मैकमोहन रेखा और लाख क्या है? - maikamohan rekha aur laakh kya hai?

मैकमोहन रेखा और लाख क्या है? - maikamohan rekha aur laakh kya hai?

मैकमोहन रेखा पूर्वी-हिमालय क्षेत्र के चीन-अधिकृत एवं भारत अधिकृत क्षेत्रों के बीच सीमा चिह्नित करती है। यही सीमा-रेखा 1962 के भारत-चीन युद्ध का केन्द्र एवं कारण थी। यह क्षेत्र अत्यधिक ऊँचाई का पर्वतीय स्थान है, जो मानचित्र में लाल रंग से दर्शित है।

मैकमहोन रेखा भारत और तिब्बत के बीच सीमा रेखा है। यह सन् 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत अस्तित्व में आई थी। 1914 के बाद से अगले कई वर्षो तक इस सीमा रेखा का अस्तित्व कई अन्य विवादों के कारण कहीं छुप गया था, किन्तु 1935 में ओलफ केरो नामक एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी ने तत्कालीन अंग्रेज सरकार को इसे आधिकारिक तौर पर लागू करने का अनुरोध किया। 1937 में भारतीय सर्वेक्षण विभाग के एक मानचित्र में मैकमहोन रेखा को आधिकारिक भारतीय सीमा रेखा के रूप में दिखाया गया था।

इस सीमारेखा का नाम सर हैनरी मैकमहोन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी और वे भारत की तत्कालीन अंग्रेज सरकार के विदेश सचिव थे। अधिकांश हिमालय से होती हुई सीमारेखा पश्चिम में भूटान से 890 कि॰मी॰ और पूर्व में ब्रह्मपुत्र तक 260 कि॰मी॰ तक फैली है। जहाँ भारत के अनुसार यह चीन के साथ उसकी सीमा है, वही, चीन 1914 के शिमला समझौते को मानने से इनकार करता है। चीन के अनुसार तिब्बत स्वायत्त राज्य नहीं था और उसके पास किसी भी प्रकार के समझौते करने का कोई अधिकार नहीं था। चीन के आधिकारिक मानचित्रों में मैकमहोन रेखा के दक्षिण में 56 हजार वर्ग मील के क्षेत्र को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है। इस क्षेत्र को चीन में दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। 1962-63 के भारत-चीन युद्ध के समय चीनी फौजों ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र पर अधिकार भी जमा लिया था। [1] फिर चीन ने एकतरफ़ा युद्ध विराम घोषित कर दिया और उसकी सेना मैकमहोन रेखा के पीछे लौट गई। इस कारण ही वर्तमान समय तक इस सीमारेखा पर विवाद यथावत बना हुआ है, लेकिन भारत-चीन के बीच भौगोलिक सीमा रेखा के रूप में इसे अवश्य माना जाता है। भारत और चीन की सीमा को मैकमोहन रेखा कहते हैं। जिसका निर्धारण 1914 में शिमला समझौते के तहत किया गया

चित्र दीर्घा[संपादित करें]

भारत और चीन सीमा विवाद[संपादित करें]

1947 में, तिब्बती सरकार ने मैकमोहन रेखा के दक्षिण में तिब्बती जिलों पर दावा करते हुए भारतीय विदेश मन्त्रालय को प्रस्तुत एक नोट लिखा।[2] बीजिंग में, 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई और उसने तिब्बत को "मुक्त" करने के अपने इरादे की घोषणा की। भारत, जो 1947 में स्वतन्त्र हो गया था, ने मैकमोहन रेखा को अपनी सीमा घोषित करके और तवांग क्षेत्र (1950-51) पर निर्णायक रूप से नियन्त्रण का दावा करते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की।

1950 के दशक में, जब भारत-चीन सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण थे और सीमा विवाद शान्त था, प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के अधीन भारत सरकार ने हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे को बढ़ावा दिया। नेहरू ने अपने 1950 के बयान को बनाए रखा कि अगर चीन सीमा विवाद को आगे बढ़ाता है तो वह वार्ता को स्वीकार नहीं करेंगे, यह उम्मीद करते हुए कि "चीन विश्वास को स्वीकार करेगा।[3] 1954 में, भारत ने विवादित क्षेत्र का नाम बदलकर नॉर्थ ईस्ट फ़्रण्टियर एजेंसी कर दिया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारत-चीन सम्बन्ध
  • जॉनसन रेखा
  • डूरण्ड रेखा
  • लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल
  • डोकलाम विवाद 2017

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "चीन भारत सीमा विवाद: चीन जंग जीतकर भी अरुणाचल प्रदेश से पीछे क्यों हट गया था?".
  2. (Lamb, The China-India border 1964, पृ॰ 580)[verification needed]
  3. Chung, Chien-Peng (2004). Domestic politics, international bargaining and China's territorial disputes. Politics in Asia. Psychology Press. पपृ॰ 100–104. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-415-33366-5.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • China 1962 War जीतकर भी Arunachal Pradesh से पीछे क्यों हट गया था

  • सीमा को लेकर 1914 में हो गया था फैसला
  • फिर चीन क्यों नहीं मानता मैकमोहन रेखा

पिछले कुछ दिनों से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यानी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास भारत और चीन के सैनिकों के बीच सीमा विवाद को लेकर तनातनी देखने को मिल रही है. करीब 20 दिन पहले चीनी हेलिकॉप्टर्स, भारतीय वायु सीमा के करीब आ गए थे, लेकिन भारत के फाइटर्स विमानों ने लेह एयर बेस से उड़ान भरकर उन्हें खदेड़ दिया था.

वहीं ताजा सैटेलाइट तस्वीरों में अक्साई चीन क्षेत्र में सड़क के किनारे चीनी सेना के बड़े मूवमेंट के संकेत मिलते हैं. अक्साई चिन लद्दाख का वही हिस्सा है जिस पर चीन ने 1962 युद्ध के बाद से कब्जा कर रखा है. जबकि भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है.

यूरोपियन स्पेस एजेंसी की ताजा तस्वीरों से इस महीने के तीसरे हफ्ते में अक्साई चिन क्षेत्र में मूवमेंट के संकेत मिलते हैं. इन तस्वीरों के विश्लेषण से पता चलता है कि मूव करते ढांचे 30-50 मीटर ऊंचे हो सकते हैं. तस्वीरें जमीन पर हुए और देखे जा सकने वाले बदलावों को दर्शाती हैं जो कि संभवत: बड़े पैमाने पर मूवमेंट की वजह से हुए.

अमेरिका में पढ़ रहे हजारों चीनी छात्रों को बाहर निकालने की तैयारी

क्या है सीमा विवाद?

भारत और चीन, 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. ये तीन सेक्टरों में बंटी हुई है - पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश.

चीन पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताते हुए अपना दावा करता है. चीन, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को ये कहते हुए मानने से इनकार करता है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने समझौता किया था, तब वो वहां मौजूद नहीं था. जबकि गुलाम भारत के ब्रिटिश शासकों ने तवांग और दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा माना और जिसे तिब्बतियों ने भी सहमति दी. चीनी प्रतिनिधियों ने इसे मानने से इनकार कर दिया.

चीन के मुताबिक तिब्बत पर उनका हिस्सा है इसलिए वो बिना उनकी सहमति के कोई फैसला नहीं ले सकते.

दरअसल 1914 में जब मैकमोहन रेखा तय हुई थी तो तिब्बत कमजोर था, हालांकि वो स्वतंत्र भी था. लेकिन चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र मुल्क माना ही नहीं, इसलिए इस फैसले को भी नहीं मानता. चीन ने 1950 में तिब्बत पर पूरी तरह से अपने कब्जा जमा लिया.

चीन के साथ तनाव के बीच वायुसेना का चिनूक हेलिकॉप्टर असम में तैनात

इन विवादों के बीच दोनों देशों ने सीमा पर मौजूदा नियंत्रण को एलएसी मान लिया. हालांकि चीन और भारत के बीच वर्तमान नियंत्रण को लेकर भी अलग-अलग दावे हैं. इसी वजह से अक्सर दोनों देशों के बीच इस रेखा के आसपास तनाव की खबरें आती रहती हैं.

मैकमोहन नाम क्यों पड़ा?

साल 1913-1914 में जब ब्रिटेन और तिब्बत के बीच सीमा निर्धारण के लिए 'शिमला सम्मेलन' हुआ तो इस बातचीत के मुख्य वार्ताकार थे सर हेनरी मैकमोहन. इसी वजह से इस रेखा को मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है. शिमला समझौते के दौरान ब्रिटेन, चीन और तिब्बत, अलग-अलग पार्टी के तौर पर शामिल हुए थे.

भारतीय साम्राज्य में तत्कालीन विदेश सचिव सर हेनरी मैकमहोन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची. इसमें तवांग (अरुणाचल प्रदेश) को ब्रिटिश भारत का हिस्सा माना गया.

मैकमहोन लाइन के पश्चिम में भूटान और पूरब में ब्रह्मपुत्र नदी का ‘ग्रेट बेंड’ है. यारलुंग जांगबो के चीन से बहकर अरुणाचल में घुसने और ब्रह्मपुत्र बनने से पहले नदी दक्षिण की तरफ बहुत घुमावदार तरीके से बेंड होती है. इसी को ग्रेट बेंड कहते हैं.

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1937 में मिली थी अंतरराष्ट्रीय मान्यता

शिमला समझौता प्रथम विश्व युद्ध से पहले हुआ था. लेकिन वर्ल्ड वॉर के दौरान स्थितियां बदल गईं. काफी समय बाद 1937 में अंग्रेज़ों की- अ कलेक्शन ऑफ ट्रीटीज़, ऐंगेज़मेंट्स ऐंड सनद्स रिलेटिंग टू इंडिया ऐंड नेबरिंग कंट्रीज़ नाम से एक किताब आई. विदेश विभाग में भारत सरकार (ब्रिटिश) के अंडर सेक्रटरी सी यू एचिसन ने इसे तैयार किया था. ये भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच हुई संधियां और समझौते का आधिकारिक संग्रह था. इसमें नई जानकारियां भी अपडेट हुई और मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली.

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तो इसलिए चीन करता है इनकार

वहीं चीन इसे मानने से ये कहते हुए इनकार करता है कि मैकमहोन लाइन के बारे में उसको बताया ही नहीं गया था. उससे बस इनर और आउटर तिब्बत बनाने के प्रस्ताव पर बात की गई थी. उसे अंधेरे में रखकर तिब्बत के प्रतिनिधि लोनचेन शातरा और हेनरी मैकमहोन के बीच हुई गुप्त बातचीत की अंडरस्टैंडिंग पर मैकमहोन रेखा खींच दी गई.

मैकमोहन रेखा किसे कहते है इसका क्या महत्व है?

मैकमोहन रेखा, पूर्वी-हिमालय क्षेत्र के चीन-अधिकृत क्षेत्र एवं भारतीय क्षेत्रों के बीच सीमा चिह्नित करती है. यह क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई का पर्वतीय स्थान है. इस रेखा का निर्धारण तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार में विदेश सचिव रहे सर हेनरी मैकमोहन ने किया था और इन्हीं के नाम पर इसे मैकमोहन रेखा कहा जाता है.

मैक मोहन रेखा कौन से राज्य में है?

मैकमेहन रेखा भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत के बीच का वो इलाक़ा है, जिसे भारत चीन के साथ अपनी सीमा मानता आया है.

मैकमोहन रेखा की लंबाई क्या है?

मैकमोहन सीमा रेखा सन् 1914 में निर्धारित की गई। इस रेखा की लंबाई भारत और चीन के बीच करीब 890 किलोमीटर के लगभग खींची गई थी। यह रेखा अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर इत्यादि राज्यों से जुड़ी है

भारत और चीन के बीच की सीमा रेखा का नाम क्या है?

चीन और भारत के बीच मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा माना जाता है. अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में भी अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा माना गया है. लेकिन चीन इससे इनकार करते हुए दावा करता है कि तिब्बत (जो वर्तमान में चीन का हिस्सा है) के दक्षिणी हिस्से अरुणाचल प्रदेश पर भारत का कब्जा है.