कृति पूर्ण करो : Show Concept: पद्य (8th Standard) Is there an error in this question or solution? My Profilewhy create a profile on
Shaalaa.com? In this article, we will share MP Board Class 7th Hindi Solutions Chapter 17 और भी दूँ Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Chapter 17 पाठ का अभ्यासबोध प्रश्न प्रश्न 1. (क) कवि मातृभूमि को क्या-क्या समर्पित करना
चाहता है? (ख) कवि अपने सर्वस्व समर्पण के बाद भी सन्तुष्ट क्यों नहीं है ? (ग) कवि क्षमा-याचना क्यों कर रहा है? (घ) कविता का मुख्य सन्देश क्या है ? प्रश्न 2. निम्नलिखित भाव कविता की जिन पंक्तियों से प्रकट होते हैं, उन
पंक्तियों को लिखिए प्रश्न 3. (क) प्रस्तुत कविता का मुख्य भाव क्या है? (ख) कवि अपने जीवन, घर-परिवार और गाँव से क्षमा याचना करता है, क्योंकि वह भाषा अध्ययन प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध उच्चारण कीजिए प्रश्न 2. उत्तर छात्र/छात्राएँ स्वयं करें। प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5. प्रश्न 6. उत्तर फूल-प्रसून, पुष्प, सुमन । पृथ्वी-वसुधा, धारिणी, धरा, धरती। माथा-मस्तक, भाल, कपाल। खून-रक्त, रुधिर, लहू। गृह-घर, आवास, वास। और भी दूँ सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या 1. मन समर्पित, तन समर्पित, शब्दार्थ-समर्पित = अर्पित किया हुआ, सौंपा हुआ; तन = शरीर; जीवन = प्राण या जिन्दगी। सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ “और भी ढूँ”, नामक कविता से अवतरित हैं। इसके रचयिता ‘रामावतार त्यागी’ हैं। प्रसंग-कवि अपने प्रिय देश के लिए अपना सर्वस्व त्याग देने को तैयार है। व्याख्या-कवि कहता है कि हे मेरे देश की धरती! तेरी सेवा के लिए मैं स्वयं तन-मन तथा अपने प्राण (सम्पूर्ण जिन्दगी) अर्पित करता हूँ। इस सब के अलावा दूसरी वस्तुएँ भी यदि मेरे पास है, तो उन्हें भी तेरे लिए अर्पित करने (त्यागने) के लिए तैयार हूँ। 2. माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिञ्चन, गान अर्पित, प्राण अर्पित, शब्दार्थ-अकिञ्चन = दीन; भाल = मस्तक; समर्पण = अर्पित की हुई वस्तु; अर्पित = न्योछावर किया हुआ। सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-कवि के अनुसार देशभक्त सर्वस्व अर्पित करने के बाद जो भी दूसरी वस्तु यदि उसके पास है तो वह उसे भी देश की सेवा में अर्पित कर देने को तैयार है। व्याख्या-हे मातृभूमि, मुझ पर तेरे ऋण (कर्ज) का बोझ बहुत है। मैं दीन हूँ (उस कर्ज के बोझ को मैं किस तरह उठा सकूँगा)। फिर भी मैं यह निवेदन कर रहा हूँ कि जब भी अपने इस मस्तक को थाल में सजाकर लेकर आऊँ, तो मेरे इस समर्पण को (सेवा में दी गई इस वस्तु को) स्वीकार करने की कृपा करना। भक्ति भरा मेरा गीत भी तुम्हें अर्पित है, मेरे प्राण भी अर्पित हैं। साथ ही मेरे रक्त की (खून की) एक-एक बूंद भी तुम्हारे लिए अर्पित है। इस प्रकार हे मेरे देश की धरती ! मैं इसके अलावा भी कुछ और अर्पित करना चाहता हूँ। 3. माँज दो तलवार को, लाओ न देरी, स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
शब्दार्थ-भाल = मस्तक; मल दो = लगा दो; आशीष = आशीर्वाद; घनेरी- घनी; स्वप्न- कल्पनाएँ, विचार; आयु = उम्र ; चरण = पैर। मन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-कवि अपनी मातृभूमि के आशीर्वाद को प्राप्त करके अपनी उम्र के प्रत्येक क्षण को देश की सेवा में अर्पित करना चाहता है। व्याख्या-हे मातृभूमि-मेरी माँ! बिना किसी देर किए हुए तुम मुझे तलवार (युद्ध के लिए) दे दो। उसको और ढाल को-दोनों ही कसकर कमर में बाँध दो। साथ ही, मेरे मस्तक पर अपने चरणों (पैरों) की थोड़ी-सी धूल लगा दो तथा मेरे सिर पर अपने आशीर्वाद की घनी छाया कर दो (आशीर्वाद दीजिए)। मेरी कल्पनाएँ तथा मेरे प्रश्न सभी तेरी सेवा में अर्पित हैं। यहाँ तक कि मेरी उम्र का प्रत्येक क्षण भी तुम्हारी सेवा में अर्पित है। इस तरह, हे मेरे देश की धरती, मैं तुझे कुछ अन्य भी अर्पित कर देना चाहता हूँ। 4. तोड़ता हूँ मोह का बन्धन, क्षमा दो, ये सुमन लो, यह चमन लो, शब्दार्थ-ध्वज पताका, झण्डा; थमा दो = पकड़ा दो सुमन = फूल; चमन = बगीचा; नीड़ = घोंसला; मोह = प्रेम। सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग- कवि अपने देश की सेवा के लिए सम्पूर्ण बन्धनों को समाप्त करके सब कुछ देश की सेवा में अर्पित कर देना चाहता है। व्याख्या-हे मेरे देश ! तेरे लिए मैं मोह के (प्रेम के) जितने भी बन्धन है, उन सबको तोड़ देना चाहता हूँ। उसके लिए हे मेरे गाँव, तू मुझे क्षमा करना। मेरे घर-आँगन तथा द्वार, तुम सभी मुझे क्षमा करना। आज (अब समय आ गया है तब) तुम सभी मेरे सीधे हाथ में तलवार पकड़ा दो। इस तरह, हे मेरे देश ! ये सभी फूल, तथा बगीचा तथा मेरे घोंसले का तिनका-तिनका भी तेरी सेवा में अर्पित करता हूँ। इस प्रकार, मेरे पास जो भी अन्य वस्तु (यदि मेरे पास है) तो वह भी मैं, हे मेरे देश की धरती ! तेरी सेवा में अर्पित करता हूँ। और भी दूँ शब्दकोश समर्पित = त्यागा हुआ, अर्पित किया हुआ निवेदन = प्रार्थना; माँज = धोकर साफ कर दो, युद्ध के लिए; मोह = प्रेम; ध्वज – पताका, झण्डा; ऋण = कर्ज; भाल = मस्तक, माथा;आशीष = आशीर्वाद; सुमन = फूल, पुष्प; नीड़ = घोसा; अकिंचन = दीन; शीश = सिर; घनेरी-घनी; चमन – बगीचा; तृण = तिनका। MP Board Class 7th Hindi Solutionsकवि मातृभूमि के प्रति क्या अर्पित करना चाहता है *?कवि मातृभूमि के लिए अपना तन, मन, जीवन, अपने गान, प्राण, रक्त का प्रत्येक कण, अपने स्वपन, प्रश्न, आयु का प्रत्येक क्षण, सुमन, चमन और अपने नीड़ का प्रत्येक तृण भी अर्पित करना चाहता है।
कवि मातृभूमि के लिए क्या करना चाहता है?(क) कवि मातृभूमि को क्या-क्या समर्पित करना चाहता है? कवि मातृभूमि के लिए तन-मन-प्राण सब कुछ समर्पित करना चाहता है। वह अपने मस्तक, गीत तथा रक्त का एक-एक कण भी अपने देश की धरती के लिए अर्पित कर देना चाहता है। उसके मन में उठने वाली कल्पनाएँ तथा प्रश्न तथा सम्पूर्ण आयु (उम्र) भी मातृभूमि के लिए अर्पित करना चाहता है।
मातृभूमि कविता में कवि क्या कामना करते है?कवि की कामना है कि वे सदा मातृभूमि की सेवा करते रहें और खुशी-खुशी देशहित में अपने प्राण निछावर कर दें। कवि कहते हैं, हे मातृभूमि, मैं तेरे चरणों में अपना सिर झुकाता हूँ। मैं अपनी भक्ति रूपी भेंट लेकर तेरी शरण में आना चाहता हूँ।
मातृभूमि कविता का भावार्थ क्या है?कविता का आशय :
मातृभूमि की वंदना करते हुए कवि ने भारतवर्ष की वन-संपदा, खनिज-संपत्ति तथा भारत की महान विभूतियों का वर्णन किया है। विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से कवि ने मातृभूमि भारत माता की महानता का गुणगान किया है।
|