समय के संबंध में क्या मतलब है? - samay ke sambandh mein kya matalab hai?

समय के संबंध में क्या मतलब है? - samay ke sambandh mein kya matalab hai?

समय मापने की प्राचीन (किन्तु मेधापूर्ण) तरीका : रेतघड़ी

समय (लातिन: Tempus, अंग्रेज़ी: Time, फ़्रान्सीसी: Temps, जर्मन: Zeit) एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानांतरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल (प्रतीक्षानुभूति) को समय कहते हैं। समय मापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहते हैं। इस प्रकार हम यह भी कह सकते हैं कि समय वह भौतिक तत्व है जिसे घटीयंत्र से नापा जाता है। सापेक्षवाद के अनुसार काळ (समय) दिग्देश (स्पेस) के सापेक्ष है। अत: इस लेख में समयमापन पृथ्वी की सूर्य के सापेक्ष गति से उत्पन्न दिग्देश के सापेक्ष समय से लिया जाएगा।काळ (समय) को नापने के लिए सुलभ घटीयंत्र पृथ्वी ही है, जो अपने अक्ष तथा कक्ष में घूमकर हमें समय का बोध कराती है; किंतु पृथ्वी की गति हमें दृश्य नहीं है। पृथ्वी की गति के सापेक्ष हमें सूर्य की दो प्रकार की गतियाँ दृश्य होती हैं, एक तो पूर्व से पश्चिम की तरफ पृथ्वी की परिक्रमा तथा दूसरी पूर्व बिंदु से उत्तर की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाकर, कक्षा का भ्रमण। अतएव व्यावहारिक दृष्टि से हम सूर्य से ही काल का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

समय मापन[संपादित करें]

अति प्राचीन काल में मनुष्य ने सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं के आधार प्रात:, दोपहर, संध्या एवं रात्रि की कल्पना की। ये समय स्थूल रूप से प्रत्यक्ष हैं। तत्पश्चात् घटी पल की कल्पना की होगी। इसी प्रकार उसने सूर्य की कक्षागतियों से पक्षों, महीनों, ऋतुओं तथा वर्षों की कल्पना की होगी। समय को सूक्ष्म रूप से नापने के लिए पहले शंकुयंत्र तथा धूपघड़ियों का प्रयोग हुआ। रात्रि के समय का ज्ञान नक्षत्रों से किया जाता था। तत्पश्चात् पानी तथा बालू के घटीयंत्र बनाए गए। ये भारत में अति प्राचीन काल से प्रचलित थे। इनका वर्णन ज्योतिष की अति प्राचीन पुस्तकों में जैसे पंचसिद्धांतिका तथा सूर्यसिद्धांत में मिलता है। पानी का घटीयंत्र बनाने के लिए किसी पात्र में छोटा सा छेद कर दिया जाता था, जिससे पात्र एक घंटी में पानी में डूब जाता था। उसके बाहरी भाग पर पल अंकित कर दिए जाते थे। इसलिए पलों को पानीय पल भी कहते हैं। बालू का घटीयंत्र भी पानी के घटीयंत्र सरीखा था, जिसमें छिद्र से बालू के गिरने से समय ज्ञात होता था। किंतु ये सभी घटीयंत्र सूक्ष्म न थे तथा इनमें व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी थीं। विज्ञान के प्रादुर्भाव के साथ लोलक घड़ियाँ तथा तत्पश्चात् नई घड़ियाँ, जिनका हम आज प्रयोग करते हैं, अविष्कृत हुई।

मानक समय[संपादित करें]

समय का संबंध किसी निश्चित स्थान के याम्योत्तरवृत्त से रहता है। अत: वह उस स्थान का स्थानीय समय होगा। किसी बड़े देश में एक जैसा समय रखने के लिए, देश के बीचोबीच स्थित किसी स्थान के एक (उदाहरणार्थ, भारत) या एक से अधिक (उदाहरणार्थ, अमेरिका) याम्योत्तर वृत्त का मानक याम्योत्तर वृत्त (standard meridian) मान लिया जाता है। इसके सापेक्ष माध्य-सूर्य का समय उस देश का मानक समय कहलाता है।

विश्व-समय-मापन[संपादित करें]

विश्व का समय नापने के लिए ग्रिनिच के याम्योत्तर वृत्त को मानक याम्योत्तर मान लेते हैं। इसके पूर्व में स्थित देशों का समय ग्रिनिच से, उनके देशांतर के प्रति 15 डिग्री पर एक घंटे के हिसाब से, आगे होगा तथा पश्चिम में पीछे। इस प्रकार भारत का मापक याम्योत्तर ग्रिनिच के याम्योत्तरवृत्त से पूर्व देशांतर 82 है। अत: भारत का माध्य समय ग्रिनिच के माध्य समय से 5 घंटे 30 मिनिट अधिक है। इसी प्रकार क्षेत्रीय समय भी मान लिए गए हैं। ग्रिनिच के 180 डिग्री देशांतर की रेखा तिथिरेखा है। इसके आरपार समय में 1 दिन का अंतर मान लिया जाता है। तिथिरेखा सुविधा के लिए सीधी न मानकर टेढ़ी मेढ़ी मानी गई है।

वर्ष तथा कैलेंडर[संपादित करें]

पृथ्वी की गति के कारण जब सूर्य वसंतपात की एक परिक्रमा कर लेता है, तब उसे एक आर्तव वर्ष कहते हैं। यह 365.24219879 दिन का होता है। यदि हम वसंतपात पर स्थित किसी स्थिर बिंदु अथवा तारे से इस परिक्रमा को नापें, तो यह नाक्षत्र वर्ष होगा। यह आर्तव वर्ष से कुछ बड़ा है। ऋतुओं से ताल मेल रखने के लिए संसार में आर्तव वर्ष प्रचलित है। संसार में आजकल ग्रेग्रेरियनी कैलेंडर प्रचलित है, जिसे पोप ग्रेगोरी त्रयोदश ने 1582 ई. में संशोधित किया था। इसमें फरवरी को छोड़कर सभी महीनों के दिन स्थिर हैं। साधारण वर्ष 365 दिन का होता है। लीप वर्ष (फरवरी 29 दिन) 366 दिन का होता है, जो ईस्वी सन् की शताब्दी के आरंभ से प्रत्येक चौथे वर्ष में पड़ता है। 400 से पूरे कट जानेवाले ईस्वी शताब्दी के वर्षों को छोड़कर, शेष शताब्दी वर्ष लीप वर्ष नहीं होते। ऐतिहासिक घटनाओं तथा ज्योतिष संबंधी गणनाओं के लिए जूलियन दिन संख्याएँ (Julian day numbers) प्रचलित हैं, जो 1 जनवरी 4713 ई. पू. के मध्याह्न से प्रारंभ होते हैं।

[ समय का दर्शन- काल-सैद्धांतिकी ]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • समयमापन
  • हिन्दू काल गणना
  • सापेक्षिकता का सिद्धांत

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]