वंशीधर के पिता ने बंशीधर से क्या कहा? - vansheedhar ke pita ne bansheedhar se kya kaha?

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आरोह भाग -1 प्रेमचंद  (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए )


प्रश्न 1: कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
उत्तर :  नमक का दरोगा कहानी का मुख्यपात्र वंशीधर हमें प्रभावित करता है। वंशीधर एक ईमानदार, दृढ़-निश्चयी, कर्मण्ठ तथा कर्तव्यपरायण व्यक्ति है। उन्हें अपने कार्य से प्रेम हैं। वे आदर्शों को मानने वाले व्यक्ति हैं। उनके आदर्श इतने उच्च हैं कि उन्हें पैसों का लालच भी हटा नहीं पाता है। उनके उच्च आदर्श के कारण ही अलोपीदीन उन्हें अपना मैनेजर रख लेते हैं। यह पात्र हमें ईमानदारी से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।


प्रश्न 2:’नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं?
उत्तर :  ‘नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित आलोपीदीन के व्यक्तित्व के पक्ष के दो पहलू उभरकर आते हैं। पंडित आलोपीदीन एक व्यापारी हैं। अपने व्यापार को चलाने के लिए वे हर अच्छे-बुरे तरीका का प्रयोग करते हैं। वंशीधर को अपने मार्ग से हटाने के लिए वे सारे हथकंडे प्रयोग में लाते हैं। ईमानदार वंशीधर उनके आगे ठहर नहीं पाता और उसे अपने पद से हटा दिया जाता है। इसमें वे एक भ्रष्ट, धूर्त, स्वार्थी व्यक्ति दिखाई देते हैं। दूसरा पक्ष एक ऐसे व्यक्ति का है, जो ईमानदारी, आदर्श और दृढ़ चरित्र वाले लोगों का सम्मान करता है। उनके महत्व को जानता है और उनके गुणों के आधार पर उन्हें उचित स्थान भी देता है।


प्रश्न 3:  कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की  किसी न किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उन अंशों को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-
(क) वृद्ध मुंशी (ख) वकील, (ग) शहर की भीड़
उत्तर :
(क) वृद्ध मुंशी निम्नवर्ग का नेतृत्व करते हैं। उनके पास धन नहीं है। मगर जानते हैं कि उसके बिना जीना संभव नहीं है। धन की लालसा उन्हें बेटे को भी कुशिक्षा देने से नहीं हिचकिचाती।
(ख) वकील अपनी ज़िम्मेदारी को नहीं समझते हैं। उन्हें मात्र धन ही महत्वपूर्ण होता है। ये बताते हैं कि धन के लिए वह किसी का भी केस ले लेते हैं और उसे बचाने के लिए हर प्रकार के हथकंड़े आजमाते हैं।
(ग) शहर की भीड़ अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी से उपेक्षित है। उसे आनंद चाहिए उसके लिए वह किसी के जीवन पर टीका-टिप्पणी से बाज़ नहीं आती है। देश तथा सत्य से उसका कोई लेना-देना नहीं है। उसे बस कुछ-न-कुछ कहना ही है।


प्रश्न 4:निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए-
”नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, उसी से उसकी बरकत होती है। तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।”
(क) यह किसकी उक्ति है?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?
उत्तर :
(क) यह वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी की उक्ति है।
(ख) जिस प्रकार पूर्णमासी में चाँद पूर्ण और चमकीला दिखाई देता है। वैसे ही वेतन एक महीने में एक बार मिलता है। उस एक दिन ही वेतनभोगी खुश रहता है।
(ग) हम यदि एक पिता होते तो अपने पुत्र को इस प्रकार की बात नहीं कहते। हम सब जानते हुए भी अपने पुत्र को गलत कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं करते। हमारा कर्तव्य बनाता है कि हम अपनी संतान को सही मार्ग में ले जाएँ। अतः हम एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत नहीं है।


प्रश्न 5:’नमक का दारोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
(क) वंशीधर की ईमानदारी- इस पाठ का मुख्य आधार वंशीधर और उसकी ईमानदारी है। अपनी ईमानदारी के लिए वह अपना सब कुछ होम कर देता है। वह अपनी ईमानदारी नहीं छोड़ता। अतः यह शीर्षक उचित जान पड़ता है।
(ख) बेईमानी की हार- इस पाठ में अलोपीदीन जैसा भ्रष्ट व्यक्ति जीतकर भी हार जाता है। वह अपनी बेईमानी के हज़ार हथकंड़े अपनाता है लेकिन आखिर में वंशीधर जैसे व्यक्ति को अपना मैनेजर नियुक्त करता है।


प्रश्न 6: कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते?
उत्तर :  कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को नियुक्त करने के पीछे बहुत से कारण थे-
(क) अलोपीदीन ने धन का लालच देकर लोगों को अपनी अंगुलियों में नचाया था। वंशीधर के चरित्र की दृढ़ता उन्हें हरा गई। उन्होंने धन की शक्ति और लोगों के प्रति अलोपीदीन की राय बदल दी।
(ख) अलोपीदीन को अभी तक भ्रष्ट लोग मिले थे। वंशीधर की ईमानदारी का वह कायल हो गया। 40 हज़ार रुपयों का लालच भी वंशीधर की ईमानदारी खरीद नहीं पाया। अलोपीदीन के लिए यह हैरानी की बात थी।
(ग) वह जानता था कि धन का लालच देकर किसी को भी खरीदा जा सकता था। अतः वह अपने व्यवसाय के लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश में था, जो किसी अन्य के लालच देने पर उसे धोखा न दे दे। वंशीधर के रूप में उसे ऐसा व्यक्ति मिल गया। अतः उसने तनिक भी देर न कि और वंशीधर जैसे हीरे को अपनी संपत्ति का मैनेज़र नियुक्त कर दिया। उसे अपनी संपत्ति का सही रक्षक मिल गया था।
प्रेमचंद ने जैसा अंत किया है, वैसा अंत शायद ही और कोई व्यक्ति दे पाता। हम भी ऐसा ही अंत देते। अतः इससे अच्छा अंत और कोई नहीं हो सकता है।


प्रश्न 7:  दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहायता से मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से क्या वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते?
उत्तर : मेरे विचार से वंशीधर ने जो किया वह बिलकुल उचित था। उसने पहले भी अपने कर्तव्य का पालन किया था। उसने ईमानदारी से अपना कार्य किया मगर उसे उसके स्थान पर प्रताड़ना, शर्मिंदी तथा नौकरी से निकाला ही मिला। जहाँ उसे इस कार्य के लिए मान-सम्मान और पुरस्कार मिलना चाहिए था, वहाँ अपमान मिला। अलोपीदीन ने उसके गुण को समझा। अलोपीदीन की लड़ाई वंशीधर से नहीं थी, वह तो स्वयं को बचाने का प्रयास कर रहा था।

वंशीधर जानता था कि उसकी बुरी दशा अलोपीदीन द्वारा हुई थी। इन दोनों के मध्य जो लड़ाई थी, वह धर्म की लड़ाई थी। एक अपनी नौकरी के प्रति ईमानदार था और एक समाज के प्रति अपनी छवि को लेकर ईमानदार था। अलोपीदीन ने जब यह अच्छी तरह जान लिया कि वंशीधर उसके लिए सही है, तो उसने बिना किसी की परवाह किए वंशीधर को अपनी सारी संपत्ति की देख-रेख का अधिकारी बना दिया। वंशीधर भी यह बात जान गया था कि अलोपीदीन ने उसके आदर्श, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी को समझा है। उसे वह व्यक्ति मिल गया जिसके साथ रहकर वह अपने धर्म की रक्षा कर सकता था। वंशीधर के लिए ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा उसका धर्म था। वंशीधर ने उसे अपने पास रखकर उसे अपने अनुसार जीने तथा कार्य करने की आज़ादी दी। इसमें दोनों का ही हित था। अतः वंशीधर ने जो किया वह उचित था।


प्रश्न 8: नमक विभाग के दरोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का ही जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?
उत्तर :  आज के समाज में ऐसे बहुत से विभाग हैं, जिससे बड़े-बड़े लोगों का जी ललचाता है। वे इस प्रकार हैं-
(क) आयकर विभाग
(ख) पुलिस विभाग
(ग) मंत्रालय


प्रश्न 9: अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।
उत्तर : विद्यार्थी अपने अनुभव स्वयं लिखें।


प्रश्न 10: ‘पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया‘- वृद्ध मुंशी द्वारा यह बात किस विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी? अपने निजी अनुभव के आधार पर बताइए-
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थ लगा हो।
(ग) ‘पढ़ना-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा: साक्षरता अथवा शिक्षा (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?)
उत्तर :
वृद्ध मुंशी चाहते थे कि उनका बेटा रिश्वत ले मगर उनके पुत्र ने ईमानदारी करते हुए अपनी नौकरी भी गँवा दी। तब उन्होंने यह वचन कहे।
(क) एक बार हमारे घर में पापा के दोस्त का बेटा आया हुआ था। वे भैया बहुत पढ़े-लिखे थे। उन्हें अच्छी नौकरी मिली। नौकरी ने उन्हें समृद्धि और नाम दोनों दिया। उनके लिए जब विवाह की बात आई, तो वह चाहते थे कि लड़की सुंदर तथा अमीर हो। उसके गुणों से उन्हें कोई सरोकार नहीं था। उनका मानना था कि धन और सौंदर्य मनुष्य के अवगुणों पर परदा डाल देता है। उनकी इस बात से मुझे लगा कि उनका पढ़ना-लिखना व्यर्थ हो गया। पढ़ाई ने उन्हें धन तो दिया मगर उनकी सोच को विकसित नहीं किया।
(ख) मैं अपने दादा को लेकर अस्पताल गया था। मैंने दादाजी को डॉक्टर को दिखाया। दादाजी की बीमारी के विषय में मैंने खुलकर बात की। मैंने उनकी बीमारी के बारे में किसी समाचार-पत्र में विस्तारपूर्वक पढ़ा था। अतः डॉक्टर से विषय में बात कर पाया और अपनी शंकाओं का हल भी लिया। तब मुझे लगा कि मेरा पढ़ना-लिखना सार्थक हो गया।
(ग) पाठ में पढ़ना-लिखना को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा। देखा जाए तो दोनों का अर्थ समान नहीं है। शिक्षा का अर्थ बहुत बड़ा होता है। शिक्षा वह माध्यम है, जिससे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। वह हमें जीविका के साधन के साथ-साथ ज्ञान के सागर में गोते लगवाती है। साक्षरता का अर्थ है किसी व्यक्ति का पढ़ना और लिखना सीखना। इसमें यह आवश्यक नहीं है कि वह संपूर्ण शिक्षा प्राप्त करे। अपना नाम लिखना जान जाए और पढ़ना सीख जाए, उसे भी साक्षर कहा जाता है।


प्रश्न 11:‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’–  वाक्य समाज में स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?
उत्तर : यह कथन समाज में लड़की के युवती होने पर माता-पिता के मन में उपजी चिंता को व्यक्त करता हैं। एक लड़की के माता-पिता कितने चिंतित होते हैं, जब उनकी लड़की बड़ी हो जाती है। एक माता-पिता के लिए लड़की के बड़े होने पर उसके विवाह, विवाह को लेकर होने वाले खर्च तथा दहेज़ देने को लेकर चिंताएँ खड़ी हो जाती हैं।


प्रश्न 12: ‘इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए? ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य करनेवाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।’ अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? लिखें।
उत्तर :  मेरे आस-पास ऐसे व्यक्ति को देखकर मुझे बहुत क्रोध आएगा। ऐसे व्यक्ति ही अपने पैसे के ज़ोर पर समाज को बीमार बना देते हैं। लोगों को लालच देकर समाज को भ्रष्ट करते हैं। वह अपने पैसे तथा शक्ति का दुरूपयोग कर अपना भला करते हैं। भूल जाते हैं कि उनके कारण समाज गलत मार्ग में चल रहा है। मैं उनके खिलाफ आवाज़ उठाऊँगा।


प्रश्न 13:   नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना। यह तो पीर की मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
उत्तर :  नौकरी करते समय अपने पद को मत देखना। पद तो पीर की मज़ार के समान है, जहाँ लोग आते हैं। बस ध्यान रखना लोग अपने काम को करवाने के लिए तुम्हें चढ़ावे (रिश्वत) के तौर पर क्या दे रहे हैं।


प्रश्न 14:इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि पथ-प्रदर्शक और आत्मवलंबन ही अपना सहायक था।
उत्तर : इस विशाल संसार में जहाँ मनुष्य को भटकाने के लिए हज़ार साधन उपलब्ध हैं, वहाँ पर धैर्य अपना सच्चा मित्र होता है, बुद्धि सही मार्ग दिखाती है और आत्मावलंबन ही अपना सच्चा सहायक है। अर्थात मनुष्य को इन तीनों पर विश्वास करके संसार में चलना चाहिए।


प्रश्न 15:तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
उत्तर : तर्क करने से मन में जो बात को लेकर संशय था, वह और पक्का हो गया। गाड़ियों को आता देखकर वंशीधर के मन में शंका हुई। जब उन्होंने पूछा और तर्क किया तो उनकी शंका सत्य में बदल गई।


प्रश्न 16:न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है, नाचती है।
उत्तर : न्याय और नीति को पैसे के माध्यम से नचाया जा सकता है। जिसके पास पैसा है, वह न्याय और नीति को अपने हाथ की कठपुतली बना देता है।


प्रश्न 17:दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
उत्तर : दुनिया का काम होता है किसी-न-किसी पर बोलते रहना। रात के समय में भी वे यही काम करते हैं। जब तक बुराई न कर लें उन्हें नींद भी नहीं आती है।


प्रश्न 18:खेद ऐसी समझ पर! पढ़ना-लिखना सब अकारण गया।
उत्तर : वृद्ध मुंशी कहते हैं कि ऐसी समझदारी का क्या फायदा, जो पढ़ने-लिखने के बाद भी उसे अपना अच्छा-बुरा न सीखा सकी।


प्रश्न 19:धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
उत्तर : वंशीधर के लिए उनका काम धर्म के समान था। उन्होंने लालच को छोड़कर अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी को चुना। उन्होंने अलोपीदीन द्वारा दिए गए 40 हज़ार रुपयों के लालच को अनदेखा कर दिया। धर्म की जीत हुई और धन की हार हो गई।


प्रश्न 20:न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
उत्तर :   अदालत रूपी मैदान में वंशीधर की ईमानदारी और अलोपीदीन के धन के मध्य युद्ध खड़ा हो गया। वंशीधर अपनी ईमानदारी के साथ अदालत में खड़े थे और अलोपीदीन अपने धन के सहारे खड़े थे। अब देखना था कि जीत किसकी होती है।


प्रश्न 21:भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप बोलचाल की भाषा के लिहाज से यह कहानी अद्भुत है। कहानी से ऐसे उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य असरदार बना है।
उत्तर :चित्रात्मकता-
1. जाड़े के दिन थे और रात का समय। नमक के सिपाही तथा चौकीदार नशे में मस्त थे। मुंशी वंशीधर को यहाँ आए अभी छह महीनों से अधिक न हुए थे लेकिन इन थोड़े समय में ही उन्होंने अपनी कार्य कुशलता और उत्तम आचार से अफसरों को मोहित कर लिया था। अफसर लोग उन पर बहुत विश्वास करने लगे थे। नमक के दफ्तर से एक मील पूर्व की ओर जमुना बहती थी, उस पर नावों का एक पुल बना हुआ था। दरोगा जी किवाड़ बंद किए मीठी नींद से सो रहे थे। अचानक आँख खुली तो नदी के प्रवाह की जगह गाड़ियों की गड़गड़ाहट तथा मल्लाहों का कोलाहल सुनाई दिया।
लोकोक्तियाँ-
1. सुअवसर ने मोती दे दिया
2. पूर्णमासी का चाँद
3. कलवार और कसाई के तगादे सहें
4. दुनिया सोती थी, जीभ जागती थी
5. छत और दीवार में भेद न होना
मुहावरे-
1. जी ललचाना
2. बरकत होना
3. फूले न समाना
4. नरम पड़ना
5. हृदय में शूल उठना
6. वश में करना
7. काना-फूसी होना
8. ईमान बेचना
9. भेंट चढ़ाना
10. हलचल मचना
11. इज़्ज़त धूल में मिलना
12. पैरों तले कुचलना
13. बौछारें होना
14. पाप कटना
15. गरदन झुकाना
16. विस्मित होना
17. नशा छाना
18. होशियार रहना
19. उछल पड़ना
20. नींव हिला देना
21. बैर मोल लेना
22. सिर पिटना
23. हाथ मलना
24. मिट्टी में मिलना
25. सीधे मुँह बात न करना
26. कालिख लगना
27. मुँह छिपाना
28. चकित होना
29. खुशामद करना
30. लज्जित करना
31. मैल मिटना
32. सिर झुकाना
33. सिर-माथे रखना
34. आँखें डबडबा आई
उर्दू-हिन्दी का प्रयोग
1. अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो।
2. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है।
3. निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
4. ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है।
5. गरज़वाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज़ को दाँव पर पाना ज़रा कठिन है।


प्रश्न 22:  कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो विशेषण और बताइए। साथ ही विशेषणों के लिए आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए।
उत्तर :  इस प्रकार के विशेषणों का प्रयोग हुआ है-
(क) पूर्णमासी का चाँद
(ख) पीर की मज़ार
हम इस प्रकार के विशेषणों का प्रयोग कर सकते हैं-
(क) एक पल का सुख (जिस क्षण वेतन मिलता है सुख के समान आनंद आता है।)


प्रश्न 23:नीचे दी गई भाषा की विशिष्ट अभिव्यक्तियों को पूरे वाक्य अथवा वाक्यों द्वारा स्पष्ट कीजिएः
(क) बाबूजी आशीर्वाद, (ख) सरकारी हुक्म, (ग) दातागंज, (घ) कानपुर
दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।
उत्तर :
(क) बाबूजी आशीर्वाद के रूप में  मुझे सब कुछ मिल गया।
(ख) सरकारी हुक्म से कमल के घर की नीलामी हुई है।
(ग) दातागंज- दातागंज में बातें होने लगीं।
(घ) कानपुर- हम कानपुर जा रहे हैं।


प्रश्न 24: इस कहानी को पढ़कर बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ, न्याय और विद्वता के बारे में आपकी क्या धारण बनती है? वर्तमान समय को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर शिक्षकों के साथ एक परिचर्चा आयोजित करें।
उत्तर : इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थियों को अपने शिक्षकों के मध्य परिचर्चा का आयोजन करना पड़ेगा।


वंशीधर के पिता ने वंशीधर को क्या समझाया?

उनके पिता ने घर से निकलते समय उन्हें बहुत समझाया, जिसका सार यह था कि ऐसी नौकरी करना जिसमें ऊपरी कमाई हो और आदमी तथा अवसर देखकर घूस जरूर लेना। वंशीधर पिता से आशीर्वाद लेकर नौकरी की तलाश में निकल जाते हैं। भाग्य से नमक विभाग के दारोग पद की नौकरी मिली जाती है जिसमें वेतन अच्छा था साथ ही ऊपरी कमाई भी ज्यादा थी।

वंशीधर के पिता के अनुभवों का निचोड़ क्या है?

(क) यह वंशीधर के पिता वृद्ध मुंशी की उक्ति है। (ख) जिस प्रकार पूर्णमासी में चाँद पूर्ण और चमकीला दिखाई देता है। वैसे ही वेतन एक महीने में एक बार मिलता है। उस एक दिन ही वेतनभोगी खुश रहता है।

वंशीधर के पिता के विचार से ऊपरी आय क्या है?

उसी समय मुंशी वंशीधर नौकरी के तलाश कर रहे थे। उनके पिता अनुभवी थे अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर ऊपरी कमाई वाले पद को बेहतर बताया। वे कहते हैं कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है।

बंशीधर पिता का क्या नाम था?

इनके पिता पं॰ छेदीलाल शुक्ल सीधे-सादे सरल ह्रदय के किसान थे जो अच्छे अल्हैत के रूप में विख्यात थे और आसपास के क्षेत्र में उन्हें आल्हा गायन के लिए बुलाया जाता था। वे नन्हें बंशीधर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। पिता द्वारा ओजपूर्ण शैली में गाये जाने वाले आल्हा को बंशीधर मंत्रमुग्ध होकर सुना करते थे।