महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) का जीवन परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। महादेवी वर्मा का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है। Show
महादेवी वर्मा का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।महादेवी वर्मा छायावाद के आधार स्तम्भों में एक हैं। अलौकिक प्रियतम के लिए प्रणय-भावना, वेदना और करुणा आदि भावों की उनके काव्य में अभिव्यक्ति हुई है। गीति-कला उनके काव्य में पूर्णता को प्राप्त हुई है। वेदना और करुणा की प्रधानता के कारण महादेवी जी को ‘आधुनिक मीरा‘ कहा जाता है। अज्ञात प्रियतम के प्रति वेदना एवं विरह की भावनाओं से युक्त महादेवी जी के काव्य में रहस्यवाद की प्रवृत्ति भी प्रमुखता से पाई जाती है। महादेवी वर्मा का जीवन परिचयमहादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद में सन् 1907 ई. में हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा विद्वान और विचारक थे तथा माता भक्त हृदय और धर्मपरायण थीं। बचपन में ये अपनी माता से रामायण और महाभारत की कथाएँ सुनती थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। इन्होंने घर पर ही चित्रकला और संगीत की शिक्षा प्राप्त की। इनका विवाह नौ वर्ष की अवस्था में ही डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा के साथ हुआ। इनका दाम्पत्य जीवन अधिक सुखी नहीं रहा। विवाह के पश्चात् पुनः शिक्षा प्रारम्भ की और एम. ए. की शिक्षा प्रयाग विश्वविद्यालय से पूरी की। उसके बाद प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या नियुक्त हुई। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधान परिषद की सदस्यता इनको प्रदान की गई और भारत सरकार ने इनको ‘पद्मश्री‘ की उपाधि प्रदान की। कुमायूं विश्वविद्यालय ने इनको डी. लिट. की मानद उपाधि प्रदान की। ‘चांद’ मासिक पत्रिका का सम्पादन भी इन्होंने किया। इनकी ‘यामा’ कृति पर इनको 1982 ई. में ‘ज्ञानपीठ‘ पुरस्कार मिला। इनकी रचनाओं में दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता सर्वत्र दिखाई देती है। पीड़ित, उपेक्षित लोग इनके कृपा पात्र रहे हैं। पालतू जीवों पर इनका विशेष प्रेम रहा है। इनका देहान्त 11 सितम्बर, 1987 ई. को हुआ। ‘यामा‘ पर महादेवी वर्मा को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार‘ मिला था। ‘यामा‘ में नीरजा, नीहार, रश्मि और सांध्य गीत के सभी गीतों का संग्रह है। रचनाएँकाव्य कृतियाँ – महादेवी वर्मा जी की प्रमुख रचनाएँ हैं – नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा और यामा।
संस्मरण एवं रेखाचित्र – महादेवी वर्मा जी एक गद्य लेखिका के रूप में भी पर्याप्त चर्चित रही हैं। इन्होंने संस्मरण एवं रेखाचित्र विधा को समृद्ध करते हुए चार संकलन प्रकाशित कराए, जिनके नाम हैं- १.पथ के माथी.२. अतीत के चलचित्र, ३. स्मृति की रेखाएं और ४. मेरा परिवार। निबन्ध संग्रह – ‘श्रृंखला की कड़ियाँ‘ इनके नारी सम्बन्धी निबन्धों का संकलन है। महादेवी वर्मा विरह वेदना की सबसे बड़ी कवयित्री हैं, स्पष्ट कीजिए।अथवा “महादेवी जी आधुनिक मीरा हैं” इस कथन की समीक्षा कीजिए। अथवा महादेवी का विरह लौकिक होते हुए भी आध्यात्मिक है। अथवा महादेवी वर्मा के गीतिकाव्य की विशेषताएँ बताइए। महादेवी वर्मा जी ने अपने काव्य में मानव के हृदय की पीडा को वाणी देने का प्रयास किया है। करुणा महादेवी की चिरसंगिनी है। महादेवी जी के व्यक्तित्व का निर्माण करुणा की भावुकता तथा दार्शनिकता की आधारशिला पर हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में जिस किसी ने अपने काव्य में करुणा. विरह एवं वेदना को चित्रित किया है तो उनमें महादेवी जी का नाम ही सर्वोच्च है। महादेवी जी के काव्य में पीड़ा, वेदना, कसक, टीस आदि की प्रधानता है। इसीलिए उन्हें आलोचकों ने आधुनिक मीरा की संज्ञा दी है। महादेवी वर्मा जी की करुणा की भावना सम्पूर्ण साहित्य में मुखरित हुई है। महादेवी जी को पीड़ा से बहुत प्रेम है, क्योंकि यह पीड़ा अथवा वेदना साधारण न होकर अपने प्रिय का दिया हुआ वरदान है। महादेवी जी के काव्य में अभिव्यंजित विरहानुभूति को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से विवेचित किया जा सकता है- प्रेम वेदना की गहनतामहादेवी वर्मा जी के काव्य में प्रेम वेदना की गहनता सर्वत्र विद्यमान है। उन्हें पीडा अथवा वेदना से इतना स्नेह है कि वे उसका साथ नहीं छोड़ना चाहतीं। वेदना के ही माध्यम से उन्होंने सर्वशक्तिमान ईश्वर के दर्शन किए हैं- बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ। करुणा की प्रधानतामहादेवी वर्मा के काव्य में करुणा की प्रधानता रही है। विरह की तीव्र अनुभूति के कारण दिखाई देती है। महादेवी जी का निराशावाद भी करुणा उत्पन्न करने में सहायक हुआ है। महादेवी जी का हृदय दया व करुणा की भावना से भरा पड़ा है- जो तुम आ जाते एक बार भावोद्रेकमहादेवी वर्मा के काव्य में भावोद्रेक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। उनका भावावेश बनावटी और दिखावटी न होकर उनके हृदय से निकला हुआ सत्य है। उसमें विरह वेदना नारी के हृदय की भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हैं यथा- मधुर मधुर मेरे दीपक जल नारी सुलभ सात्विकतामहादेवी वर्मा के हृदय में स्वाभाविक सात्विकता भी समाहित है। उनके गीतों में केवल वेदना है। जिसमें उनका अपना नहीं, बल्कि समस्त मानव जाति का असीम शोक समाया हुआ है। अंतरदशाओं की विविधतामहादेवी वर्मा जी के काव्य में विरह जनित पीड़ा का वर्णन है। विरह अथवा वियोग विप्रलंभ श्रंगार से सम्बन्धित है, जिसकी अभिलाषा, चिन्ता, स्मृति, गुण-कथन, उद्वेग, प्रलाप, व्याधि, जड़ता और मरण अंतर्दशाएं हैं। इन सभी अन्तर्दशाओं का वर्णन महादेवी वर्मा जी के काव्य में मिलता है। आध्यात्मिकतामहादेवी वर्मा जी की विरहानुभूति अध्यात्मप्रधान है, किन्तु वह मनुष्य के जीवन से अधिक जुड़ी हुई है। अलौकिक और लौकिक प्रणयानुभूति का सामंजस्य उनकी भावना की सफल अभिव्यक्ति करता है। शून्य मेरा जन्म था अवसान है मुझको सबेरा। भक्ति की तन्मयतामहादेवी वर्मा जी के काव्य में आध्यात्मिकता के साथ भक्ति की प्रधानता भी दिखाई देती है। भक्तिभाव से पूजा करने के लिए देव की प्रतिमा के सामने पूजा की सारी सामग्री सजाकर वे पूजा-अर्चना में लीन हो जाती हैं। विरह-व्यथामहादेवी जी के काव्य में विरह-व्यथा निरन्तर विद्यमान है। उनका विरह अविरल शाश्वत और अनन्त है। उनका हदय विरह से मुक्त होना नहीं चाहता है – मैं नीर भरी दुख की बदली। निष्कर्ष यह निकलता है कि महादेवी वर्मा की करुणा की ज्योति सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करने की क्षमता रखती है। यथार्थ में विरह वेदना का इतना व्यापक रूप अन्यत्र मिलना कठिन है। संक्षेप में, महादेवी वर्मा जी का सम्पूर्ण काव्य उनके अश्रुओं से भीगा हुआ है। वे वेदना की अमर गायिका हैं अतः उन्हें ‘आधुनिक मीरा‘ कहना पूर्णतः उपयुक्त है। महादेवी वर्मा की रचनाएं एवं कृतियाँमहादेवी वर्मा का काव्य संग्रह– नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, यामा, सप्तपर्णा, हिमालय, अग्नि रेखा। महादेवी वर्मा के निबंध– अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, अबला और सबला, श्रृंखला की कड़ियां, साहित्यकार की आस्था, क्षणदा। महादेवी वर्मा की आलोचना– हिन्दी विवेचनात्मक गद्य। महादेवी वर्मा के स्मरण और रेखाचित्र– पथ के साथी, मेरा परिवार। महादेवी वर्मा का संपादन– आधुनिक कवि, चांद पत्रिका। हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचय- हिन्दी के अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।
कवयित्री महादेवी वर्मा के काव्य का मूल भाव क्या है?महादेवी वर्मा के काव्य में प्रेम एक मूल भाव के रूप में प्रकट हुआ है उनका प्रेम अशरीरी है। यह करूणा से आप्लावित प्रेम है अलौकिक दिव्य सता के प्रति उनकी इस प्रणयानुभूति में दाम्पत्य प्रेम की झलक भी मिलत है और लौकिक स्पर्श का आभास भी।
ज महादेवी वर्मा कवयित्री थीं या लेखिका अथवा दोनों उदाहरण देकर बताइए झ मैथिलीशरण गुप्त का जन्म कहाँ हुआ था?महादेवी वर्मा एक सफल कवयित्री होने के साथ-साथ एक सिद्धहस्त गद्यकार भी थीं। उनकी कविताओं और गद्य, दोनों में लेखिका की पीड़ा उभरी है। उनकी कविताओं में यह पीड़ा काफी सघन होकर उभरी है। अतः उसमें कवयित्री अंतर्मुखी होती चली गई हैं।
विरह और वेदना की कवयित्री कौन है?महादेवी वर्मा ने मन की इन्ही अनुभूतियों को अपने काव्य में मर्मस्पर्शी , गंभीर तथा तीव्र संवेदनात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है। महादेवी जी ने अपना काव्य वेदना और करूणा की कलम से लिखा उन्होने अपने काव्य में विरह वेदना को इतनी सघन्नता से प्रस्तुत किया कि शेष अनुभूतियां भी उनकी पीड़ा के रंगों में रंगी हुई जान पड़ती है।
महादेवी वर्मा की कविता का केंद्रीय भाव क्या है?महादेवी वर्मा का केन्द्रीय भाव
महादेवी वर्मा की रचनाओं में वैयक्तिक भावनाओं-प्रेम, विरह, पीड़ा आदि की अभिव्यिक्त् हुई है। बदली के उमड़ने घिरने बरसने के माध्यम से कवयित्री अपने मन में वेदना के उमड़ने ओर बरसने को संकेतित करती है। कवयित्री अपनी वैयक्तिक भावनाओं का आरोप प्रकृति के क्रिया व्यापारों में करती है।
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