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अपने चरम पर उमय्यद ख़िलाफ़त मुहम्मद बिन क़ासिम (अरबी: محمد بن قاسم, अंग्रेज़ी: Muhammad bin Qasim) इस्लाम के शुरूआती काल में उमय्यद ख़िलाफ़त के एक अरब सिपहसालार थे। उनहोंने १७ साल की उम्र में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी इलाक़ों पर हमला बोला और सिन्धु नदी के साथ लगे सिंध और पंजाब क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया। यह अभियान भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले मुस्लिम राज का एक बुनियादी घटना-क्रम माना जाता है। इन्होंने राजा दाहिर को रावर के युद्ध में बुरी तरह परास्त किया । Asaw khalifa alwajif ke ades par makaran par 712 A.D me hamla kiya tha आरंभिक जीवन[संपादित करें]मुहम्मद बिन क़ासिम[मृत कड़ियाँ] का जन्म आधुनिक सउदी अरब में स्थित ताइफ़ शहर में हुआ था। वह उस इलाक़े के अल-सक़ीफ़ (जिसे अरबी लहजे में अल-थ़क़ीफ़ उच्चारित करते हैं) क़बीले का सदस्य था। उसके पिता क़ासिम बिन युसुफ़ का जल्द ही देहांत हो गया और उसके ताऊ हज्जाज बिन युसुफ़ ने (जो उमय्यादों के लिए इराक़ के राज्यपाल थे) उसे युद्ध और प्रशासन की कलाओं से अवगत कराया। उसने हज्जाज की बेटी ज़ुबैदाह से शादी कर ली और फिर उसे सिंध पर मकरान तट के रास्ते से आक्रमण करने के लिए रवाना कर दिया गया। सिंध (भारतीय उपमहाद्वीप) पर हमला[संपादित करें]मुहम्मद बिन क़ासिम के भारतीय अभियान को हज्जाज कूफ़ा के शहर में बैठा नियंत्रित कर रहा था। ७१० ईसवी में ईरान के शिराज़ शहर से ६,००० सीरियाई सैनिकों,६०० ऊंटों की सेना तथा ३००० सामान ढोने वाले बाख्त्री ऊंट थे और अन्य दस्तों को लेकर मुहम्मद बिन क़ासिम पूर्व की ओर निकला। मकरान में वहाँ के राज्यपाल ने उसे और सैनिक दिए। उस समय मकरान पर अरबों का राज नया था और उसे पूर्व जाते हुए फ़न्नाज़बूर और अरमान बेला (आधुनिक 'लस बेला') में विद्रोहों को भी कुचलना पड़ा। फिर वे किश्तियों से सिंध के आधुनिक कराची शहर के पास स्थित देबल की बंदरगाह पर पहुंचे, जो उस ज़माने में सिंध की सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह थी। देबल से अरब फ़ौजें पूर्व की ओर निकलती गई और रास्ते में नेरून और सहवान जैसे शहरों को कुचलती गई। यहाँ उन्होंने बहुत बंदी बनाए और उन्हें गुलाम बनाकर भारी संख्या में हज्जाज और ख़लीफ़ा को भेजा। बहुत सा ख़ज़ाना भी भेजा गया और कुछ सैनिकों में बाँटा गया। बातचीत करके अरबों ने कुछ स्थानीय लोगों को भी अपने साथ मिला लिया। सिन्धु नदी के पार रोहड़ी में दाहिर सेन की सेनाएँ थीं जो हराई गई। दाहिर सेन की मृत्यु हो गई और मुहम्मद बिन क़ासिम का सिंध पर क़ब्ज़ा हो गया। दाहिर सेन के सगे-सम्बन्धियों को दास बनाकर हज्जाज के पास भेज दिया गया। ब्राह्मनाबाद और मुल्तान पर भी अरबी क़ब्ज़ा हो गया। यहाँ से मुहम्मद बिन क़ासिम ने सौराष्ट्र की तरफ दस्ते भेजे लेकिन राष्ट्रकूटों के साथ संधि हो गई। उसने भी बहुत से भारतीय राजाओं को ख़त लिखे की वे इस्लाम अपना लें और आत्म-समर्पण कर दें। उसने कन्नौज की तरफ १०,००० सैनिकों की सेना भेजी लेकिन कूफ़ा से उसे वापस आने का आदेश आ गया और यह अभियान रोक दिया गया।[1] मृत्यु[संपादित करें]मुहम्मद बिन क़ासिम भारत में अरब साम्राज्य[मृत कड़ियाँ] के आगे विस्तार की तैयारी कर रहा था जब हज्जाज की मृत्यु हो गई और ख़लीफ़ा अल-वलीद प्रथम का भी देहांत हो गया। अल वलीद का छोटा भाई सुलयमान बिन अब्द-अल-मलिक अगला ख़लीफ़ा बना। अपने तख़्त पर आने के लिए वह हज्जाज के राजनैतिक दुश्मनों का आभारी था और उसने फ़ौरन हज्जाज[मृत कड़ियाँ] के वफ़ादार सिपहसालारों, मुहम्मद बिन क़ासिम और क़ुतैबाह बिन मुस्लिम, को वापस बुला लिया। उसने याज़िद बिन अल-मुहल्लब को फ़ार्स, किरमान, मकरान और सिंध का राज्यपाल नियुक्त किया। याज़िद को कभी हज्जाज ने बंदी बनाकर कठोर बर्ताव किया था इसलिए उसने तुरंत मुहम्मद बिन क़ासिम को बंदी बनाकर बेड़ियों में डाल दिया। मुहम्मद बिन क़ासिम की मौत की दो कहानियाँ बताई जाती हैं:
कहानी जो भी हो, मुहम्मद बिन क़ासिम को उसके अपने ख़लीफ़ा ने बीस वर्ष की आयु में मार दिया। उसकी क़ब्र कहाँ है, यह भी अज्ञात है। यह एक तारीखी हकीकत है कि मोहम्मद बिन कासिम को फतेह सिंध के साथ ही कत्ल कर दिया गया था और इसके सियासी वजूहात भी थे और उसमें सबसे बड़ी वजह सिंध पर उसका तसल्लुत था, मकामी लोगों ने जिस तरह से मोहम्मद बिन कासिम को अपना हुक्मरान मान लिया था उससे खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक को यह ख्याल गुजरा कि कहीं वह सिंध में अपनी खुद मुख्तार हुकूमत ना कायम कर ले और इसी दौरान राजा दाहिर की लड़कियों का वाकिया गुजरा जिससे हुकूमत को मोहम्मद बिन कासिम को वापस बुलाने का मौका मिल गया और इसका जिक्र उसी दौर में लिखी गई किताब चचनामा में भी मिलता है। मोहम्मद बिन कासिम हज्जाज बिन युसुफ़ का दामाद भी था और इराक और ईरान के साहिलों इलाकों में हज्जाज बिन युसुफ़ का दखल इतना बढ़ चुका था कि चाह कर भी खलीफा उसकी मुखालिफत नहीं कर सकता था। सिंध में लगातार हो रही नाकामी के बावजूद भी वलीद बिन अब्दुल मलिक नहीं चाहते थे कि हज्जाज अपने दामाद मोहम्मद बिन कासिम को लश्करकशी का जिम्मा सौपें लेकिन हज्जाज ने यही किया, और यहीं से उस कहानी की शुरुआत हुई कि जिसका अंजाम मोहम्मद बिन कासिम के साथ खत्म हुआ। जब आप हकीकत की नजर से तारीख (history) का मुताला करेंगे तो आपको पता चलेगा कि मोहम्मद बिन कासिम का सियासी वजूहात की वजह से कत्ल किया गया था, यह कहानी कि खलीफा ने मोहम्मद बिन कासिम[मृत कड़ियाँ] को खुद को एक बक्से में बंद करके दारुल हुकूमत की तरफ रवाना होने को कहा इसमें कोई सच्चाई नजर नहीं आती क्योंकि अगर मोहम्मद बिन कासिम ने कोई गलती की थी या उस पर कोई इल्जाम लगा था तो बगैर उसकी दलील सुने उसका कत्ल कर देना कहीं का इंसाफ नहीं था लेकिन ऐसा किया गया क्योंकि सियासत को उस वक़्त भी खून की जरूरत थी। Mohammad bin Kasim attack on India on 712[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
मोहम्मद बिन कासिम ने भारत पर आक्रमण क्यों किया?कासिम का भारत पर हमला
जिस वक्त कासिम ने हमला शुरू किया उस वक्त सिंध इलाके में राजा दाहिर का शासन था। पाकिस्तान का इतिहास हमले के संदर्भ में इस घटना को इस तरह बताता है जिसने सिंध की जनता को ब्राह्मणों की निरंकुश, जातिवादी शासन से समतावादी समाज की ओर प्रेरित करते हुए स्वतंत्र किया। 711 ई.
मोहम्मद बिन कासिम किसका भतीजा था?आठवीं सदी में बग़दाद के गवर्नर हुज्जाज बिन यूसुफ़ के आदेश पर उनके भतीजे और नौजवान सिपहसालार मोहम्मद बिन क़ासिम ने सिंध पर हमला करके राजा दाहिर को शिकस्त दी और यहां अपनी हुकूमत क़ायम की.
मुहम्मद बिन कासिम ने भारत पर आक्रमण कब किया था?मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण-
इराक के हाकिम अल हज्जाज ने मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों को सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा था. मु. बिन कासिम हाकिम अल हज्जा का भतीजा और दामाद था. 712 ई.
मुहम्मद बिन कासिम की सेना में प्रमुख विशेषता क्या थी?इराक के शासक हज्जाज ने मुहम्मद बिन कासिम के नेत त्व में एक सेना भेजी । वह 712 ई. में सिंध पहुंचा तथा उसने समुद्र तट पर राज कर रहे देबोल को पराजित किया। सिंधु नदी को पार करने के बाद वह आगे की ओर बढ़ा | रावार में मुहम्मद बिन कासिम ने दाहिर पर आक्रमण कर उसे पराजित किया ।
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