क्या सनक सकारात्मक भी हो सकती है सकारात्मक? - kya sanak sakaaraatmak bhee ho sakatee hai sakaaraatmak?

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CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi Course A Set 1 with Solutions

समय : 2.00
घण्टा पूणांक:40

सामान्य निर्देश:

  • इस प्रश्न पत्र में दो खंड हैं- खंड ‘क’ और खंड ‘ख’।
  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं, यथासंभव सभी प्रश्नों के उत्तर क्रमानुसार ही लिखिए।
  • लेखन कार्य में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखिए।
  • खंड-‘क’ में कुल 3 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उपप्रश्नों के उत्तर दीजिए।
  • खंड-‘ख’ में कुल 4 प्रश्न हैं। सभी प्रश्नों के विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार विकल्प का ध्यान रखते हुए चारों प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

रखण्ड-‘क’
(पाठ्य-पुस्तक व पूरक पाठ्य-पुस्तक) (20 अंक)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 25-30 शब्दों में लिखिए [2 × 4 = 8]
(क) ‘फादर कामिल बुल्के संकल्प से संन्यासी थे, मन से नहीं।’ लेखक के इस कथन के आधार पर सिद्ध कीजिए कि फादर का जीवन परम्परागत संन्यासियों से किस प्रकार अलग था?
उत्तर :

  • संन्यासी के परम्परागत स्वरूप में मोह त्यागकर सामान्यतः समाज से पलायन कर जाने की प्रवृत्ति।
  • फादर कामिल बुल्के द्वारा परम्परागत संन्यासी प्रवृत्ति से अलग नई परम्परा की स्थापना।
  • कॉलेज में अध्ययन एवं अध्यापन : प्रियजनों के प्रति मोह, प्रेम व अपनत्व।
  • प्रियजनों के घर समय-समय पर आना-जाना, संकट के समय सहानुभूति रख उन्हें धैर्य बँधाना आदि।

व्याख्यात्मक हलः
लेखक के अनुसार फादर कामिल बुल्के केवल संकल्प के संन्यासी थे मन से नहीं। संन्यासी के परंपरागत स्वरूप में मोह त्याग कर समाज से पलायन कर जाने की प्रवृत्ति होती है किंतु फादर में एक सच्चे संन्यासी के समान मानवीय गुणों का समावेश था। वे परोपकारी थे। उन्होंने परंपरागत संन्यासी से अलग एक नई परंपरा की स्थापना की। उन्होंने आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से कॉलेज में अध्ययन एवं अध्यापन कार्य किया। अपने सभी प्रिय जनों के प्रति उनके मन में मोह, प्रेम और अपनत्व का भाव था। वे सभी के घर समय-समय पर आते-जाते और संकट के समय उनके प्रति सहानुभूति रखकर उन्हें ढाँढस बँधाते थे।

(ख) फादर की उपस्थिति लेखक को देवदार की छाया के समान क्यों लगती थी? पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर :

  • मानवीय गुणों से परिपूर्ण व्यक्तित्व व सबके लिए कल्याण की कामना।
  • परम हितैषी के समान लोगों को आर्शीवचनों से सराबोर कर देना।
  • भरपूर वात्सल्य से भरी नीली आँखों में तैरता अपनापन।
  • उपर्युक्त कारणों से फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगना।

व्याख्यात्मक हलः
फादर कामिल मानवीय गुणों से युक्त आदर्श व्यक्तित्व थे। जिनके मन में सबके प्रति कल्याण की भावना थी। उनकी वात्सल्य भाव से परिपूर्ण नीली आँखों में तैरता अपनत्व मन को शांति प्रदान करता था। फादर अपने प्रिय जनों के घर घरेलू संस्कारों में पुरोहित और अग्रज की तरह उपस्थित होकर सबको आशीर्वचनों से भर देते थे। जिस प्रकार देवदार का विशाल वृक्ष सबको छाया और शीतलता प्रदान करता है उसी प्रकार लेखक को फादर की उपस्थिति देवदार के सघन वृक्ष की छाया के समान शीतलता ,संरक्षण तथा मन को शांति प्रदान करने वाली प्रतीत होती थी।

(ग) क्या सनक सकारात्मक भी हो सकती है? सकारात्मक सनक की जीवन में क्या भूमिका हो सकती है? सटीक उदाहरण द्वारा अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :

  • सनक अर्थात् धुन का पक्का होना, लगन, मेहनत तथा ईमानदारी से काम करने की सनक सकारात्मक सनक।
  • वैज्ञानिक, महापुरुषों तथा समाज सेवियों के उदाहरण।
  • आजादी के मतवाले क्रांतिकारी, सामाजिक बुराइयों को समूल नष्ट करने की ठानने वाले समाज सुधारक।
  • पहाड़ काटकर रास्ता बनाने वाले दशरथ माँझी जैसे सकारात्मक सनक वाले व्यक्तियों के उदाहरण।

व्याख्यात्मक हलः
हाँ ,सनक का सकारात्मक रूप भी होता है। सनक अर्थात् धुन का पक्का होना। ऐसी सापेक्ष सनक अर्थात् लगन, मेहनत तथा ईमानदारी से काम करने की सनक सकारात्मक होती है और उसके परिणाम भी अच्छे निकलते हैं। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है। आचार्य चाणक्य ऐसी सकारात्मक सनक से युक्त महापुरुष थे। उन्होंने बड़ी-बड़ी विपदाओं की चिंता किए बिना एक सामान्य बालक को सम्राट बनाने की ठान ली और वही हुआ। यह बसेंद्री पाल की सकारात्मक सनक ही थी कि उन्हें एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचा दिया। महात्मा गांधी की सनक ने बिना हथियारों के अंग्रेजों की दासता से भारत को मुक्ति दिलाई। आजादी के मतवाले क्रांतिकारियों को आजादी प्राप्त करने की सकारात्मक सनक थी। सामाजिक बुराइयों को समूल नष्ट करने की ठानने वाले, समाज का नव-निर्माण करने वाले समाज-सुधारक ऐसे ही सकारात्मक सनक के उदाहरण हैं।

(घ) ‘लखनवी अंदाज’ शीर्षक की सार्थकता तर्क सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तर :

  • विषय-वस्तु से शीर्ष के पूरी तरह मेल खाने में ही शीर्षक की सार्थकता। ‘लखनवी अंदाज’ शीर्षक के कथान से पूर्णतः संबंद्धता। .झठी नवाबी शान, दिखावा. सनक, नजाकत आदि का वर्णन।
  • लेखक को दिखाने के लिए खीरे की फाँके सूंघकर खिड़की से बाहर फेंकने वाली घटना का उल्लेख आदि।

व्याख्यात्मक हलः
‘लखनवी अंदाज’ कहानी का पूर्ण कथानक लखनऊ के रईस नवाब के खानदानी नवाबी अंदाज के प्रदर्शन को व्यक्त करता है। वर्षों पूर्व नवाबी छिन जाने के बावजूद आज भी वे लोग अपनी झूठी शान और तौर-तरीकों का ही दिखावा करते हैं। कहानी में नवाब साहब द्वारा खीरे को सूंघ कर स्वाद का आनंद लेना और उदर की तृप्ति हो जाने की घटना उनकी इसी झूठी नवाबी शान को व्यक्त करती है। विषय वस्तु से शीर्षक के पूरी तरह मेल खाने में ही शीर्षक की सार्थकता है। इस दृष्टि से कहानी का शीर्षक पूर्णता सार्थक है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लगभग 25-30 शब्दों में लिखिए [2 × 3 = 6]
(क) ‘उत्साह’ कविता के शीर्षक की सार्थकता तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

  • ‘उत्साह’ कविता का आह्वान गीत।
  • कविता समाज में क्रांति और उत्साह की भावना का संचार करने के उद्देश्यपरक सृजन से प्रेरित।
  • बादल की गर्जना व क्रांति के माध्यम से लोगों के जीवन में उत्साह का संचार, प्रकृति में नव-जीवन का समावेश, क्रांति चेतना का शंखनाद आदि शीर्षक की सार्थकता के आधार पर।

व्याख्यात्मक हलः
यह कविता एक आह्वान गीत है। आह्वान गीत उत्साह का संचार करने के उद्देश्य से लिखे जाते हैं। कवि ने बादलों की गर्जना को उत्साह का प्रतीक माना है। बादलों की गर्जना नवसृजन, नवजीवन का प्रतीक है। कवि अपेक्षा करता है कि लोग बादलों की गर्जना से उदासीनता छोड़ उत्साहित हो जाएँगे। प्रकृति में नव-जीवन के समावेश और जनमानस में क्रान्ति चेतना के शंखनाद के लिए ‘उत्साह’ की आवश्यकता होती है। ऐसी अपेक्षा करते हुए ही कवि ने कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा है जो पूर्णतः सार्थक है।

(ख) इस सत्र में पढ़ी गई किस कविता में फागुन के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है? उसे अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर :

  • निराला कृत ‘अट नहीं रही है’ कविता में चित्रित फागुन के अप्रतिम सौंदर्य की अपने शब्दों में कलात्मक अभिव्यक्ति।
  • फागुन की सर्वव्यापक आभा एवं उसके अद्भुत सौंदर्य की व्यापकता का उल्लेख।
  • प्रकृति में सौंदर्य व उल्लास का समावेश, कण-कण का फागुन के रंग में रंग जाना आदि।

व्याख्यात्मक हलः
इस सत्र में पढ़ी गयी कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि निराला ने फागुन मास में प्रकृति की सुंदरता एवं व्यापकता का वर्णन किया है। फागुन में वृक्षों की डालियाँ हरे और लाल नव-पल्लवों और रंग-बिरंगे पुष्पों से लद जाती हैं। सुवासित पवन, उल्लास पूर्ण वातावरण और फागुन की सुंदरता का प्रभाव मनुष्यों के मन पर भी पड़ता है। चारों ओर उल्लास और उत्साह दिखाई देता है। प्रकृति का सौंदर्य कहीं साँस लेता हुआ तो कहीं आकाश में उड़ता हुआ सर्वत्र दिखाई देता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो फागुन स्वयं अपने सौंदर्य को समेट नहीं पा रहा।

(ग) इस सत्र में पढ़ी गई किस कविता में कोरी भावुकता न होकर जीवन में संचित किए अनुभवों की अनिवार्य सीख है? कविता के नाम के साथ कथन की पुष्टि के लिए उपयुक्त तर्क भी प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :

  • ऋतुराज कृत ‘कन्यादान’ कविता – विदाई के समय माँ की केवल भावुकता का प्रदर्शन नहीं।
  • जीवन में संचित अनुभव पर आधारित उपदेश – सौंदर्य व वस्त्राभूषणों पर न रीझना, मानसिक रूप से दृढ़ बनना आदि।
  • स्वयं को किसी के सामने लड़की जैसा न दिखाने आदि की व्यावहारिक सीख।

व्याख्यात्मक हलः
ऋतुराज कृत ‘कन्यादान’ कविता में वर्णित माँ परंपरागत माँ से पूर्णता भिन्न है। वो आज के समाज में फैली विकृतियों और नारी के साथ हो रहे शोषण के प्रति सचेत है। इसीलिए वह अपनी बेटी की विदाई के समय कोरी भावुकता का प्रदर्शन नहीं करती बल्कि अपने जीवन में संचित अनुभवों के आधार पर वह उसे सौंदर्य व वस्त्र आभूषणों पर न रीझने और मानसिक रूप से दृढ़ बनने का संदेश देती है। साथ ही वह बेटी को नम्रता और संस्कार युक्त होने के साथ-साथ स्वयं को किसी के सामने लड़की जैसी अबला न दिखाने और शोषण का शिकार न होने की व्यावहारिक सीख भी देती है।

(घ) इस सत्र में पढ़ी गई किस कविता की अंतिम पंक्तियाँ आपको प्रभावित करती हैं और क्यों? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

  • ‘कन्यादान’ – ‘आग रोटियाँ…….जीवन के।।’
  • ‘उत्साह’ – ‘विकल-विकल……गरजो।।’
  • अट नहीं रही – ‘कहीं पड़ी है……पट नहीं रही है।।’
  • इनमें से किसी एक कविता की उल्लिखित अंतिम काव्य-पंक्तियों के प्रभावित करने व प्रिय हाने के कारणों का तर्क सहित उल्लेख।

व्याख्यात्मक हलः
इस सत्र में पढ़ी गयी ‘अट नहीं रही है’ कविता की अंतिम पंक्तियों –

‘कहीं पड़ी उर में , मंद-गंध -पुष्प-माल
पाट-पाट शोभा, श्री, पट नहीं रही है।

ने मुझे बहुत प्रभावित किया। इसमें कवि ने फागुन मास में प्रकृति की सुंदरता का व्यापक, सजीव एवं चित्रात्मक वर्णन किया है। फागुन मास में प्राकृतिक सौन्दर्य अपने चरम पर होता है। पतझड़ में ढूँठ बने वृक्षों की डालियाँ वसंत ऋतु के आते ही हरे और लाल नव-पल्लवों और रंग-बिरंगे पुष्पों से लद जाती हैं। चारों ओर का वातावरण पुष्पों की सुगंध से सुवासित हो जाता है। रंग-बिरंगे सुन्दर फूलों से सजे वृक्षों को देखकर ऐसा लगता है मानो उनके गले में सुंदर पुष्पों की माला पड़ी हो। कवि की यह कल्पना बहुत प्रभावी बन पड़ी है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में लिखिए [3 × 2 = 6]
(क) ‘माता का अंचल’ पाठ में वर्णित बचपन और आज के बचपन में क्या अंतर है? क्या इस अंतर का प्रभाव दोनों बचपनों के जीवन मूल्यों पर पड़ा है? तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :

  • खेल-खिलौने व खेलने के स्थान में अंतर, पहले खेत-खलिहानों व खुले में खेलने की जगह बचपन का अब घर या अपने कमरे तक सीमित हो जाना।
  • पहले बचपन को संयुक्त परिवार का प्रेम व समय मिलना, अब एकल परिवार में कामकाजी माँ-बाप के जाने के बाद एकाकीपन।
  • पहले बड़ों के प्रेम के साथ-साथ संस्कार मिलना, अब माता-पिता की व्यस्तता से संस्कारों में गिरावट आना।

व्याख्यात्मक हलः
‘माता का अंचल’ पाठ में वर्णित बचपन से आज के बचपन में बहुत अधिक अंतर आ गया है।पहले बच्चे सामूहिक रूप से घर के आसपास स्वच्छंद खुले वातावरण और प्राकृतिक परिवेश में खेलते थे किंतु अब वे केवल अपने घर या अपने कमरे तक सीमित होकर रह गए हैं। उनके खेलने की सामग्री भी भिन्न है। ऐसे में बच्चे प्राकृतिक परिवेश से दूर होते जा रहे हैं। साथ ही उनमें परस्पर सामंजस्य और सहयोग भावना का भी अभाव हो रहा है। पहले बचपन को संयुक्त परिवार का प्रेम ,संरक्षण और समय प्राप्त होता था। आज एकल परिवार में रहने के कारण कामकाजी माता- पिता के कार्य पर चले जाने के बाद बच्चे एकाकीपन का अनुभव करते हैं। ऐसे में बच्चे केवल टी.वी. देखकर या मोबाइल पर गेम खेलकर अपनी शाम और समय बिताते हैं। पहले बड़ों के संरक्षण में रहकर उन्हें बड़ों से स्नेह के साथ-साथ कहानियों के माध्यम से उचित जीवन मूल्य और संस्कार भी प्राप्त होते थे किंतु अब माता-पिता की व्यस्तता में बच्चों को समय न दिए जाने के कारण बच्चों में उचित संस्कारों और बड़ों का आदर, परस्पर सहयोग और सम्मान भावना जैसे जीवन मूल्यों का अभाव दिखाई देता है।

(ख) ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करते हुए बताइए कि मानसिक पराधीनता से मुक्ति पाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर :

  • सत्ता से जुड़े लोगों को मानसिक पराधीनता का शिकार होना। सरकारी तंत्र में नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार व्याप्त होना।
  • देश के सच्चे विकास व आम जनता के सच्चे सम्मान व स्वाभिमान की रक्षा के लिए मानसिक पराधीनता से मुक्ति पाना आवश्यक।

व्याख्यात्मक हलः
जॉर्ज पंचम की नाक एक व्यंग्यात्मक निबंध है। इसमें लेखक ने तत्कालीन सरकार की मानसिक परतंत्रता और औपनिवेशिक दौर के विदेशी आकर्षण पर गहरी चोट की है। अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भी सत्ता से जुड़े लोग मानसिक पराधीनता का शिकार हैं। इसी कारण जिन अंग्रेजों ने हम पर इतने जुल्म किए उनके स्वागत में लोग पलकें बिछाए बैठे हैं। साथ ही सरकारी तंत्र में नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। किसी भी समस्या के आने पर एक विभाग दूसरे पर अपनी जिम्मेदारी डालकर स्वयं छुटकारा पाने की कोशिश करता है। अफसरों में चापलूसी की प्रवृत्ति व्याप्त है। लेखक इस मानसिक परतंत्रता पर व्यंग्य करते हुए हमें सचेत करते हैं देश के सच्चे विकास और आम जनता के सच्चे सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए मानसिक पराधीनता से मुक्ति पाना अत्यंत आवश्यक है।

(ग) नदी, फूलों, वादियों और झरनों के स्वर्गिक सौंदर्य के बीच किन दृश्यों ने लेखिका के हृदय को झकझोर दिया? ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर :
आजीविका के लिए स्थानीय महिलाओं का अपनी पीठ पर बच्चे लादकर मार्ग बनाने के लिए पत्थर तोड़ने की विवशता।

  • उस प्राकृतिक सौंदर्य के बीच भूख, दैन्य और जीवित रहने के लिए लड़ी जाने वाली जीवन के जंग।
  • संवेदनाओं को झकझोर देने वाली अनुभूति।

व्याख्यात्मक हलः
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को निम्नलिखित दृश्य झकझोर गए- ‘कुछ पहाड़ी स्त्रियाँ आजीविका कमाने के लिए पीठ पर बच्चे को लादकर कठोर पत्थरों पर बैठकर पत्थरों को ही तोड़ रही थीं। उनके कोमल काया और हाथों में कुदाल और हथौड़े का दृश्य लेखिका के अंतर को झकझोर गया। वे मानो पहाड़ी हिम-शिखरों से टक्कर लेने जा रही थीं। उन्होंने देखा कि सात-आठ वर्ष की उम्र के ढेर सारे पहाड़ी बच्चे तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की पहाड़ी चढ़कर स्कूल जाते और वहाँ से लौटकर माँ के साथ मवेशी चराते, पानी भरते और लकड़ियों के गट्ठर ढोते हैं। ‘चाय के हरे भरे बागानों में युवतियों का बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ना और सूरज ढलने के समय पहाड़ी औरतों का सिर पर भारी-भरकम लकड़ियों का गट्ठर लेकर गाय चराते हुए लौटना आदि लेखिका के हृदय को झकझोर देने वाले ये दृश्य उस स्वर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य के बीच भूख ,मौत, दैन्य और जिंदा रहने की जंग को दर्शा रहे थे।

रखण्ड-‘ख’
(रचनात्मक लेवन खंड) (20 अंक)

प्रश्न 4.
निम्नलिखित अनुच्छेदों में से किसी एक विषय पर संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए- 5

(क) कोरोना काल और ऑनलाइन पढ़ाई संकेत बिन्दु-

  • भूमिका
  • लॉकडाउन की घोषणा
  • ऑनलाइन कक्षाओं का आरम्भ, इसके लाभ
  • ऑफलाइन कक्षाओं से तुलना
  • तकनीकी से जुड़ी बाधाएँ
  • निष्कर्ष ।

उत्तर :
दिए गए तीन अनुच्छेदों में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 150 शब्दों में अनुच्छेद लेखन :

  • भूमिका – 1 अंक
  • विषय – वस्तु – 3 अंक
  • भाषा – 1 अंक

व्याख्यात्मक हलः
कोरोना काल और ऑनलाइन पढ़ाई वैश्विक महामारी कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए 24 मार्च, 2020 को देश भर में लॉकडाउन लागू किया गया। ऐसे में विद्यार्थियों के लिए शिक्षा प्राप्ति की अनिवार्यता और आवश्यकता को देखते हुए राज्यों की सरकारों द्वारा स्कूली शिक्षा को ऑनलाइन करने का प्रावधान शुरू किया गया। इसके लिए आवश्यक था कि शिक्षकों को इस नई तकनीक से जोड़कर अध्यापन कार्य में सक्षम बनाया जाए। इसके लिए एनजीओ फाउंडशन और निजी क्षेत्र की तकनीकी शिक्षा कंपनियों को भी भागीदार बनाया गया। इन सब ने मिलकर शिक्षा प्रदान करने के लिए संवाद के सभी उपलब्ध माध्यमों जैसे टी.वी., डीटीएच चैनल, रेडियो प्रसारण व्हाट्सएप और एस एम् एस ग्रुप और प्रिंट मीडिया का भी सहारा लिया। कई संगठनों ने नए अकादमी वर्ष के लिए किताबें भी वितरित कर दीं। उस समय उच्च शिक्षा का क्षेत्र स्कूली शिक्षा की अपेक्षा में इन नई चुनौतियों से निपटने के लिए बहुत कम तैयार था। कक्षाओं में सुचारू रूप से पढ़ाई के स्थान पर अचानक ऑनलाइन माध्यम से स्थानांतरित होने से शिक्षा प्रदान करने का स्वरूप बिल्कुल बदल गया। यद्यपि संरक्षण एवं सुरक्षा की दृष्टि से ऑनलाइन शिक्षण बहुत लाभकारी रहा।

बच्चे अपने घर पर ही ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से शिक्षा का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। किंतु ऑनलाइन शिक्षण में विद्यार्थियों को अध्यापकों के साथ विचारों के आदान-प्रदान का मौका नहीं मिलता। मोबाइल, लैपटॉप और टेबलेट का ज्यादा उपयोग बढ़ गया है। जिससे विद्यार्थियों का स्क्रीन टाइम बढ़ने से आँखों पर विपरीत असर पड़ रहा है। इस शिक्षण प्रणाली के सुचारू रूप से कार्यान्वयन में निम्न आर्थिक वर्ग के विद्यार्थियों के लिए मोबाइल की उपलब्धता भी एक बड़ी चुनौती है। जहाँ माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहते थे वहीं ऑनलाइन कक्षाओं में बच्चों को मोबाइल ही दिया जा रहा है। ऐसे में माता-पिता भी दुविधा में हैं। बच्चों को पढ़ाना भी जरूरी है लेकिन साथ ही उनकी सेहत भी अपनी जगह महत्वपूर्ण है। बच्चा इसको कितना समझ पा रहा है यह देखना भी आवश्यक है। लंबे समय तक मोबाइल का इस्तेमाल करने से मोबाइल गर्म हो जाते हैं और ऐसे में दुर्घटना की भी आशंका बनी रहती है। किंतु वर्तमान में बार-बार कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए जबकि लगभग पिछले 2 वर्षों से विद्यार्थी विद्यालय नहीं जा पा रहे हैं ऐसे में ऑनलाइन शिक्षण शिक्षा प्राप्त करने का एक उचित और सशक्त माध्यम बन गया है।

(ख) मानव और प्राकृतिक आपदाएँ संकेत बिन्दु-

  • भूमिका
  • प्रकृति और मानव का नाता
  • मानव द्वारा बिना सोचे-विचारे प्रकृति का दोहन
  • कारण एवं प्रभाव
  • प्रकृति के रौद्र रूप के लिए दोषी कौन?
  • निष्कर्ष ।

उत्तर :
मानव और प्राकृतिक आपदाएँ
प्रकृति मानव के अस्तित्व का आधार है उसके बिना मानव के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रकृति अनेक रूपों में मानव का पोषण करती है उसके खाने, पहनने और रहने की व्यवस्था प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति द्वारा ही की जाती है किंतु आज मानव प्रकृति के महत्व को भूलकर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता चला जा रहा है। जिसके परिणामस्वरूप हमें अनेक प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूस्खलनसुनामी, भूकंप, बाढ़ सूखे आदि प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। प्राकृतिक आपदा प्रकृति का मानव के प्रति रोष है जिसकी अभिव्यक्ति क्षण भर में इस पृथ्वी से मानव के अस्तित्व को मिटाने की क्षमता रखती है। प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मनुष्य भी पर्यावरणीय असंतुलन के लिए उतना ही उत्तरदायी है। आपदा आने पर प्रकृति का तांडव देख मानव सिहर उठता है किंतु जनजीवन के सामान्य होते ही सब कुछ भूल जाता है। आज मानव वृक्षों की तेजी से कटाई, और पर्यावरण प्रदूषण फैला कर अपने क्षणिक सुख के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। उत्तराखंड में घटी आपदा दैवीय प्राकृतिक आपदा न होकर मानव निर्मित आपदा है जिसका विकास परियोजनाओं से ,बड़े बाँधों आदि से सीधा संबंध है।

विकास के नाम पर पहाड़ों को चीरकर चौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं, नदियों का स्वाभाविक मार्ग बदला जा रहा है, वनों की निर्ममता पूर्वक कटाई की जा रही है ,नदियों को बांधकर बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं लागू की जा रही हैं। ऐसे में प्रकृति का रोष प्रकट करना स्वाभाविक ही है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का मुख्य दायित्व राज्य सरकार का है आज ऐसे उपायों की बहुत आवश्यकता है जिन की योजना पहले से बनाई गई हो सबको उनकी जानकारी हो ताकि आवश्यकता के समय उनका उपयोग किया जा सके। मौसम की चेतावनी देकर प्राथमिक उपचार के बारे में विशेष प्रशिक्षण देकर और बचाव कार्य की जागरूकता के द्वारा लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है। आपदारोधी इमारतों का निर्माण करना इमारतों की मरम्मत और उनका नवीनीकरण भी बहुत आवश्यक है। प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में हम सबकी बराबर की भागीदारी है। हमें अपने मोहल्ले के लोगों के साथ मिलकर पहले से ही सुरक्षा योजनाएँ बनाकर समय-समय पर उनका अभ्यास करना चाहिए। लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने चाहिए। विद्यालय में बच्चों को जागरूक किया जाना चाहिए हम प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते किंतु उचित जानकारी समुचित व्यवस्था और संगठन के हानिकारक प्रभाव को कम अवश्य कर सकते हैं। अतः हमें प्रकृति का संरक्षण करते हुए उससे अपना मित्रतापूर्ण संबंध कायम करना होगा पर्यावरण संरक्षण नियमों का कड़ाई से अनुपालन करना चाहिए तभी हम आने वाले खतरों से खुद को बचा सकते हैं।

(ग) सड़क सुरक्षा : जीवन रक्षा
संकेत बिन्दु-

  • भूमिका
  • सड़क सुरक्षा से जुड़े कुछ प्रमुख नियम
  • सड़क सुरक्षा के नियमों की अनदेखी से होने वाली हानियाँ
  • इन्हें अपनाने के लाभ
  • निष्कर्ष।

उत्तर :
सड़क सुरक्षा : जीवन रक्षा
आज जिधर भी नजर दौड़ाई जाए सभी सडकें पूरे दिन के लिए व्यस्त होती हैं। वाहन अपनी उच्च गति से दौड़ते हैं। आज सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में यातायात नियमों और सड़क सुरक्षा नियमों का अनुसरण करना अत्यंत आवश्यक है। सड़क सुरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है। सभी को सड़क यातायात नियमों की जानकारी होनी चाहिए। विश्व स्वास्थ संगठन 2008 में आंकड़ों के अनुसार ऐसा पाया गया है कि अस्पतालों में अधिकतर भर्ती होने और मृत्यु की मुख्य वजह सड़क दुर्घटनाएँ ही हैं। सड़क पर यात्रा करते समय सभी लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सड़क सुरक्षा नियमों का अनुसरण करना बहुत आवश्यक है। सभी को गाड़ी चलाते समय पैदल चलने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सड़क पर चलने वाले सभी व्यक्तियों को अपने बाएं तरफ होकर चलना चाहिए। सड़क पर गाड़ी घुमाते समय गति धीमी रखनी चाहिए और अधिकृत सड़कों और रोड जंक्शन पर चलते समय ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए। दो पहिया वाहन चालकों को अच्छी गुणवत्ता वाले हेलमेट पहने चाहिए और गाड़ी की गति निर्धारित सीमा पर ही रखनी चाहिए। सभी वाहनों को दूसरे वाहनों से निश्चित दूरी बनाकर रखनी चाहिए। सड़क पर चलने वाले सभी लोगों को रोड पर बने निशान और नियमों की जानकारी होनी चाहिए। यात्रा के दौरान सड़क सुरक्षा के नियम और कानूनों को हमें सदैव ध्यान में रखना चाहिए। यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार के मादक द्रव्यों और मोबाइल का प्रयोग न करें।

सामान्य जनता के बीच जागरूकता उत्पन्न करने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करना, पाठ्यक्रम में मूल सड़क सुरक्षा पाठ जोड़ने के द्वारा सुरक्षा नियमों की जानकारी देना, ग्रीन क्रॉस कोड अर्थात् रुको, देखो और सुनो फिर पार करो के बारे में लोगों को जागरूक कराना आवश्यक है। हमें अपने वाहन के बारे में मूल जानकारी होनी चाहिए साथ ही दूरदर्शन और रेडियो के माध्यम से भी डॉक्यूमेंट्री बनाकर सड़क सुरक्षा नियमों का प्रसारण करना चाहिए। हर एक व्यक्ति को किसी मान्यता प्राप्त स्कूल के द्वारा अधिकृत प्रशिक्षकों के निर्देशन में रक्षात्मक वाहन चालन कोर्स अवश्य पास करना चाहिए। कई बार लोग लंबे समय तक अपनी निजी वाहनों को बिना किसी नियमित रखरखाव और मरम्मत के उपयोग करते हैं ऐसे वाहन हमारे जीवन के लिए खतरा बन जाते हैं अत: यह आवश्यक है कि समय से वाहनों की मरम्मत के साथ-साथ उनकी ठीक से कार्य करने की स्थिति के प्रति भी हम आशवस्त रहें। किसी भी यात्रा पर जाने से पहले प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, आपातकालीन टूल उचित बचाव उपकरण रखने के साथ-साथ वाहन की भी पूरी जाँच करनी चाहिए। सड़क सुरक्षा में ही हमारे जीवन की रक्षा है।

प्रश्न 5.
आपकी चचेरी दीदी कॉलेज में दाखिला लेना चाहती हैं, किन्तु आपके चाचाजी आगे की पढ़ाई न करवाकर उनकी शादी करवाना चाहते हैं। इस बारे में अपने चाचाजी को समझाते हुए लगभग 120 शब्दों में एक पत्र लिखिए। (5)
अथवा
आपके क्षेत्र में सरकारी राशन की दुकान का संचालक गरीबों के लिए आए अनाज की कालाबाजारी करता है और कुछ कहने पर उन्हें धमकाता है। उसकी शिकायत करने हेतु लगभग 120 शब्दों में जिलाधिकारी को पत्र लिखिए।
उत्तर :
दिए गए दो पत्रों में से किसी एक विषय पर लगभग 120 शब्दों में पत्र लेखन :

  • आरंभ तथा अंत की औपचारिकताएँ – 1 अंक
  • विषय-वस्तु – 3 अंक
  • भाषा – 1 अंक

व्याख्यात्मक हलः

पत्र लेखन

35, अशोक विहार
नई दिल्ली
दिनांक…………
आदरणीय चाचा जी
सादर चरण स्पर्श

आशा है आप सपरिवार सकुशल होंगे। हम लोग भी यहाँ ठीक हैं। चाचा जी मुझे कल ही स्नेहा का पत्र प्राप्त हुआ जिससे मुझे ज्ञात हुआ कि वह आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाखिला लेना चाहती है किंतु आप इसके लिए सहमत नहीं हैं और उसका विवाह करके अपने दायित्व से मुक्त होना चाहते हैं। चाचा जी स्नेहा सदैव एक कुशाग्र छात्रा रही है और उसने अपनी 12वीं की परीक्षा जिला स्तर पर तृतीय स्थान प्राप्त कर बहुत अच्छे अंको से उत्तीर्ण की है। ऐसे में इतनी अल्प आयु में उसका विवाह कर देना उचित नहीं है। अब तो सरकार द्वारा भी लड़कियों की विवाह योग्य 18 साल की उम्र को बढ़ाकर 21 वर्ष किए जाने से संबंधित विधेयक संसद में पेश किया गया है। अतः कानूनी दृष्टि से भी यह अनुचित होगा। मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया आप स्नेहा को आगे पढ़ने की अनुमति प्रदान कर उसे आत्म-निर्भर बनने का अवसर प्रदान करें।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि स्नेहा निश्चित ही शिक्षित होकर अपने परिवार को गौरवान्वित करेगी। आशा है आप मेरा यह अनुरोध स्वीकार करके उसे शीघ्र कॉलेज में प्रवेश दिलवा देंगे। आदरणीय चाची जी को मेरा सादर प्रणाम और स्नेहा को शुभ आशीर्वाद कहिएगा।
आपका भतीजा
अबस

अथवा

सेवा में
जिलाधिकारी
मेरठ
उत्तर प्रदेश
दिनांक………..

विषय- सरकारी राशन की दुकान के संचालन में अनियमितता की शिकायत हेतु।
महोदय,
इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान अपने क्षेत्र प्रीत नगर, मवाना, जिला – मेरठ में संचालित सरकारी राशन की दुकान की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। महोदय, सरकार द्वारा सरकारी राशन की दुकानों के संचालन का उद्देश्य गरीबों के लिए मुफ्त अथवा कम मूल्य पर अनाज उपलब्ध कराना होता है। किंतु अत्यंत खेद का विषय है कि हमारे क्षेत्र में सरकारी राशन की दुकान का संचालक गरीबों के लिए आए अनाज की कालाबाजारी करता है। जब भी उपभोक्ता राशन लेने के लिए उसकी दुकान पर जाते हैं तो वह कुछ न कुछ बहाने बनाकर उन्हें निर्धारित राशन नहीं देता और बाजार में अधिक मूल्य पर उस अनाज की कालाबाजारी करता है। जब लोग उसे ऐसा करने से रोकते हैं या अपना विरोध प्रकट करते हैं तो वह उन्हें धमकाता है। इस संबंध में स्थानीय पुलिस चौकी में भी कई बार शिकायत दर्ज कराने का प्रयास किया गया किंतु कोई भी उचित कार्यवाही नहीं हुई।

मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया इस विषय में शीघ्र संज्ञान लेते हुए उक्त सरकारी राशन की दुकान के संचालक के विरुद्ध आवश्यक अनुशासनात्मक कार्यवाही करके स्थानीय निवासियों की इस समस्या का समाधान करने की कृपा करें।

क्या सनक सकारात्मक भी हो सकती है सकारात्मक सनक की जीवन में क्या भूमिका हो सकती?

हाँ ,सनक का सकारात्मक रूप भी होता है। सनक अर्थात् धुन का पक्का होना। ऐसी सापेक्ष सनक अर्थात् लगन, मेहनत तथा ईमानदारी से काम करने की सनक सकारात्मक होती है और उसके परिणाम भी अच्छे निकलते हैं। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है।

क्या सनक सकारात्मक हो सकता है?

Solution : हाँ सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है।