सामाजिक विकास – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह दूसरों के व्यवहार को प्रभावित करता है और उसके व्यवहार से प्रभावित होता है। इस परस्पर व्यवहार के व्यवस्थापन पर ही सामाजिक संबंध निर्भर होते हैं। इस परस्पर व्यवहार में रुचियों, अभिवश्त्तियों, आदतों आदि का बड़ा महत्व है। सामाजिक विकास में इन सभी का विकास सम्मिलित है। जब सामाजिक परिस्थिति इस प्रकार की होती है कि शिशु समाज के नियमों तथा नैतिक मानक को आसानी से सीख लेता है तो यह कहा जाता है कि उसमें सामाजिक विकास हुआ है। Show
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सामाजिक विकास की विशेषताएँसामाजिक विकास की विशेषताएं निम्न है –
सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकसामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक कई हो सकते हैं लेकिन यहां सिर्फ 16 कारकों को प्रकाशित किया जा रहा है। वातावरण और संगठित सामाजिक साधनों के कुछ ऐसे विशेष कारक है जिनका बालक के सामाजिक विकास की दशा पर निश्चित और विशिष्ट प्रभाव पड़ता है।
1. वंशानुक्रमकुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि बालक के सामाजिक विकास पर वंशानुक्रम का कुछ सीमा तक प्रभाव पड़ता है। इनकी पुस्तकों क्रो एंड क्रो ने लिखा है- “शिशु की पहली मुस्कान या उनका कोई विशिष्ट व्यवहार वंशानुक्रम से उत्पन्न होने वाला हो सकता है।” 2. शारीरिक व मानसिक विकासस्वस्थ और अधिक विकसित मस्तिष्क वाले बालक का सामाजिक विकास अस्वस्थ और कम विकसित मस्तिष्क वाले बालक की अपेक्षा अधिक होता है। 3. संवेगात्मक विकासबालकों की संवेगात्मकता उनके सामाजिक विकास को प्रभावित करती है। जो बालक विनोद प्रिय और हंसमुख होते हैं। उनके दोस्त और साथी समूहों की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार के बालकों में सामाजिक विकास भी अन्य प्रकार के बालकों के अपेक्षा अधिक मात्रा में पाया जाता है। 4. पारिवारिक वातावरणपरिवार ही वह स्थान है जहां सबसे पहले बालक का सामाजिक करण होता है। परिवार के बड़े लोगों का जैसा व्यवहार और आचरण होता है। बालक वैसा ही आचरण और व्यवहार करने का प्रयत्न करता है। 5. आर्थिक स्थितिमाता-पिता की आर्थिक स्थिति का बालक के सामाजिक विकास पर उचित या अनुचित प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ धार्मिक माता पिता के बालक अच्छे पड़ोस में रहते हैं। अच्छे व्यक्तियों से मिलते जुलते हैं और अच्छे विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करते हैं। स्वाभाविक रूप से ऐसे बालकों का सामाजिक विकास हो बालको से कहीं अधिक उत्तम होता है। जिन्हें निर्धन माता-पिता की संतान होने के कारण उपयुक्त सुविधाएं नहीं मिलती हैं। 6. पालन पोषण की विधिअभिभावक के द्वारा बालक के पालन पोषण की विधि उसके समाज विकास पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है। जैसे समानता के आधार पर पहला जाने वाला बालक कहीं भी हिंसा का अनुभव नहीं करता है और लाड से पाला जाने वाला बालक दूसरे वालों को से दूर रहना पसंद करता है। अतः दोनों का सामाजिक विकास दो विभिन्न दिशाओं में होता है। 7. पड़ोस और विद्यालयबालक के सामाजिक विकास के दृष्टिकोण से परिवार के बाद विद्यालय का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यदि विद्यालय का वातावरण जनतंत्र यह तो बालक का सामाजिक विकास अविराम गति से उत्तम रूप ग्रहण करता चलता है। इसके विपरीत यदि विद्यालय का वातावरण एक तंत्र के सिद्धांतों के अनुसार दंड और दमन पर आधारित है, तो बालक का सामाजिक विकास कुंठित हो जाता है। 8. मनोरंजनजिन बालकों को अच्छे मनोरंजन के जितने अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। उनका सामाजिक विकास उतना ही अधिक अच्छा होता है। स्वस्थ खेल नाटक सिनेमा सर्कस और शहर पार्टियों में जाना आदि बालकों का मनोरंजन करते हैं। मनोरंजन से बालक स्वस्थ व प्रसन्न रहता है। 9. समूह या टोलीबालक के समूह के साथ ही अधिक है तो सामाजिक विकास तीव्रता से होता है क्योंकि समूह के बीच ही बालक विभिन्न सामाजिक मूल्यों व सामाजिक स्वरूपों को सीखता है। 10. संस्कृतिमानव की संस्कृति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके सामाजिक व्यवहार का प्रभाव पड़ता है। जिसके बीच वह प्रारंभ से पलता और बड़ा होता है। भारतीय व पाश्चात्य संस्कृति में पर्याप्त अंतर है, कोई भी समाज अपने सदस्यों से अपनी संस्कृति के विरुद्ध कार्य करने की अपेक्षा नहीं रखता है। अतः सामाजिक प्राणी होने के नाते संस्कृति के अनुसार ही सामाजिक व्यवहारों को किया जाता है। 11. लिंगलिंगभेद सामाजिक व्यवहारों में भिन्नता पैदा करता है। प्रायः लड़कों को प्रारंभ से अधिक स्वतंत्रता मिलने के कारण वे अधिक क्रोधी झगड़ालू होते हैं, जबकि लड़कियां सहनशील होती हैं। बालिकाओं में बालकों के अपेक्षा सहनशक्ति, सहिष्णुता, सहानुभूति और त्याग की सामाजिक प्रतिक्रियाएं अधिक होती हैं। 12. वृद्धिसामाजिक विकास विभिन्न आयु स्तरों पर वृद्धि के अनुसार अलग-अलग होता है। प्रारंभ में बच्चा पूरी तरह दूसरों पर निर्भर होता है। परंतु उम्र के साथ-साथ हुआ आत्मनिर्भर होता जाता है। वह स्वयं समाज के नेतृत्व करने योग्य हो जाता है तथा उत्तरोत्तर वृद्धि सामाजिक विकास में परिपक्वता लाती है। 13. भाषा विकासभाषा एक माध्यम है जिसके द्वारा बालक अपनी बातों विचारों आदि का आदान-प्रदान दूसरों से करते हैं। भाषा के उचित प्रयोग से बालक अपना सामाजिक दायरा बढ़ाते हैं। 14. हीनता की भावनाप्रायः जिन बालकों में हीनता की भावना अधिक मात्रा में पाई जाती है, उनमें सामाजिक विकास कम गति से होता है। वह एक दूसरों से मिलना जुलना पसंद नहीं करते। अपनी हीनता की भावना के कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। जिससे वह अपना सामाजिक दायरा बनाने में कठिनाई दिखाते हैं। 15. व्यक्तित्व विकासबालकों का व्यक्तित्व भी उसके सामाजिक विकास को प्रभावित करता है। प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व का निर्माण अलग ढंग से होता है। कुछ बालक बहिर्मुखी तथा कुछ अंतर्मुखी होते हैं। बहिर्मुखी बालकों का सामाजिक दायरा बड़ा होता है। वह प्रसन्न एवं मिलनसार होते हैं। जिससे वह समाज में लोकप्रिय हो जाते हैं। उससे उनमें आत्मविश्वास की भावना बढ़ जाती है। 16. सामाजिक व्यवस्थासामाजिक व्यवस्था बालक के सामाजिक विकास के निश्चित रूप और दिशा प्रदान करती है। समाज के कार्य, आदर्श और प्रतिमान बालक के दृष्टिकोण का निर्माण करते हैं। यही कारण है कि ग्राम और नगर, जनतंत्र और तानाशाही में बालक का सामाजिक विकास विभिन्न प्रकार से होता है। सामाजिक विकास के उद्देश्य क्या हैं?सामाजिक विकास परिचय
सामाजिक संरचना के उन विभिन्न पहलुओं और सामाजिक कारकों का अध्ययन है जो समाज के नीव विकास में बाधा उत्पन्न करते है। इसका उद्देश्य किसी समुदाय के समक्ष उस आर्दश प्रारूप को भी प्रस्तुत करना है जो उस समुदाय के लोगों को विकास की ओर अग्रसर कर सके।
सामाजिक विकास की विशेषताएं क्या है?1) सामाजिक विकास की सबसे पहली और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि, सामाजिक परिणामस्वरूप सरल सामाजिक व्यवस्था जटिल सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तित हो जाती है। 2) सामाजिक विकास के फलस्वरूप सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि हो जाती है। 3) सामाजिक विकास के कारण धर्म के प्रभाव में ह्रास होने लगता है।
सामाजिक का विकास क्या है?सामाजिक विकास का अर्थ (Meaning of social development) : जब किसी बच्चे का जन्म होता है तब उस समय बालक इतना असहाय होता है कि वह समाज के सहयोग के बिना मानव प्राणी के रूप में विकसित हो ही नहीं सकता। शिशु का पालन-पोषण प्रत्येक समाज अपनी विशेषताओं के अनुरूप करता है और बालक इसे अपने विभिन्न कार्यों में प्रकट करता है।
सामाजिक विकास कितने प्रकार के होते हैं?किसी बालक के सामाजिक विकास को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:. शैशवावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in Infancy). बाल्यावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in Childhood). किशोरावस्था में सामाजिक विकास (Social Development in Adolescence). |