Show मन से त्यागें मृत्यु भोज:शास्त्र सम्मत नहीं है मृत्युभोज, ब्राह्मणों को भोजन कराना ही पर्याप्त, श्राद्ध में करें विधिवत तर्पण, गायों को चारा-पक्षियों को दें दानाबारां2 वर्ष पहले
मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को पंडित-पुराेहित भी शास्त्र सम्मत नहीं मानते हैं। भास्कर ने इस विषय पर शहर के विभिन्न पंडित, पुरोहित और प्रमुख मंंदिरों के पुजारियों से बातचीत की, और उनका मत जाना। सभी ने एक स्वर में कहा कि मृत्युभोज शास्त्र सम्मत नहीं है। ब्राह्मणों को भोजन कराना ही पर्याप्त है। वहीं जिलेभर से विभिन्न समाज के युवाओं, समाज प्रमुखों ने हमें संदेश भेजे। सभी ने कहा है कि मृत्युभोज की परंपरा बंद होनी चाहिए। मृत्युभोज शास्त्र सम्मत नहीं, यह किसी के लिए दिखावा है, तो ज्यादातर के लिए मजबूरी कि समाज क्या कहेगा...! ऐसा दिखावा किस काम का, जो गरीब को कर्जदार बना दे। ऐसी कुप्रथा बंद होनी चाहिए। एक ब्राह्मण को भोजन कराना ही पर्याप्त है। कोई भी कुप्रथा कभी भी धर्म सम्मत, शास्त्र सम्मत नहीं हो सकती। मृत्युभोज की बजाए आप गरीबों को दान कर दें या जनहित का कोई काम करवा दें। जिले के कई लोगों, समाज प्रमुखों ने मृत्युभोज में शामिल न होने का संकल्प लिया है। धर्मगुरुओं का मत... लोकाचार में है परंपरा, शास्त्रों में मृत्युभोज का कहीं भी उल्लेख
नहीं उनको सफेद साफी, जनेऊ, एक पात्र दान करना चाहिए। जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु होती है, उस तिथि को श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण या पंडित से तर्पण करवाना चाहिए। ब्राह्मण भोज कराना चाहिए। गाय को चारा, पक्षी को दाना देना चाहिए। श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है। मृत्युभोज की कुप्रथा को पूरी तरह से बंद करना चाहिए। भास्कर की इस अनूठी पहल से लोग जागरूक होंगे। निर्धनों पर आर्थिक बोझ है मृत्युभोज, यह बंद हो इसलिए यह सामाजिक कुप्रथा बंद होनी चाहिए क्योंकि यह एक ‘रूढ़िवादी कुप्रथा’ है। जिसका कहीं कोई उल्लेख अथवा प्रमाण मौजूद नहीं है। इस कुप्रथा के विरुद्ध भास्कर की इस अच्छी पहल पर हम पूरी तरह से सहमत हैं। भास्कर ने इस मुद्दे पर सभी लोगों और समाजओं को आगे आकर जागरुकता दिखानी चाहिए और इस कुप्रथा पर रोक लगानी चाहिए। गरीब लोगों के लिए घातक है मृत्यु
भोज की कुप्रथा ऐसे में इस कुप्रथा की वजह से खासकर गरीब परिवारों को दोगुना आघात पहुंचता है। कई लोग कर्जा लेकर भी इस गलत परंपरा का निर्वहन करने को मजबूर हो जाते हैं। जबकि इस तरह की प्रथा का शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं किया गया है। मृतक व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए तर्पण क्रिया, हवन वगैरह को ही जरूरी माना गया है। भास्कर की इस पहल से लोगों को नई प्रेरणा मिलेगी। वाॅट्सएप पर आए जिलेभर से संदेश...मृत्युभोज बिल्कुल बंद होना चाहिए मृत्युभोज बिल्कुल बंद होना चाहिए। इसकी जगह आप गरीबों को भोज, कन्याभोज और ब्राह्मण भोज करवाओ। मृत्युभोज ग्रामीण इलाकों में तो एक आवश्यक परंपरा बनी हुई है। कितना ही गरीब व्यक्ति हो, अगर उसके परिवार में किसी की मौत हो गई तो उसे मृत्युभोज तो देना ही पड़ेगा। इसमें सजा का प्रावधान हो, ताकि लोग पूरी
तरह पाबंद हों। मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है। कई जगह मृत्युभोज का आयोजन नहीं करने पर व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में सख्ती से कार्रवाई हो। इसे सब लोगों के सहयोग से बंद करना चाहिए। मृत्युभोज का दबाव डालने वाले लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। मृत्यु भोज की शुरुआत कब से हुई?श्री तिवारी की पुस्तक के अनुसार मृत्यु के बाद दिए जाने वाले भोज में मृतक के पूज्य जनों जैसे कि गुरु, वैद्य, दामाद, समधी, बेटी व अन्य आत्मीय जनों को ही पहले भोजन कराया जाता था। उन्हें यथा शक्ति स्मृति चिन्ह दिए जाते थे। इसके पीछे रहस्य यह था कि मृतक के दुनिया से चले जाने के बाद भी उसके संबंधियों का घर से नाता बना रहे।
क्या मृत्यु भोज शास्त्र सम्मत है?मन से त्यागें मृत्यु भोज:शास्त्र सम्मत नहीं है मृत्युभोज, ब्राह्मणों को भोजन कराना ही पर्याप्त, श्राद्ध में करें विधिवत तर्पण, गायों को चारा-पक्षियों को दें दाना मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को पंडित-पुराेहित भी शास्त्र सम्मत नहीं मानते हैं।
मृत्यु भोज क्यों नहीं होना चाहिए?श्रीकृष्ण कहते हैं, शोक में करवाया गया भोजन व्यक्ति की ऊर्जा का नाश करता है। अत: मृत्युभोज या तेरहवीं पर भोजन नहीं खाना चाहिए। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है 'आत्मा अजर, अमर है, आत्मा का नाश नहीं हो सकता, आत्मा केवल युगों-युगों तक शरीर बदलती है। '
मृत्यु भोज का दूसरा नाम क्या है?मौसर - मृत्यु भोज को मौसर कहा जाता है (राजस्थान....) मृत्युभोज का सामान्य अर्थ परीवार में से किसी की भी सदस्य की मृत्यु होने पर प्रतिभोज करना पडता है, इसे ही मृत्युभोज कहते है!
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