किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएंकिशोरावस्था वह काल होता है जिसमें बालक या बालिका ना तो बच्चा होता है और ना ही उन्हें प्रौढ़ ही कहा जा सकता है। इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में कई तरह के परिवर्तन तेजी से होने लगता है जिस कारण से उन्हें इस अवस्था में काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है इस अवस्था को तनाव तूफान तथा संघर्ष का काल भी कहा जाता है क्योंकि इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में काफी सारे परिवर्तन होने के कारण भी बहुत ज्यादा वे तनाव में रहते हैं और अपने जीवन में बहुत ज्यादा संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते हैं आज हम किशोरावस्था के प्रमुख विशेषताओं के बारे में अध्ययन करेंगे। Show
किशोरावस्था के प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से जानेंगे। १.खुद पर सबसे ज्यादा भरोसा :किशोरावस्था के प्रमुख विशेषताओं में यह विशेषता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि किशोरावस्था के बालक एवं बालिकाओं खुद पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं वे किसी भी अन्य व्यक्ति या माता-पिता के बातों को अनदेखा कर देते हैं वे जो भी करते हैं उसे पूरी लगन से करते हैं। २. विद्रोही प्रवृत्ति:किशोरावस्था के बालक एवं बालिकाओं में विद्रोह प्रवृत्ति बहुत ज्यादा होती है वह पौराणिक नियमों को नहीं मानते बुजुर्गों के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन नहीं करते उनके द्वारा बताए गए बातें उन्हें अच्छा नहीं लगता जिसके कारण मैं उसमें बदलाव लाने का प्रयास करते हैं वह चुनौतियों का सामना करने सीख लेते हैं जिसके कारण उन्हें अगर कोई बात उनके मन मुताबिक ना हो तो वह विद्रोह कर देते हैं। ३.आक्रोश एवं हिंसक प्रवृत्ति :किशोरावस्था काल होता है जिसमें बालक एवं बालिका हैं मैं इतनी ज्यादा परिवर्तन होते हैं कि उनके मानसिक शक्ति को प्रभावित करता है जिसके कारण उनमें चिड़चिड़ापन उत्पन्न हो जाता है और वे आक्रोश एवं हिंसक हो जाते हैं। ४.धार्मिक भेदभाव एवं छुआछूत से दूर :किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं में किसी भी प्रकार के जातिगत भेदभाव, धर्म से संबंधित भेदभाव, छुआछूत की भावना उनके अंदर नहीं होते हैं बल्कि वे इन भेदों से दूर होकर एक साथ रहते हैं एक साथ खेलते हैं और परिवेश को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। ५. अपने कैरियर के प्रति निष्ठा :किशोरावस्था वह काल होता है जिसमें बालक एवं बालिका है अपने कैरियर के प्रति निष्ठा हो जाते हैं अपने पैरों में खड़ा होकर कुछ अच्छा करने का प्रयास करते हैं और इसके लिए वे हमेशा परेशान रहते हैं उन्हें समझ नहीं आता कि वह किस करियर में आगे बढ़े इसके लिए वे अपने माता-पिता से भी सलाह लेने का प्रयास करते हैं। ६. मित्र समूह की भूमिका :प्रत्येक बालक की इच्छा होती है कि वह अपने हम उम्र बच्चों के साथ मित्र बनाएं। किशोरावस्था ऐसा अवस्था होता है जिसमें बालक एवं बालिका अपने हम उम्र के बालक एवं बालिकाओं से बिना किसी भेदभाव के मित्र बनाते हैं।उनकी मित्र समूह में विभिन्न प्रकार के बच्चे होते हैं उन बालकों के स्वभाव, आचार विचार, रहन-सहन का स्तर, धर्म, संस्कृति सामाजिक, आर्थिक, पृष्ठभूमि इत्यादि में अंतर पाए जाते हैं यह विशेषताएं उन सभी बालकों पर समान रूप से पड़ती है। और सभी अपने मित्रों के विभिन्न परिस्थितियों में एकजुट होकर उन समस्याओं को समाधान करने में जुट जाते हैं। ७.एकता एवं सहयोग की भावना का विकास :किशोरावस्था में एकता एवं सहयोग की भावना का विकास भी होता हैं सामूहिक खेलों से आदान-प्रदान की भावना का विकास होता है जब बच्चे एक दूसरे के साथ मिलजुल कर कहते हैं तो उनमें एकता व सहयोग की भावना पनपती है यह मिलजुलकर खेलने की भावना आगे चलकर मिलजुल कर रहने की भावना में बदल जाती है। बालिका अपने माता पिता के रसोई घर में मदद करते हैं ८. भुक्खड़पन :किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं में खाने-पीने के प्रति बहुत ज्यादा रुझान देखने को मिलती है बे विभिन्न तरह के पकवान खाने के शौकीन होते हैं उन्हें हर एक-दो घंटे में कुछ ना कुछ खाने की आदत होती है वह जंक फूड खाना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। ९. अपने शारीरिक विकास पर ध्यान :किशोरावस्था में बालिकाएं अपने शारीरिक विकास में काफी ज्यादा ध्यान देने लगती हैं उन्हें अपने शरीर के विकास पर सबसे ज्यादा चिंता सताने लगता है जिसके कारण से वह अपने आप पर ध्यान देने लगती हैं साथी अपने खाने-पीने पर भी कंट्रोल करने लगती हैं वह डाइट करना शुरू कर देती है लेकिन ठीक इसके विपरीत बालक अपने शारीरिक विकास पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते पर खेलकूद एवं जिम के कारण उनकी शारीरिक विकास पर उन्हें ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती। १०. उत्सुकता एवं उदासीनता :इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में उदासीनता सबसे ज्यादा होती है सबसे ज्यादा उदासीन उसके प्रेम संबंध से संबंधित होती है इस उम्र में प्रेम संबंध का होना एक आम बात है उनमें इतनी समझ नहीं होती कि वह क्या कर रहे होते हैं। जिसके कारण से उनमें उत्सुकता एवं उदासीनता भरा ही रहता है। ११. कल्पना शक्ति का विकास :इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं में कल्पना शक्ति का तीव्र विकास होने लगता है और वे दिवा स्वप्न कहने लगते हैं कल्पना में बहुत ज्यादा खो जाते हैं जिसका प्रभाव उनके जीवन में भी पड़ता है और वे अच्छे कलाकार जैसे संगीतकार चित्रकार भी बन जाते हैं। १२. काम भावना का विकास:इस अवस्था में बालक में काम भावना का विकास होने लगता है बालक एवं बालिकाओं में काम भावना का होना एक आम बात है बालकों में स्वप्नदोष जैसी बीमारी आने लगता है एवं बालिकाओं में मासिक धर्म होने लगता है। निष्कर्ष :निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि किशोरावस्था की प्रमुख प्रवृत्तियों में इस सभी प्रवृतियां का होना निश्चित ही है इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं बहुत ज्यादा चंचल, भुक्कड़, समाजसेवी, पशुओं के प्रति निष्ठा, कामवासना समलैंगिकता जैसे गुणों से भरे होते हैं इसीलिए तो इस कार को जीवन का स्वर्ण काल भी कहा जाता है क्योंकि इस काल में बालक एवं बालिकाओं में बदलाव तेजी से देखने को मिलता है इस दौर को जो पार कर लेता है उनका जीवन सुखमय हो जाता है। किशोरावस्था से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?किशोरावस्था वह काल होता है जिसमें बालक एवं बालिका है अपने कैरियर के प्रति निष्ठा हो जाते हैं अपने पैरों में खड़ा होकर कुछ अच्छा करने का प्रयास करते हैं और इसके लिए वे हमेशा परेशान रहते हैं उन्हें समझ नहीं आता कि वह किस करियर में आगे बढ़े इसके लिए वे अपने माता-पिता से भी सलाह लेने का प्रयास करते हैं।
किशोरावस्था से आप क्या समझते हैं बताइए?किशोरावस्था मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। यह काल बारह से उन्नीस वर्ष तक रहता है, परंतु किसी किसी व्यक्ति में यह बाईस वर्ष तक चला जाता है। यह काल भी सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय है। भावों के विकास के साथ साथ बालक की कल्पना का विकास होता है।
किशोरावस्था के दौरान स्वयं की विशेषता क्या है?किशोरावस्था में आत्म-सम्मान के भाव की स्वत: ही वृद्धि हो जाती है। किशोर समाज में वही स्थान प्राप्त करना चाहते हैं, जो बड़ों को प्राप्त है इसीलिये आत्मनिर्भर बनना, नायकत्व करना, प्रत्येक कार्य करने को तैयार रहना और महान् पुरुषों की नकल करना आदि आयामों को प्रकट करते रहते हैं।
किशोरावस्था के कितने प्रकार होते हैं?कुछ मनोवैज्ञानकों ने किशोरावस्था को दो भागों में विभाजित किया है- (1) पूर्व-किशोरावस्था 12 से 16 वर्ष की आयु तक। (2) उत्तर-किशोरावस्था 17 से 19 वर्ष की आयु तक। 17 वर्ष की आयु को दोनों का विभाजक बिन्दु बताया है।
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