खा खा कर कुछ पाएगा नहीं मैं कौन सा अलंकार है? - kha kha kar kuchh paega nahin main kaun sa alankaar hai?

‘खा-खाकर’ में कौन-सा अलंकार है पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

खा खा कर कुछ पाएगा नहीं मैं कौन सा अलंकार है? - kha kha kar kuchh paega nahin main kaun sa alankaar hai?

| ‘खा-खाकर’ में कौन-सा अलंकार है?

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पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

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खा खाकर कुछ पाएगा नहीं में कौन सा अलंकार है *?

'खा-खाकर' में कौन-सा अलंकार है पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार

कौन कौन में कौन सा अलंकार है?

भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, अनन्वय, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति आदि प्रमुख अलंकार हैं। इसके अलावा अन्य अलंकार भी हैं। उपमा आदि के लिए अलंकार शब्द का संकुचित अर्थ में प्रयोग किया गया है। व्यापक रूप में सौंदर्य मात्र को अलंकार कहते हैं और उसी से काव्य ग्रहण किया जाता है।

धीरे धीरे में कौन सा अलंकार है?

वह संध्या-सुन्दरी परी-सी, धीरे-धीरे-धीरे।” यहाँ संध्या को सुन्दर परी के रूप में चित्रित किया गया है, अत: यहाँ मानवीकरण अलंकार है।

जल्दी जल्दी में कौन सा अलंकार है?

' जल्दी-जल्दी' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।