कोयले की कमी का क्या कारण है? - koyale kee kamee ka kya kaaran hai?

देश में भीषण गर्मी के बीच कोयले के संकट से बिजली संकट गहरा गया है। पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपरेशन की रिपोर्ट के अनुसार देश में बीते छह वर्षों में पहली बार इस तरह का बिजली संकट हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार देश में अप्रैल-2022 के पहले 27 दिन में मांग की तुलना में 1.88 बिलियन यूनिट बिजली का संकट रहा है जिसने बीते छह साल के बिजली संकट के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।

केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार शुक्रवार को देश में 2,07,11 मेगावॉट बिजली की मांग रही जिसने अबतक के सभी रिकॉर्ड टूट गए हैं। 26 अप्रैल को बिजली आपूर्ति की तुलना में मांग इतनी अधिक हो गई थी कि देश में 8.22 गीगावॉट बिजली का संकट हो गया था। ऊर्जा मंत्रालय की मानें तो इस वर्ष मार्च में बिजली की मांग में 8.9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यही नहीं मंत्रालय का कहना है कि बिजली की मांग ऐसे ही जारी रही तो मई- जून में बिजली की मांग 215 से 220 गीगावॉट हो सकती है।

इन राज्यों में बिजली कटौती सबसे अधिक
कोयला संकट के कारण हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों में बिजली का संकट अधिक है। मालूम हो कि पिछले साल अक्तूबर में भी इसी तरह का बिजली संकट गहराया था। हालांकि इस बार स्थिति ज्यादा गंभीर हो गई है क्योंकि देश के अधिकतर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में संकट के कारण कई घंटों की कटौती की जा रही है। ओडिशा में कोयले के अभाव में एनटीपीसी का एक संयंत्र बंद है जिससे 800 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है।

25 फीसदी से कम कोयले का भंडार
बिजली संकट पर कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ का दावा है कि देश के 173 ऊर्जा संयंत्रों में से 106 के पास 25 फीसदी से कम कोयले का भंडार है। देश में रोजाना 22 लाख टन कोयले की जरूरत है और आपूर्ति सिर्फ 16 लाख टन हो रही है। नतीजा ये है कि हाल के सप्ताह में रोजाना औसतन 16,035 मेगावॉट बिजली की मांग हो रही है जबिक आपूर्ति सिर्फ 2304 मेगावॉट की हो रही है। यही कारण है कि मांग की तुलना में यूपी में नौ, हरियाणा में 7.7 और उत्तराखंड में 7.6 फीसदी बिजली संकट है।

बिजली संकट से ये राज्य बेहाल
उत्तर प्रदेश:
यूपीपीसीएल के अनुसार मांग की तुलना में आठ फीसदी बिजली का संकट है। राज्य में बिजली की मांग बढ़कर 21 हजार मेगावॉट हो गई है जबिक उपलब्धता सिर्फ 19 हजार मेगावॉट की है।

बिहार: कोयले के संकट के कारण एक हजार मेगावॉट बिजली का संकट है। राज्य के ऊर्जा मंत्री बिजेंन्द्र प्रसाद यादव का कहना है कि नबीनगर थर्मल प्लांट शुरू होने के बाद स्थिति ठीक हो जाएगी।

झारखंड: बिजली की मांग बढ़कर 2100 मेगावॉट हो गई है लेकिन कोयले के संकट के कारण राज्य में बिजली की आपूर्ति सिर्फ 1600 मेगावॉट ही है, जिससे कटौती के हालात बन गए हैं।

उत्तराखंड: सरकार ने 16 करोड़ रुपये से बिजली खरीदी है। इसके बावजूद मांग की तुलना में 3.32 लाख यूनिट बिजली का संकट है। राज्य में बिजली उपभोग 48 लाख यूनिट के पार हो गया है।

राजस्थान: 10,110 मेगावॉट बिजली उत्पादन की क्षमता है लेकिन कोयले के संकट के कारण 6600 मेगावॉट बिजली का ही उत्पादन हो पा रहा है।

आंध्र प्रदेश: बिजली की मांग वर्ष 2020 की तुलना में 46 फीसदी तक बढ़ गई है। संकट के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में चार से छह घंटे तक की कटौती हो रही है। शहरी क्षेत्रों में भी कटौती जारी है।

गुजरात: वेस्टर्न रिजन लोड डिस्पैच सेंटर के अनुसार गुजरात में बिजली संयंत्र 45 फीसदी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। सरकार निजी ऊर्जा संयंत्रों से 12 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद रही है।

पंजाब: बीते वर्ष अप्रैल में बिजली की मांग छह हजार मेगावॉट थी। इस वर्ष अप्रैल में आठ हजार मेगावॉट हो गई है। बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष अप्रैल में बिजली की मांग 35 फीसदी बढ़ी है।

महाराष्ट्र: राज्य बिजली वितरण कंपनी के प्रबंध निदेशक विजय सिंघल के अनुसार 60 साल में पहली बार सभी 27 थर्मल पावर प्लांट को चलाया जा रहा है जिससे 7,700 मेगावॉट बिजली बन रही है।

घबराने की कोई जरूरत नहीं
कोयला मंत्री प्रलहाद जोशी का कहना है कि कोयला कंपनियों के पास 73 लाख टन कोयले का स्टॉक है। ऊर्जा संयंत्रों के पास 21.5 लाख टन कोयला है। ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं है। केंद्र स्थिति पर नजर बनाए हुए है। वहीं केंद्र सरकार ने राज्यों से ये तक अपील कर दी है कि वे अगले तीन वर्षों तक बिजली आपूर्ति को संतुलित बनाए रखने के लिए कोयले का आयात करें। केंद्र का सुझाव है कि राज्य अपने स्तर से व्यवस्था करेंगे तो भविष्य में बिजली संकट के हालात से बचा जा सकता है।

नई दिल्ली: अप्रैल में पारा (Temperature) 50 डिग्री छूने को आतुर है। ऐसे में लोग गैर जरूरी काम के लिए घर से निकलना बंद कर चुके हैं। लेकिन घर में भी उन्हें चैन नहीं। चाहे दिल्ली हो, उत्तर प्रदेश हो, बिहार हो या झारखंड और छत्तीसगढ़, सब जगह बिजली की किल्लत (Power Cut) है। इसी वजह से दिन-रात कभी भी बिजली काटी जा रही है। बिजली क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि देश में इस सबस कोयले का संकट (Coal Shortage) गंभीर रूप ले चुका है। इसी वजह से देश में बिजली संकट भी गहरा गया है।कोयला मंत्री की जुदा है राय
नरेंद्र मोदी सरकार में कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी का का कहना है कि देश में पर्याप्त कोयला मौजूद है। कोयले के लिए किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। कल ही जोशी ने कोल इंडिया लिमिटेड की सब्सिडियरी सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड और ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का प्रोडक्शन रिव्यू किया। उन्हें हर रोज दो लाख 20 हजार टन कोयला पावर प्लांट्स को उपलब्ध कराने को कहा गया है।

मंत्री का कहना एक महीने से ज्यादा का है स्टॉक
जोशी का कहना है कि केंद्र सरकार दिन-प्रतिदिन, घंटे के आधार पर स्थिति की निगरानी कर रही है। फिलहाल स्थिति नियंत्रण में और हम देश को आवश्यक कोयले की आपूर्ति करेंगे। केंद्रीय मंत्री ने आंकड़े पेश करते हुए बताया कि 25 अप्रैल तक, 2.15 करोड़ टन कोयला स्टॉक थर्मल पावर प्लांट्स के पास उपलब्ध था। यानी थर्मल पावर प्लांट्स के पास लगभग 9-9.5 दिनों का स्टॉक उपलब्ध है। यह स्टॉक दिन-प्रतिदिन के आधार पर भरा जाता है। इसके अलावा मंत्रालय के पास करीब 30 दिन का स्टॉक उपलब्ध है।

कोयला सचिव का यह है कहना
बीते रविवार को केंद्रीय कोयला मंत्रालय के सचिव ए.के. जैन ने देश में गहराए बिजली संकट के लिए कोयले की कमी को वजह मानने से साफ इनकार कर दिया था। उन्होंने कहा था कि इस बिजली संकट की प्रमुख वजह विभिन्न ईंधन स्त्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई बड़ी गिरावट है। उन्होंने कहा कि ताप-विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का कम स्टॉक होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। कोविड-19 के प्रकोप में कमी आने के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी आई और बिजली की मांग बढ़ी, इसके अलावा इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस और आयातित कोयले की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक बिजली संकट के लिए जिम्मेदार हैं।

लेकिन विशेषज्ञ क्या बताते हैं?
बिजली क्षेत्र के एक विशेषज्ञ का कहना है कि इस समय जो देश में बिजली का संकट है, उसका कारण कोयले की कमी (Shortage of Coal) है। इस समय देश में कोयले से 70 फीसदी बिजली का उत्पादन होता है। देश के सभी बिजली घरों में साल में करीब 920 मिलियन टन कोयले की खपत है। इनमें से 215 मिलियन टन कोयला इंपोर्टेड होता है। रूस युक्रेन युद्ध की वजह से इस समय अंतररराष्ट्रीय बाजार में कोयले का दाम तीन गुना हो गया है। इसलिए बिजली बनाने वाली कंपनियों के लिए इस कीमत पर कोयला खरीद कर बिजली बनाना संभव नहीं है। इसलिए उन्होंने अपने प्लांट या तो बंद कर दिए हैं या प्रोडक्शन कम कर दिया है। वैसे भी बिजली घरों में इस समय कोयले का भंडार नौ वर्षों में सबसे कम हैं।

कोयले के आयात में आई भारी गिरावट
रूस-युक्रेन युद्ध (Ukraine Russia War) के कारण अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा कीमतों (International Energy Prices) में बढ़ोतरी के साथ कोयले के आयात में गिरावट आई है। इस समय बेंचमार्क आस्ट्रेलियन न्यू कैसल कोल की कीमत बढ़ कर 300 डॉलर प्रति टन हो गई है। एक साल पहले यह कीमत 160 डॉलर प्रति टन थी जबकि दो साल पहले 100 डॉलर प्रति टन। जब दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू ही हुआ था, उस समय एक दिन कोयले का दाम 440 डॉलर प्रति टन तक चला गया था।

हर रोज बढ़ रही है मांग
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने कहा है कि देश भर के ताप बिजली घर कोयले की कमी से जूझ रहे हैं, जो देश में बिजली संकट का संकेत है। देश में 27 अप्रैल को बिजली की अधिकतम मांग 200.65 गीगावॉट रही, जबकि व्यस्त समय में बिजली की कमी 10.29 गीगावॉट थी। यह 28 अप्रैल को दिन में पौने तीन बजे करीब बढ़ कर 204.653 गीगावॉट तक चला गया था। पिछले साल इसी तारीख को पीक डिमांड 182.559 गीगावॉट था।

बिजली घर तक कोयला पहुंचाने के लिए रेलवे ने किये यह किया इंतजाम
खदान से कोयला जल्द से जल्द बिजली घर तक पहुंचे, इसके लिए रेलवे ने विशेष इंतजाम किया है। इन इंतजाम में मालगाड़ियों का अतिरिक्त रैक लगाना तो है ही, साथ ही कुछ रूट से पैसेंजर और मेल एक्सप्रेस ट्रेन को कैंसिल भी किया जा रहा है। ऐसा इसलिए, ताकि ट्रैक खाली हो तो ज्यादा से ज्यादा मालगाड़ी चलाया जा सके। बताया जाता है कि अभी तक रेलवे 270 ट्रेनों को कैंसिल किया जा चुका है।