UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत). Show UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत)विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक) प्रश्न 1 उत्पादन लागत की परिभाषाएँ उम्ब्रेट, हण्ट तथा किण्टर के अनुसार, “उत्पादन लागत में वे समस्त भुगतान सम्मिलित होते हैं। जो कि अन्य व्यक्तियों को उनकी वस्तुओं एवं सेवाओं के उपयोग के बदले में किये जाते हैं। इसमें मूल्य ह्रास तथा प्रचलन जैसे भेद भी सम्मिलित रहते हैं। इसमें उत्पादक द्वारा प्रदत्त सेवाओं के लिए अनुमानित मजदूरी तथा उसके द्वारा प्रदत्त पूँजी व भूमि का पुरस्कार भी सम्मिलित रहता है।” उत्पादन लागत के प्रकार
1. मौद्रिक लागत – उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग के लिए जो धन व्यय किया जाता है, वह उसकी मौद्रिक लागत होती है या किसी वस्तु के उत्पादन पर द्रव्य के रूप में उत्पादन के उपादानों पर जो व्यय किया जाता है उसे मौद्रिक या द्राव्यिक लागत कहा जाता है। (क) स्पष्ट लागते (Explicit Costs) – इनके अन्तर्गत वे सब लागतें सम्मिलित की जाती हैं, जो उत्पादक के द्वारा स्पष्ट रूप से विभिन्न उपादानों को खरीदने (क्रय करने) के लिए व्यय की जाती हैं।
2. वास्तविक लागत – वास्तविक लागत का विचार तो परम्परावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा ही प्रस्तुत कर दिया गया था, परन्तु इसकी विस्तृत एवं स्पष्ट व्याख्या प्रो० मार्शल द्वारा की गयी। उन्होंने कहा कि – “वस्तु के निर्माण में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से लगाये गये विभिन्न प्रकार के श्रमिकों का श्रम इसके साथ वस्तुओं को उत्पन्न करने में प्रयोग आने वाली उस पूँजी को बचाने में जो संयम अथवा प्रतीक्षा आवश्यक होती है, वे समस्त प्रयत्न और त्याग मिलकर वस्तु की वास्तविक लागत कहलाते हैं।”
ये समस्त प्रयत्न एवं त्याग मिलकर वस्तु की वास्तविक लागत’ कहलाते हैं। जिस कार्य को करने में श्रमिकों को अधिक कष्ट होता है, उसकी वास्तविक लागत अधिक होती है। इसके विपरीत, जिस कार्य को करने में श्रमिकों को कम कष्ट होता है, उसकी वास्तविक लागत कम होती है। 3. अवसर लागत – आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने वास्तविक लागत के विचार के स्थान पर अवसर लागत का विचार दिया है। अवसर लागत को हस्तान्तरण आय’ या ‘विकल्प लागत’ भी कहते हैं। अवसर लागत से अभिप्राय है कि किसी एक वस्तु के उत्पादन में किसी साधन के प्रयोग किये जाने का अभिप्राय यह है कि उस साधन को अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रयोग नहीं किया जा रहा है। अतः किसी वस्तु को उत्पन्न करने की सामाजिक लागत उन विकल्पों के रूप में व्यक्त की जा सकती है जो उस वस्तु को उत्पादित करने के लिए हमें त्यागने होते हैं। प्रो० मार्शल ने उद्यमकर्ता के दृष्टिकोण से उत्पादन लागत का विभाजन निम्न प्रकार से किया है
(i) प्रधान लागत अथवा परिवर्तनशील लागत – प्रधान लागत वह लागत है जो उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ बढ़ती रहती है। इस कथन को और अधिक अच्छी तरह इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं कि “यदि उत्पादन की मात्रा में कमी हो जाती है तो प्रधान लागत में भी वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत, यदि उत्पादन की मात्रा में कमी हो जाती है तो प्रधान लागत में भी कमी हो जाती है। इस प्रकार से उत्पादन की मात्रा और प्रधान लागत में प्रत्यक्ष तथा लगभग आनुपातिक सम्बन्ध होता है। उदाहरणार्थ-एक चीनी मिल को लीजिए। चीनी बनाने के लिए गन्ने के साथ-ही-साथ बिजली व श्रम-शक्ति की भी आवश्यकता पड़ती है। गन्ना-मजदूरी और बिजली पर होने वाला व्यय चीनी के उत्पादन की मात्रा के साथ-साथ घटता-बढ़ता रहता है। यदि मिल का मालिक चीनी का उत्पादन कम कर देता है तो उपर्युक्त तीनों मदों पर व्यय स्वत: ही कम हो जाता है। इसके विपरीत, यदि वह चीनी के उत्पादन की मात्रा में वृद्धि कर देता है तो उपर्युक्त तीनों मदों पर होने वाले व्यय में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार व्यय का उत्पादन की मात्रा के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध होने के कारण ही इसे ‘प्रधान लागत अथवा ‘अस्थिर उत्पादन लागत’ भी कहते हैं। मिल के बन्द हो जाने पर अथवा उत्पादन शून्य हो जाने पर प्रधान लागत भी शून्य हो जाती है। (ii) पूरक लागत या स्थिर लागत – पूरक लागत वह लागत होती है जो उत्पादन की मात्रा के साथ घटती-बढ़ती नहीं है। पूरक लागत को स्थिर लागत’ भी कहते हैं। अन्य शब्दों में इसको इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है कि यदि मिल में उत्पादन की मात्रा को पहले से दुगुना अथवा आधा कर दिया जाए तो पूरक लागत पूर्ववत् ही रहेगी। सरल शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि प्रत्येक उत्पादक को कुछ व्यय अनिवार्य रूप से ऐसे करने होते हैं जो उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर भी पूर्ववत् ही रहते हैं; जैसे – भवन व जमीन का किराया, पूँजी पर दिया जाने वाला ब्याज, बीमा शुल्क, मशीनों व यन्त्रों का मूल्य ह्रास, व्यवस्थापकों को वेतन आदि। यदि कारखाने में उत्पादन की मात्रा में एक सीमा तक वृद्धि की जाती है तो पूरक लागत में वृद्धि नहीं होती है, परन्तु जब उत्पत्ति उस सीमा को पार कर जाती है तो पूरक लागत में भी वृद्धि होने लगती है। प्रश्न 2 मान लीजिए वस्तु की केवल पाँच इकाइयों का उत्पादन किया गया और उन सबकी कुल लागत ₹ 30 है। अब यदि उत्पादन 5 इकाइयों से बढ़ाकर 6 इकाइयाँ कर दिया जाए अर्थात् एक अधिक इकाई का उत्पादन किया जाए और कुल लागत ₹ 39 आये, तब कुल लागत में ₹ 9 की वृद्धि हुई अर्थात् सीमान्त इकाई की लागत ₹ 9 हुई। इसी प्रकार यदि एक इकाई कम अर्थात् प्रथम चार इकाइयों की कुल लागत ₹ 22 हो तब एक इकाई कम उत्पादन करने पर कुल लागत में हैं 8 की कमी पड़ती है अर्थात् सीमान्त इकाई की लागत ₹ 8 होगी। औसत उत्पादन लागत का अर्थ कुल मौद्रिक लागत में उत्पन्न की गयी समस्त इकाइयों की संख्या का भाग देने से जो राशि आये, वह औसत लागत कहलाती है। कुल उत्पादन लागत में उत्पादित इकाइयों की संख्या का भाग देने से औसत लागत ज्ञात की जा सकती है। उदाहरण के लिए-माना 5 इकाइयों की कुल उत्पादन लागत ₹ 30 है। अत: औसत लागत = 30 ÷ 5 = ₹6 हुई। सीमान्त तथा औसत उत्पादन लागत में सम्बन्ध
माना कोई फर्म खिलौनों का उत्पादन करती है। खिलौनों की इकाइयों की सीमान्त उत्पादन लागत व औसत उत्पादन लागत निम्नांकित तालिका के अनुसार है रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण जैसे-जैसे अतिरिक्त इकाइयों का उत्पादन किया जाता है तब औसत लागत व सीमान्त लागत ‘प्रारम्भ में दोनों घटती हैं, लेकिन सीमान्त लागत, औसत लागत की अपेक्षा अधिक तेजी से गिरती है। धीरे-धीरे औसत व सीमान्त लागतें बढ़ने लगती हैं तब वे दोनों बराबर हो जाती हैं। इसके पश्चात् ह्रासमान प्रतिफल नियम लागू होने पर सीमान्त लागत औसत लागत से अधिक हो जाती है।। औसत लागत और सीमान्त लागत वक्र U-आकार के क्यों होते हैं ? 1. श्रम-सम्बन्धी बचते – श्रम-सम्बन्धी बचते श्रम-विभाजन का परिणाम होती हैं। कोई फर्म उत्पादन का स्तर जैसे-जैसे बढ़ाती जाती है, श्रम-विभाजन उतनी ही अधिक मात्रा में किया जा सकता है। श्रम-विभाजन के कारण लागत गिरती जाती है। 2. तकनीकी बचते – उत्पादन स्तर जितना अधिक होगा उतनी ही उत्पादन लागत प्रति इकाई कम होगी। इस प्रकार तकनीकी बचतें प्राप्त होती हैं। 3. विपणन की बचते – जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे विपणन की प्रति इकाई लागत गिरती जाती है। 4. प्रबन्धकीय बचते – उत्पादन में वृद्धि होने पर प्रबन्ध की प्रति व्यक्ति इकाई लागत भी निश्चित रूप से गिरती है। उपर्युक्त कारणों से उत्पादन के बढ़ने पर औसत लागत के गिरने की आशा की जा सकती है। लागत इस कारण गिरती है, क्योंकि अधिकांश साधन ऐसे होते हैं जिन्हें बड़े पैमाने के उत्पादन पर ही अधिक कुशलता के साथ उपयोग में लाया जा सकता है, यद्यपि उत्पादन बढ़ने पर फर्म की औसत लागत गिरती है, किन्तु ऐसा केवल एक सीमा तक ही होता है। अनुकूलतम उत्पादन इस सीमा को निर्धारित करता है। जब फर्म का उत्पादन अनुकूलतम होता है तो उसकी औसत लागत न्यूनतम होती है। अनुकूलतम उत्पादन तक पहुँचने के पश्चात् औसत लागत बढ़ने लगती है। जब उत्पादन अनुकूलतम से अधिक किया जाएगा तो प्रबन्धकीय समस्याएँ बढ़ जाएँगी। इन सब बातों के आधार पर यह कह सकते हैं कि फर्म का अल्पकालीन औसत वक्र U-आकार का होता है। प्रश्न 3 सीमान्त लागत (Marginal Cost) – किसी वस्तु की अन्तिम इकाई पर आने वाली लागत को ‘सीमान्त लागत’ कहते हैं अर्थात् सीमान्त लागत से आशय एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में हुई वृद्धि से होता है या वस्तु की एक इकाई को कम उत्पन्न करने पर कुल लागत में जो कमी होती है, उसको सीमान्त लागत कहते हैं। दूसरे शब्दों में, सीमान्त उत्पादन लागत एक अधिक अथवा एक कम इकाई के उत्पादन करने पर कुल उत्पादन लागत में हुई वृद्धि या कमी है। औसत लागत (Average Cost) – कुल लागत में उत्पादन की गयी समस्त इकाइयों की संख्या को भाग देने से औसत लागत ज्ञात हो जाती है। कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत में अन्तर एवं सम्बन्ध उत्पादन लागतों को उत्पत्ति के नियमों के सन्दर्भ में निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है
कुल लागत, सीमान्त लागत और औसत लागत के अन्तर एवं सम्बन्ध को निम्नांकित तालिका व रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण किन परिस्थितियों में औसत लागत व सीमान्त लागत में परिवर्तन होते हैं ? लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक) प्रश्न 1
प्रश्न 2 उत्पादन हास नियम को लागत वृद्धि नियम भी कहा जा सकता है अर्थात् जब उत्पादन के क्षेत्र में सीमान्त और औसत उत्पादन की मात्रा में एक सीमा के पश्चात् कमी होनी प्रारम्भ हो जाती है तब : सीमान्त और औसत लागतें बढ़नी प्रारम्भ हो जाती हैं। इसीलिए इस नियम को लागत वृद्धि नियम (Law of Increasing Cost) भी कहते हैं। रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण प्रश्न 3 MC सीमान्त लागत वक्र तथा AC औसत लागत वक्र है। रेखाचित्र से स्पष्ट है कि औसत लागत और सीमान्त लागत दोनों ही बढ़ रहे हैं, इसलिए इसे लागत वृद्धि नियम भी कहा जाता है। इस स्थिति में, सीमान्त लागत के बढ़ने की गति औसत लागत से अधिक तीव्र रहती है। उत्पादन की इकाइयाँ प्रश्न 4 रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण 1. उत्पत्ति वृद्धि नियम की क्रियाशीलता के कारण उत्पादन – चित्र (अ) में Ox-अक्ष पर श्रम व पूँजी की इकाइयाँ तथा OY-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा को दर्शाया गया है। चित्र में MP 25सीमान्त उत्पादन की वक्र रेखा तथा AP औसत उत्पादन की वक्र रेखाg 20है। चित्र से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे उत्पत्ति के साधन की मात्रा को बढ़ाया जाता है, संगठन में सुधार होने के कारण सीमान्त उत्पादन और औसत उत्पादन दोनों ही बढ़ते जाते हैं। परन्तु सीमान्त उत्पादन के बढ़ने की गति औसत उत्पादन के बढ़ने की गति से अधिक तीव्र 2. उत्पत्ति वृद्धि नियम की क्रियाशीलता के कारण लागत – चित्र (ब) में OX-अक्ष पर उत्पादन की इकाइयाँ तथा OY-अक्ष पर लागत (₹ में) दिखायी गयी है। चित्र में AC औसत लागत तथा MC सीमान्त लागत वक्र है। उत्पादन में वृद्धिमान प्रतिफल नियम लागू होने के कारण म सीमान्त लागत और औसत लागत दोनों ही घटती जाती हैं; परन्तु सीमान्त लागत औसत लागत की अपेक्षा अधिक तेजी E से घटती है। अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 उदाहरण के लिए – 5 इकाई उत्पन्न करने की कुल लागत ₹500 है और 6 इकाइयों को उत्पन्न करने की लागत ₹720 है, तो सीमान्त लागत ₹220 होगी। प्रश्न 5 औसत लागत वक्र व सीमान्त लागत वक्र में अन्तर बताइए। उत्तर औसत लागत वक्र और सीमान्त लागत वक्र में एक निश्चित सम्बन्ध पाया जाता है। जब तक औसत लागत (AC) वक्र गिर रहा होता है तब तक सीमान्त लागत (MC) औसत लागत से कम होती है। किन्तु जब औसत लागत बढ़ने लगती है, तो सीमान्त लागत औसत लागत से अधिक हो जाती है। यदि औसत लागत वक्र ‘यू’ आकार का खींचा जाता है तो उसके साथ का सीमान्त लागत वक्र सदैव औसत लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर काटेगा। प्रश्न 6 प्रश्न 7
निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक) प्रश्न 1
प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 प्रश्न 5 प्रश्न 6 प्रश्न 7 प्रश्न 8 प्रश्न 9 प्रश्न 10 प्रश्न 11 प्रश्न 12 प्रश्न 13 प्रश्न 14 प्रश्न 15 बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक) प्रश्न 1 प्रश्न 2 प्रश्न 3 प्रश्न 4 प्रश्न 5 प्रश्न 6 प्रश्न 7 प्रश्न 8 9. निम्नलिखित में से किसे उत्पादन की स्थिर लागत में सम्मिलित किया जाता है? प्रश्न 10 प्रश्न 11 We hope the UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 Cost of Production (उत्पादन लागत), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. औसत उत्पादन से क्या अभिप्राय है?औसत उत्पाद - कुल उत्पादन को परिवर्तनशील साधन की कुल ईकाइयों से भाग देने से प्राप्त होता है उसे औसत उत्पादन कहते है।
उत्पादन से आप क्या समझते हैं?Solution : उद्योगों द्वारा किसी वस्तु तथा सेवा का निर्माण करना। जिससे मानवीय आवश्यकताऔ की पूर्ति की जा सकती है उसे उत्पाद कहते है।
औसत लागत से आप क्या समझते हैं?भारित-औसत पद्धति के रूप में भी जाना जाता है, औसत लागत पद्धति सभी पर इन्वेंट्री आइटम की लागत निर्दिष्ट करने के बारे में हैआधार समय की अवधि में खरीदे या निर्मित उत्पादों की कुल लागत और खरीदे या निर्मित उत्पादों की कुल संख्या से विभाजित।
औसत उत्पाद का सूत्र क्या है?विकल्प (c) औसत लागत = (कुल लागत)/(कुल उत्पादन) इस प्रश्न का सही जवाब है। औसत लागत अल्पकाल के लिए ज्ञात की जा सकती है और इसके साथ औसत परिवर्तित लागतो का भी मापदंड आंका जा सकता है। लागते की मात्रा परिवर्तित होती है और अर्थतंत्र की कई मात्रा को जानने के लिए बहोत उपयोगी इकाई भी मानी जाती है।
|