Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. Std 9 GSEB Hindi Solutions ल्हासा की ओर Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 8.
प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. भाषा-अध्ययन प्रश्न 13.
प्रश्न 14. प्रश्न 15. GSEB Solutions Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Important Questions and Answers लघुत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. अतिरिक्त दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. जानकारी के अभाव में वे मील – डेढ़ मील दूसरे रास्ते पर चले गये । वहाँ किसी से पूछने पर उन्हें सही रास्ते के बारे में पता चला । वहाँ से वापिस आकर उन्होंने दाहिने हाथवाला रास्ता चुना । करीब चार-पाँच बजे वे गाँव से मीलभर पर थे । जहाँ सुमति इनका इंतजार कर रहे थे । अधिक विलम्ब से आने के कारण सुमति लेखक पर क्रोधित हुए । किन्तु लेखक ने बहुत नरमी से बताया कि कसूर उनका नहीं बल्कि घोड़े का है जो बहुत धीरे चल रहा था । अभ्यास-प्रश्न नीचे दिए गये प्रश्नों के उत्तर दिए गये विकल्पों में से चुनकर सही उत्तर लिखिए । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अर्थबोध संबंधी प्रश्न वह नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता है । फरी-कलिङ्पोङ् का रास्ता जब नहीं खुला था, तो नेपाल ही नहीं हिंदुस्तान की भी चीजें इसी रास्ते तिब्बत जाया करती थीं । यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फ़ौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी । आजकल बहुत से फ़ौजी मकान गिर चुके हैं । दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ पर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं । ऐसा ही परित्यक्त एक चीनी किला था । हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत सी तकलीफें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी । वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती है । बहुत निम्नश्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते; नहीं तो आप बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं । चाहे आप बिलकुल अपरिचित हों, तब भी घर की बहू या सासु को अपनी झोली में से चाय दे सकते हैं । यह आपके लिए उसे पका देगी । मक्खन और सोडा-नमक दे दीजिए, वह चाय चोङी में कूटकर उसे दूधवाली चाय के रंग की बना के मिट्टी के टोटीदार बरतन (खोटी) में रखके आपको दे देगी । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. परित्यक्त चीनी किले से जब हम चलने लगे, तो एक आदमी राहदारी माँगने आया । हमने वह दोनों चिटें उसे दे दी । शायद उसी दिन हम थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुंच गए । यहाँ भी सुमति के जान-पहचान के आदमी थे और भिखमंगे रहते भी ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली । पाँच साल बाद हम इसी रास्ते लोटे थे और भिखमंगे नहीं, एक भद्र यात्री के देश में घोड़ों पर सवार होकर आए थे; किंतु उस वक्त किसी ने हमें रहने के लिए जगह नहीं दी, और हम गाँव के एक सबसे गरीब झोपड़े में ठहरे थे । बहुत कुछ लोगों की उस वक्त की मनोवृत्ति पर ही निर्भर है, खासकर शाम के वक्त छङ् पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरुस्त रखते हैं । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं । सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ़ गीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते । नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता । डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है । तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सज़ा भी मिल सकती है, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता । सरकार खुफ़िया-विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती और वहाँ गवाह भी तो कोई नहीं मिल सकता । डकैत पहिले आदमी को मार डालते हैं, उसके बाद देखते हैं कि कुछ पैसा है कि नहीं । हथियार का कानून न रहने के कारण यहाँ लाठी की तरह लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते हैं । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. दूसरे दिन हम घोड़ों पर सवार होकर ऊपर की ओर चले । डाँडे से पहिले एक जगह चाय पी और दोपहर के यक्त डॉडे के ऊपर जा पहुँचे । हम समुद्रतल से 17-18 हजार फीट ऊँचे खड़े थे । हमारी दक्खिन तरफ़ पूरब से पश्चिम की ओर हिमालय के हजारों श्वेत शिखर चले गए थे । भीटे की ओर दिखनेवाले पहाड़ बिलकुल नंगे थे, न वहाँ बरफ़ की सफ़ेदी थी, न किसी तरह की हरियाली । उत्तर की तरफ़ बहुत कम बरफ़ वाली चोटियाँ दिखाई पड़ती थीं । सर्वोच्च स्थान पर डाँडे के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंड़ियों से सजाया गया था । अब हमें बराबर उतराई पर चलना था । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मेरा घोड़ा कुछ धीमे चलने लगा । मैंने समझा कि चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है, और उसे मारना नहीं चाहता था । धीरे-धीरे वह बहुत पिछड़ गया और मैं दौन्क्विक्स्तो की तरह अपने घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था । जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे । जब मैं ज़ोर देने लगता, तो वह और सुस्त पड़ जाता । एक जगह दो रास्ते फूट रहे थे, मैं बाएँ का रास्ता ले मील-डेढ़ मील चला गया । आगे एक घर में पूछने से पता लगा कि लङ्कोर का रास्ता दाहिने वाला था । फिर लौटकर उसी को पकड़ा । चार-पाँच बजे के करीब मैं गाँव से मील-भर पर था, तो सुमति इंतज़ार करते हुए मिले । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अब हम तिड्री के विशाल मैदान में थे, जो पहाड़ों से घिरा टापू-सा मालूम होता था, जिसमें दूर एक छोटी-सी पहाड़ी मैदान के भीतर दिखाई पड़ती है । उसी पहाड़ी का नाम है तिङ्गी – समाधि-गिरि । आसपास के गाँव में भी सुमति के कितने ही यजमान थे, कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे खतम नहीं हो सकते थे, क्योंकि बोधगया से लाए कपड़े के खतम हो जाने पर किसी कपड़े से बोधगया का गंडा बना लेते थे । वह अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे । मैंने सोचा, यह तो हफ्ता-भर उधर ही लगा देंगे । मैंने उनसे कहा कि जिस गाँव में ठहरना हो, उसमें भले ही गंडे बाँट दो, मगर आसपास के गाँवों में मत जाओ; इसके लिए मैं तुम्हें ल्हासा पहुँचकर रुपये दे दूंगा । सुमति ने स्वीकार किया । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. तिब्बत की जमीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है । इन जागीरों का बहुत ज़्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है । अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी कराता है, जिसके लिए मज़दूर बेगार में मिल जाते हैं । खेती का इंतज़ाम देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता । शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु (नम्से) बड़े भद्र पुरुष थे । वह बहुत प्रेम से मिले, हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था । यहाँ एक अच्छा मंदिर था; जिसमें कन्जुर (बुद्धवचन-अनुवाद) की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी हुई थीं, मेरा आसन भी यहीं लगा । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. ल्हासा की ओर Summary in Hindiराहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था । उनके बचपन का नाम केदार पाण्डेय था । उनकी शिक्षा काशी, आगरा और लाहौर में हुई थी । उन्होंने सन् 1930 में श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म अंगीकार किया था । इसके बाद इनका नाम राहुल सांकृत्यायन रख दिया गया । राहुल जी पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, जापानी, ससी सहित कई भाषाओं के जानकार थे । उन्हें महापण्डित कहा जाता था । राहुल जी ने उपन्यास कहानी, आत्मकथा, यात्रावृत्त, जीवनी, आलोचना, शोध आदि अनेक साहित्यिक विधाओं में लेखनकार्य किया है । उन्होंने अनेक ग्रंथों का हिन्दी अनुवाद किया है । इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं, ‘मेरी जीवन यात्रा’ (छहः भाग) दर्शन, दिग्दर्शन, बाइसवीं सदी, वोल्गा से गंगा, भागो नहीं दुनिया को बदलो, दिमागी गुलामी, घुमक्कड़ शास्त्र आदि । साहित्य के अतिरिक्त राहुल जी ने दर्शन, राजनीति, धर्म, इतिहास, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें भी लिखी है । यात्रावृत्त लेखन में राहुलजी का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वे घुमक्कड़ी के लिए विख्यात हैं । घुमक्कड़ी के लिए जगविख्यात लेखक राहुल सांकृत्यायन ने अपने यात्रावृत्तांत ‘ल्हासा की ओर’ में तिब्बत यात्रा का रोचक वर्णन किया है । तिब्बत से ल्हासा की ओर जाते समय वहाँ के लोग, वहाँ की सांस्कृतिक झांकी का वर्णन भी अनायास हो गया है । लेखक ने यह यात्रा 1920-30 में की थी । उस समय भारतीयों को तिब्बत की यात्रा करने नहीं दिया जाता था इसलिए लेखक ने यह यात्रा एक भिक्षुक के वेश में की थी । तिब्बत से ल्हासा की ओर जानेवाले दुर्गम रास्ते का वर्णन इस पाठ में बड़ी रोचकता से किया गया है । पाठ का सार : नेपाल से तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता : नेपाल के रास्ते से लेखक तिब्बत की यात्रा कर रहे थे । उस समय फरी-कलिंड्पोङ् का रास्ता नहीं खुला था । तब यही रास्ता तिब्बत जाने का मुख्य रास्ता था । नेपाल के इसी रास्ते से भारत की वस्तुएँ तिब्बत पहुँचाई जाती थीं । यह रास्ता सैनिकों का रास्ता था । इसलिए जगह-जगह फौजी चौकियाँ और किले बने थे । जिनमें चीनी पलटन रहा करती थी । कई फौजी मकान गिर चुके थे । दुर्ग के किसी भाग में किसानों ने अपना घर बना लिया है । एक परित्यक्त चीनी किले पर लेखक चाय पीने के लिए ठहरे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियाँ : तिब्बत में यात्रा कर रहे यात्रियों के सामने अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परिस्थिति का सामना करना पड़ता है । वहाँ जातिपाँति छुआछूत का कोई प्रश्न खड़ा नहीं होता । न वहाँ की महिलाएँ, किसी से परदा करती हैं । किन्तु लोग निम्न श्रेणी के भिखमंगों को चोरी के डर से घर में प्रवेश नहीं करने देते । अन्यथा आप घर के भीतर घुस कर अपनी मरजी से चाय आदि बनवाकर पी सकते हैं । चाय की सामग्री देकर किसी भी घर से चाय बनवाकर पी सकते हैं । यात्रियों के लिए इतनी सहूलियत हैं । थोङ्ला से पूर्व का आखिरी गाँव : परित्यक्त किले से लेखक जब चलने लगे तो एक आदमी राहदारी मांगने आया । उन्होंने उसे दोनों चिटें दे दीं । वे उस समय थोङ्ला से पहले के आखिरी गाँव में पहुँच गये थे । वहाँ उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिल गयी यद्यपि वे भिखमंगे के वेश में थे । उनके सहयात्री सुमति के जान-पहचान के लोग होने के कारण उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिल गई थी । लेख्नक का पाँच साल पूर्व की यात्रा का स्मरण : लेखक पाँच साल पूर्व एक भद्रयात्री के वेश में इसी जगह आये थे किन्तु जान-पहचान न होने के कारण उन्हें किसी ने रहने की जगह नहीं दी थी और तब लेखक को गाँव के गरीब झोपड़ी में ठहरने को जगह मिली थी । यह लोगों की मनोवृत्ति पर निर्भर करता है । शाम के वक्त लोग छङ् पीकर अपने होश-हवास खो बैठते हैं इसलिए लोग यात्री देखकर अपने घरों में स्थान देते हैं । सबसे विकट रास्ता डाँडा थोङ्ला : लेखक को उसके आगे का रास्ता जो सबसे विकट था उससे डाँडा थोड्ला पार करना था । डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं । सोलह-सत्रह हजार फीट की नार्ट पर होने के कारण उनके दोनों पर दूर-दूर तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते थे । नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक कोई आदमी दिखाई नहीं देता था । इस वीरान जगह का डाकू लोग फायदा उठाते थे । तिब्बत के गाँव में यह लगे खूनी को सजा हो सकती है लेकिन इन निर्जन स्थलों में मारे जानेवाले आदमियों की कोई परवाह नहीं करता । यहाँ कोई गवाह भी नहीं मिलते । भिखमंगों के वेश में तिब्बत यात्रा : इस बार लेखक तिब्बत की यात्रा भिखमंगों के वेश में कर रहा था । वह डाकुओं के जैसी सूरतवाले लोगों को देखते ही ‘कुचीकुची एक पैसा’ कहकर भीख मांगने लगता । लेखक का अगला पड़ाव 16-17 मील से कम नहीं था । लेखक ने सुमति से लङ्कोर तक के लिए दो घोड़े करने को कहा ताकि सामान के साथ चढ़ाई कर सकें । डाँडे का प्राकृतिक दृश्य : लेखक आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े । वे दोपहर तक डाँडे पर जा पहुँचे । यहाँ 17-18 हजार फीट ऊपर खड़े लेखक के दक्षिणी तरफ पूरब से पश्चिम की ओर हिमालय के हजारों श्वेत शिखर थे । भीटे की ओर के पर्वतों पर बर्फ और हरियाली नहीं थी । उत्तर की ओर कम बर्फयाली चोटियाँ दिख रही थीं । सर्वोच्च स्थान पर डाँडे के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े और झंडियों से सजाया गया था । उतरते समय रास्ता भटकना : लेखक और उसके एक-दो साथी साथ-साथ उतराई कर रहे थे । लेखक का घोड़ा धीरे-धीरे चल रहा था इस कारण वह बहुत पीछे रह गया था । लेख्नक घोड़े पर झूमता हुआ चला जा रहा था उसे पता नहीं चल रहा था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछ । एक जगह दो रास्ते फूट रहे थे । लेखक बायेंवाले रास्ते पर डेढ़ मील आगे चले गये । पूछने पर पता चला कि लङ्कोर का रास्ता दाहिने वाला था । फिर लेखक वापस आये और दाहिनेवाले रास्ते पर चलने लगे । चार-पाँच बजे के लगभग वे गाँव के करीब पहुँचे जहाँ सुमति उनका इंतजार कर रहे थे । वे बहुत गुस्से में थे किन्तु सच्चाई जानने पर सुमति का गुस्सा ठंडा पड़ गया । लड्कोर में वे सब एक अच्छी जगह पर ठहरे । तिङरी का विशाल मैदान : लेखक तिङरी के विशाल मैदान में आ पहुँचे । यह पहाड़ों से घिरा टापू-सा मालूम होता था । जिसमें दूर एक पहाड़ी मैदान के भीतर दिखाई देता है । उस पहाड़ी का नाम है तिङरी समाधि गिरि । आस-पास के गाँव में सुमति के पहचानवाले बहुत से लोग थे । उन्हें वे बोधगया से लाये गये कपड़े के गंडे देते थे जो खत्म नहीं हो सकता था, क्योंकि बोधगया से लाये गंडे खत्म होने पर अन्य कपड़ों से वैसे ही गंडे बना लिया करते थे । लेखक ने सुमति को निर्देश दिया कि जिस गाँव में ठहरना हो, उस गाँव में गंडे भले बँटया दो मगर आस-पास के गाँव में मत जाए । सुमति इसके लिए राजी हो गया । तिब्बत की जलवायु : दूसरे दिन लेखक ने भटिया ढूँढ़ने की कोशिश की, किन्तु कोई न मिला । वे सुबह ही चल दिए होते तो अच्छा था । 10-11 बजे की तेज धूप में चलना पड़ रहा था । तिब्बत की धूप बहुत कड़ी है । यद्यपि थोड़े से मोटे कपड़े से सिर ढकने पर राहत होती है । 2 बजे सूरज की ओर मुँह करके चलने पर ललाट धूप से जल रहा है और पीछे का कंधा बरफ हो रहा है । फिर लेखक ने अपनीअपनी चीजें लादी, और चल पड़े । सुमति के बहुत से परिचित यहाँ पर भी थे किन्तु वे किसी और यजमान से मिलना चाहते थे । इसीलिए आदमी मिलने का बहाना कर शेकर बिहार की ओर चलने को कहा । तिब्बत में जागीरदारी प्रथा : तिब्बत की जमीन छोटे-छोटे जागीरदारों में बँटी हैं । इनका ज्यादातर हिस्सा मठों के हाथ में है । अपनी जागीर के कुछ भाग में जमीनदार खेती करवाता है, वहाँ मजदूर बेगार में मिल जाते हैं । खेती की व्यवस्था में जिस भिक्षु को भेजा जाता है, उसकी स्थिति राजा जैसी होती है । शेकर बिहार के मंदिर में : शेकर के खेती के मुखिया बहुत भद्र व्यक्ति थे । यद्यपि लेखक एक भिक्षुक के वेश में थे फिर भी वे उनसे आदर के साथ मिले । यहाँ एक अच्छा मंदिर था जिसमें कंजुर की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी थीं । ये पोथियाँ मोटे-मोटे कागज पर लिखी थीं । इनका वजन करीब 15-15 सेर था । लेखक इन पोथियों में लीन हो गये । सुमति ने जब यजमानों के पास जाने के बारे में पूछा तो उन्होंने अनुमति दे दी । तिङरी वहाँ से ज्यादा दूर नहीं था । सबने अपना-अपना सामान उठाया और नम्से भिक्षु से विदा लेकर चल पड़े । शब्दार्थ – टिप्पण
लेखक ने तिब्बत की यात्रा किसने की और क्यों?लेखक ने तिब्बत की यात्रा भिखमंगों के वेश में की क्योंकि उस समय तिब्बत की यात्रा पर प्रतिबंध था। इसके अलावा डाँडे जैसी खतरनाक जगहों पर डाकुओं से इसी वेश में जान बचायी जा सकती थी।
लेखक भिखमंगे के वेश में यात्रा क्यों कर रहे थे?2 points तिब्बत का रास्ता खतरनाकऔर लूटपाट होने की वजह से लेखक को भिखमंगे का वेश बनाकर यात्रा करनी पड़ी तिब्बत में उसकी पहचान पता न चल जाए और लूटपाट न हो जाए इसलिए उसे भिखमंगे का वेश बनाकर यात्रा करनी पड़ी तिब्बत के पहाड़ों में लूटपाट और हत्या का भय बना रहता है इसलिए उसे लेखक को भिखमंगे का वेश बनाकर यात्रा करनी पड़ी ...
लेखक ने अपनी पहली तिब्बत यात्रा किस देश में की थी और क्यों की थी?यहाँ पर राहुल सांकृत्यायन के बारे में बात की जा रही है। राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पहली तिब्बत यात्रा सन 1929-30 में नेपाल के रास्ते की थी। उस समय भारतीय लोगों को तिब्बत की यात्रा करने की अनुमति नहीं थी, इसीलिए उन्होंने एक भिखमंगे का छद्म वेश धारण किया और नेपाल के रास्ते तिब्बत की यात्रा की।
नेपाल से तिब्बत जाने के लिए लेखक ने जो रास्ता चुना उसकी क्या विशेषता थी *?उस समय नेपाल से तिब्बत जाने का एक ही रास्ता था। यह रास्ता मुख्यत: व्यापारिक और सैनिक रास्ता था।
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