उत्तर :रीतिमुक्त काव्यधारा में घनानंद का स्थान सर्वोच्च है। वे हिन्दी साहित्य में ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में स्थापित हैं। इन्होंने लगभग 39 रचनाएँ लिखीं जिनमें ‘सुजानहित’, ‘ब्रज-विलास’, ‘विरहलीला’ प्रधान हैं। Show
यहाँ चर्चा का विषय यह है कि प्रेम व शृंगार पर तो सभी रीतिकालीन कवियों ने रचनाएं की हैं, किंतु घनानंद को ‘प्रेम की पीर’ का कवि क्यों कहा जाता है? इस संबंध में यदि उनके शृंगार वर्णन की विशिष्टताओं पर गौर किया जाए तो निश्चित ही वे ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में दिखाई पड़ते हैं। उपरोक्त चर्चा के संदर्भ में पहला प्रमाण यह है कि घनानंद मूलतः वियोग के कवि हैं। उन्होंने अपने साहित्य में बिहारी आदि की तरह संयोग व मिलन के चित्र नहीं खींचे हैं बल्कि प्रेम की पीड़ा को व्यक्त किया है। शुक्ल लिखते हैं कि "ये वियोग शृंगार के प्रधान मुक्तक कवि हैं।" इसी प्रकार, यह भी कहा जा सकता है कि इनका साहित्य स्वानुभूति का साहित्य है न कि सहानुभूति का। अपनी प्रेमिका सुजान के विरह में कविताएँ रचने वाले घनानंद के बारे में दिनकर जी लिखते हैं, "दूसरों के लिये किराए पर आँसू बहाने वालों के बीच यह एक ऐसा कवि है जो सचमुच अपनी पीड़ा में रो रहा है।" ‘प्रेम की पीर’ का कवि कहलाने के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि इनका प्रेम वर्णन वैधानिकता, अति-भावुकता व अपने साथी के प्रति एकनिष्ठता से युक्त है- "अति सूधो सनेह को मारग है घनानंद के यहाँ विरह की पीड़ा इतनी तीव्र है कि यह प्रतीक रूप में उनके साहित्य में सर्वत्र दिखाई देती है। सुजान के प्रति जो लौकिक प्रेम था, बाद में वही कृष्ण-राधा के प्रति अलौकिक स्तर पर व्यक्त होने लगा। पीड़ा इतनी गहरी है कि राधा-कृष्ण भक्ति के प्रसंग में भी सुजान के विरह को व्यक्त करते रहे- "ऐसी रूप अगाधे राधे, राधे, राधे, राधे, राधे इस प्रकार विरह की गहरी अनुभूति, वैयक्तिकता, एकनिष्ठता, तीव्र भावुकता व स्वानुभूति जैसे तत्त्व घनानंद को ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में स्थापित करते हैं। प्रेम की पीर के कवि कौन है?...कविताज्ञान गंगाकवियों
Suman SauravGovernment Teacher & Carrear Counsultent0:09 चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। नमस्कार दोस्तों आपका प्रश्न प्रेम की पीर कभी के लेखक कौन है तो इसके लेखक हैं धनानंद Romanized Version 2 जवाब ऐसे और सवाल प्रेम की पीर के कवि कौन हैं?...आपका सवाल है प्रेम की पीर के कवि कौन है तो दिख इस सवाल काऔर पढ़ें GAZIBAR RAHMANTeacher प्रेम की पीर के कवि किस कवि को कहा जाता है?...और पढ़ें ShrikantTEACHER प्रेम के पीर का कवी किसे कहते हैं?...नमस्कार अब आपस में प्रेम की पीर का कवि किसे कहते हैं तो दिखी सद्भावऔर पढ़ें Manvendra Singh RathoreTeacher भारत के सबसे प्रथम कवि कौन थे?...और पढ़ें BabitaTeacher प्रेम मार्गी के कवि कौन हैं?...प्रेम मार्गी के कवि की बात करें तो भक्ति कालीन रचनाओं में इसकी अहम भूमिका...और पढ़ें GunjanJunior Volunteer प्रेम धन के कवि कौन थे?...शादी के नमस्कार गुड इवनिंग में पशुधन के कवि कौन है प्रेम की पीर केऔर पढ़ें Ashwani Thakur👤Teacher & Advisor🙏 प्रेम श्री शाखा के कौन से कवि नहीं है?...नाकों चने की प्रेम की शाखा के कवि कौन थे तो प्रेम श्री शाखा केऔर पढ़ें priya tiwariVolunteer हिंदी में प्रेत कवि कौन हैं?...भाई हिंदी में अधिकृत की बात की जाए तो हिंदी में कठिन का आपकी पेटऔर पढ़ें भोले नाथ भारत के प्रथम कवि कौन थे?...भारत का सबसे प्रथम कवि अब्दुल अरमान को माना जाता हैऔर पढ़ें Anil KumarAirline Career This Question Also Answers:
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घनानंद को प्रेम की पीर क्यों कहा जाता है?प्रेम की पीर के कवि के रूप में घनानंद - वैसे तो घनानंद की कविताओं में प्रेम के दोनों ही पक्षों, संयोग और वियोग कि अनुभूति का सहज प्रकाशन मिलता है परन्तु फिर भी इनकी प्रसिद्धी 'प्रेम की पीर के कवि' के रूप में है। प्रेम की पीड़ा की तीव्र अनुभूति इनकी कविता में विचित्रता तथा इनकी अभिव्यक्ति में विलक्षणता उत्पन्न करती है।
जैसी को प्रेम की पीर के कवि क्यों कहा जाता है?वास्तव में घनानंद जी का प्रेम एकनिष्ठ और अंतर्मुखी है इसलिए उनके प्रेम में सूक्ष्म से सूक्ष्म भावनाओं का अत्यंत मार्मिक रूप से चित्रण किया गया है इसलिए घनानंद जी ' प्रेम के पीर ' के कवि कहे जाते हैं।
घनानंद कैसे कवि थे?घनानंद (१६७३- १७६०) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। ये 'आनंदघन' नाम स भी प्रसिद्ध हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिमुक्त घनानन्द का समय सं. १७४६ तक माना है।
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