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रामेश्वर मंदिर – यहाँ हम बात करने वाले है एक और धार्मिक तीर्थ स्थल और चार पवित्र धामों में से एक रामेश्वरम मंदिर के बारे में। रामेश्वरम मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम मंदिर को रामनाथ स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में स्थित शिवलिंग को बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह एक शंख आकार का द्वीप है। रामेश्वरममंदिर काइतिहास (Rameshwaram Temple History)रामायण के अनुसार यह कहा जाता है की जब भगवान श्रीराम, रावण का वध करने के बाद अपनी पत्नी देवी सीता के साथ रामेश्वरम के तट पर पहुंचे तो उन पर ब्राह्मण हत्या का पाप लगने की बात कही गई क्योंकि रावण एक बहुत ज्ञानी ब्राह्मण भी था । एक ब्राह्मण को मारने के दोष को खत्म करने के लिए भगवान श्री राम, महादेव (शिव) की पूजा करना चाहते थे। चूंकि द्वीप में कोई शिव मंदिर नहीं था, इसलिए भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करने का निश्चय किया। इसलिए भगवान शिव की मूर्ति लाने के लिए श्री हनुमान को कैलाश पर्वत भेजा गया। बाद में हनुमान जी द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी वहीं स्थापित कर दिया गया। रामेश्वरम मंदिर के बारे में इतिहास में उल्लेखित कुछ तथ्यों के मुताबिक 15वीं शताब्दी में राजा उडैयान सेतुपति एवं नागूर निवासी वैश्य ने 1450 ई. में इसके 78 फीट ऊंचे गोपुरम का निर्माण करवाया था। फिर सोलहवी शताब्दी में मंदिर के दक्षिण के दूसरे हिस्से की दीवार का निर्माण एवं नंदी मंडप का निर्माण तिरुमलय सेतुपति ने कराया था। फिर 17 वीं सदी में रघुनाथ किलावन और राजा किजहावन सेठुपति ने रामेश्वरम मंदिर का निर्माण करवाया गया। मंदिर के निर्माण में सेठुपति साम्राज्य के जफ्फना राजा का भी योगदान महत्वपूर्ण रहा है। रामेश्वरम मंदिर की बनावट एवं स्थापत्य कलारामेश्वरम मंदिर की बनावट एवं स्थापत्य कलारामेश्वम मंदिर अपनी भव्यता एवं आर्कषक बनावट के लिए भी जाना जाता है। यह भारतीय निर्माण कला का बेहद आर्कषक नमूना है। यह मंदिर एक हजार फुट लंबा और 650 फुट चौड़ा है एवं मंदिर का प्रवेश द्धार 40 मीटर ऊंचा है, इस मंदिर का निर्माण द्रविण स्थापत्य शैली में किया गया है। जो की बहुत ही आकर्षक है। इस मंदिर मे माता सीता द्वारा स्थापित शिवलिंग और भगवन हनुमान जी द्वारा कैलाश पर्वत से लाए गए दो लिंग मौजूद है। रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा माना जाता है। यह उत्तर-दक्षिण में लगभग 197 मीटर एवं पूर्व-पश्चिम 133 मीटर है। इसके परकोटे की चौड़ाई छह मीटर एवं ऊंचाई नौ मीटर के बराबर है। मंदिर के प्रवेशद्वार का गोपुरम 38.4 मीटर ऊंचा है। रामेश्वरम मंदिर के अंदर 22 तीर्थ और भी हैं। मंदिर के पहले और सबसे मुख्य तीर्थ को अग्नि तीर्थं नाम से जाना जाता है। रामेश्वरममंदिरकेबारेमेंरोचकतथ्यकहा जाता है कि इस स्थल पर मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। भगवान् श्रीराम जी ने यहां पर नवग्रह की स्थापना की थी और सेतुबंध की शुरुआत भी यहीं से की गई थी। मंदिर को लेकर लोगो का यह भी मानना है कि यहां डुबकी लगाने से बीमारियां ठीक हो जाती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। रामेश्वरम से थोड़ी ही दूर में स्थित जटा तीर्थ नामक कुंड है, जहां पर श्री राम जी ने लंका में रावण से युद्ध करने के बाद अपने बाल धोए थे। मंदिर में अन्य कई देवी-देवताओं को समर्पित मंदिर भी बने हुए हैं, एवं 22 पवित्र जल के स्त्रोत भी हैं। रामेश्वर मंदिर का समय (Rameshwaram Temple टाइमिंग)वैसे तो रामेश्वर मंदिर सुबह पांच बजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है। श्रद्धालु सुबह पांच बजे से लेकर दोपहर एक बजे तक दर्शन पूजन कर सकते हैं। फिर मंदिर को एक बजे से तीन बजे तक बंद कर दिया जाता है । उसके बाद शाम तीन बजे से रात के नौ बजे तक दर्शन किया जा सकता है। बता दें कि रामेश्वर मंदिर में होने वाली प्रत्येक पूजा का अलग अलग नाम है, और ये पूजा अलग अलग समय पर होती है। इस पूजा का विशेष महत्व होता है। जो इस प्रकार है:
रामेश्वर मंदिर में अन्य तीर्थ स्थलसाक्षीविनायक: यह मंदिर पाम्बन मार्ग पर दो मील दूर स्थित है। कहा जाता है कि श्रीराम ने यहाँ जटायें धोयीं थीं। अम्मनदेवीमंदिर: रामेश्वरम से दो मील पर नवनाम की अम्मन देवी का मंदिर है। यहीं के जलाशय से रामेश्वरम के नलों में जल आता है। एकान्तराम मंदिर: रामेश्वरम से 4 मील दूरी पर यह मंदिर है। यहाँ श्रीविग्रह बातचीत की मुद्रा में है। सीताकुंड: यह कुंड रामेश्वरम से 5 मील दूर स्थित है। यहाँ समुद्र तट पर मीठे जल का कूप है। कोदण्डरामस्वामी: यह रामेश्वर से 5 मील उत्तर की ओर समुद्र तट पर है। रेत के मैदान में पैदल मार्ग हैं। कहा जाता है कि यहाँ श्रीराम जी ने विभीषण को तिलक किया था। विल्लूरणि तीर्थ: तंकच्चिमठम स्टेशन के पूर्व समीप ही समुद्र जल के बीच में मीठे पानी का स्रोत है। आदि-सेतु: रामेश्वरम् से सात मील दक्षिण में एक स्थान है, जिसे ‘दर्भशयनम्’ कहते है; यहीं पर श्री राम जी ने पहले समुद्र में सेतु बांधना शुरू किया था। इस कारण यह स्थान आदि सेतु कहलाता है। Related articleश्री बद्रीनाथ धाम द्वारकापुरी मंदिर रामेश्वरम की स्थापना में पंडित कौन था?रामेश्वरम तीर्थ. रामेश्वरम मंदिर की स्थापना कब हुई थी?सोलहवीं शताब्दी में मदुरै के राजा विश्वनाथ नायक के एक अधीनस्थ राजा उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर ने नंदी मण्डप का निर्माण करवाया था। माना जाता है कि वर्तमान समय में रामेश्वरम मंदिर जिस रूप में मौजूद है, उसका निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में कराया गया था।
श्री राम ने श्री रामेश्वरम की स्थापना करके किसकी अराधना की?भगवान शिव का आशीर्वाद
लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान राम ने समुद्र किनारे शिवलिंग बनाकर शिवजी की पूजा की थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें विजयश्री का आशीर्वाद दिया था।
शिवलिंग की स्थापना हेतु कौन श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर लाया?भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग की उपासना ही सबसे अद्भुत है.
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