राम और श्याम विद्यालय जाते हैं संस्कृत में अनुवाद - raam aur shyaam vidyaalay jaate hain sanskrt mein anuvaad

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Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् अनुवाद-कार्यम्

एतदर्थम् अस्मिन्नेव पुस्तके व्याकरण-भागे कारक-वाच्यपरिवर्तनम्-अशुद्धिशोधनम् इति प्रकरण-त्रये अभ्यास: करणीयः।
(इसके लिए व्याकरण भाग में दिये गये कारक, वाच्य परिवर्तन, अशुद्धि संशोधन इन तीन प्रकरणों का भी अभ्यास करना चाहिए।)

हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय कर्ता, कर्म, क्रिया तथा अन्य शब्दों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कर्ता जिस पुरुष या वचन में हो, उसी के अनुरूप पुरुष, वचन तथा काल के अनुसार क्रिया का प्रयोग करना चाहिए। हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

(1) कारक
संज्ञा और सर्वनाम के वे रूप जो वाक्य में आये अन्य शब्दों के साथ उनके सम्बन्ध को बताते हैं, ‘कारक’ कहलाते हैं। मुख्य रूप से कारक छः प्रकार के होते हैं, किन्तु ‘सम्बन्ध’ और ‘सम्बोधन’ सहित ये आठ प्रकार के होते हैं। संस्कृत में इन्हें विभक्ति’ भी कहते हैं। इन विभक्तियों के चिह्न प्रकार हैं

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नोट – जिस शब्द के आगे जो चिह्न लगा हो, उसके अनुसार विभक्ति का प्रयोग करते हैं। जैसे – राम ने यहाँ पर राम के आगे ‘ने’ चिह्न है। अत: राम शब्द में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग करते हुए ‘रामः’ लिखा जायेगा।
रावण को यहाँ पर रावण के आगे ‘को’ यह द्वितीया विभक्ति का चिह्न है। अतः ‘रावण’ शब्द में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग करके ‘रावणम्’ लिखा जायेगा।
‘बाण के द्वारा यहाँ पर बाण शब्द के बाद के द्वारा यह तृतीया का चिह्न लगा है। अतः ‘बाणेन’ का प्रयोग किया जायेगा। इसी प्रकार अन्य विभक्तियों के प्रयोग के विषय में समझना चाहिए।
यह बात विशेष ध्यान रखने की है कि जिस पुरुष तथा वचन का कर्ता होगा, उसी पुरुष तथा वचन की क्रिया भी प्रयोग की जायेगी। जैसे
‘पठामि’ इस वाक्य में कर्ता, ‘अहम्’ उत्तम पुरुष तथा एकवचन है तो क्रिया भी उत्तम पुरुष, एकवचन की है। अतः ‘पठामि’ का प्रयोग किया गया है।

(2) पुरुष
पुरुष तीन होते हैं, जो निम्न हैं।

(अ) प्रथम पुरुष-जिस व्यक्ति के विषय में बात की जाय, उसे प्रथम पुरुष कहते हैं। इसे अन्य पुरुष भी कहते हैं। जैसे – सः = वह। तौ = वे दोनों । ते = वे सब। रामः = राम्। बालकः = बालक। कः = कौन। भवान् = आप (पुं.)। भवती = आप (स्त्री.)।
(ब) मध्यम पुरुष–जिस व्यक्ति से बात की जाती है, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे
अहम् = मैं। आवाम् = हम दोनों। वयम् = हम सब।

(3) वचन
संस्कृत में तीन वचन माने गये हैं

(अ) एकवचन – जो केवल एक व्यक्ति अथवा एक वस्तु का बोध कराये, उसे एकवचन कहते हैं। एकवचन के कर्ता के साथ एकवचन की क्रिया का प्रयोग किया जाता है। जैसे – ‘अहं गच्छामि’ इस वाक्य में एकवचन कर्ता, ‘अहम्’ तथा एकवचन की क्रिया ‘गच्छामि’ का प्रयोग किया गया है।
(ब) द्विवचन-दो व्यक्ति अथवा वस्तुओं का बोध कराने के लिए द्विवचन का प्रयोग होता है। जैसे-‘आवाम्’ तथा क्रिया ‘पठावः’ दोनों ही द्विवचन में प्रयुक्त हैं।
(स) बहुवचन – तीन या तीन से अधिक व्यक्ति अथवा वस्तुओं का बोध कराने के लिये बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे- ‘वयम् पठामः’ इस वाक्य में अनेक का बोध होता है। अतः कर्ता ‘वयम्’ तथा क्रिया ‘पठाम:’ दोनों ही बहुवचन में प्रयुक्त हैं।

(4) लिंग
संस्कृत में लिंग तीन होते हैं
(अ) पुल्लिंग – जो शब्द पुरुष-जाति का बोध कराता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं। जैसे ‘रामः का गच्छति’ (राम काशी जाता है) में ‘राम’ पुल्लिंग है।
(ब) स्त्रीलिंग – जो शब्द स्त्री-जाति का बोध कराये, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे – गीता गृहं गच्छति’ (गीता घर जाती है।) इस वाक्य में ‘गीता’ स्त्रीलिंग है।
(स) नपुंसकलिंग–जो शब्द नपुंसकत्व (न स्त्री, न पुरुष) का बोध कराये, उसे नपुंसक-लिंग कहते हैं। जैसेधनम्, वनम्, फलम्, पुस्तकम, ज्ञानम्, दधि, मधु आदि।

(5) धातु
क्रिया अपने मूल रूप में धातु कही जाती है। जैसे – गम् = जाना, हस् = हँसना। कृ = करना, पृच्छ् = पूछना। ‘भ्वादयो धातवः’ सूत्र के अनुसार क्रियावाची – ‘भू’, ‘गम्’, ‘पद्’ आदि की धातु संज्ञा होती है।

(6) लकार
लकार – ये क्रिया की विभिन्न अवस्थाओं तथा कालों ( भूत, भविष्य, वर्तमान) का बोध कराते हैं। लकार दस हैं, इनमें पाँच प्रमुख लकारों का विवरण निम्नवत् है :

(क) लट् लकार (वर्तमान काल) – इस काल में कोई भी कार्य प्रचलित अवस्था में ही रहता है। कार्य की समाप्ति नहीं होती। वर्तमान काल में लट् लकार का प्रयोग होता है। इसे काल में वाक्य के अन्त में ‘ता है’, ‘ती है’, ‘ते हैं’ का प्रयोग होता है जैसे

राम पुस्तक पढ़ता है। (रामः पुस्तकं पठति ।)
बालक हँसती है। (बालकः हसति ।)
हम गेंद से खेलते हैं। (वयं कन्दुकेन क्रीडामः।)
छात्र दौड़ते हैं। (छात्रा: धावन्ति ।)
गीता घर जाती है। (गीता गृहं गच्छति ।)

(ख) लङ् लकार (भूतकाल) – जिसमें कार्य की समाप्ति हो जाती है, उसे भूतकाल कहते हैं। भूतकाल में लङ लकार का प्रयोग होता है। जैस-
राम गाँव गया। (राम: ग्रामम् अगच्छत् ।)
मैंने रामायण पढ़ी। (अहम् रामायणम् अपठम्।)
मोहन वाराणसी गया। (मोहन: वाराणीसम् अगच्छत् ।)
राम राजा हुए। (रामः राजा अभवत् ।)
उसने यह कार्य किया। (सः इदं कार्यम् अकरोत् ।)

(ग) लृट् लकार (भविष्यत् काल) – इसमें कार्य आगे आने वाले समय में होता है। इस काल के सूचक वर्ण गा, गी, गे आते हैं। जैसे
राम आयेगा। (रामः आगमिष्यति ।)
मोहन वाराणसी जायेगी। (मोहन: वाराणस गमिष्यति।)
वह पुस्तक पढ़ेगा। (सः पुस्तकं पठिष्यति ।)
रमा जल पियेगी। (रमा जलं पास्यति ।)।

(घ) लोट् लकार (आज्ञार्थक) – इसमें आज्ञा या अनुमति का बोध होता है। आशीर्वाद आदि के अर्थ में भी इस लकार का प्रयोग होता है। जैसे
वह विद्यालय जाये। (सः विद्यालयं गच्छतु।)
तुम घरं जाओ। (त्वं गृहं गच्छ।)
तुम चिरंजीवी होओ। (त्वं चिरंजीवी भव।)
राम पुस्तक पढ़े। (रामः पुस्तकं पठतु ।)
जल्दी आओ। (शीघ्रम् आगच्छ।) ।

(ङ) विधिलिङ लकार’चाहिए’ के अर्थ में इस लकार का प्रयोग किया जाता है। इससे निमन्त्रण, आमन्त्रण तथा सम्भावना आदि का भी बोध होता है। जैसे
उसे वहाँ जाना चाहिए। (सः तत्र गच्छेत् ।)
तुम्हें अपना पाठ पढ़ना चाहिए। (त्वं स्वपीठं पठेः।)
मुझे वहाँ जाना चाहिए। (अहं तत्र गच्छेयम्।)

हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय सर्वप्रथम कर्ता को खोजना चाहिए। कर्ता जिस पुरुष एवं वचन का हो, उसी पुरुष एवं वचन की क्रिया भी प्रयोग करनी चाहिए।

कर्ता – कार्य करने वाले को कर्ता कहते हैं। जैसे-‘देवदत्तः पुस्तकं पठति’ यहाँ पर पढ़ने का काम करने वाला देवदत्त है। अतः देवदत्त कर्ता है।

कर्म – कर्ता जिस काम को करे वह कर्म है। जैसे – ‘भक्त: हरि भजति’ में भजन रूपी कार्य करने वाला भक्त है। वह हरि को भजता है। अतः हरि कर्म है।

क्रिया-जिससे किसी कार्य का करना या होना प्रकट हो, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे – जाना, पढ़ना, हँसना, खेलना आदि क्रियाएँ हैं।

निम्न तालिका से पुरुष एवं वचनों के 3-3 प्रकारों का ज्ञान भलीभाँति सम्भव है

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इस प्रकारे स्पष्ट है कि कर्ता के इन प्रारूपों के अनुसार प्रत्येक लकार में तीनों पुरुषों एवं तीनों वचनों के लिए क्रिया के भी ‘नौ’ ही रूप होते हैं। अब निम्नतालिका से कर्ता एवं क्रिया के समन्वय को समझिये –

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नोट – संज्ञा शब्दों को प्रथम पुरुष मानकर उनके साथ क्रियाओं का प्रयोग करना चाहिए।
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़े तथा कर्ता के अनुरूप क्रिया-पदों का प्रयोग करना सीखें

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नोट – भवान् एवं भवती को प्रथम पुरुष मानकर इनके साथ प्रथम पुरुष की ही क्रिया का प्रयोग करना चाहिए।

सर्वनामों का तीनों लिंगों में प्रयोग
संज्ञा के बदले में या संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किये जाने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। जैसे – अहम् = मैं। त्वम् = तुम। अयम् = यह। कः = कौन। यः = जो। सा = वह। तत् = वह। सः = वह आदि। केवल अपने और तुम्हारे’ बोधक ‘अस्मद् और ‘युष्मद्’ सर्वनामों का प्रयोग तीनों लिंगों में एक रूप ही रहता है, शेष का पृथक् रूप रहता है।

प्रथम पुरूष तद् सर्वनाम (वह-वे) का प्रयोग

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जब कर्ता प्रथम पुरुष का हो तो क्रिया भी प्रथम पुरुष की ही प्रयोग की जाती है। जैसे
वह जल पीता है।                 सः जलं पिबति ।
वे दोनों हँसते हैं।                 तौ हसतः।
वे सब लिखते हैं।                 ते लिखन्ति।

स्त्रीलिंग प्रथम पुरुष में
वह पढ़ती है।                          सा पठति ।
वे दोनों जाती हैं।                      ते गच्छतः।
वे सब हँसती हैं।                      ताः हसन्ति ।

नपुंसकलिंग प्रथम पुरुष में
वह घर है।                         तद् गृहम् अस्ति।
वे दोनों पुस्तकें हैं।               ते पुस्तके स्तः।
वे सब फल हैं।                  तानि फलानि सन्ति ।

विद्यार्थी इस श्लोक को कण्ठस्थ करें :

उत्तमाः पुरुषाः ज्ञेयाः – अहम् आवाम् वयम् सदा।
मध्यमाः त्वम् युवाम् यूयम्, अन्ये तु प्रथमाः स्मृताः।।

अर्थात् अहम्, आवाम्, वयम् – उत्तम पुरुषः; त्वम्, युवाम्, यूयम् – मध्यम पुरुष; (शेष) अन्य सभी सदा प्रथम पुरुष जानने चाहिए।

उदाहरण – लट् लकार (वर्तमान काल) (गम् धातु = जाना) का प्रयोग

प्रथम पुरुष
(1) सः गच्छति। वह जाता है।
(2) तौ गच्छतः। वे दोनों जाते हैं।
(3) ते गच्छन्ति । वे सब जाते हैं।

मध्यम पुरुष
(4) त्वं गच्छसि । तुम जाते हो।
(5) युवां गच्छथः। तुम दोनों जाते हो।
(6) यूयं गच्छथ। तुम सब जाते हो।

उत्तम पुरुष
(7) अहं गच्छामि मैं जाता हूँ।
(8) आवां गच्छावः। हम दोनों जाते हैं।
(9) वयं गच्छामः। हम सब जाते हैं।

उपर्युक्त उदाहरणों में प्रथम पुरुष’ के कर्ता-पद क्रमश: ‘सः, तौ, ते’ दिये गये हैं। इनके स्थान पर किसी भी संज्ञा-सर्वनाम के रूप रखे जा सकते हैं। जैसे-गोविन्दः गच्छति, बालकौ गच्छतः, मयूरोः नृत्यन्ति।

अभ्यासः 1

(1) मोहन दौड़ता है।
(2) बालके पढ़ता है।
(3) राधा भोजन पकाती है।
(4) छात्र देखता है।
(5) गीदड़ आता है।
(6) वह प्रश्न पूछता है।
(7) बन्दर फल खाता है।
(8) दो बच्चे पढ़ते हैं।
(9) वे सब दौड़ते हैं।
(10) बालक चित्र देखते हैं।
(11) माता जी कहानी कहती हैं।
(12) मोहन और सोहन पत्र लिखते हैं।
(13) दो छात्र क्या देखते हैं?
(14) दो बालक पाठ पढ़ते हैं।
(15) सिंह वन में दौड़ता है।
(16) हाथी गाँव को जाता है।
(17) सीता वन को जाती है।
(18) राम और श्याम हँसते हैं।
(19) बालक पाठ याद करता है।
(20) किसान बकरी ले जाता है।

उत्तरमाला

(1) मोहन: धावति ।
(2) बालकः पठति।
(3) राधा भोजनं पचति ।
(4) छात्रः पश्यति ।
(5) शृगालः आगच्छति।
(6) सः प्रश्नं पृच्छति ।
(7) कपिः फलं भक्षयति ।
(8) शिशू पठतः।
(9) ते धावन्ति ।
(10) बालकाः चित्रं पश्यन्ति।
(11) जननी कथा कथयति ।
(12) मोहनः सोहनः च पत्रं लिखतः।
(13) छात्रौ कि पश्यतः?
(14) बालकौ पाठं पठतः।
(15) सिंहः वने धावति ।
(16) गजः ग्रामं गच्छति।
(17) सीता वनं गच्छति ।
(18) रामः श्यामः च हसतः ।
(19) बालकः पाठं स्मरति ।
(20) कृषक: अजां नयति ।

अभ्यासः 2

(1) तुम पाठ पढ़ते हो।
(2) तुम क्या देखते हो ?
(3) तुम कब जाते हो ?
(4) तुम दोनों चित्र देते हो।
(5) तुम दोनों पत्र लिखते हो।
(6) तुम सब यहाँ आते हो।
(7) तुम सब प्रातः दौड़ते हो।
(8) तुम दोनों फल खाते हो।
(9) तुम यहाँ आते हो।
(10) तुम सब कहाँ जाते हो?
(11) तुम दोनों पाठ याद करते हो।
(12) तुम क्या पीते हो?

उत्तरमाला:
(1) त्वं पाठं स्मरसि।
(2) त्वं किं पश्यसि ?
(3) त्वं कदा गच्छसि ?
(4) युवां चित्रं यच्छथः।
(5) युवां पत्रं लिखथः।
(6) यूयं अत्र आगच्छथ।
(7) यूयं प्रातः धावथ।
(8) युवां फलं भक्षयथः।
(9) त्वम् अत्र आगच्छसि ।
(10) यूयं कुत्र गच्छथ?
(11) युवां पाठं स्मरथः।
(12) त्वं किं पिबसि ?

अभ्यासः 3

(1) मैं दूध पीता हूँ।
(2) हम दोनों कहाँ जाते हैं?
(3) हम सब कहानी कहते हैं।
(4) मैं मयूर देखता हूँ।
(5) हम दोनों जल पीते हैं।
(6) हम सब खेल के मैदान को जाते हैं।
(7) मैं क्या खाता हूँ?
(8) हम दोनों क्या पकाती हैं?
(9) हम सब प्रश्न पूछती हैं।
(10) हम दोनों क्या लिखती हैं?
(11) हम दोनों क्यों हँसती हैं?
(12) मैं कब पुस्तकें लाती हूँ?

उत्तरमाला:
(1) अहं दुग्धं पिबामि।
(2) आवां कुत्र गच्छावः?
(3) वयं कथां कथयामः।
(4) अहं मयूरं पश्यामि।
(5) आवां जलं पिबावः।
(6) वयं क्रीडाक्षेत्रं गच्छामः।
(7) अहं किं भक्षयामि?
(8) आवां किं पचाव:?
(9) वयं प्रश्नं पृच्छामः।
(10) आवां किं लिखाव:?
(11) आवां किमर्थं हसावः?
(12) अहं कदा पुस्तकानि आनयामि?

अभ्यासः 4

(1) मोहन प्रात: व्यायाम करता है।
(2) राधा खाना पकाती है।
(3) राम कक्षा में पढ़ता है।
(4) रमेश मेरा मित्र है।
(5) यह मेरा घर है।
(6) वह एक शिक्षक है।
(7) वह सिनेमा देखता है।
(8) घोड़ा घास खाती है।
(9) वे फल चाहते हैं।
(10) तुम सब धन चुराते हो।
(11) नदी में जल है।
(12) विद्यालय में अध्यापक हैं।

उत्तरमाला:
(1) मोहन: प्रातः व्यायामं करोति।
(2) राधा भोजनं पचति ।
(3) रामः कक्षायां पठति ।
(4) रमेशः मम मित्रम् अस्ति।
(5) एतत् मम गृहम् अस्ति।
(6) सः एकः शिक्षकः अस्ति।
(7) सः चलचित्रं पश्यति।
(8) अश्वः घासं भक्षयति ।
(9) ते फलम् इच्छन्ति।
(10) यूयं धनं चोरयथ।।
(11) नद्यां जलम् अस्ति।
(12) विद्यालये अध्यापका: सन्ति ।

उदाहरण:
लङ लकार (भूतकाल) में (पद् धातु = पढ़ना) का प्रयोग

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अभ्यासः 5
(1) वह गाँव को गया।
(2) ब्राह्मण घर गया।
(3) उसने स्नान किया।
(4) राम और मोहन पढ़े।
(5) वे दोनों बाग को गये।
(6) सीता पानी लायी।
(7) लड़की ने खाना खाया।
(8) क्या तुम्हारा भाई यहाँ आया?
(9) तुम लोग कहाँ गये?
(10) सीता ने एक पत्र लिखा।
(11) राजा ने रक्षा की।
(12) वह प्रसन्न हुआ।
उत्तरमाला:
(1) स: ग्रामम् अगच्छत् ।
(2) विप्रः गृहम् अगच्छत् ।
(3) सः स्नानम् अकरोत् ।
(4) रामः मोहनः च अपठताम्।
(5) तौ उद्यानम् अगच्छताम्।
(6) सीता जलम् आनयत् ।
(7) बालिका भोजनम् अभक्षयत्।
(8) किं तव सहोदरः अत्र आगच्छत् ?
(9) यूयं कुत्र अगच्छथ?
(10) सीता एक पत्रम् अलिखत्।
(11) नृपः अरक्षत् ।
(12) सः प्रसन्नः अभवत् ।

अभ्यासः 6
(1) उसका मित्र आया।
(2) कृष्ण ने अर्जुन से कहा।
(3) मुनि ने तप किया।
(4) शिशु भयभीत था।
(5) मैंने चोरों को देखा।
(6) राम ने सदा सत्य बोला।
(7) सेवक ने अपना कार्य किया।
(8) धनिक ने धन दिया।
(9) अध्यापक क्रुद्ध हुआ।
(10) तुमने कल क्या किया?
(11) हमने झूठ नहीं बोला।
(12) पिता ने पुत्र को पीटा।

उत्तरमाला:
(1) तस्य मित्रम् आगच्छत् ।
(2) कृष्ण: अर्जुनम् अकथयत् ।
(3) मुनिः तपः अकरोत् ।
(4) शिशुः भयभीतः आसीत् ।
(5) अहं चौरान् अपश्यम् ।
(6) रामः सदा सत्यम् अवदत् ।
(7) सेवकः स्वकार्यम् अकरोत् ।
(8) धनिकः धनम् अयच्छत् ।
(9) अध्यापक: क्रुद्धः अभवत्।
(10) त्वं ह्यः किम् अकरो:?
(11) वयम् असत्यं ने अवदाम।
(12) जनकः पुत्रम् अताडयत् ।

नोट- लट् लकार (वर्तमान काल) की क्रिया में ‘स्म’ लगाकर लङ् लकार (भूतकाल) में अनुवाद किया जा सकता है। प्रायः वाक्य के अन्त में यदि ‘था’ लगा रहता है, तभी इसका प्रयोग करते हैं। जैसे
(1) वन में सिंह रहता था। वने सिंहः निवसति स्म।
(2) बालक खेलता था। बालकः क्रीडति स्म।

उदाहरण – लुट् लकार (भविष्यत् काल) (लिख धातु = लिखना) का प्रयोग

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अभ्यासः 7
(1) ब्रह्मदत्त जावेगा।
(2) मोहनश्याम पत्र लिखेगा।
(3) लड़के पाठ पढ़ेंगे।
(4) तुम पाठ याद करोगे।
(5) सीता वन को जावेगी।
(6) वे सब चित्र देखेंगे।
(7) प्रमिला खाना पकायेगी।
(8) तुम दोनों दूध पियोगे।
(9) छात्र खेल के मैदान में दौड़ेंगे।
(10) मैं क्या करूंगा?
(11) हम दोनों वहाँ पढ़ेंगे।
(12) तुम सब क्या खाओगे?

उत्तरमाला:
(1) ब्रह्मदत्त: गमिष्यति ।
(2) मोहनश्यामः पत्रं लेखिष्यति ।
(3) बालकाः पाठं पष्ठियन्ति ।
(4) त्वं पाठं स्मरिष्यसि ।
(5) सीता वनं गमिष्यति ।
(6) ते चित्रं द्रक्ष्यन्ति।
(7) प्रमिला भोजनं पक्ष्यति।
(8) युवां दुग्धं पास्यथः।
(9) छात्राः क्रीडाक्षेत्रे धाविष्यन्ति ।
(10) अहं किं करिष्यामि ?
(11) आवां तत्र पठिष्याव:।
(12) यूयं किं भक्षयिष्यथ?

अभ्यासः 8
(1) तुम प्रसन्न होगे।
(2) हम क्या चाहेंगे?
(3) राम स्नान करेगा।
(4) मैं क्रोध करूंगा।
(5) पुत्र पिता के साथ जावेगा।
(6) बालक पुस्तकें गिनेगा।
(7) चोर धन चुरावेगा।
(8) मैं तेरे साथ चलूंगा।
(9) वह पुरस्कार जीतेगा।
(10) शिक्षक छात्र को पीटेगा।
(11) तुम सब पुस्तकें दोगे।
(12) वे कहानी कहेंगे।

उत्तरमाला
(1) त्वं प्रसन्नः भविष्यसि।
(2) वयं किम् एषिष्यामः?
(3) रामः स्नानं करिष्यति ।
(4) अहं क्रोत्स्यामि ।
(5) पुत्रः जनकेन सह गमिष्यति।
(6) बालकः पुस्तकानि गणयिष्यति।
(7) चौरः धनं चोरयिष्यति।
(8) अहं त्वया सह चलिष्यामि।
(9) सेः पुरस्कार जेष्यति ।
(10) शिक्षकः छात्रं ताडयिष्यति ।
(11) यूयं पुस्तकानि दास्यथ।
(12) ते कथा कथयिष्यन्ति।

उदाहरण – लोट् लकार (आज्ञार्थक) (कथ् धातु = कहना)

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अभ्यासः 9
(1) राधा पाठ पढ़े।
(2) छात्र भोजन करे।
(3) राजा धन दे।
(4) ईश्वर जीवन बचाये।
(5) हम चित्र देखें।
(6) तुम बाग में दौड़ो।
(7) वे फूल ले जावें।
(8) वे दोनों जल पियें।
(9) राधा खाना पकाये।
(10) तुम दोनों पाठ पढ़ो।
(11) वे प्रश्न पूछे।
(12) हम सभी प्रसन्न होवें।

उत्तरमाला
(1) राधा पाठं पठतु।
(2) हात्र; भोजनं करोतु ।
(3) नृपः धनं यच्छतु।
(4) ईश्वर: जीवनं रक्षतु ।
(5) वयं चित्रं पश्याम ।
(6) त्वम् उद्याने धाव।
(7) ते पुष्पाणि नयन्तु।
(8) तौ जलं पिबताम् ।
(9) राधा भोजनं पचतु।
(11) ते प्रश्नं पृच्छन्तु ।
(12) वयं सर्वे प्रसन्ना: भवाम्।।
(10) युवां पाठं पठतम्।
(12) वयं सर्वे प्रसन्ना: भवाम्।।

अभ्यासः 10

(1) वह कविता रचे।
(2) तुम दोनों पत्र लिखो।
(3) मैं सत्य बोलँ।
(4) हम सभी सृजन करें।
(5) मोहन व सोहन पाठ याद करें।
(6) वे फुल स्पर्श नहीं करें।
(7) तुम मत हँसो।।
(8) हम बाग को जावें।
(9) आओ, पढ़ो लिखो।
(10) वहाँ मत जाओ।
(11) सभी छात्र पाठ पढ़ें।
(12) शीला एक पत्र लिखे।
(13) सेवक कार्य करें।
(14) दो बालक दौड़े।

उत्तरमाला
(1) सः कवितां रचयतु ।
(2) युवां पत्रं लिखतम् ।
(3) अहं सत्यं वदामि ।
(4) वयं सर्वे सृजाम् ।
(5) मोहनः सोहनः च पाठं स्मरताम्।
(6) ते पुष्पाणि न स्पृशन्तु ।
(7) त्वं मा हस।।
(8) वयम् उद्यानं गच्छाम।
(9) आगच्छ, पठ लिख।
(10) तंत्र मा गच्छ।
(11) सर्वे छात्रा: पाठं पठन्तु ।
(12) शीला एकं पत्रं लिखतु ।
(13) सेवका: कार्यं कुर्वन्तु।
(14) द्वौ बालकौ धावताम् ।

अभ्यासः 11

(1) अध्ययन कीजिए।
(2) धूम्रपान न करो।
(3) जलपान कीजिए।
(4) प्रातः भ्रमण कीजिए।
(5) स्वच्छ जल पीजिए।
(6) देश की रक्षा कीजिए।
(7) स्वामिभक्त बनो।
(8) कर्तव्य का पालन करो।
(9) सदा सत्य बोलो ।
(10) गुरुजनों की आज्ञा मानो।
(11) मित्रों के साथ कलह मत करो।
(12) मदिरापान न करो।
(13) जुआ नहीं खेलो।
(14) सज्जनों की संगति करो ।

उत्तरमाला
(1) अध्ययनं कुरु ।
(2) धूम्रपानं मा कुरु।
(3) जलपानं कुरु ।
(4) प्रातः भ्रमणं कुरुं।
(5) स्वच्छं जलं पिब।
(6) देशस्य रक्षां कुरु।
(7) स्वामिभक्तः भव।
(8) कर्तव्यस्य पालनं कुरु।
(9) सदा सत्यं वद।
(10) गुरुजनानाम् आज्ञापालनं कुरु।
(11) मित्रैः सह कलह मा कुरु।
(12) मदिरापानं मा कुरु।
(13) द्यूतं मा क्रीड।
(14) सज्जनानां संगतिं कुरु।

उदाहरण – विधिलिङ् लकार (प्रेरणार्थक – चाहिए के अर्थ में)

स्था (तिष्ठ) = ठहरना का प्रयोग

प्रथम पुरूष
सः तिष्ठेत् । उसे ठहरना चाहिए।
तौ तिष्ठेताम् । उन दोनों को ठहरना चाहिए।
ते तिष्ठेयुः। उन सबको ठहरना चाहिए।

मध्यम पुरुष
त्वं तिष्ठे:।। तुमको ठहरना चाहिए।
युवां तिष्ठेतम्। तुम दोनों को ठहरना चाहिए।
यूयं तिष्ठेत । तुम सबको ठहरना चाहिए।

उत्तम पुरूष
अहं तिष्ठेयम् मुझे ठहरना चाहिए।
आवां तिष्ठेव हम दोनों को ठहरना चाहिए।
वयं तिष्ठेम। हम सबको ठहरना चाहिए।

नोट – विधिलिङ् लकार में कर्ता में कर्म कारक जैसा चिह्न लगा रहता है। जैसे – उसे, उन दोनों को, तुमको आदि। किन्तु ये कार्य के करने वाले (कर्ता) हैं। अतः इनमें प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक) का ही प्रयोग किया जाता है।

अभ्यासः 12
(1) उसे पाठ पढ़ना चाहिए।
(2) तुम्हें वहाँ जाना चाहिए।
(3) सीता को खाना पकाना चाहिए।
(4) उसे पत्र लिखना चाहिए।
(5) तुम्हें क्रोध नहीं करना चाहिए।
(6) तुम्हें पाठ याद करना चाहिए।
(7) मुझे तुम्हारे साथ होनी चाहिए।
(8) माताजी की कहानी सुनानी चाहिए।
(9) हमें विद्यालय रोजाना जाना चाहिए।
(10) उन्हें गाँव नहीं जाना चाहिए।
(11) तुम्हें स्वच्छ जल पीना चाहिए।
(12) तुम सभी को चित्र देखने चाहिए।
(13) मुझे सदैव सत्य बोलना चाहिए।
(14) तुझे फल खाने चाहिए।

उत्तरमाला
(1) सः पाठं पठेत् ।
(2) त्वं तत्र गच्छेः ।
(3) सीता भोजनं पचेत् ।
(4) स: पत्रं लिखेत् ।
(5) त्वं क्रोधं न कुर्याः ।
(6) त्वं पाठं स्मरे:।
(7) अहं त्वया सह भवेयम्।
(8) जननी कथां कथयेत् ।
(9) वयं प्रतिदिनं विद्यालयं गच्छेम।
(10) ते ग्रामं न गच्छेयुः।
(11) त्वं स्वच्छं जलं पिबेः।
(12) यूयं चित्रं पश्येत ।
(13) अहं सदैव सत्यं वदेयम्।
(14) त्वं फलानि भक्षयेः।

अभ्यासः 13
(1) बच्चों को भयभीत नहीं होना चाहिए।
(2) तुम सभी को देश की रक्षा करनी चाहिए।
(3) लड़की को नहीं हँसना चाहिए।
(4) उसे विद्वान् का सम्मान करना चाहिए।
(5) हमें शिक्षकों की आज्ञा माननी चाहिए।
(6) तुम्हें कलह नहीं करना चाहिए।
(7) हमें अपनी पुस्तकें पढ़नी चाहिए।
(8) राम को धीरे-धीरे बोलना चाहिए।
(9) तुम्हें प्रात: पाठ याद करने चाहिए।
(10) पुत्र को पिता के साथ होना चाहिए।
(11) यहाँ बिना आज्ञा उसे प्रवेश नहीं करना चाहिए।
(12) तुमको घर पर पढ़ना चाहिए।
(13) तुम्हें याचकों को दान करना चाहिए।
(14) मुझे पुस्तकें देनी चाहिए।
(15) उसे यहाँ प्रतिदिन आना चाहिए।
(16) राम और श्याम को विद्याध्ययन करना चाहिए।

उत्तरमाला
(1) शिशवः भयभीताः न भवेयुः।
(2) यूयं देशस्य रक्षां कुर्यात।
(3) बालिका न हसेत् ।
(4) सः प्राज्ञस्य सम्मानं कुर्यात् ।
(5) वयं शिक्षकानाम् आज्ञापालनं कुर्याम्।
(6) त्वं कलहं न कुर्याः।
(7) वयं स्वपुस्तकानि पठेम्।
(8) रामः शनैः शनैः वदेत् ।
(9) त्वं प्रातः पाठान् स्मरेः।
(10) पुत्रः जनकेन सह भवेत्।
(11) अत्र आज्ञां विना सः प्रवेशं न कुर्यात् ।
(12) त्वं गृहे पठेः।
(13) त्वं याचकेभ्य: दानं कुर्याः।
(14) अहं पुस्तकानि यच्छेयम् ।
(15) सः अत्र प्रतिदिनम् आगच्छेत् ।
(16) राम: श्यामश्च विद्याध्ययनं कुर्याताम् ।

संस्कृत में अनुवाद कीजिए

अभ्यासः 1
(1) बालक महल से गिरता है। (2) लड़कियाँ खेलती हैं। (3) वे दोनों भाई संस्कृत पढ़ते हैं। (4) हम सब पुस्तक पढ़ते हैं। (5) मोहन क्या कहता है? (6) बालक सड़क पर दौड़ते हैं। (7) हम सब गीत गाते हैं। (8) तुम क्यों नहीं जाते हो। (9) वन में मयूर नाचते हैं। (10) रमा एक चित्र देखती है। (11) मोहन पुस्तक पढ़ता है। (12) वे सब हँसते हैं। (13) मोहन और सोहन खेलते हैं। (14) माता पुत्र को बुलाती है। (15) हम सब गुरु को प्रणाम करते हैं।

शब्दार्थ- पतति = गिरता है। राजमार्गे = सड़क पर। किम् = क्यों । नृत्यन्ति = नाचते हैं। आवयति = बुलाती है।

अभ्यासः 2
(1) वे कल प्रयाग जायेंगे। (2) हम प्रश्न पूछेगे। (3) वे कल यहाँ आयेंगे। (4) तुम पुस्तक पढ़ोंगे। (5) रमा अपना पाठ याद करेगी। (6) मैं आज नहीं खेलूंगा। (7) वह शत्रु को जीतेगा। (8) हम सब आज भाषण सुनेंगे। (9) मेरी परीक्षा कब होगी। (10) वह एक शेर देखेगा। (11) मैं रामायण पढूंगा। (12) तुम अपनी पाठ याद करोगे। (13) तुम क्या काम करोगे? (14) वे जल पियेंगे। (15) आज विद्यालय में सभा होगी।
शब्दार्थ – श्वः = काल । स्व = अपना। स्मरिष्यति = याद करोगी । अद्य = आज। कदा = कब। कार्यम् = काम।

अभ्यासः 3
(1) उसे अपने घर जाना चाहिए। (2) वह पाप न करे। (3) हम सदैव सच बोलें। (4) भगवान् हमारा कल्याण करे। (5) वे कभी भी चिन्ता न करें। (6) ईश्वर सबकी रक्षा करे। (7) वे दु:खी न हों । (8) हम वीर पुरुष बने । (9) हमें प्रात:काल उठना चाहिए । (10) तुम्हें अपना पाठ याद करना चाहिए । (11) वह विद्यालय के नियमों न करें । (12) तुम्हें अपने देश की रक्षा करनी चाहिए । (13) हमारा लक्ष्य पवित्र होना चाहिए । (14) तुम्हें यहाँ रहना चाहिए । (15) कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए ।
शब्दार्थ – सत्यम् = सच । कदापि = कभी भी । तत्र = वहाँ । असत्यम् = झूठ।

अभ्यासः 4
(1) तुम विद्यालय जाओ । (2) गुरु की निन्दा मत करो। (३) तुम अपना पाठ ध्यान से पढ़ो । (4) तुम देशभक्त बनो। (5) प्रात:काल उठकस्माता-पिता को प्रणाम करो। (6) समय पर पढ़ो और समय पर खेलो। (7) हम सब अपने देश की रक्षा करें । (8) ईश्वर का भजन करो। (9) सभी छात्र अपने-अपने घर जायें । (10) वे जल पियें । (11) तुम वीर बालक बनो । (12) मोर वन में नाचे । (13) दीन पुरुष को देखकर मत हँसो। (14) हे ईश्वर ! सबकी रक्षा करो। (15) वह भात पकाये।

शब्दार्थ – ध्यानेन = ध्यान से। उत्थाय = उठकर । मातरं पितरं च = माता और पिता को । नृत्यन्तु = नाचे । दृष्ट्वा = देखकर । ओदनम् = भात।

अभ्यासः 5

(1) वह प्रयाग गया । (2) राम ने रावण का वध किया । (3) तुम आज विद्यालय क्यों नहीं गये । (4) मोहन ने अपना पाठ याद नहीं किया । (5) मैंने गंगाजल पिया । (7) वन में मोर नाचा । (7) राम चौदह वर्ष तक वन में रहे। । (8) भक्त ने भजन किया । (9) पेड़ से पत्ते गिरे । (10) रमेश ने कभी झूठ नहीं बोला । (11) राम ने एक पत्र लिखा । (12) तुम सब कल कहाँ गये थे । (13) मैंने सिनेमा नहीं देखा । (14) वृक्ष में फल गिरा । (15) राजा दशरथ के चार पुत्र थे । (16) त्रेतायुग में राम का राज्य था । (17) इस नगर में तीन महापुरुष रहते थे । (18) श्रीकृष्ण के पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था । (19) वे बालक नहीं हँसे। (20) सड़क पर घोड़े नहीं दौड़े । (21) वृक्ष से फल नहीं गिरे । (22) गुरु ने प्रश्न नहीं पूछा । (23) छात्र ने प्रश्न का उत्तर दिया । (24) वीर सैनिकों ने अपने देश की रक्षा की । (25) छात्रों ने आज सभी में भाषण सुना ।

We hope the RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् अनुवाद-कार्यम् will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् अनुवाद-कार्यम्, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

राम विद्यालय जाता है इसका संस्कृत में अनुवाद क्या होगा?

Expert-Verified Answer. राम: विद्यालयम् गच्छति।

श्याम का संस्कृत क्या होगा?

Answer. Answer: राम: , श्याम: च गृह अगच्छाम।

राम पड़ता है इसका संस्कृत में क्या होगा?

उदाहरणार्थ-'राम पढ़ता है' वाक्य के लिए संस्कृत में लिखा जाएगा 'रामः पठति', जबकि 'सीता पढ़ती है' के लिए भी 'सीता पठति' ही लिखा जाएगा।

विद्यालय में संस्कृत में क्या कहते हैं?

"विद्यालय" का संस्कृत में अनुवाद विद्यालय संस्कृत में अनुवाद करता है: गुरुकुल, विद्यालय (2 कुल अनुवाद)।