लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर स्पष्ट? - lekhak kyon poochhata hai ki manushy kis or badh raha hai pashuta kee or ya manushyata kee or spasht?

लेखक क्यों पूछता है की मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर ? स्पष्ट करें

लेखक का मन पूछता है---मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर ? इस प्रश्न का उत्तर इस प्रश्न से दिया जा सकता है की मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, अस्त्र बढ़ाने की ओर या अस्त्र काटने की ओर ? सच पूछा जाए तो मनुष्य अस्त्र बढ़ाने की ओर रहा है, यानि वह पशुता की ओर बढ़ रहा है | उसने ऐसे-ऐसे संहारक अस्त्रों का निर्माण किया है की सारी दुनिया पल भर में राख के ढेर में बदल सकती है | संहारक अस्त्रों का निर्माण हमारी विनाशक प्रवृत्ति का द्दोतक है और विनाशक प्रवृत्ति पशु की स्वाभाविक प्रवृत्ति है | अतः, मनुष्य की ओर न बढ़कर पशुता की ओर बढ़ रहा है | आज मनुष्य प्रेम के मार्ग पर नहीं चलकर हिंसा, क्रोध, द्वेष और ईर्ष्या पशुवृत्ति है | अर्थात, मनुष्य पशुवृत्तियों के कारण मनुष्यता से कोशों दूर होता चला जा रहा है |

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लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य की ओर बढ़ रहा है पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर स्पष्ट करें?

लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर? स्पष्ट करें। उत्तर- लेखक के प्रश्न में अंतर्द्वन्द्व की भावना उभर रही है कि मनुष्य इस समय पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर बढ़ रहा है। अतः इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए स्पष्ट रूप से इसे प्रश्न के रूप में लोगों के सामने रखता है।

नाखून और मनुष्य की पशुता में क्या समानता बताई गई है?

बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को याद दिलाती है कि तुम भीतर वाले अस्त्र से अब भी वंचित नहीं हो। तुम्हारे नाखून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही प्राचीनतम नख एवं दंत पर आश्रित रहने वाला जीव हो। पशु की समानता तुममें अब भी विद्यमान है।