UP Board Class 12 Hindi-अशोक के फूल(Ashok ke Phool)- अशोक के फूल – हजारी प्रसाद द्विवेदी Ashok Ke Phoolअशोक के फूल निबंध का सारांश – हजारी प्रसाद द्विवेदी:Class 12 Sahityik Hindi गद्य Chapter 4 अशोक के फूल. Ashok ke phool gadyansh adharit prashnottar. गद्यांश-1अशोक के फूल(Ashok ke Phool)- पुष्पित अशोक को देखकर मेरा मन उदास हो जाता है । इसलिए नहीं कि सुन्दर वस्तुओं को हतभाग्य समझने में मुझे कोई विशेष रस मिलता है । कुछ लोगों को मिलता है । वे बहुत दूरदर्शी होते हैं ! जो भी सामने पड़ गया उसके जीवन के अन्तिम मुहूर्त तक का हिसाब वे लगा लेते हैं । मेरी दृष्टि इतनी दूर तक नहीं जाती । फिर भी मेरा मन इस फूल को देखकर उदास हो जाता है । असली कारण तो मेरे अन्तर्यामी ही जानते होंगे , कुछ थोड़ा – सा मैं भी अनुमान कर सकता हूँ । उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए । ( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए । ( iii ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने स्वयं के विषय में क्या कहा है ? ( v ) ‘ हतभाग्य ‘ तथा ‘ दूरदर्शी ‘ शब्दों के शब्दार्थ लिखिए । गद्यांश-2अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला , वह अपूर्व था । सुन्दरियों के आसिंजनकारी नूपुरवाले चरणों के मृदु आघात से वह फूलता था , कोमल कपोलों पर कर्णावतंस के रूप में झूलता था और चंचल नील अलकों की अचंचल शोभा को सौ गुना बढ़ा देता था । वह महादेव के मन में क्षोभ पैदा करता था , मर्यादा पुरुषोत्तम के चित्त में सीता का भ्रम पैदा करता था और मनोजन्मा देवता के एक इशारे पर कन्धों पर से ही फूट उठता था । उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए । ( iii ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का उद्देश्य क्या है ? ( v ) निम्न शब्दों का शब्दार्थ लिखिए – गद्यांश-3कहते हैं , दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है ! केवल उतना ही याद रखती है , जितने से उसका स्वार्थ सधता है । बाकी को फेंककर आगे बढ़ जाती है । शायद अशोक से उसका स्वार्थ नहीं सधा । क्यों उसे वह याद रखती ? सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है । उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए । ( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए । ( iv ) लेखक ने गद्यांश
में किस प्रकार के लोगों को स्वार्थी कहा है ? गद्यांश-4मुझे मानव – जाति की दुर्दम – निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है । मनुष्य की जीवनी – शक्ति बड़ी निर्मम है , वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है । न जाने कितने धर्माचारों , विश्वासों , उत्सवों और व्रतों को धोती – बहाती सी जीवन – धारा आगे बढ़ी है । संघर्षों से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है । हमारे सामने समाज का आज जो रूप है , वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है । देश और जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है । सब कुछ में मिलावट है , सब कुछ अविशुद्ध है । शुद्ध केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा ( जीने की इच्छा ) है । वह गंगा की अबाधित – अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है । सभ्यता और संस्कृति का मोह क्षण – भर बाधा उपस्थित करता है , धर्माचार का संस्कार थोड़ी देर तक इस धारा से टक्कर लेता है , पर इस दुर्दम धारा में सब कुछ बह जाता है । उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए । ( ii ) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए । ( iii ) मानव जाति किस मोह को रौंदती चली आ रही है ? मुझे मानव जाति की दुर्दम – निर्मम धारा के हजारों वर्ष का रूप साफ दिखाई दे रहा है । मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है , वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है । न आने कितने धर्माचारी विश्वासों , उत्सवों और व्रतों की धोती – बहाती या जीवन धारा आगे बढ़ी है । संघर्षों से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है । हमारे सामने समाज का आज को रूप है , वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है । देश की जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात कुछ मिलावट है , सब कुछ अविशुद्ध है । शुद्ध केवल मनुष्य जिजीविषा ( जीने की इच्छा ) । वह गंगा की अबाधित – अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है । उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए । ( i ) मनुष्य की जीवन शक्ति कैसी है ? ( ii ) हमारे सामने आज समाज का स्वरूप कैसा है ? ( iii
) लेखक ने मनुष्य की जिजीविषा को किस रूप में प्रस्तुत किया है ? ( iv ) मनुष्य की जीवन – शक्ति कैसी है ? उत्तर -‘ धर्माचारों का अर्थ है – धार्मिक परम्परा तथा ‘ विश्वासों ‘ का अर्थ है – निश्चित धारणा । अशोक का वृक्ष जितना भी मनोहर हो , जितना भी रहस्यमय हो , जितना भी अलंकारमय हो , परन्तु है वह उस विशाल सामंत उसका अपने प्राणों के प्रति यही मोह उसकी सबसे बड़ी शक्ति है , जिसे जीवन शक्ति कहा जाता है । लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी कहते हैं कि आज व्यक्ति का जीवन छल – छद्म से परिपूर्ण हो गया है , इसलिए उसके अपने आचरण से लेकर दैनन्दिन के कार्यों में कोई पवित्रता अथवा शुद्धता नहीं रह गयी है । यही कारण है कि आज प्रत्येक वस्तुत में मिलावट मिलती है । व्यक्ति का चरित्र भी उससे अछूता नहीं रह गया है । लूट – पाट , रिश्वतखोरी , छेड़छाड़ , कदाचार आदि के दिनोदिन बढ़ते जाने का कारण भी यही है । हाँ , व्यक्ति के जीवन में यदि कहीं शुद्धता शेष है तो वह है उसकी दुर्दम जिजीविषा अर्थात् किसी भी परिस्थिति में उसकी जीने की लालसा । वह अपने जीने की रक्षा पूरी ईमानदारी , शुद्धता और पवित्रता से करता है । गद्यांश-6 ( i ) सामन्त सभ्यता की
परिष्कृत रुचि का प्रतीक कौन है ? ( iii ) आज उस सामंती सभ्यता की क्या स्थिति है ? ( v ) पाठ का
शीर्षक तथा लेखक का नामोल्लेख कीजिए । ( vii ) सामंत सभ्यता किसके आधार पर पली – बढ़ी ? ( ix ) यक्षों की प्रतिष्ठा किसने घटा दी ? ( xi ) सामन्त सभ्यता से क्या तात्पर्य है ? |