‘परिवर्तन’ कविता का वैशिष्ट (विशेषताएँ) निरूपित कीजिए। अथवा ‘परिवर्तन’ कविता पन्त की श्रेष्ठतम उपलब्धि है।” सिद्ध कीजिए। ‘परिवर्तन’ कविता पन्त की सम्पूर्ण रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ है। इतनी आवेगपूर्ण आकार में बड़ी तथा अनेक रसमय उनकी अन्य कोई भी कविता नहीं है। इसका संकलन उनके ‘पल्लव’ नामक काव्य संग्रह में हुआ है। परिवर्तन
कविता का रचना-काल सन् 1924 ई. है; जो कवि के जीवन में का विशिष्ट समय था जब ऐहिक विपत्तियों की ठोकर खाकर जीवन की वास्तविकता के प्रति सर्वप्रथम कवि का ध्यान केन्द्रित हुआ। कल्पना-लोक में विहार करने वाली कवि की प्रतिभा का मृत्युलोक की कठोरताओं से परिचय होते ही वह एक साथ उद्दीप्त और उदबुद्ध हो उठी तथा विश्व में व्याप्त परिवर्तन की मार्मिक अनुभूति से तड़प उठी। ‘परिवर्तन’ कविता भाव, विचार, अनुभूति और अभिव्यक्ति सभी दृष्टिकोणों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। डॉ. शान्तिप्रिय द्विवेदी का अभिमत है “उसमें
परिवर्तनमय विश्व की करुण अभिव्यक्ति वेदनाशील हो उठी है कि वह सहज ही सभी हृदयों को अपनी सहानुभूति के कृपा-सूत्र में बाँध लेना चाहती है।” वास्तव में ‘परिवर्तन’ कविता में मानो समस्त विश्व की करुणामय अनुभूति मुखर हो उठी है। ‘परिवर्तन’ कविता के विषय में महाकवि निराला ने लिखा है- “परिवर्तन किसी भी बड़े कवि की कविता से निस्संकोच मैत्री कर सकता है।” स्वयं पन्त जी ने भी स्वीकारा है— “पल्लव” की छोटी-बड़ी अनेक रचनाओं में प्राकृतिक सौन्दर्य की झाँकियाँ दिखाती हुई तथा भावना के अपने स्तरों को स्पर्श करते हुए
मेरी कल्पना, ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता में मेरे उस काल के हार्दिक, वैयक्तिक, बौद्धिक संघर्षो का विशाल दर्पण-सी बन गयी है, जिसमें पल्लव-युग का मेरा मानसिक विकास तथा जीवन की संग्रहणीय अनुभुतियों के प्रति मेरा दृष्टिकोण प्रतिबिम्बित होता है।” वास्तव में ‘परिवर्तन’ में भिन्न-भिन्न रसों के चित्र हैं। कहीं श्रृंगार का अरुण रंग है, तो कहीं वीभत्स का नीला रंग है। जिस प्रकार मानव जीवन के चित्रपट पर मनोहर और भयंकर चित्र प्रतिक्षण बदलते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार ‘परिवर्तन’ के चित्र पल में रमणीक और पल
में भयानक होते रहते हैं, प्रकृति और प्रेम की कोमल कल्पना का कवि ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता में जगत् की नश्वरता, भीषणता और कठोरता देखने लगा- एक बार केवल एक बार ही कवि ने अपने सारे रचना-काल में प्रकृति का इतना विध्वंसक, कठोर और निर्मम चित्र खींचा है। सौन्दर्य-लोक के सुन्दर स्वप्नों के बीच बिहार करते-करते एकाएक कवि पन्त को कठोर धरती पर उतरना पड़ा। उन्हें अपने जीवन के कष्टों ने धरती के कष्टों से अवगत कराया उन्हें जगत् की यथार्थता का ज्ञान हुआ और सारा विश्व विनाशशील लगा। अपने जीवन में आये हुए क्रूर
परिवर्तन ने उनके हृदय को विश्वजनीन करुणा से भर दिया। परिणामतः कवि की लेखनी धरिता के कठोर चित्रों को अंकित करने लगी। यथा— “अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलते कंकाल यह परिवर्त बड़ा ही निर्मम है। इसका ताण्डव नृत्य सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन एवं विमोचन से संसार में निरन्तर उत्थान और पतन होता रहता है। यथा— “अहे निष्ठुर परिवर्तन! तुम्हारा ही ताण्डव नर्त्तन, विश्व का करुण विवर्त्तन, तुम्हारा ही नयनोन्मीलन, निखिल उत्थान-पतन ।” अन्यत्र कवि कहता है- “एक कठोर कटाक्ष तुम्हारा ऽखिल प्रलयंकर, परिवर्तन को ही कवि प्रजा का स्वरूप कहता है और उसी को नेत्रों का अनूप लावण्य बताकर सुन्दर कहता है उसी को लोक-सेवा के क्षेत्र का अविकार शिव बताता है। इस प्रकार कवि ‘परिवर्तन’ में ही सत्यं शिवं-सुन्दरम् का आरोपण करता है। निम्नलिखित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं— “वही प्रजा का सत्य स्वरूप, हृदय में बनता प्रणय अपार। ‘परिवर्तन’ शीर्षक कविता में अनुभूति जितनी ही प्रौढ़ है, अभिव्यक्ति उतनी ही उत्कृष्ट, प्रान्जल है। इसमें उपमा, और आवेगपूर्ण है। कवि ने भाषा-साम्य के आधार पर ऐसे शब्द-युग्मों का प्रयोग किया है, जो भावों का सजीव चित्र अंकित कर देते हैं। अलंकार-योजना की दृष्टि से परिवर्तन कविता पुष्ट रूपक तथा रूपकातिशयोक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग बहुलता के साथ पाया जाता है। इसके अतिरिक्त विशेषण-विपर्यय, विरोधाभास तथा मानवीकरण आदि अलंकारों का भी प्रयोग परिवर्तन कविता में हुआ है। उदाहरण- रूपकातिशयोक्ति: ‘सौरभ का मधुमास’ तथा ‘मधुऋतु की गुंजित डाल।’ रूपक: ‘आँसुओं के ये सिन्धु विशाल’ और ‘विभव की विद्युत्ज्याल ।’ उपमा: ‘शिशिर-सा झर नयनों का नीर।’ मानवीकरण: ‘अचिरता देख जगत की आप, शून्यं भरता समीर निश्वास।’ ‘परिवर्तन’ कविता में लाक्षणिकता भी कूट-कूट कर भरी है। यथा ‘गूंजते हैं, सबके दिन चार’ तथा ‘बन गया सिन्दूर अंगार’ आदि पंक्तियों में लाक्षणिकता झलक रही है। परिवर्तन कविता की छन्द योजना अत्यन्त चित्ताकर्षक है। भावानुकूल भाषा के साथ-साथ शब्दों को भी पूर्णतया भावों की गति के अनुरूप ढालने का प्रयास किया गया है। सर्वत्र तुकान्त पदावली का प्रयोग हुआ है। रहस्यात्मक अनुभूति की प्रधानता भी ‘परिवर्तन’ कविता में पायी जाती है। फलतः यह पन्त जी की चिन्तन-प्रधान रचना की श्रेणी में आती है। कवि ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों के माध्यम से काल-चक्र के सतत प्रवाह में होने वाले परिवर्तनों का अंकन दर्शन के आधार पर किया है। इस कविता के पन्त की भावी चिन्तन-प्रधान कविताओं की पृष्ठभूमि माना जा सकता है। उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समष्टि रूप से यह कविता परिवर्तन के सर्जक और विध्वसंक दोनों रूपों का सशक्त अंकन करती हुई, उसी विश्वनियामक सर्वोपरि सत्ता घोषित करती है। आरम्भ में उसके विनाशकारी विध्वंशकारी रूप का, फिर सर्जक के उल्लासमय रूप का और अन्त में सृष्टि के नियमन करने वाले रूप का अंकन किया है। उसके ये तोनों रूप माया के समान ही ब्रह्म के ही रूप है। पाठक इसे पढ़ते समय आरम्भ में आतंक से सिहर उठता है, फिर सर्जक-रूप को देख आशा-उल्लास से उमंगित हो उठता है और अन्त में उसका नियामक का रूप उसे अकिंचनता की अनुभूति से निरीह बना देता है। अतः विश्वम्भर मानव के शब्दों में कहा जा सकता है— “परिवर्तन” पन्त जी की पहली महत्त्वपूर्ण विचार प्रधान रचना है। यह वह पहली रचना है, जिसमें कवि व्यापक दृष्टि से सृष्टि की घटनाओं पर विचार करता है।” IMPORTANT LINK
Disclaimer Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: You may also likeAbout the authorइस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद.. परिवर्तन कविता का मूल संदेश क्या है?कविता रोला छंद में रचित है। यह कविता 'पल्लव' नामक काव्य संग्रह में संकलित है। परिवर्तन कविता को समालोचकों ने एक 'ग्रैंड महाकाव्य' कहा है। संदेश :- जगत को नाशवान बताकर व्यक्ति को सचेत किया है कि वह अहंकार को त्याग दे और जीवन की वास्तविकता को समझकर संयत आचरण करे।
परिवर्तन कविता क्या है?परिवर्तन पंत जी द्वारा उचित एक लम्बी कविता है जो मूलतः 'पल्लव' नामक संकलन में संकलित है। 'परिवर्तन' कविता का मूल विषय दार्शनिक है किन्तु पंतजी ने इसे काव्य की सरलता से युक्त कर दिया है। कवि ने परिवर्तन को जीवन का शाश्वत सत्य माना है। यहाँ सब कुछ परिवर्तनशील है।
परिवर्तन कविता के कवि कौन हैं?'परिवर्तन' यह कविता 1924 में लिखी गई थी। कविता रोला छंद में रचित है। यह एक लम्बी कविता है।
कविता की मुख्य विशेषता क्या है?कविता की मुख्य विशेषता रसानुभूति की प्रबलता होती हैं। कविता में मनुष्य अपनी विचारों और मन के भावों को लिखाता है। इसमें मनुष्य अपने भावना और कल्पना को महत्व देता है। कविता को रसभरी अनुभूति को व्यक्त करता है।
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