प्रेमघन की छाया स्मृति आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित इस लेख को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। Show
इस लेख में आप लेखक के जीवन परिचय संक्षेप में समझ सकेंगे, नोट्स , पाठ का सारगर्भित सूक्ष्म अध्ययन कर सकेंगे तथा परीक्षा में आने वाले संभावित प्रश्नों का अवलोकन कर उनको चिन्हित कर सकेंगे। Premghan ki chhaya smritiप्रेमघन की छाया स्मृति – Premghan ki chhaya smritiप्रेमघन की छाया स्मृति हिंदी विषय की पुस्तक में पढ़ने को मिलता है जो आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लेखक बद्रीनारायण चौधरी ‘ प्रेमघन ‘ से बचपन में पहले मुलाकात का स्मरण स्वरूप है। जिसमें उनकी उत्सुकता और कवि की वेशभूषा आदि का बड़ी ही बाल मनोवैज्ञान पर आधारित छवि प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। लेखक परिचय संक्षेप मेंलेखक का नाम – आचार्य रामचंद्र शुक्ल। जन्म तथा स्थान – 1884 उत्तर प्रदेश अगोना गांव। शिक्षा – आरंभिक शिक्षा उर्दू , अंग्रेजी और फारसी में हुई , मगर इंटरमीडिएट तक ही विधिवत पढ़ सके। बाद में स्वयं के प्रयासों से संस्कृत , अंग्रेजी , बांग्ला और हिंदी के प्राचीन तथा आधुनिक साहित्य का गहन , गंभीर स्वाध्ययन किया। कार्य – १ अध्यापन कार्य – काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे। २ संपादक कार्य काशी नागरी प्रचारिणी सभा में हिंदी शब्द सागर के निर्माण कार्य में सहायक संपादक का कार्य किया। रचनाएं –
साहित्यिक विशेषताएं –
भाषा शैली – शुक्ल जी की गद्य शैली विवेचनात्मक है। ]तत्सम तथा उर्दू शब्दों का सरल व सहज प्रयोग है। विचार प्रधान , सारगर्भित , तर्क योजना इनकी भाषा की विशेषता है। मृत्यु – 1941 मे हुई। विधा – संस्मरणात्मक निबंध ( जो निबंध स्मृति/यादों के आधार पर लिखी गई हो) मूल संवेदना – आचार्य रामचंद्र शुक्ल , बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन के आंतरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व का एक ऐसा रेखाचित्रात्मक संस्मरण उकेरना चाहते हैं। जिससे पाठकों के मन मस्तिष्क पर प्रेमघन की छवि , व्यवहार , रहन-सहन , खान-पान , अभिरुचि , पहनावा , बातचीत की शैली , चाल-ढाल , विनोद प्रियता तथा हिंदी भाषा के प्रति उनके विचार आदि का सजीव चित्र अंकित हो सके। ‘ प्रेमघन की छाया स्मृति ‘ पाठ का सारशुक्ल जी के बचपन का साहित्यिक वातावरण – शुक्ल जी को बचपन से घर में साहित्यिक वातावरण मिला। क्योंकि उनके पिता फारसी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे , तथा पुरानी हिंदी कविता के प्रेमी थे। वह प्रायः रात्रि में घर के सब सदस्यों को एकत्रित करके रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका को पढ़कर सुनाया करते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक उन्हें अत्यंत प्रिय थे। बचपन के कारण शुक्ल जी सत्य हरिश्चंद्र नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र तथा भारतेंदु हरिश्चंद्र में अंतर समझ नहीं पाते थे। चौधरी प्रेमघन के प्रथम दर्शन – प्रेमघन से मिलने के लिए लेखक शुक्ल जी ने बच्चों की टोली एकत्रित की। उसमें प्रेमघन के घर को जानने वाला बालक आगे-आगे नेतृत्व करता हुआ चल रहा था , उसके पीछे सभी साथी चल रहे थे। रास्ते में शुक्ल जी कौतुक भरी निगाहों से उस राह तथा उसमें पडने वाले सभी दृश्यों को बारीकी से अध्ययन करते हुए चल रहे थे। उनके मन में आज चौधरी प्रेमघन से मिलने की तीव्र उत्कंठा थी। पिता की बदली मिर्जापुर में होने पर अपने घर से प्रेमघन के घर की निकटता रहने के कारण शुक्ल जी को अपनी मित्र मंडली के साथ उन्हें प्रथम दर्शन हुए। जिसमें लता प्रधान के बीच मूर्ति वत खड़े , कंधों पर बाल बिखरे और एक हाथ ब्रह्मदेव के खंभे पर था। शुक्ल जी की साहित्य के प्रति बढ़ती रूचि –पंडित केदारनाथ के पुस्तकालय से पुस्तक के लाकर पढ़ते-पढ़ते शुक्ल जी की रुचि हिंदी के नवीन एवं आधुनिक साहित्य के प्रति बढ़ गई व उनकी गहरी मित्रता केदारनाथ जी से भी हो गई। अपनी युवावस्था तक आते-आते शुक्ल जी को समवयस्क हिंदी प्रेमी लेखकों की मंडली भी मिल गई। जहां शुक्ल जी रहते थे , वह उर्दू भाषी वकीलों , मुख्तारों आदि की बस्ती थी। लेखक अपनी मित्र मंडली के साथ जब भी कोई बातचीत करते तो उस बातचीत में निस्संदेह शब्द का बहुत प्रयोग होता था। जिसे सुन सुनकर उस बस्ती के लोगों ने इस लेखक मंडली का नाम निस्संदेह मंडली रख दिया था। चौधरी प्रेमघन की व्यक्तिगत विशेषता – प्रेमघन जी को खासा हिंदुस्तानी रहीस बताया गया है। उनकी हर बात में तबीयतदारी टपकती थी। बसंत पंचमी , होली आदि त्योहारों पर उनके घर में खूब नाच-रंग और उत्सव हुआ करते थे। उनकी बातें विलक्षण वक्रता व्यंग्यात्मक हुआ करती थी। चौधरी साहब प्रायः लोगों को बनाया करते थे अर्थात उनको बेवकूफ बनाने की कोशिश करते थे। वह प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ भाषा के विद्वान भी थे। वह बातों में हास्य और व्यंग्य का समावेश रखते थे। यह भी पढ़ेंसंदेश लेखन Sangya in Hindi Grammar – संज्ञा की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण। अलंकार की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण – Alankar in hindi सर्वनाम की पूरी जानकारी – परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण – Sarvanam in hindi Hindi varnamala | हिंदी वर्णमाला की पूरी जानकारी अनेक शब्दों के लिए एक शब्द – One Word Substitution उपसर्ग की संपूर्ण जानकारी Abhivyakti aur madhyam ( class 11 and 12 ) रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण प्रेमघन की छाया स्मृति – परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्नप्रश्न 1 – शुक्ल जी की मित्र मंडली को देखकर उर्दू भाषी लोग उन्हें किस नाम से पुकारते थे तथा क्यों ? उत्तर – शुक्ल जी की मित्र मंडली को देखकर उर्दू भाषी लोग उससे निस्संदेह मंडली के नाम से पुकारने लगे थे। क्योंकि उन्हें लेखक मंडली की बोली अनोखी लगती थी। जिसमें निस्संदेह शब्द का प्रयोग बहुत होता था। जबकि वहां रहने वाले वकील , मुख्तार तथा कचहरी के अफसरों की भाषा उर्दू थी इसलिए लेखक मंडली का नाम उन्होंने निस्संदेह मंडली रख दिया था। प्रश्न 2 – लेखक का रुझान और रुचि साहित्य की ओर कैसे बढ़ता गया ? उत्तर – शुक्ल जी की अभिरुचि हिंदी के नवीन एवं आधुनिक साहित्य के प्रति बढ़ती गई , क्योंकि उन्होंने पंडित केदारनाथ के पुस्तकालय से पुस्तक में लाकर पढ़ना आरंभ किया। लेखक जैसे-जैसे बड़ा होता गया वैसे-वैसे हिंदी के नूतन साहित्य की और उनका रुझान बढ़ता गया। उनके घर में जीवन प्रेस की पुस्तकें आती थी , जिन्हें वह बड़े चाव से पढ़ते थे। ऐसे ही उनका रुझान व रुचि साहित्य के प्रति बढ़ता गया। प्रश्न 3 – मैं तो अपने आप को……………………………………………….. नहीं कह सकता। सप्रसंग व्याख्या कीजिए। उत्तर – प्रसंग – पाठ का नाम – प्रेमघन की छाया स्मृति लेखक – का नाम पंडित रामचंद्र शुक्ल। संदर्भ – इन पंक्तियों में लेखक बता रहे हैं कि उनका परिचय अन्य लेखकों की मंडली से हो गया था। हिंदी के नए पुरातन लेखकों की चर्चा इस मंडली में होती रहती थी। लेखक भी इसमें अवश्य भाग लेता था। व्याख्या-शुक्ल जी अब स्वयं को लेखक ही मानने लगे थे। लेखकों के बीच उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। लेखकों की मंडली में बातचीत पढ़ने लिखने की भाषा में होती थी। वह कई नए और विशिष्ट शब्दों का प्रयोग करते थे , ऐसा ही एक शब्द था निस्संदेह। सभी लोग इस शब्द को बहुत अधिक प्रयोग करते थे। लेखक जिस स्थान पर रहता था वहां कचहरी , अदालत के कर्मचारी अक्सर रहते थे। वे लोग अदालत कचहरी में उर्दू शब्द का प्रयोग किया करते थे। इन लोगों को हिंदी लेखकों की बोली अजब लगती थी। लेखकों के मुंह से बार-बार निस्संदेह शब्द सुनकर उन्होंने लेखकों का नाम ही निस्संदेह रख दिया था। लेखक के मोहल्ले में एक मुसलमान सब जज हो आए थे लेखक के पिताजी उन्हें जानते थे। एक दिन वे दोनों बातें कर रहे थे कि लेखक के पिताजी ने अपने बेटे का परिचय देते हुए कहा कि इसे हिंदी का बहुत शौक है। यह हिंदी लिखने पढ़ने में बहुत रुचि लेता है। यह सुनते ही जज साहब ने उत्तर दिया कि , आपको इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है। इसकी शक्ल देखकर ही हम जान गए थे कि यह हिंदी प्रेमी है। लेखक इस रहस्य को समझ नहीं पाया कि जज साहब उसकी सूरत को देखकर उसके हिंदी प्रेम को कैसे जान गए थे। भाषा विशेष –
प्रश्न 4 – चौधरी साहब तो………………………………….. अक्सर लगा रहता था। सप्रसंग व्याख्या कीजिए। उत्तर – प्रसंग – पाठ – प्रेमघन की छाया स्मृति लेखक – पंडित रामचंद्र शुक्ल संदर्भ – इन पंक्तियों में लेखक ने चौधरी प्रेमघन जी के घर के वातावरण का वर्णन करते हुए स्पष्ट किया है कि उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व में हिंदुस्तानी संस्कार ही बसते थे। व्याख्या – शुक्ल जी का आना-जाना प्रेमघन जी के घर में एक लेखक के रूप में होने लगा था। प्रेमघन जी को देखकर शुक्ल जी उन्हें कौतूहल की दृष्टि से देखा करते थे , क्योंकि वह प्रेमघन जी को प्राचीन कवियों के रूप में देखते थे। वे हिंदुस्तानी रईसों की भांति जीवन व्यतीत करते थे। अर्थात् उनके घर में होली , वसंत पंचमी के उत्सव पूरे जोश और उल्लास के साथ मनाए जाते थे। जिसमें भारतीय संस्कृति की झलक साफ दिखाई पड़ती थी। उनकी बातचीत का ढंग नौकरों के साथ अनूठा होता था। भाषा विशेष –
Our Social Media Handles Fb page प्रेमघन की छाया स्मृति पाठ में कौन सी विद्या है?शुक्ल जी को बचपन से घर में साहित्यिक वातावरण मिला। क्योंकि उनके पिता फारसी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे , तथा पुरानी हिंदी कविता के प्रेमी थे। वह प्रायः रात्रि में घर के सब सदस्यों को एकत्रित करके रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका को पढ़कर सुनाया करते थे।
चौधरी प्रेमघन से मिलने के लिए लेखक ने क्या किया *?भारतेन्दु हरिश्चंद्र के मित्र उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन यहां रहते है। उनसे मिलने के लिए लेखक अपने मित्रों के साथ देश मील पैदल चलकर कर उनके घर पहुँच - Page 3 गए। कुछ देर ऊपर की तरफ देखने के बाद प्रेमघन के दर्शन हुए। पढने जाया करते थे उसी के संस्थापक केदारनाथ जी थे।
प्रेम धन की छाया पाठ के लेखक के पिता उन्हें बचपन में कौन सी पुस्तक सुनाते थे *?उनके घर में भारतेन्दु रचित हिन्दी नाटकों का वाचन हुआ करता था। रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का भी सुंदर वाचन होता था। पिता द्वारा लेखक को बचपन से ही साहित्य से परिचय करवा दिया गया था। भारतेन्दु लिखित नाटक लेखक को आकर्षित करते थे।
लेखक को कितने साल की उम्र से ही हिंदी की मित्र मंडली मिलने लगी थी?लेखक जिस पुस्तकालय में हिंदी की पुस्तकें पढ़ने जाया करते थे, उसी के संस्थापक केदारनाथ जी थे। वे लेखक को प्रायः पुस्तक ले जाते हुए देखते थे। बच्चे के अंदर हिंदी पुस्तकों और लेखकों के प्रति आदरभाव देखकर वह बहुत प्रभावित हुए। उन्हीं के कारण सौलह वर्ष की अवस्था में लेखक को हिंदी प्रेमियों की मंडली से परिचय हुआ।
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