कवियों के कवि कौन कहलाते हैं? - kaviyon ke kavi kaun kahalaate hain?

कवियों के कवि कौन कहलाते हैं? - kaviyon ke kavi kaun kahalaate hain?

सप्तक के कवि

सप्तक का मतलब होता हैं सात अर्थात सात कवियों का समूह। सप्तक के कवियों का जन्म प्रयोगवाद (1943 ई० से…) से शुरू होता है। प्रयोगवाद क्या हैं? प्रयोगवाद में प्रथम सप्तक के कवि का जन्म हुआ। प्रथम सप्तक के कवि ‘तार सप्तक’ के कवि कहलाते है। आम तौर पर ‘दूसरा सप्तक’ और ‘तीसरा सप्तक’ के कवियों को नयी कविता के कवियों में शामिल किया जाता है।

सप्तक के कवियों का विभाजन

सप्तक के कवियों को उनकी कविता रचनाओं की प्रकृति के आधार पर चार भागों में बांटा गया है। प्रथम सप्तक ‘तार सप्तक’ कहलाता है, इस सप्तक के कवियों उदय या जन्म या प्रभाव प्रयोगवाद (1943 ई० से…) से शुरू हुआ। दूसरे और तीसरे सप्तक के कवियों का समयकाल नयी कविता (1951 ई० से…) से है। चौथे सप्तक के कवि 1979 ई० से प्रकाश में आये। इन्होने अपने-अपने समयकालों में अद्भुत रचनाएँ की।

  1. तार सप्तक (1943 ई०)
  2. दूसरा सप्तक (1951 ई०)
  3. तीसरा सप्तक (1959 ई०)
  4. चौथा सप्तक (1979 ई०)

1. तार सप्तक

तार सप्तक के कवि (1943 ई०)– अज्ञेय, मुक्तिबोध, गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, भारत भूषण अग्रवाल, नेमिचन्द्र जैन, रामविलास शर्मा।

तार सप्तक एक काव्य संग्रह है। अज्ञेय द्वारा 1943 ई० में नयी कविता के प्रणयन हेतु सात कवियों का एक मण्डल बनाकर तार सप्तक का संकलन एवं संपादन किया गया। तार सप्तक नयी कविता का प्रस्थान बिंदु माना जाता है। इसी संकलन से हिन्दी काव्य साहित्य में प्रयोगवाद का आरम्भ होता है।

2. दूसरा सप्तक

दूसरे सप्तक के कवि (1951 ई०)– रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, शकुंतला माथुर व हरि नारायण व्यास।

दूसरा सप्तक सात कवियों का संकलन है जिसका संपादन अज्ञेय द्वारा 1949 में तथा प्रकाशन 1951 में भारतीय ज्ञानपीठ से हुआ।

3. तीसरा सप्तक

तीसरे सप्तक के कवि (1959 ई०)– कीर्ति चौधरी, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदार नाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना व मदन वात्स्यायन।

तीसरा सप्तक अज्ञेय द्वारा संपादित नई कविता के सात कवियों की कविताओं का संग्रह है। इसमें कुँवर नारायण, कीर्ति चौधरी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, मदन वात्स्यायन, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह और विजयदेवनरायण साही की रचनाएँ संकलित हैं। इसका प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन से 1959 ई० में हुआ।

4. चौथा सप्तक

चौथे सप्तक के कवि (1979 ई०)– अवधेश कुमार, राजकुमार कुम्भज, स्वदेश भारती, नंद किशोर आचार्य, सुमन राजे, श्रीराम वर्मा, राजेंद्र किशोर।

चौथा सप्तक अज्ञेय द्वारा संपादित हिंदी के 7 कवियों की कविताओं का संग्रह है। 1979 ईस्वी में प्रकाशित इस काव्य संग्रह में संकलित सात कवि थे।

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कवियों के कवि कौन कहलाते हैं? - kaviyon ke kavi kaun kahalaate hain?
Ashtachhap ke kavi

अष्टछाप के कवि

अष्टछाप एक आठ कवियों का समूह था। आठो कवि (Ashtachhap ke kavi) दो समूह में विभाजित थे; चार महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी एवं चार उनके पुत्र श्री और दूसरे चार विट्ठलनाथ जी के शिष्य थे, जिन्होंने अपने विभिन्न पद एवं कीर्तनों के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का गुणगान किया। अष्टछाप की स्थापना 1564 ई० में हुई थी।

अष्टछाप के कवियों का काल

भक्ति काल (1350 ई० – 1650 ई०): भक्तिकाल हिंदी साहित्य, साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है। भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जॉर्ज ग्रियर्सन ने मत व्यक्त किया वे इसे “ईसायत की देंन” मानते हैं। भक्तिकाल को चार भागों में विभक्ति किया गया है- 1. संत काव्य, 2. सूफी काव्य, 3. कृष्ण भक्ति काव्य, 4. राम भक्ति काव्य। (विस्तार से जानें- Bhakti Kaal Hindi Sahitya) (See Also: भक्ति काल के कवि और उनकी रचनाएँ)

अष्टछाप के कवि की सूची

  1. सूरदास
  2. कुंभन दास
  3. परमानंद दास
  4. कृष्ण दास
  5. छीत स्वामी
  6. गोविंद स्वामी
  7. चतुर्भुज दास
  8. नंद दास

Ashtachhap ke kavi दो समूह में विभाजित थे- महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य के शिष्य और विट्ठलनाथ जी के शिष्य:-

वल्लभाचार्य के शिष्य 1. सूरदास 2. कुंभन दास 3, परमानंद दास 4. कृष्ण दास
विट्ठलनाथ के शिष्य 5. छीत स्वामी 6. गोविंद स्वामी 7. चतुर्भुज दास 8. नंद दास

अष्टछाप के कवियों की विशेषता

अष्टछाप के कवि में सूरदास सबसे प्रमुख थे। सूरदास ने अपनी निश्चल भक्ति के कारण भगवान कृष्ण के सखा भी माने जाते थे। अष्टछाप के कवि परम भागवत होने के कारण यह लोग भगवदीय भी कहे जाते थे।

अष्टछाप के कवि विभिन्न वर्णों के थे-

  • परमानन्द कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे।
  • कृष्णदास शूद्रवर्ण के थे।
  • कुम्भनदास राजपूत थे, लेकिन खेती का काम करते थे।
  • सूरदासजी किसी के मत से सारस्वत ब्राह्मण थे और किसी किसी के मत से ब्रह्मभट्ट थे।
  • गोविन्ददास सनाढ्य ब्राह्मण थे।
  • छीत स्वामी माथुर चौबे थे।
  • नंददास जी सोरों सूकरक्षेत्र के सनाढ्य ब्राह्मण थे, जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के चचेरे भाई थे।

अष्टछाप के कवि के भक्त

अष्टछाप के कवि के भक्तों में बहुत ही उदारता पायी जाती है। “चौरासी वैष्णव की वार्ता” तथा “दो सौ वैष्ण्वन की वार्ता” में इनका जीवनवृत विस्तार से पाया जाता है।

  • ये आठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे, इस रूप में इन्हे ‘अष्टसखा’ की संज्ञा से जाना जाता है।
  • अष्टछाप के भक्त कवियों में सबसे ज्येष्ठ कुम्भनदास थे और सबसे कनिष्ठ नंददास थे।
  • काव्यसौष्ठव की दृष्टि से सर्वप्रथम स्थान सूरदास का है तथा द्वितीय स्थान नंददास का है।
  • सूरदास पुष्टिमार्ग के नायक कहे जाते है। ये वात्सल्य रस एवं शृंगार रस के अप्रतिम चितेरे माने जाते है। इनकी महत्त्वपूर्ण रचना ‘सूरसागर’ मानी जाती है।
  • नंददास काव्य सौष्ठव एवं भाषा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाओ में ‘रासपंचाध्यायी’,’भवरगीत’ एवं ‘सिन्धांतपंचाध्यायी’ है।
  • परमानंद दास के पदों का संग्रह ‘परमानन्द-सागर’ है। कृष्णदास की रचनायें ‘भ्रमरगीत’ एवं ‘प्रेमतत्त्व निरूपण’ है।
  • कुम्भनदास के केवल फुटकर पद पाये जाते हैं। इनका कोई ग्रन्थ नही है।
  • छीतस्वामी एवं गोविंदस्वामी का कोई ग्रन्थ नही मिलता।
  • चतुर्भुजदास की भाषा प्रांजलता महत्त्वपूर्ण है। इनकी रचना द्वादश-यश, भक्ति-प्रताप आदि है।
  • सम्पूर्ण भक्तिकाल में किसी आचार्य द्वारा कवियों, गायकों तथा कीर्तनकारों के संगठित मंडल का उल्लेख नही मिलता। अष्टछाप जैसा मंडल आधुनिक काल में भारतेंदु मंडल, रसिकमंडल, मतवाला मंडल, परिमल तथा प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ के रूप में उभर कर आए।
  • अष्टछाप के आठों भक्त-कवि समकालीन थे। इनका प्रभाव लगभग 84 वर्ष तक रहा। ये सभी श्रेष्ठ कलाकार,संगीतज्ञ एवं कीर्तनकार थे।
  • गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने इन अष्ट भक्त कवियों पर अपने आशीर्वाद की छाप लगायी, अतः इनका नाम ‘अष्टछाप’ पड़ा।

Frequently Asked Questions (FAQ)

1. अष्टछाप के 8 कवि कौन कौन से हैं?

आठ भक्त कवियों में चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे- सूरदास, कुम्भनदास, सूरदास, परमानंद दास, कृष्णदास। वहीं, अन्य चार गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे – गोविंदस्वामी, नंददास, छीतस्वामी, चतुर्भुजदास।

2. अष्टछाप में कुल कितने कवि थे?

अष्टछाप, महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी एवं उनके पुत्र श्री विट्ठलनाथ जी द्वारा संस्थापित 8 भक्तिकालीन कवियों का एक समूह था, जिन्होंने अपने विभिन्न पद एवं कीर्तनों के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का गुणगान किया। अष्टछाप की स्थापना 1565 ई० में हुई थी।

3. अष्टछाप के प्रथम कवि कौन है?

कुंभन दास, कुंभनदास का जन्म 1468 ई. में गोवर्धन के निकट जमुनावटी गांव में हुआ था । यह प्रथम अष्टछाप कवि कहलाते हैं।

4. अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध कौन थे?

अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सूरदास हैं जिन्होंने अपनी महान रचना सूरसागर में कृष्ण के बाल-रूप, सखा-रूप तथा प्रेमी रूप का अत्यंत विस्तृत, सूक्ष्म व मनोग्राही अंकन किया है।

5. असम के सबसे प्रसिद्ध कवि कौन है?

सबसे प्रसिद्ध असमिया कवि शंकरदेव (1449-1568) थे, जिनकी कविता और भक्ति की कई रचनाएँ आज भी पढ़ी जाती हैं और जिन्होंने माधवदेव (1489-1596) जैसे कवियों को महान सौंदर्य के गीत लिखने के लिए प्रेरित किया।

6. कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि कौन है?

भक्तिकाल में कृष्णभक्ति शाखा के अंतर्गत आने वाले प्रमुख कवि हैं – कबीरदास, संत शिरोमणि रविदास,तुलसीदास, सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानंद दास, कुंभनदास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी, हितहरिवंश, गदाधर भट्ट, मीराबाई, स्वामी हरिदास, सूरदास-मदनमोहन, श्रीभट्ट, व्यास जी, रसखान, ध्रुवदास तथा चैतन्य महाप्रभु।

7. किसको राजाओं ने आठ कवियों का दरबार कहा?

अष्टदिग्गज, सम्राट कृष्णदेवराय के दरबार में आठ तेलुगु विद्वानों और कवियों को दी गई सामूहिक उपाधि है, जिन्होंने 1509 से 1529 में अपनी मृत्यु तक विजयनगर साम्राज्य पर शासन किया था।

8. अष्टदिग्गज किस राजा के दरबार में कवियों को दिया जाने वाला सामूहिक उपाधि है?

सम्राट कृष्णदेवराय के दरबार में आठ विद्वान और कवियों रहते थे जिन्हें अन्य विद्वानों और राजाओं ने ‘अष्टदिग्गज‘ कहा।, कृष्णदेव राय ने 1509 से 1529 में अपनी मृत्यु तक विजयनगर साम्राज्य पर शासन किया था।

9. अष्टदिग्गज में कितने कवि होते हैं?

अष्ट दिगगज में आठ तेलुगु कवि होते थे। जिनके नाम निम्न हैं- अल्लासानी पेद्दाना, नंदी थिमना, मदायागरी मल्लाना, धूरजति, अय्यल रज्जु रामा भद्रुडु, पिंगली सूराना, रामराजभूषण और तेनाली राम कृष्ण।

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