशिया) में इस पौधे का उपयोग सभी प्रकार के विषों को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता था. इसे आंतरिक रुप में अर्क तथा बाह्य रुप में जड़ों तथा पत्तियों से तैयार प्लास्टर के रूप में एड़ी तथा पॉव में लगाया जाता था. सर्पदंश के उपचार की यह बहुमूल्य औषधि थी तथा कोबरा जैसे विषैले सर्प के विष को भी प्रभावहीन कर देती थी. सर्पगंधा का आंतरिक उपयोग ज्वर, हैजा (cholera) तथा अतिसार (dysentery) के उपचार हेतु किया जाता था. पत्तियों के रस का उपयोग मोतियाबिन्द (cataract) के उपचार में भी होता था. बड़े काम की है सर्पगंधाअंग्रेज रम्फियस के अनुसार सर्पगंधा वही पौधा है जिसका सेवन कर नेवला विषैले सर्प द्वारा काटे जाने पर भी अपने प्राणों की रक्षा कर लेता है. एसियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल के संस्थापक सर विलियम जोन्स (Sir William Jones) ने भी सर्पगंधा के विषय में कुछ ऐसे ही वर्णन किये हैं. भारतीय वनस्पतिशास्त्र के पिता विलियम्स राक्सबर्घ (William Roxburgh) के अनुसार तेलिंगा फिजिशियन (वैद्य) सर्पगंधा का उपयोग ज्वरनाशक, विषनाशक तथा बच्चे के जन्म के दौरान विषम परिस्थितियों में किया करते थे. सर्पगंधा की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे किसानउत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों कीे मधुर जलवायु हरे-भरे जंगलों ऊंची चोटियां नदियां व हिमप्रपात जहां आकर्षित करते हैं व इन हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली बेशकीमती जड़ी-बूटियां भी विद्यमान होती हैं. लेकिन सर्पगंधा जैसी कुछ अन्य विशिष्ट जड़ी बूटियां अब खेतों में भी उगने लगी हैं. तमाम बीमारियों में काम आने वाली संजीवनी सरीखी इन जड़ी-बूटियों की खेती से अच्छा मुनाफा मिलने के कारण परंपरागत खेती करने के बजाय किसान इस ओर आकर्षित हो रहे हैं, उत्तराखंड को जड़ी बूटी का प्रदेश मानने वाले एक कास्तकार ओम प्रकाश भट्ट डुंडा में सर्पगंधा की खेती करके अभिनव प्रयास कर रहे हैं व लोगों को बीज व पौध उपलब्ध भी कराकर सर्पगंधा की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं. एग्रीकल्चर न्यूज,सरकारी कृषि योजनाएं,क्रॉप स्पेशल,एग्री पॉलिसी,खेती-किसानी की सक्सेस स्टोरीकी ताजा खबरें पढ़ें औरTV9 Hindi Agricultureपेज को फॉलो करें. साँप के काटने की दवा कैसे तैयार की जाती है?जैसा कि हमने बताया कि सांप के ज़हर से ही सांप के काटे की दवा बनाई जाती है, जिसे एंटी वेनम कहा जाता है. इस काम के लिए देशों में बड़े स्तर पर सांपों का पालन किया जाता है. सांपों को सही ख़ुराक जैसे उनके पसंदीदा चूहे खिलाए जाते हैं.
एंटी वेनम इंजेक्शन कैसे बनाया जाता है?सर्पदंश के मामले में (चाहे सर्प जहरीला हो या न हो) स्नेक एंटी वेनम नामक इंजेक्शन बहुत प्रभावी होता है। यह दवाई शरीर में पहुंचते ही जहर से मुकाबला कर उसके प्रभाव को खत्म करने लगती है। सर्पदंश के मामलों में मरीज को अस्पताल ले जाते समय यह इंजेक्शन खरीदकर साथ ले जाएं।
6 घंटे सांप के काटने की दवा कैसे बनाई जाती है?सांप के काटने में से केवल २० प्रतिशत घटनायें जहरीले सांपों के काटने का होता है। अगर ज़हरीले सांप के काटने के तुरंत बाद ही सही उपचार उपलब्ध हो तो ज़्यादातर जाने को बचाई जा सकती हैं।
सांप काटने पर कौन सी जड़ी बूटी लगाएं?बड़े काम की है सर्पगंधा अंग्रेज रम्फियस के अनुसार सर्पगंधा वही पौधा है जिसका सेवन कर नेवला विषैले सर्प द्वारा काटे जाने पर भी अपने प्राणों की रक्षा कर लेता है. एसियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल के संस्थापक सर विलियम जोन्स (Sir William Jones) ने भी सर्पगंधा के विषय में कुछ ऐसे ही वर्णन किये हैं.
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