मूर्च्छना कितने प्रकार की होती है? - moorchchhana kitane prakaar kee hotee hai?

मूर्छना क्रमयुक्ताः स्वराः सप्त मूर्छनास्त्वभिसंहिता । – नाट्यशास्त्र

  • मूर्छना की परिभाषा
  • मूर्छना और आधुनिक थाटों की तुलना-
  • मूर्छना के 7 प्रकार / भेद
    • मूर्छना का पहला प्रकार / भेद – षड़ज ( सा )
    • दूसरा प्रकार – मन्द्र निषाद ( नि )
    • तीसरा प्रकार – मन्द्र धैवत ( ध )
    • चौथा प्रकार – पंचम ( प )
    • पांचवा प्रकार – मध्यम ( म )
    • छठा प्रकार – मन्द्र गंधार ( ग )
    • सांतवा प्रकार – रिषभ ( रे )

मूर्छना की परिभाषा

भरत के अनुसार क्रम से सात स्वरों का आरोह तथा अवरोह करने से मूर्छना बनती हैं । लेकिन प्रश्न यह उठता है कि किन सात स्वरों का आरोहावरोह किया जाए ? जवाब – यह है कि ग्राम के ही स्वरों का आरोह तथा अवरोह करने से मूर्छनाओं की रचना होती है । ग्राम चाहे षडज ग्राम हो अथवा मध्यम ग्राम , दोनों से समान रूप से मूर्छनाओं का निर्माण होता है ।

शारंगदेव “संगीत रत्नाकर” Sharangdev’s “sangeet ratnakar” में कहा गया है , ‘ ग्राम स्वर – समूहः स्यातमूर्च्छनादेः समाश्रयः ‘ अर्थात् ग्राम के ही स्वरों पर मूर्छना आधारित है । ग्राम के किसी भी स्वर को स्वरित ( आधार ) मान कर उसके ही स्वरों पर आरोह – अवरोह करने से मूर्छना की रचना होती है । उदाहरणार्थ षडज ग्राम के रिषभ( रे ) को आधार मान कर मूर्छना प्रारम्भ करने से गन्धार( ग ), रिषभ( रे ) हो जायेगा , मध्यम, गंधार होगा , इत्यादि – इत्यादि । इसी प्रकार ग्राम के शेष स्वरों से ही आरोह – अवरोह करने से मूर्छना की रचना होती है ।

मूर्छना की संख्या

एक ग्राम में 7 स्वर होते हैं । अतः प्रत्येक ग्राम से 7 मूर्छनाओं की रचना सम्भव है । अतः षडज , गन्धार और मध्यम ग्रामों से कुल 7 x 3 = 21 मूर्छनायें बन जाती हैं । मूर्छना की कुल संख्या 21 है ।

मूर्छना और आधुनिक थाटों की तुलना-

मूर्छना और आधुनिक थाटों की तुलना सर्वप्रथम षडज ग्राम की मूर्छनाओं की तुलना आधुनिक थाट से करेंगे । इस ग्राम के सातों स्वर क्रमशः 4 , 3 , 2 , 4 , 3 , 2 श्रुतियों की दूरी पर स्थित हैं ।

मूर्छना के 7 प्रकार / भेद

मूर्छना का पहला प्रकार / भेद – षड़ज ( सा )

( 1 ) पहली मूर्छना षड़ज से प्रारम्भ होगी । अतः 4 थी पर सा , 7 वीं पर रे , 9 वीं पर ग , 13 वीं पर म , 17 वीं पर प , 20 वीं पर ध और 22 वीं श्रुति पर नि आएगा ।

इसमें गंधार और निषाद पिछले स्वर रिषभ और धैवत से क्रमशः दो – दो श्रुति ऊँचे हैं । अतः ये दोनों स्वर कोमल हो जाएंगे और यह मूर्छना आधुनिक काफी थाट के समान होगी । यहाँ पर यह जानना आवश्यक है कि दो श्रुतियों से अर्ध स्वर ( सेमी टोन ) और 3 अथवा 4 श्रुतियों से पूर्ण स्वर ( होल टोन ) होता है ।

समानता :- काफी थाट के समान

दूसरा प्रकार – मन्द्र निषाद ( नि )

( 2 ) द्वितीय मूर्छना में मन्द्र नि को सा मानकर षडज ग्राम के स्वरों पर क्रमिक आरोह – अवरोह करेंगे । इसलिये सातों स्वर क्रमशः 2 , 4 , 3 , 2 , 4 , 4 और 3 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे । यह आधुनिक बिलावल थाट होगी , क्योंकि इसका कोई भी स्वर कोमल नहीं है । केवल मध्यम की 2 श्रुतियाँ हैं , अतः नियमानुसार म को कोमल होना चाहिये , किन्तु मध्यम कोमल नहीं होता । वास्तव में कोमल म को ही शुद्ध म कहते हैं ।

समानता :- आधुनिक बिलावल थाट के समान

तीसरा प्रकार – मन्द्र धैवत ( ध )

( 3 ) तीसरी मूर्छना में मन्द्र धैवत को सा मानकर आरोह अवरोह करेंगे । अतः सातों स्वर क्रमशः 3 , 2 , 4 , 3 , 2 , 4 और 4 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे । इसमें रे कोमल और पंचम स्वर तीव्र मध्यम हो जावेगा , क्योंकि रे और प अपने अपने निकटवर्ती स्वरों से क्रमशः दो श्रुति ऊँचे हैं । रे कोमल होने से 4 श्रुतियों का गन्धार भी शुद्ध न होकर कोमल हो जावेगा , इसी प्रकार ध और नि भी शुद्ध न होकर कोमल हो जाएंगे । तीव्र म से 4 श्रुति ऊँचा स्वर कोमल ध और कोमल ध से 4 श्रुति ऊँचा स्वर कोमल नि हो जाएगा । अतः इस मूर्छना में रे , ग , ध और नि स्वर कोमल तथा दोनों मध्यम और पंचम वर्ण्य होने से यह मूर्छना उत्तर भारतीय किसी भी थाट के समान नहीं होगी ।

समानता :- किसी भी थाट के समान नहीं

चौथा प्रकार – पंचम ( प )

( 4 ) चौथी मूर्छना मन्द्र के पंचम से प्रारम्भ होगी । अतः इसके सातों स्वर 4 , 3 , 2 , 4 , 3 , 2 और 4 श्रुत्यांतरों पर होंगे । इसके गंधार , धैवत और निषाद स्वर कोमल हो जावेंगे । इसलिये यह मूर्छना आसावरी थाट के समान होगी ।

समानता :- आसावरी थाट के समान

पांचवा प्रकार – मध्यम ( म )

( 5 ) पाँचवी मूर्छना मन्द्र के मध्यम से प्रारम्भ होने से सातों स्वर क्रमशः 4 , 4 , 3 , 2 , 4 , 3 और 2 श्रुत्यांतरों पर होंगे । इसमें केवल निषाद स्वर कोमल होगा क्योंकि पीछे हम बता चुके हैं कि दो श्रुतियों के अन्तर से अर्धस्वर होता है । म और नि की 2-2 श्रुतियाँ हैं । म कोमल नहीं होता , अतः केवल निषाद स्वर कोमल हो जाएगा । यह मूर्छना खमाज थाट के समान होगी ।

समानता:- खमाज थाट के समान

छठा प्रकार – मन्द्र गंधार ( ग )

( 6 ) छठी मूर्छना मन्द्र ग से प्रारम्भ होगी । उसके स्वर 2 , 4 , 4 , 3 , 2 , 4 , 3 श्रुत्यांतरों पर होंगे जो कल्याण थाट के समान होगी ।

समानता :- कल्याण थाट के समान

सांतवा प्रकार – रिषभ ( रे )

( 7 ) सातवीं मूर्छना मन्द्र के रिषभ से प्रारम्भ होगी और उसके स्वर क्रमशः 3 , 2 , 4 , 4 , 3 , 2 और 4 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे । इसमें रे , ग , ध और नि स्वर कोमल होंगे । यद्यपि ग भी 4 श्रुति ऊँचा है किन्तु कोमल रे से । इसलिये ग भी कोमल हो जावेगा । इसी प्रकार ध की 2 श्रुति होने पर कोमल हो जावेगा और धैवत के कोमल हो जाने से नि भी कोमल हो जावेगा । यह मूर्छना भैरवी थाट के समान होगी । ग्राम – तालिका से यह भी स्पष्ट हो जाएगी ।

समानता :- भैरवी थाट के समान

इसी प्रकार मध्यम ग्राम की मूर्छनायें भी ज्ञात की जा सकती हैं । यहाँ पर केवल षडज ग्राम की मूर्छनाओं पर विचार किया गया।

मूर्छना के कितने भेद हैं?

मूर्छना की संख्या अतः प्रत्येक ग्राम से 7 मूर्छनाओं की रचना सम्भव है । अतः षडज , गन्धार और मध्यम ग्रामों से कुल 7 x 3 = 21 मूर्छनायें बन जाती हैंमूर्छना की कुल संख्या 21 है ।

संगीत में ग्राम कितने प्रकार के होते हैं?

संगीत में ग्राम के प्रकार.
षडज ग्राम.
मध्यम ग्राम.
गंधार ग्राम.

ग्राम और मूर्च्छना का प्राचीन काल में क्या प्रयोजन था?

कहा जाता है कि प्राचीन काल में निषाद ग्राम को गंधर्वों द्वारा अपनाए जाने पर निषाद ग्राम को ही गांधार ग्राम कहा जाने लगा। ग्राम से मूर्च्छना जाति अथवा रागोत्पत्ति होती है। यह गाया - बजाया नहीं जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य स्वरों, तान श्रुतियों, राग जाति और मूर्च्छना आदि को सुव्यवस्थित रूप प्रस्तुत करना है।

षड्ज ग्राम क्या है?

षड्ज ग्राम षड्ज पंचम भाव होता है अर्थात सा ,प ,रे , ध ,ग ,नि , म ,सा ,ये जोड़ियाँ 13 श्रुतियांतर के स्वर संवाद पर स्थित है। इसे षड्ज ग्राम कहते हैं।